अखिलेश यादव का दिमाग खराब हो गया है। गर्मियों में जब शाम को लोग निकलते हैं, बाज़ार-हाट करते हैं , तो इस मूर्ख ने व्यापारियों को मजबूर कर दिया है सांझ होते ही दुकानें बंद रखने को। इस बिजली कटौती से आम इंसान गर्मी में छटपटा रहा है। वहीँ दुकानें बंद रहने के कारण आम दुकानदार की आमदनी पर गाज गिर रही है। अगर इन गलीज नेताओं को भी अनुभव हो पाता की बिजली कटने पर आम जनता किन मुश्किलों से गुज़र रही है तो शायद ये अपनी मूर्खतापूर्ण योजनाओं को न बनाते।
मुल्ला समर्थक , श्रीकृष्ण के वंशज, इस यादव सरकार ने भगवान् श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में दंगों , क़त्ल और आगजनी का जो तांडव उपस्थित किया किया है उसके लिए इस बददिमाग और बदमिजाज अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश की जनता लाखों बददुआएं देगी।
जिसकी सरकार में आजम खान जैसे आतंकी हों , उनसे अपेक्षा ही क्या कर सकते हैं। इससे बेहतर तो मायावती ही थी। कम से कम हिन्दू-विरोधी तो नहीं थी।बस पैसों की लालची थी थोड़ी।
अखिलेश यादव मुर्दाबाद !
17 comments:
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बिजली नहीं रह रही है...ग्रामीण क्षेत्र के जिलों में एक हफ्ता दिन और एक हफ्ता रात को बिजली आती है वो भी निर्धारित समय में भी जम कर कटौती होती है...किसी एक वर्ग विशेष को सुविधा मुहैया कराने में ये जिन वोटों पर जीते उन्हें ही कटवाने पर तुले हुए हैं...बिजली न होते हुए भी आग लगने पर क्या तो बिजली के शार्ट-सर्किट से आग लगी है...और तो और मोरादाबाद जो पीतल के व्यवसाय के लिए एक प्रतिष्ठित स्थान माना जाता था वहां बिजली के ना मिलने से सारा काम बंद होता जा रहा है और वहां के कारीगर काम छोड़ रिक्शा वगैरह चलने को मजबूर हैं...यही हालत भदोही के कालीन व्यवसायियों की है...वाराणसी का सिल्क और वाराणसी साड़ी बनाने का कार्य अब गुजरात में सिफ्ट होता जा रहा है...एक बहुत मामूली सी बात है अगर प्रदेश में विकास और रोजगार के अवसर नहीं रहेंगे तो लोग कुछ और सोच ही नहीं पाएंगे और ये अपने लूटने का कार्य आसानी से जारी रख पाएंगे...साथ ही अगर ये कोई स्टैंड लेते हैं तो जैसे रेड्डी जेल गया वैसे ये भी जेल में मिलेंगे...अतः मज़बूरी है भाई...और यहाँ मज़बूरी का नाम मुलायम है
साथ ही एक और अहम् बात है जब गाय पालने वाले की दोस्ती गाय काटने वाले से हो जाती है तो यही होता है
सब एक सामान हैं...............
क्या करें हम वोटर ही बेअक्ल है शायद....
या हमारे पास ओप्शन ही नहीं होता है अक्सर....
बिल्कुल सही कहा है आपने । यह मुस्लिमपरस्त हिन्दू विरोधी सरकार है ।
ऐसा कौन सा नेता है जिसका दिमाग सही रहता है कुर्सी पा के ?
चमचों से ये भी घिर गये हैं।
ये भगवान श्री कृष्ण के वंशज कहाँ से आ गए, ये तो कंस या जरासंध के वंसज हैं. भगवान श्री कृष्ण का वंश तो उनके महा प्रयाण के बाद समाप्त हो गया था. गांधारी का श्राप तप आप को याद होगा ही...
ये भगवान श्री कृष्ण के वंशज कहाँ से आ गए, ये तो कंस या जरासंध के वंसज हैं. भगवान श्री कृष्ण का वंश तो उनके महा प्रयाण के बाद समाप्त हो गया था. गांधारी का श्राप तप आप को याद होगा ही...
सहमत |
शुभकामनायें |
sahi kaha divyaji...
bijli ka tugalki farmaan sarkar ko vapas lena pada.
sahi kaha divyaji...
bijli ka tugalki farmaan sarkar ko vapas lena pada.
बिल्कुल सही कहा है आपने सब एक से बढ़ कर एक है
अखिलेश यादव और श्रीकृश्ण के वंशज!
यादव कब से कृश्ण्वंशी होने लगे. यह एक गलत परम्परा है. वस्तुतह फिर हमे कृष्ण के पूर्वजो के बारे मे जानना चाहिये जैसे वसुदेव के बप्पा उनके बप्पा के बप्पा. 60 के दशक मे जिस जातिवादी परम्परा का समापन लग रहा था उसका पुनुरुत्थान अखिलेश के पप्पा एंड कम्पनी ने करके जो पाप किया है उसके लिये इतिहास उन्हे माफ नही करेगा और इसकी सजा गम्भीर उन्हे भुगतनी पडेगी. आज ब्राहमन परशुराम का वंशज क्षत्रिय तो खंड खंड राजाओ के वंशज बनिये झूलेलाल के कायस्थ चित्रगुप्त वंशज हो गये है. वो भी सरकारी छुट्टियो सहित. यह भारत की जनता को बांटकर शासन करने के अलावा और क्या है यह एक घृणित कुक़्रित्य है दिव्याजी. ये टुटहे रीढविहीन लोग उपरोक्त महापुरुषो के वंशज नही हो सकते नही हो सकते नही हो सकते.
सत्ता के मद में डूबकर ये राजनीतिक ऐसे घ्रणित दुष्कृत्य करते हैं ...
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प्रवीण गुप्ता जी एवं पवन मिश्र जी,
यहाँ पर कृष्ण का वंशज कहने से तात्पर्य बस इनमें एक छोटा सा सम्बन्ध दर्शाना था। यादव ज्यादातर गौ-पालन और दुग्ध व्यवसाय से जुड़े हुए होते हैं ,और भगवान् श्रीकृष्ण भी ग्वाल-बालों के साथ खेलते थे । अखिलेश यादव के अन्दर उनके सोये हुए 'हिंदुत्व' को जगाने लिए इस 'कोरोलरी' का इस्तेमाल किया है। एक और ग्वाल श्रीकृष्ण है जो गायों से इतना प्रेम करते थे और हमारे बीच एक आदर्श स्थापित किया था, दूसरी और अखिलेश यादव सरीखे दुर्बुद्धि पालक हैं जो आज़म खान जैसे आतंकियों के साथ मिलकर श्रीकृष्ण की मथुरा नगरी में खून की होली खेल रहे हैं और गो-हत्या में लिप्त हैं।
काश की पोस्ट का मंतव्य समझा होता।
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ha sahi he divya ji, par muze lagta he akhilesh ko samzana bhes ke aage been bajane jesa hoga...
मैं मायावती को बेहतर समझता हूँ. उसके 'पत्थर प्रेम' (आप ही का दिया शब्द है) के बावजूद उसकी गवर्नेंस की शैली बेहतर थी. अखिलेश के आते ही गुंडाशक्तियाँ तेज़ी से उभर आई हैं. वैसे मैं समझता हूँ कि हर चीज़ की अवधि की तरह यदुवंश पर पड़े श्राप की अवधि भी समाप्त हो चुकी होगी. लेकिन उन्हें यदि आज के लोकतंत्र में सत्ता मिली है तो उन्हें देश और समाज की सेवा का कार्य सीखना पड़ेगा और राजधर्म निभाना होगा.
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