हम भारतीय कितने खुशनसीब हैं की हमारे पास एक नहीं बल्कि दो-दो माएं होती हैं।
कहते हैं की पुण्य कर्मों से ही सुन्दर शकल और अकल मिलती है, लेकिन मुझे मेरे पुण्य कर्मों से एक बेहद प्यार करने वाली ' सासू माँ ' मिली ।
आज मुझे जन्म देने वाली माँ जीवित नहीं हैं , लेकिन उनकी कमी सासू माँ ने पूरी कर दी है। जीवन में कुछ विषम मौकों पर , माँ ने ये बता दिया की मैं अकेली नहीं हूँ और वह सदैव मेरे साथ हैं। मेरी ये माँ , मेरी आखों में आंसू नहीं देख पाती हैं। एक वाकया यहाँ शेयर कर रही हूँ ...
ससुर जी [ जो मंत्री थे ], के निधन पर , मुख्य मंत्री हमारे निवास पर शोक प्रकट करने के लिए आये। १५ मिनट के फोर्मल शोक के बाद जब मुख्या मंत्री तथा उनके साथ बहुत से लोग चले गए तो कुछ माननीय गण तथा घरवाले बैठे थे । पिताजी के साथ रहे 'भा जा प् ' के वरिष्ठ नेता ने शोक का माहोल बदलने के उद्देश्य से कुछ गाँव की बातें शुरू की , की हमारे ज़माने में ऐसा होता था , इत्यादि...
दुर्भाग्य वश मैंने उनसे पुछा ..." अंकल आप एक्टिव पोलिटिक्स से बहार क्यूँ आ गए ? " मेरा इतना पूछना की उन्होंने घृणा से मुझे देखा और गुस्से में बोला- " पहले अपने मोड़ी-मोड़ा संभालो फिर बड़ी-बड़ी बात करना "।
उस समय उपस्थित अनेक वरिष्ट लोगों के सामने हुआ अपमान असहनीय हो गया...भय और अपमान तथा शोक के माहोल में कुछ बोलना संभव नहीं था। पति और देवर भी अस्थि -विसर्जन के लिए हरिद्वार गए थे। सभी लोग उनकी बात पर सन्नाटे में आ गए।
मेरी आँख से आंसू टपकने ही वाले थे की सासू माँ ने मोर्चा संभाल लिया। रोबदार आवाज में कहा- " दिव्या उठो खाना खा लो , तुमने कुछ खाया नहीं है " । कहते हुए मेरा हाथ पकड़कर वो मुझे अन्दर ले गयीं ।
मुझे लगा माँ मुझसे नाराज होंगी की मैंने उनसे बात क्यूँ की, मैं बार बार डर के कारण उनसे माफ़ी मांगने लगी। तब माँ ने मुझसे कहा " एक बात गाँठ बाँध लो, जब तक कोई गलती न हो माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए। तुम्हारी कोई गलती नहीं है। कोई भी बाहरी व्यक्ति अगर मेरी बहू का अपमान करेगा तो मैं ये बर्दाश्त नहीं करुँगी। मेरी बहू मेरी घर की इज्ज़त है। "
थोड़ी देर बाद वो सज्जन भी चले गए, जाते समय उन्होंने हाथ जोड़कर मुझसे माफ़ी मांगी।
डेढ़ साल पुरानी घटना का ज़िक्र करते हुए आज भी मेरी आँख में आंसू तथा ह्रदय में , मेरी सासू माँ के लिए अपार श्रद्धा है।
मेरी सासू माँ ने ये सिद्ध कर दिया कि सास , माँ से भी बढ़ कर हो सकती है। अब मेरी बारी है यह बताने की, कि बहू भी बेटी से कम नहीं ।
सितम्बर से माँ हमारे साथ रहने आ रही हैं। आप लोगों का आशीर्वाद चाहिए कि मैं पूरे मन से , माँ कि सेवा कर सकूँ ।
मेरी सासू माँ के लिए समर्पित दो पंक्तियाँ ...
जिसको नहीं देखा हमने कभी, पर उसकी ज़रुरत क्या होगी,
एये मां , तेरी सूरत से अलग, भगवान् कि सूरत क्या होगी ।
43 comments:
Hats off.... No more comments :)
दिव्याजी
बहुत अच्छा लगा की आपकी साँस आपके बारे में इतनी सकारात्मक सोच रखती है उनके इस प्यारे व्यवहार पर बहुत बहुत प्रणाम और हमे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है की आप भी अपनी दूसरी माँ के साथ उतनी ही आत्मीयता से और प्यार से रहोगी \शुभकामनाये \हाँ मैभी अपनी बात कह ही दू ,मेरे छोटे बेटे के बेंगलोर स्थित घर की वास्तु पूजा थी हम तो वहां बिलकुल अनजान थे |पंडितजी आये पूजा hui खूब भजन गाये बहू के मम्मी पापा भी आये थे |पंडितजी से जब बहू ने परिचय कराया तो कहा -ये मेरी मम्मी है और मुझे देखकर कहा -ये भी मेरी मम्मी है मेरी आँखों में आंसू अ गये |मेरी कोई बेटी नहीं है पर जब भी हमसे कोई पूछता मेरे पति हमेशा कहते हमे तो दो बेटिया पली पलाई मिल गई है |
इस विषय पर अपने अपने अपने रंग में बोलने वाले यहाँ बहुत हैं ...
यह एक बेटी ही है जो यह किस्मत लेकर आती है कि उसे अपने नाज़ुक मन को लेकर, दो घर, उसी प्यार के साथ सँभालने पड़ते हैं ! डॉ दिव्या श्रीवास्तव का यह रूप कम से कम मेरे लिए अभिनंदनीय है ! निस्संदेह तुम एक आदर्श प्रस्तुत कर रही हो ! तुम्हारे माता पिता धन्य है ...
जहाँ रहोगी वहीं खुशियाँ बिखेरोगी !
"सारा जीवन किया समर्पित
परमार्थ में नारी ही ने ,
विधि ने ऐसा धीरज लिखा
केवल भाग्य तुम्हारे में ही
उठो चुनौती लेकर बेटी , शक्तिमयी सी तुम्ही दिखोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी
द्रढ़ता हो सावित्री जैसी,
सहनशीलता हो सीता सी,
सरस्वती सी महिमा मंडित
कार्यसाधिनी अपने पति की
अन्नपूर्णा बनो, सदा ही घर की शोभा तुम्ही रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी "
दिव्या तुम्हारी हर पोस्ट पढ़कर मुझे लगता है कि तुम्हारे मन में सबसे पहल एक स्त्री को एक मानव और फिर स्त्री के रूप में देखने की सुविकसित दृष्टि है। इसलिए मुझे कोई ताजुब्ब नहीं है कि तुम अपनी सासू मां में भी मां देख पा रही हो और बहू होकर भी अपने को उनकी बेटी की तरह। यह रिश्ते तो हमारे ही बनाए हुए है न। दो स्त्रियां मां बेटी हो सकती है, सास बहु हो सकती हैं,बहने हो सकती हैं,नदद भाभी हो सकती हैं,जिठानी देवरानी हो सकती हैं और न जाने कितने संबंध हो सकते हैं। पर सबसे महत्वपूर्ण है कि वे समझें वे स्त्रियां हैं और उससे भी पहले मानव।
मेरा यह भी कहना है कि ऐसे स्वाभाविक कदमों को हम इतने ऊंचे शिखर पर न बैठा दें कि वह जनसामान्य के लिए अनुकरणीय ही न रह जाए।
बहरहाल हम तुम्हारे हमकदम हैं।
...अतिसुन्दर!!!
सास भी मां ही होती है । या यूँ कहें कि बहु भी बेटी ही होती है ।
बस अगर कोई समझे तो । आप खुशकिस्मत हैं ।
शुभकामनायें ।
यदि इतनी ही समझ विकसित हो जाये तो हर घर स्वर्ग हो जाये।
काश कि हर सास को तुम्हरी जैसी बहू और बहू को तुम्हारी सास की जैसी सास मिले ...
आजकल जहाँ थोडा सा पढ़ लिख कर लड़कियां आसमान पर पहुँच जाती हैं , अपनी सास के प्रति तुम्हारी विनम्रता मुग्ध करती है ..!
Just one word.... awesome....touched to the core of the heart....
दिव्य भावना लिए हृदय में, संस्कार की पाली हो
इच्छाशक्ति है अडिग तुम्हारी, कभी न डिगने वाली हो
ज्ञानवान तुम, कर्मयोगी तुम, पुत्री पुत्रवधू भी हो,
दिव्या श्री तुम वास्तव में हो, मेरी बहन निराली हो!
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भाई बनाया है तो दुआ नहीं दूँगा,मुझे भरोसा ही है!!
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रिश्तो की ये मिठास , जीवन को कितना सुन्दर बना देती है ना . इश्वर इस रिश्ते में और मिठास घोले , यही कामना है .
अच्छे संस्कार ,अच्छे रिश्ते की नींव हैं ।
यदि इतनी ही समझ विकसित हो जाये तो हर घर स्वर्ग हो जाये।
वंदना जी से सहमत हूँ
और
दिव्या जी आपकी सासू माँ को मेरा प्रणाम है
आप तो दुर्लभ प्रजातियों में गिने जायेंगे ... और आपकी सासुमां भी ... क्यूंकि ऐसा रिश्ता आजकल दुर्लभ हैं ...
बड़ा ही भावनात्मक सम्बन्ध है यह।
अपनी यादें हमसे सांझा करने का आभार
आप की रचना 23 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
Dearest ZEAL:
Raconteur par excellence.
Arth kaa
Natmastak charansparsh
भावुक कर देने वाली पोस्ट.
अपनी सासू माँ को हमारा प्रणाम दीजियेगा, सुभकामना!
मां तो बच्चों पर स्नेह लुटाती है। हर मुसीबत में आंचल में छुपा लेती है। बच्चे उसे थोड़ा मान देदें तो उसी में निहाल हो जाती है।
सार्थक पोस्ट.....और शुभकामनायें
माता जी को प्रणाम कह दिजियेगा.
दिव्याजी, इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपके लिये मन में कितना प्यार और सम्मान उमड़ रहा है उसे शब्दों में अभिव्यक्त करना मुश्किल होगा ! आपको और आपकी माताजी को मेरा प्यार भरा अभिनन्दन ! खूब फलें फूलें और इसी तरह प्यार की निर्झरिणी बहाती रहें यही शुभकामना है ! हार्दिक बधाई !
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आप सभी की शुभकामनाओं का बहुत बहुत आभार। आप सभी का अभीवादन भी माँ तक जरूर पहुन्चाउंगी।
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माता जी को प्रणाम कह दिजियेगा.
अच्छे संस्कार यही सिखाते हैं
दिव्या जी, आपकी सहजता और स्नेह से ही यह संभव हो सका है, और आपका यह अपनापन है जो आपने सब के साथ यह अनुभव बांटा, आपके जीवन में उनका स्नेह और विश्वास हमेशा कायम रहे, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुति के लिये बधाई ।
AGREED AND APPRECIATED
SHAILENDRA JHA
CHD.
दिव्या बहुत अच्छा लगा,तुम्हारे अनुभव जान.
और ये विश्वास है कि तुम उनका बहुत अच्छी तरह ख़याल रखोगी. शादी के शुरूआती वर्षों के बाद अक्सर सास-बहू का रिश्ता माँ-बेटी सा ही प्रगाढ़ हो जाता है.
अपकी ये पोस्ट पढकर बरबस ही किसी कवि की ये पंक्तियाँ स्मरण हो आई....
गर संसार जो इस राह पे चले
किसलिए घर टूटे,किसलिए बहु जले !!
Hi..
Jisko "Maa" maana agar
"Saas" kahan rag jaye
Eshwar "Maa" ke roop main..
har jeevan main aaye..
Eshwar har "Saas" ko "Maa" bana de...
Shubhkamnaon sahit..
Deepak..
Es sandarbh main Ho sake to mere blog par meri kavita "Maa" awashya padhen...
Deepak..
मेरी सासू माँ ने ये सिद्ध कर दिया कि सास , माँ से भी बढ़ कर हो सकती है। अब मेरी बारी है यह बताने की, कि बहू भी बेटी से कम नहीं ।.....main naman krta hun maa ji evm aapkey vichaaron ko .aise vicharon ki samaj ko sakht jarurat hai ....kash ki.............
दिव्या जी, आपकी सहजता और स्नेह से ही यह संभव हो सका है, और आपका यह अपनापन है जो आपने सब के साथ यह अनुभव बांटा, आपके जीवन में उनका स्नेह और विश्वास हमेशा कायम रहे, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुति के लिये बधाई । माता जी को प्रणाम कह दिजियेगा
दिव्या तुम अपनी सासू मां में भी मां देख पा रही हो और बहू होकर भी अपने को उनकी बेटी की तरह। यह रिश्ते तो हमारे ही बनाए हुए है न। दो स्त्रियां मां बेटी हो सकती है, सास बहु हो सकती हैं,बहने हो सकती हैं,नदद भाभी हो सकती हैं,जिठानी देवरानी हो सकती हैं और न जाने कितने संबंध हो सकते हैं। पर सबसे महत्वपूर्ण है कि वे समझें वे स्त्रियां हैं और उससे भी पहले मानव।
मेरा यह भी कहना है कि ऐसे स्वाभाविक कदमों को हम इतने ऊंचे शिखर पर न बैठा दें कि वह जनसामान्य के लिए अनुकरणीय ही न रह जाए।
बहरहाल हम तुम्हारे हमकदम हैं।
दिव्या जी
आप बहुत भागशाली है की आप को माँ के रूप में सासु जी मिली. या यह भी कह सकतें है की आप बेटी बन गयी .आज के युग में सभी बहुएं चाहती की उनकी सासु उनके साथ माँ सा व्यवहार करें पर कोई भी सासु को दिल से माँ नहीं मानती उपरी दिखावे के लिए म्मी कह देती है पर पीठ पीछे जरा सा भी अवसर मिला की ऊनकी बुराई शुरू हो जाती है. आवश्यकता है की हर बहु मन से सासु जी को माँ का दर्जा देवें. आपको एक जानकारी देता हूँ की मैं परिवार जोड़ने के ३६ मामले सुलझाएं है उस का निचोड़ है की बहु ने सास को माँ तो दूर की बात सासु का सम्मान नहीं दिया इस कारण घर टूटने की स्थति में पहुच जाते है, आजकल जमाना बदल गया है सासु बहु से डर कर रहती अपना बेटा बहु का हो जायेगा बुढ़ापे में कौन करेगा आज कल तो एक ही संतान का जमाना है . समाज की स्थिति बहुत दयनीय हो रही है. ४९८ व ४०६ अ के मुकदमो की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है. कहाँ जायेगा समाज. कौन इसकी दिशा तय करेगा.
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