Friday, September 3, 2010

इन्द्रधनुषी दिव्या. !

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इस पोस्ट में पिछले एक हफ्ते में हुए अनुभवों को शेयर कर रही हूँ। जो सबके नहीं तो कुछ लोगों के काम अवश्य आयेंगे ऐसा विश्वास है।

पिछले दो-तीन दिनों में ज्यादातर पाठकों ने लिखा की आपकी सार्थक पोस्ट का इंतज़ार है..

मैंने सोचा सार्थक पोस्ट कैसी होती है भाई ? अंतर्मन ने जवाब दिया - " तुम्हारी हर पोस्ट सार्थक होती है , क्यूंकि हर पोस्ट समाज के सुधार के लिए लिखी गयी होती है। " यदि कुछ लोग शशि थुरुर, ललित मोदी और माधुरी गुप्ता जैसे लोगों को बेनकाब कर देश को लुटने से बचा रहे हैं, तो फिर अरविन्द मिश्र और अमरेंद्र जैसे लोगों को बेनाकाब का समाज के आधे बड़े हिस्से , जो की नारियों से बना है , की अस्मिता को बचाने की खातिर लिखी गयी पोस्ट साथक क्यूँ नहीं है ? अगर अरविन्द मिश्र मुझे कटही कुतिया कहें और अमरेन्द्र मुझे कहें की मैं " डॉक्टर के नाम पे कलंक हूँ ", तो यदि मैं अपनी आवाज़ बुलंद करूँ , तो वह पोस्ट सार्थक क्यूँ नहीं है ?

अरविन्द मिश्र का कहना है की " अभी तो मैं जवान हूँ , और महिला पाठक मरे ब्लॉग पर आना बंद नहीं कारेंगी"... सही कहा आपने अरविन्द जी...कुछ लोग देख- सुन कर सीखते हैं, लेकिन कुछ लोग गड्ढे में गिरने के बाद ही सीखते हैं।

महोदया अदा जी ने मेरे खिलाफ पोस्ट लगायी और आक्षेप लगाया की डाक्टर्स को नैतिक मूल्यों का ख़याल रखना चाहिए। महोदया अदा जी से मेरा कहना है कृपया पूरा प्रकरण [ द्विपक्षीय ] जान लिया करें , तभी कुछ लिखें। अदा मुझे जानती भी नहीं फिर भी जाने किन पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर इसने ऐसा किया। वो भी उस अमरेन्द्र के लिए जिसने मुझे links दे-दे कर दिखाया था की देखो अदा और महफूज़ के बीच क्या- क्या चलता है।
बहुत सी पोस्टों पर महफूज़ महोदय लिखते हैं। ' आई लव यू "। इन बातों से मेरा कोई लेना-देना नहीं , फिर भी महोदय अदा को ये बताना जरूरी है की, जिनको वो मरहम लगा रही हैं , और डॉक्टर्स को बदनाम कर रही हैं, वो महोदय इनके बारे में क्या ख़याल रखते हैं। और महफूज़ को तो सभ्य कहना , सभ्यता की तौहीन होगी। जो मुझे
जानता तक नहीं ठीक से उसने बहुत ही असभ्य लहजे में मेरे व्यक्तित्व पर प्रहार किया ।

अदा जी , डॉक्टर्स को मानवीय मूल्य मत सिखाइए ।

एक बार मेरी एक पोस्ट [Eleven days] पर डॉ दाराल ने पुछा, दिव्या तुम अपने नाम के डॉ ना नहीं लिखती हो ? कारण है , मैं यहाँ सिर्फ एक ब्लॉगर हूँ। अन्यथा थाईलैंड आने के पहले लखनऊ और इंदौर में छेह वर्ष तक प्रक्टिस कर चुकी हूँ। सन २००६ में डॉक्टर्स दे पर सम्मान भी पा चुकी हूँ , कभी हिम्मत कर सकी तो अपनी तस्वीरों के साथ उस शुभ दिन की भी चर्चा यहाँ करुँगी।

अमरेंद्र जी , पिछले २४ घंटों में जो तीन पत्र आपने मुझे लिखे हैं, आप मुझे चाहे जितनी बार लिखें , आप मुझे प्यार करते हैं , और मुझे अपनी बेहेन और माँ नहीं समझ सकते। तो मैं ये बता दूँ आपको , एक स्त्री सिर्फ ऐसे पुरुष को प्यार करती है जो स्त्री को अपने से कमतर नहीं समझता , उसके मान-सम्मान की रक्षा करता है, तथा उससे इर्ष्या नहीं करता है। आपने मुझे डॉक्टर के नाम पर कलंक लिखकर , अपने जिंदगी की सबसे बड़ी भूल की है। रही बात आप के भाई होने की , तो वो भी आप नहीं हो सकते , क्यूंकि आजकल तो भाइयों द्वारा "ऑनर किलिंग " का फैशन है और मेरे ऑनर को आप बखूबी किल कर ही चुके हैं।

चलिए बात करते हैं श्रीमान ज्ञानदत्त जी की, इनको आदरणीय समझती थी, बहुत छोटी हूँ इनसे, मन में ख्वाहिश थी एक बार ये मेरे ब्लॉग पर आयें और आशीर्वाद दें। ज्ञान जी नहीं आये, एक निराश , नवोदित ब्लोगर [ दिव्या ] ने लिख दिया 'अंतिम प्रणाम ' । इस अंतिम प्रणाम को ज्ञान जी ने मौत का फरमान समझ लिया, और ठोक दी एक पोस्ट दिव्या के नाम। जब एक सैकड़ा सहानुभूति मिल गयी और मित्रों ने दिव्या को कंडेम कर दिया , तब जाके मेरे पूज्य ज्ञान जी के कलेजे को ठंडक मिली। तिल को ताड़ बनाना कोई ज्ञान जी से सीखे ।

अरे दिव्या , तुम भी कितनी मुर्ख हो, शिकायत अपनों से की जाती है, गैरों से नहीं।

एक प्रश्न है...महाराष्ट्र के लाटूर, २००५ की सुनामी , हेती के तूफ़ान में मरने वालों को क्या दिव्या ने " अंतिम प्रणाम कहा था ?

अगर मेरे.. 'अंतिम प्रणाम' ..इतने ही इफेक्टिव हैं तो ... कसाब ...नक्सलवादी .. और ..आतंकवादियों.. को मेरा अंतिम प्रणाम ।

[फैशन के दौर में गारेंटी की कामना न करें ]

इस कठिन घडी में अनेक शुभचिंतकों ने मेरा साथ भी दिया , जिसमें सम्मानीय पुरुष एवं महिला ब्लोगर्स दोनों हैं। आप सभी को ह्रदय से आभार।

शोभना चौरे जी ने मेरी कठिन मानसिक अवस्था को समझा , उनके शब्द मरे लिए अमृत बूंद की तरह थे। माँ तो सभी की अच्छी होती है, लेकिन शोभना चौरे जी में तो ..." इश्वरत्व " हैं। शोभना जी आपका एक बार पुनः अभिनन्दन। आपने मुझे नया जीवन-दान दिया है।

एक पाठक ने लिखा , आशा है तीन पोस्ट पहले वाली दिव्या को वापस देख सकूँगा। ..प्रिय राजन, मैं तो ऐसी ही हूँ, ऐसी पोस्टों को भी देखो, इसमें निहित चेतना जगाती सार्थकता को देखो, इस तरह की पोस्टें भी दिव्या का एक रंग है। जब तक सारे रंग नहीं होंगे, इन्द्रधनुष अधुरा रहेगा।

उन्मुक्त जी के शब्दों से बहुत हिम्मत मिली । उन्होंने आग्रह किया है की रोग और उनके निदान पर भी पोस्ट्स लिखूं। मेरी सभी पोस्ट , जो मेडिकल से रिलेटेड होंगी , वो सभी आदरणीय उन्मुक्त जी को समर्पित होंगी।

राजेश उत्साही जी , महक जी , अर्थ जी, राजन जी , उन्मुक्त जी, अनूप जी,आशीष जी एवं विश्वनाथ जी ने इस कठिन घडी में मेरा मनोबल बनाये रखने में बहुत मदद की। सदैव आभारी रहूंगी।

मरे ब्लॉग पर moderation naa होने से , कुछ लोग असभ्य और अशिष्ट भाषा का प्रयोग कर टिपण्णी कर रहे थे , इसके लिए आदरणीय अनूप शुक्ल जी की राय से moderation लगा रही हूँ। पाठकों की असुविधा के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ । संभवतः आप लोग मेरी मजबूरी समझेंगे।

अंत में एक बार फिर अपने शुभचिंतकों की कर्जदार हो गयी हूँ, जिसके लिए आभार शब्द छोटा लग रहा है ।

ये थे मेरे मन के विचार जो , पिछले तीन दिनों में आये...
जो अच्छा लगे , उसे अपना लो, जो बुरा लगे, उसे जाने दो....

PS-

1- Arvind Mishra has commented in a foul language on all my blog-posts with a fake name of -Ajit

2-Amrendra has commented with a fake name of Ravi.

So readers are requested to be careful .

62 comments:

ashish said...

इस नश्वर संसार में ,विवाद परम आचार्य होते है जो बहुत कुछ सिखा जाते है. लेकिन निर्विवाद सत्य ये भी है की विवाद की जड़ पर मट्ठा डाल कर , शांति का मार्ग प्रशश्त किया जा सकता है. बाकी इस बदलते फैशन के दौर में सचमुच कुछ भी नियत नहीं है. और भगवन करे आपका अंतिम प्रणाम (सही वाला ) लगे देश और समाज के दुश्मनों को..

रचना said...

वो हर इंसान जो
किसी भी नारी को
प्रेरित करता हो
दब्बू बन कर रहने को
और अपने को उस नारी का
शुभ चिन्तक कहता हो
वो एक झूठ को
खुद भी जीता हैं
और दुसरो को भी मजबूर करता हैं
उस झूठ को जीने को
keep moving ahead in life with all your sensibilities
relationships made during testing times last forever
woman like you should work for woman causes and gender bias issues { my assessment and not guideline }
regds

वीरेंद्र सिंह said...

दिव्या जी ......
मुझे तो अभी पता चला कि आप किस दौर से गुजर रही हैं.
मुझे विशवास है कि आप इस मुश्किल दौर से और मजबूत व् शशक्त होकर निकलेंगी.
भगवान् आपको इतनी शक्ति दें कि आप हर मुश्किल से पार लें .
दिव्या जी..... बुराई की उम्र ज्यादा लम्बी नहीं होती.
इसलिए आप परेशान न हों .

Deepak Shukla said...

Hi...

Har vyakti anubhavon se seekhta hai..Ye jeevan hai, esme kuchh achhe log bhi saath aate hain, kabhi kuchh bure log bhi mil jaate hain. Achhe aur bure ka paimana sabka alag alag hai...to anubhavon se sabak le aage badhen..badhti chalen...

Shubhkamnaon sahit...

Deepak...

Unknown said...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार has left a new comment on the post "अब कहाँ है वह कृष्ण और राधा का उदात्त प्रेम ?":

आदरणीय अरविंद मिश्र जी

आपके स्नेह और बड़प्पन के आगे नतमस्तक हूं ।
मैं तो बहुत तुच्छ रचनाकार हूं
महाकवि देव को और उनकी लेखनी को
साक्षात् दंडवत प्रणाम है । मैं इस कवित्त को सहेज कर रख रहा हूं ।

कवित्त बहुत ही प्रेरक छंद होता है । और किसी के लिए हो न हो मुझे नव सृजन के लिए तुरंत आमंत्रित करता है ।
अरविंदजी , आपके लिए …

गोविंद की सौं है अरविंद , अरविंद सो है ,
नियम आचार तेज संयम प्रकाशी है !
ज्ञानी , है विज्ञानी , संतजन - सा है ध्यानी ,
पूरा सागर विराट ; न कि बूंद ये ज़रा - सी है !!
लघु का भी मान करे , गुणी का सम्मान करे ,
सुना था कि कृष्ण के सदृस महारासी है !
राजेन्द्र कसौटी बिन परखे है खरा सोना ,
कृष्ण - सा ही योगी , कर्मवीर ये संन्यासी है !!

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Aruna Kapoor said...

दिव्याजी!....आप के साथ इतना सब कुछ हुआ... मै ऐसी ओछी हरकतें करने वालों के प्रति अपना सख्त विरोध जताती हूं!!....इन लोगों को आपके साथ इतना अपमानजनक व्यवहार नहीं करना चाहिए था!

Mahak said...

@दिव्या जी ,

मैंने आपसे कहा था ना की दिव्या कभी नहीं हार सकती क्योंकि दिव्या अपनी शक्ति से पूर्णतया परिचित है और आपका ये भाई ( चाहे अभी आभासी रूप में ही सही )हमेशा आप के साथ है ,जब आपने मुझे reply नहीं किया और उन लोगों के लिंक्स नहीं send किये तब मुझे लगा की दिव्या जी ने भी अर्जुन की भाँती गांडीव को नीचे रखने और सही और गलत के बीच में चल रहे इस युद्ध से पीछे हटने का फैसला ले लिया है लेकिन आपने निर्भयतापूर्वक अपनी ये पोस्ट लिखकर एक बार फिर खुद को शक्तिरूपा साबित किया है और जिन लोगों ने आप पर आक्षेप लगाएं हैं उन्हें इससे सावधान हो जाना चाहिए की दिव्या गलत बात के समक्ष घुटने टेकने वालों में से नहीं है और उनकी दाल ज्यादा दिन नहीं गलने वाली ,मुझसे किसी भी प्रकार का सहयोग अपेक्षित हो तो बेहिचक कहें

मुझे एक फिल्म की दो लाइन याद आ रहीं हैं आपके इन निडर क़दमों और वक्तव्यों को देखकर-


तू ना झुकेगी कभी ,
तू ना रुकेगी कभी ,
कर शपथ ,कर शपथ ,कर शपथ ,
अग्निपथ ,अग्निपथ,अग्निपथ


( वैसे आपको वे लिंक्स तो भेजने चाहिए थे ताकि सही और गलत की इस लड़ाई में मैं भी अपना कुछ सहयोग दे पाता )


महक

Amrendra Nath Tripathi said...

दिव्या जी , मुझे तो बहुत कुछ कह डाला है आपने , उसका अब मुझे ख़ास अफ़सोस भी नहीं , लेकिन ---
(१) - अदा जी के सन्दर्भ में जिस लिंक के देने की चर्चा आपने की है ,( वह २ मार्च के कान्फेंस विंडो के चैट की बात है )वह यह है --- http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/02/blog-post_1220.html यहाँ महफूज भाई ने कई कमेन्ट किये हैं और यह लिखा है '' अदा जी ...आई लव यू..'' | यह तथ्यात्मक रूप से सत्य है | पर इसकी वह विकृत व्याख्या मैंने नहीं की है | मैंने यही कहा है कि महज सख्या बढाने के लिए ऐसे कमेन्ट सही नहीं | इस बात पर आज भी कायम हूँ | हाँ , अरविन्द जी के कमेन्ट को मैंने सही नहीं कहा था जिसकी आपने तारीफ़ की थी कि अरविन्द जी ने इमानदारी के साथ बात की है और बात के दौरान आपसे इस बात पर मेरा मतभेद था | ''

...........जारी ,

ZEAL said...

Mehek ji,

I was regretting deleting the posts. I was simply lost and broken . When many of my genuine well wishers mailed me , questioned and condemned me for deleting the post and called me coward. I realized my mistake.

And also I realized that, one must not allow the culprits to be free like this. Your mail brought the life and zeal back in me and I bounced back. Thanks for being clear and honest.

I was terribly broken by knowing the bitter reality of these guys.

But then , few mails from some honest people like you who are not diplomatic and one who doesn't believe in preaching unnecessarily, gave me the required courage to raise my voice again.

I was feeling so much ashamed of myself for being so weak and withdrawing my post. But some mails truly motivated me to stick to the right path .

ZEAL said...

Mehek ji,

Since last few days, i am unable to read and comment on the more important subject than this on our blog-parliament. But I am sure you and the other members will understand. Very soon I will be back in the Parliament with all my zeal.

My special thanks to you for being with me all along when I was in crisis.

Otherwise most of my " fair weather friends " were waiting for my funeral to extend their condolences.

ZEAL said...

@--relationships made during testing times last forever ..

Rachna ji,

You are right ! Testing time gives us a clear vision to identify the true colour of our 'fair weather friends '.
.

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

On one hand you removed the posts which exposed the guilty and now you are again contnuing in the same vein.

Then, the posts should have stayed.

Further, after assuming the 'Almighty-like' demeanor by resorting to the utterly despicable tool of 'moderation', if you still publish the comments of the guilty, it is very unnerving.

I am aware what tough times you are going through over the past few days and I am pretty certain you do not need comments in praises of wolves or the presence of wolves on your honorable blog.

You are doing Gross Injustice to your own crusade against the wrong.

All the good men and fine women are with you fully supporting you all the way.


Arth kaa
Natmastak charansparsh

राजेश उत्‍साही said...

दिव्‍या इंद्रधनुष तभी बनता है जब सब रंगों का संतुलन होता है। और आपसे यही उम्‍मीद है। इसलिए अब इस प्रकरण को समाप्‍त कर देना ही बेहतर है। ब्‍लाग पर असंसदीय भाषा और खासकर महिलाओं को संबोधित असंसदीय भाषा के मैं सख्‍त खिलाफ हूं। यह अच्‍छा ही किया कि आपने मॉडरेशन की सुविधा ले ली। आप देख सकती हैं मैं भी ब्‍लाग की दुनिया में एक मिशन पर हूं। मेरा मिशन है ब्‍लाग पर लिखने वाले अपने लेखन को गंभीरता से लें। औरों के लिखे को भी ध्‍यान से पढ़ें उस पर विमर्श करें।

manu said...

किसी और का है शे'र...पर याद आ गया..



आप यूं लोगों की बातों में न आया कीजिये...
देखा,भाला,जांचा,परखा,सोचा समझा कीजिये...

कुमार राधारमण said...

केवल इतना कहना चाहता हूं कि किसी भी प्रकार का विवाद अहितकर है क्योंकि हिंदी ब्लॉग जगत पहले ही से अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है।

manu said...

जील साहिबा,

अदा जी को हम भी बाकी के ब्लोगर्स जितना तो नहीं जानते...पर ये मानते है कि उन्होंने ऐसा आपको गलत साबित करने के लिए नहीं कहा होगा...कहे के इतने सारे मायने हो जाते हैं कि आप कुछ भी कह सकते हैं....और कह कर...
एक और शे'र याद आया.....

कैसे वो आधी अधूरी बात कह देने के बाद
साफ़ बच जाता है इतना साफ़ कह देने के बाद..


आपको कहा भी था...कि..
डॉक्टर को कभी भी मरीज़ की हर बात पर आँख बंद करके यकीन नहीं करना चाहिए....खुद भी कोशिश करनी चाहिए...चेहरा देखने कि..पढने की..

manu said...

hamaari kisi baat mein gaali yaa asabhytaa lage to aap comment publish karne yaa naa karne ke liye aazad hain...

asabhyataa ke alaawaa..aap kisi aur kaaran se to hamaara comment nahin rokengi naa....?

manu said...

bade baabu ke to kai roop hain..
kam se kam 3 to hain hi.....

hamne khud padhe hain..chat par...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

दिव्या बहन... हम कोनो राजनैतिक पार्टी का समर्थन नहीं करते हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के एक सिद्धांत को जिन्न्गी भर के लिए दिमाग में बईठा लिए हैं... अपने बिरोधी का एतना चर्चा मत करो कि ऊ हीरो बन जाए... इग्नोर करो... ऊ अपने आप स्वाभाविक मौत मर जाएगा... अभी कुछ दिन पहले हम लोग अईसने एगो दौर से गुजरे… बहुत सा बद्दुआ हमको सुनने को मिला, हमरे संतान तक को गाली दिया गया,जिसका न तो ई ब्लॉग जगत से कोनो सम्बंध है, न हमरे कोनो बिबाद से... हम एक बार भी जवाब नहीं दिए... इग्नोर करके अपने रास्ते चलते रहे...हमको धमकी भी सुनने को मिला..लेकिन राह चुने तू एक चला चल, पढते हुए हम चलते रहे... अब सांति है...
जो हुआ, ऊ नहीं होना चाहिए था, जो हुआ ऊ सर्मनाक था, तमाम मर्जादा के खिलाफ था...लेकिन अब बस... अपना ऊर्जा बचाकर रखो... एक बार सोचकर देखो कि कहीं ई सब करने से तुम ओही तो नहीं कर रही हो, जो ऊ लोग चाहता है...हमको तो एतना लिखने नहीं आता है, जो मन में आया कह दिए!!! भगवान सक्ति दे!!

सुधीर राघव said...

आश्चर्य है ब्लॉगजगत में यह सब चल रहा है। दिव्या जी आपकी यह पोस्ट पढ़कर पता चल रहा है कि राग द्वेष विचारों की इस आभासी दुनिया में भी घुस आए हैं। आपके साथ जो व्यवहार हुआ है, वह चिंता जगाता है।

Rohit Singh said...

दिव्या जी
मैं अवाक था पिछली पोस्ट पर। ये क्या हो रहा है। उस वक्त में पक्ष विपक्ष की लड़ाई में नहीं था। क्योंकी एक नए रास्ते का गलत प्रयोग हो रहा था। इसमें कोई शक नहीं की इंसान कई मुखौटों में जीता है। कब कौन सा मुखौटा पहन ले पता नहीं चलता। ब्लॉग अगर हमें आपस में जोड़ने और देश में विचारों के तीव्र प्रसार में मदद करने की जगह झगड़े का अड्डा बनने लगेगा तो क्या काम चलेगा नहीं न।

वैसे आपको पोस्ट को डिलिट करने की जरुरत नहीं थी। आपके मन में जो भी था वो बाहर निकर आया था न उसके बहाने। अब कहीं बाद में जरुर मलाल होगा कि वो पोस्ट बेकार हटाया। वैसे भी दूसरों के कहने से आपको पोस्ट को डिलिट नहीं करना चाहिए था। आपने अपने अंदर जो था उसे बिंदास बाहर लिख दिया था। फिर मिटाने का औचित्य नहीं रह गया था। न ही आपको मोडरेशन लगाना चाहिए। जब कुछ अनावश्यक टिप्पशी लगे तो उसे डिलिट कर दीजिए।

ZEAL said...

@ Arth Desai--

I rectified the error well in time. No regrets now.

@- Rajesh Utsaahi ji--

Thanks for being honest . I will sure pay heed to your advice.
.

ZEAL said...

Manu ji,

Yes you wrote that earlier also. I realized the significance now. I sure will be careful in trusting the wolves in sheep's skin.

regards,

ZEAL said...

Salil ji,

I very well understand your point. I will sure follow your foot prints. Life teaches us vital lessons.

I am glad you are not the one who loves sitting on fence and enjoying the show.

Thanks for being with me in this crisis.

Regards,
.

ZEAL said...

bole to bindaas ji,

these are the lessons we learn in our lives. It will sure make me stronger than ever.
.

ZEAL said...

This post is a litmus test for honesty, sensitivity , fearlessness in our fellow bloggers.

A bigger lot is reading and ignoring it. Some are very indifferent and trying to be goody-goody to all.

Some fair weather friends are not showing up.

Anyways i am gaining my zeal back .

Thanks to the sensitive and caring lot who appeared here.

regards,

..

arun prakash said...

दिव्या जी
पहले तो मुझे इस बात की कोई जानकरी नही थी कि बात इस कदर बढ गई है लोग क्या क्या करने के लिये ब्लाग लिख रहे है मै बिहारी ब्लागर के इस कथन से सहमत हू कि प्रतिक्रिया व्यक्त ना करना ही सबसे बडी प्रतिक्रिया है बडे बडे नाम वाले जिन्हे हम आप ने ही नाम दिया है उनकी यह ओछी हरकते
हे प्रभु इन्हे माफ़ करो ये नही जानते कि ये क्य कर रहे है

ZEAL said...

Arun Prakash ji,

Thanks for your kind words. I sure won't react to these guys anymore in future.

regards,

सम्वेदना के स्वर said...

दिव्या के ज़स्बे को सलाम!

Mahak said...

@Divya Ji,

thanks for your appreciation ,yes u r rightly pointed out, the family of your blog parliament is really awaiting you with great enthusiasm and much more anticipation of yours into it but at the same time I can understand the crisis from which you were passing,

now you have exposed the culprits but it is so shameful that no one of them come with spirit of regret & appologise to you for playing with your emotions but diverting the issue,they are still in denial mood,I think this post of yours truly remove the masks from their faces and naked them

now those who still wants to remain on their side ( even now knowing the truth ),they will soon realise that what they are doing is nothing but the suicide, they will realise it when the same thing happens to them

And don't say about your funeral, funeral will be of your enemies,you know about " fair weather friends " ,there are some two lines which are my favourite & describing them the best-

" मुसीबत में कायम रहता है जो रिश्ता वो खास होता है ,
हर एक बनता है रिश्तेदार जब कुछ पास होता है "



GOD Bless You


Mahak

Mahak said...

@boletobindas जी

नए रास्ते का गलत प्रयोग दिव्या जी ने किया या फिर उसने जिसने उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई ,मेरे विचार से तो दिव्या जी ने उसे और उसकी बेशर्म हरकतों को expose करके इस मंच का सदुपयोग किया है क्योंकि इससे और बहुत सी बहनों को को उससे सावधान होने का मौका मिलेगा और शराफत का उसका नकाब धीरे-२ उतरेगा लेकिन अगर कोई जानबूझ कर खड्डे में गिरना चाहे तो फिर क्या किया जा सकता है ,वो कहते हैं ना की - " कुछ इंसानों को ठोकर लगकर ही अक्ल आती है "

ब्लॉग्गिंग में आप क्या चाहते हैं की सिर्फ अच्छी-२ बातें,कवितायें आदि ही सुनने को मिले और परदे के पीछे के जो रावण हैं जो की ऊपर से ऋषि बनकर सीता हरण का प्रयास करते हैं उनकी असलियत को छुपाया जाए ,ये सदुपयोग नहीं कायरता और ऐसे लोगों को बढ़ावा देना है

उस व्यक्ति ने ( अमरेन्द्र या रवि जो भी है ) दिव्या जी की विनम्रता और अच्छाई को उनकी कायरता समझा ,बार-२ बार समझाने पर भी अब अगर कोई ना समझे तो फिर कड़े कदम उठाने ही पड़ते हैं , और ज़रा इस व्यक्ति की बेशर्मी तो देखिये की ये जानते हुए भी की दिव्या जी शादीशुदा हैं ,ये फिर भी अपनी घटिया हरकतों से बाज़ नहीं आता

आज ज़रूरत है श्री कृष्ण की भाँती ऐसे लोगों का विरोध और अंत करने की ना की भीष्म ,द्रोणाचार्य जैसे महारथियों की भाँती चुपचाप द्रौपदी का अपमान देखते रहने की

महक

शोभना चौरे said...

दिव्याजी
ये आपका अपनापन और निसंदेह प्रेम ही है की अपने मुझे इतना मान सम्मान दिया है मैंने तो बस उसी समय मेरे मन में भाव आये थे लिख दिए थे |मेरा मन हर्षित है की आपने उन्हें अमल में लिया और अपने खुद के साथ हो ली |आपकी इस स्पष्टवादिता और निडरता से जरुर बहुत कुछ सीखने को मिला है |
आपने इंदौर में प्रेक्टिस की है जानकर अच्छा लगा |मै भी इंदौर ही रहती हूँ |
आपके इस दिए गये प्यार और अपनेपन के बदले में यही दे सकू ऐसी ही कामना करती हूँ |
हाँ और रचनाजी के लिए आपने जो कुछ भी कहा है बिलकुल सत्य है |
आभार
शुभकामनाये

"देखिये की ये जानते हुए भी की दिव्या जी शादीशुदा हैं ,ये फिर भी अपनी घटिया हरकतों से बाज़ नहीं आता"
महकजी
अगर कोई महिला शादी शुदा नहीं है तो क्या उसके साथ कोई भी घटिया हरकत करने का अधिकर है ?ऐसे वाक्य क्या दर्शाते है ?भावनाओ और व्यक्त की गई भाषा का गहरा सबंध होता है किसी के घाव को मरहम लगाने के लिए दूसरों को एक नया घाव देना कहाँ तक उचित है ?

Mahak said...

@शोभना चौरे जी

आप बात को गलत समझ गई ,मेरा वो मतलब नहीं था लेकिन फिर भी आपकी ये बात ठीक है की भावनाओ और व्यक्त की गई भाषा का गहरा सबंध होता है , इसलिए शब्दों में हुई इस त्रुटी के लिए क्षमा करें

महक

राजन said...

divya ji,
kuch log aise bhi hai jo purush ko uski bhashai arajakta ke liye jimmedar thaharane ke bajaay apko hi is baat par sharminda dekhna chahte hai ki apne chat ko sarvajanaik kyon kiya taras aata hai in logon ki soch par.yah hamari kaisi sanskriti hai jo purush ko apne lampat vyavahaar aur bhogvaadi pravrati ko dhakne ka avasar aur tark muhaiya karvati hai.apni vaasna ko justify karne ke liye hum krishna tak ka udaahran dene lagte hai.(krishan ki ye gat banane se pahle to mujh jaisa maha nastik vyakti bhi hajaar baar sochega).krishana kare to RAASLILA radha kare to CHARACTER DHEELA???.aise me hum stree se kab tak gailee radha(emotional fool)bane rahne ki ummeed kar sakte hai?purush ki tarah hi jab ek mahila pranaya ka saahas karti hai to usme hamein surpnakha najar aane lagti hai.hamare samaaj ka ye doglapan mujhse sahan nahi hota.
na 3 mein na 13 me wali atam ghati nishpakshta to pure samaaj ke liye haanikaarak hai.mere liye aisa sambhav nahi hai ki naari blog par v.n.roy par thook kar aaun aur jab apne saamne vaisi hi harkat hote dekhu to gol-mol comment dekar nikal jaau.
aap sahi kahti hai ki mishra ji ko aatam chintan ki jarurat hai taaki ve ek mahila ki garima ka sammaan karna seekh sake.
aur haan.....3 post purani divya matlab... tanaav ya avsaad se rahit divya.

राजन said...

amrinder ke baare me isliye kuch nahi kah raha hun kyonki uska patra padh nahi paya.ada ji ki post bilkul gair jaruri thi.us par dhayaan dene ki jarurat nahi hai.shayad ve apke dwara counselling shabd ka prayog karne se bhramit ho gai hongee

anshumala said...

मै चला बिहारी ब्लॉगर बनने की बात से बिल्कूल सहमत हु आपको उस पर ध्यान देना चहिए |

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

पहली बार आपके ब्लाग पर आया और माजरा समझने की कोशिश कर रहा हूं। धैर्य बनाए रखिये और अपना काम करते रहिए। small hiccups should not dishearten you. keep smiling :)

ZEAL said...

@- तू ना झुकेगी कभी ,
तू ना रुकेगी कभी ,
कर शपथ ,कर शपथ ,कर शपथ ,
अग्निपथ ,अग्निपथ,अग्निपथ

महक जी,
ओज से भरी पंक्तियाँ, सही जगह इस्तेमाल की आपने। ध्यान रखूंगी सदैव। अभी तो इस कठिन राह पर शुरुआत की है। रास्ते का कूड़ा-कचरा हटाने में थोडा वक़्त तो जाया हुआ , लेकिन अब मार्ग प्रशस्त हो चूका है। मेरे सफ़र में स्त्री-पुरुष सभी साथ हैं मेरे, लेकिन उन पुरुषों की कोई गुंजाइश नहीं जो साथी महिला ब्लोगर्स का अपमान करते हैं।

कौटिल्य ने कहा है , बहुत सोच समझ कर ही कोई निर्णय लेना चाहिए। मैंने बहुत बर्दाश्त किया था अरविन्द और अमरेन्द्र को , जब बर्दाश्त के बाहर हो गया , तब हिम्मत कर सकी , इन सफेदपोश मक्कारों को बेनकाब करने की।

गिरिजेश राव ने भी कुतिया कहा, मेरे पूछने पर भी इसने जवाब नहीं दिया। खैर " birds of the same feather flock together ".

अच्छा हुआ आज २ महीने के अन्दर मुझे व्यक्ति की असली पहचान हो गयी। अभी नयी नयी हूँ न, लोगों को धीरे धीरे ही पहचानूंगी।

चाटुकारों की भीड़ से तो बेहतर है दो-चार सच्चे इंसानों का साथ होना।

आपके शब्दों से ताकत मिली है की मैं निरंतर आगे बढती रहूँ। छोटी-मोटी बाधाओं से घबराकर रुक जाना मेरी फितरत नहीं, और जो आसानी से मिल जाए , वो मेरी मंजिल नहीं।

आपका एक प्रसंग देखकर दंग रह गयी । ...

ZEAL said...

@--आज ज़रूरत है श्री कृष्ण की भाँती ऐसे लोगों का विरोध और अंत करने की ना की भीष्म ,द्रोणाचार्य जैसे महारथियों की भाँती चुपचाप द्रौपदी का अपमान देखते रहने की॥

महक जी,
पढ़कर दंग रह गयी आपका यह उदाहरण । सतयुग से कलियुग तक हमारे बीच ऐसे भीष्म हमेशा रहे हैं और रहेंगे भी। मेरे पास ऐसे बहुत से पितामहों का पत्र आया जिन पर मैं भी अंध विश्वास करती थी , की ये निर्भीक हैं, लेकिन ये पितामह तो महिलाओं से भी ज्यादा भीरु निकले। धिक्कार है इन पितामहों पर।

लेकिन ज़रुरत है तो महिलाओं को जागरूक होने की। मेरी पोस्ट्स पर महिलाओं का अकाल रहता है अक्सर। उनके मन में ये बहुत गहरे से बैठा है की दोनों में से किसका चुनाव किया जाए। यदि दिव्या को सही समझा तो अरविन्द जैसे कामदेव रूठ जायेंगे। महिलाएं को निर्भीक होने की जरूरत है। वो पुरुषों की छत्रछाया में जीना ज्यादा पसंद करती हैं। सदियों से दासता में जकड़ी महिलाएं, इतनी जल्दी मुक्त नहीं हो सकतीं , इस मानसिकता से।

खुशनसीब हैं वे दिव्यायें , जो मुक्त होकर इस अनंत संसार में , स्वछन्द विचरण करती हैं....

इश्वर ने एक ही जीवन दिया है। किसी की दासता में क्यूँ जिया जाए ?

जो अपने सम्मान की रक्षा स्वयं नहीं कर सकता, उसकी रक्षा कोई नहीं कर सकता।

" God helps those , who help themselves. "

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ZEAL said...

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PS--

Mehek ji,

I understood your mention , regarding married women, in right perspective.
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ZEAL said...

राजन जी,

अरविन्द मिश्र ने अपने ब्लॉग पर शूर्पनखा की पोस्ट लगाई है, उनकी लंका में मद और मदिरा के बीच बहस होने दीजिये।

अरविन्द मिश्र विकृत मानसिकता से ग्रस्त एक व्यक्ति है, उसके जैसे बहुतेरे हैं , हमारे समाज में। इसी से तो भ्रष्ट है हमारा समाज। इन जैसे लोगों की लंका में स्त्री विमश से ज्यादा और हो भी क्या सकता है।

ऐसे लोग स्त्री को उपभोग की ही वास्तु समझते हैं सदा सर्वदा।

ऐसे लाइलाज रोगियों का कोई उपचार नहीं है। ऐसे रक्त-बीज तो द्रुत-गति से उत्पन्न होते रहते हैं।

...

ZEAL said...

अंशुमाला जी,
शोभना जी,

बहुत बहुत धन्यवाद।
सलिल जी [ बिहारी जी] , की बात से मैं भी इत्तिफाक रखती हूँ, बहुत शीघ्र ही मेरी एक बहुत सुन्दर पोस्ट आपके बीच होगी। इंतज़ार कीजिये आप भी मेरे साथ, उस पोस्ट का.

...

राजन said...

divya ji,maana ki aap bahut akrosh mein hai lekin is akrosh ko sahi disha diye jane ki jarurat hai.isliye salil ji ki baat maankar is pratikriya yuddh ko yahi viraam dene ka samay hai.aap apna virodh darj kara hi chuki hai.waise bhi aapki ye ladaai 2 ya 3 vyaktiyo ke khilaaf nahi balki us tuchchi maansikta ke viruddh honi chahiye.aapki aglee post ka intezaar mujhe bhi rahega.t ake care.

ZEAL said...

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आज ५ सितम्बर को , शिक्षक दिवस के अवसर पर अपनी बड़ी बहेन , जो भौतिकी [physics] में professor हैं को शिक्षक दिवस की बधाई देती हूँ।

मेरे तरफ से सभी शिक्षक-ब्लोगर्स को भी इस शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें।
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ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

Please do convey my most respectable greetings to elder sister.

A teacher is the centre-piece of the developement and shaping of young minds who are the future.


Arth kaa
Natmastak charansparsh

कविता रावत said...

ये थे मेरे मन के विचार जो , पिछले तीन दिनों में आये...
जो अच्छा लगे , उसे अपना लो, जो बुरा लगे, उसे जाने दो....
..bilkul sahi kaha bhi gaya hai ki "Never let your past interfere with the flow of present day life".

...Aapki post padhkar laga aapko bahut thes pahunchi... ek par main to sirf itna kahungi ki har vipreet prasthiti mein har insaan kuch na kuch seekhta hai... bolne wale kuch bhi bole unhen kaun rok paya hai,, bus hamein apni himat aur sahas se swayam hi mukabala karna chahiye.. jarur koi aisi ghadi mein yadi saath deta hai utsah duguna ho jaata hai.. lekin akhir mein to apnee ladayee kayee modon par hamen swayam ladni hoti hai...
Aap jaldi se es prasthiti se bahar aayen yahi shubhkamnana hai...
Shiksak diwas ke haardik shubhkamnayne

Darshan Lal Baweja said...

शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें

निर्मला कपिला said...

दिव्या बहुत दिन से नेट से दूर रही थी एक दुखद घतना से मन अच्छा नही था तो ब्लागजगत से भी दूर थी इस लिये मुझे तो किसी बात का पता नही है इस लिये कुछ नही कह सकती। बस अपने काम से मतलव रखो लिखो पढो और टिपियाओ। मै तो इतना ही करती हूँ। शुभकामनायें।

सञ्जय झा said...

di sallil bhaijee ki baton par dhyan de.....

keep it up.....we admire.

sadar pranam.

Rohit Singh said...

@महकजी
नए रास्ते का गलत प्रयोग दिव्या जी ने किया या फिर उसने जिसने उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई..........

आपने लगता है कि आधा ही पढ़ा। मैं हमेशा मुखौटों का इस्तेमाल करने वाले लोगो के सख्त खिलाफ रहा हूं। इसलिए मैने नीचे साफ लिखा है कि दिव्या जी को पिछली पोस्ट हटाने की जरुरत नहीं थी। ताकि जब भी कोई उनके पुराने पोस्टों को पढ़ता तो ये पोस्ट सामने आती।

....बिना लाग लपेट के कहता हूं कि आभाषी दुनिया का ये रास्ता अभी इतना व्यक्तिगत नहीं हो गया है कि कोई रावण मां सीता का हरण कर ले जाए...और न ही कोई किसी महिला को आसानी से बरगला सकता है। उसपर दिव्या जी जैसी सशक्त महिला ने जिस तरह से अपने विचार रखे मैं उसका स्वागत करता हूं..आभाषी दुनिया का ये रास्ता अभी इतना सशक्त नहीं हुआ है कि किसी तरह का बदलाव ला सके।

मैं रावण को जब मौका मिलता है तो उसका वध करने के जतन में जुट जाता हूं। चाहे इसके लिए मुझे मेरे अराध्य की तरह पेड़ो की ही शरण क्यों न लेनी पड़े। मेरी नजर में रावण सामूहिक होते हैं जिनका सामूहिक वध जरुरी है। अगर आप सामूहिक रावण का आश्य आप समझ गए होंगे।

Rohit Singh said...

वैसे दिव्या जी भीष्म में नहीं.. न ही द्रोणाचार्य ......आप ने क्या समझा में नहीं जानता।

बेहतर हो की आप वो पोस्ट फिर से जीवित कर दें....।

ZEAL said...

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बहेन के जन्म दिन पर नयी पोस्ट लगाई है। पाठकों से निवेदन है की इस पोस्ट पर भी अपने विचार रखें, तथा त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाएं।
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Shah Nawaz said...

बहुत शर्मनाक है, किसी के लिए इतने घटिया शब्दों का प्रयोग करना. खुद कितने घटिया लोग होंगे वह जो इतनी घटिया सोच रखते हैं... उफ्फ्फ

खून खुल रहा है पढ़कर. आपकी एक पोस्ट पढ़ी थी इस विषय पर, परन्तु तब समझ नहीं पाया था, कल जब महक ने पोस्ट लगे तो मैंने फोन पर बात की और पता चला. बहुत ही अफ़सोस की बात है. मैं कभी भी दोनों पक्षों की बात सुने / पढ़े बिना किसी के बारे में धारणा नहीं बनता हूँ. लेकिन ऐसे घटिया शब्द का प्रयोग तो खुले-आम किया गया लगता है.

आपकी हिम्मत की भी दाद देता हूँ, मैं स्वयं तो कुछ अपशब्द सुन कर अपने आप को ब्लोगिंग से दूर रखने की सोच चूका था. आपकी पोस्ट देखकर मुझमें भी और हिम्मत का अहसास हुआ. आपको अपनी पोस्ट हटानी नहीं चाहिए थी, मेरा अनुरोध है की उसे वापिस पब्लिश करें.

शाहनवाज़ सिद्दीकी

दिगम्बर नासवा said...

अपनी सकारात्मक सोच और लेखन को नकारात्मक बातों से बर्बाद नही करना चाहिए ... मेरा ऐसा मानना है ...

ethereal_infinia said...

Part 01 of 02

Dearest ZEAL:

It is indeed shocking to see all that is there on this blog of yet another fake supporter of yours.

As you are aware, there are many posts on you or around the recent incidents. The reason is not that people are well-wishers of yours. You mean nothing more to them than merely being a ‘News’.

Yes. You are just a news and each of the hounds is trying to get mileage out of it for his/her respective blog.

Some have tried to gain attention by being against you and some have tried diabolically to come to you as your well-wishers and then extract some information from you for their personal use.

Like in the case of this particular blog, he came to you pretending to be your brother and all the while it was just a newspaper hound hunting for story.

Everyone on the blog is coming to you with vested interest only. No one is truly supporting you which you are slowly discovering.

As I said, presently you are the ‘News’ and therefore all are trying to get information from you or about you from whichever source they get. They are not interested in the veracity of the hear-say, all they want is some information to keep your mention on.

All these hounds are discussing behind your back in private to share whatever information they have on you and Mahak stood to be a lucky dog to get to ‘interview’ the news under the pretext of being a sympathizer.

What did he immediately do after the Sunday morning ‘interview’? Bloody idiot went straight to his blog and published ‘the exclusive story’ like sleazy newspapers do.

“The Scoop” – Interview with the News Herself!!

Ever since you have come onto the blog world, you have trusted a whole lot of wrong people. Amrendra and Arvind were the biggest blunder and while you did expose them, unfortunately you were misguided by some vested interests to delete those exposing blogs.

The hound of a reporter that Mahak is turning out to be, who was ‘supporting you’ [laughz] bit you badly by making an insidious allegation that your deletion of the blog was a ‘quid-pro-quo’ arrangement with that mahaa-thug, Arvind.

Another gross blunder you made was to trust one more ‘well-wisher’ who made you impose moderation.

ethereal_infinia said...

Part 02 of 02


And one more thing, dearest ZEAL, I will state in this open forum.

You think Arvind has apologized! Come on, read his comment again. There is nothing like an apology in it. In fact, he has obliquely accused you even further.

And, if he or Amrendra had any morality in them, they would have never come again on your blog to comment.

But the reason they have come is not because they are repentant. My foot! They are back on your blog because they are extremely shrewd.

They are simply there to get a chance to avenge their humiliation which came to them when you boldly exposed their true selves. They know very well, that if they walked away from your blog, they can keep barking elsewhere and it will not impact you in the least.

They are on your blog and will write in your favor and falsely praise you [which was what they have done all along] because they are waiting to get that proverbial ‘foot-in-the-door’. They are waiting for your very kind-hearted nature to pardon them and again start talking to them after which they will take revenge on you in a very gross manner. Mark my words.

They are hell-bent on creating hell for you.

I have been telling you all along that Arvind and Amrendra are extremely third-rate people and now many more on the blog have joined them. In fact, Mahak, seems to be even overtaking their indecency status with his senseless words on his own blog.

Waise apni gali mein to har kuttaa bhonktaa hi hain. Laughz.

Do not be afraid, dearest ZEAL, because God is aware you are right and therefore, you will always be protected by Him. Also, I have absolute trust in you and know you are beyond the slightest blemish. I am with you and will be with you always.

These two-penny ‘well-wishers’ of yours on blog are merely trying to use you. Just over the past few days you have seen many such people and each has taken advantage of your simplicity.

I conclude here with a sincere request to you to be very aware as all these blog hounds are licking each other’s ass and will do anything, I repeat, anything, to humiliate you by falsely implicating you.


Arth Desai

ethereal_infinia said...

Addendum
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The above 2 comments were posted for publication the blog of Mahak who has chosen not to publish my comments owing to malafide intentions.

Not only mine, he has been blocking comments of others also who are taking the side of truth [which is of course, the side of Divya].

When he pretending to be a 'well-wisher' of hers, he published the comments of Dr. Amar, Ashish, Dr. Rupesh. But the same can now be seen as being deleted by him as he has changed sides.

Two-timing maggot that he is!

Mahak, you are so badly exposed!! I guess 'blog parliament' as the title has lost its meaning now with your frequent imposing and revoking 'moderation' to suit your whims and fancies.

I strongly suggest that you take note to rename it as 'Blog Dictatorship' which will be more befitting given your true nature.

As such it is a trait of dubious politicians to change parties for their own vested interest. You surely have staked your claim for membership to that filthy group.

You have made 'tamaashaa' of a person who talked to you in faith and that is a horrible offence. And spineless that you are, you are now controlling the comments and publishing only those which are favorable to you.

You began the particular post by appreciating those who supported her and now you are cozy with the condemners.

No wonder now you will see them right.

You have misused someone's plight to gain personal mileage and that shows the baseness of yours.


Arth Desai

ZEAL said...

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मेल से प्राप्त एक टिपण्णी -

Dearest ZEAL:

Hataaye thay jo raah se dosto ki
Woh patthar mere ghar mein aane lage

You have done a thousand good deeds for the people whom you took to be your friends and helped them to make their lives better. And what do you get in return from those ehsaan-faraamosh ‘friends’? Finger pointing and stone pelting at you!

The very stones of difficulties that you helped remove from their path are now being picked up by those infidels and hurled at you.

Dearest ZEAL, it happens. Presently the time is adverse on you and that is why there are these string of wrong decisions taken by you. Just ensure you take control of the things and contain any further addition to the list of stoners.
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ZEAL said...

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मेल से प्राप्त एक टिपण्णी -

Dearest ZEAL
Happy Ganesh Chaturthi . The arrival of the festival of Vighna-hartaa will bring in the winds of change which will alleviate all the adversities that have befallen you during the past few days
Vighna-hartaa, Sukh-kartaa, Ganpati Baapaa Moryaa

Arth Desai.
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सहज साहित्य said...

दिव्या जी ! आप अपने रास्ते पर चलते जाएँ । सबको खुश भगवान् भी नहीं कर सकता , इंसान तो है ही क्या । आदमी सिर्फ़ आदमी होता है । क्या आजकल के सभी साधु-महात्मा सचमुच में साधु हैं? शायद नहीं । बुरा आदमी कहीं भी हो सकता है । व्यवसाय से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है । रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

रूप said...

why so hue and cry! creators never bother for all this rubbish u talked abt. remember
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना
छोडो बेकार कि बातों मे ..........................

ZEAL said...

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Sir,

I definitely got over it long ago. Reincarnated as someone stronger , with new courage and zeal with some purpose in life.

Regards,

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