Friday, October 1, 2010

अडवानी, उमा भारती तुझे सलाम --- थोड़े तेरे -थोड़े मेरे !

अब भाई अपनी तो क्रेडिट देने की आदत है। सो आडवानी और तत्कालीन कारसेवकों और दो हज़ार शहीदों को एक बार याद कर उन्हें आभार प्रेषित कर रही हूँ।

आज की तारीख में आप लोगों को एक-तिहाई धन्यवाद , बाकी का दो-तिहाई मिलेगा तीन महीनों बाद। वैसे कुछ कह नहीं सकते । हो सकता है रामलला को अभी अनाकनेक वर्षों और इंतज़ार करना पड़े।

खैर जो भी हो, आडवानी जी की रथ-यात्रा अमर हो गयी। ऐतिहासिक बीज बोये थे आपने। हम लोगों ने ऐतिहासिक फल चखे। आभार आपका।

लोग चाहे जो कहें, की आप अपनी रोटी कहाँ सकेंगे अब ?....अजी जनाब आपने तो अपनी रोटी अमर कर ली ।
बाकी की रोटियाँ तो फीकी हैं इसके आगे।

राजनीतिज्ञों का पोलिटिकल सफ़र तो सिर्फ शब्दों का घड़ा होता है। बोते हैं पेड़ बबूल का तो फल कहाँ से होगा लेकिन मान गए जनाब, आपने तो ऐसा पेड़ बोया जो फलों से लद गया।

खूब गुजरेगी दीवानों की , जब मिल-बैठ के खायेंगे एक-तिहाई गुठली आमों की।

आपको बधाई एवं आभार।

72 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

ha ha ha ....very intresting...but true!

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
vijai Rajbali Mathur said...

Apki jankari ke liye ki Adwaniji Sindh ke Kayasth hai aur kisi bhagwan ka chitra unke niwas me nahi milega.Wah to Rajnitik Rath Yatra thi jisne unki party ko kendr tak Satta dila di thi.

निर्मला कपिला said...

वाह एक तिहाई पोस्ट के लिये एक तिहाई बधाई स्वीकर करें। एडवानी जी को तीन -- साल बाद या पता नही जब तक फैसला हो उन्हें दे भी पायेंगे या नही या फिर----- पता नही --

ZEAL said...

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डॉ अमर-

गुठली खाना ही हमारी नियति है शायद।

Ignorants do not know that they are suffering from multiple fracture now.

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ashish said...

बढ़िया है जी , फल मीठे भी है . , लेकिन एक तिहाई क्यू जी? दो तिहाई क्यू नहीं , वो निर्मोही क्या अपना नाम सार्थक नहीं करेगा रम लाला के लिए मोह छोड़कर ?

सञ्जय झा said...

supreme court ka darwaza khula hai......
ye ek anthin silsila hai.........

karak tewar......keep it up

pranam.

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
सुज्ञ said...

हां, व्यंग्य ही है अमर जी,
और उससे भी भारी व्यंग्य है आपका:
नीतिकथाओं के युग से ही तराज़ू का पलड़ा बँदरों के हाथ रहता आया है, सो आज भी है ।

ZEAL said...

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डॉ अमर-

शिर्शकवा नाहीं बदली अब। निसाखातिर रहेयु।

और हाँ --इस बतावा, मोदरेसन का भय काहे सताए हैं तोहका ?

एतना डरत हौ का ?

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ZEAL said...

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एक-तिहाई लोलीपोप मुझे देकर , उन्होंने मुझे रोक लिया , वरना हम तो जा रहे थे पकिस्तान, इज्ज़त की जिंदगी बसर करने।

जब मस्जिदों में ही बंदगी करनी है तो हिन्दुस्तान क्यूँ ?, पकिस्तान क्यूँ नहीं ?

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anshumala said...

न्यायालय ने क़ानूनी फैसला नहीं दिया है इसे कहते है पंचायती करके बटवारा करना | जो व्यवहारिकता देख कर दी जाती है कानून के हिसाब से नहीं | अभी सर्वोच्च न्यायालय बाकि है जल्दबाजी मत करिए क्रेडिट देने या सलाम करने में |

Unknown said...

"...जब मस्जिदों में ही बंदगी करनी है तो हिन्दुस्तान क्यूँ ?, पकिस्तान क्यूँ नहीं?...

Well said... :) :)
Communists and Congressis want to bring this situation very soon... but this judgement is a hammer on their head... although its incomplete

राजभाषा हिंदी said...

राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका, मनोज कुमार,की प्रस्तुति राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

ZEAL said...

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जनाब राजभाषा हिंदी जी,

जरा हमारा भी इतनी शिद्दत से प्रचार-प्रसार कर देते।

< Smiles >

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निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

कल के फैसले का कुछ क्रेडिट भाजपा के इन नेताओं को जाता है. न मस्जिद (विवादित ढांचा) टूटती, न उसके बाद यह सब होता.
पर ये नेता एक नंबर के झूठे हैं जो कई अदालती कार्रवाइयों में यह कहने का साहस नहीं कर सके कि वास्तव में वहां मस्जिद (या विवादित ढाँचे) को तोड़कर मंदिर बनवाना ही उनका उद्देश्य था. कई जांच आयोंगों के सामने वे यह कहकर मुकर गए कि मस्जिद (या ढांचा) के टूटने में उनका कोई हाथ नहीं है, वे तो वहां उपस्थित जनसमुदाय को संयम बरतने के लिए कह रहे थे. उमा भारती उस समय ख़ुशी के मारे मुरलीमनोहर के कंधे पर सवार हो गयी थीं पर उन्होंने भी पूछताछ में यही कहा कि उन्होंने कोई उकसाने या भड़कानेवाली गतिविधि नहीं की. सच क्या है सभी जानते हैं.
राजनीति तो अब शुरू होगी. अब नए मसले तलाशे जायेंगे. मंदिर बनने की राह अभी आसान नहीं है.
वैसे मैं वहां मंदिर निर्माण के पक्ष में हूँ. मुझे केवल राजनेताओं के दोगलेपन से वितृष्णा है.

Ejaz Ul Haq said...

राम नाम सत्य है

श्री रामचन्द्र जी की शान इससे बुलंद हैकि कलयुगी जीव उन्हें न्याय दे सकें, और श्री राम चन्द्र जी के राम की महिमा इससे भी ज्यादा बुलंद है कि उसे शब्दों में पूरे तौर पर बयान किया जा सके संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि राम नाम सत्य है और सत्य में ही मुक्ति है।अब राम भक्तों को राम के सत्य स्वरुप को भी जानने का प्रयास करना चाहिए, इससे भारत बनेगा विश्व नायक, हमें अपनी कमज़ोरियों को अपनी शक्ति में बदलने का हुनर अब सीख लेना चाहिए।

सम्वेदना के स्वर said...

ओशो कहते हैं कि "जब कोई समाज बेड़ीयों को ही आभूषण मान ले तो फिर उसे कोई भी आज़ाद नहीं करा सकता।"

हमारा देश में समस्यायें सुलझानें की रवायत नहीं है, हम अपने घावों पर फूल सजा कर उन्हें छिपा लेने वाले लोग हैं। घाव फिर अन्दर से सड़नें लगते हैं और नासूर बन जाते हैं।

कुछ फूल हटे हैं तो घाव कुछ दिखे भर हैं, पर अभी इलाज़ कहां, डाक्टर साहिबा?

रचना said...



खुश हूँ की राम का फैसला हो गया , उनको birth ceritficate ईशु होगया ।

Aruna Kapoor said...

फैसला आ गया है.....संजोग की बात है कि मैने अपने मन से जो भविष्यवाणी की थी, वही फैसला आया!......सुंदर आलेख, धन्यवाद!

manjari said...

बहुत बढिया I

ZEAL said...

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* अब तो अयोध्या में जन्म लेना रिस्की है , जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र मिलने में काफी वक़्त लग सकता है। साठ वर्षया फिर १२० वर्ष ? , कलियुग बीत जाए और त्रेता लौट आये तो भी आश्चर्य न कीजियेगा।

* , यदि मिल बाँट कर ही खाना था , तो पुरातत्व वालों से खुदाई क्यूँ कराई ? बेचारे खुदाई वाले मजदूर , अभी तक अपनी देहाडी भी नहीं पाए हैं।
*

* अब क़ानून को साक्ष्य और प्रमाणों की आवश्यकता नहीं शायद। भाईचारे से काम चल जाएगा।

* और पूर्वजों ने भी अपना रवैय्या नहीं बदला। दो को लड़ते देख उन्होंने भी अपनी सुरक्षित सेवा-निवृत्ति करा ली।

* रसोईं हुई पराई , अब रामलला के लिए खीर कहाँ पकाएं ?

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पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सही कहा आपने , मगर क्या करें ये माथुर साहब जो हैं न स देश में , जिनकी तुच्छ स्वार्थपरक हरकते देश को भारी कीमत देकर पूरी करनी पड़ती है

Apanatva said...

accha vyng........

Kailash Sharma said...

very intersting and sarcastic...Regards.

arvind said...

very interesting post....nice.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

खूब गुज़रेगी जब मिल बैठेंगे शाने तीन :)

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर लेखन, नित नये पायदान यूं ही ढूंढता रहे, शुभकामनायें ।

आशीष मिश्रा said...

bahot hi acchha vyangy likha hai aapane...........

वीरेंद्र सिंह said...

दिव्या जी ....
बहुत अच्छा व्यंग लिखा है ....
पढ़कर मज़ा आया.
शुभकामनाएँ....

Mumukshh Ki Rachanain said...

राजनीतिज्ञों का पोलिटिकल सफ़र तो सिर्फ शब्दों का घड़ा होता है। बोते हैं पेड़ बबूल का तो फल कहाँ से होगा लेकिन मान गए जनाब, आपने तो ऐसा पेड़ बोया जो फलों से लद गया।

हमारा भी ऐसा ही सुन्दर सा आभार माननीय आडवानी जी के लिए भी .......

और आपके लिए आभार तो है ही इस सारगर्भित रचना के लिए.......

चन्द्र मोहन गुप्त

Bharat Bhushan said...

कुछ क्रेडिट ZEAL को भी जाता है - व्यंग्य की धार तीखी तीखी रखने का.

महेन्‍द्र वर्मा said...

दिव्या जी, आपका आलेख ‘सेर‘ है, उस पर आपकी टिप्पणियां ‘सवा सेर‘ हैं...धारदार लेखन के लिए बधाई।

राजन said...

अब वयंग्य भी ?क्या बात है।और उस पर डा.अमर कुमार के कमेन्ट !लगता हैं उन्हें देर से ही सही एहसास हो गया हैं-और भी ग़म है जमाने में.... मोडरेशन के सिवा। :))

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अभी तो असली नौटंकी शुरू होनी बाकी है...देखिएगा कुछ दिनों में ही जो लोग अभी इस निर्णय के प्रति सहमति जताते दिखाई पड रहे हैं..वही हुव्वाँ हुव्वाँ करते नजर आएंगें.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दिल बहलाने के लिए इन्हें याद करना जरूरी है!

अजय कुमार झा said...

मैं तो सिर्फ़ नहीं समझ पा रहा हूं कि ..क्या इस फ़ैसले के लिए ..अदालत ने साठ साल का समय ले लिया ..और भी तो सर्वोच्च न्यायालय की पारी बांकी ही है ..यानि एक शताब्दी के बाद भी स्थिति वही की वही ...बताओ यार ..ये है न्यायपालिका ....का असली दमखम ...

Dudhwa Live said...

सुन्दर राजनैतिक विमर्श

Rohit Singh said...

इस पर रंग दिखाने लगे हैं सियार। कल चुप थे पर अब राजनीति हो चुकी है शुरु।

ZEAL said...

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बाबर आओ , हमे बचाओ !

गीता पर हाथ रख कर कसम खाओ, सच कहोगे, सच के सिवा कुछ नहीं कहोगे !

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ZEAL said...

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एक जरूरी चेतावनी। --

कृपया अपना मकान बनवाते समय नीव के पत्थरों पर अपना इतिहास जरूर खुदवा दें। वर्ना संभव है कुछ वर्षों बाद आपका मकान, माता कुंती के आदेश से , पड़ोसियों के साथ साझा हो जाए। आजकल गेट पर नेम-प्लेट की आवश्यकता नहीं, बल्कि उत्खनन में मिलने वाले जरूरी साक्ष्य के रूप में एक शिलालेख भवन के गर्भ में लगवाएं।

आभार।

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ZEAL said...

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हे राम,

बुद्धिमानी से काम लो . न्यायालय में कृष्ण का बोलबाला है [ गीता पर हात रख कसम दिलवाते हैं ]। जाओ द्वापर में, छोटे भाई को पुकारो , कहो की तुम्हें उनकी जरूरत है आज । कृपया आयें और खुद ही हाथ रख कर कसम खाएं और बताएं की सच क्या है।

हे कृष्ण,

राम की मदद करो, क्या पता कल आपको भी ज़रुरत पड़े बड़े भाई राम की । कुछ कहा नहीं जा सकता कब आपकी मथुरा पर भी अधिकार जताने बांग्लादेशी , नेपाली , भूटानी आ जायें।

बाद में ये न कहना की कलयुगी दिव्या ने वक़्त रहते बताया नहीं ।

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वाणी गीत said...

पोस्ट और टिप्पणियों में भी व्यंग्य गज़ब का लिखती हैं आप ...!

कडुवासच said...

... bahut sundar !!!

ZEAL said...

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२४ घंटे बाद श्रीमान मुलायम सिंह जी को याद आया की तवा गरम है। रोटियाँ सेंकने का इसने ज्यादा सुनहरा अवसर , अब कभी नहीं मिलेगा। वैसे भी साठ के आस-पास तो राजनीतिज्ञों को हार्ट अटेक की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, सो जो करना है इसी तीन महीने में कर लो भैया , बिना अवसर गवाए।

तो उन्होंने कहा - " मुस्लिम समुदाय के साथ घोर अन्याय हुआ है। "
..................................................................................................

हे हिन्दुस्तान के मुसलमान भाइयों,

मत करने दो इन नेताओं को अपने नाम पर राजनीति। 'अल्प-संख्यक' के नाम पर ये लोग तुम्हें फुट-बाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।

शर्म हया गैरत है तो कह दो, नहीं चाहिए भीख में मिली सहानुभूति । वोट के लिए तुम्हारी पीठ पर रोटी सिकेंगी ।

अब तो समझो !

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कुमार राधारमण said...

असली मुद्दे गुम हैं। खुद को मुद्दा बनाने की होड़ मची है।

शरद कोकास said...

अच्छा व्यंग्य है ।

संजय भास्‍कर said...

विचारणीय लेख के लिए बधाई

Harshad Mehta said...

...brought smile on my face.

Thanks for visiting my blog.

Dr.Ajit said...

आपने सही मसला उठाया लेकिन अर्थ अपने-अपने मत से निकल आयेंगे..जिसकी जैसी प्रीति वैसी मूरत वाल बात...

मेरे ब्लागस पर आप आती है इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया

डा.अजीत
एक नया ब्लाग लिख रहा हूं आजकल यहाँ पर आकर देखिए एक बार
पता है

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Dr.Ajeet

दिगम्बर नासवा said...

आपका व्यंग बहुत अच्छा है ... और मुझे खुशी है की हम लोग इतने सहनशील है की अपनी कमियों और अपने करे पर भी हास्य और आलोचना कर पाते हैं और कोई बुरा नही मानता ..... पर इस ऐतिहासिक फैंसले के सम्मान में भी ज़रूर कहना चाहिए ... न की जल्दी में तुष्टिकरण की बात करनी चाहिए ....

manu said...

no comment...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

देश की गति कुछ अच्छी नहीं है...

ZEAL said...

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सरकार क्यूँ डर रही थी , और क्यूँ इतना सैन्य बल लगाने की क्या ज़रुरत थी जब सभी बच्चों को लोलीपोप ही पकडाना था। सबको बहका दिया, सब बहक गए। लेकिन निश्चिन्त मत होइए , एक कर करके सब जागेंगे।

और शीला जी, ज़रा संभल के। वहां ज्यादा ज़रुरत है सैन्य बल की।

हिन्दू जागो ---पहले आधा हिन्दुस्तान गया, कश्मीर पे नज़र है ही। आसाम, तिब्बत चाहिए चीन को। अयोध्या की महिमा एक तिहाई हुई। एक दिन सब चला जायेगा। वो दिन दूर नहीं जब सुबहे बनारस और शामे अवध नहीं होगी। बल्कि जब आँख खुलेगी तो करांची में अजान हो रही होगी।

मुस्लिम जागो--- एक-तिहाई में संतोष मत करो , नहीं तो तुम्हारी आदत बिगड़ जायेगी और तुम माँगना भूल जाओगे। हक से मांगो हिन्दुस्तान, कर लो मुट्ठी में ये जहान ॥

.

अजय कुमार said...

ये अंदाज अलग है ,पर अच्छा है ।
राह आसान नहीं है ,जरा मुल्ला यम को भी सुनिये ।

अंकित कुमार पाण्डेय said...

मुस्लिम तो अब बहुत खुश होंगे

"हस के लिया है एक तिहाई लड़ कर लेंगे दो तिहाई" के नारे लगने वाले हैं

प्रकाश गोविंद said...

पोस्ट तो उम्दा है ही किन्तु आपने प्रतिक्रियाओं के बीच में जो धारदार तड़का लगाया है वो लाजवाब है और संग्रहणीय भी !
-
पता नहीं आप मुझसे छोटी हैं कि बड़ी लेकिन आपको आशीर्वाद देने को मन हो रहा है
-
काश ये तेवर एक तिहाई लोगों में भी देख पाता.
-
सच्ची, सटीक और सार्थक ब्लोगिंग
साधुवाद

पी के शर्मा said...

वाह वाह वाह
अच्‍छा लेख

प्रतुल वशिष्ठ said...

निर्णय से पहले की रचना :
___________________
मेरे ह्रदय में
पुण्य भी है पाप भी
वरदान भी है शाप भी
बिलकुल अवध के एक ढाँचे सा।

सोचता
सब नष्ट कर दूँ।
फिर से बनाऊं 'एक मंदिर'
शुद्ध, सुन्दर, पुण्य-संचित
यही बालक मन की मेरी
आखिरी जिद।

एक राखूँ
एक अर्पित।
हाथ मेरे
है खिलौना
'श्री राम भूमि बाबरी मस्जिद'।
______________

निर्णय के बाद की नयी रचना :
_____________________
मेरे ह्रदय में
अर्घ भी है अजान भी
भीख भी है दान भी
बिलकुल ऊँची अदालत के रुके डिसिजन सा.

सोचता
अब दे ही दूँ.
फिर से कराऊँ 'धर्म दंगा'
फ़कीर बनाम साधु भिक्षुक
यही नेता मन की मेरी
अवसरी जिद.

एक मुद्दा
एक निर्णय.
हूँ अदालत
बिलकुल निर्भय.
हाथ मेरे
है हथोड़ा
'ध्वंसकर्ता'
ऑर्डर-ऑर्डर पीटने को.

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

The charade of secularism continues even in the judiciary.

The Lucknow Bench of Allahabad High Court knew there was an upper option available to the plaintiffs and hence gave a diffused judgment.

Naturally, all will go now to the Supreme Court which will takes its own sweet time - may be another 60 years - to arrive at a judgment.

Deferment of decision is the judiciary's understanding of a way to avoid communal strife.

If they were to be so socially skewed, they ought not to have carried out the whole pretense of legal proceedings.

As such muslims [in general] have all over the world always usurped place and position on the power of the sword, so talking rationale and sense to them is never going to yeild any good outcome. Wherever the muslims are in the world, they are thought of to be trouble-mongers. Not all accusers could be wrong. There has to be some truth in it.

The judgment serves them right. Even if they erect a mosque [and they will, given their obtuse nature] besides the Rightful Place Of The Temple, for all times to come they will know that this adjacent plot was given as a 'bhikh' to the beggars. It will never be at the place they ingloriously and deceitfully claimed as theirs.


Arth Desai

Anu Singh Choudhary said...

कितनी सहजता से इतना अच्छा व्यंग्य लिखा है आपने!

ZEAL said...

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स्वामी विवेकानन्द समग्र साहित्य में ‘भारत का भविष्य‘ शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित एक लेख में स्वामीजी लिखते हैं:

”विदेशी आक्रमणकारी एक के बाद एक मंदिर तोड़ता रहा; लेकिन जैसे ही वह वापस जाता, फिर से वहां उसी भव्य रुप में मंदिर खड़ा हो जाता। दक्षिण भारत के इन मंदिरों में से कुछ मंदिर और गुजरात के सोमनाथ जैसे अन्य मंदिर आपको भारतवर्ष के इतिहास के बारे में इतना कुछ बता सकते हैं, जो आपको पुस्तकों के भंडार से भी जानने को नहीं मिलेगा। सोचिए, इन मंदिरों पर विध्वंस औेर पुनर्निर्माण के सैकड़ों निशान मौजूद हैं-लगातार बार-बार टूटते रहे और ध्वंसाशेषों से ही फिर बार बार खड़े होते रहे, पहले से भी ज्यादा भव्यता के साथ! यही है राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रीय जीवनधारा। इस धारा के साथ चलिए, यह आपको गौरव की ओर ले जाएगी।”



ऐसे में यह स्वभाविक ही है कि वर्ष 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो अनेक हिंदुओं को लगा कि यह न केवल अंग्रेजी राज्य से मुक्ति है, बल्कि पूर्व-ब्रिटिश भारतीय इतिहास के उन पहलुओं से भी मुक्ति है, जिन्हें मूर्ति-भंजन, हिन्दू मंदिरों के विध्वंस और वंशीय पराभव तथा श्रेष्ठ सांस्कृतिक परंपराओं के उल्लंघन जैसी दुष्प्रवृत्तियों के रुप में देखा जाता रहा है।
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ZEAL said...

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ऐसी ही स्थिति गुजरात में सौराष्ट्र के जूनागढ़ रियासत में उत्पन्न हुई थी, जहां सोमनाथ का मंदिर स्थित है। जूनागढ़ की 80 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या हिंदू थी, लेकिन रियासत का नवाब मुसलमान था। स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर नवाब ने अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा कर दी। इससे रियासत के हिन्दू भड़क उठे और उन्होंने विद्रोह कर दिया। परिणामस्वरुप एक स्थानीय कांग्रेसी नेता सामलदास गांधी के नेतृत्व में एक समानांतर सरकार बनायी गई। नवाब तो स्वाभाव से ही विलासिताप्रिय और लापरवाह शासक था, रियासत की जनता उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी, ने पाकिस्तान से मदद मांगी। परन्तु उसकी कोई भी युक्ति सफल नहीं हुई और अंतत: एक रात वह चुपचाप पाकिस्तान भाग गया ।



सामलदास गांधी और रियासत के दिवान सर शाह नवाज भुट्टो- जो जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता थे- ने भारत को संदेश भेजा कि जूनागढ़ रियासत भारत में विलय करने वाली है। अपनी पुस्तक ”पिलग्रिमेज टु फ्रीडम” में के0एम0 मुंशी ने उस समय को याद करते हुए लिखा है कि सरदार वल्लभभाई पटेल -जो उस समय भारत के गृहमंत्री थे और जिन्हें देशी रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने का श्रेय जाता है-ने उन्हें (के0एम0 मुंशी) विलय की सूचना वाला तार सौंपते हुए बड़े स्वाभिमान के साथ उद्धोष किया: ‘जय सोमनाथ‘।

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ZEAL said...

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जूनागढ़ के भारत में विलय के बाद सरदार पटेल ने 9 नवम्बर, 1947 को सौराष्ट्र का दौरा किया। उनके साथ नेहरु मंत्रिमंडल में तत्कालीन लोकनिर्माण एवं शरणार्थियों के पुर्नवास मंत्री एन0वी0 गाडगिल भी थे। जूनागढ़ की जनता ने दोनों का गर्मजोशी से स्वागत किया। अपने सम्मान में आयोजित जनसभा में सरदार पटेल ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण घोषणा की: स्वतंत्र भारत की सरकार ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर का उसी स्थान पर पुनरुध्दार करेगी, जहां प्राचीन काल में वह स्थित रहा था और उसमें ज्योतिर्लिंगम पुन: स्थापित किया जाएगा।



जूनागढ़ से सरदार पटेल के लौटने के तुरंत पश्चात् प्रधानमंत्री नेहरु ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर पटेल की घोषणा की औपचारिक पुष्टि की। उस शाम जब पटेल और मुंशी गांधीजी को मिले तो उन्होंने भी इस प्रयास को अपना आशीर्वाद दिया लेकिन साथ ही बताया कि निर्माण की लागत जनता उठाए न कि सरकार। इसलिए सोमनाथ ट्रस्ट गठित करने का निर्णय लिया गया।

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ZEAL said...

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भारत सरकार ने डा. के0 एम0 मुंशी को सोमनाथ मंदिर निर्माण सम्बंधी परामर्शदात्री समिति का चेयरमैन नियुक्त किया। डा. मुंशी ने तय किया कि सरदार पटेल से मंदिर का लोकार्पण करवाया जाएगा। परन्तु जब तक निर्माण कार्य पूरा हुआ, सरदार पटेल का निधन हो गया।

अपनी पुस्तक ‘पिलग्रिमेज टू फ्रीडम‘ में मुंशी लिखते हैं:

”जब मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठापना का समय आया तो डा. राजेन्द्र प्रसाद से सम्पर्क कर पूछा कि वे समारोह में आएं लेकिन साथ ही यह शर्त भी लगाई कि वे तभी निमंत्रण स्वीकारें जब वे किसी भी हालत में आने को तैयार हों।

डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि वे मूर्ति प्रतिष्ठापना के लिए आएंगे चाहे प्रधानमंत्री का रवैया कैसा भी हो और उन्होंने जोड़ा ‘मुझे अगर मस्जिद या गिरजाघर के लिए भी आमंत्रित किया जाता तो भी मैं उसे स्वीकार ही करता। यही भारतीय पंथनिरपेक्षवाद का मूल तत्व है। हमारा देश न अधार्मिक है और न ही धर्म-विरोधी।

अंदेशा सही निकला। जब यह घोषणा हुई कि राजेन्द्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के उदघाटन करेंगे तो पंडित जवाहर लाल ने उनके वहां जाने का जोरदार विरोध किया। लेकिन राजेंद्र बाबू ने अपने वचन का पालन किया।”

****

ZEAL said...

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी-दोनों ने ही जोर दिया है कि यह निर्णय देश में लाखों लोगों के इस विश्वास को मान्यता देता है कि जहां वर्तमान में रामलला विराजमान हैं-वही राम का जन्म स्थान है।

अब स्थिति आस्था बनाम कानून नहीं बल्कि कानून द्वारा आस्था की अनुमोदन करने वाली है।

.

ZEAL said...

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जब दो तिहाई हिन्दुओं का खून ठंडा ही है , तो एक-तिहाई रोटी फेंकने पर वो राल टपकाते हुए दौड़ेंगे ही ।

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अंकित कुमार पाण्डेय said...

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