Saturday, August 20, 2011

नेह निमंत्रण इकलौता

ajit gupta said...

............................लेकिन मैं इतना जरूर चाहूंगी कि तुम जब भी भारत आओ तो कम से कम मुझसे मिलकर जरूर जाओ। वैसे मिलने के बाद कुछ लोग और अच्‍छे लगने लग जाते हैं और कुछ लोगों के बारे में बना हुआ भ्रम टूट जाता है। मुझे भी डर ही लगता है कि कहीं थेडी बहुत बनी हुई छवि समाप्‍त ही ना हो जाए।

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अक्सर ब्लॉगर्स मीट के बारे में पढ़ती रहती हूँ। भाग्यशाली लोगों को एक दुसरे से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है। पता ही नहीं चलता कब आयोजित हुयी , कब संपन्न हो गयी। सिर्फ ब्लॉग्स पर पढ़कर ही पता चलता है। लेकिन अब मुझे भी एक आत्मीय निमंत्रण मिला है। लगा तो की कोई मुझे भी मिलने के लायक समझता है। म्रत्यु के उपरान्त ईश्वर के समक्ष ये कसम खा सकती हूँ अब की हाँ मुझे भी किसी ने याद किया था।

प्रिय अजीत जी , नहीं जानती मिलना कब होगा , लेकिन मिलन प्रतीक्षित है। आपके स्नेह-निमंत्रण से मन को एक सुखानुभव हुआ , जिसे यहाँ व्यक्त कर रही हूँ। हृदय में आपके लिए आभार के भाव हैं।

Zeal

35 comments:

केवल राम said...

यह ब्लॉग की दुनिया और ब्लॉगर मिलन ...सच में आत्मीयता ....यह मैंने भी अनुभव किया है .....आप भी अनुभव कीजिये ...!

Shah Nawaz said...

Ajit ji se milna mere liye bhi bahut hi sukhad anubhav raha...

ashish said...

मुबारकां .जी . ब्लॉग जगत का हज तो करना ही चहिये .

JC said...

पता नहीं यह कैसा संयोग है (पिछले जन्म का?) कि सबसे अच्छी मित्रता भारत में रेल के सफ़र में होती है...
'हम' यात्रा के अंत तक एक दूसरे के बारे में सब निजी सूचना प्राप्त कर लेते हैं, साथ खाते पीते हैं, और, फिर चाहे जीवन में कभी मिलन हो न हो, किन्तु दुबारा मिलने की इच्छा व्यक्त करते हैं...

एक मित्र ने दो परिवारों के बारे में बताया कि कैसे यात्रा के दौरान उनकी मित्रता हुई, जो कालान्तर में पत्रादि द्वारा आदान प्रदान, और उस के फल स्वरुप पारिवारिक बंधन में परिवर्तित हो गयी! जब एक परिवार के लड़के और लड़की के विवाह दूसरे परिवार के लड़के और लड़की के साथ संपन्न हो गए :) (मान्यता है कि जोड़े स्वर्ग में बनते हैं और धरा पर रचाए जाते हैं, गुड्डे-गुड्डी के विवाह समान !)...

अजित गुप्ता का कोना said...

दिव्‍या जी, मैं आपसे मिलकर सच में आनन्‍द की अनुभूति करूंगी। जिसके विचार पुष्‍ट हो, जो समाज में चेतना जागृत करने में सफल हो, भला उससे मिलना कौन नहीं चाहेगा। मेरा निमंत्रण हमेशा है। जब भी भारत आएं, मुझे अवश्‍य सूचित करें।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

यह नेह निमन्त्रण आपको मुबारक हो, भई हम भी यहीं के हैं कम से कम आपसे मित्रता तो मानते ही हैं, भारत आकर हमें भी मत भूलना

दिवस said...

दिव्या दीदी, आदरणीय अजीत जी ने जब इतना प्यारा निमंत्रण दिया है तो आप उनसे जरुर मिलिए| मेल मिलाप करना चाहिए, यह बहुत अच्छा होता है|
जैसा की आदरणीय JC जी ने कहा कि सबसे अच्छी मित्रता भारत में रेल के सफ़र में होती है...
बिलकुल सही है| दो-ढाई वर्ष पहले मैं अपने दो दोस्तों के साथ श्रीनगर गया था| रास्ते में हमारी मुलाक़ात एक लगभग पचास वर्षीय व्यक्ति से हुई| इनका नाम है संजीव पारीक| उनकी यात्रा केवल वैष्णोदेवी तक थी, लेकिन हमारी ऐसी दोस्ती हो गयी की हमने वैष्णोदेवी के दर्शन भी उनके साथ किये व बाद में वे हमारे साथ श्रीनगर भी चल पड़े| करीब एक हफ्ते की यात्रा में ऐसे सम्बन्ध बने की आज तक उनसे फोन पर बात होती है, जबकि में हमसे दुगुनी आयु के हैं|
रेल यात्राओं के दौरान मेरे बहुत से दोस्त बने, लेकिन संजीव अंकल से कुछ ज्यादा ही घनिष्ठता हो गयी|

दिव्या दीदी, आपसे मिलने की इच्छा तो मेरी भी है| निमंत्रण भी देना चाहता हूँ, लेकिन मेरा खुद का कोई स्थाई ठिकाना नहीं| कंपनी वाले भारत भ्रमण पर घुमाते रहते हैं| आज यहाँ तो पता नहीं कल कहाँ? निमंत्रण दूं तो कहाँ का? सोचा एक बार खुद ही आपसे आकर मिल लूं, किन्तु यह भी अभी संभव नहीं| आशा है, कभी न कभी आपके दर्शन जरुर होंगे|

प्रवीण पाण्डेय said...

ब्लॉगरीय आत्मीयता।

महेन्‍द्र वर्मा said...

मानवीय संबंधों के भावनात्मक रूप का उत्कृष्ट और प्रेरक उदाहरण । ऐसा स्नेह, ऐसी आत्मीयता दुर्लभ है।

किसी के प्रति जब हमारे मन में अच्छी भावनाएं उत्पन्न होती हैं तो उसकी प्रतिध्वनि उसी फ्रिक्वेंसी में उसके मन में भी गूंजने लगती है, जिसके बारे में हम सोच रहे होते हैं।

Bharat Bhushan said...

अजित गुप्ता जी को छवि समाप्त होने का डर नहीं होना चाहिए क्योंकि वास्तविक छवि तो व्यक्तिगत संपर्क से ही बनती है. शेष केवल आभास होते हैं.

aarkay said...

निमंत्रण मिलने की बहुत बहुती बधाई दिव्या जी !
इस से एक बड़े ब्लॉग परिवार के सदस्यों का आपसी प्यार झलकता है !

सदा said...

दिव्‍या जी, आपकी भावना ने इस नेह निमंत्रण को आत्‍मीयता से स्‍वीकार किया है उसका परिणाम आपकी यह पोस्‍ट ..मेरी यह शुभकामना है आपकी मुलाकात अवश्‍य हो ...।

Anonymous said...

tasveer ke dono pahlu hain.......accha bhi bura bhi.....koi hume is qabil samjhta hai ye ahsaas sukhad hai.

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर..

Jyoti Mishra said...

power of blogging... :)

SM said...

beautiful you said it.

सुज्ञ said...

यह मिलन आप दोनो श्रेष्ठ बलॉगरों के लिए स्मर्णीय और सुखद अनुभव युक्त रहे। आत्मीय शुभकामनाएं।

जब भी मिलें हमारी तो बस चर्चाभर कर लेना!! आभार

P.N. Subramanian said...

अनदेखे ब्लोग्गर मित्रों से मिलना (व्यक्तिगत रूप से) वास्तव में एक सुखद अनुभूति होती है.

Minakshi Pant said...

सच कहा आपने किसी दोस्त का दोस्त के प्रति प्यार , सम्मान सच में बहुत सुखद अनुभव करता है क्युकी उसमे आत्मीयता का भाव होता है तो आज हम आपसे कहते हैं जब भी दिल्ली आओ हमसे मिलकर जाना दोस्त जी :)दिल से :)

अरुण चन्द्र रॉय said...

ब्लॉगरीय आत्मीयता।

दर्शन कौर धनोय said...

Divyaji,palat kar dekhe ajitji ke pichche hum bhi line men khde haen ..aapse milne ke liae ..

प्रतुल वशिष्ठ said...

मैं बहुत अच्छी सजावट कर लेता हूँ.
झाडू-पौंछा भी अच्छा लगा लेता हूँ.
व्यवस्था बनाने में मेरा कोई सानी नहीं.
मैं अतिथियों का घंटों इंतज़ार भी कर सकता हूँ.
यदि आपकी बैठक मेरी सेवा में संपन्न हो तो बहुत अच्छा होगा... क्यों न आप इस व्यक्तिगत बैठक को 'राष्ट्रीय बैठक' बना दें... मुझे सभी के दर्शन होंगे.... जे.सी., रविकर, सुज्ञ जी, कौशलेन्द्र जी, दिवस जी, अंकित, रोहित, सभी से मिलना हो जायेगा... 'राष्ट्रीय बैठक' में विषयों का अभी से चयन कर लें.... बहुत लोग हैं जो परस्पर मिलकर प्रसन्न होंगे.

रेखा said...

वाह ,बहुत अच्छा लगा .वैसे तो मैं भी सबसे मिलना चाहती हूँ ...आप मुंबई भी अवश्य आइए..आपसे मिलकर काफी ख़ुशी होगी

Suresh kumar said...

किसी को निमन्त्रण देना भी एक महान बात है

जयकृष्ण राय तुषार said...

अच्छी पोस्ट डॉ० दिव्या जी बधाई

Rakesh Kumar said...

मैं तो आपसे बहुत बार मिल चुका हूँ दिव्या जी.
कितनी बार आप मेरे घर आयीं हैं,और कितनी बार
मैं आपके घर हो आया हूँ.क्या भाव और विचार का
मिलन असली मिलन नहीं?

हाँ ,यह अलग बात है कि 'दावतों' का मजा ही कुछ
और है. लगता है थाईलैंड का टिकट बुक करा ही लेना
चाहिये अब.
आपका गाजियाबाद में हार्दिक स्वागत है.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

तो... कौन कहता है ब्लागिंग आभासी दुनिया है???????????

रूप said...

Kaaaaaash ! Koi mujhe bhi bulata......Naseeb apna apna....!

शोभना चौरे said...

दिव्याजी
आपसे मिलने की उत्सुकता तो मुझे भी है एक दूसरे को पढ़कर मुझे पूरा विश्वास है की मिलने के बाद संतुष्टि ही होगी |
क्योकि कोई भी सम्पूर्ण नहीं होता तो निराशा कैसी ?

G.N.SHAW said...

कुछ लोग खोल कर कह ( निमंत्रण ) दिए और कुछ कह न सके ! आप भारत आते ही अपनी यात्रा के रूट को ब्लॉग पर पोस्ट कर दे ! ब्रेक यात्रा बता दे ! मिलने वाले सहृदय हाजिर हो ही जायेंगे , वश पहचानना आप का कम होगा ! यह पोस्ट भी लाजवाब रही !

मनोज भारती said...

आप भारत में ही तो हैं? क्यों हैं न???निमंत्रण स्वीकार करें।

DR. ANWER JAMAL said...

यह आपने क्या कह दिया कि ‘कोई मुझे भी मिलने के लायक़ समझता है‘
अरे भई, यहां जो इतने लोग आते हैं वे सभी आपसे मिलना चाहते हैं। अजित जी ने खुलकर कह दिया और दूसरे ख़ामोश इसलिए रह गये कि कहीं अपने दिल का अरमान कह दिया तो शरारती तत्व बेपर की उड़ा देंगे और किसी को जवानी में और किसी को बुढ़ापे में बदनाम कर देंगे।

आप जब भारत आएं तो हमसे ज़रूर मिलना। हम आपको दीन इसलाम के बारे में कुछ लिट्रेचर भेंट करना चाहते हैं।

आप जब भारत आएं तो ऐसे लोगों से बिल्कुल मत मिलना जो निम्न तकनीक के ज़रिये नायक बने बैठे हैं -

ब्लॉग जगत का नायक बना देती है ‘क्रिएट ए विलेन तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (29)

DR. ANWER JAMAL said...

Link correction

यह आपने क्या कह दिया कि ‘कोई मुझे भी मिलने के लायक़ समझता है‘
अरे भई, यहां जो इतने लोग आते हैं वे सभी आपसे मिलना चाहते हैं। अजित जी ने खुलकर कह दिया और दूसरे ख़ामोश इसलिए रह गये कि कहीं अपने दिल का अरमान कह दिया तो शरारती तत्व बेपर की उड़ा देंगे और किसी को जवानी में और किसी को बुढ़ापे में बदनाम कर देंगे।

आप जब भारत आएं तो हमसे ज़रूर मिलना। हम आपको दीन इसलाम के बारे में कुछ लिट्रेचर भेंट करना चाहते हैं।

आप जब भारत आएं तो ऐसे लोगों से बिल्कुल मत मिलना जो निम्न तकनीक के ज़रिये नायक बने बैठे हैं -

ब्लॉग जगत का नायक बना देती है ‘क्रिएट ए विलेन तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (29)

G Vishwanath said...

प्रवीण पांडेजी से मिल चुका हूँ।
सुखद अनुभव रहा था।
यदि कभी अवसर मिला तो आप से भी अवश्य मिलना चाहूँगा।

JC जी के विचारों से सहमत्।
मैं भी रेल यात्रा करते समय बडे आत्मीयता से लोगों से मिलकर बात किया हूँ और उनसे फ़िर भेंट कभी नहीं हुई पर इसकी मुझे कोई पर्वाह नहीं।
ब्लोग जगत में कम से कम मिलने से पहले आपको लोगों को परखने का पूरा अवसर मिलता है। व्यक्ति की पहचान केवल चेहरे से नहीं, हाव भाव से नहीं पर लेखों से भी हो सकता है।

हमारा थैलैंड आना तो अब मुश्किल है पर यदि आपका कभी बेंगळूरु आना हुआ तो हमें याद कीजिए। भले आप हमसे मिलने नहीं आ सकती, हम आपसे खुद मिलने आ जाएंगे।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

Atul Shrivastava said...

अजीत जी ने जो आमंत्रण दिया है, उसमें उन्‍होंने एक शंका जाहिर की है... वह तो रहती ही है....
लोगों की लेखनी और उनकी वास्‍तविकता में अंतर दिखा तो दुख तो होता है, पर मुलाकात से नए अनुभव मिलते हैं।
उदयपुर में अजीत जी से मुलाकात करने का सौभाग्‍य मुझे भी मिला है और सच में उनसे मिलकर काफी अच्‍छा लगा। कुछ देर की ही मुलाकात में उनसे अच्‍छी आत्‍मीयता मिली मुझे।
आज भी मैं फुर्सत में उनके व्‍दारा भेंट की गई उनकी लघु कथाओं का संग्रह ''प्रेम का पाठ'' पढने बैठ जाता हूं।