२०१० में जब ब्लौगिंग में पदार्पण किया तो एक अहम् मुद्दे पर विवाद चल रहा था- " ब्लॉगिंग बनाम साहित्य" । आज एक नया विवाद छिड़ा है - " ब्लॉगिंग बनाम फेसबुक" ।
मेरे विचार से एक कलमकार की कलम बहुत से उद्देश्यों की पूर्ती करती है-
मेरे विचार से एक कलमकार की कलम बहुत से उद्देश्यों की पूर्ती करती है-
- कभी अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है,
- कभी मन का दर्द पिघलकर लेखनी से बाहर आ जाता है,
- कभी सीने में उठता आक्रोश लावा बन कर फूटता है,
- कभी नयी-नयी जानकारियाँ उपलब्ध कराता है,
- कभी समाज में जागृति का साधन बनता है,
- शोधार्थियों को विषय और विश्लेषण उपलब्ध कराता है।
साहित्य, ब्लौगिंग और फेसबुक सभी पर कलमकार ही योगदान कर रहे हैं। तीनों ही स्थल अपनी-अपनी जगह पर महत्वपूर्ण हैं। बड़े-बड़े साहित्य को रचने में वक़्त भी लगता है और लोगों तक उसकी पहुँच भी मंथर गति से होती है। उसकी जगह ब्लॉगिंग ज्यादा सहज और त्वरित विकल्प है। लेकिन समय की कमी के चलते , अत्यंत तीव्र गति संवाद और अभिव्यक्ति का माध्यम बना 'फेसबुक' । त्वरित अभिव्यक्ति और शीघ्र मिलने वाले समाधानों ने फेसबुक को अति लोकप्रिय बना दिया।
आज फेसबुक ने जिस गति से सामाजिक चेतना पैदा की है , वह अद्भुत है। त्वरित प्रतिक्रियाओं ने समाज में पारदर्शिता लायी है। राजनीतिज्ञों के मन में भय भी पैदा कर दिया है।
ब्लौगिंग के लाभ--
- विषय को विस्तार से लिखा जा सकता है।
- पुराने आलेखों को सुगमता से ढूंढा जा सकता है।
- लेखक और पाठकों के विचार लम्बे समय तक सुरक्षित रहते हैं, जिसका पुनर-पठन संभव है।
- उच्च कोटि का साहित्य पढने और संग्रहण करने को मिलता है।
ब्लौगिंग के दोष-
- यहाँ मठाधीशी ज्यादा है जो फेसबुक पर नहीं है।
- यहाँ रैगिंग और गुटबाजी भी ज्यादा दर्शनीय है।
- विषयों के अतिरिक्त व्यक्तिगत भी लिखा जाता है।
- अनावश्यक विवादों में समय और ऊर्जा का अनावश्यक व्यय होता है।
- सामाजिक सरोकार पर लिखने वाले कम हैं,
फेसबुक के लाभ--
- तीव्र गति से अपनी बात को लाखों की संख्या में लोगों तक पहुँचाया जा सकता है।
- एक ही विषय पर लिखने वाले बहुत हैं जिससे सामाजिक सरोकार के विषयों की महत्ता बढ़ जाती है और तत्काल सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है।
- चिकने घड़े जैसे राजनीतिज्ञों को जो भयभीत कर दे , वो दम केवल फेसबुक में है।
- लेखकों और पाठकों दोनों की संख्या ज्यादा होने से विविध विषय उपलब्ध हो जाते हैं, जिससे रोचकता बनी रहती है।
- सामाजिकता चेतना और जागरूकता का निर्विवाद , एक सशक्त माध्यम है।
फेसबुक के दोष-
- विषय को ज्यादा विस्तार नहीं मिल पाता।
- लाखों की संख्या में , तेजी के पोस्टों के आते रहने से पूर्व में रखे गए विचार उसी भीड़ में कहीं खो जाते हैं।
अतः यह कहना ही ब्लौगिंग और फेसबुक में क्या बेहतर है तो वही बात हो गयी की " बेटी और बेटे" में कौन ज्यादा बेहतर है। बहुत से लेखक तो ब्लॉग और फेसबुक दोनों का इस्तेमाल कर रहे हैं , फिर वे कैसे कहें की उनकी बायीं आँख ज्यादा अच्छी है या फिर दायीं आँख।
जय माँ सरस्वती
जय ब्लॉगिंग
जय फेसबुक।
31 comments:
बहुत ही सार्थक विश्लेषण किया है आपने ...आभार ।
बढ़िया और रोचक विश्लेषण.
आपने बिलकुल सही फरमाया है!...फेसबुक एलोपैथिक मेडिसीन है जो तुरंत फुरंत असर दिखाती है...जब कि ब्लॉगिंग और साहित्यिक कृतियाँ, आयुर्वेदिक और होमियोपेथिक दवाइयों की तरह असर दिखाने में ज्यादा समय लेती है!...सुन्दर तुलनात्मक विश्लेषण....धन्यवाद!
बहुत ही अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है अपने दिव्या जी अभिव्यक्ति ज्यादा जरुरी है और विषय का विश्लेषण फिर हम अपने विश्लेषित ब्लॉग को सोसिअल नेट्वोर्किंग साईट पर डाल सकते हैं ताकि विचारो को ज्यादा लोगो तक पहुचाया जा सके और विश्लेषित और मिश्रित विचार मिल सकें
आलेख से सहमत!
फेसबुक पर होने वाला विचार विमर्श काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि हमारी मित्रता सूची मे किस प्रकार के लोग हैं और वो क्या पसंद करते हैं तथा उससे हमारी पसंद कितना मिलती हैं।
गुण दोष हर जगह होते हैं जिन्हें आपने सरलता से स्पष्ट किया ही है।
सादर
बहुत सटीक विश्लेषण....
बहुत सटीक विश्लेषण, बढ़िया प्रस्तुति!
neutral..100%...Real
आपका विश्लेषण १००% सही है मैं तो फेस बुक और ब्लोगिंग दोनों पर ही समझो बराबर समय व्यतीत कर रही हूँ | मन में जो विचार आयें उनको किसी भी माध्यम से आपस में बांटने से ही संतुष्टि मिल जाती है |
सार्थक और सटीक विश्लेषण किया है ।
ब्लागिंग और फेसबुक दोनों अभिव्यक्ति के सुगम साधन हैं।
दोनों के गुण-दोषों की आपने अच्छी विवेचना की है। इनके दोषों को त्याग कर गुणों की ओर ज्यादा ध्यान देना चाहिए
पता नहीं, पर फेसबुक में मन रमा नहीं।
बेहद संतुलित और बढिया विश्लेषण किया आपने । उदाहरणों से स्थिति को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया ..बहुत खूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आपकी पोस्ट पढकर वह समय याद आ गया जब ब्लॉग पर से अपनी व्यस्तता हटाकर फेसबुक पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया था। ब्लॉग व फेसबुक के गुणधर्मों का आपने बिलकुल सटीक विवरण दिया है। ब्लॉग आजकल मुझे भी इतना कारगर नहीं लग रहा जबकि फेसबुक पर तो मानों युद्ध का शंखनाद ही हो चूका हो। राष्ट्रवाद और केवल राष्ट्रवाद को देखकर अच्छा लगता है।
वैसे दोनों का अपना महत्व है अत: तुलना तो नहीं कर सकता किन्तु फिलहाल फेसबुक अधिक कारगर लगा अत: वहाँ ध्यान अधिक है।
gaagar me saagar
क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 07-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-872 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
फेसबुक 'फेस मिरर' है तो ब्लॉग 'आदमकद आईना', संक्षिप्त और विस्तृत जानकारी के माध्यम.
@--मंसूर अली जी-- पढ़ा तो चेहरा ही जाता है, घुटने और टखने पढ़कर क्या करेंगे?...Smiles...
इसीलिये उल्लू दिमाग लगाता है
ब्लाग में रख कर कविता
फेस बुक में भी चिपका आता है
ब्लाग में दो टिप्प्णी पाता है
फेसबुक के हजार मित्रो में से
दो दर्जन की पसंद हो जाता है।
सुंदर प्रस्तुति !!
सुंदर और सटीक विश्लेषण.
aaderneeya divya jee..bahut hee acche bisay ko aaj chua hai aapne..blog ho ya face book uddeshy ek hee hai apni baat jyada se jyada logon tak pahuche..face book per rachnaon ka sthayitv nahi hai..ek sahitykaron ka naya group creat ho taki adiktar logon ke rachnayein padh sakein..aaur comment bhee kiye jaa sakein..blog par roj prakashit hone wali tamam rachnaon ko padh paana muskil hai..aaur comment kar paana to bada hee dushkar hai..bloogar ka new group ban jaaye to tamam nayee rachnayein ek manch par padhi jaa sake aaur twrit comment bhee kiya jaa sake...pasandeeda link apne anya groups me jan chetana ke prasar hetu lagaye ja sakte hai..bahut hee behtarin tulnatmak bisleshan...sadar badhayee ke sath
@:दिव्याजी, सही कहा, फेसबुक की सीमितता बाकी हिस्सों को पढ़ लेने में बाधित तो अवश्य होगी
!
बहुत बढ़िया विश्लेषण |
हम तो दोनों को ही अभिव्यक्ति का बहुत बढ़िया साधन मानते है| और हाँ फेसबुक का अपने ब्लॉग के लिए एक शानदार एग्रीगेटर के तौर पर लाभ उठाते है|
बहुत बढ़िया विश्लेषण. लेकिन मैं फेसबुक की अपेक्षा ब्लॉग को ज्यादा महत्व देता हूँ....
आपके विशलेषण से बहुत जानकारी मिली .दोनों साधन है -जिसे जो उपयुक्त लगे !
Nice prose ,with separate theme ,speculative with mind goggle .
वाह...बहुत बढ़िया विश्लेषण,..
अरुणा जी ने ठीक कहा कि,फेसबुक एलोपैथिक मेडिसीन है जो तुरंत फुरंत असर दिखाती है..जब कि ब्लॉगिंग आयुर्वेदिक और होमियोपेथिक दवाइयों की तरह असर दिखाने में ज्यादा समय लेती है!
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
सुन्दर तथा शानदार पोस्ट है ।बधाई।
बहुत बढ़िया विश्लेषण ....
दोनों की सार्थकता भिन्न है.
सही और तथ्यपूर्ण विश्लेषण.
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