आमिर हों अथवा शाहरूक अथवा सलमान खान , मार्केटिंग करना कोई इनसे सीखे । इन खानों को ये बहुत अच्छी तरह से पता है की नाम और शोहरत कैसे कमानी है। 'कन्या भ्रूण हत्या' पर शो आयोजित करके खूब वाह-वाही लूट ली। क्योंकि ये दर्द तो भारत की हर नारी का दर्द है। इसलिए इस मुद्दे पर तो सफलता मिलनी ही थी।
लेकिन कहाँ गया आमिर का प्रेम जब देश से प्रेम दिखाने का मौक़ा मिला था। आमिर की एक फिल्म "अव्वल नंबर" में इन्होने जिस बल्ले से क्रिकेट खेला था , उस बल्ले को नीलाम करके उससे मिली हुयी उस बड़ी रकम को आमिर ने पाकिस्तान को दान कर दिया था , ताकि वहां की गरीब जनता के लिए एक मल्टी-फैसिलिटी अस्पताल बनवाया जा सके। जैसी भारत में तो गरीब जनता है ही नहीं। यहाँ की गरीबी तो सिर्फ फिल्म बनाकर पैसा और शोहरत कमाने के ही काम आती है। फ़िर क्यों कोई दूर करे इसे।
नारी के उत्थान से यदि सच्चा लगाव होता इन्हें तो पत्नी को त्यागकर प्रेमिका से विवाह कर उस स्त्री का जीवन नरक नहीं किया होता।
स्त्री हो या गरीबी, पैसा और शोहरत कमाने के सबसे उपजाऊ और कमाऊ साधन हैं आमिर के लिए भी और अमीरों के लिए भी। इन मुद्दों पर फिल्में बनाकर , लोगों की भावनाओं को करीब से छूते हैं , और --मसीहा-- बन बैठते हैं।
हज़ारों प्रयास इस दिशा में , लाखों लोगों ने किये तो नज़र अंदाज़ कर दिए गए, लेकिन इन खान-बंधुओं की तो बात ही कुछ और है। -- ये करें तो वाह ! वाह !... कोई और करे तो ...आगे बढ़ो....
लेकिन कहाँ गया आमिर का प्रेम जब देश से प्रेम दिखाने का मौक़ा मिला था। आमिर की एक फिल्म "अव्वल नंबर" में इन्होने जिस बल्ले से क्रिकेट खेला था , उस बल्ले को नीलाम करके उससे मिली हुयी उस बड़ी रकम को आमिर ने पाकिस्तान को दान कर दिया था , ताकि वहां की गरीब जनता के लिए एक मल्टी-फैसिलिटी अस्पताल बनवाया जा सके। जैसी भारत में तो गरीब जनता है ही नहीं। यहाँ की गरीबी तो सिर्फ फिल्म बनाकर पैसा और शोहरत कमाने के ही काम आती है। फ़िर क्यों कोई दूर करे इसे।
नारी के उत्थान से यदि सच्चा लगाव होता इन्हें तो पत्नी को त्यागकर प्रेमिका से विवाह कर उस स्त्री का जीवन नरक नहीं किया होता।
स्त्री हो या गरीबी, पैसा और शोहरत कमाने के सबसे उपजाऊ और कमाऊ साधन हैं आमिर के लिए भी और अमीरों के लिए भी। इन मुद्दों पर फिल्में बनाकर , लोगों की भावनाओं को करीब से छूते हैं , और --मसीहा-- बन बैठते हैं।
हज़ारों प्रयास इस दिशा में , लाखों लोगों ने किये तो नज़र अंदाज़ कर दिए गए, लेकिन इन खान-बंधुओं की तो बात ही कुछ और है। -- ये करें तो वाह ! वाह !... कोई और करे तो ...आगे बढ़ो....
- क्या आमिर खान हिन्दुओं का अधिकार छीनने वाले, मुस्लिमों के लिए दिए गए अनैतिक आरक्षण के खिलाफ कुछ करेंगे?
- क्या वे उन महिलाओं के लिए कुछ करेंगे जो "लव जिहाद" का शिकार हो रही हैं ?
- क्या वे अलगाव वादी बयानों पर कुछ करेंगे।
- क्या वे --"इस्लामिक आतंकवाद"-- कोई फिल्म अथवा 'शो' बनायेंगे ?
- क्या वे-- "मुस्लिम वोट बैंक"-- जैसी घटिया चालों के खिलाफ कुछ करेंगे?
काश की आमिर पैसा और शोहरत कमाने के बजाये "मुस्लिम जनता " को सही राह दिखाते । उनमें भी भारत भूमि के प्रति समर्पण पैदा कर पाते।
वन्दे मातरम् !
14 comments:
वाह...बहुत विचारणीय अच्छी प्रस्तुति,....
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
नारी के उत्थान से यदि सच्चा लगाव होता इन्हें तो पत्नी को त्यागकर प्रेमिका से विवाह कर उस स्त्री का जीवन नरक नहीं किया होता।...ye hui naa baat.. bahut badhiya ma'am..
आमिर द्वारा पाकिस्तान को दान दिया जाना अनुचित है, जबकि देश में गरीबों के लिए भर पेट भोजन और स्वास्थ्य सुविधाओं की कहीं ज्यादा जरूरत है।
वंदे मातरम ................
अभी तक मुझे ऐसा लगता था कि आमिर खान शेष सभी खानों से कुछ ठीक है। विविध विषयों पर अच्छी फिल्मे बनाने वाला अभिनेता व फिल्मकार। किन्तु यह अव्वल नम्बर वाली घटना के बारे में मुझे जानकारी नहीं थी। निश्चित रूप से यह आमिर खान द्वारा किया गया एक घृणित कार्य है। बल्कि मैं तो इसे अपराध व देशद्रोही की श्रेणी में रखूंगा। पाकिस्तान जैसे देश के लिए इतनी चिंता किन्तु भारत में क्या हो रहा है, इससे बेखबर होकर भारत को खत्म कर देने के मंसूबे पालने वाले पाकिस्तान को आर्थिक मदद देना सच में एक देशद्रोह है।
इसे कदापि क्षमा नहीं किया जाएगा। फिर चाहे पब्लिसिटी के लिए कितनी ही फिल्मे व कार्यक्रम बना ले।
आपकी बात में वज़न है.केवल वाहवाही न कर विचार करना होगा कि जिसका होना चाहिये उसका भला हो भी रहा है या नहीं !
वाह क्या बात है!! आपने बहुत उम्दा लिखा है...बधाई
इसे भी देखने की जेहमत उठाएं शायद पसन्द आये-
फिर सर तलाशते हैं वो
दिब्य जी सदर प्रणाम
आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है हिन्दू तो मुर्ख है ये खान बंधू लव जेहादी है और इस्लामिक आतंक बाद के समर्थक भी मई तो कहता हु कोई भी मुसलमान भारत का भक्त नहीं ये केवल और केवल मुसलमान ही होते है इसके अलावा कुछ नहीं ये इस्लाम के लिए ही ब्बिचार करते है न की भारत अथवा मनुष्य के नाते.
jai hind
एक सामान्य बात : जीव जगत में जितनी भी हलचल है... वह अमुक-अमुक जीव के कार्य-व्यापार से है. प्रत्येक जीव अपनी क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करता है और अवसर का लाभ लेने की योजना में लगा रहता है. मनुष्य प्रसिद्ध होने की युक्तियाँ सोचता है और अपना प्रभाव क्षेत्र बनाने के लिये अभिनय करता है, प्रपंच रचता है. छल, कपट का सहारा लेता है. उसके कार्यों में मक्कारी/धूर्तता तभी आती है जब वह आदर्श असल से उलट स्वभाव का होता है.
क्योंकि सभी अपनी-अपनी आँखों और समझ से दुनिया को देखते-समझते हैं... इसलिये 'मुंडे-मुंडे मति भिन्ना' की बात सही है.
क्योंकि कोई भी सेवाभावी उन्हीं सामाजिक कार्यों को अपना कार्यक्षेत्र बनाएगा जिसमें उसे सहूलियत हो.
— लेखक की सेवाभावना लगातार 'लेख' लिख-लिखकर व्यक्त होगी.
— चित्रकार की सेवाभावना लगातार 'आर्ट एक्ज़िविजन' लगा-लगाकर दर्शित होगी.
— राजनैतिक नेता की सेवाभावना जनता से किये 'वायदों' में दिखायी देगी.
— अभिनेता की सेवाभावना मुद्दे आधारित फिल्मों से, टीवी शो से और झूठी नौटंकी से ही व्यक्त होगी.
— पत्रकार घटना-अघटना-दुर्घटना सिलसिलेबार बताकर/ दिखाकर ही सेवाभावना जताता है.
कन्या का 'भ्रूण' हो अथवा किसी भी जीव का 'भ्रूण' ह्त्या करना, उसे हानि पहुँचाना पूरी तरह नकारने योग्य है.
जो माताएँ भोजन में 'अंडे' का सेवन करती हैं.. उनकी संवेदनाएँ 'भ्रूण' ह्त्या के प्रति सूख जाती हैं. वे ऐसे उपक्रम पर मूक ही रहती हैं.
सामाजिक कार्यक्रमों में इस विषय पर बेशक वे हल्ला मचाती दिख जाएँ... निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और गीतकार फिल्मों में 'भ्रूण' ह्त्या को अपने मज़े के लिये परोसते दिख जाते हैं.
आपको याद होगा वो गाना, जिसे आमिर की धूर्त टीम ने मूर्ख जनता के कंठ का हार बना दिया :
जब लाइफ हो आउट ऑफ़ कंट्रोल
होठों को करके गोल, सीटी बजाके बोंल .... आल इज वेल.
मुर्गी क्या जाने 'अंडे का क्या होगा?'
लाइफ मिलेगी या तवे पे फ्राई होगा?'
.......... ये जो समाज में परोस रहे हैं... उससे तो जीव (भ्रूण) के प्रति निर्ममता ही आयेगी.
मैंने सामाजिक उन्नति के लिये एक 'रास्ता' सोचा, जो रास्ता सोचा उसमें यह भी सोचा कि मुझे प्रसिद्धि अच्छी-खासी मिले. उस रास्ते पर बहुतों को चलाने के लिये समुचित भावों का प्रयोग किया.
मैंने बहुतों से बहुत गंभीरता से कहा : "इस रास्ते पर चलते हुए तुम्हें अपना सर्वस्व लुटाना होगा, मोह-माया से विरक्त होना होगा". उनके दुःख को सुनते समय अपने किसी अन्य दुःख को याद करके रुआसा भी हो गया.
-------अतः कुछ हद तक हर प्राणी 'सामाजिक कार्यों' को करते हुए अभिनय करता है. शिकायत तभी होती है जब अभिनय में सौ फीसदी मक्कारी हो. लेकिन उसे पहचानने वाली आँखें किसी-किसी पर ही होती हैं.
सत्यमेव जयते (सत्य की ही विजय होती है)...
समाज में महिला संरक्षण की बात कर रहा है वो आमिर खान जो खुद एक हिन्दू स्त्री को अकारण ही उम्र के ऐसे मोड़ पर अकेला छोड़ चुका है जहाँ से वो औरत दूसरी शुरुआत भी नही कर सकती.??
क्या इस तरह की दोगली मानसि...कता का छली-कपटी प्राणी 'सत्यमेव जयते' कर सकता है.??
'भाग बोस डी के' जैसे द्विअर्थी अश्लील गानों से पैसा कमाने वाला 'गाली गलौच खान' भारतीय सभ्यता-संस्कारों का 'सत्यमेव जयते' कर सकता है.??
इस देश में भावनाओं को मुद्दा बनाकर पैसा कमाना बहुत आसान है... आमिर ने भी वही रोना धोना मचाकर 'टीवी की मार्केटिंग नीतियों' का प्रयोग बखूबी किया है... थोड़े समय में 'करोड़ों' बटोरकर अन्ना के कथित 'आन्दोलन' की तरह लोगों की भावनाओं से खेलकर निकल लेंगे.??
क्युकी भारतीयों के भूल जाने की आदत ऐसे व्यापारियों के हित में है...
सत्यमेव जयते (सत्य की ही विजय होती है)...
समाज में महिला संरक्षण की बात कर रहा है वो आमिर खान जो खुद एक हिन्दू स्त्री को अकारण ही उम्र के ऐसे मोड़ पर अकेला छोड़ चुका है जहाँ से वो औरत दूसरी शुरुआत भी नही कर सकती.??
क्या इस तरह की दोगली मानसि...कता का छली-कपटी प्राणी 'सत्यमेव जयते' कर सकता है.??
'भाग बोस डी के' जैसे द्विअर्थी अश्लील गानों से पैसा कमाने वाला 'गाली गलौच खान' भारतीय सभ्यता-संस्कारों का 'सत्यमेव जयते' कर सकता है.??
इस देश में भावनाओं को मुद्दा बनाकर पैसा कमाना बहुत आसान है... आमिर ने भी वही रोना धोना मचाकर 'टीवी की मार्केटिंग नीतियों' का प्रयोग बखूबी किया है... थोड़े समय में 'करोड़ों' बटोरकर अन्ना के कथित 'आन्दोलन' की तरह लोगों की भावनाओं से खेलकर निकल लेंगे.??
क्युकी भारतीयों के भूल जाने की आदत ऐसे व्यापारियों के हित में है...
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