Friday, May 25, 2012

मुझे क्या पता जूता कहाँ काट रहा है...

जिसका जूता है और जिसका पाँव है, पता तो उसी को होगा न की कहाँ काट रहा है और कितना। शेष जन या तो सहानुभूति जता सकते हैं या फिर शिष्टाचार। या फिर कटे-छिले पर नमक छिड़ककर आनंद उठा सकते हैं।


कहा भी गया है- "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" , लेकिन जब उपदेशकर्ता पर स्वयं आ बनती है वह जार-बेज़ार होकर रो पड़ता है। उस समय उसके खुद के उपदेश उसके काम नहीं आते।


एक ही घर में रहने वाले भी प्रायः एक-दुसरे की मनः स्थिति से अनजान होते हैं और कब क्या बोला जाए इसका सही अनुमान नहीं लगा पाते और फलस्वरूप स्थिति सँभालने के बजाये और बिगड़ जाती है। ऐसा ही कुछ हर जगह होता है। फिर चाहे वो घर हो दफ्तर हो अथवा ब्लॉगजगत ।


जो भुक्त भोगी है वह परिस्थिति को बेहतर समझता है, इसके विपरीत जो उस दौर से गुजरे नहीं हैं , वे समय आने पर ही समझते हैं।


एक सहेली ने एक बार कहा था - जो अज्ञानी हैं , वही सब प्रकार के भयों से मुक्त हैं और वही खुश भी हैं। दूसरी ने उसकी बात काटते हुए कहा- "जो ज्ञानी हैं वे ही सत्य से परिचित हैं और वे ही खुश हैं " --- फिर प्रश्न उठा, जो न ही ज्ञानी हैं और न ही अज्ञानी , उनका क्या...?


वैसे मेरे विचार से तो पूर्ण ज्ञानी कोई है ही नहीं अधिकतर लोग अपने अधूरे ज्ञान के झूले पर सवार होकार लम्बी-लम्बी पेंगें भरते हैं। अतः खुश तो कोई अज्ञानी ही हो सकता है , जिसे दुःख, सुख, भूत-प्रेत, चोर-उच्चक्के , मान-अपमान, किसी भी बात का ज्ञान ही न हो...बस अपने खयाली पुलाव बना-बना कर खुश रहता हो........


कहा भी गया है ---


" Ignorance is bliss"


Zeal

10 comments:

Rajesh Kumari said...

दो कहावतों से प्रतिक्रिया देना चाहूंगी ..(१).घायल की गति घायल जाने
(२) कब्र का हाल मुर्दा ही जाने

Maheshwari kaneri said...

सही कहा दिव्या जी आज अज्ञानी ही अधिक सुखी और खुश रहते है...उन्हें मान अपमान का कोई परवाह नहीं होता है......

vineet kumar singh said...

आज के दौर में ज्ञानी होने का दंभ सभी को हो गया है...अपने अन्दर की अज्ञानता को कोई नहीं देखना चाहता है....पर अगर हम अपने अन्दर की अज्ञानता को जान लें तो सारी परेसनियों का हल निकल सकता है और साथ ही बहतु कुछ सिखने को मिल सकता है पर इन्सान के अन्दर का अहम् उसे ऐसा करने से रोकता है...साथ ही जो ज्ञानी है आज उसे कोई नहीं सुनता है क्युकी यहाँ भी अल्पज्ञानी या अज्ञानी या खुद से निर्णित ज्ञानी का अहम् उसके ज्ञान के प्रकाश के आड़े आ जाता है .... अतः सभी का जड़ ये हमारा अहम् ही है....हमें अपने अन्दर महल बना चुके इस अहम् को मारना होगा बाकि सब अपने आप ठीक और व्यवस्थित होता जायेगा

Anonymous said...

zeal जी आपने अपने लेख मैं पूछा है की जो ना ज्ञानी है और नाही वो अज्ञानी है उनका क्या?

तो इसका जवाब यह है की वह लोग ज्ञानी और अज्ञानी लोगों से ज्यादा दुखी है...........

अरुण चन्द्र रॉय said...

सही कह रही हैं आप...

दिवस said...

सर्वगुण सम्पन्न तो कोई नहीं है। पूर्ण ज्ञानी भी कोई नहीं किन्तु अपनी क्षमता के अनुसार जो अनुमान लगा सके वही कुछ पा सकता है। जो आनुमान लगाना ही न चाहे वही अज्ञानी कहलाता है। हर स्थिति में खुश सभी रहना चाहते हैं और कहीं न कहीं अपनी ख़ुशी ढूंढ ही लेते हैं। फिर चाहे वह ख्याली पुलाव बना कर खुश रहे या उस पुलाव का मज़ा हकीकत में उठा कर।
यह सत्य है कि जिस पर बीता उसे ही पता है। उदाहरण आपने सटीक दिया कि जिसका जूता उसे ही पता है कि वह कहाँ काट रहा है। जो सहानुभूति रखे, वह उस दर्द को अपना समझता है जो उसे हुआ ही नहीं। यह भी क्या कम है? अपने प्रिय के दर्द से आहत होने वाला उस दर्द को मिटा भले ही न सके किन्तु कम तो कर ही सकता है। मानसिक सांत्वना बहुत बड़ी औषधि है। कहा गया है न कि लडखडाते तुम हो किन्तु गिरता मैं हूँ। चोट तुम्हे लगती है किन्तु पीड़ा का आभास मुझे भी होता है।
शिष्टाचार करने वाला केवल इतिश्री ही कर सकता है। उसे कोई फर्क नहीं कि आपका दर्द ख़त्म होता है या और बढ़ता है। अपना शिष्टाचार निभाकर बस आपकी नजरों में हीरो बन जाना ही उसका लक्ष्य है।
नमक छिड़कर आनंद उठाने वाला सबसे निकृष्ट है। दूसरों की पीड़ा में आनंद उठाने वाला केवल पीड़ा में आनंद ढूंढता है। उसे आनंद में आनंद कभी दिखाई नहीं देता।
ऐसे में कोई प्रवचन देता है तो कोई सच में दर्द बांटता है तो कोई नमक छिडकता है।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aapke bichaaron se purntaya sahmat hoon ...

udaya veer singh said...

Analysis of river always provide water ......good content

Bikram said...

acgtually i think those who can play the part of being a AGHYANI are the best and successful in todays day and age..

educated people are doing what not we have seen in a few episodes of a show .. so wht use are educated people


Bikram's

Bharat Bhushan said...

गुरु नानक देव जी ने कहा है-
जो नर दुख में दुख नहिं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह अभिमाना।
हरष शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा।
काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं, तिन्ह यह जुगुति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों, ज्यों पानी सों पानी।।

यह ऐसी परिभाषा है जो ज्ञानी पर भी लागू होती है और अज्ञानी पर भी. लेकिन पता नहीं क्यों यह ब्लॉगरों पर लागू नहीं होती :))