आज सोनी चैनल पर 'इन्डियन आयडल' प्रोग्राम में सुपर स्टार राजेश खन्ना जी पर श्रद्धांजलि प्रोग्राम का आयोजन देखकर मन में एक बार फिर यही आया कि काश उनके सम्मान में इनता भव्य समारोह उनके जीते जी किया होता तो वे भी खुश हो लेते मृत्यु से पूर्व, और वही सच्ची श्रद्धांजलि होती एक कलाकार के लिए। लेकिन नहीं!.. दुनिया का दस्तूर भी अजब है , जब वे चले जाते हैं तो लोग उनके सम्मान में बहुत कुछ करते हैं , लेकिन उनके जीते-जी , उन्हें बिसरा देते हैं....
जाने चले जाते हैं कहाँ , दुनिया से जाने वाले.........
कैसे ढूंढें कोई उनको, नहीं क़दमों के भी निशाँ....
Zeal
13 comments:
कल उसी प्रोग्राम में मैने जीतेन्द्र को कहते पाया " a person dies two times , once when his greatness dies and second time when he physically dies "
राजेश खन्ना को सम्मान ना मिलने का सबसे बड़ा कारण था उनके चरित्र की कमजोरी . शराब और पत्नी से इतर तमाम औरतो से उनके संबंधो ने उनको लोगो से अलग कर दिया .
कमजोर चरित्र अच्छे काम पर हमेशा भारी पड़ता हैं
और अभी भी सम्मान केवल और केवल उनके काम का हो रहा हैं
अगर किसी के दामाद को अपने ससुर की अर्थी की गाड़ी से उनकी लिव इन पार्टनर को उतारना पडे तो जील आप समझ सकती हैं सम्मान का अर्थ क्या हो सकता है
यहाँ तो मरने के बाद सारे गुण दिखायी पड़ते हैं..
ये इस दुनिया का रिवाज है ...
बदलने से रहा !
बिलकुल सही बात कही आपने..
स्टार्स को तो छोड़िये आम लोगों का भी वही हाल है.. मने के बाद उसकी सारी अच्छाइयां याद की जाती हैं
दस्तूर जो ठहरा. इज़्ज़त मिलेगी तो मरने के बाद ही. जीते जी अपनी आशाएँ-निराशाएँ उठा कर चलना होता है. यह बोझा कैसे उठाया इसकी समीक्षा लोग बाद में करते रहते हैं. दस्तूर जो ठहरा.
सादर नमन |
सही विचार |
रचना जी , प्रशंसा तो व्यक्ति की प्रतिभा की ही करी जाती है। किसी के व्यक्तिगत जीवन में झांकना तो मुझे अनुचित और निंदनीय लगता है।
जील
चरित्र इन्सान का होता हैं और सम्मान / बदनाम इन्सान होता हैं . हम कितने भी पढ़े लिखे क्यूँ ना हो अगर चरित्र से कमजोर हैं तो कुछ नहीं हैं . और राजेश खन्ना इत्यादि का पूरा जीवन खुली किताब होता हैं , इसमे झांकने जैसा कुछ नहीं होता हैं .
धर्मेन्द्र ने जब शायद लोक सभा का परचा भरा था तो अपनी पत्नी का ही नाम दिया था , और उस समय असंख्य प्रश्नों की बौछार हुई थी की पत्नी तो हेमा भी हैं [ इस्लाम धर्म से निकाह हुआ था } फिर उनका भी नाम देना चाहिये था .
काम की सरहाना हुई इसीलिये पूरा प्रोग्राम था , और जो जीतेंद्र , उनके बचपन के मित्र हैं ने कहा वो भी सत्य हैं और जो आज उनकी लिव इन पार्टनर अनीता आडवानी कह रही हैं वो भी सच हैं
अब ये हमारे ऊपर हैं की हमारे मन में किस चीज के प्रति सम्मान हैं , हां उनका काम निसंदेह सम्मान का अधिकारी हैं
सार्थक चिंतन. लेकिन जग की रीत यही है. जिन बुजुर्गों को हम दो वक्त का खाना भी ढंग से नहीं देते, उन्ही की तेरहवीं या श्राद्ध में दिल खोल कर खर्च करते हैं.
रचना जी, मेरे आलेख का विषय है "मरणोपरां क्यों आखिर , जीते-जी क्यों नहीं " ? आप विषयांतर कर रही हैं। ..Thanks.
Dharmendar ji ko kisi patarkaar ne pucha ki aapne kitni ladkeeyo ko pyaar kiya hai .unhone kaha ki mat pucho ye sawaal agar sachaai bataau to aadhi mubai ki orto kaa talaak ho jayega .eskaa matlab ye hai ki kisi ki niji jindgi me mat jhaakho uski sirf partibha dekho . Duniya me n jaane koin kya kr raha hai. Please....
जील
आप ने मरणोपरांत कहा इसीलिये कमेन्ट दिया
जिस आदमी का चरित्र सही नहीं होता हैं जीते जी नहीं मरने के बाद ही उसके काम को सराहा जाता हैं क्युकी उसके सही काम के ऊपर उसका गलत चरित्र भारी पड़ता हैं और ये मै केवल इसी पोस्ट के सन्दर्भ और राजेश खन्ना के लिये कह रही हूँ
विषयांतर नहीं हैं मेरी नज़र में आप की में हो तो आप कमेन्ट हटा सकती हैं
क्युकी आप ने कारण पूछा इसी लिये कहा पोस्ट पढने के बाद
दबे ढंके सब कुछ हो और किसी में प्रतिभा हो क़ाबलियत हो वो पढ़ा लिखा तो क्या उसके गलत कृत्य को भी स्वीकार करना होगा महज इस लिये क्युकी वो पोपुलर हैं ??? आखरी कमेन्ट हैं जील सो नो ओफ्फेंस
Rachna, It is unfair to get angry every now and then and threatening of deleting comments etc...
Post a Comment