आजादी मिले 65 वर्ष बीत गए और संविधान बने 63
वर्ष। लेकिन क्या भारतवर्ष में तरक्की हुयी है? हम जहाँ थे वहीँ हैं या फिर
और पीछे चले गए हैं ? इतने वर्षों में क्या तरक्की की है हमने ?
अशिक्षित बच्चों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है , ये नहीं जानते की 'गणतंत्र दिवस' और स्वतंत्रता दिवस क्या है। उनके लिए तो इस दिन लड्डू मिल जाते हैं बस यही है इसकी अहमियत।
आधी आबादी जो भारत की सड़कों पर पैदा होती है और फुटपाथ किनारे दम तोड़ देती है क्या ये गणतंत्र दिवस उनके लिए भी है ?
ये झंडा रोहण बड़े-बड़े आफिस , दफ्तरों और संस्थानों तक सीमित है। क्या लाभ इस दिवस का ,जब तक हर नागरिक खुशहाल न हो , स्वस्थ न हो , निर्भय न हो और अनेक अधिकारों से वंचित न हो तब तक।
आजादी के समय नेहरू ने देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांटा। आज ये विदेशी सरकार अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के नाम पर देशवासियों को बाँट रही है।
देश के लिए जज्बा ही कम हो गया है ,
लोगों के दिलों में स्वाभिमान भी मर रहा है,
अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी छोड़ दिया है,
आवाज़ ऊंची करने में भी सहमने लगे हैं देशवासी,
अब ये कहने में भी डरते है की 'आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है',
अब सरकार के अत्याचार से डरकर 'खिलाफत' और "असहयोग आन्दोलन" भी नहीं करते,
एक विदेशी महिला २ अरब जनता को अपने इशारों पर नचा रही है और हम "भारत छोडो" कहते हुए भी डरते हैं,
रामलीला मैदान में 'जलियावाला बाग़ काण्ड' दोहराया जाता है और हम चुप रह जाते हैं।
मीडिया बिकी हुयी है , लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छिनी जा रही है , क्या हम वाकई आजाद भारत में रह रहे हैं ?
अब देश में वालमार्ट लाया जाएगा , अब 'दांडी मार्च' नहीं होते। स्वदेशी से किसी को कोई लगाव नहीं ।
अब साधू संतों और भगवा का अपमान किया जाता है।
अब हमारे पवित्र ग्रंथों पर को बैन लगाने की जुर्रत करते हैं कुछ देश।
भारत में आतंकवादियों को सजा नहीं दी जाती।
हाथी ढकने पर करोड़ों व्यय पर गरीबों को कम्बल नहीं दी जाती ।
किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री के चेहरे पर शिकन नहीं आती ।
64 सालों का गणतंत्र !! गजब है हमारी उपलब्धियां !
धन्य है भारत ! धन्य हैं भारतवासी!
कभी-कभी देश के बारे में सोचा भी कीजिये ...
"गणतंत्र की शुभकामनाएं" कहकर खानापूर्ति न कीजिये...
Zeal
अशिक्षित बच्चों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है , ये नहीं जानते की 'गणतंत्र दिवस' और स्वतंत्रता दिवस क्या है। उनके लिए तो इस दिन लड्डू मिल जाते हैं बस यही है इसकी अहमियत।
आधी आबादी जो भारत की सड़कों पर पैदा होती है और फुटपाथ किनारे दम तोड़ देती है क्या ये गणतंत्र दिवस उनके लिए भी है ?
ये झंडा रोहण बड़े-बड़े आफिस , दफ्तरों और संस्थानों तक सीमित है। क्या लाभ इस दिवस का ,जब तक हर नागरिक खुशहाल न हो , स्वस्थ न हो , निर्भय न हो और अनेक अधिकारों से वंचित न हो तब तक।
आजादी के समय नेहरू ने देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांटा। आज ये विदेशी सरकार अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के नाम पर देशवासियों को बाँट रही है।
देश के लिए जज्बा ही कम हो गया है ,
लोगों के दिलों में स्वाभिमान भी मर रहा है,
अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी छोड़ दिया है,
आवाज़ ऊंची करने में भी सहमने लगे हैं देशवासी,
अब ये कहने में भी डरते है की 'आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है',
अब सरकार के अत्याचार से डरकर 'खिलाफत' और "असहयोग आन्दोलन" भी नहीं करते,
एक विदेशी महिला २ अरब जनता को अपने इशारों पर नचा रही है और हम "भारत छोडो" कहते हुए भी डरते हैं,
रामलीला मैदान में 'जलियावाला बाग़ काण्ड' दोहराया जाता है और हम चुप रह जाते हैं।
मीडिया बिकी हुयी है , लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छिनी जा रही है , क्या हम वाकई आजाद भारत में रह रहे हैं ?
अब देश में वालमार्ट लाया जाएगा , अब 'दांडी मार्च' नहीं होते। स्वदेशी से किसी को कोई लगाव नहीं ।
अब साधू संतों और भगवा का अपमान किया जाता है।
अब हमारे पवित्र ग्रंथों पर को बैन लगाने की जुर्रत करते हैं कुछ देश।
भारत में आतंकवादियों को सजा नहीं दी जाती।
हाथी ढकने पर करोड़ों व्यय पर गरीबों को कम्बल नहीं दी जाती ।
किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री के चेहरे पर शिकन नहीं आती ।
64 सालों का गणतंत्र !! गजब है हमारी उपलब्धियां !
धन्य है भारत ! धन्य हैं भारतवासी!
कभी-कभी देश के बारे में सोचा भी कीजिये ...
"गणतंत्र की शुभकामनाएं" कहकर खानापूर्ति न कीजिये...
Zeal
9 comments:
सही कहा आपने तंत्र गण पर हावी होता जा रहा है !!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (26-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
आशा है ये दिन बहुरेंगे।
जिस गणतंत्र को ,स्वतंत्रता को पाने में हमारे वीर शहीदों ने बरसों तक तन मन धन सब न्योछावर कर दिया उसे मिटाने में ये प्रशासन कुछ ही वक़्त लगाएगा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी छीनना चाहते हैं जनता को जागना ही होगा ,सही इंसानों का चयन करके ही अपने देश की बागडोर उनके हाथों में देनी होगी ,जय हिन्द ,बन्दे मातरम
सही घोड़ों को चुनने से भी कुछ सिद्ध नहीं होगा
अंतत : बागडोर तो इन्हीं दलपतियों के हाथों
में होगी.....
सही घोड़ों को चुनने से भी कुछ सिद्ध नहीं होगा
अंतत : बागडोर तो इन्हीं दलपतियों के हाथों
में होगी.....
देखिये कब सच्चे अर्थों में लोकतन्त्र स्थापित हो पाता है..
"गण" तंत्र को चलाअ गण को चलाना चाहए ,यहाँ "तंत्र" गण को चला रहा है.-उम्दा प्रस्तुति
New postमेरे विचार मेरी अनुभूति: तुम ही हो दामिनी।
गण पर तंत्र हावी है ..
बढ़िया सम -सामयिक चिंतन
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