Saturday, July 17, 2010

क्या गर्भ में पल रहा शिशु भी हमारी बातें सुनता है?

Physics prodigy - Tathagat Avataar Tulsi !

बाईस वर्ष की आयु में प्रोफेसर बने 'तथागत अवतार तुलसी ' ने ९ वर्ष में दसवी कक्षा तथा १० वर्ष में बी एस सी कर ली थी । १२ वर्ष में एम् एस सी की डिग्री हासिल कर ली ।

विश्व के सबसे कम उम्र के प्रोफेसर ने आखिर ये सब कैसे किया?

चलिए जानने की कोशिश करते हैं दिमाग के विकसित होने की प्रक्रिया को ।

भ्रूण का दिमाग गर्भ के अन्दर ही विकसित होता है ।

तीन हफ्ते के गर्भाधान के बाद ,दिमाग विकसित होने लगता है । इस समय दिमाग में कोशिकाएं बहुत तेजी से बनने लगती हैं , तकरीबन एक मिनट में ढाई लाख कोशिकाएं। २० हफ्ते के बाद ये प्रक्रिया धीमी हो जाती है , तथा लगभग ६ महीनों में दिमाग पूरी तरह विकसित हो जाता है ।

गर्भ के अंतिम तीन महीनों में भ्रूण का मस्तिष्क पुरी तरह से अपने वातावरण को समझने लगता है , वह बाहर की आवाजों को भी सुनता है और पहचानने लगता है । वह अपनी माँ की तथा बार-बार सुनी जाने वाली आवाजों को पहचानने लगता है और उसका आदी हो जाता है ।

क्या गर्भवती स्त्री के आचार विचार गर्भ में पल रहे भ्रूण को प्रभावित करते हैं?

जी हाँ ! स्त्री के खान-पान , मनोदशा, उसके क्रिया कलाप , उसके मन में आने वाले विचार आदि, गर्भ में पल रहे भ्रूण के दिमाग को प्रभावित करते हैं। शराब पीने वाली स्त्री के गर्भ में पल रहा भ्रूण अनेको विकृतियों से ग्रसित हो जाता है । दिमाग से कमज़ोर तथा मानसिक रूप से विकलांग हो जाता है। उसमे बिहेवियर सम्बन्धी दोष भी आ जाते हैं।

जैसे अभिमन्यु ने गर्भ में , चक्रव्यूह में घुसने की कला गर्भ में ही बाहरी आवाज़ को सुनकर सीखी थी , उसी प्रकार गर्भ के अंतिम तीन महीनों में गर्भ में पल रहे शिशु पर बाहरी वातावरण का बहुत प्रभाव होता है।

यदि गर्भवती स्त्री शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तथा अच्छे वातावरण में रह रही है तो शिशु का बुद्धिमान होना निश्चित है। अच्छी पुस्तकें पढने, अच्छी चर्चाओं के कहने सुनने का लाभ भी गर्भस्त शिशु को मिलता है ।

तथागत अवतार तुलसी के पिता का कहना है कि उन्होंने कुछ प्रयोग किये जिसके कारण तुलसी इतना प्रतिभावान है। इन प्रयोगों की सच्चाई तो नहीं मालूम , लेकिन हाँ , हर बच्चा किसी न किसी ख़ास प्रतिभा से सम्पन्न होता है , जिस पर पूरा ध्यान देकर उसे विकसित किया जा सकता है और देश में बहुत से 'तथागत अवतार तुलसी' हो सकते हैं।

हम अपने पूरे दिमाग का केवल एक से दो प्रतिशत ही उपयोग करते हैं। वैज्ञानिक न्यूटन ने ११ प्रतिशत उपयोग किया था। यदि हम चाहें तो हम भी अपने दिमाग का कुछ और प्रतिशत उपयोग कर सकते हैं।

81 comments:

ashish said...

अच्छा ज्ञानवर्धक आलेख. तथागत तुलसी का इस कम उम्र में इतनी ऊँचाई को छूना प्रभावशाली है. आपने दिमाग की संरचना और उसके विकास के कारको पर प्रकाश डाला, उसके लिए हम आपके आभारी है

एक बेहद साधारण पाठक said...

बहुत अच्छा लेख है
हम तो कब से कह रहे हैं महाभारत और रामायण में पहले से लिखा है क्या करना चाहिए और क्या नहीं
जो मानेगा फायदा उठाएगा

एक बेहद साधारण पाठक said...

दिव्या जी
इस आलेख के लिए एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद ... ऐसा विषय पढने के बहुत दिन से अभिलाषा थी ..... आज पूरी हो गयी ....
टेक्नोलोजी , ग्रन्थ , सजीव उदाहरण तीनो एक साथ एक ही लेख में .... क्या बात है ... आनंद आ गया

एक बेहद साधारण पाठक said...

स्पष्टीकरण :
महाभारत और रामायण से मेरा मतलब इतिहास से है
टेक्नोलोजी का मतलब विज्ञान से है

Anonymous said...

बढिया लेख!

पी.एस .भाकुनी said...

....जो बातें हमारे धर्म ग्रन्थ और हमारे पूर्वज सदयों पहले से कहते आ रहें हैं आज विज्ञानं उनको प्रमाणित कर रहा है और वे बातें विज्ञानं की कसौटी पर भी खरे उतर रहे हैं , अभिमन्यु प्ररक्रण एक मिसाल भर है, बहरहाल एक ज्ञान वर्धक लेख (पोस्ट ) हेतु आभार..........

Avinash Chandra said...

achchha laga ye lekh bhi

VICHAAR SHOONYA said...

अच्छा लेख लिखा. लगातार हिंदी में लिख रही हैं बड़ा अच्छा लगता है. पहले आपके जहाँ भी कमेंट्स देखता था तो वो अंग्रेजी में होते थे. उन्हें पढने में बड़ा दर्द होता था. हिंदी आँखों से दिल में उतर जाती है और अंग्रेजी पता नहीं कहाँ चली जाती है. हिंदी के लिए धन्यवाद. अब आपके लेख कि बात करें तो मैं यही कहूँगा कि आपकी बात सत्य है कि गर्भस्त शिशु बाहरी वातावरण से प्रभावित होता है. तथागत तुलसी एक विलक्षण प्रतिभा संपन्न बालक है या नहीं इस पर विदेशी वैज्ञानिको के एक बोर्ड ने जाँच कर कहा था कि वो मौलिक विचारक ना होकर सिर्फ एक रटन्तु तोता है. हो सकता है विदेशी हमसे जलते हों पर जब वो नोबेल प्राइज जीतने के लिए शोध करने कि बात करता है या कहता है कि उसका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में आना चाहिए (IIT का सबसे छोटा फेकल्टी मेम्बर होने के लिए) तो बड़ा अजीब लगता है कि एक उच्च प्रतिभा शाली व्यक्ति इतनी छोटी चीजो कि कमाना कर रहा है. तब उन विदेशी वैज्ञानिको के कथन में सच्चाई दिखती है. बाकि भगवान जाने क्या है.

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा आलेख ............बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

ZEAL said...

@ Vichaar shoonya-

विदेशी तो हम भारतीयों से जलते ही हैं । जब भी कोई प्रतिभाशाली भारतीय अपने देश को गौरव दिलाता है तो विदेशियों को तुरंत कष्ट होने लगता है ।

जब बनारस के गोदायी महाराज ने विदेश में शानदार तबला वादन की प्रस्तुति दी, तो भी उन लोगों को लगा की इनके हाथों में कोई मशीन है जिसकी जांच होनी चाहिए।

तथागत तुलसी ने विदेशी कंपनी का ऑफर ठुकरा दिया तो इन लोगों को ईर्ष्या होने लगी। रट्टू तोता कह कर बदनाम करना कोई विदेशियों से सीखे।

सुबीर भाटिया का दिमाग तो जार्ज बुश ने इतना मेहेंगा खरीदा ! अरे ज़माना लगेगा इन लोगों को हम भारतीयों का मुकाबला करने में.

एक भारतीय कम्पनी में नौकरी का निर्णय लेकर , 'तथागत तुलसी' ने अपने देश का गौरव बढाया है। पैसे के लोभ में ज्यादातर लोग विदेश जाना ही पसंद करते हैं। तथागत जैसे लोग विरले ही होंगे।

तथागत का नाम गिनीज़ तथा लिम्का बुक में तो पहले से ही है। नोबेल पुरस्कार की कामना रखना अनुचित नहीं है। इतना बड़ा पुरस्कार भौतिकी के क्षेत्र में किसी को मिलना सम्मान की बात है। तथागत ये सम्मान जरूर पायेगा . सम्मान की कामना स्वाभाविक है.

कडुवासच said...

... बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!

Satish Saxena said...

धाराप्रवाह हिन्दी में लिखे इस लेख के लिए शुभकामनायें !

Anonymous said...

whoever you are but a doctor. maybe an ex-wannabe medico.

ZEAL said...

@-anonymous,

Thanks for your kind opinion.

ZEAL said...

.
Satish ji,

aapki prerna ka hi parinaam hai

thanks.
.

प्रवीण पाण्डेय said...

गर्भावस्था के समय सुविचार व अध्ययन, इस धारणा को सदियों से बल देते आये हैं।

सदा said...

बहुत ही अच्‍छा, एवं जानकारीयुक्‍त यह आलेख जिसके लिये आपको बहुत-बहुत बधाई ।

Amit Sharma said...

इस आलेख के लिए एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद ...

Himanshu Mohan said...

दिमाग़ के उपयोगी - सक्रिय प्रतिशत को बढ़ाने के उपाय?
अच्छी पोस्ट का आभार।

Amit Sharma said...

एक बेहद उम्दा आलेख ............बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

rashmi ravija said...

बहुत ही उपयोगी पोस्ट और सारी बातें बहुत ही सरलता से समझाईं हैं...शुक्रिया

एक बेहद साधारण पाठक said...

वो करते हैं बड़ी बड़ी खोज
तभी तो बनते हैं बड़े बड़े जोक

वो = विदेशी
जोक = चुटकुले
ऐसे मन में आ गया तो लिख दिया .... अभी अभी बनाया है

सम्वेदना के स्वर said...

दिव्या बहन!
तथागत ने सचमुच मान बढाया है, जननी का जन्मभूमि का... ऐसे ही एक लाल ने पहले भी बिहार की भूमि पर जन्म लिया था..श्री वशिष्ठ नारायन सिंह, गणित के जादूगर, इण्टर में उनके लिए पटना विश्वविद्यालय ने स्नातकोत्तर के पर्चे अलग से दिए गए और वो अव्वल नम्बर से पास हुए... उन्हें जन्मभूमि रास नहीं आई, दुनिया की बेहतरीन युनिवर्सिटी से जुड़े रहे... अंत में जब वापस लौटे तो पागल होकर... उनकी मार्मिक अवस्था आज भी मेरे बाल मस्तिष्क से नहीं जाती. तब समझ नहीं थी, अब वो नहीं हैं. पागलपन में भी वे कॉम्प्लेक्स प्रोब्लेम आराम से हल कर लेते थे..
रही गर्भस्थ शिशु की बात, तो मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी... नीचे लिंक है. सच्ची घटना..एक पहलू यह भी है …
http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/03/blog-post_14.html
सलिल

Arvind Mishra said...

रोचक और जानकारीपूर्ण -आभार !

ZEAL said...

.
सलिल जी ,

.श्री वशिष्ठ नारायन सिंह, जी के बारे में ज्ञात हुआ, दुःख हुआ। निश्चित ही यह देश का नुकसान है। बिहार ने भारत माता को अनेक प्रतिभाशाली सपूत दिए हैं। हमे नाज़ है अपने बिहार पर । तथागत ने सचमुच ही राष्ट्र को गौरवान्वित किया है। लिंक से आपकी पोस्ट पढ़ी , बहुत सुन्दर और सत्य लिखा है।

आभार
.

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

Read your presnt blog.

Will look forward to the next interesting blog from you.


Arth kaa
Natmastak charansparsh

शोभना चौरे said...

बहुत बढिया सकारात्मक आलेख |ऐसे आलेख प्रेरक होते है \आभार

डा० अमर कुमार said...
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डा० अमर कुमार said...
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Taarkeshwar Giri said...

. महाभारत में अर्जुन ने द्रोपदी को चक्रव्हुय तोड़ने के बारे जब बताया था तो उस समय उनका पुत्र अभिमन्यु माँ के पेट में ही था.

मगर आज के इन्सान को सेक्स का आनद लेने से फुर्सत हो तब तो.

बहुत ही काबिले तारीफ लेख

Please read my blog : www.taarkeshwargiri.blogspot.com

डा० अमर कुमार said...
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

दिव्या,
तुमरे इलजाम के जवाब में हमको चलकर तुमरे अदालत में आना पड़ा... तथागत वास्तव में अवतार है... इसलिए नहीं कि ऊ बिहार में पैदा हुआ, इसलिए कि ऊ भारत भूमि पर जनम लिया है... हमरा सुरूए से इ मानना है कि हर महान आदमी का आत्मकथा पीछे से लिखा जाता है.. रिवाईण्ड सैली में... इसलिए तथागत के पिता जी का ई कहना कि ऊ प्रयोग करते थे, कितना सही है या गलत, इसपर तुमने भी प्रस्न चिह्न लगाया है... सच्चाई है तो बस यह कि वह जुबक अद्भुत प्रतिभा का मालिक है... बेदिक काल होता तो उसको निस्चित भगवान का अवतार कह देते..
हमारे समाज में आज भी गर्भवती स्त्री को अच्छे बाताबरन में खुस रखने का कोसिस किया जाता है..गर्भ में बच्चा पर माँ का केतना असर होता है इसके बारे में त बहुत सा अंधबिस्वास भी है, मगर बहुत सुंदर है.. जईसे होने वाली माँ को सफेद चीज खाने को देना, ताकि बच्चा गोरा हो अऊर कला चीज एकदम नहीं, ताकि बच्चा काला न हो. ई अंधबिस्वास भी ई बिस्वास को पक्का करता है कि माता के गर्भ में सिसु पर असर होता है, बाताबरन का, परिबेस का अऊर माता के मन के भाव का.
तथागत त रोज रोज पैदा नहीं होते, लेकिन पटना का सुपर 30 भी केतना अईसा बच्चा को अपना गर्भ में समेट कर एक तपस्या में लगा है.
भगबान से मनाइए कि ई जो सुपर 30 के गर्भ में बच्चा पल रहा है, उसपर नेता अऊर राजनीति का कुदृष्टि नहीं पड़े, नहीं त गर्भपात सुनिस्चित है! आमीन!!

संजय @ मो सम कौन... said...

@ यदि हम चाहें तो हम भी अपने दिमाग का कुछ और प्रतिशत उपयोग कर सकते हैं।
-
यदि इस बिन्दु पर कुछ प्रकाश डाल सकें तो हम जैसे बहुतों का भला होगा।

डा० अमर कुमार said...
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

@ डॉ. अमर कुमारः
आप त बतिया को धर लिए!! हम त कहबे किए हैं कि अंध्बिस्वास है बाकी केतना सुंदर है... बात त भावना का हो रहा है कि लोग मानता है कि अईसन होता है... हम ईहो कहे हैं कि बड़ा लोग का कहानी पिछला पन्ना से लिखा जाता है.. लड़का पेंटर हो गया त लोग कहता है कि बचपने से कागज पर डिजाईन बनाता था.. वईसहीं गोरा बच्चा होने से लोग बोल दिया कि नारियल खाने के कारन हुआ है.. अऊर करिया होने से बोलेगा तिल का लड्डू खाने से..
जईसे लोक कथा अऊर लोक गीत का कोनो लेखक अऊर संगीतकार नहीं होता है, वईसहीं ई अंधबिसवास में भी अंध, अढाई अक्षर है अऊर बिस्वास साढे तीन... रवि नगाईच जी कह गए हैं कि बिस्वास के लिए कोनो सबूत जरूरी नहीं है, अऊर अबिस्वास के लिए कोनो सबूत काफी नहीं.
बाकी त आप बिद्वान आदमी हैं... तर्क से, प्रयोग से, किताब से, सोध से बात काट सकते हैं, सताब्दि से चला आ रहा (अंध) बिस्वास काटना बहुत मुस्किल है...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

दिमाग का इस्तेमाल..... मुश्किल है पर..... कोशिश करूंगा.....
पैदाइशी होशियार बच्चे का 'फ़ॉर्मूला' साझा करने के लिए धन्यवाद!
कलयुग के होने वाले अभिमन्यु का होने वाला पिता
हा हा हा........!

दीपक 'मशाल' said...

आज ऐसे लेखों की ही जरूरत है.. शुक्रिया दिव्या जी..
विचार शून्य जी की बात भी पढ़ी.. ऐसा भी नहीं कि ये संभव नहीं है.. हर बात में हम नहीं कह सकते कि ये लोग हमसे जलते हैं.. सच क्या है वो तथागत अवतार और वो लोग ही जानें.. लेकिन क्या ये संभव नहीं कि विलक्षण प्रतिभा होने के बावजूद उसमे अभी परिपक्वता की कमी हो यानि वो सामाजिक तौर पर वही सोच पा रहा हो जो एक २०-२२ साल का युवक सोचता है.. कामना करता है. या फिर कहीं उस पर उसके माँ-बाप का दबाव ना हो जल्द से जल्द आइन्स्टीन या स्वामी विवेकानंद बनने का...

Gyan Darpan said...

अच्छा ज्ञानवर्धक आलेख

डॉ टी एस दराल said...

अपनी असीमित ऊर्जा को इसी तरह के सार्थक लेखन में लगायें ।
एक डॉक्टर होकर भी इस विषय पर कभी सोचा नहीं ।
लेकिन अब लगता है अपनी गायनेकोलोजिस्ट पत्नी से विचार विमर्श करना ही पड़ेगा । डॉ अमर की टिपण्णी पढ़कर तो कम से कम यही लगता है ।

बधाई इस विषय पर सबको सोचने के लिए मजबूर करने के लिए , दिव्या जी ।

ZEAL said...

@ Dr Amar-

Thanks for the valuable opinion. The link given was indeed useful.

@-Salil bhai-

Baar-baar adalat mein aana.

ZEAL said...

Dr Daral-

vichaar vimarsh kar hume bhi batayein.

ZEAL said...

Himanshu ji, Think about consultation...lol

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ अमर जी

आपके कमेन्ट लेखक के लिए किसी संपत्ति से कम नहीं होते

अभी मेरे पास समय ना के बराबर है इसलिए एक समय बचाऊ नजरिया पेश कर रहा हूँ
कल सारा समय बेकार की बहस में पूरा हो गया
सुभद्रा निद्राधीन (सबकान्शस माइंड) थी आप सबकान्शस माइंड में स्टोर्ड कल्पनाओं से होने वाले प्रभाव पर तो सहमत होंगे ना ??
जब चक्रव्यूह भेदने की बात आयी तब तक उन्हें नींद आ गयी थी

मुझे लगता है आपको "डाइरेक्ट सुनने" वाली बात पर ही आपति है
पर जब लेख के शीषक पर "क्या" शब्द का प्रयोग हुआ हो तो मूल भावना में इस तरह दोष नहीं निकाला जा सकता

समय के आभाव की वजह से भागना पड़ रहा है आपका दिया लेख अवश्य पढूंगा भाषा संबंधी कोई परेशानी नहीं है

एक बेहद साधारण पाठक said...

एक समकालीन लेखक, विलियम स्तुकेले, सर आइजैक न्यूटन की ज़िंदगी को अपने स्मरण में रिकोर्ड करते हैं, वे 15 अप्रैल 1726 को केनसिंगटन में न्यूटन के साथ हुई बातचीत को याद करते हैं, जब न्यूटन ने जिक्र किया कि "उनके दिमाग में गुरुत्व का विचार पहले कब आया.

जब वह ध्यान की मुद्रा में बैठे थे उसी समय एक सेब के गिरने के कारण ऐसा हुआ. क्यों यह सेब हमेशा भूमि के सापेक्ष लम्बवत में ही क्यों गिरता है? ऐसा उन्होंने अपने आप में सोचा.यह बगल में या ऊपर की ओर क्यों नहीं जाता है, बल्कि हमेशा पृथ्वी के केंद्र की ओर ही गिरता है."

एक बेहद साधारण पाठक said...

उपरी कमेन्ट यहाँ से लिया है
hi.wikipedia.org

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अभिमन्यु..अभिमन्यु

अजय कुमार said...

अच्छा ,जानकारीपूर्ण लेख ।

प्रवीण said...

.
.
.
दिव्या जी,

बहुत सी अलग-अलग बातें हैं इस आलेख में...

"गर्भ के अंतिम तीन महीनों में भ्रूण का मस्तिष्क पुरी तरह से अपने वातावरण को समझने लगता है , वह बाहर की आवाजों को भी सुनता है और पहचानने लगता है । वह अपनी माँ की तथा बार-बार सुनी जाने वाली आवाजों को पहचानने लगता है और उसका आदी हो जाता है ।

जैसे अभिमन्यु ने गर्भ में , चक्रव्यूह में घुसने की कला गर्भ में ही बाहरी आवाज़ को सुनकर सीखी थी ।"


यदि गर्भ के छह माह में दिमाग व कान पूरी तरह बन जाते हैं तो गर्भस्थ शिशु सुन तो पाता ही होगा बाहरी आवाजों को...यद्मपि यह आवाजें बहुत ही हल्की होती होंगी उसके लिये...आखिर गर्भाशय के अन्दर Amniotic Fluid के Sac में है वह... पर क्या वह इन आवाजों का अर्थ भी समझ सकता है?... शायद नहीं...क्योंकि पैदा होने के बाद भी भाषा और खास तौर से नित्य प्रयोग में आने वाले अधिकांश शब्दों को समझने लायक बनने में दो से ढाई साल लग जाते हैं...

अभिमन्यु वाली कथा मिथक है... लेखक ने इस कथा के माध्यम से अभिमन्यु की वीरता-मृत्यु को ग्लोरिफाई किया है... अर्जुन जैसा योद्धा आखिर अपना सारा रण-कौशल अपने युवा पुत्र को क्यों नहीं देगा...समझ से परे है!

अब आता हूँ तथागत अवतार तुलसी पर... बहुत समय से पढ़ता आ रहा हूँ उनके व उनके पिता के बारे में... उनके पिता ने एक प्रतिभावान पुत्र पाने के लिये तथागत अवतार तुलसी के जन्म से पहले से ही अपने तथाकथित प्रयोग शुरू कर दिये थे... पर ऐसे अतिमहत्वाकाँक्षी माता-पिताओं की कमी नहीं दुनिया में... जो अपनी 'प्रतिभावान' संतान को 'महान' बनाने के लिये उन का बचपन तक छीन लेते हैं ।

संवाद एजेंसी पीटीआई की यह खबर भी आपकी इस पोस्ट के पाठकों को अवश्य पढ़नी चाहिये।


आभार!

...

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ प्रवीण शाह जी....

इस पर भी प्रकाश डालें

http://khabar.ibnlive.in.com/news/6546/3

माफ करें समय की कमी की वजह से सक्रियता से इस महत्वपूर्ण चर्चा में भाग नहीं ले पा रहा हूँ , इसलिए कुछ लिंक देकर ही योगदान कर पाउँगा ... मुझे लगता है पूरा इतिहास ग्लोरिअस है ग्लोरिफाइड नहीं ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छा लेख....लेख से ज्यादा टिप्पणियाँ ज्ञान वर्धन कर रही हैं....
हमेशा से सुनते आये हैं कि गर्भस्थ माँ को अच्छी पुस्तकें पढनी चाहियें ...अच्छी बातें सोचनी चाहियें ,अच्छा संतुलित आहार लेना चाहिए...जैसा वातावरण होगा वैसा ही बच्चे पर प्रभाव पड़ेगा...

आज भी हम कई बातों को महज़ इस लिए मान लेते हैं कि वो पहले लोग कहते हैं....सच तो यह है कि उन सब बातों के पीछे के विज्ञान से हम अनभिग्य हैं और अंधविश्वास का नाम दे देते हैं...भारत कि बहुत सी मान्यताएं जिन्हें अंधविश्वास कहा जाता है असल में वैज्ञानिक होती हैं...
इस लेख के लिए आभार

अनामिका की सदायें ...... said...

आज तक सुनते थे की गर्भस्थ माँ को अच्छी किताबे पढनी चाहिए अच्छे विचार रखने चाहिए आज उसका वैज्ञानिक तर्क मिल गया.

बहुत अच्छी जानकारी...हमारे काम न सही..हमारे आगे वालो के लिए काम आएँगी.

धन्यवाद.

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

सुज्ञ said...

सराहनीय लेख।
विज्ञानवादी बन्धुओं,यदि गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव वैज्ञानिकता से सिद्ध न भी हो,पर इसी शुभ भाव में माता शुभ विचार करे,शुभ कर्म करे,शुभ बातें करे तो आपका क्या बिखर जायेगा। वह अन्धविश्वास लाखो मनोग्रन्थियों पर श्रेष्ठ है,यदि वह अन्धविश्वास मानवता के भले के लिये विश्वास बन जाये।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

हमारे प्राचीन ग्रंथों में तो इसका बहुत बार उल्लेख हो चुका है। पर अपनी मानसिकता ऐसी बन गयी है कि जब तक पश्चिम मोहर ना लगा दे तब तक हम किसी भी तथ्य को मानते नहीं हैं।
अब तो आधुनिक विज्ञान ने भी इस बात की तस्दीक कर दी है।

प्रतुल वशिष्ठ said...

अभिमन्यु जैसे प्रतिभावान बालक दीर्घ जीवी नहीं होते. ईर्षालुओं द्वारा घेर कर मार दिए जाते हैं. या फिर 'पा' फिल्म के 'ओरो' की तरह एक नए प्रकार के 'प्रोगेरिया' रोग से ग्रसित मान नवेली फिल्मों की विषय-वस्तु बन जाते हैं. कम अवस्था में शिक्षा की लम्बी दौड़ को जीतने वाले तथागत के क्या हाथ आया : प्रोफेसरी, जो खोया है वह काफी अहमियत रखता है : बचपन, उन्मुक्तता का आनंद, भोलापन, मासूमियत भरी क्रिदायें. और ना जाने क्या-क्या.
यह जीवन केवल सफलता अर्जित करने के लिये नहीं मिला. जीवन को केवल जीना भी एक उद्देश्य हो सकता है. जिसका महत्व किसी पुरुषार्थ-चतुष्टय से कम नहीं.

P.N. Subramanian said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार.

ZEAL said...

.
प्रवीण शाह जी,

एक बच्चा ढाई साल का होने तक बहुत कुछ सीख जाता है। नवजात शिशु जिस प्रकार माँ पर निर्भर करता है, उसके सानिध्य में , रोते से चुप हो जाता है, तकलीफ में भी शांत हो जाता है। , सुकून से सोता है ....ये कहीं न कहीं ये व्यक्त करता है की बच्चा अपनी माँ को गर्भ से ही पहचानने लगता है।

यदि अभिमन्यु वाली कथा मिथक है, तो हमारे ग्रंथों में लिखी हुई सभी बातें मिथक कहलायेंगी, फिर हम, आप और तथागत भी , भविष्य में मिथक ही कहलायेंगे। आपको लगता है ,अर्जुन जैसा योद्धा आखिर अपना सारा रण-कौशल अपने युवा पुत्र को क्यों नहीं देगा...समझ से परे है!.....क्या आजकल के पिता अपने ज्ञान का दस % भी अपने बच्चों को देने की जेहमत उठा रहे हैं?

मुझे नहीं लगता की तथागत के माँ बाप ने उससे , उसका बचपन छीना है। बल्कि तथागत के माता पिता ने अपनी जिम्मेदारी का पूरी निष्ठां से वहन किया है तथा तुलसी को सामान्य से कई गुना बेहतर बनने में योगदान किया है.

आपके द्वारा दिए गए लिंक संवाद एजेंसी पर लेख पढ़ा। अफ़सोस है की लोग ईर्ष्या से युक्त होकर एक प्रतिभाशाली युवक को नीचा दिखा रहे हैं।

ZEAL said...

@-हमारे प्राचीन ग्रंथों में तो इसका बहुत बार उल्लेख हो चुका है। पर अपनी मानसिकता ऐसी बन गयी है कि जब तक पश्चिम मोहर ना लगा दे तब तक हम किसी भी तथ्य को मानते नहीं हैं।..

गगन जी,

बहुत सही बात कही आपने। हमारा दुर्भाग्य हैं की हम खुद पर विशवास नहीं कर पाते, अपितु पश्चिम की मोहर लगने का इंतज़ार करते हैं।

God knows when the slavery in our blood will vanish.

ZEAL said...

@-.सच तो यह है कि उन सब बातों के पीछे के विज्ञान से हम अनभिग्य हैं और अंधविश्वास का नाम दे देते हैं...भारत कि बहुत सी मान्यताएं जिन्हें अंधविश्वास कहा जाता है असल में वैज्ञानिक होती हैं...

sangeeta ji,

bahut sahi baat kahi aapne...purntah sehmat hun.

एक बेहद साधारण पाठक said...

@दिव्या जी
आपकी इस चर्चा के लिए मैं आपका एक बार फिर से धन्यवाद देता हूँ, आप सही मायनो में मन वचन कर्म से देश भक्ति कर रहीं हैं .........

जीवन की प्रयोगशाला से बड़ी कोई प्रयोगशाला नहीं होती
इस जीवन की प्रयोगशाला में सफल प्रयोगों को किसी महँगी मशीनों से बनी प्रयोगशाला में सफल प्रयोगों से अधिक सार्थक माना जाना चाहिए , हमें बस ये देखना चाहिए की अंत में सही कौन साबित हो रहा है ( हमारा प्राचीन या कहूं अवैज्ञानिक ज्ञान, या फिर कोई नयी खोज ) ??
मुझे लगता है की वो हमारे ही ज्ञान का प्रयोग करके हमसे बेहतर जीवन जीने में सफल हो जायेंगे और हम भारतीय बस तर्कों में उलझ कर रह जायेंगे
मैं श्रद्धा का पक्षधर हूँ अंध श्रद्धा का नहीं ( दोनों देशी विदेशी खोजो की बात कर रहा हूँ )
हम एक न्यूज लिंक पर किसी की प्रतिभा को पूरी तरह जज करके पता नहीं क्या साबित करना चाहते हैं ?? , अगर सच्चाई ( किसी भी विषय की) जाननी हो तो उन बुद्धिजीवीओं से जाननी चाहिए जो उस विषय से शुरू से जुड़े रहे हों

हमें ये तो मानना ही होगा की हमारे पूरवज सच में ब्रोड माइंडेड थे और हम उन बातों में थोड़ी सी भी श्रद्धा रखे बिना उसे पूरी तरह गलत साबित करने में लगे हुए हैं

एक बेहद साधारण पाठक said...

संगीता जी, गगन जी आप दोनों को भी धन्यवाद देता हूँ

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा आलेख!

अजित गुप्ता का कोना said...

आयुर्वेद में गर्भाधान संस्‍कार का उल्‍लेख है और पूरे नौ माह तक की दिनचर्या का उल्‍लेख है।

ZEAL said...

@-गौरव जी ,

आपको भी धन्यवाद । आप बहुत गंभीरता से विषयों का अध्यन करते है और चर्चा में, दिल से भागीदारी लेकर चर्चा को सार्थक बनाते हैं । आपके प्रयासों से समाज का लाभ तो होगा ही , साथ ही आपका ज्ञान निश्चित ही असीमित हो जायेगा। जिज्ञासा हमे बहुत कुछ सीखने को मजबूर करती है और हमे बहुत आगे तक ले जाती है। एक बार पुनः आपका आभार.

ZEAL said...

.
सभी पाठकों ने इसमें अपने विचार रखे और आपके इन प्रयासों से मैंने बहुत कुछ सीखा। आप सभी के सहयोग से मेरा जो ज्ञान वर्धन हुआ उसके लिए आप सभी की आभारी हूँ।
.

Coral said...

बहुत ही उम्दा जानकारी पूर्ण लेख है दिव्यजी आपका !

ZEAL said...

अजित जी ,

आपने सही बात कही । अथर्व-वेद के उपवेद , आयुर्वेद में गर्भाधान की प्रक्रिया का वर्णन है। कितनी ख़ुशी की बात है , की तथागत के माता पिता ने अपने शास्त्रों में वर्णित ऐसी बात को तवज्जो दी और अपने बच्चे के लिए सही समय तथा अनुकूल परिस्थिति का चयन करते हुए गर्भाधान का समय निश्चित किया।

वर्ना आजकल तो लोग अंक शास्त्र से प्रेरित होकर अच्छी तारिख लेना चाहते हैं।

मोती तो गहरे पानी में जाने पर ही मिलता है।

तथागत के माता पिता के सार्थक प्रयासों ने उन्हें या हीरा जैसा नाम रोशन करने वाला बेटा दिया । हम ऐसे माता -पिता को नमन करते हैं।

यथा नाम तथा गुण। .....तथागत अर्थात भगवान् बुद्ध ।

Mahak said...

@सभी सम्मानित एवं आदरणीय सदस्यों

आप सबके अपने blog " blog parliament " ( जिसका की नाम अब " ब्लॉग संसद - आओ ढूंढे देश की सभी समस्याओं का निदान और करें एक सही व्यवस्था का निर्माण " कर दिया गया है ) पर पहला प्रस्ताव ब्लॉगर सुज्ञ जी के द्वारा प्रस्तुत किया गया है , अब इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर बहस शुरू हो चुकी है

कृपया कर आप भी बहस में हिस्सा लें और इसके समर्थन या विरोध में अपनी महत्वपूर्ण राय प्रस्तुत करें ताकि एक सही अथवा गलत बिल को स्वीकार अथवा अस्वीकार किया जा सके

धन्यवाद

महक

Mahak said...

@सभी सम्मानित एवं आदरणीय सदस्यों

आप सबके अपने blog " blog parliament " ( जिसका की नाम अब " ब्लॉग संसद - आओ ढूंढे देश की सभी समस्याओं का निदान और करें एक सही व्यवस्था का निर्माण " कर दिया गया है ) पर पहला प्रस्ताव ब्लॉगर सुज्ञ जी के द्वारा प्रस्तुत किया गया है , अब इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर बहस शुरू हो चुकी है

कृपया कर आप भी बहस में हिस्सा लें और इसके समर्थन या विरोध में अपनी महत्वपूर्ण राय प्रस्तुत करें ताकि एक सही अथवा गलत बिल को स्वीकार अथवा अस्वीकार किया जा सके

धन्यवाद

महक

Mahak said...

@सभी सम्मानित एवं आदरणीय सदस्यों

आप सबके अपने blog " blog parliament " ( जिसका की नाम अब " ब्लॉग संसद - आओ ढूंढे देश की सभी समस्याओं का निदान और करें एक सही व्यवस्था का निर्माण " कर दिया गया है ) पर पहला प्रस्ताव ब्लॉगर सुज्ञ जी के द्वारा प्रस्तुत किया गया है , अब इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर बहस शुरू हो चुकी है

कृपया कर आप भी बहस में हिस्सा लें और इसके समर्थन या विरोध में अपनी महत्वपूर्ण राय प्रस्तुत करें ताकि एक सही अथवा गलत बिल को स्वीकार अथवा अस्वीकार किया जा सके

धन्यवाद

महक

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छा लेख है
हम तो कब से कह रहे हैं महाभारत और रामायण में पहले से लिखा है क्या करना चाहिए और क्या नहीं
जो मानेगा फायदा उठाएगा

वीरेंद्र सिंह said...

Well.....knowledgeable post . I like it.

honesty project democracy said...

बहुत ही सार्थक सोच व अच्छी जानकारी आधारित पोस्ट के लिए धन्यवाद ..

sanu shukla said...

सुंदर लेख...!!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

तथ्यपरक लेख के लिए बधाई !
अच्छी जानकारी ...

वाणी गीत said...

गर्भकाल में माता के विचारों का असर संतान पर पड़ता है ...लगता तो सही ही है ..
रोचक जानकारी ...!

Alpana Verma said...

आप की बात से सहमत हूँ.अब चिकित्सा विज्ञान भी मानने लगा है कि गर्भकाल में माता के विचारों का असर संतान पर पड़ता है.
[कुछ नए विषय आप ने अपने ब्लॉग पर उठाये हैं.अच्छा लगा.]

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
एक बेहद साधारण पाठक said...

अच्छा मतलब बच्चे के मम्मी पापा का ओपिनियन माना जाता है मीडिया का नहीं .. all right

what about this opinion

http://khabar.ibnlive.in.com/news/6546/3

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ आदरणीय अमर जी

बात वही श्रद्धा या विश्वास पर आ टिकेगी शायद

अच्छा ये बताइये
एक डॉक्टर ने १५० ओपरेशन (सफल वाले ) अब एक दूसरा डॉक्टर है उसने ९० प्रतिशत सफल ओपरेशन किये हैं
अब अगर किसी पेशेंट को दोनों में से किसी एक को चुनना है तो वो किसे चुनेगा ?? ( ये मानिये की सिचुएशन बेहद क्रिटिकल है )
यहाँ श्रद्धा शब्द का प्रयोग होगा या विश्वास का ( विश्वास तो नहीं हो सकता क्योंकि सिचेशन बेहद क्रिटिकल है )

मेरी इस बात का यहाँ चल रही चर्चा से सम्बन्ध :
ये बात तो सभी मानते है की अंत में सही निकलने वाले परिणाम हमारे ऋषि मुनियों के फेवर में ही जाते हैं
वो चाहे शरद पूर्णिमा की खीर हो या नाडी विज्ञान ( ये बात अलग है की लोग ग्रंथों का गलत अर्थ अपने हिसाब से निकाल कर भांग भी पीते है , पर ये होता है गलत अर्थ निकाल कर )


तो हमारे ऋषि मुनि वो (नॉन डिग्री धारी) डॉक्टर हैं जो (तकरीबन ) हमेशा ही सफल रहें हैं , तकरीबन शब्द का इस्तेमाल मजबूरन करना पड़ रहा है

मेरी श्रद्धा उनमें है क्योंकि अक्सर वे ही अंत में सही साबित होते हैं

Sumit said...

बिलकुल सही कहा आपने Divya जी
मैं या कोई भी दूसरा भारतीय आपकी बेत से शत् प्रतिशत सहमत होगा
Brain Drain के कारण हमारी भारत भूमी से विदेशी लुटेरे लूट लूट कर प्रतिभा ले जा रहे हैं
जो हमारे देश के भविषय को अंधकार की ओर ले जा रहा है
हमारी सरकार को चाहिए कि इस पर कोई कड़ा कानून बना कर इसको रोके
पर इन सब में सरकार के चंद लोग भी कुछ पैसों के लिए विदेशी companies से मिले हो सकते हैं
सुमित