कभी-कभी ये बायस पोसिटिव भी होते हैं तथा त्वरित निर्णय लेने में सहायक होते हैं । लेकिन अधिकांशतः यह मस्तिष्क की विकृत कार्य प्रणाली के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं , जो गलत तरीके से इस्तेमाल होते हैं तथा कु-तर्क का रूप धारण करते हैं । कोगनिटिव बायस हमसे गलत निर्णय करवाता है तथा इन पूर्वाग्रहों से बचना अक्सर दुश्वार होता है। ये पूर्वाग्रह , बीतते समय के साथ, व्यक्ति के व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं। जो हटाये नहीं हटते और छुडाये नहीं छूटते । सबसे अफ़सोस की बात तो यह है की व्यक्ति को ये पता ही नहीं होता की वो पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो चुका है।
अनेकानेक तरह के पूर्वाग्रह , व्यक्ति की पुख्ता धारणाएं बना देते हैं , जो जरूरी निर्णयों, शोध कार्यों तथा चर्चाओं में अपना प्रभाव दिखाते हैं। इनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं।
- कई बार निर्णय लेते समय , किसी विशिष्ट सूचना पर ही पूरी तरह निर्भर करते हैं।
- जो ज्यादातर लोग कर रहे हैं , उसीका अनुसरण करना , ये सोचकर की यही उचित होगा क्योंकि एक बड़ा समुदाय ऐसा कर रहा है । [ भेड़चाल मानसिकता ]
- पूर्वाग्रहों से ग्रसित व्यक्ति खुद को कभी बायस्ड नहीं समझता , बल्कि दूसरों को पूर्वाग्रही समझता है।
- पूर्वाग्रही अक्सर ऐसी सूचनाओं और आंकड़ों को इकट्ठा करते हैं जो उनकी पूर्वाग्रहों से ग्रसित सोच को बल देते हैं। जिससे उनका पूर्वाग्रह , समय के साथ और भी ज्यादा पुख्ता होता जाता है।
- पूर्वाग्रही ऐसे सभी तर्कों को खारिज कर देता है जो उनकी धारणाओं के विपरीत होता है। वो स्वयं को सबसे अधिक सही मानता है तथा स्वयं को सर्वोपरि देखना पसंद करता है।
- ये किसी भी विषय पर एक पहलू से इतना ज्यादा प्रभावित रहते हैं की विषय के अन्य दुसरे पक्षों पर विचार करना जरूरी नहीं समझते। इससे इनके निर्णय दोषपूर्ण हो जाते हैं तथा इनके कार्यों में कोई productive result नहीं आता।
- बहुत बार किसी सूचना विशेष से इतना ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं की उम्र भर उसी से चिपके रहते हैं तथा अनावश्यक रूप से उन्हीं सूचनाओं के आधार पर हमेशा गलत निर्णय लेकर स्वयं तथा दूसरों के लिए परेशानी का सबब बनते हैं।
- भिन्न पूर्वाग्रहों के चलते ये मीडिया रिपोर्ट्स को भी पूर्वाग्रहों से ग्रसित मान लेते हैं।
- पूर्वाग्रहों के आधार पर ये किसी व्यक्ति को उसकी क्षमता से अधिक आंक लेते हैं या फिर उसे कुछ समझते ही नहीं चाहे वो कितना ही प्रतिभाशाली क्यूँ न हो।
- इन्हें कोई कितनी भी अच्छी राय दे अथवा तर्कों द्वारा समझाए , लेकिन पूर्वाग्रही व्यक्ति कुछ समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं। क्यूंकि ये अपनी बनायी धारणाओं के साथ ही जीना चाहते हैं तथा समय के साथ थोड़े जिद्दी हो जाते हैं।
- कई बार तो ये दूसरों का रिकॉर्ड ट्रेस करने में इतना लग जाते हैं की इनके पूर्वाग्रह अपनी पराकाष्ठा को छूने लगते हैं , ऐसी स्थिति में ये ला-इलाज हो जाते हैं।
- पूर्वाग्रही व्यक्ति अकसर आस-पास घट रही नकारात्मक घटनाओं को ज्यादा महत्त्व देते हैं , बजाये इसके की आस पास हो रही सार्थक एवं सकारात्मक घटनाओं से ऊर्जा ली जाए।
- पूर्वाग्रही व्यक्ति , निर्णय लेते समय किसी भी प्रकार की संभावनाओं को पूरी तरह से नकार देते हैं । यदि कोई घटना या disaster , पूर्व में नहीं घटा है , तो ये उस विषय पर सोचने या प्लान करने से इनकार कर देते हैं।
- इनकी विशफुल थिंकिंग होती है जिसके द्वारा ये मन को अच्छी लगने वाली धारणाओं के अनुरूप ही निर्णय लेते हैं। इन्हें logic या rationality से कोई सरोकार नहीं होता।
- एक बड़े खतरे में बड़ी न्यूनता लाने के बजाये ये छोटे-छोटे खतरों को शून्य पर लाकर अपने " zero risk bias " को संतुष्ट करते हैं।
- ये पूर्व की घटनाओं [past] से इतना prejudiced होते हैं की अक्सर ये कहते मिलेंगे -- " I knew it all along "। ये लोग ये सिद्ध करना चाहते हैं की इन्हें सब कुछ पता होता है।
पूर्वाग्रही व्यक्ति की सोच का दायरा बहुत सीमित होता है तथा अक्सर ये समाज के लिए अनुपयोगी होते हैं। ऐसे व्यक्ति का फोकस विषय पर केन्द्रित न होकर व्यक्ति पर ज्यादा केन्द्रित होता है। ये अपनी सकारात्मक ऊर्जा को विषय पर लगाने के बजाये व्यक्ति विशेष पर ही व्यय कर देते हैं।
पूर्वाग्रहों से ग्रसित व्यक्ति , शीघ्र ही अपने मित्रों तथा शुभचिंतकों को खो देते हैं।
आभार।
47 comments:
`हम सभी कहीं न कहीं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होते हैं,...'
तभी तो हम केवल कुछ ही ब्लाग रोज़ देखते हैं :)
अच्छी मनोवैग्यानिक जानकारी , जो बहुतों को लाभ पहुंचा सकती है।
तर्क और कुतर्क के बीच एक महीन अंतर होता है ...जिसे हम कई बार अनजाने में तो कई बार जानबूझकर लांघ जाते है ......वहीँ से पूर्वाग्रह की शुरुवात होती है | हालाकि ऐसे पूर्वग्रह पर उतनी बड़ी आपत्ति नहीं ,,,,,पर जब शाश्वत मूल्यों और आदर्शों पर चोट पहुचाने वाले आग्रह पाल लिए जाते हैं तो ऐसे पूर्वाग्रह झुंझलाहट पैदा करते हैं ..........कहने वाले इसे भी पूर्वाग्रह कह दें तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं ?
shukriya Dr:)
पूर्व आग्रह (साहित्य की एक गंभीर पत्रिका 'पूर्वग्रह' शीर्षक से भोपाल से निकलती है, क्या यह शब्द अधिक उपयुक्त है) का आमतौर पर इस्तेमाल निगेटिव ढंग से होता है, किन्तु हमारी स्मृति और धारणाएं, हमारे आग्रह एक पक्षीय, सिर्फ बुरे नहीं होते.
शोध परक -- लेख-- ज्ञान वर्धक ------ आपकी क्षमता को सम्मान देते हुए बहुत-बहुत बधाई.
बहुत अच्छा विश्लेषण..
This is a good article. But for an individual to be free of a preconceived notion is a very difficult thing. If a person knew, then he may as well as avoid the trap. Is it really possible to be free from this notion?
What is more harmful, a preconceived notion or ego? Can a person be free from preconceived notions? What is learning? Is it not a purified from of preconceived notion? Or in other terms, learning is the process of stabilizing the preconceived notions to society approved notions?
स्वयं को परखने के लिए एक अच्छी पोस्ट ..
बहुत ही अच्छी जानकारी दी, ऎसे लेख पढ कर हमे अपने अंदर भी झांकने का मोका मिलता हे, ओर हम अपने आप को इस बुराई से बचा सकते हे, वेसे पूर्वाग्रहों से ग्रसित व्यक्ति सब से ज्यादा अपना ही नुकसान करता हे दुसरो का नुकसान तो वो कम ही कर पाता हे, क्योकि दुसरे उस से खुद ही उसी के कारण दुर हो जाते हे, लेकिन यह लोग अपने साथ साथ अपने परिवार का जीना भी दुषवार कर देते हे, आप का धन्यवाद,
शायद हम सब किसी न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं यह निर्भर करता है कि हम कैसे बड़े हुऐ किस परिवेश में रहे।
किसी अन्य संदर्भ में, इसे मैंने यहां बताने का प्रयत्न किया है।
पूर्वाग्रह की कई छटाएँ आपके आलेख में दिखीं. यह सोचने पर मजबूर करता आलेख है. इसका एक पक्ष यह भी है कि किसी विषय पर शोध करने वाले अकसर संबंधित विषय और तत्संबंधी अपने दृष्टिकोण के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हो ही जाते हैं. आपका आलेख उन्हें ताज़ा हवा दे सकता है. आलेख के लिए आभार.
Dearest ZEAL:
Read.
Nice post.
I am never prejudiced.
Semper Fidelis
Arth Desai
पूर्वाग्रह से ग्रसित लोग सही निर्णय नहीं ले सकते , अच्छा लेख ।
सही लिखा है आपने, देखिये पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति के निर्णयों में पूर्ण रूप से उसी के बनाए सिद्धांत आड़े आने लगते हैं. वह कभी भी निष्पक्ष निर्णय नहीं ले सकता है. व्यक्ति या परिस्थिति विशेष के प्रति बनाये गए आधारभूत परिकल्पना को भी सार्वजनिक रूप से मान्यता नहीं दी जानी चाहिए.
एक बार मेरे दूर के रिश्तेदार यह नहीं जानते थे की मैं कार्यालय में कार्य करता हूँ, किसी कार्य से मुझसे मिलने आये और आते ही बाबुओं को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया की इन्होने ही देश में भ्रष्टाचार को पनपाया है, ये ही जिम्मेदार हैं.
काफी दिनों बाद जब उन्हें पता चला की मैंने कई भ्रष्ट अधिकारीयों की पोल खोली है, उन्हें पद से हटवाया भी है विभिन्न व्यक्तियों को आरटीआई एक्ट के तहत न्याय दिलाने में मदद की है तो वे बेहद शर्मिन्दा हुए.
कहने का आशय है की व्यक्ति विशेष के प्रति बनायीं गयी एक राय को सार्वजानिक रूप से थोपना भी पूर्वाग्रह ही है.
सार्थक चर्चा के लिए आपका धन्यवाद.
बहुत ही तथ्यपरक और उपयोगी लेख ... जैसे कि आपने लिखा है कि पूर्वाग्रह शायद सभी में होता है ... पर मेरे ख्याल से ego और पूर्वाग्रह का गहन सम्बन्ध है ... और फिर degree of bias भी शायद कोई मायने रखता होगा ... कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका पूर्वाग्रह उनपर भयानक रूप से हावी हो जाता है ... ऐसे लोग खतरनाक बन सकते हैं ... अपने लिए भी और समाज के लिए भी
बहुत अच्छा और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण। यह एक मनोरोग है और इससे निजात पाना चाहिए।
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - सांसद हमले की ९ वी बरसी पर संसद हमले के अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
चिन्तन के श्रम से बचने के लिये हम पूर्वाग्रहों में घुस जाते हैं।
बहुत अच्छा और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
बधाई !
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण देती हुई बेहतरीन पोस्ट.
यक़ीनन पूर्वाग्रह हमारी सोच और समझ को तटस्थ नहीं रहने देते ........ अच्छा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण...
पूर्वाग्रह तो कही ना कही हर व्यक्ति में छुपा ही रहता है . कई बार मनुष्य अपने सोच को सही समझ लेता है और फिर किसी और सोच को जल्दी से अंगीकार नहीं कर पाता है . आपने सटीक विश्लेषण किया है पूर्वाग्रह जैसी मानसिकता का . विचारणीय पोस्ट .
पूर्वग्रही कोई एक व्यक्ति न होकर हम सभी के भीतर चलने वाली चिंतन की प्रक्रिया का एक हिस्सा लगता है, हर नया तथ्य पुरानी जानकारी को अपडेट करता है पज़िटिव या निगेटिव।
तर्क हमें अंतत: कहाँ ले जाता है यह बात दीगर है!
हाँ यह अवश्य है कि तर्क विहीन निर्णय या विश्लेषण से पूर्व ही लिया गया निर्णय कष्टकारी होता है .....इसके लिए prejudiced शब्द अच्छा है .......यहाँ कार्य-कारण में सम्बन्ध तर्क के आधार पर नहीं ...अपनी सुविधा के आधार पर स्थापित किये जाते हैं .........ऐसा छोटे से लेकर बड़े स्तर तक सभी जगह होता है .......न्यायालयों में भी .......और सरकारी नीतियों में भी ......आरक्षण के पीछे भी तो राजनीतिक बायस ही है न !
सटीक उम्दा अभिव्यक्ति.... साधुवाद
पूर्वाग्रहों पर सार्थक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण!!
पर वस्तूत: उस निर्धारित विचारधारा को ही पूर्वाग्रह कहना चाहिए जो सत्य-तथ्य संज्ञान में आ जाने के बाद भी अपने विचारों से चिपके रहती है।
और शोधपूर्ण गवैषणा एवं व्याख्याओं के बाद निश्चित की गई सैद्धांतिक धारणाओं को पूर्वाग्रह नहिं कहा जंअ सकता।
पर यहां हमेशा विरोधी विचारधारा को बिना सोचे समझे पूर्वाग्रह(नकारात्मक)कहकर दमित किया जाता है।
अब यह आपका लेख ही लिजिये,यह कह देना कितना आसान है कि "पूर्वाग्रहों पर यह लेख आपके पूर्वाग्रह से ग्रसित है" बस ऐसा ही कुछ होता है इन पूर्वाग्रहों का।
ये सच है बिल्कुल ... मेरी जानकारी में मैं और बहुत से और लोग भी जो संपर्क में हैं इस पूर्वाग्रेह नामक बीमारी से ग्रस्त हैं ... पर इसका इलाज आसानी से नही मिलता ....
अपने पूर्वाग्रह टटोलने का प्रयास करते हैं जी। अच्छा आलेख।
hum apni kamjor bhaw aur abhivyakti ke karan bhai
sugyaji se sahmati darsate hain......
pranam.
bahut sahi vishleshan.....aap har field se related aricle likhati hai...main aapka fan ho gayaa hun....aapke lekhon me jaankaari ke saath-saath bahut badhiya analysis bhi hota hai...sorry ye mera purvaagrah nahi hai...really u r great...mujhe lagataa hai aap aisaa kar paatee hai kyonki aap kisee purvaagrah ke base par nahi chalatee.
बेहद खूबसूरत विश्लेषण किया है।
बहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
बहुत बढ़िया जानकारी मिली! मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ! उम्दा पोस्ट!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
... bahut sundar ... prasanshaneey abhivyakti !!!
पूर्वाग्रह का बहुत बढ़िया मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
पूर्वाग्रह जैसे जटिल विषय पर अपने आप में संपूर्ण, सार्थक और सटीक आलेख प्रस्तुत करने के लिए आभार, दिव्या जी।
इस आलेख के पहले और अंतिम वाक्य में आपने पूरे विवरण के सारांश को बड़ी कुशलता से अभिव्यक्त कर दिया है-
‘हम सभी कहीं न कहीं पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं, लेकिन शायद ही कोई स्वयं को पूर्वाग्रहों से ग्रस्त मानता हो।‘....और..
‘पूर्वाग्रहों से ग्रसित व्यक्ति शीघ्र ही अपने मित्रों तथा शुभचिंतको को खो देते हैं।‘
पूर्वाग्रह मस्तिष्क में बनने वाली अवाछित अवधारणाएं हैं। ये अवधारणाएं मस्तिष्क के चिंतन केंद्र में स्रावित होने वाले जटिल रसायनों के ‘खेल‘ से बनती हैं। प्रतीकों की भाषा में कहें तो प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्कीय आंख में एक रंगीन चश्मा चढ़ा होता है। चश्मे का रंग अलग-अलग होता है, रंगों की सांद्रता भी अलग-अलग होती है। अब जिस व्यक्ति के पास जिस रंग का चश्मा होगा, दुनिया के बारे में वह उसी तरह की अवधारणाएं बनाएगा। यही अवधारणाएं पूर्वाग्रह का रूप ले लेती हैं।
जिसका चश्मा रंगहीन होगा, उसे दुनिया वैसी ही दिखाई देगी, जैसी वह है। लेकिन किसी का भी चश्मा रंगहीन नहीं होता। किसी के पास रंगहीन चश्मा होने का अर्थ है कि वह दुनिया को निरपेक्ष दृष्टि से देखता है, जबकि ऐसा असंभव है। मनोविज्ञान में निरपेक्ष जैसी कोई चीज़ नहीं होती।
ऐसा प्रतीत होता है कि वैज्ञानिकों, खास तौर से गणितज्ञों का चश्मा लगभग रंगहीन या हल्के रंग का होता है।
...ये टिप्पणी...जैसा मैंने अपने चश्मे से देखा।
भई वाह क्या बात है?
पूर्वाग्रहों पर इतनी बढ़िया और विस्तृत जानकारी के लिए काफ़ी मेहनत की होगी। आभार।
वैसे मुझे ये लेख अभी एक बार और पढ़ना है।
sundar vishleshan...
बेहद खूबसूरत विश्लेषण किया है।
मनोवैग्यानिक जानकारी,अच्छा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
purvagrahon ke lie is blog par aayen :
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/
rachna
पूर्ण रूप से नहीं किन्तु आंशिक रूप से हम सभी पूर्वाग्रह से ग्रसित होते है |आपका आलेख इससे निकलने में जरुर मदद करेगा |एक अच्छे और त्त्थ्यपर्क आलेख के लिए आभार |
यकीनन हम इससे मुक्त नहीं हो पाते .... सुन्दर लेखन के लिये बधाई ।
Ek pathneey aur manniy rachna. is pr aur bhi chintan ki aawashyakata hai, lekin yah bhi km nahin aage ka kaam to am pathak warg ka hai....Thanks for this useful post...
excellent n that's it ........
हम जैसे भी हैं। अपने को पूर्वाग्रही समझकर सुधार कर लें तो हमारे अधिकतम दुःख स्वतः ही दूर हो जायेंगे।
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