१२ साल हो गए उन दोनों के विवाह को । तीन प्यारे -प्यारे बच्चे हैं। अब पंचायत ने निर्णय दिया की एक गोत्र का होने के कारण दोनों को भाई बहन की तरह होना होगा। समाज और बिरादरी से बाहर कर दिया गया पूरे परिवार को ।
ये पंचायत वाले दिमाग से पैदल होते हैं क्या ?
पता चला है , लड़के के भाई ने जायजाद में हिस्सा भाई को ना देना पड़े , इसलिए उसे जात बाहर करवा दिया। अरे मत देते हिस्सा , लेकिन उनकी जिंदगी नरक क्यूँ कर दी?
माँ , बाप , भाई और घरवालों ने मिलकर साजिश की । जब अपने ही दरिन्दे निकल जाएँ तो गैरों से क्या उम्मीद । ये लोग पंचायतों पर क्यूँ निर्भर करते हैं। कोर्ट की शरण में क्यूँ नहीं जाते ?
क्या हल है इस समस्या का ?
32 comments:
यह तो गलत है।
बिलकुल सही राय दी है ..कोर्ट में जाना चाहिए ....लालच इंसान को अंधा बना देता है ...जागरूकता फैलाने वाली पोस्ट
हम्म ये समझ में नहीं आता की जात से बाहर निकल देने पर कोई कानूनी रूप से अपनी संपत्ति से बेदखल कैसे किया जा सकता है . सरपंचो को अपने सरपरस्तो और चमचो के पक्ष में अनुचित निर्णय लेते कितनी बार देखा सुना गया है .
... panchaayaten lag-bhag asafal hain !!!
गाँव में रहकर शायद पंचायत पर निर्भर रहना मजबूरी है लोगों की ..और हमारे देश में कोर्ट जाकर भी कौन सा न्याय मिल जाता है? कोर्ट केस में लगने वाले धन और वक्त और ज़िल्लत की वजह से लोग वह कदम नहीं उठा पाते..
सही कहा
.जब अपने ही दरिन्दे निकल जाएँ तो गैरों से क्या उम्मीद .
क्या हल है इस समस्या का ?
KHAYALAAT BADLEIN AUR AAJ KE YUG MEIN JIYEN||
ये अक्ल के पैदल नही होते बल्कि अक्ल से लँगडे होते हैं और फिर स्वार्थ क्या कुछ नही करवा देता। इसका हल ते धीरे धीरे समाज मे शिक्षा के प्रसार से ही आयेगा। अच्छा सवाल है। हम तो अभी तक केवल अपना खून ही खौला सकते हैं। शुभकामनायें।
शर्मनाक ...
क्या इस पीडित परिवार को कोर्ट में जाकर अपने हिस्से की जायदाद के लिये न्याय नहीं मांगना चाहिये ? बेशक इसका जात बाहर होने की समस्या से कोई सम्बन्ध नहीं हो । तब भी...
वाकई हद हो गई है..
क्या आपको नहीं लगता की लगातार टी. वि धरावाहियिको में पंचायत के फूहड़ फैसले दिखाकर लोगो का विश्वास पंचायत पर बढ़ता जा रहा है ?
शायद मेरा ये कथन जो लोग टी. वि नहीं देखते हास्यास्पद लग सकता है कितु ये सच है जबकि कोर्ट में गाँवो के ही केस ज्यादा चलते है ये बात और है की शायद वो सम्पति के बंटवारे के ज्यादा होते है |
इस तह के फैसले पंचायत के फैसले शर्मनाक तो है ही साथ ही हमारी संस्क्रती के खिलाफ भी है |
हद है!
हल क्या है ... इस तरह के समाज का ही सामजिक बहिष्कार हो।
एक आवश्यक पोस्ट, शुभकामनायें
मामले की जड़ शायद कहीं और है, भुगत रहा है और कोई.
जेसे हमरे सांसद वाले दिमाग से पेदल होते हे, तो यह पंचायत वाले भी तो उन से कम थोडे होंगे.... ओर भारत मे यह आज कल आम हे पैसो के लिये भाई भाई का दुशमन बना हुआ हे, लोग अपनी मां बहिन ओर भाभी को भी डायन करार कर देते हे, ओर उन्हे भुखे प्यासे मरने पर या गांव वालो के सामने नंगा कर के मारते हे, पता नःई लोगो कि संबेदना कहा मर गई. धन्यवाद इस खबर के लिये
दिव्या जी, मगर हद क्या हो, ये तो किसी ने आज तक डिटरमाइन ही नही किया! सिस्टम का रोना तो हमारे ग्रेट पीएम जी भी रोते है, मगर सुधारने हेतु ६ साल मे क्या किया यह नही देख्ता !
सब कुछ गलत हुआ ...समगोत्र में शादी भी ...पंचायत का निर्णय भी ....और अगले का कोर्ट नहीं जाना भी.....कुछ तो इन्हें अपनी अकल से भी सोचना चाहिए न ! बहरहाल मुश्किल है बच्चों की.....उनके लिए तो वे माँ-पिता ही हैं .....उनके लिए समाज नें क्या निर्णय किया ? .......किसी के पास कोई ज़वाब नहीं ....मगर हमारे कहने से कुछ भी नहीं बदलेगा.फिर भी ...सब कुछ यूँ ही चलता रहेगा
सामाजिक फैसले करने वाली पंचायतें आधुनिक समय से 100 साल पीछे चल रही है। इन पंचायतों के फैसले गांव के रसूखदार लोगों के इशारे पर होते हैं।
स्वार्थ, लालच और अशिक्षा के कारण गावों की सामाजिक स्थिति चिंतनीय है।
उस दंपति को कोर्ट की शरण लेनी चाहिए।
सच्ची बात तो यह है कि पति-पत्नी के मामले में संसद भी दख़ल नहीं दे सकती. स्थानीय दबाव और घरेलू लालच हावी हो जाता है. कानून को मानने वाले अपनी जान बचाते फिरते हैं. ये खापिए (खाप पंचायतें) तालिबानों का स्थानीय वर्शन है.
ये केस कोर्ट ले जाने लायक है
ये सच है कि बेशर्मी की कोई हद नहीं होती!
मैंने भी ये समाचार देखा...वाकई में ये तो हद ही हो गयी....
क्या करें ऐसे लोगों का, पागलखाना शायद बिलकुल सही जगह रहेगी ऐसे लोगों के लिए...
दिव्या जी , पुराने लोगों की बातों में कुछ तो दम होता है ।
इनके मामले में सेलेक्टिव नहीं होना चाहिए ।
क्या ११८ करोड़ के देश में उसे एक बहन ही मिली प्यार /शादी करने के लिए ?
सामाजिक बहिष्कार एक पुरानी परंपरा है , समाज में अनुसाशन बनाये रखने के लिए ।
जहाँ इसका डर नहीं , वहां वो होता है जो वेस्ट में होता है ।
सभी के अपने अपने तर्क होते हैं। बुराई के खिलाफ आवाज उठाने वाले के साथ बहुत कम लोग होते हैं अपितु उसके खिलाफ ज्यादा होते हैं। गाँव की सामाजिकता से जकड़े हुए हैं लोग, उनकी हर अच्छी और बुरी बात को मानने के लिए मजबूर हैं।
had 'sharm aur lajja' ki hoti hai......'besharmi aur nirlajjate ki had kya hogi .....
alakh jagaye rakhiye .... vaicharik arolan to hone
suru ho gayi hai .... britha kuch bhi nahi jata ..
pranam.
ये सरासर बर्बरता है।
Dearest ZEAL:
Read it.
Happens.
Semper Fidelis
Arth Desai
हद है
Dr. Divya, it;s great to find u on blog today. Obviously xmus was Bada Din for me as i ve found ur blog..Plz. tell me whether u r a medico or? Anyway commendable analyzer indeed. M a sr journalist story / book writer/orofessional translator at Bilspur Chhattiagarh. Wud be obliged if u keep up conversation onwards. Regards to u n ur family. may msg me thr kishore_diwase@yahoo.com Take Care
Nice post .
@ Sister Divya ji !
कृपया
मेरी नई पोस्ट देखेंऔर बताएं कि जनाब अरविन्द मिश्र की राय से आप कितना सहमत हैं और इस पोस्ट में आप मुझे जिस रूप रंग में देख रहे हैं , क्या यह बंद ज़हन की अलामत है ?
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/shades-of-sun.html
वाकई हद है !
लगता नहीं कि हम इक्कीसवीं सदी में हैं...
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