दिल्ली में एक नवविवाहित जोड़ा अपने परिवार वालों से डरकर छुपता फिर रहा है। उन्हें डर है उनके घर वाले कहीं उन्हें मरवा ना डालें। उस दम्पति का जुर्म सिर्फ इतना है की उन्होंने प्रेम-विवाह किया है । २८ साल का युवक जिसकी दोनों टांगें पोलिओ से ग्रस्त हैं , को एक ऐसी सुन्दर और सुशील लड़की मिली जो सर्व गुण संपन्न है तथा इस युवक से प्यार करती है। कल जब दोनों का सुन्दर , मासूम और सहमा हुआ चेहरा टीवी पर देखा तो मन में यही प्रश्न आया की क्या प्रेम-विवाह करने वाले घुट-घुट कर जीने तथा समाज से तिरस्कार मिलने के लिए अभिशप्त हैं ?
वही माता पिता जो अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान करने के लिए तत्पर रहते हैं , वो आखिर क्यूँ अपनी संतान के खिलाफ हो जाते हैं जब वो अपनी पसंद की लड़की अथवा लड़के से शादी करना चाहते हैं।
जब बच्चे वयस्क हो जाते हैं , तो वो अपना अच्छा बुरा समझने के लायक हो जाते हैं। इसलिए विवाह जैसा अहम् फैसला संतान की मर्जी से ही होना चाहिए। और माता-पिता को अपने बच्चे की ख़ुशी में शामिल होकर अपने आशीर्वाद के साथ , उनके चयन को सम्मान देकर उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए।
जीवन में चाहे आपदाएं आयें, चाहे समस्याएं , चाहे तिरस्कार , प्रत्येक स्थिति में यदि कोई साथ देता है तो वो हैं माता पिता और परिवार वाले। फिर प्रेम विवाह जैसी परिस्थिति में माँ बाप साथ क्यूँ नहीं देते जबकि उस समय उन मासूम बच्चों को समाज के प्रतिकार से बचने के लिए अपनों की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है ।
प्रेम तो एक सदगुण है फिर प्रेम विवाह समाज में इतना उपेक्षित क्यूँ है ? क्या मनचाहा जीवन-साथी पाने के लिए अपनों से जुदा होना ही नियति है मासूमों की ? या फिर क्रूर परिवार वाले अपने झूठे दंभ को पोषित करने के लिए इसी तरह प्रेम करने वालों की जान के प्यासे बने रहेंगे सदा ?
99 comments:
... prem vivaah gunaah nahee hai ... kintu chhup kar karnaa uchit nahee hai !!!
अगर दो व्यस्क अपने प्रेम को , अग्नि को साक्षी मानकर विवाह बंधन में बढ़ने की तैयार है तो , मुझे नहीं लगता की उनके परिवार वालो को कोई एतराज होना चहिये . भारतीय समाज में मान्यता है की विवाह केवल जोड़ो का मिलन ही नहीं अपितु दो परिवारों का मिलन भी है . माता पिता के अपने संतान के प्रति लगाव, कई बार संतानों के जीवन में व्यवधान भी लाता है . कोई भी समझदार माता पिता , अपने पुत्र या पुत्री के जीवन को हमेशा ही सुखमय देखना चाहता है जरुरत है पालको से समझदारी की . अच्छी सामयिक पोस्ट .
प्रेम विवाह के प्रति माता-पिता का विरोध एक प्रकार की आहार-श्रृंखला का हिस्सा है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। इसमें संदेह नहीं कि माता-पिता बच्चों से अधिक अनुभवी होते हैं,इसलिए इस पर भी विचार करना चाहिए कि जब माता-पिता बच्चों का अहित नहीं सोचते,तो बच्चों को माता-पिता के चयन पर भरोसा क्यों नहीं है? अधिकतर मामलों में जिसे प्रेम समझा जाता है,वह आकर्षण मात्र होता है जिसका भ्रम जल्द ही टूटता भी है। प्रेम यदि सचमुच हो तो जातिविहीन समाज का स्वप्न साकार हो सकता है। गांवों का नगरों में और नगरों का महानगरों में तब्दील होना इसमें सहायक हो सकता है।
बहुत ही विचारणीय बिंदु है .... यह सब पारिवारिक पृष्टभूमि पर निर्भर होता हैं ...
हमारे देश मे प्रेम विवाह एक सामाजिक अपराध है जिसकी सजा भुगतते हुये जोडो को हम रोज टीवी पर देखते है।
ऐसा क्यो है ये बात आज तक नही समझ पाया हूँ हमारे बडे (माता-पिता आदि) क्यो उस समय हमारे खिलाफ हो जाते है जबकि अपनी उम्र मे उन्होने भी किसी ना किसी से प्रेम किया होगा,
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राधारमण जी ,
बच्चों को माता -पिता पर पूरा भरोसा होता है। लेकिन यदि किसी ने अपने जीवन साथी का चुनाव कर ही लिया है तो माता पिता को उनकी ख़ुशी का सम्मान करना ही चाहिए। और प्रेम विवाह मात्र आकर्षण नहीं होते। अक्सर इन्हें सफल ही देखा गया है।
फिर माँ बाप के अनुभव क्या बच्चों की ख़ुशी के खिलाफ जाने में ही इस्तेमाल होते हैं ? उनके खिलाफ कोर्ट-केस करना। , पुलिस में लड़की भगाना जैसे झूठे आरोप तथा ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं। क्या यही है अनुभवी होने का स्वरुप ?
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सदगुण वाला प्रेम तो बस प्रेम ही होता है, वह किसी भी मानव के प्रति प्रेमरूप ही प्रकट होता है। वह तो पशुओं के प्रति भी प्रकट होता है।
किन्तु यह प्रेम विपरित योन आकृषण जनित होता है, यह प्रेम स्वार्थी भी होता है जो मात्र अपने साथी के लिये ही होता है। यह प्रेम नफरत भी पैदा कर सकता है यदि उनकी वांछित इच्छा पूर्ण न हो।
यदि इस प्रेम को सदगुण वाला प्रेम माना जाय तो, जिन्हे प्रेम करने के लिये योग्य साथी नहिं मिल पाता, क्या उनके हृदय में प्रेम होता ही नहिं? अर्थार्त जिनके जोडे न बन पाये वे लोग नफरत से भरे होते है? तो क्या उनमें भी सदगुण वाला प्रेम न माना जाय?
अधिकतर माता-पिता अपनी संतान का बुरा नहिं चाहते। विरोध इस संशय की उपज होता है कि कदाचित संतान का निर्णय परिपक्व न हो ।
ऐसे मामलो को परिपक्व निर्णय का विश्वास दिला कर सुलझाया जा सकता है। किन्तु अधिकतर मामलो में विरोध के सम्मुख विद्रोह का ही बिगुल बजाया जाता है। जो नफरतो का ही जनक है। विद्रोह में एक तरह का फिल्मी रोमांच भी इसका कारण है।
नफरतों के जनक को प्रेम की संज्ञा व्यर्थ है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि की इन मामलों में अहम् भूमिका रहती है.
ना तो प्रेम गलत है और् ना ही विवाह -और हर माता पिता यही चाहते है कि उनके बच्चे विवाह के बाद प्रेम पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करें । फिर वह शादी के पहले से ही उपजे प्रेम को क्यो नही स्वीकार कर पाते इस बात क उत्तर सीधी तौर पर उनको गलत कह कर या उन्को यह स्वीकर कर लेना चाहिये से नही मिल सकता , इस्के लिय एक गहन शोध की आवश्यकता है , बहुत से ऐसे विचार्णीय पहलू है जिन पर सोचने की आवश्यकता है ।
माता पिता हमेशा बच्चों के भविष्य के लिये चिंतित रहते हैं । जाने कितने प्रेम विवाह असफल होते है , जाने कितनों मे धोखे भी मिलते है समाज में ऐसे भी उदाहरणों की कमी नही । मै यह नही कह रही कि ऐसा अरेंज मैरिज में नही होता ।
किन्तु आप से एक प्रश्न पूँछ्ना चाहती हूँ कि क्या माता पिता का शादी के लिये राजी ना होने की स्थिति में उनसे अलग होकर अपना अलग घर बसा लेना हमारी श्रेष्ठ सोच हो सकती है ।
दुनिया में ऐसा कोई भी मसला नही जिसका प्यार से बात्चीत से समाधान ना हो , फिर क्या अपनों को छोड कर अपना घर बसा लेना आपको वास्तवेक खुशी दे पाता है ।
हम यह क्यो भूल जाते है कि हमरे माता पिता ही हमे इस काबिल बनाते है कि हम कुछ सोचने के काबिल बन सके , एक लडका या लडकी जो एक दूसरे से जिन अच्छाइयों के कारण शादी जैसा अहम निर्णय ले रहे है , ये अच्छाइयां ये संस्कार उनको उनके माता पिता ही ने दिये है
ये मसला बहुत नाजुक है , और इस पर विस्तृत मानसिकता के साथ ही सुलझना होगा
प्रेम विवाह गुनाह नहीं है, लेकिन ज़िन्दगी में प्रेम के अलावा और चीज़ें भी अहम होती हैं, जैसे माता-पिता के प्रति अपना फ़र्ज़ वगैरह...
"फिर प्रेम विवाह जैसी परिस्थिति में माँ बाप साथ क्यूँ नहीं देते जबकि उस समय उन मासूम बच्चों को समाज के प्रतिकार से बचने के लिए अपनों की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है।"
दिव्या जी आपका यह सवाल अपने में उत्तर समेटे हुए है. एक लड़की थी जिसे माता-पिता ने प्रीति का नाम दे कर प्रीति का संस्कार दिया था. जब उसने एक लड़के से प्रीति और शादी की तो माता-पिता ने उसे मरवा दिया. माता-पिता हमेशा संतान का भला चाहते हों ऐसा भी नहीं है. ये हमारे अंतर्विरोध हैं. वैसे प्रेम विवाह सनातन परंपरा है.
बिल्कुल नही। प्रेम विवाह करना गुनाह नहीं है। लेकिन हमारे मध्यमवर्गीय परिवार में ये एक गुनाह जैसा ही है। अगर लड़के कर लें तो पचास प्रतिशत आशा रहती है कि उसे अपना लिया जाएगा। अगर लड़कियों ने किया तो फिर मौत तय है। इन सबका सबसे बड़ा कारण होता है दहेज, झुठी ‘शानोशौकत और जातियता। समाज की एक ज्वलन्त समस्या पर एक खुबसुरत आलेख। धन्यवाद।
आदरणीय राधा रमण जी। आपने बिल्कुल सही कहा कि बच्चों को माता पिता के चुनाव पर विश्वास होना चाहिए। हमने कब मना किया है। लेकिन क्या माता पिता का ये फर्ज नही बनता कि वे भी बच्चों के चुनाव पर विश्वास करें। और इसकी क्या गारंटी है कि ‘शादी के बाद दोनों के बीच प्रेम हो जाए। अगर हो गया तो जीवन स्वर्ग और नहीं हुआ तो जीवन नर्क। वैसे हम लोग है।
hi, prem vivah karna koi gunha nahi hai, magar aaj sabhi log apne aap ko modern kahna to chahta hai, magar apne dil se koi modern banna nahi chahta hai, to iska to koi upay hai hi nahi,
प्रेम विवाह भी उतना ही नैतिक है जितना कि माता पिता के द्वारा किया जाने वाला रश्मी विवाह, लेकिन इसके आड़े आती हैं -जातिवाद, आर्थिक अवस्था, और सबसे ज्यादा "माता पिता का सामाजिक सम्मान".
प्रेम विवाह अपराध तो नहीं लेकिन मात्र जज्बातों में बहकर भी कोई निर्णय लेना भी उचित कदम नहीं होता है. मैंने कई जोड़ों को देखा है जिन्होंने प्रेम विवाह रचा तो लिया, लेकिन फिर स्वंय ने ही तोड़ भी दिया.
कदम चाहे जो भी उठे, सोच समझकर उठना चाहिए.
आपकी रचना के माध्यम से सार्थक चर्चा के लिए आपका साधुवाद.
किसे कहें प्रेम ?
माता पिता का अपनी संतान से? जिसमे प्रेम करने की बात कह कर अपनी सन्तान की हत्या करने की बात, सोच भी सकना?
या फिर, "दैहिक आकर्षण" के उन्माद में संतान का अपने माता-पिता से विद्रोह?
कई बार लगता है कि यह "प्रेम विवाह" भी बस एक दूसरे प्रकार का विवाह ही तो है? वरना इतने सारे प्रेम विवाह होते हैं आजकल और प्रेम में पगी एक पूरी पीढी कहीं उस तरह दिखती नहीं, आसपास?
प्रेम की स्थापना हो।
माता पिता हमेशा बच्चों का भला चाहते हैं और उनकी हर इच्छा को पूर्ण करने की कोशिश करते हैं.जब बच्चे अपनी खुशी के लिए प्रेम विवाह करना चाहते हैं तो उनका इस सम्बन्ध में विरोध क्यों? आज बच्चे जिस उम्र में शादी के बारे में सोचते हैं,अक्सर उनको अपने भले बुरे की पहचान करने के क्षमता आजाती है.यह सही है कि भारतीय समाज में शादी केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं , बल्कि दो परिवारों का भी मिलन है.लेकिन अगर दोनों परिवार बच्चों का साथ दें तो इससे दो व्यक्तियों का ही मिलन नहीं,दो परिवारों का भी मिलन होगा और बच्चे शादी के बाद दोनों ही परिवारों से प्रेमपूर्ण सम्बन्ध बनाये रख पायेंगे.समाज के डर से बच्चों का विरोध करना केवल मूर्खता ही होगी. यह कहना कि प्रेम विवाह सफल नहीं होता, वास्तविकता से आँखें मूंदना है. क्या सभी arranged marriages सफल होती हैं? प्रेम की महत्ता हमारे समाज ने सदैव मानी है, तो फिर प्रेम विवाह का विरोध क्यों. प्रेम विवाह हमारे समाज की अनेक कुरीतियाँ जैसे दहेज प्रथा,जाति प्रथा आदि को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं.
ये इश्क नहीं आसां इक आग का दरिया है और डूब के जाना है.
जिसको आग में डूबना हो वो इश्क करे
इश्क के बाद विवाह? इसकी पूर्णाहुति है.
मगर
मग़र सवाल लाख टके का है कि आपने इश्क किया किस्से
हाड मांस के पुतले से या उसमे निहित .....
इश्क केवल भावनाओं पर आधारित होता है यदि आप देह से प्रेम करते है तो आप प्रेम विवाह की गलत परिभाषा देते है.
एक्चुअली में १०००० में १० लोग प्रेम का मतलब जानते है और करते है. बाकी सब छिछोरेपन को ही न्यायसंगत ठहराने के लिए उसे प्रेम बना देते है.
अपर्णा 'पलाश' की शंकाए वाजिब है. प्रेम करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम है. आप बताइये कि समाज में कितने लोग इतने जिम्मेदार होते है?
वैसे एक राज की बात बताऊ ये जिम्मेदारी वाला काम मै कर रहा हूँ.
विश्वास नहीं होता तो किरण से पूछ लीजिये........................
विचारणीय आलेख्…………प्रेम करना तोकभी गुनाह हुआ ही नही सिर्फ़ अहम आगे आये और टकराव का कारण बने।
शायद यही एक ऐसी भावना है जिसमें माँ-बाप का ये अहम् आडे आ जाता है कि तुम्हें जन्म हमने दिया, पाला-पोसा, पढाया-लिखाया हमने । जीवन की उंच-नीच हमने देखी है इसलिये ये तो हमारा अधिकार था, तुमने अपने आप ये निर्णय कैसे लिया ? और बस...
जहाँ प्रेम है वहाँ गुनाह कहाँ !!
darate kyon hain-khulkar prem vivah karen....prem vivah gunaah nahi hai.
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@ चैतन्य जी ,
दो वयस्कों के बीच जो प्रेम है और वो आपस में विवाह जैसे पवित्र रिश्ते में बंधना चाहते हैं , तो इस प्रेम को ' दैहिक आकर्षण ' कहकर इसका अपमान क्यूँ ? प्रेम तो समर्पण है । यदि ह्रदय किसी के लिए समर्पित हो जाए और उसे अपने जीवन साथी बनने के योग्य माने तो माता पिता को अपनी संतान के निर्णय का स्वागत करना चाहिए।
arranged marriages में पति-पत्नी क्या प्रेम नहीं करते एक दुसरे से ? शादी के बाद प्रेम हो तो स्वीकार्य है लेकिन वही प्रेम यदि नवयुवक एवं नवयुवती में हो जाए तथा वो अपने इस प्रेम को विवाह करके निभाना चाहे तो ये प्रेम अस्वीकृत क्यूँ है ?
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जब संतान अपने मित्र चुनती है , विभिन्न भाषा , संस्कृति और जाति वाले , तब तो माता-पिता को आपत्ति नहीं होती , लेकिन यदि वही संतान जब अपना जीवन-साथी चुनती है तो माता-पिता - --जाती, परिवार, कुल , लड़के लड़की की नौकरी दहेज़ आदि का गुणा-भाग करने लग जाते हैं। और अपनी संतानों का सौदा करते हैं।
मन और आत्मा के मिलन को कोई तवज्जो नहीं ? पैसा, जाति, स्टेटस ही सब कुछ ? क्या इसी गणित में माता-पिता का अनुभव और प्यार झलकता है ?
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प्रेम विवाह गुनाह नहीं है
divya ji main to nahi maanta bilkul nahi
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कैलाश जी,
आपने बहुत सही बिंदु उठाया - प्रेम विवाह से
-दहेज़ प्रथा
-जाति प्रथा
दोनों को समाप्त करने में बहुत बड़ा योगदान होगा।
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नव युवक एवं युवतियां जिनमें भिन्न भिन्न तरह की नौकरी करने की योग्यता आ जाती है , घर चला लेती हैं , खाना बना सकती हैं , देश- विदेश की समस्यायों पर विचार कर सकते हैं, वोट डालने के अधिकार का सही इस्तेमाल कर सकते हैं, वो क्या अपने लिए सही जीवन-साथी का चुनाव नहीं कर सकते ?
क्या माँ बाप अपने बच्चे के साथ-साथ अपने होने वाले बहू या दामाद को आशीर्वाद देकर उनकी खुशियों में शामिल होने से छोटे हो जायेंगे या अपनी गरिमा खो देंगे ?
मुझे लगता है माता-पिता को इस अहम् अवसर पर अपनी इच्छाओं के बजाये अपनी संतान की खुशियों को अहमियत देनी चाहिए। आखिर विवाह के बाद तो उन्हें साथ जिंदगी गुजारनी है । माता पिता की तो निभ चुकी।
बच्चों की खुशियों में शरीक होकर दो परिवारों का मिलन हो सकता है। वही संतान शेष जीवन अपने बड़ों की छत्र-छाया में ख़ुशी-ख़ुशी गुजार सकती है।
लेकिन उनके पीछे पड़कर उन्हें तिरस्कृत और सहमी हुई जिंदगी देकर उन्हें गुनाह के बोझ तले क्यूँ दबाते हैं।
बच्चे के मन की शादी करके , माता-पिता बच्चों को सबसे अनमोल तोहफा दे सकते हैं। विवाह के बाद तो बच्चे माता-पिता से कुछ मांगते नहीं। बड़े हो जाते हैं वो । अंतिम अवसर जब संतान अपने शेष जीवन के लिए माता-पिता से उनका आशीर्वाद मांगती है , तो बड़ों को ये अवसर कभी चूकना नहीं चाहिए। इसके बाद कोई कुछ मांगता नहीं है । विवाह के बाद तो संतान पर ही जिम्मेदारी होती है माता-पिता को सभी खुशियाँ देने की।
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प्रेम विवाह गुनाह नही है लेकिन आज के दौर मे और भी बाते महत्वपूर्ण होती है।
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अंजना जी ,
ज़रा उन महत्पूर्ण बातों का खुलासा करतीं तो हम सभी को लाभ होता। आपसे अनुरोध है , अपनी बात को स्पष्ट करें तथा विस्तार दें।
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सुज्ञ जी की बात से सहमत हूँ अधिकतर माता-पिता अपनी संतान का बुरा नहिं चाहते। विरोध इस संशय की उपज होता है कि कदाचित संतान का निर्णय परिपक्व न हो ।
प्रेम विवाह ? ये कैसा प्रेम है जो अपने माँ बाप के प्रेम को भाई के प्रेम , तिलांजली दे देता है , न उसे समाज की चिंता न ही अपने परिवार की चिंता ,
प्रेम तो मिलाप सिखाता है अलगाव नहीं एक से मिलाप के लिए इतने सारों की ख़ुशी को छोड़ना मै सही मानता ,
जिस माता पिता के कारण मै दुनिया देख पाया हूँ और जिनके कारन मै प्रेम को समझने के काबिल होया उन्ही बात की अवमानना करना कहाँ तक सत्य है ,
agar vastab men prem ke bad vivah kiya haito theek hai us prem ki paribhasha yadi kshanik prem ya matra akarshan hai tab ?
देर से आया इस पोस्ट पर .. इतनी चर्चा हो चुकी है कि कुछ और कहना संभव नहीं... प्रेम की असंख्य परिभाषाएं हैं.. हर व्यक्ति इस पर कह सकता है ... बोल सकता है.. पक्ष विपक्ष में.. प्रेम व्यक्ति समाज, पृष्ठभूमि.. आर्थिक स्थिथि आदि पर निर्भर करता है.. सुन्दर और सार्थक चर्चा हुई..
प्रेम विवाह अपराध तो हरगिज़ नहीं है ...मगर जहाँ तक संभव हो विवाह में अभिभावकों की सहमति भी हो तो क्या बात है ..!
जो समय के साथ नहीं बदला उसे दुख झेलना पडेगा ही.... चाहे वो मां-बाप ही क्यों न हो ॥
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तौसिफ जी ,
प्रेम विवाह करने वाले अलगाव तो नहीं चाहते। वे तो अपनों का आशीर्वाद चाहते हैं । सबके साथ रहना चाहते हैं। लेकिन अफ़सोस उनके माता-पिता और भाई ही उसके प्यार को नहीं अपनाते और दोनों को अलग होने पर मजबूर करते हैं। बात न मानने पर हिंसा पर उतर आते हैं। बेघर कर देते हैं या फिर मौत के घाट उतार देते हैं।
जात-पात, ऊंच-नीच मानने वाले तथा दहेज़ लोभी स्वजन ही अपने स्वार्थ और अहम् की तुष्टि के लिए प्रेम करने वालों का अलगाव चाहते हैं।
वो माता-पिता भी क्या जिनको अपनी संतान की ख़ुशी न कबूल हो।
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छह माह पहले की बात है, गली के नुक्कड पर खडे रहने वाले आवारा किस्म के छैलबटाऊ लडके से हमारे पडोस में रहने वाली ग्रेज्युएट लडकी से 'प्रेम' हो गया। लडकी के पिता हम जानते है कोई अरेंज के ही पक्ष में नहिं थे। पर यह उस लडके का 'विवाह के उद्देश्य से अरेंज प्रेम' था।
लडकी को समझाने के सारे प्रयत्न निष्फ़ल हुए। जब उसे कहा गया कि यह लडका दो जून की रोटी भी कमाकर नहिं दे पायेगा तो पता है लडकी का क्या जवाब था- वो मुझसे बे-इंतहा प्रेम करता है, मेरे लिये उसने हाथ पर चीरा लगा दिया था, वो नहिं कमायेगा तो मुझमें हिम्मत है मैं नोकरी करके उसका पेट भर दूँगी। उसका 'प्रेम' ही मेरे लिये काफी है।
मां-बाप न समझाए तो क्या जानते हुए कुए धकेल दे?
आखिर मां-बाप की हार हुई, वह घर छोड भाग गई!! पुलिस कम्पलेन भी दोनों की रज़ामंदी के आगे हार गई। चार माह बाद निराश लडकी घर लौट आई। क्या ऐसी दशा में माता-पिता दोषी है, हां पुलिस ब्यान में लडकी ने जात-पांत का कारण बता कर पिता व भाईयो से संरक्षण भी मांगा था।
प्रेम का अर्थ समर्पण होता है.प्रेम का अर्थ केवल शारीरिक संबंधों तक ही सीमित नहीं होता. अगर समर्पण कि भावना है दोनों के बीच में तो ठीक है वरना नहीं.
actualy ma bap ki umedo beton ke sath judi hoti hai aur achanak unka bhang hona unhe nagwar gujarane lagata hai ..........
प्रेम के रहस्य और इस पहेली से ही सृष्टि संचालित है. वैसे विवाह के पहले प्रेम हो इससे अधिक जरूरी है कि पति-पत्नी में विवाह के बाद प्रेम हो और बना रहे.
प्रेम विवाह अर्थात गन्धर्व विवाह . गन्धर्व विवाह की परम्परा भारत में देवी देवताओं से लेकर राजा महाराजाओं और प्रजा तक प्रचलित रहा है राजा दुष्यंत ने भी शकुंतला से गन्धर्व विवाह किया और उसी संतान भरत के नाम से आज हमारे देश का नाम भारतवर्ष है. पिछली कई शताब्दियों से भारत गुलामी के दंश में फंसा रहा और अज्ञानता और निरक्षरता ने गन्धर्व विवाह की पृष्ठ भूमि को बिगाड़ दिया ततपश्चात अंग्रेजों के आने के बाद यूरोपीय सभ्यता का आगमन हुआ और वही फल फूल रही है इसीके परिणाम तह लोगों में असुरक्षा बनी हुई है जो भी प्रेम विवाह हो रहे उनमें अधिकांश यूरोपीय तरीका अपनाते हुए हो रहें है विरोध इसी कारण परचलित हुआ . क्योंकि इसी यूरोपीय सभ्यता ने हमारे यहाँ जातिवाद और धर्म , वर्ग और वर्ण विशेष की लड़ाई शुरू की है इसीकी परिणिति में माँ बाप असुरक्षा महसूस करते है . और विरोध बढ़ जाता है अधिकांश प्रेम विवाह तो मात्रा आकर्षण भी हैं मजबूरी वस् ढोने के लिए वे विवश हो जाते हैं प्रेम ह्रदय ग्राही हो न की तन ग्राही .
प्रेम विवाह गुनाह नहीं है।
हमारे देश में भिन्न-भिन्न सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण प्रेम विवाह स्वीकार्य या अस्वीकार्य होता है।
उच्च शिक्षित, महानगरीय संस्कृति और उच्च आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों में प्रेम विवाह प्रचलन में आ चृका है किंतु इसके विपरीत कम शिक्षित, ग्रामीण संस्कृति और मध्यवर्ग के परिवारों में प्रेम विवाह को प्रायः मान्यता नहीं दी जाती।
हमें आशा करनी चाहिए कि धीरे-धीरे समय के साथ परिवर्तन आएगा।
गुनाह नहीं है, लेकिन इसके कारण होने वाली दिक्कतों तथा इसमें होने वाली असफलताओं के चलते मां-बाप इन्सिक्योरिटी महसूस करते हैं जिसके कारण भी विरोध करते हैं, बाकी फैक्टर अलग हैं..
क्या प्रेम-विवाह करना गुनाह है ? नहीं।
वैसे हमने तो प्रेमविवाह नहीं किया. अब क्या खूं इससे ज़्यादा बस एक शे’र अर्ज़ है...
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सम्भलते क्यों हैं ?
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं ?
अभी और वक्त लगेगा इस जाग्रति को आने में ..
priya divya ji
you have started a very commendable ,and darefull discusson on love-marriage .Thanks a lot. The root cause of our society's problem is DOUBT [sansaya ],which starts since birth and existed after death .because we have not our confidence on our children and ourslves too.what will happen ? who will care? .Meanwhile from geeta-- ,elders use to cite "tumhara kya tha jo gaya? jo hoga achha hoga .etc." but they are not able to leave selfishness,and self making boundry of false pride .
मेरे विचार से यदि सोच समझ कर , परिपक्व दिमाग के लोग प्रेम विवाह करते हैं तो इसे बेहतर कुछ नहीं हो सकता । लेकिन अक्सर प्रेम के चक्कर में पड़कर नादान लड़के लड़कियां अपना जीवन ख़राब कर लेते हैं । ऐसे में मात पिता को भी क्या कहें ।
आखिर कम उम्र में प्रेम क्या होता है , यह कौन जानता है ।
prem kudarat ki sabse achchhi sougat hai. phir prem vivah gunah ho hi nahi sakta.
अभी भी लोग इस मामले में पिछ्डे हुए ही है!...वैसे कहने को तो माता-पिता बच्चों का सुख चाहते है....लेकिन बच्चे अपने मन पसंद साथी के साथ जीवन गुजारना चहते है तो...वही माता-पिता डट कर विरोध करते है!....समाज भी ऐसे में उक्त युवक या युवती का साथ नहीं देता!...यही हो रहा है...ऐसी त्रुटी पूर्ण मानसिकता से बाहर निकलने की जरुरत है!....बहुत सटिक मुद्दा उठाया है आपने!
ऐगनस रेपलियर ने कहा है कि ‘हम जिसके साथ हंस नहीं सकते, उसके साथ प्यार भी नहीं कर सकते।‘
ठीक ही कहा है रेपलियर ने लेकिन रेपलियर ने यह नहीं बताया कि जहां प्यार न हो, वहां प्यार कैसे पैदा किया जाए ?
वह आपको मैं बताऊंगा।
‘आप जिन लोगों से प्यार नहीं करते, उनके साथ हंसिए-बोलिए, प्यार पैदा हो जाएगा।‘
यह एक अब्दी उसूल है जो सदा से चला आ रहा है। मैंने इसे सिर्फ़ दरयाफ़्त किया है, इसे बनाया नहीं है। आप और हम सदा से इस उसूल से काम लेते आ रहे हैं लेकिन जानते नहीं हैं।
रेपलियर के देश में लड़के-लड़कियां पहले साथ घूम-फिर कर देखते हैं कि क्या हम साथ हंस सकते हैं ?
अगर वे साथ में हंस लेते हैं तो फिर साथ में रहकर देखकर देखते हैं कि क्या हम साथ रह सकते हैं ?
फिर वे बच्चे पैदा करके देखते हैं कि क्या वे दोनों मिलकर बच्चों की ज़िम्मेदारी उठा सकते हैं ?
साथ मिलकर हंस लिए तो ठीक, वर्ना अलग। साथ रह लिए तो ठीक वर्ना अलग। साथ मिलकर बच्चे पाल लिए तो ठीक वर्ना अलग।
ऐसा क्यों करते हैं वे ?
वे ऐसा इसलिए करते हैं कि उनका परिवार और समाज सब कुछ बिखर चुका है। बेशक ‘ाादी-ब्याह में जुड़ते दो लोग हैं लेकिन जोड़ता पूरा समाज है जो कि बाद में भी जोड़े रखता है।
वे लोग यक़ीन खोए हुए लोग हैं।
हमारे यहां यक़ीन और विश्वास की अथाह दौलत है। हमारे यहां पहले ब्याह करते हैं लड़के लड़की का आपस में, फिर उन्हें साथ बैठने की इजाज़त मिलती है और फिर बुज़ुर्ग लोग कुछ ऐसी रस्में अंजाम देते हैं जो एक खेल की तरह लगती हैं। कभी किसी बर्तन में पानी भरकर दूल्हा-दुल्हन से कहा जाता है कि दोनों एक साथ पानी में हाथ डालकर अंगूठी ढूंढें और कभी ऐसा ही कोई दूसरा खेल कराया जाता है।
यह सब क्या है ?
क्या यह सब महज़ एक खेल है ?
इन्हें खेल समझने वाले इसके अस्ल राज़ से नावाक़िफ़ हैं। इसका राज़ यह है कि ब्याह से पहले तक लड़के और लड़की के लिए किसी ग़ैर को छूने की मनाही थी और यह मनाही उनके तहतुश्शऊर तक में, सबकांशिएस तक में बैठी हुई है। ऐसे में अगर एकदम दोनों की मुठभेड़ करा दी जाए तो शरीर की प्यास तो चाहे दोनों को जुड़ने पर मजबूर कर दे लेकिन उनके मन नहीं जुड़ पाएंगे। इसीलिए उनके मन से पहले धीरे-धीरे अजनबियत दूर की जाती है, उन्हें एक दूसरे के वजूद का आदी बनाया जाता है। उन्हें साथ हंसाया जाता है। साथ हंसेंगे तो प्यार खुद पैदा हो जाएगा।
औरत हो या मर्द, हंसते हुए दोनों ही बहुत प्यारे लगते हैं, इंसान की यह ख़ासियत है कि जो चीज़ उसकी नज़र को भा जाती है, उसका दिल उसके पीछे भागता है और जहां एक बार दिल किसी के पीछे लग गया तो समझो कि वह इंसान बस उसका हो चुका।
शादी-ब्याह की रस्मों के ज़रिए दोनों का दिल बहलाया भी जाता है और दोनों हंसाकर एक दूसरे के लिए उनमें प्यार भी पैदा किया जाता है। अगर वे इस राज़ को जान लेते तो वे सदा हंसते रहते, शादी के बाद भी, लेकिन उन्होंने तो उसे बस एक रस्म और एक खेल समझा। जिसे सिर्फ़ ब्याह के मौक़े पर खेला जाता है जबकि वह एक शुरूआत थी, एक सबक़ था, जिसे उन्हें दोहराते रहना था, जीवन भर।
‘आदमी को अपना बच्चा और पराई औरत दोनों ही अच्छे लगते हैं‘ यह एक कहावत है।
क्या आपने कभी सोचा है कि आखि़र ये दोनों क्यों अच्छे लगते हैं ?
यह बताया जायेगा आपको अमान के पैगाम पर जल्द ही .
यदि प्रेम विवाह गुनाह है तो , हम तो गुनाहगार हो लिए भाई ....क्योंकि अप तो इस अपराध को किए बहुत दिन हो लिए जी
.
सुज्ञ जी ,
जैसा आपने बताया वैसा भी होता है । एक घटना घर की मैं भी बताती हूँ।
बनारस में मेरी सगी मौसी की बेटी , जो BHU से goldmedalist भी है , उसका भी प्रेम हो गया एक डाक्टर युवक से । मेरे मौसा जी , बहुत खिलाफ थे जात-बाहर शादी के । उनके हिसाब से लड़के की पिछली कई पुश्तें कायस्थ ही होनी चाहिए तभी लड़की की शादी करेंगे उस लड़के से। मेरी मौसेरी बहेन ने उस पंजाबी युवक से ही करने की ठान ली थी। विवाह मौसा जी की मर्जी के खिलाफ हो गया और मेरे मौसा जी ने कोर्ट में केस कर दिया। सिर्फ अपनी दकियानूसी जातिवाद और अहम् के चलते उन्होंने अपनी सबसे लाडली बेटी को ढेरो प्रताड़ना दी , मारा-पीटा भी और घर में नज़रबंद कर दिया । लेकिन एक दिन मौका लगते ही घर के अन्य सभी लोग जो शादी के पक्ष में थे , उसे भागने में मदद की और लड़के वालों का भरपूर सहयोग मिला । वो लोग केस जीत गए और आज एक शान शौकत की जिंदगी बसर कर रहे हैं, इस घटना को नौ साल हो चुके हैं।
लेकिन इस घटना का सबसे दुखद पहलु ये है की मेरी मौसी अपनी बेटी की एक झलक के लिए तरसते हुए रो-रो कर सन २००७ में इश्वर के पास चली गयी । अस्पताल में सभी लोग कोशिश में लगे हुए थे की सीमा को उसकी माँ से एक बार मिलवा दें , लेकिन मेरे मौसा जी किसी हिटलर से कम नहीं थे । माँ बेटी को मिलने नहीं दिया पाच वर्ष तक। आखिरकार तड़पते हुए मौसी ने दम तोड़ दिया।
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मैं यहाँ देर से आया हूँ लेकिन लगता है बही भी कुछ कहने कि गुन्जीश है.
मैं नहीं मानता कि प्रेम-विवाह गुनाह है. लेकिन मैं और भी कुछ कहना चाहता हूँ. आपने कहा "वही माता पिता जो अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान करने के लिए तत्पर रहते हैं , वो आखिर क्यूँ अपनी संतान के खिलाफ हो जाते हैं जब वो अपनी पसंद की लड़की अथवा लड़के से शादी करना चाहते हैं।"
जब माता-पिता इतना कुछ करते हैं तो क्या हम संतानों को उनकी भावना का सामान नहीं करना चाहिए. किसी को प्रेम हो जाए ये अच्छी बात है.जहाँ लोग अभी मर-काट का दौर देख रहे हैं वहा दो लोग आपस में प्रेम करते हैं इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है. लेकिन विवाह से पूर्व पारिवारिक सम्मति क्यों नहीं मिल सकती. जब माँ-बाप बच्छो की शादी करते हैं तो क्या वे संतान की समाती नहीं लेते? लेते हैं. तो फिर संतान क्यों लेती नहीं.
प्रेम-विवाह में कानूनी तौर पे कोई आपत्ती नहीं लेकिन समाज ना सही अपने माता-पिता का सामान सर्वोपरि होना चाहिए.
नचिकेता को जब अनायास उनके पिता ने उन्हें मृत्यु देव को दान में दे दिया था तब उन्होंने सोचा."उत्तम संतान वो है जो अपने माता-पिता की इच्छा जान भर लेने से ही उसकी पूर्ती करे और माध्यम संतान वो है जो पिता के वचन का पालन करे कहने के बाद."
ये पुरानी बाते हैं
प्रेम-विवाह से पूर्व परिवार कि सम्माती लेनी चाहिए.
प्रेम विवाह कोई अपराध नहीं है. कानूनी तौर पे तो बिना-विवाह के भी शारीरिक सम्बन्ध बनाते हुए साथ रहना अपराध नहीं है.
लेकिन अंत में यही है कि माता पिता बच्छो का साथ दे तो बच्छो को खुशि होगी.
मुझे कहीं लगा कि ये लेख थोड़ा एकतरफा है जोड़ों के प्रति. और माँ-बाप थोड़े गौण हो गए.
Dearest ZEAL:
Nice reading.
Semper Fidelis
Arth Desai
Dear Divya ji
Due to some tech. error unable to post my comments. kidly publish it.
प्रेम विवाह करना बिल कुल भी गुनाह नहीं है |
जिस समाचार का आपने जिक्र किया है हम उसकी पूरी सच्चाई जाने बिना प्रेम को गुनाह नहीं मान सकते नहीं उनके माता पिता को दोषी करार दे सकते |हमारे समाज में अभी भी जाति पांति को महत्व दिया जाता है |और शिक्षा का न होना भी इसको गुनाह मानने का एक कारण है |आज जहन शिक्षित समाज में ,बड़े शहरी में प्रेम विवाह जो की अधिकतर विजातीय होते है बड़े ही सहजता से स्वीकार्य हो रहे है |प्रेम विवाह ज्यादातर स्वयम के समाज के बहर ही होते है |आज जब लडकिया हर क्षेत्र में अपने कदम रख रही है इसके लिए उन्हें बेहतर अवसर मिलते है की वो अपने जीवन साथी का चुनाव स्वयम कर सके और वो कर रही है और माँ बाप भी उनका सहयोग कर रहे है जो लोग अभी विरोध कर रहे है वो भी इन विवाहों की सार्थकता को समझेगे |
सभी कुछ पढ़ कर हमे तो एक बात ही समझ आई कि प्रेम दो तरह का होता है एक व्यक्तिगत जिसे प्रेम विवाह कह सकते है और दूसरा सामाजिक जो समाज की मर्यादाओ को ध्यान मे रख कर किया जाता है। अपने लिये कोई कौन सा रास्ता चुनता है यह उसके अपने विवेक पर निर्भर करता है।
प्रेम विवाह परिवार को विश्वास मे लेकर करना चाहिये . आखिर परिवार का भी हक है क्योकि उसने पाला पोसा . अगर ्योग्य रिशता है तो मै नही सम्झता सम्जदार परिवार राज़ी नही होगा
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प्रिया जी की मेल से प्राप्त टिपण्णी ---
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दिव्या जी ,
इस लेख पर मैंने एक विस्तृत टिपण्णी लिखी थी , जो नेट कनेक्शन की गड़बड़ी से नहीं छप सकी। दुबारा उसे लिखने की हिम्मत नहीं है इसलिए संक्षेप में लिख रही हूँ ।
१-माता-पिता का अहम् दो प्रकार से काम करता है -
एक तो उन्हें लगता है की संतान की शादी तय करना सिर्फ उन्हीं का काम है , इसलिए अचानक हुए इस निर्णय को वो स्वीकार नहीं कर पाते। दुसरे उन्हें ये लगता है की ये शुभ काम उनसे बेहतर कोई कर ही नहीं सकता । इसलिए संतान की पसंद पर उन्हें संशय रहता है।
२-माता-पिता का शैक्षनिक स्तर भी यदि बेहतर नहीं है और उनका exposure कम है तो वो अपनी संतान की बेहतर परख को समझ नहीं पाते और खिलाफ हो जाते हैं।
३-यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो अंतरजातीय विवाह बेहतर होता है। इसमें congenital diseases होने का खतरा कम रहता है।
४-संतान को भी पेहले एक दुसरे को पूरा समय देकर देख परख लेना चाहिए फिर माँ बाप को बताना चाहिए। क्यूंकि कभी कभी ये आकर्षण अल्पकालिक हो सकता है। इसलिए इसमें किसी तरह की जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए।
५- माता-पिता को भी time-testing करनी चाहिए। उन्हें भी अपनी संतान की पसंद को भरपूर परख लेना चाहिए । अक्सर माँ-बाप इसी निष्कर्ष पर आते हैं की उनकी संतान का निर्णय उचित है तथा उनकी बेटी या बेटा अमुक व्यक्ति के साथ सुखी रहेगा।
बच्चे तो अपनी ख्वाहिश parents के साथ शेयर करते हैं। वो तो उनका आशीर्वाद चाहते ही हैं। भाग कर शादी करना तो उनकी मजबूरी हो जाती है। जब बच्चे माता पिता को पूरा सम्मान देते हैं तो माँ बाप को भी अपनी संतान की इच्छा का सम्मान करना चाहिए । आखिर ये उनकी निजी जिंदगी का सवाल है ।
मेरे विचार से आज पढ़ा-लिखा जागरूक समाज अंतरजातीय विवाह को अपना रहा है और अपनी संतान की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी समझकर एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण कर रहा है। और सबसे बड़ी बात प्रेम विवाह से जाती-प्रथा और दहेज़ जैसी समस्याओं का निराकरण भी संभव है।
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कल अमन का पैगाम पर तारकेश्वर गिरी का लेख लगा था.उसमे एक शेर high light कर रहा था. आपने उस पर टिप्पणी दी.ज़ाहिर है सही माने में ही लगाई होगी. आपकी टिप्पणी पर आपका मज़ाक उड़ाते हुए अनवर जमाल ने निम्न टिप्पणी लगाई.स्पष्ट करता चलूँ कि कई similar dual meaning वाले अर्थ होते हैं,जिनका अर्थ खुराफाती बुद्धि वाले अपनी तरह से निकलते हैं. आप को पता है या नहीं कि :- उरूज का मतलब होता है तरक्की/उन्नति
और उरोज का मतलब होता है स्तन
अनवर जमाल ने अपनी कुबुद्धि यहाँ चलाई जिसमें मुझे आपका अपमान दिखा, बल्कि यूं कहें कि भारतीय नारी का अपमान दिखा.मैंने E-MAIL के ज़रिये तुरंत अनवर जमाल की टिप्पणी पर अपना ऐतराज़ जताया और मासूम जी से अनवर जमाल की टिप्पणी हटाने का अनुरोध किया.मुझे कहते हुए दुख हो रहा है की मासूम जी नहीं माने और अनवर जमाल को सही ठहराते रहे. उनकी छवि ख़राब न हो इसलिए उन्होंने अपने ब्लॉग पर टिप्पणी के ज़रिये अनवर जमाल से सफाई मांगी जिसके जवाब में अनवर जमाल ने अपनी गलती नहीं मानी बल्कि अपने कहे हुए को उरूज के सही अर्थों में justify कर दिया.
मैडम, आपसे विनती है की dual meaning वाले शब्दों पर टिप्पणी देते समय ध्यान थोड़ा ज़ियादा दीजियेगा.
मेरी ज़बरदस्त नाराज़गी देखते हुए मासूम जी ने अनवर जमाल की टिप्पणी तो नहीं हटाई ,हाँ पोस्ट ज़रूर बदल दी.
आपका E-MAIL id मेरे पास नहीं था वरना मैं ये बात आपको मेल के ज़रिये बताता.
काफी रात तक मासूम जी से मेरी बहस हुई. इस कारण हुए तनाव से मुझे रात भर नींद नहीं आई.
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तारकेश्वर गिरी जी की पोस्ट पर RECTANGLE के अन्दर highlighted matter:-
जितना झुकेगा जो, उतना उरूज पायेगा.
ईमां है जिस दिल में,वो बुलंदी पे जायेगा.
आपका कमेन्ट:-
जितना झुकेगा जो, उतना उरूज पायेगा.
ईमां है जिस दिल में,वो बुलंदी पे जायेगा.
sahmat hun.
Dr.Anwar Jamal का comment:-
DR. ANWER JAMAL said...
बुलंदी पर जाने के लिए ईमान शर्त है।
@ भाई तारकेश्वर गिरी जी की पर्सनैलिटी दमदार है। ऐसी जानदार बात कहते हैं कि हरेक नर नारी तुरंत सहमत हो जाता है, कभी सोचकर और कभी बिना सोचे ही। उनकी अमन की बात पर तो आदमी बिना सोचे भी सहमत हो जाए तो नफ़े में रहेगा लेकिन यह क्या कि उनके शेर पर भी मेरी दिव्योत्साही बहन दिव्या जी सहमत हो गईं ?
अगर वे जानतीं कि शेर का मतलब क्या है तो वे हरगिज़ सहमत न होंतीं।
शेर यह है -
‘जितनाझुकेगा जो, उतना उरोज पाएगा
ईमां है जिस दिल में, वो बुलंदी पे जाएगा‘
चलिए अपने गिरी बाबू तो भोले जी के भगत हैं लेकिन क्या हिंदी-उर्दू के दूसरे मूर्धन्य जानकारों का ध्यान भी इस तरफ़ न गया कि ‘यहां झुकने से कौन सा उरोज पाया जा रहा है ?‘
इससे पता चलता है कि पोस्ट को ज़्यादा लोग कम ग़ौर से पढ़ते हैं।
इससे यह भी पता चलता है कि लोग जिससे सहमत होने का मूड एक बार सैट कर लेते हैं तो फिर न उसके कलाम को देखते हैं और न उसके शब्दों के अर्थ को।
भाई तारकेश्वर गिरी जी को ब्लाग जगत का इतना ज़बरदस्त समर्थन मिलता देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं और उनकी बुलंदी की कामना करता हूं क्योंकि बुलंदी पर जाने के लिए ईमान शर्त है।
कुँवर कुसुमेश
फिरदौश जी से सहमत
, प्रेम करना गुनाह तो बिलकुल नहीं हैं, लेकिन क्या ये भी सही नहीं हैं कि जिस माता -पिता ने पैदा किया और पाल पोश के बड़ा किया उससे बढ़ करके और कौन प्रेम कर सकता हैं. प्रेम विवाह भी गलत नहीं हैं, मगर अक्सर देखा जाता हैं, जितना प्यार विवाह से पहले होता हैं , विवाह के बाद काम होने लगता हैं. और येही कमी तलाक तक पहुँच जाती हैं.
लेकिन अगर विवाह सामाजिक रीती -रिवाज के साथ हो तो सामजिक डर होता हैं. और तलाक कि नौबत भी काम रहती हैं.
आज कि युवा पीढ़ी प्यार में जान देने को तो तैयार रहती हैं, प्यार में खूब भरोसा रखती हैं, जीने मरने कि कसमे खाती हैं, लेकिन शादी के कुछ साल बाद स्थिति बदल जाती हैं.
आदरणीय दिव्या जी (Zeal) जिस प्यार की आप बात कर रहे हैं उसके संदर्भ मैं जहां तक मेरा मानना है इश्क,प्यार और मोहबत करने वालो का आज तक की मानवीय सभ्यता के विकास में कोई योगदान नहीं रहा है,आप हीर-राँझा,शिरी-फरहाद,लैला -मजनू को याद तो करते हैं लेकिन आप कभी नहीं चाहोगे की ये लोग आपके बच्चों की प्रेरणा बने ...क्या आपको नहीं लगता है की इ किस्म का प्यार महज एक आकर्षण ही होता है अर्थात इनको आप बहके हुए कदम कह सकते हैं औरऐसे बहके हुए क़दमों को रोकना कोई गुनाह नहीं होना चाहिए,कुल मिलाकर कुछ सामाजिक नियंत्रण भी होते हैं देश एवं समाज के हित में जिनका पालन होना ही चाहिए और घर-परिवार एवं सामाजिक मान मर्यादाओं का जो युवक -युवतियां सम्मान न कर सके उन्हें आप समझदार कहते हो ?..तो बात आपकी सही है .....अन्यथा जरुरी नहीं की हर व्यस्क युवक-युवती अपना भाल- बुरा समझते हों..........
regard-
P.S.Bhakuni
आदरणीय दिव्या जी (Zeal)
जिस प्यार की आप बात कररहे हैं उसके संदर्भ मैं जहां तक मेरा मानना है इश्क , प्यार और मोहबत करने वालो का आज तक की मानवीय सभ्यता के विकास में कोई योगदान नहीं रहा है ,आप हीर -राँझा , शिरी -फरहाद ,लैला -मजनू को याद तो करते हैं लेकिन आप कभी नहीं चाहोगे की ये लोग आपके बच्चों की प्रेरणा बने .....क्या आपको नहीं लगता है की इस किस्म का प्यार महज एक आकर्षण ही होता है अर्थात इनको आप बहके हुए कदम कह सकते हैं और ऐसे बहके हुए क़दमों को रोकना कोई गुनाह नहीं होना चाहिए , कुल मिलाकर कुछ सामाजिक नियंत्रण भी होते हैं देश एवं समाज के हित में जिनका पालन होना ही चाहिए और घर -परिवार एवं सामाजिक मान मर्यादाओं का जो युवक -युवतियां सम्मान न कर सके उन्हें आप समझदार कहते हो ?..तो बात आपकी सही है ......अन्यथा जरुरी नहीं की हर व्यस्क युवक-
युवती अपना भाल- बुरा समझते हों..........
इसी baatर निर्भर करता है की प्रेम विवाह करना गुनाह है की नहीं ?
regard-
दिव्या जी क्या शादी सिर्फ दो लोगो के मिलन तक ही सिमित है!
क्या आपको नहीं लगता की इन दो रिश्तो के जुड़ने से कितने और रिश्ते जुड़ते है!
क्यों दो लोग कुछ दिनों की मुलाकात में इतने सेल्फिश हो जाते है की उन्हें लाड दुलार दिए हुए माँ बाप भाई बहन से ज्यादा प्रिय लगने लगते है!
यह छणिक आकर्षण होता है! माँ बाप कभी भी अपने बच्चो का बुरा नहीं चाहते !परन्तु चंद दिनों की मुलाकात में बच्चे अपने माँ पिताजी को ही अपना दुश्मन समझ बैठते है! पलाश जी के कथन से मै सहमत हूँ !मैंने स्वयम तीन तीन विवाह आर्य समाज में करवाए है !जिसमे से दो विवाह टूट चुके है और एक के रिश्ते में कडुवाहट आ चुकी है !और जब इस तरह के विवाह में अवरोध उत्पन्न होता है तो उसे बचने वाला कोई नहीं होता! जबकि अरेंज मेरिज में पूरा समाज होता है !दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे जैसी फिल्मे देखकर ताली बजाने वाले माँ बाप अपने घर में इस तरह की घटनाओ से दुखी होते है !वैसे माँ बाप की अपनी भी मजबुरिया होती है क्योकि एक लड़की के लव मेरिज से उसकी भाई और बहनों के रिश्ते ढूढने में रूकावटे आती है!सामाजिक प्रतिस्ठा में गिरावट आती है !और इसी तरह के कुछ अन्य कारण है............
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अमरजीत जी,
शायद आपने मेरी टिप्पणियां नहीं पढ़ीं। यदि हो सके एक बार उन्हें भी देखें। उसमें आपकी बात का जवाब है।
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दिव्या जी
मैंने सारी टिप्पणियाँ पढ़ी हैं सबकी अपनी अपनी राय है , मैं जहाँ तक समझता हूँ , विवाह में प्रेम की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है ...अक्सर लोग विवाह तो कर लेते हैं, पर उनमें आपसी सोच समझ का स्तर एक दुसरे के बिलकुल विपरीत होने के कारण वो न तो एक दुसरे को छोड़ पाते हैं और न ही एक दुसरे से अलग हो पाते हैं, मेरा जहाँ तक अनुभव है प्रेम विवाह करना किसी भी तरीके से गलत नहीं , परन्तु प्रेम करने वाले व्यक्ति एक दुसरे को सही तोर पर समझते हो ...जहाँ प्रेम है वहां जिन्दगी की खुशियाँ हैं ..वेशर्त प्रेम -प्रेम के नजरिये से किया होना चाहिए ...बहुत विचारणीय प्रश्न उठाया है आपने ...शुक्रिया
pyaar ishwar ka sabse badaa vardaan hai ,ise samajhna sabke vash ki baat nahi tabhi ...... aur rishte apni jagah... pyaar koi badhaa nahi daalta
maine suna aap mujhse naaraz hain , aisa mat karen ... maine aapko padha hai, kuch kah nahi paai iska dukh hai
बिल्कुल भी गुनाह नहीं है प्रेम विवाह ....पर कुछ लोगों या समाज की नजरों में यह जरूर गुनाह हो जाता है ...और उसी का खामियाजा भुगतना पड़ता है प्रेम करने वालों को भी, सुन्दर लेखन ...हमेशा की तरह ।
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रश्मि जी,
आपसे किंचित भी नाराज़ नहीं हूँ। आपका मेरे ब्लॉग पर आना बहुत सुखकर लगा । आपकी आभारी हूँ। स्नेह बनाए रखियेगा।
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भारत माता की बेटी -- 'किरण बेदी' ... vatvriksh ke liye bhejen parichay, tasweer, blog link ke saath
प्रेम विवाह गुनाह नहीं है, पर भारतीय समाज में ज़रूर गुनाह है ... चोरों की बस्ती में शरीफ होना गुनाह है ...
सब मां-बाप कहते हैं-’बच्चों की खुशी में हमारी खुशी है’ पर लागू कब करेंगे ????
अब आया है नया जमाना!
गुजर गया है समय पुराना!
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अब प्रेम विवाह को मान्यता मिलने लगी है!
नये रिश्ते वो भी प्रेम के रिश्ते किसी दूसरे प्रेम को रोन्द कर नही बनने चाहिएं ... जहाँ तक हो सके इसका प्रयास होना चाहिए ....
प्रेम विवाह का समाज में विरोध नही है..
बस विरोध है उसके स्वरूप का ...
जैसे कि @अपर्णा "पलाश" जी ने लिखा है मै उनसे पुर्नतह सेहमत हूँ..
विश्व संस्कृति का यह अनुभव है कि जिस भी प्रथा को हद से ज्यादा ढील दी गयी उसने अपना विकृत रूप दिखाना सुरु कर दिया है.. प्रेम विवाह ने तो अभी पूर्ण स्वतंत्रता भी नही प्राप्त के फिरभी आप उसके विकृत स्वरूप "live in relationship" के रुप में देख सकते है.. जरा बताये कि इस प्रेम के नए स्वरूप के बारे में आपकी क्या धारणा है? हो सकता है कि आप लोग इस रुप को भी स्वीकार कर ले पर इस रिस्ते के विछेद के समय पीछे छूट रहे उन "बच्चों" के भविष्य का क्या होगा? जबकि live इन relationship में कोई साथी किसिसे कितने दिन प्यार (मेरी नजर में दैहिक आकर्षण) करेगा यह तय नही है और ना ही ऐसा कोई कानून या रिवाज है कि उसके परिणाम का जिम्मेदार कौन होगा?
ये ना समझे की मै प्यार के खिलाफ हूँ मैने भी प्यार किया है बस मेरी कहानी थोड़ी अलग है..= मैंने आपने सच्चे प्यार कि शादी में खाना परोशा है.. इसलिए नही कि मुझे मार डालने का डर था या शादी न करने के लिए कोई बड़ी मजबूरी थी.. हमने अपने अर्मानो कि होली अपने परिवार के उस प्यार के सामने हस्ते हस्ते दे दी जिस परिवार ने हमारी जिंदगी के 22 साल हमें एक एक पल जीवन, प्लान पोषण, प्यार, संस्कार, और विद्या निस्वार्थ रुप में दी.. हम इतने बड़े स्वार्थी नही बन सकते कि अपने छनिक प्यार के बदले बरसों बँधे उन अटूट रिस्तो कि अहुति दे दे.. हमारा प्यार आज भी जिंदा है और पहले से ज्यादा खुस है हम .. एक विश्वसनीय दोस्त के रुप में...
मेरा तो यही मानना है कि हम जिसे सच्चा प्यार करते है उस से शादी न करे..
क्योंकि हम अपने प्यार के साथ वो न्याय नही कर सकते जिसके हम उसके लिए सपने देखते है..
जो तड़प, जो इंतज़ार, जो अपनापन, जो सपर्पन दूर रहकर होता है वो क़रीब आकर फीका पड़ जाता है.. अगर हमारे प्यार को कोई और दुःख देगा तो उसके लिए सहारा हम होंगे पर अगर हमने ही उसे वो दुःख दिया तो उसके लिए तो सारी दुनिया के रास्ते बंद हो जायेंगे...
मीनाक्षी पंत जी ने अपने लेख "विडंबना" के माध्यम से हमारी बेटियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठने कि कोशीश कि है.. आपके कमेंट कि प्रतीक्षा होगी :- http://svatantravichar.blogspot.com/2010/12/blog-post_03.html
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बरसकर जी ,
सम्बन्ध विक्षेद तो arranged marriages में भी हो जाता है । इसलिए डिवोर्स तो एक अलग ही मुद्दा है।
आपने कहा आप स्वार्थी नहीं हैं की माता-पिता को छोड़ दें , एक गैर लड़की की खातिर ....
मेरा मानना है की आप स्वार्थी ही हैं, जिसने अपने माँ बाप की भावनाओं को तो समझा , लेकिन एक लड़की की कोमल भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। वो गैर थी , इसलिए उसका दिल तोड़ने में आपको ज़रा भी दर्द नहीं हुआ। अच्छा ही हुआ जो आपने उससे शादी नहीं की। शायद आप जैसे लोग ही शादी के बाद हमेशा अपने जीवन साथी को माता-पिता की तुलना में तुच्छ समझते हैं।
दुसरे ये बात समझ नहीं आती की प्रेम विवाह अलगाव का कारण कैसे हो सकता है भला ? यदि माँ बाप अपनी झूठी अकड़ न दिखाएं और अपने बच्चों की खुशियों को समझें , तो भला अलगाव कैसे होगा ?
ये तो दो परिवारों का मिलन ही है। क्यूंकि ये विवाह है।
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मेरा सवाल तो वही खड़ा है जील जी..
क्या जो माँ बाप अपने बच्चों को सारी उम्र निश्वार्थ प्यार करते है अपने जिगर के टुकड़े कि तरह उनका ललन प्लान करते है उनका कत्ल कर सकते है ??
यदि हा तो इतना बड़ा मेंटली परिवर्तन कैसे हो जाता है,, प्यार से नफरत और नफरत से कत्ल तक ??
यह बहुत बड़ा गंभीर विषय है, इस पर बहुत सोचने कि जरूरत है..
मेरे विचार में प्यार का जो द्वितीय और तृतीय चेहरा है (पूर्व कमेंट में जिक्र किया है..) उसके बारे में हमारे माँ बाप हमसे बेहतर परिचित होते है और इसलिए उनकी कोशिश होती है कि हम अपनी किसी गलती के कारण ऐसा कदम ना उठा ले जिसके कारण बाद में बच्चों कि ख़ुद कि जिंदगी नरक बन जाए साथ ही पीढ़ियों से जिस संस्कृति को हमारे पूर्वजों ने सहेजा है उसे भी आज आ जाए ..
यदि मजबूरी में हम प्राइम विवाह कर भी ले तो आज नही तो कल हमारे परिवार उसे स्वीकार जरूर कर (कुछ अपवादों को छोड़कर) लेते है.. उनका नसीहत यहा भी बड़ी प्यारी होती है -जो हो गया सो हो गया, अब जिस प्यार कि खातिर तुमने इतना बड़ा कदम उठाया उसी प्यार के सहारे अपनी बाकी कि जिंदगी बीतावो वो प्यार कभी कं ना हो सदा खुस रहो..
और हमारी पर्सनल लाइफ कि सुनना चाहो तो यु सुनो ... :-
"उनकी शान बढ़ाने कि खातिर घोड़ी हम बने,,,,
डोली चढ़ते समय पैर उनका फिस्ले और बेंकाब हुए..
हमारी इस दरियादिली को भी दुनिया ने बुज़्दिलि समझा...
तोह्मत हुई कि हमने उन्हें छूने के लिए अपने अरमान रौंदे..."
अजीब दस्तूर है दुनिया का...
farmula far a successful LOVE MARRIAGE---
1.PHYSICALLY FIT ----------
2.MENTALLY fIT---------
3.fINANCELLY FIT--------
EVERY THING IS HIT---
HAMNE TO YAHI APNAYA HAI----AAJ BHEE MAST HAI-----------------------------------------------------
दिव्या जी अभी विस्तृत टिपण्णी नहीं दे पाऊँगी ,पर जिस विषय को मैंने उठाना चाहा था आपसभी ने उसे काफी सहज और सटीक रूप से लिया ............आप सभी की आभारी हूँ मै फिर आउंगी अपने विस्तृत टिपण्णी के साथ ...यहाँ स्वीकारात्मक के साथ नकारामक का भी समावेश है जो वस्तुसिथी के अनुसार तय है ....उसका मान्यता का स्वरूप कैसा है ....
मैंने यहाँ सभी के टिपण्णी पढ़ें.....और निष्कर्ष ये पाया कि बहुत कम ही सूरत में माता पिता का विरोध जायज होता है ....जहा प्रेम एक आकर्षण मात्र हो और जहाँ निकम्मा लड़का या अयोग्य लड़की साबित नज़र आये, तो क्या जो जोड़े अच्छी खासी पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी रोज़गार से जुड़ी होकर अपने परिवार के अन्य सदस्यों कि जिम्मेवारी निभाते हुए किसी से प्रेम कर लें और सारी खूबियों के बावजूद यदि माता पिता विवाह का विरोध करते हों तो यहाँ पर कहाँ से सिर्फ बच्चो को ये कहा जाये माता पिता कि मर्ज़ी से चलो .माना अन्य फैसले जैसे माता पिता ही चलते हैं बच्चों के उपर यहाँ तक कि पढ़ाई का बोझ भी बच्चो कि मर्ज़ी जाने बिना ही उन्हें अधिकांश माता पिता सुना देते हैं ,मेरी इच्छा है तुम डॉक्टर या इंजिनीयर ही बनो . पर ये जानने कि कोशिश नहीं करते कि बच्चो कि क्या मर्ज़ी है उनकी रूचि किस क्षेत्र का है .बस फैसला ना हुआ कि पत्थर कि लकीर कह कह मुहर लगा देते हैं ऐसी ना जाने जीवन कि कितनी सारी बातें होती हैं जिनपर माता पिता बस अपना ही फैसle को सर्वोपरि मानते हैं.. तो फिर विवाह जैसी बात तो बहुत बड़ी हो जाती है फिर इस पर वो कैसे चुके अपने फैसले सुनाने में. बहुतों ने आज तक ये तर्क दिए हैं प्रेम विवाह अक्सर असफल होते हैं , क्या इस बात कि गारंटी कोई दे सकता है कि जो विवाह अरंज कर तय होते है वो भी सफल होते है पूरी तरह . क्या उन दम्पति के जीवन में तनाव नहीं ,उनकी नौबत लड़ाई झगड़े घर से उट्ठ कर कोर्ट तक या माता पिता से निकल कर बाहर नहीं गयी या नहीं जाती. अरंज विवाह में भी रिश्ते बोझिल होते हैं पर यहाँ दबाव माता पिता लड़के पर नहीं अपनी लड़की पर बनाते हैं अब वो घर, पति, परिवार तुम्हारा है कोई भी मानसिक या शारीरिक सामाजिक पारिवारिक यातना लड़की झेलती है .बस उन्हें यही सबक माँ से मिला होता है घर बनाना और बिगड़ना लड़की के हाथों में है .कुछ माँ तो इतना भी कह कर भेजती हैं लड़कियों को ससुराल , कि लड़ कर आई या अकेले आई तो घर के दरवाजे बंद हैं और पति कि सहमती से आई तो मेरे घर के दरवाजे सदा खुले हैं .चाहे आपकी बेटी आपके पसंद के रिश्तों को आपके झूठी मान मर्यादायों कि लाज रखने के लिए कोई भी संघर्ष से गुजरे मानसिक वेदना से शारीरिक वेदना से .जब वो शिकायत भी करना चाहे तो जवाव मिलता है, क्या करोगी तुम्हारे किस्मत में यही लिखा था.और फिर वो सोंचती है अपने भाग्य को कोसे या माता पिता को ....मैंने यहाँ ये काल्पनिक विचार नहीं लिखे ये यथार्त है. जब माता पिता का चुनाव अयोग्य साबित हो तो कहते हैं लड़की या लड़का का भाग्य खराब है,ye कह टालने कि कोशिश .और बच्चों का चुनाव हर तरह से अच्छा भी हो पर माता पिता अपनी बात का राग जातिवाद पसंद ना pasanad कि सामाजिक झूठी शान कि बात को लेकर अपने ही हाथों अपने बच्चो का भविष्य खराब करते हैं .आज कि पीढ़ी अपना भला बुरा सोंचने में सक्षम है इस भागदौड़ कि दुनिया में हर कोई सबसे पहले अपना कैरिअर बनाता है फिर विवाह करता है और आज जिस उम्र में लोग विवह कर रहे वो बच्चो का खेल वाली उम्र नहीं .ना ही यहाँ प्रेम एक आकर्षण मात्र रह जाता है परिपक्व उम्र में नादानी के फैसले होंगे ये कैसे सोंच लेते हैं माता पिता ,एक सफल वैवाहिक जीवन के लिए माता पिता ये तो सोंचते हैं मेरे बच्चो कि ज़िन्दगी में हर खुशियाँ हो लड़का कमाता हुआ हो जो बेटी को हर सुख दे .कुलमिला कर खुशहाल ज़िन्दगी . तो यहाँ पर भौतिक सुखों के साथ एक बात वो भूल जाते हैं वो है समझौता ना होकर मन से किसी भी बात का मिलना मानसिक सोंच .जब दो लोगो का फैसला बस एक समझौता ना होकर दो लोगो कि सोंच एक हो जाये तब वो काम सफल काम कहलाता है तो ये विवाह हो या अन्य फैसले .ऐसे भी जीवन विवाहित जोड़े निभाते हैं ना कि माता पिता .किसी माता पिता का दबाव वो तब तक मानते हैं जब तक वो सामने हो पर सामने से हटते ही मन कि मर्ज़ी से अपने फैसले पर चलते हैं ,जीवनभर के साथ में यदि कोई मनचाहा हम सफ़र मिल जाये तो कोई उसे खोना नहीं चाहता पर, कुछ कुरीतियाँ आज भी पीछा नहीं छोड़ रही . मै आगे भी आउंगी क्योंकि यहाँ पर काफी विषय अभी अधूरे रह गए हैं.....जिस पर किस सूरत में माता पिता का फैसला सही है और किस सूरत में गलत उस पर चर्चा करुँगी.....
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रजनी जी ,
आपने अपनी बात बहुत अच्छी तरह रखी है। हर बात बहुत convincing लग रही है । हर पहलु पर आपने , अपने विचार , बहुत ही तर्कपूर्ण तरीके से रखे हैं। आपके विचारों से बहुत सी बातें स्पष्ट हुई हैं। जिससे मेरे साथ-साथ , पाठकों का भी लाभ होगा।
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At this moment I am going away to do my breakfast, afterward having my breakfast coming yet again to read further news.
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ये भारत की एक बहुत बड़ी समस्या है।यहाँ माँ बाप को अपने बच्चो की ख़ुशी से ज्यादा समाज में 'लोग क्या कहेंगे' की परवाह ज्यादा है। प्रेम तो ईश्वर द्वारा दी गयी सबसे प्यारी अनुभूति है। माँ बाप को इसे समझना चाहिए।
Ladke ko Ghr walo ki margi ke baad love marriage krni chiye ya nhi jbki ladki ke mata pita or ghr wale raji na ho tb....?
Tum log itne bade pravahan kyun faktu ho tum jaise angreje vichar walo ne he to desh aur samaj barbad kiya hai
Aaj bhi hamare desh mai Love marriage karna bahot bda apradh mana jata hai es bat ka muze bahot dukh hai...Agar apne bacche love marriage karana chahata hai to unki choice sahi hai ki nahi ye dekhna chahiye our phir permission deni chahiye..Kyo ki pyar milna bahot jya badi chij hoti hai...Our ma bap ko to apne bacche hamesha khush rahe aisa hi lagata hai..
Pyar or attraction me difference hota hai..use ham love nahi kahenge.
par hame sadi nhi karni h 19 year hua to kiya hua hme abhi beauty plar aur network marketing karna chahte h par mere ghar wale sonte kaha h
Sir iska kuch to solution hoga.. ..
Bahut Sahi
Mr.Arvind ji rishto Ka tutna ya nhi tutna love marriage ya arrange marriage per aadharit nhi hota.. wo khud pe aadharit hota h...rishtey to dono hi marriage me tut te h aur bnte h uska konsi marriage hui h usse koi link hi nhi h..
Mera bhi prem sambandh(same cast) hai Sadi k liye dono taraf se ha bhi ho gyi thi lekin ladki k exident ho gya jisse left pair ka main Nash cut gya aur wo thik se chal nhi pa rahi, Mai ladki ko chhorna nhi chahta lekin Ghar wale nhi man rahe, Ghar wale bhi sahi hai Mera prem bhi sahi hai is condition me Mai Kya karu mujhe samajh nhi aa Raha.
मा बाप जो विवाह अपने बच्चे का करते है क्या वो सब सफल रहता है उसमे जोड़ो में विवाद नहिंहोता है
में आपकी बात से बिलकुल सहमत हुं जो मां बाप अपने बच्चो को इस लायक बनाते है जिससे की वो शादी जैसे निर्णय ले सके और वह अंत में उन्ही के खिलाफ भी हों जाते अपने स्वार्थ के चक्कर में उनके बारे में सोचना भूल जाते है। माता पिता अपने बच्चो के बारे में कभी बुरा नही सोच सकते है। भारत में माता पिता के जज्बातों को समझने के लिए कोई उचित प्रावधान ही नही है। तो माता पिता के भरोसे को बनाए रखने में ही बच्चो को भलाई है
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