न भई ना । मैं नहीं बोर हो रही हूँ। ये तो समस्या है मेरी सासू माँ की । आखिर उनको भारत से आये हुए चार माह जो हो चुके हैं। तीन महींने तो उनके ख़ुशी-ख़ुशी व्यतीत हो गए। लेकिन चौथा महीना आते ही माँ बोर होने लगीं । अनायास ही उनके स्वभाव में कुछ तल्खी भी आने लगी । भारत से देवर का फ़ोन आया , पूछा- " कैसी हो माँ ? उन्होंने कहा अच्छी हूँ , लेकिन बहुत बोर हो रही हूँ। दो एक बार ये सिलसिला जारी रहा तो देवर साब ने भी फोन पर पूछना छोड़ दिया की कैसी हो ।
विदेश आने के बाद ज्यादातर parents को बस एक ही शिकायत हो जाती है - वो है बोरियत। थोड़े समय तो वो नयी जगह एन्जॉय करते हैं, फिर वापस अपने देश जाने को बेचैन हो जाते हैं।
मैंने बहुत सोचा , इसका हल क्या हो सकता है , कैसे मम्मी की बोरियत दूर की जाए। समीर जी की मदद लेनी चाही तो हमेश की तरह एक ही जवाब - "तुम ही कुछ करो " । फिर हिम्मत करके उनसे इस विषय पर बात करने की सोची । चाय बनायीं और बात शुरू की ।
मैंने उनसे पूछा - "मम्मी आपको कुछ परेशानी या दुःख है ? या हम लोगों से कोई गलती हो रही है ? उन्होंने कहा - " नहीं बेटा , तुम लोग तो बहुत ध्यान रखते हो , लेकिन जाने क्यूँ बहुत बोर हो रही हूँ ".
मैंने डरते हुए समझाने की हिम्मत की - " माँ आखिर मैं भी तो घर में अकेली ही रहती हूँ दिन भर , बोरियत तो होनी चाहिए मुझे भी ? लेकिन मैं किससे कहूँ की बोर हो रही हूँ। क्युंकी यही मेरा घर है। यही मेरी परिस्थितियां हैं। जितना है उसी में खुश होना है। कहीं बोर ना हो जाऊं इसलिए लेख लिखती हूँ । इसी बहाने अनेकानेक लोगों के साथ विचारों का आदान-प्रदान होता रहता है । कुछ सीखती भी हूँ इसी बहाने। बोरियत किसी स्थान विशेष से नहीं होती. बल्कि बोरियत हमारे दिमाग में जड़ता आने की वजह से होती है। आपको यदि लगता है की भारत जाकर बोर नहीं होंगी , तो ये आपकी ग़लतफहमी है। आपके पास तीन बेटे बहू हैं । तीनो ही आपको भरपूर प्यार से रखते हैं। आपके लिए तो एक जैसी ही परिस्थिति होगी तीनों जगहों पर। इसलिए जरूरत है आप खुद को व्यस्त रखें । जो पसंद है वो करें । टीवी देखें तथा आस पास लोगों से मिलें । उनका दुःख सुख पूछें। आपको अच्छा लगेगा।
मैंने देखा उनके चेहरे से उदासीनता की परतें छंट रही थीं। मैंने हिम्मत करके पुनः कहा -- " आप मेरे पिताजी को देखिये , लखनऊ में अकेले रहते हैं। न पत्नी है न बहू, जो देख-भाल करे। diabetes और पथरी जैसे रोग से जूझते हुए भी अपना खाना स्वयं बनाते हैं और तब ही एक निवाला मुंह में जाता है । आपके पास तीन बेटे और तीन बहुएं हैं प्यार और सम्मान देने वाली और जो आपका ख़याल रखती हैं। लेकिन उनके पास तो तीन बेटियां हैं जो परदेस में रहकर उनका ख़याल भी नहीं रख सकतीं। लेकिन वो हमेशा खुद को व्यस्त रखते हैं। घर का काम स्वयं करते हैं। फिर टीवी चलाकर क्रिकेट देखते हैं और देश-विदेश से जुडी खबरें सुनते हैं। और भूख लगने पर पुनः रसोई में जाकर कुछ भोजन का जुगाड़ करते हैं। और व्यस्त रहते हैं अपनी दिनचर्या में। जब किसी बेटी का फ़ोन आता है तो चहक पड़ते हैं और लग जाते हैं पूछने ढेरों सवाल - क्या समाचार है?, दामाद जी कैसे हैं ?, बच्चे कैसे हैं ?, ठीक से खाना-पीना, स्वास्थ्य का ध्यान रखना, तुम लोग कब आ रहे हो इत्यादि ।
मैंने देखा माँ की आँखों में नयी चमक आ गयी थी और चेहरे पर एक नयी स्फूर्ति । मेरी चर्चा सफल रही । कल देवर का फोन आया , पूछा -" कैसी हो माँ ?"
माँ ने कहा - " मैं बिलकुल मस्त हूँ यहाँ , और अब अगले वर्ष अगस्त में आऊँगी भारत" । कहकर वो मेरी तरफ मुड़ीं और मुस्कुरायीं ।
आजकल माँ को एक नया काम सौंपा है - ब्लॉग लिखने का। मुझसे पूछती हैं- किस विषय पर लिखूं ?
मैंने कहा- " आपको तीन महीने का वक़्त देती हूँ एक अच्छा सा टॉपिक सोचिये। माँ busy हैं , टॉपिक सोचने में।
और समीर जी परेशान हैं ये सोचने में की आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे ? मुझसे पूछा आखिर सब "सेट-राईट " किया कैसे?
हमने भी कह दिया - " ब्लोगिंग बुरा नशा है। माँ को टॉपिक decide करने दीजिये।
67 comments:
बहुत बढ़िया ....:) :) उनका जब ब्लॉग बने तो उसका पता हमें भी दीजियेगा ....सच है मेरे जैसे उम्र के लोगों के लिए ब्लोगिंग नशे से ज्यादा दवा है बोरियत दूर करने की ....तुम्हारी सासू माँ के लिए अग्रिम शुभकामनायें और तुमको बधाई
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आप अच्छी दिशा-निर्देशक भी हैं. आपने एक सफल और सार्थक प्रयास किया. मन बेहद प्रसन्न हुआ.
मेरे प्रयास आपके प्रयासों की तरह सफल नहीं हो पाते. खैर आप पारंगत हैं.
जो दवा देना और मरहम लगाना जानता है उसकी वाक्-क्षमता प्रबल हो ही जाती है.
एक अच्छे प्रयास के लिये साधुवाद.
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सच है लेखन है ही ऐसा नशा। इस नशे के अभ्यस्त व्यक्ति ना दुखी होते हैं और ना बो। बस लिखते रहो और लिखते रहो। हमें इंतजार है आपकी माँ के आलेख का। उन्हें हमारी शुभकामनाएं प्रेषित करें।
ब्लॉगिंग में पैर रख दिया तो बोरियत उड़ जायेगी।
videshon me vaibhav hai lekin jo atmiyata bhartiy parivesh me hai vo vahan nahi milti hai maa ka dukhi hona swabhavik hai
dr.divyaji indian atmoshphear is not avilable in foreign the old wants a comlete faimly not a nucl.family.
पहली बात तो ये कि बहुत अच्छा सुझाव बताया है आपने.
जीवन में बोरियत का जो कारण आपने बताया है, उससे मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ. इसे मिटाने का एक और रास्ता भी है जो मैंने अपनाया है, जो लोग समाज के हाशिए पर हैं, गरीब हैं, उनकी मदद करना, इससे जो आत्म संतोष मिलता है वो भौतिक सुखों से नापा नहीं जा सकता है.
सुन्दर लेख के लिए आपका साधुवाद.
अरे यह ब्लॉगिंग का नशा होता ही ऐसा है!
एक बार लग गया तो पीछा ही नहीं छोड़ता!
अच्छा नशा है - दवा-दारू भी. सब को ब्लॉगिंग में लगा कर आराम करना मुश्किल होगा दिव्या जी. निमंत्रण आने लगेंगे - टिप्पणी के लिए.
बहुत बढ़िया है की समय काटने के लिए ब्लागिंग का सहारा लिया जाये...
blogging is panacea for the bores n boredom. nice suggestion.....................
हा हा हा....
ब्लौगिंग है ही चीज़ ऐसी... उम्मीद है उनकी बोरियत अब ख़त्म हो जाएगी...
इस एक के decide होते तक आपके ब्लॉग के लिए कई टॉपिक निकल आयेंगे, आशा है.
यह ब्लॉगिंग का नशा होता ही ऐसा है!और आपने बहुत अच्छा रास्ता सुझाया उन्हें जब ब्लोग बन जाये उनका तो बताईयेगा।
ओह!! सरल हृदया माताजी, उन्हें पता भी नहिं बोरियत की दवा के साथ बहू नशा पिला रही है।:) (निर्मल हास्य)
संगीता दी ने सही कहा, ब्लोगींग सार्थक सहारा है व्यस्त रहने के लिये। और आपका प्रयास भी उचित है।
माताजी के ब्लोग-पोस्ट करने पर सूचित अवश्य करें।
पहचान कौन चित्र पहेली को अभी भी विजेता का इंतज़ार....
Dearest ZEAL:
Nice reading.
Semper Fidelis
Arth Desai
वाह , एकदम सही जगह सेट किया माताजी का दिमाग , इस अफीम के नशे (ब्लॉग्गिंग) की लत सारी बोरियत को झू मंतर कर देगी , और साथ में कुछ पोजिटिव सोचने के लिए प्रेरित भी . देख लेना जिस दिन माताजी की पोस्ट आयी ना तुम्हारी छुट्टी . हा हा हा .
बुजुर्गों को कोई बात करने वाला चाहिए , जो उनकी बात सुन सके ।
अपने अभी बताई हैं , अब सुनियेगा भी । फिर देखिये कैसे मस्त होती हैं ।
वैसे ब्लोगिंग की आदत भी बुरी नहीं है । बस पहले मैं , पहले मैं मत शुरू कर देना जी ।
बात सच है ये एक नशा ही है...
हा हा हा.. Aunty ji को भी आपने फंसा ही दिया ना!! :)
बहुत अच्छा तरीका दे दिया है आपने मम्मीजी के दिमाग को । अब आप भी व्यस्त और वे भी...
Rightly said,one should keep himself always busy.
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डॉ दराल ,
आपने सही कहा बुजुर्गों को चाहिए जो उनकी सुने , उनसे बात करे । लेकिन कोई कितनी बात करेगा , और कितना सुनेगा। हर उम्र में व्यक्ति की अपने शौक और ख्वाहिशें होती हैं। परिवार के सदस्यों को चाहिए की यथा संभव उन्हें समय दें , और बुजुर्गों को चाहिए की वो समझें परिवार वालों की ज़रूरतों को। एक ही तो जिंदगी होती है। हर कोई जीना चाहता है अपनी जिंदगी अपने अंदाज़ में और बिताना चाहता है थोडा वक़्त अपने लिए भी।
बुढापा एक ऐसा पड़ाव है , जहाँ पहुँचने तक व्यक्ति उम्र के हर दौर से गुज़र चूका होता है। उसने भी अपने बुज़ुर्ग को बोर होते देखा होगा। यथा संभव अपना समय भी दिया होगा। लेकिन हर दिन २४ घंटे तो शायद ही किसी के साथ कोई बैठ सके ।
अपने मन को खुश रखने के लिए हमें अपनी रूचि के अनुसार शौक पैदा करने चाहिए। किसी दुसरे की निरंतर उपस्थिति पर निर्भर नहीं करना चाहिए। क्यूंकि हर कोई व्यस्त है। सबकी अपनी-अपनी व्यक्तिगत उलझनें हैं।
इसलिए हमें खुद को ऐसी जगह व्यस्त करना होगा , जहाँ हम अपने समय का सदुपयोग कर सकें । और दूसरों से समय की अपेक्षा भी न रखें।
ऐसे में सबसे कारगर उपाय होता है , अपनी उम्र के मित्र । उनसे थोड़ी देर मिलकर , दिल की बात कहकर व्यक्ति हल्का महसूस कर सकता है। लेकिन जो लोग ज्यादा मिलनसार नहीं होते , वो थोड़े कष्ट में तो रहते ही हैं।
अपनी बोरियत भगाना अपने ही हाथ में है। दुसरे कहाँ तक साथ देंगे ? सब की एक क्षमता तो होती है...
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बोरियत किसी स्थान विशेष से नहीं होती. बल्कि बोरियत हमारे दिमाग में जड़ता आने की वजह से होती है।
Xxxxxxxxxxx
ब्लोगिंग बुरा नशा है
यह बिलकुल सही है ...चीजों के प्रति हमारा नजरिया हमें रचनात्मक बनता है ...यह फिर वही चीजें हमें बोर करने लगती हैं .....
@...ब्लोगिंग बुरा या अच्छा नशा है , यह तो मैं नहीं कहता ..पर इतना कहूँगा सिर्फ नशा है ....शुक्रिया
अपने आप को अभिव्यक्त करने का नशा बहुत गहरा होता है ख़ासकार ऐसे प्लेट्फ़ोर्म में ( ब्लाग्स में) जहां हज़ारों नहीं तो दस बीस लोग तो ज़रूर उसे पढेंगे ही और उनमें से कुछ उस पर अपने विचार भी रखेंगे आपने एक अच्छा रस्ता चुना है मार्ग दर्शन के लिये।
दिव्या जी यह आप का एक ऐसा लेख़ है, जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है. आपने बुजुर्गों की प्रॉब्लम को समझा भी और बेहतरीन तरीके से उसको हल भी किया...
शायद मैं अपने किसी लेख़ मैं इसका ज़िक्र भी करूं. माता जी का ब्लॉग भी अलग से बना दें...हम सब भी उनके तजुर्बे से कुछ सीख लेंगे.
बहुत बहुत शुक्रिया आपका..
माता जी को ब्लागिंग से जोड़कर बहुत अच्छा किया, एक बार उनको ये लत लग गयी तो फिर बोरियत का तो सवाल ही नही, जब वें ब्लाग लिखे तो हमे भी बताना, माता जी के लिए शुभकामनाये।
अरे वाह. यह तो बहुत अच्छा हुआ.
मैं भी अपने ससुराल में सभीको ब्लौगिंग करने की सलाह दूंगा. कम-से-कम एक सही काम तो सबको करना ही चाहिए.
आपका ब्लॉग मै बराबर पढता हू आप बहुत अनुभव पूर्वक लिखती है रहती है थाईलैंड में चिंतन भारतीय संस्कृति क़ा ,अपने अपनों शास के बारे में लिखा है उनका बोर होने क़ा भाव भी अपनी संस्कृति क़ा प्रतीक है भारत में ब्यक्ति बोर नही हो सकता यहाँ मनोरंजन के नाम पर अध्यात्म विकसित किया जाता है.
हा हा हा , वाकई दिव्या जी, ये ब्लॉग्गिंग बुरा नशा है.
बेटा मेरा भी सर पर खड़े होकर कोम्पुटर बंद करने का बटन दबाने लगा है.
‘लेकिन चौथा महीना आते ही माँ बोर होने लगीं ।’
अरे नहीं जी, कोई सास भला बहू के घर में बहू बन कर कैसे रह सकती है। अपने घर में तो वह सास ही रहेगी ना :)
@
मैंने डरते हुए समझाने की हिम्मत की - माँ आखिर मैं भी तो घर में अकेली ही रहती हूँ दिन भर , बोरियत तो होनी चाहिए मुझे भी ? लेकिन मैं किससे कहूँ की बोर हो रही हूँ। क्युंकी यही मेरा घर है। यही मेरी परिस्थितियां हैं। जितना है उसी में खुश होना है। कहीं बोर ना हो जाऊं इसलिए लेख लिखती हूँ । इसी बहाने अनेकानेक लोगों के साथ विचारों का आदान.प्रदान होता रहता है । कुछ सीखती भी हूँ इसी बहाने। बोरियत किसी स्थान विशेष से नहीं होती, बल्कि बोरियत हमारे दिमाग में जड़ता आने की वजह से होती है।
एक मनावैज्ञानिक काउंसलर की तरह मां जी के सामने आपने जो उक्त विचार रखे, वह अत्यंत प्रशंसनीय है।
दिनचर्या की एकरसता भी बोरियत का कारण बनती है। ब्लॉगिंग के भीतर तो नित नवीन दुनिया है। आपके इस सुझाव ने मां जी के लिए उत्प्रेरक का कार्य किया।
मां जी के लिए शुभकामनाएं ओर आपके पिताजी के धैर्य और जीवटता को प्रणाम।
Sorry for the silence for the past few days.
Was busy for the past one week and could not find time for blog reading and commenting.
I am catching up with your blogs only now.
Glad to hear about your attempts to help your mother-in-law overcome boredom.
I suggest she can start by reading other's blogs.
She can make a beginning by writing comments.
Can she type on the computer?
If not you will have to help her.
Teach her to browse web sites.
In today's world for a person who can read and write, and with access to a computers and internet boredom should be impossible!
Five years ago I taught my wife to handle a computer. Now she fights with me for the laptop at home!
My regards to your Mother in law.
G Vishwanath
दिव्या जी बहुत सुन्दर पोस्ट. लेकिन ब्लॉग्गिंग ही सभी समस्याओं का समाधान नहीं. और आप जैसी सेंसीटिवे daughter-in-law कितनी है? जिंदगी इतनी आसान नहीं. अकेलेपन का दर्द आज के बुजुर्गों के लिए बहुत बड़ी समस्या है. आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर न होते हुए भी अकेले पन का दर्द बहुत असहनीय होता है..
हाहाहा
बहुत सही आदत लगवाई है। यह नशा छूटे नहीं छूटेगा।
हाहाहाहहा दिव्या जी आप सही मैं सोचती और उसे अमल में लाने का तरीका जानती हैं। सही कह रही हैं आप। नशा ब्लॉगिंग करवा दिया आपने जो हो सकता है कई लोगो के लिए फायदे का सौदा हो। हो सकता है कि उनके जीवन अनुभव से कोई सीख ले सके। या हो सकता है कि आपको भी कई ऐसे अनछुए पहलू देखने को मिल जाएं सासू मां के जो अब तक आपको पता नहीं हो।
आपको टिप्पणी देने वाला अब एक और बढ़ गया है ।
आप उन्हे मेरी शकल दिखा दीजिए मेरा नाम बता दीजिए
क्या मजाल जो बोरियत उनके बेडरुम के अन्दर फटक जाए ।
बस मम्मी जी का नाम अभी मत बताना और उनके ब्लाग पर फोटो रचना स्टाइल मे लगाइयेगा ।
सुन्दर सा , अलबम से तलाश करके ।
अच्छी दिल्लगी रहेगी ।
देखना टिप्पणिया पचास कूद जाएगी या आपकी मम्मी की उम्र से भी ज्यादा भी मिल सकती है ।
ब्लॉगिंग का नशा ...क्या बात है ...
आपके लेख में अपना भविष्य देख रहे हैं ...!
यह बात हुई।
.
कैलाश जी,
अकेलेपन का दर्द असहनीय तो होता है , लेकिन उसके जिम्मेदार व्यक्ति स्वयं ही होता है। जो लोह मिलनसार नहीं होते और दूसरों के सुख दुःख से सरोकार नहीं रखते , वो अक्सर खुद को अकेला ही पाते हैं।
व्यक्ति को चाहिए की अपनी उपयोगिता बढाए। हर उम्र में हम पास पड़ोस और परिवार वालों के काम आ सकते हैं। लेकिन जो लोग इस इंतज़ार में रहते हैं की कोई कोई उनके साथ बैठकर उनके इतिहास को सुनता रहे तो वो संभव नहीं है।
बोरियत तभी होती है जब सुख और वैभव जीवन में संघर्षों को समाप्त कर देते हैं। इंसान विलासिता का आदि हो जाता है तथा परिवार और परिवेश में लोगों के दुःख-सुख में रूचि नहीं रखता। जो श्रम नहीं करते वो भी बोर होते रहते हैं।
बोर होना Clinical depression की निशानी है।
बोर होना अकर्मण्यता को दर्शारी है। हर उम्र में खुद को समाजोपयोगी बनाना पड़ता है। युवावस्था में अपना घर परिवार देखने और बच्चों के हितों को देखने में व्यतीत होता है तो वृद्धावस्था में भी तो घर में अगली पीढ़ी आ जाती है । उनके साथ भी तो खुशहाल समय व्यतीत किया जा सकता है।
यदि काम करना अच्छा न लगे तो कम से कम , अपनी आराम भरी जिंदगी को भरपूर जीना चाहिए बिना शिकायत किये।
जीवन जीना एक कला है। सीखनी चाहिए। खुद को खुश रखना आना चाहिए । और कोशिश करनी चाहिए की दूसरों की खुशियों का कारण बन सकें।
सबसे बड़ी बात जब आपके पाके पास बेटा , बहु और परिवार है तो आप बोर क्यूँ हो रहे हैं ? इतने लोगों के बीच भी कोई बोर हो दुःख का विषय है । जब हम अपने परिवार वालों से बेहद जुड़े हुए होते हैं , तो बोर नहीं हो सकते। बोरियत तभी होती है जब परिवार के सदस्यों से जुड़ाव कम हो जाता है।
घर के बुजुर्गों को जब प्यार और सम्मान बेशुमार मिल रहा हो तो उन्हें भी अपना प्यार , अपनों पर लुटाकर अपने बड़प्पन का परिचय देना चाहिए।
.
क्या उनका एक अलग ब्लॉग शुरू किया जा रहा है या आपके ब्लॉग में ही वो अपना लेख देंगे ?
खैरत, जो भी हो, बुजुर्गों के लिए अच्छा है ... उनका मन भी लगा रहेगा और हमें भी उनके तजुर्बे से कुछ सीखने को मिलेगा ..
सच कहा आपने...
मैंने भी कनाडा आने के बाद ही ब्लॉग लिखना शुरू किया और आप लोगो का स्नेह भी खूब मिला. लिखकर अच्छा लगता है.....
मुझे तो अन्य social websites से अच्छा ब्लॉग लिखना लगता है.....
ये जरूर जानना पड़ेगा की पहला टोपिक कौन सा आया आपकी माताजी के जहन में?
bahut hi achhe dhang se bahut kuch kah diya
Divya Ji,
Firstly i learnt that my Hindi has gone really bad in the years. I had not realized it.
Todays materialistic world, no one thinks about others. You do, thats evident. There is that other thing i see, you address a problem when the other is looking for a solution. But just a question i have, When does one live for oneself? Or is living for others, life of self?
... kyaa baat hai ... rochak post !!!
डाक्टर साहिबा! सही सलाह की दवा दी है, सासू माँ क़ॉ।
ब्लोगिंग वो नशा है जो सर चढ़्कर बोलता है!
आपने एक बार फिर इस लेख के माध्यम से बहुत कुछ कहा है ...समझा है मां जी को..एक नई दिशा दी ...शुभकामनायें ...।
@--But just a question i have, When does one live for oneself?
Dear AS,
You already have given the right answer of your question.
This is how we continue living our lives. Living for others is the right way of living life. It gives us peace and satisfaction.
Those who live for themselves only , they end up complaining everytime.
Above all living life wonderfully is an art. We ought to apply our knowledge, experiences wits and common sense in all our endeavors to achieve peace , happiness and satisfaction.
regards,
.
mujhe bahut khushi he ki aapne apni saas ko aur unki pareshani ko samjha or use suljhya bhi or likhne ke liye unhe prerit kiya kionki apni bat ko dusron ke sath share bhi ho jati he or dusron aap smpark me bhi rahte jo ki boriyet ko bagane bahut hi sahi upaye he aapko hamari puri team ki tarph se shubhkamnayen....................
तुम्हारी इस बात ने भावुक कर दिया--लेकिन उनके पास तो तीन बेटियां हैं जो परदेस में रहकर उनका ख़याल भी नहीं रख सकतीं। बेटी वालों को तो बेटियों के जन्म लेते ही मन बना लेना पडता है। मै भी तो तभी ब्लागिन्ग करने लगी। तीनो बेटियाँ अपने मे मस्त रहें।
आपने सही काम किया एक बार आपकी सासू जी को ब्लागिग का नशा लग गया तो बस बोरियत गायब। शुभकामनायें।
बहुत ही रोचक पोस्ट . बुजुर्गों को स्वयं को व्यस्त रखने की प्रयास भी करना होगा.
उपरोक्त में बहुत कहा गया सिर्फ इतन कहूँगा कि डाक्टर ने मर्ज भी पहचाना और इलाज भी सही किया माता जी एवं आपके पिताजी को हार्दिक चरण स्पर्श
Very Nice......
ये एक नशा ही है जो सर चढ़्कर बोलता है
ब्लोगिंग अच्छा नशा है। माँ को टॉपिक decide करने दीजिये।
अच्छी सोच, नेकी की बात .
हम हैं सदा आपके साथ .
सुन्दर लेख के लिए आपका साधुवाद.
आप तो gr8 हो। आपके ब्लोग पर मेरा यह प्रथम आगमन है। अच्छा लगा अब लगातार आना पडेगा।
डा. दिव्या जी ,
आपने जो रास्ता अपनी सासू माँ को सुझाया है निश्चय ही अब वो कभी बोर नहीं होंगी !
आपका यह लेख बहुत सारे लोगों के लिए हितकारी होगा !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत अच्छा इलाज ढूंढा है डॉक्साब, मैने भी यही अपना रखा है !
दिव्याजी
कभी कभी मिलनसार व्यक्ति भी बोर होने लगता है |असल में बोर होना भी "कहना "एक टेक बन गया है |खैर !अपने जो सासु माँ को सुझाव बताया है बहुत अच्छा है इसी सुझाव पर तो मै भी अमल कर रही हूँ जो मेरी बहू ने मेरे बंगलौर में रहने पर बताया था |नशा का नशा और इतने लोगो से घर बैठे मिलना |
वाकई ब्लाग लेखन बड़े काम की चीज है |
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हद है,
जिस मँच के विचार विमर्श, हिन्दी में दुनियावी सँदर्भों के एक मज़बूत डाटाबेस तैयार करने एवँ सँरचनात्मक सृजनात्मक की अपार सँभावनायें मौज़ूद हैं, वहाँ इसे एक नशे का प्रतिमान बना कर झूमने की होड़ मची है ।
बेहतर होता कि माता जी को दो घँटे दिये जाते, पुरानी पीढ़ी के सँस्मरण और अनुभव हमें अतीत में जाने की अँतरदृष्टि देती है ।
साँघातिक अस्वस्थता की अपनी वर्तमान स्थिति में भी मैं अम्मा के पास दो घँटे अवश्य बैठता हूँ । उन्हें लगता है कि वह बताना भूल गयी हैं, इसलिये वही सुनी सुनायी बातें बार बार सुनता हूँ और उनके चेहरे पर उतराती तृप्ति को निखारने के लिये किसी सीरियल के ताज़ा इपिसोड की कहानी सुनाने का आग्रह कर देता हूँ, वह ऎसे खिल उठती हैं, जैसे इसी से अपने जीवन को सार्थक कर रही हों ।
ब्लॉगिंग को नशे का प्रतिमान मानना ग़वारा नहीं हुआ, इसलिये अनिच्छा से टिप्पणी दे दी । तुम इसे आराम से डिलीट कर सकती हो । जब मै स्वयँ ही दुनिया से डिलीट होने के कगार पर हूँ, सो कोई वाँदा नहीं ।
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डॉ अमर ,
अच्छा लगा ये जानकार की आप अपनी अम्मा के साथ रोज दो घंटे बैठते हैं। जारी रखियेगा। मैं भी समीर जी से कहूँगी की वो सुबह सात बजे घर से निकल जाते हैं और रात्रि दस बजे घर आकर टीवी देखकर और भोजन पश्चात निद्रा देवी के आगोश में चले जाते हैं , उन्हें भी माताजी के साथ ११ से रात्रि एक बजे तक अपनी अम्मा जी के साथ बैठना चाहिए। आखिर इस डेली रूटीन में पति सहयोग कर दे तो अच्छी बात होगी ना।
वैसे आजकल के पुरुष , पत्नियों के लिए तो समय निकालते नहीं, बच्चों की पढाई लिखाई से कोई मतलब नहीं रखते , बहुत से पिताओं को तो ये भी नहीं पता होता की उनका बच्चा किस कक्षा में पढ़ रहा है। बस पत्नियों को उपदेश देंगे की अम्मा के साथ दो घंटे बैठा करो ।
अरे एक तो ८० फीसदी महिलाएं वैसे ही समाज हित में कुछ नहीं करती , और जो अपने समय का सदुपयोग समाज और देश हित में सार्थक रूप से करना चाहती हैं, उनको भी यही उपदेश की दो घंटे रोज़ अम्मा जी के साथ बैठो। अरे भाई जब आप जैसे बेटे दो घंटे बैठते ही हैं तो भाग्यशाली बहुएं भी बच जाती हैं इस दुरूह कार्य से। वो भी बूढी होने से पहले कुछ वक़्त अपनी रूचि का करके गुज़ार कर सकती हैं।
डॉ अमर , कभी गौर से सोचियेगा की महिला के पास कितना वक़्त होता है और वो किस तह से टाइम मनेजमेंट करती है।
आपका पिटा-पिटाया dialogue तो सदियों से सुनते आ रहे हैं। एक व्यस्त महिला होने के नाते मैंने अपनी सास को एक व्यवहारिक उपाय बताया है। आपके जितना इफरात समय मेरे पास होता तो मैं और भी बहुत से समाजोपयोगी कार्यों में खुद को busy रखती।
हर किसी की अपनी परिस्थियाँ होती हैं। मैंने कभी अपनी परिस्थितियों की शिकायक करना नहीं सीखा , बल्कि मुझे लगता है मेरे बहुमूल्य दो घंटों से लाखों लोग लाभ उठा सकते हैं।
फिर उस कीमती समय को किसी की बोरियत दूर करने में व्यर्थ कर दूँ ?
जी नहीं, मैं किसी को ये राय नहीं दूंगी की किसी की बोरियत दूर करने का सामान बनो। इंसान को चाहिए की वो खुद को सक्षम और समाजोपयोगी बनाए। न की सास की बोरियत दूर करने में समय गवाए फिर अपनी बहु से वही अपेक्षा रखे , फिर वही क्रम....
आज इतनी महिलाएं ब्लॉग जगत में समाजोपायोगी लेख लिख रही हैं और अपनी बहु की खुशियों का भी ख़याल रख रही हैं, वे न तो बोर होती हैं। न ही बोर करती हैं।
जो महिलाएं अपने बेटे बहु और पोते-पोती से स्नेह नहीं रखतीं, वही बोर होती हैं, वरना जहाँ हर प्रकार का सुख है, साथ घुमने आ जा रहे हैं, भरा पूरा परिवार है, वहां भी सासें बोर क्यूँ हो रही हैं ? क्या चाहिए उन्हें ? क्या ऐसे लोगों को समय चाहिए किसी का ? नहीं ! कुछ लोग खुश रहना ही नहीं जानते ।
कम से कम मेरे पास तो और भी बहुत से गम हैं जमाने में इस बोरियत भगाने के सिवा । जब तक जीवित हूँ , समाज के लिए ही कुछ करती रहूंगी। मेरा परिवार बहुत बड़ा है। भ्रष्टाचार ख़तम करने , चिकित्सा व्यवस्था बेहतर करने और विकास की दिशा में कुछ सकारात्मक कर लूँ उसके बाद किसी व्यक्ति विशेष की बोरियत भगाने के विषय में सोचूंगी।
इश्वर ने एक ही जीवन दिया है , उसकी कीमत समझती हूँ। और वक़्त कितना कीमती है , ये बहुत अच्छी तरह समझती हूँ।
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@-तुम इसे आराम से डिलीट कर सकती हो ।
डॉ अमर ,
डिलीट क्यूँ करुँगी। आपके विचारों से बहुत लोग लाभान्वित होंगे।
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आप ने अपनी सासु मां की नब्ज को ठीक पहचाना दिव्या जी!....वैसे किसी भी काम को अहम बना कर या मन लगा कर करते रहने से बोरियत पास फट्कती नही है!....वैसे कई बार अपना घर छोड कर दुसरी जगह पर ज्यादा समय तक रहना पडे...तो भी बोरियत महसूस होती है!....कई लोगों का तो तकिया कलाम ही होता है कि...मै तो बोर हो गया!' ...बहुत महत्वपूर्ण विषय पर आप ने प्रकाश डाला है...शुभेच्छा!
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