Friday, July 23, 2010

सावधान !---आभासी दुनिया का एक बदसूरत पहलू---

पुरुष एवं स्त्री दोनों के हित में.....

पिछले वर्ष अखबार में न्यूज़ आयी की बंगलोर में कुछ लडकियां , आभासी दुनिया के ज़रिये अमीर लड़कों को फंसा रही हैं, फिर उन पर इमोशनल अत्याचार करके उनसे पैसे ऐंठ रही हैं।

तुरंत पिताजी और भाई का फ़ोन आया कि इन्टरनेट यूस करना बंद करो, बहुत खतरा है।

हमने कहा ख़बरों में बताया गया है की लड़कों पे खतरा मंडरा रहा है , आप मुझे क्यूँ भयाक्रांत कर रहे हैं? पिताजी ने कहा, जब लड़के खतरें में हैं तो सोचो लड़कियों का क्या हाल होगा ?

खैर पुरुषों का तो नहीं जानती , लेकिन स्त्री होने के कारण जो अनुभव किया है वो व्यक्त कर रही हूँ॥

रियल लाइफ में तो ऐरे , गैरे , नत्थू खैरे किसी को मौका नहीं मिलता , अपने से बेहतर पुरुष अथवा स्त्री से बात का या फिर दोस्ती का। आभासी दुनिया ने आपस में दोस्ती और चर्चा को बहुत सुलभ बना दिया है। लेकिन ज्यादातर चीज़ों का गलत प्रयोग ही होता है , जो यहाँ भी देखने को मिलता है ।

कुछ पुरुष , ऊँगली पकड़कर पहुंचा पकड़ लेते हैं। पहले महिला कि घरेलु समस्याएं सुनते हैं, उसे मानसिक सपोर्ट देते हैं, फिर अपना दुखड़ा रोते हैं और महिला कि सहानुभूति लेते रहते हैं। धीरे धीरे उसपर अधिकार जमाने कि चेष्टा करते हैं , उसके वजूद का मालिक बनने कि कोशिश करतें हैं। महिला यदि मानवता के चलते , उस व्यक्ति से शराफत से पेश आती है, सहानुभूति रखती है, उसकी उलझनों को सुलझाने का एक सार्थक प्रयास करती है , एक अच्छी दोस्त का फर्ज निभाती है , तो पुरुष उसे फॉर ग्रांटेड ले लेता है तथा उसके भोलेपन का नाजायज़ फायदा उठता रहता है। स्त्री में बर्दाश करने कि क्षमता ज्यादा होने के कारण तथा स्वभाव से सहेनशील होने के कारण , वह पुरुष मित्र कि गैर -वाजिब बातों को बर्दाश्त करती रहती है।

जब बर्दाश्त कि हदें टूटने लडती हैं , तो घुटन से मजबूर होकर , वह स्त्री दूरी बना लेती है।

लेकिन यह दूरी पुरुष के स्वाभिमान [अहंकार] को चोट पहुंचती है और वह स्त्री का शिकार न कर पाने से आह़त होकर, तरह तरह से उसे प्रताड़ित करने लगता है। लेकिन बुद्धिमान स्त्री इस विषम परिस्थिति से बाहर आ जाती है।

संभवतः पुरुष भी आभासी मोहक सुन्दरता के शिकार होते होंगे । इसलिए पुरुष एवं स्त्री दोनों को आभासी मायाजाल से सावधान रहने कि जरूरत है।

कोई ऑथेंटिक बात तो नहीं है यह फिर भी मुझे लगता है है कि - पुरुष, पुरुष के साथ तथा स्त्री , स्त्री कि बेहतर मित्र हो सकती है । पुरुष और स्त्री के बीच दोस्ताना रिश्तों कि उम्र बहुत छोटी है।

दोस्ती का अर्थ जो स्त्री समझती है, वह पुरुष कि परिभाषा से मेल नहीं खाता। स्त्री समझती है , यह कितना मृदु स्वभाव का है, एक अच्छा मित्र है। जबकि पुरुष चाहता है कि यह सिर्फ मेरी होकर , मुझे ही समर्पित रहे। किसी दुसरे से बात ही न करे। लेकिन यही कोई स्त्री पुर्णतः समर्पित है , तो पुरुष उसको पाने के बाद अगले शिकार कि तलाश में निकल पड़ता है। ये सिलसिला चलता रहता है, कभी न थमने के लिए।

क्या इसका कोई हल है ?

जी हाँ इसका हल है ।

पिता , भाई , पति तथा पुत्र के अतिरिक्त स्त्री एवं पुरुष में यदि कोई रिश्ता मिठास के साथ जीवित रह सकता है तो वह सिर्फ भाईचारे का रिश्ता है।

विश्वबंधुत्व !

वैसे आपका क्या ख़याल है ?

Thursday, July 22, 2010

मेरी सासू माँ....ससुराल बेला फूल ...

हम भारतीय कितने खुशनसीब हैं की हमारे पास एक नहीं बल्कि दो-दो माएं होती हैं।

कहते हैं की पुण्य कर्मों से ही सुन्दर शकल और अकल मिलती है, लेकिन मुझे मेरे पुण्य कर्मों से एक बेहद प्यार करने वाली ' सासू माँ ' मिली ।

आज मुझे जन्म देने वाली माँ जीवित नहीं हैं , लेकिन उनकी कमी सासू माँ ने पूरी कर दी है। जीवन में कुछ विषम मौकों पर , माँ ने ये बता दिया की मैं अकेली नहीं हूँ और वह सदैव मेरे साथ हैं। मेरी ये माँ , मेरी आखों में आंसू नहीं देख पाती हैं। एक वाकया यहाँ शेयर कर रही हूँ ...

ससुर जी [ जो मंत्री थे ], के निधन पर , मुख्य मंत्री हमारे निवास पर शोक प्रकट करने के लिए आये। १५ मिनट के फोर्मल शोक के बाद जब मुख्या मंत्री तथा उनके साथ बहुत से लोग चले गए तो कुछ माननीय गण तथा घरवाले बैठे थे । पिताजी के साथ रहे 'भा जा प् ' के वरिष्ठ नेता ने शोक का माहोल बदलने के उद्देश्य से कुछ गाँव की बातें शुरू की , की हमारे ज़माने में ऐसा होता था , इत्यादि...

दुर्भाग्य वश मैंने उनसे पुछा ..." अंकल आप एक्टिव पोलिटिक्स से बहार क्यूँ आ गए ? " मेरा इतना पूछना की उन्होंने घृणा से मुझे देखा और गुस्से में बोला- " पहले अपने मोड़ी-मोड़ा संभालो फिर बड़ी-बड़ी बात करना "।

उस समय उपस्थित अनेक वरिष्ट लोगों के सामने हुआ अपमान असहनीय हो गया...भय और अपमान तथा शोक के माहोल में कुछ बोलना संभव नहीं था। पति और देवर भी अस्थि -विसर्जन के लिए हरिद्वार गए थे। सभी लोग उनकी बात पर सन्नाटे में आ गए।

मेरी आँख से आंसू टपकने ही वाले थे की सासू माँ ने मोर्चा संभाल लिया। रोबदार आवाज में कहा- " दिव्या उठो खाना खा लो , तुमने कुछ खाया नहीं है " । कहते हुए मेरा हाथ पकड़कर वो मुझे अन्दर ले गयीं ।

मुझे लगा माँ मुझसे नाराज होंगी की मैंने उनसे बात क्यूँ की, मैं बार बार डर के कारण उनसे माफ़ी मांगने लगी। तब माँ ने मुझसे कहा " एक बात गाँठ बाँध लो, जब तक कोई गलती न हो माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए। तुम्हारी कोई गलती नहीं है। कोई भी बाहरी व्यक्ति अगर मेरी बहू का अपमान करेगा तो मैं ये बर्दाश्त नहीं करुँगी। मेरी बहू मेरी घर की इज्ज़त है। "

थोड़ी देर बाद वो सज्जन भी चले गए, जाते समय उन्होंने हाथ जोड़कर मुझसे माफ़ी मांगी।

डेढ़ साल पुरानी घटना का ज़िक्र करते हुए आज भी मेरी आँख में आंसू तथा ह्रदय में , मेरी सासू माँ के लिए अपार श्रद्धा है।

मेरी सासू माँ ने ये सिद्ध कर दिया कि सास , माँ से भी बढ़ कर हो सकती है। अब मेरी बारी है यह बताने की, कि बहू भी बेटी से कम नहीं ।

सितम्बर से माँ हमारे साथ रहने आ रही हैं। आप लोगों का आशीर्वाद चाहिए कि मैं पूरे मन से , माँ कि सेवा कर सकूँ ।

मेरी सासू माँ के लिए समर्पित दो पंक्तियाँ ...

जिसको नहीं देखा हमने कभी, पर उसकी ज़रुरत क्या होगी,
एये मां , तेरी सूरत से अलग, भगवान् कि सूरत क्या होगी ।

Wednesday, July 21, 2010

आयुर्वेद


समाज में चिकित्सा की इन तीन पद्धतियों के बीच इतना सौतेला व्यवहार क्यूँ?

आयुर्वेद का प्रादुर्भाव, जो हमारे वेदों में भी वर्णित है , जिसके द्वारा देवों की भी चिकित्सा की जाती थी , वह ब्रम्हा जी के मुख से सृष्टि के समय हुआ। आज जिस आर्गन ट्रांसप्लांट को खोजा गया , वह युगों पूर्व ayuevedic सर्जन सुश्रुत द्वारा प्रक्टिस में था। बनारस विश्विद्यालय में चिकित्सा विभाग में सुश्रुत की प्रतिमा देख-कर ये जिज्ञासा हुई , तो जानकारी हासिल हुई की सुश्रुत ही ' father of surgery ' तथा धन्वन्तरी ' father of medicine ' हैं ।

यदि इंजीनियरिंग में विश्वकर्मा को इंजीनियरिंग का जन्मदाता कहा गया तो किसी को आपति नहीं हुई। १७ सितम्बर को बिना किसी व्यथा के लोग 'विश्वकर्मा पूजा ' मनाते हैं।

धन्वन्तरी जो समुद्र मंथन से निकने तथा काय चिकित्सा को जन्म दिया, लोग उस चिकित्सा, तथा तथ्यों को वेदों में लिखे मिथ [myth ] तथा कहानियां समझते हैं।

आज एड्स [AIDS] जैसे घातक बीमारियाँ भी आयुर्वेद में वर्णित हैं। कांजुन्क्टिवितिस [conjunctivitis] जैसी १९ वि शताब्दी के रोग आयुर्वेद में युगों पूर्व वर्णित हैं , जिनका निदान तथा चिकित्सा भी सदियों पहले लिखी जा चुकी है।

आज बाबा रामदेव योग के जरिये तक़रीबन ५० देशों में इलाज कर रहे हैं। ये अष्टांग योग भी तो , आयुर्वेद का ही हिस्सा है।

पथरी जैसे लाइलाज रोग भी होम्योपैथ से बिना किसी शल्य चिकित्सा के सुविधा से ठीक हो जाते हैं।

मेरी एक मित्र को गाल ब्लैडर स्टोन [cholelithiasis ] ,था जिसकी मोटाई १३.५ mm थी ! Leproscopy की राय को ठुकराकर उन्होंने distance healing का सहारा लिया । आज वह पूर्णतया स्वस्थ हैं।

पिताजी को BPH [ Benign prostatic hyperplasia] था . उन्होंने होम्योपैथ चिकित्सा से दोनों को ठीक कर लिया । वह अब केवल Diabetes से पीड़ित हैं क्यूंकि उसमे एलोपैथ की गोलियां चबाते हैं।

१९९६ में ऐसा जौंडिस [Jaundice] इतना फैला था की लोगों का बिलीरूबिन लेवल २० तक पहुँच गया। लिवर की कोई सार्थक दवा एलोपैथ में न होने के कारण , लोगों का ताँता लग गया आयुर्वेद विभाग में। हमारे ताऊ जी की अत्यंत नाजुक स्थिति थी, लेकिन वह भी आयुर्वेद की चिकित्सा [ पुनर्वादी क्वाथ ] से शीघ्र ही वह स्वस्थ्य हो गए।

हमारे समाज में यह भ्रान्ति है की एलोपैथ ही सब कुछ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। समाज का double standard शर्मनाक है।

आज विज्ञान जो भी तरक्की करता है , वह एलोपैथ के खाते में चला जाता है । यदि यही वैज्ञानिक तरक्की आयुर्वेद तथा होम्योपैथ के साथ जोड़ दी जाए , तो ये पद्धतियाँ कहाँ की कहाँ पहुँच जायें। लेकिन पश्चिम के देशों में तो एक ही पद्धति है , इसलिए विज्ञानं के हर आविष्कार तथा अनुसंधान को वह अपनी पैथी से जोड़ देते हैं। और हम लोग पश्चिम का अन्धानुकरण करते हुए , उसे ही सही मानते हैं और अपनी ही धरोहर का निरंतर तिरस्कार करते जा रहे हैं।

चिकित्सक वही जो , रोगों का निवारण करे। जो चिकित्सक तीनों पैथियों का ज्ञान रखता है, निश्चय ही वह अन्य चिकित्सकों से श्रेष्ठ है। आज जरूरी है की हम अपनी जंग लगी मानसिकता को बदलें।

मैंने दो वर्ष तक डॉ श्यामा प्रसाद मुखेर्जी अस्पताल में नौकरी की.....वहां के medical superintendent को तीनों पैथियों का अद्भुत ज्ञान था। एक बार मैंने उनसे पुछा -आपको इतना ज्ञान कैसे है? उनहोंने कहा..मुझे इसमें रूचि है, मैं एलोपैथ के साथ साथ आयुर्वेद तथा होम्योपैथ की भी प्रक्टिस करता हूँ। इसके लाभ के हजारों प्रमाण है, फिर क्यूँ न इसे भी अपनाकर अपना ज्ञान असीमित कर लूँ । मेरा सर उनके लिए श्रद्धा से नतमस्तक हो गया ।

आज AFMC ने' चरक- संहिता' तथा 'सुश्रुत संहिता' भी अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर ली है।

Monday, July 19, 2010

श्रेष्ठ और मनचाही संतान कैसे प्राप्त करें?

शादी के बाद हर व्यक्ति , चाहे वह स्त्री हो या पुरुष , एक सुन्दर, बुद्धिमान तथा श्रेष्ठ संतान की कल्पना करता है। और यह संभव भी है, बशर्ते आप थोड़ी निष्ठां और नियम से बताई गयी विधि का पालन करें।

आजकल चर्चा में चल रहे नवयुवक तथागत अवतार तुलसी की अद्वितीय प्रतिभा ने मेरा ध्यान इस तरफ खींचा और मैंने कोशिश की इस बात को जानने की , कि क्या ऐसा संभव है?

हमारे वेदों में कितना ज्ञान भरा पड़ा है , कभी हमने जानने की कोशिश नहीं की । अथर्व-वेद के उपवेद , आयुर्वेद में 'पुंसवन-संस्कार' नामक एक संस्कार है जिससे इच्छित संतान [ बेटा या बेटी ] तथा उत्तम गुणों से युक्त , प्रतिभाशाली संतान प्राप्त की जा सकती है।

हमारे प्राचीन वेदो में श्रेष्ठ संतान को सबसे ज्यादा महत्व दिया है और शायद इसी बजह से हमारे शास्त्रो में उसके लिये कई सारे उपाय भी हमारे ऋषिओं ने बताये भी है। पुंसवन संकार पुर्णत: वैज्ञानिक पद्धति से होने वाली एक महत्वपूर्ण गर्भधान प्रक्रिया है भारतीय संस्कृति की यह बहुत बडी उपलब्धि है गर्भविज्ञान और आनुवंशिकता के कई सिद्धांत इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है इस में साथ साथ प्रभाव चिकित्सा, गर्भसंस्कार एवं बाल आरोग्य का तर्कबद्ध समन्वय है।

योग्य रीति से श्रद्धापूर्ण तपश्चर्या रुप चिकित्सा से कोई भी दँपत्ति अपने दैवयोग से अपनी ईच्छानुसार संतान प्राप्त करने में सफल रहता है ।


आज कल क्रोस ब्रीडिंग से अच्छी नस्ल के जानवर , फल और सब्जियां तो उगा रहे हैं, लेकिन अफ़सोस है कि उत्तम गुणों से युक्त संतान प्राप्ति के लिए बहुत विरले लोग ही प्रयासरत हैं।

इन प्रयासों से हम आने वाली पीढ़ियों को भी बेहतर बना सकते हैं , क्यूंकि श्रेष्ठ गुण उन्हें अनुवांशिकता में मिलने लगेंगे।

पश्चिम कि दौड़ में हम अपने ही घर में रखी बहुमूल्य धरोहर को नहीं पहचान रहे ।


Saturday, July 17, 2010

क्या गर्भ में पल रहा शिशु भी हमारी बातें सुनता है?

Physics prodigy - Tathagat Avataar Tulsi !

बाईस वर्ष की आयु में प्रोफेसर बने 'तथागत अवतार तुलसी ' ने ९ वर्ष में दसवी कक्षा तथा १० वर्ष में बी एस सी कर ली थी । १२ वर्ष में एम् एस सी की डिग्री हासिल कर ली ।

विश्व के सबसे कम उम्र के प्रोफेसर ने आखिर ये सब कैसे किया?

चलिए जानने की कोशिश करते हैं दिमाग के विकसित होने की प्रक्रिया को ।

भ्रूण का दिमाग गर्भ के अन्दर ही विकसित होता है ।

तीन हफ्ते के गर्भाधान के बाद ,दिमाग विकसित होने लगता है । इस समय दिमाग में कोशिकाएं बहुत तेजी से बनने लगती हैं , तकरीबन एक मिनट में ढाई लाख कोशिकाएं। २० हफ्ते के बाद ये प्रक्रिया धीमी हो जाती है , तथा लगभग ६ महीनों में दिमाग पूरी तरह विकसित हो जाता है ।

गर्भ के अंतिम तीन महीनों में भ्रूण का मस्तिष्क पुरी तरह से अपने वातावरण को समझने लगता है , वह बाहर की आवाजों को भी सुनता है और पहचानने लगता है । वह अपनी माँ की तथा बार-बार सुनी जाने वाली आवाजों को पहचानने लगता है और उसका आदी हो जाता है ।

क्या गर्भवती स्त्री के आचार विचार गर्भ में पल रहे भ्रूण को प्रभावित करते हैं?

जी हाँ ! स्त्री के खान-पान , मनोदशा, उसके क्रिया कलाप , उसके मन में आने वाले विचार आदि, गर्भ में पल रहे भ्रूण के दिमाग को प्रभावित करते हैं। शराब पीने वाली स्त्री के गर्भ में पल रहा भ्रूण अनेको विकृतियों से ग्रसित हो जाता है । दिमाग से कमज़ोर तथा मानसिक रूप से विकलांग हो जाता है। उसमे बिहेवियर सम्बन्धी दोष भी आ जाते हैं।

जैसे अभिमन्यु ने गर्भ में , चक्रव्यूह में घुसने की कला गर्भ में ही बाहरी आवाज़ को सुनकर सीखी थी , उसी प्रकार गर्भ के अंतिम तीन महीनों में गर्भ में पल रहे शिशु पर बाहरी वातावरण का बहुत प्रभाव होता है।

यदि गर्भवती स्त्री शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तथा अच्छे वातावरण में रह रही है तो शिशु का बुद्धिमान होना निश्चित है। अच्छी पुस्तकें पढने, अच्छी चर्चाओं के कहने सुनने का लाभ भी गर्भस्त शिशु को मिलता है ।

तथागत अवतार तुलसी के पिता का कहना है कि उन्होंने कुछ प्रयोग किये जिसके कारण तुलसी इतना प्रतिभावान है। इन प्रयोगों की सच्चाई तो नहीं मालूम , लेकिन हाँ , हर बच्चा किसी न किसी ख़ास प्रतिभा से सम्पन्न होता है , जिस पर पूरा ध्यान देकर उसे विकसित किया जा सकता है और देश में बहुत से 'तथागत अवतार तुलसी' हो सकते हैं।

हम अपने पूरे दिमाग का केवल एक से दो प्रतिशत ही उपयोग करते हैं। वैज्ञानिक न्यूटन ने ११ प्रतिशत उपयोग किया था। यदि हम चाहें तो हम भी अपने दिमाग का कुछ और प्रतिशत उपयोग कर सकते हैं।

Thursday, July 15, 2010

दीपा जानती थी..

हर चीज़ में अव्वल रहने वाली दीपा अपने आप में सिमटी रहने वाली एक लड़की थी । उसकी दुनिया घर और बाहर मिलाकर भी ज्यादा बड़ी नहीं थी । साथ नौकरी करने वाली राशि और वीणा उसकी दो सहेलियां थीं । बहन से बढ़कर दोनों सहेलियां उससे जी जान से चाहती थीं । उनका साथ पाकर दीपा बहुत खुश रहती थी ।

साथ काम करने वाले अरुण , गिरीश और आभास दीपा को बहुत पसंद करते थे । तीनो ही चाहते थे की दीपा उसे मिल जाये । लेकिन अपने आप से खुश रहने वाली दीपा ने कभी इनको अपने करीब नहीं आने दिया । दोस्ती की मर्यादाओं को भली भांति जानती थी वो । लेकिन अरुण , गिरीश और आभास तो जैसे उससे पा ही जाना चाहते थे । तीनो ही उसपर अधिकार जमाना चाहते थे । छीन लेना चाहते थे उसे समाज से । मिटा देना चाहते थे उसके अस्तित्व को । उसका समर्पण उनका ध्येय बन चुका था ।

जितना वो उसको तोड़ने की कोशिश करते , वो खुद में सिमटती जा रही थी । जब उन तीनो को लगा वो उसे नहीं मिल पायेगी तो उन्होंने अपने साथियों का सहारा लिया । वो पहले ही ताकतवर थे और भी ज्यादा हो गए । दीपा खुद को बचाने के जो भी प्रयास करती , लोग उसे ही गलत समझते । राशी और वीणा से कहते हुए भी डरने लगी थी की कहीं वो दोनों भी उसे ही गलत न समझ लें ।

काफी अकेली थी , कोई नहीं था जो उसका साथ देता । प्रणव, हिमेश , और अमन सब समझते थे , दीपा को प्यार भी करते थे और उसकी इज्ज़त भी करते थे , लेकिन वो कमज़ोर थे । चाहते हुए भी दीपा की साथ देने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे । दीपा भी उनकी मजबूरी समझती थी ।

दीपा जानती थी अच्छे लोग कम होते हैं । फिर भी इतना कम था क्या कि वीणा, राशि , अमन , हिमेश और प्रणव उसे अपना समझते थे । उनका सिर्फ इतना पूछ लेना कि कैसी हो दीपा, उसके लिए काफी था।

दीपा ने खुद को एक अभेद्य कवच में बंद कर लिया , जहाँ अरुण , गिरीश और आभास जैसा ताकतवर लोग नहीं पहुँच सकते थे । दीपा जानती थी कि ये जंग उसे अकेले ही लड़नी होगी और उसके दुःख ही उसकी ताकत हैं।

दीपा खुद में सिमट गयी लेकिन टूटी नहीं ।

Wednesday, July 14, 2010

ये रोना -धोना बंद करो - खुद पर गर्व करना सीखो !

कब तक रोती रहोगी?,
भीख मांगती रहोगी?

मुझे सामान अधिकार चाहिए ..
मुझे बराबरी चाहिए..
मुझे नौकरी करनी है..
मैं भ्रूण हत्या नहीं कराऊंगी..
मैं इस दहेज़ लोभी से शादी नहीं करुँगी ..
मैं अकेले मंदिर जा सकती हूँ..
मुझे भी pilot बनना है ..

अरे तो बनो न , रोका किसने है? क्यूँ मुफ्त में बेचारे पति को बदनाम करती हो ? सास को भी बिना जुर्म की सजा दिलाती हो?

"नाच न आये आँगन टेढ़ा !"

अरे भाई खुद में दम है तो करके दिखा दो ! पति भी तुम्हारी उपलब्धियों से खुश होगा ! फख्र से तुम्हारा ज़िक्र करेगा अपने दोस्तों से ! उसका भी मान बढ़ता है , तुम्हारी शान से !

लेकिन तुम जब रोती हो , उदास होती हो , शिकायक करती हो , आंसू बहाती हो तो तुम्हारी बहनें जिन्होंने मेहनत से इस जहान में अपनी जगह बनाई है वो लज्जित होती हैं !

मिलो अपनी बहनों से -

किरण बेदी
कल्पना चावला
सुनीता
इंदिरा गाँधी
प्रतिभा पाटिल
लता मंगेशकर
पी टी उषा
ऐश्वर्या राय
सोनिया गाँधी
शबाना आज़मी
मायावती
ममता बनर्जी
डॉक्टर कल्याणी
डॉक्टर चन्द्रावती

क्या इतने नाम काफी नहीं?

महिलाओं को अपनी आदत बदलनी होगी ! सहानुभूति की भीख से बचो ! अपनी मागदर्शक खुद बनो ! जब एक जैसा माँ-बाप ने पाला , तो फिर तुम कमतर कैसे हो सकती हो?

एक जैसा अन्न खाती हो , फिर कमज़ोर भला कैसे हो सकती हो?

सदियों से चली आ रही दासता से मुक्त हो जाओ ! अपना attitude बदलो ! अपनी मानसिकता को बदलो ! अपनी इज्ज़त आप करना सीखो फिर ज़माना खुद-ब-खुद आपकी इज्ज़त करने लगेगा !

जब तक हम ज़माने से बदलने की फ़रियाद करते रहेंगे , कुछ नहीं बदलेगा ! कोशिश करो खुद में साहस और हिम्मत लाने की, आगे बढ़ने की , फिर आगे-आगे चलने की ! फिर देखना आदत पड़ जाएगी मुस्कुराने की ! अपने आप पर गर्व करने की !

" Gradually winning becomes our habit ."

आज समय आ गया है की हम अपने भटके हुए भाइयों को सही राह दिखायें ! सम्मान के नाम पर जो अपनी बहनों को मार कर अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं, हम उन्हें सही राह दिखा सकते हैं। आज समय है की हम अपनी स्त्री शक्ति को पहचाने और समाज के उत्थान में योगदान करें !

अपने को कमतर समझना और समाज से उम्मीद करना की हमे बेहतर समझे , ये हमारी नादानी है !

आज समय के साथ, समाज बहुत बदल गया है ! हम शुक्र गुज़ार हैं की हम एक बेहतर समाज में जी रहे हैं। पहले 'सती-प्रथा' थी , जो आज इतिहास बन गयी है ! क्या ये बदलाव नहीं है?

चाँद पे पुरुष पहुंचा, तो औरत भी ! क्या ये बदलाव नहीं है?

पुरुष, एक देश सम्हाल सकता है तो क्या हमारी बहनें नहीं संभाल रही ? क्या ये बदलाव नहीं है?

बदलाव की मांग मत करो , खुद को बदलो ! आखिर बदलाव चाहते किस्से हैं? कौन देगा हमे परिवर्तन? हम खुद ही इस समाज का हिस्सा हैं , हम बदल सकते हैं अपने समाज को!

जो बदलाव आया है वो स्त्री और पुरुष दोनों की व्यवहारिक सोच बदलने से संभव हुआ है ! हम दोनों हाथों से इस बदलाव का स्वागत करते हैं !

" खुदी को कर बुलंद इतना की,
खुदा बन्दे से पूछे , बता तेरी रज़ा क्या है? "
.

मैं एक भारतीय नारी हूँ-- आप और क्या जानना चाहते हैं?

क्या आप जानते हैं " ZEAL @ दिव्या " कौन है !!!
>> Tuesday, July 13, 2010

क्या आप जानते हैं कि ZEAL @ दिव्या कौन है !!!..... यदि नहीं, तो जानने का प्रयास कीजिये ... शायद आप जान जाएं ... इस थाईलैंड निवासी नवोदित ब्लागर ने बहुत तेज गति से ब्लागजगत में अपना स्थान बनाया है जो निश्चिततौर पर बधाई के योग्य है ... और मैं उन्हें बधाई देता हूं , बधाई दिव्या जी .... साथ ही साथ एक दिन पहले ही उन्होंने ब्लागजगत में "एक माह" पूर्ण किया था उसकी भी बधाई दिव्या जी ... और हां आज तो बहुत ही खास दिन है आपके जीवन का .... जन्मदिन ... जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं .... ब्लागर साथियों ब्लागजगत के इस नवोदित ब्लागर को आप भी बधाई प्रषित करें ... पर क्या आप जानते हैं कि ZEAL @ दिव्या कौन है ???????????????????
प्रस्तुतकर्ता श्याम कोरी 'उदय'
लेबल: चिट्ठा चर्चा

A friend gave me the link of above post by Shyam Udar Kori ji. When I visited there,I was shockingly surprised. He never visited my blog but he is so much updated about informations regarding me. He mentioned my birthday [11th July] even. But he raised a question mark -" Who is Divya".

What more is required to know about a blogger?

I am an Indian.
A respectable married lady.
Native place Lucknow.
Currently living in Thailand.
Profession- Doctor [Gynae]


I started writing blogs because I feel I can contribute my bit for the betterment of society.

I want to keep the FIRE in me alive.

Hope it is clear now...Who is Divya ?

If not then i cannot spoon-feed the feeble minded imbeciles.

If someone gets interested in knowing more, then definitely his intentions are doubtful.

And Yes, I have a horn on my snout that keeps me different from the general lot. !

Jai Hind !

Monday, July 12, 2010

भाषाओं की अनुपम त्रिवेणी !.....मिलिए ' अर्थ देसाई ' से !

जन्म दिन पे मिला सुन्दरतम तोहफा आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ .....

हिंद देश के निवासी, सभी जन एक हैं,!
रंग, रूप ,वेश, भाषा, तारे अनेक हैं !

हमारा देश विभिन्न प्रान्तों में बंटा हुआ है , सिर्फ भाषा ही है जो हमे एक दुसरे से जोड़े रखती है ! देश, विदेश , सभी एक हुए जा रहे हैं ! भाषा ने हमे एक दुसरे के करीब ला दिया है। दुनिया सिमटकर छोटी और रंगीन हो गयी है!

इसी मौके पर मिलिए , मेरे गुजराती पाठक 'अर्थ देसाई' जी से ! ये मुंबई में एक प्रतिष्ठित संस्थान में वरिष्ट पद पर कार्यरत हैं ! इनकी मात्रभाषा गुजराती है ! इन्हें अंग्रेजी , हिंदी , उर्दू, गुजराती, मराठी , स्पैनिश तथा फ्रेंच भाषाओं का अच्छा ज्ञान है ,इन्होने मेरी भावनाओं की कद्र करते हुए मेरे लिए एक अनुपम तोहफा भेजा है जो आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ !
...............................................................................................................................

प्रिय दिव्या,

तुम्हारा देश के लिए प्रेम और विभिन्न भाषाओ से प्यार देखकर बहुत अच्छा लगता है ! आज तुम्हारे जन्म दिन पर, इस देश की मिटटी के लिए प्यार से भरा हुआ ये गीत , तीन विभिन्न भाषाओँ में भेज रहा हूँ! आशा है तुम्हे ये पसंद आएगा ! इस ग़ज़ल का लिंक नीचे संलग्न कर रहा हूँ !

Vhaali Divya:

Tamaaro desh ne maate apaar prem ane vibhinn bhaashaa-o pratye ni aadarniy laagni joine khub j saaru laage chhe. Aaje, tamaaraa Janm-divas nimitte, vatan ni maati pratye prem thi bhareli aa ghazal, tran bhaashaa-o maa tamne mokli rahyo chhu. Aashaa chhe tamne aa pasand aavse. Aa avismarniy ghazal ni Link ahi nich aapel chhe:

Janm-divas ni Khub, Khub Shubhechchhaa-o sahit,



Dearest ZEAL:

It feels very good to see your huge love for the nation and your respectful liking for various languages. Today, on your birthday, I am sending to you in three languages, this ghazal which is full of love for the soil of one’s native place. Hope you like it. Given below is the link to this unforgettable ghazal:


With the best wishes on your birthday,

Arth Desai



नदी नी रेत मा....

[01]

Nadi ni retmaa ramtu nagar made naa made

Fari aa drayshya smruti pat upar made naa made

Nadi ki ret mein kheltaa nagar mile naa mile

Fir ye drashya smruti pat par mile naa mile

A City playing amidst the river sands, may or may not be

Again this fine sight in the mind’s eye, may or may not be


[02]

Bhari lo swaas maa eni sugandh no dariyo

Pachhi aa maati ni bhini asar made naa made

Bhar lo saanso mein unki khushbu kaa saagar

Fir ye mitti ki bhini asar mile naa mile

Let us fill in the breath the ocean of her fragrance

Again the wet aroma of the soil, may or may not be



[03]

Parichito ne dharaai joi levaa do

Aa hastaa chehraa, aa mithi najar made naa made

Parichito ko ji bharke dekh lene do

Ye haste chehre, ye mithi najar mile naa mile

Let me behold to the heart’s fill the people I know

The smiling faces, the sweet glances, may or may not be


[04]

Bhari lo aankh maa rastaa-o, baari-o, bhito

Pachi aa shaher, aa gali-o, aa ghar made naa made

Bhar lo aankho mein raste, khidkiyaa, diwaare

Fir ye sahar, ye galiyaa, ye ghar mile naa mile

Capture in the eyes, the roads, the windows, the walls

Again the city, the lanes, the home, may or may not be


[05]

Radi lo aaj sambandho ne vitdaai ahi

Pachi koi ne koi ni kabar made naa made

Ro lo aaj risto ko gale mil ke yahaan

Fir kisi ko kisi ki kabar mile naa mile

Cry the heart out in the embrace of the relations

Again one to someone’s grave, may or may not be


[06]

Vatan ni dhul thi mathu bhari lau ‘Aadil’

Arre aa dhul pachhi umr-bhar made naa made

Vatan ki dhul se maang bhar lu ‘Aadil’

Arre ye dhul fir umr-bhar mile naa mile

I adorn my head with the native earth, ‘Aadil’

Again in life this holy soil, may or may not be



इस ग़ज़ल का लिंक नीचे संलग्न कर रहा हूँ !

http://mzc.in/album/22480/Aakar.html#



















धन्यवाद !...डॉ अरविन्द मिश्रा !

आज मेरे ब्लॉग को एक महिना पूरा हो गया ! डॉ अरविन्द मिश्रा से अनुरोध है की वे मेरा धन्यवाद स्वीकार करें!

मिश्रा जी ने इस ब्लॉग को खोलने में मेरी सहायता की , जिसकी वजह से आज मैं अपनी बात खुल कर यहाँ रख सकती हूँ ! उन्होंने मुझे एक टिप्पणीकार से ब्लॉगर बनाया ! उन्होंने मुझे मेरी पहचान दी ! मैं ह्रदय से मिश्रा जी की आभारी हूँ!

मेरी सभी मित्रों से ये अपील है की वो भी इसी प्रकार से आगे आयें और एक दुसरे की निःस्वार्थ भावना से मदद करें !

पुनः धन्यवाद ,
दिव्या

Sunday, July 11, 2010

ग्यारह जुलाई - जनसँख्या दिवस !

आज जनसँख्या दिवस है !

विश्व जनसँख्या- ५.९ बिलियन !
भारत की जनसँख्या- १.१५ बिलियन !

आज चीन की जनसँख्या सबसे ज्यादा है , लेकिन २०३० तक भारत की जनसँख्या सबसे ज्यादा हो जाएगी.

विश्व की बढती जनसँख्या हमारे लिए अभिशाप साबित हो रही है ! जनसँख्या के अनुपात में हमारे पास तेल , खाद्य सामग्री और संसाधन कम होते जा रहे हैं ! ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है , मछलियाँ नष्ट हो रही हैं ! ईको सिस्टम डिस्टर्ब हो रहा है ! जंगल कट रहे हैं ! कार्बन डाई आक्साइड बढ़ रही है ! जरूरत है हमे इस समस्या पर ध्यान देने की ! हमारे पाठक तो जागरूक हैं , लेकिन वो आस पास के गाँव तथा काम करने वालों को जागरूक कर सकते हैं। !

एक माँ कितने बच्चों का भार वहन कर सकेगी? जरूरत है धरती माँ के ऊपर अत्यधिक भार न डाला जाये ! हमे अपनी आने वाली संतति के लिए विरासत में कुछ तो संसाधन छोड़ के जाना चाहिए !

समय रहते सचेत होने की आवश्यकता है !

१-बच्चे दो ही अच्छे !
२-छोटा परिवार, सुखी परिवार !
३-हम दो हमारे दो - एक हो तो और भी अच्छा !

सुखी और खुशहाल रहने के लिए बढती आबादी पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

Friday, July 9, 2010

हम तो ऐसे हैं भैया .... No pretense !

तुम इतना संतई दिखा रहे हो ,
क्या जुर्म है जिसको छुपा रहे हो?

With the advent of science and technology, I wonder why people are stuck with ages old beliefs. Every second person can be seen preaching. Why not they just try to correct themselves. Isn't it wise to correct ourselves , instead of going on changing the world?

One should be focused more on the general issues for the benefit of society and mankind, instead of making ourselves too big and conspicuous.

A friend asked me to write something related with health, so I chose to write on our flickering mentality. Why we pretend to be good, when we are not? Why we preach others when we cannot practice the same? Why can't we be original?

I love to be the way I am !...Take it or leave it !...or just Get lost !. I hate to pretend that I am decent , specially with cannibals in sheep's skin.

Why every person is living in fear? What is on stake? If we have not committed any crime then why the fear? What we are gonna lose? Is there anything which belongs to us? Then what is that we are possessive of?

Some are pretending to be sober somber and suave.
some are genuine patriots
some are dedicated to art
some are savior of national language rather personal language.
some are worried about 'Taliban' .
some are worried about their graceful image.
some about losing their readers and so called e-love.

Unfortunately all are living in illusion. Nothing is ours except truth. Truth is-" living in moments ". The momentary happiness, sadness, anguish, frustration, helplessness, orgasm, tears and natural smiles that appears on our lips when alone.

पहले कहते थे - भाई ने भाई को छुरा मारा , लेकिन आज का सच क्या है?
आज भाई लोग , बहेन को छुरा मारते हैं और ' honor killing' कहते हैं... Shame on such brothers !

The ignorant men and women get involved with each other and end up spoiling their lives. Gone are the days of immortal lovers where both of them used to suffer or die together. In 21st century girl commits suicide and the poor boy spends his life in prison.

अब पूछिए प्यार क्या है?
अरे भाई , जो pregnant कर दे, वही प्यार है। जो भाई को खून करने पे मजबूर कर दे, वही प्यार है.
यही तो भाईचारा है , - साल इश्क करो , फिर pregnant कर बदनाम करो , फिर जिल्लत से मरने के लिए छोड़ दो ..और एकला चलो रे ! ..किसी और को sperm donate करने के लिए। And let the history repeat itself !

Earlier i have seen pictures of leeches in my zoology book। Poor creatures were so useful in ancient medicine being used as a tool for blood letting. But unfortunately human-leeches crawl in our homes, offices and blog posts as well. They come to suck our blood and devastate us . So it's our duty to safeguard ourselves. No point pretending to be decent, just call leeches as leeches, idiots as idiots and spade as spade. No one can take away anything from you nor they will give any medal for your decency.

बेचारे बेजुबान जानवर तो गधे , कुत्ते और सुवर कहलाते हैं , लेकिन इंसान की शकल में भेडिये 'महोदय ' कहलाते हैं

Stop pretending !..Just be yourself !

We are not Gods and Goddesses.

हम तो ऐसे हैं भैया .....ZEAL कहो या दिव्या !

Saturday, July 3, 2010

न्याय मिलने में देर क्या अन्याय नहीं है ?

Justice delayed is justice denied !

क्या
यही न्याय है ? अक्सर सोचती हूँ , आखिर इतना समय क्यों लगता है न्याय प्रक्रिया में ? न्याय कि गुहार करने वाला काल- कवलित हो जाता है , तो फिर न्याय क्या मरने वाले के प्रेत को मिलता है ? या फिर 20 साल में पूरी तरह बदल चुके अपराधी को ? न्याय प्रक्रिया के दौरान होने वाली मानसिक , सामाजिक एवं आर्थिक हानि के लिए जिम्मेदार कौन ?

Long Back in Dec 1999, a model Jessica Lall was murdered by Manu Sharma [son of senior Congress leader]. Manu was sentenced to life imprisonment in 2006. Justice delayed for seven years, where many eye witnesses were there?

Ruchika Girhotra, a fourteen years old girl was molested by Director general of police , Shambhu Pratap Singh Rathore [Haryana], in 1990. The disgraced official was sentenced for one and a half years of rigorous imprisonment . The punishment was for the molestation only. What about her death, the harassment and the humiliation that the family faced during the trial? The Justice was delayed by 20 years. Why?

Arushi, the teenager was brutally murdered and the killers are still free. More than two years now, when she will get justice?

Nirupama , a 23 year old journalist was forced to commit suicide. Who is the culprit and when she will get justice?

Let's talk about the victims of world's worst industrial disaster [Bhopal gas tragedy-1984]. How long they have to wait for justice? 25,000 died and over 5 lakh people faced the exposure of methyl isocyanate [MIC]. Warren Anderson is free and political figures involved in the release of Anderson are shamelessly silent over the issue.

Almost 26 years, but the justice is still far away.

Government of India can spend 50 crores on Ajmal Kasaab , the butcher, who brutally killed 173 innocent people and wounded 308, but do we have a metre long rope to hang him till death? Almost two years now since 26/11/08 the deadly terrorist is free and availing all facilities. The death sentence awarded to him by the trial court is in vain.

Why is the justice delayed?. Who is responsible? Why do we fear to punish the culprits?

वो कहते हैं कि-

"भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं है "

लेकिन क्या ये देर , अंधेर नहीं है ?