Friday, February 11, 2011

दो घडी वो जो पास आ बैठे , हम ज़माने से दूर जा बैठे ..

हर कवि अपनी पत्नी के लिए एक कविता लिख देता है , और पत्नी के लिए वो एक सबसे हसीन तोहफा होता हैपहली बार मुझे दुःख हो रहा है की मुझे कविता लिखनी क्यूँ नहीं आतीकाश मैं भी एक कवियत्री होती तो अपनी शादी की सालगिरह पर आज अपने पति के लिए एक कविता लिखती

लेकिन नहीं , मुझे तो सिर्फ सरल शब्दों में लिखना आता है , भाषा में कोमलता और लोच कैसे लाते हैं , मुझे आता ही नहींइसलिए पति श्री समीर जी से जुडी कुछ खट्टी , कुछ मीठी , कुछ चरपरी बातें जो शायद ज्यादातर पति पत्नी के मध्य होती होंगी , यहाँ लिख रही हूँदोनों में से कोई किसी से कम नहीं पड़ना चाहतानहले पे दहला लगाने और ताने मारने में पतियों का भी जवाब नहीं

अब मेरे जैसे बिना लोच वाले लोगों का प्यार होना तो संभव नहीं था इसलिए माता पिता ने मदद ली "Times of India matrimonial " कीभला हो इन अखबार वालों का , जिनसे हज़ारों कन्याओं का विवाह तो हो जाता है , और माता पिता भी अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं, एक पढ़े-लिखे दामाद कों पाकर

खैर श्रीमान आये हमारे द्वार सपरिवार , मुझे ठोंक बजा कर जांचने-परखने । इससे पहले कि हिंदी फिल्मों की तर्ज पर सासू माँ ये कहती की चल कर दिखाओ , बोल कर दिखाओ , हमने स्वयं ही घर का एक चक्कर लगा दिया और हाथ जोड़कर ' नमस्ते " कह दियालड़की , लंगड़ी - गूंगी नहीं है , इसका प्रमाण पत्र मिल गयागनीमत तो ये समझिये कि मुझसे ये नहीं कहा - " बेटी ज़रा भजन गा कर तो सुनाओ " । अगर कहीं मैंने अपने सुर दिखाए होते तो रिश्ता कैंसिल हो गया होता और दिव्या कुंवारी होतीभला हो उन भलमानस पुरुषों का जो 'बकरी ' जैसी एक लड़की कों जब देखने आते हैं और अपनी " हाँ " कहकर अभयदान दे जाते हैं

खैर , लड़का लड़की कों पांच मिनट वार्तालाप करने का मौक़ा दिया गया ताकि वो दोनों अपने भावी जीवन साथी कों समझ और परख लेंवाह जनाब वाह ! इतना जटिल कार्य मात्र मिनट में ? तीन मिनट बीत गए हम अगूंठे से फर्श खुरचते रहेफिर समीर जी कों एहसास हुआ - " शरमा के यूँ ही खो देना ..." । हिम्मत करके उन्होंने मुझसे पूछा - " आपको अपने पति में कौन सी खूबियाँ चाहिए ? "

हमने घडी देखी - मात्र एक मिनट बचा था भावी जीवन साथी से वार्तालाप के लिएमन में सोचा - मंत्री का बेटा है, इंजिनियर है , घमंडी होगा , नकचढ़ा भीअब तक तीन सैकड़ा कों रिजेक्ट कर चुका है , मुझे भी इनकार कर ही देगाइतना ख़याल आते ही मेरे अन्दर की स्त्री ने चेतावनी दी - " दिव्या छोड़ना नहीं इसे , कह दो सब साफ़-साफ़ " । मैं ख्यालों से वापस लौटी , मात्र चालीस सेकेण्ड बचे थेहमने बिना समय गँवाए कहना शुरू किया - " आपका बायो डाटा देखा था , आपके पास वो सब खूबियाँ हैं जिसकी कल्पना एक स्त्री करती है , लेकिन मुझे सिर्फ एक ही बात का डर है की कहीं आप मुझे रिजेक्ट कर देंइसलिए , यदि आप की हाँ है तो मेरी भी हाँ हैलेकिन यदि आपके मस्तिष्क के किसी कोने में " ना" है तो मेरा इनकार लेकर जाइएगा मेरे घर सेइनकार करने का अधिकार एक लड़की का भी है। "

अरे ! ये क्या ? लड़कों कों लड़कियों की कौन सी अदा भा जाए पता ही नहीं होतासमीर जी कों मेरा " अकडूपना " भा गया

उनका काफिला मेवे-मिष्ठान खाकर विदा हुआऔर जाने के आधे घंटे बाद आदरणीय ससुर जी का फोन गया की उनकी तरफ से रिश्ता पक्काबस फिर क्या था लड़की के माता पिता तो अपनी लाडली बेटियों कों विदा करने में ही अहोभाग्य समझते हैंज़रा भी ममता नहीं , तुरंत हाँ कर दीउसी शाम १४ अक्टूबर कों फलदान और रात्रि में सगाई की रस्म पूरी हो गयीअगली सुबह उनका कारवां इंदौर के लिए रवाना हो गया

दिवाली की छुट्टियों के बाद मैं वापस हॉस्टल गयीश्रीमान मुझसे मिलने नवम्बर में होस्टल " बनारस" आये। । एक बवाला करने वाली रिपोर्टर "जूनियर " ने सूचना दी - " दिव्या दीदी पूरे होस्टल में अफवाह है की आपका बॉय-फ्रेंड आपसे मिलने आया है "। मैंने कहा - " मूर्खों , बॉय-फ्रेंड कहाँ है मेरी किस्मत में , ये तुम लोगों के जीजू हैं , आदर-सम्मान से पेश आओ और अफवाहों कों विराम दो "

शाम कों श्रीमान समीर जी की हॉस्टल में आमंत्रित थेफस्ट ईयर से लेकर फ़ाइनल इयर तक की सभी जूनियर- सीनियर वहां उपस्थित थींजनाब के तो मज़े हो गएबेहतरीन गायक होने का इन्होने लाभ उठाया सुन्दर-सुन्दर जूनियर्स की फरमाइश पर इन्होने गाना सुनायाजो गाना इन्होने सुनाया वो था किशोर जी का गाया हुआ - " कहना है , आज तुमसे ये पहली बार , तुम ही तो लायी हो जीवन में मेरे ...." । इसके बाद से वो गाना जब भी रेडियो पर आता था , तो मेरे रूम पर knock होने लगती थीदरवाज़ा खोलने पर सभी जूनियर्स एक ही सुर में - " दीदी आपका वाला गाना रहा है " । हॉस्टल में आने वाले पत्रों का dissection , जूनियर्स द्वारा होता था पहले , फिर खुला हुआ लिफाफा मुझे सौंपा जाता था एहसान के तौर परक्या दिन थे वो भी हॉस्टल के !

११ फ़रवरी ( वसंत पंचमी ) कों विवाह संपन्न हो गया

विवाह के बाद -फुर्सत के पलों में हम दोनों का एक ही विवादमैं कहती थी Love marriages ज्यादा successful होती है , और वो वकालत करते थे arranged marriages कीसन्डे कों सुबह से लेकर दोपहर तक कभी पालिटिक्स तो कभी अध्यात्म पर चर्चा होतीहम दोनों ही एक दुसरे कों बता देना चाहते थे की कम समझना - "तुम डाल-डाल , तो हम पात-पात !

एक बार साहब तैयार हो रहे आफिस के लिए , हमने सूचना दी - " मैं एक किताब लिख रही हूँ "

दाढ़ी बनाते हुए उन्होंने मुझसे पूछा " विषय क्या है ? "

हमने कहा , स्त्री और पुरुषों में समानता पर लिखूंगीऔर स्त्रियों से ये अपील करुँगी की वे स्वयं कों पुरुष से बेहतर समझें और यदि उनकी बराबरी करना चाहती हैं तो स्वयं कों थोडा नीचे गिरायेंथोडा violent बनें, शराब आदि पियें , बच्चों और परिवार कों वक्त कम दें तथा आफिस और दोस्तों के साथ मस्त रहेमेरी बात सुनकर हँसने लगेमुझे बहुत गुस्सा आई , पूछा , हंस क्यूँ रहे हैं तो बोले - " महिलाओं में तुम्हारी किताब "बेस्ट सेलर" रहेगी लेकिन पुरुषों कों offend करेगी " । खैर , बुद्धिमान श्रीमान के उपहास के बाद हमने उस पुस्तक कों लिखने का विचार त्याग दिया

एक दिन मुझसे नाराज़ हो गएमुझसे बोले - " जाओ , अपने मइके चली जाओ " हमने कहा - यही मेरा घर हैFor a change , आप अपने मइके रह आइये थोड़े दिन , मैं भी शोर्ट-कट खाना बनाउंगी और चैन से दूरदर्शन देखूंगी " । वो दिन और आज का दिन , इतना funny ताना दुबारा नहीं मिला

एक बार मैंने इनसे पूछा - आपको सबसे अच्छा कौन लगता है ? तो बोले - " मम्मी का स्वभाव सबसे अच्छा लगता है " मुझे वो बात बहुत अच्छी लगी थी उस दिनमेरी माँ जो अब जीवित नहीं हैं , मुझसे कहती थीं हमेशा - " बेटा , समीर का दिल बहुत कोमल है , तुम उनका ध्यान रखना " ।

एक दिन बहुत सीरियस होकर मुझसे बोले - " दिव्या तुमसे अच्छा कोई दूसरा क्यूँ नहीं लगता " । मैंने उसे एक पति द्वारा मिला हुआ सबसे उम्दा compliment की तरह लिया। (वैसे ये वक्तव्य तीन वर्ष पूर्व मिला था , और शेष जीवन इसी इकलौते compliment के दम पर गुजारना है ।)

कभी-कभी प्रशंसा भी करते हैं मेरी , कहते हैं - " बहुत सुन्दर हो " । जब उत्सुक होकर पूछती हूँ , क्या सुन्दर लगता है ? तो कहते हैं - " तुम्हारी डिब्बे जैसी आँख और पकौड़े जैसी नाक "। उफ़ ! अपनी तो तमन्ना ही रह गयी कोई ग़ज़ल कहते मुझ पर !

आजकल जब मैं फोन लगाती हूँ तो कहते हैं - " दस मिनट में ring back करता हूँ , ज़रा मीटिंग में हूँ " । मैं कोई कम थोड़े ही हूँ , जब इनका फोन आता है तो हम भी कह देते हैं शान से - " ज़रा ठहरिये , मैं "ब्लॉगिंग" में हूँ। "। उफ़ ! ये ब्लॉगर पत्नियाँ !

जब इन्हें मुझसे कोई काम करवाना होता है तो मैं बहुत इमोशनल अत्याचार करती हूँसाफ़ साफ़ शर्त है की "मेरा लिखा एक लेख पढना होगा "। बेचारे मन मारकर मेरी पोस्ट कों झेलते हैंफिर अगली शर्त - " टिप्पणियां भी पढ़िए " । जब पूरा पढ़ लेते हैं तो जले पर नमक छिड़कते हैं और सारी नकारात्मक टिप्पणियों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं - " ठीक कह रहा / रही है "

मैं गुस्से में पूछती हूँ - " पिछले जनम में क्या थे मेरे ? " । तो मुस्कुराकर कहते हैं - " साथी ब्लोगर "




208 comments:

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