Wednesday, May 2, 2012

गयी सदी वो जाने दो, नारी खुद को पहचानो तुम...

तुम नारी हो , तुम जानो तो
शक्ति को अपनी, पहचानो तो।
हो जननी तुम , ये जानो तो ,
हो सृष्टिकर्ता , पहचानो तो।

तुम्हें मारकर गर्भ में ये,
कर रहे पाप ये बड़े-बड़े।
मानव से दानव बनकर ,
हैं खड़े अहम् के चीड बड़े।

तुम ही से ये जीवन है ,
तुम ही से सारे संसाधन।
तुमसे ही चलता सारा संसार,
तुमसे महके है घर-आँगन।

तुम अगर त्याग दो मन से इनको,
मछली बन तड़पें, बिन जल की।
अस्तित्व तुम्हारा समझाओ,
दुनिया अपने निर्मल मन की।

खुद को पहचानो, जानो खुद को।
निज का भी सम्मान करो
रह कर आश्रित इन पर तुम ,
मत अपना तुम अपमान करो।

नहीं कहीं तुम कमतर हो ,
नारी सृष्टि, तुम श्रेष्ठ हो।
सृजन, कल्पना, राग, शीलता।
हर क्षेत्र में ,ज्येष्ठ हो।

उठो तुम अब जागो तुम,
खुद से मत अब भागो तुम,
गर अन्याय, करे कोई,
सच क्या है, समझा दो तुम।

गयी सदी वो जाने दो,
अब कदम से ताल मिला दो तुम,
ओखल में जब सर दे डाला,
मूसल से मत डरना तुम।

दुर्गा , काली की धरती पर ,
नारी को कमतर जो समझेगा
अधोगति को पाकर वो,
अपने पापों को भुगतेगा।

बन के चंडी तुम , इन दानव का
अस्तित्व यहाँ मिटा देना।
चहुँ दिशा में , अपनी गरिमा का ,
परचम तुम लहरा देना।

नारी ये तेरा आँगन है,
है समस्त सृष्टि पर एहसान तेरा।
ना समझें तो समझा दो तुम,
व्यर्थ न जाए बलिदान तेरा।

गिद्ध सी लोलुप दृष्टि को ,
अब इन्हें मोड़ कर रख देना।
अवनत पलकों से पूजें पैर,
इनको ये सिखला देना।

तुम जननी हो, तुम शिक्षक हो।
क्यों 'सृजन' तुम्हारा बहक रहा,
अपने अन्दर की ममता से ,
वापस लाओ, जो भटक रहा।

कर्तव्य तुम्हारा देखो तुम,
अन्याय नहीं बढ़ने पाये,
हर योजन पर , रक्तबीज यहाँ,
कोई भ्रूण न डसने पाये।

इनको अपनी ममता से ,
संस्कार ज़रा सिखला देना।
गर ना मानें , समझाने से,
रणचंडी बन दिखला देना।

हे नारी , तुम ही सृष्टि हो,
तुमसे सृजन का सार मिला।
हर कण-कण में तेरी खुशबू है,
तीनों लोकों की आधारशिला।

Zeal

33 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

हे नारी , तुम ही सृष्टि हो,
तुमसे सृजन का सार मिला।
हर कण-कण में तेरी खुशबू है,
तीनों लोकों की आधारशिला।

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,प्रभावित करती सुंदर रचना,.....

MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

दिवस said...

हो वीरांगना तुम भारत की
कह भारत माँ भी इतराए
कर देख तेज तेरी आँखों का
पापी जालिम भी घबराए

तुम हो माता जीजाबाई
तेरी ममता भी वीर बना जाए
है अंश तुम्हारा वीर शिवा में
देख आदिल शाही भी चकराए

तुम हो रानी झांसी वाली
अपमान देश का न सह पाए
आया डलहौजी ले तोप-असला
पर तलवार तुम्हारी मौत बरसाए

नामर्दों की इस भीड़ ने
तुम पर भी इलज़ाम लगाए
क्या कर सकते इससे ज्यादा वो
जब दिव्या ही पार लगा जाए

जय माँ भारती !!!

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक और ओजस्वी प्रस्तुति...

Rajesh Kumari said...

जबरदस्त ओजपूर्ण अभिव्यक्ति ....वाह ....लाजबाब

Rajesh Kumari said...

जबरदस्त ओजपूर्ण अभिव्यक्ति ....वाह ....लाजबाब

प्रवीण पाण्डेय said...

पहचानना ही होगा नहीं तो समाज आधी शक्ति से क्षीण हो जायेगा।

kunwarji's said...

तुम जननी हो, तुम शिक्षक हो।क्यों 'सृजन' तुम्हारा बहक रहा,अपने अन्दर की ममता से ,वापस लाओ, जो भटक रहा।

एक सार्थक आह्वाहन,दिवस जी की कविता भी बहुत बढ़िया रही...

कुँवर जी,

विरेन्द्र सिंह शेखावत said...

सुंदर रचना

विरेन्द्र सिंह शेखावत said...

सुंदर रचना

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.....
एक नारी होने के नाते मैं आपको इस रचना के लिए नमन करती हूँ...........

बहुत सुंदर.

mridula pradhan said...

prerak.....

विभूति" said...

सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....

M VERMA said...

प्रेरक और ओज से परिपूर्ण

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन रचना।



सादर

Rakesh Kumar said...

तुम जननी हो तुम शिक्षक हो
क्यों 'सृजन'तुम्हारा बहक रहा
अपने अंदर की ममता से
वापस लाओ जो भटक रहा

बहुत ही सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति.
काश!ऐसा हो पाए.

महेन्‍द्र वर्मा said...

नारी तो सृष्टि की माता है, इसलिए वंदनीय है।
नारी शक्ति की महिमा का गुणगान करती प्रेरणादायी, ओजस्वी कविता।

Vaanbhatt said...

बड़े ही धाकड़ शब्दों में प्रस्तुति दी है...मुबारक...

Suresh kumar said...

bahut hi sundar rachna...........
nari ko ye sab samjhna hi hoga.....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अच्‍छा है यह प्रकटरण ☺

udaya veer singh said...

मखमली प्रेरित करती मुखर रचना ......शुभकामनायें जी /

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट 3/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें

चर्चा - 868:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

Maheshwari kaneri said...

नारी के प्रति बहुत ही ओजस्वी और प्रभाव्शाई रचना...बहुत सुन्दर...

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति सुन्दर सन्देश देती बहुत ही बढ़िया रचना..

सदा said...

इस सशक्‍त लेखन के लिए बधाई स्‍वीकारें ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!

अजय कुमार झा said...

ओजपूर्ण और ललकारती हुई रचना । बेहतरीन आज इन्हीं तेवरों की आवश्यकता है । बहुत ही बढिया

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

naari kee mahim ..jo saswat hai..punarsthapna jaruri hai..aaj blog par par aapki pahli kavita padhne ka saubhagy mila..aapke satatra samajik unnayan hetu kiya ja
raha lekhan ..jiske liye aap sachmuch badhayee kee patra hain..sadar badhayee ke sath

सुशील कुमार जोशी said...

सटीक !
सुंदर !

प्रतिभा सक्सेना said...

'विद्याः समस्तास्तव देवि,भेदाः,
स्त्रियः समस्त सकल जगत्सु '.
- बाहरी दुनिया मे जब निकलती है तब नारी होने के कारण बहुत -कुछ सुनना पड़ता है - उस उद्विग्नता में 'दुर्गासप्तशती' की उपरोक्त पंक्तियाँ मनोबल क्षीण नहीं होने देतीं.मान कर चलिये कि हम सब रचनात्मिका वृत्ति धारे उसी महाशक्ति के लघु-कण हैं !

somali said...

naari ke liye prerak aur prabhavsahli prastuti...aaj stri ko apni pehchaan karni hi hogi ....sarthak abhivyakti k liye bahut bahut naman...

दिगम्बर नासवा said...

ओज़स्वी रचना है ... नारी शक्ति कों पहचानना जरूरी है ...

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर रचना !

सोनिया जी ये कविता
अगर पढ़ ले जायेंगी
मनमोहन की तो
और आफत आ जायेगी !

ZEAL said...

सुशील जी , सही कहा , सोनिया जी पढ़ लेंगी तो सचमुच बेचारे मनमोहन सिंह जी की तो आफत आ जायेगी !