कार्टून समझना , कार्टूनों के बस का तो है नहीं, इसलिए उन्होंने इतना हंगामा मचा दिया संसद में। सज़ा किसने भुगती? उन विद्वानों को जिन्होंने अथक परिश्रम से NCERT की पुस्तक डिजाईन की थी। इस्तीफ़ा देना पड़ा उन्हें। उस कार्टून में डॉ अम्बेदकर का अपमान कतई नहीं था, फिर भी बात-बात पर तुनकने वाले सांसदों नेबवाला करके बलि चढ़ा दी एक निर्दोष की।
साठ वर्ष पहले जब एक ज़हीन कार्टूनिस्ट 'शंकर', जिसने असंख्य राष्ट्रीय पुरस्कार पाये थे, ने यह कार्टून बनाया था तब अम्बेदकर भी थे, जिन्होंने कभी स्वयं को अपमानित नहीं महसूस किया था उस कार्टून द्वारा, लेकिन अफ़सोस की आजकल के कार्टून-नेता , बिना बात का बतंगड़ बनाकर , संसद को असली मुद्दों से भटकाते हैं और खामियाजा भुगतती है मासूम जनता।
एक नज़र इस कार्टून पर भी, जिसने छीनी विद्वानों की नौकरी और संसद को बनाया मछली-बाज़ार।
http://zealzen.blogspot.in/2012/05/blog-post_8714.html
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साठ वर्ष पहले जब एक ज़हीन कार्टूनिस्ट 'शंकर', जिसने असंख्य राष्ट्रीय पुरस्कार पाये थे, ने यह कार्टून बनाया था तब अम्बेदकर भी थे, जिन्होंने कभी स्वयं को अपमानित नहीं महसूस किया था उस कार्टून द्वारा, लेकिन अफ़सोस की आजकल के कार्टून-नेता , बिना बात का बतंगड़ बनाकर , संसद को असली मुद्दों से भटकाते हैं और खामियाजा भुगतती है मासूम जनता।
एक नज़र इस कार्टून पर भी, जिसने छीनी विद्वानों की नौकरी और संसद को बनाया मछली-बाज़ार।
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11 comments:
कार्टून में हैं रखे, नोट वोट के थाक |
जर-जमीन लाकर पड़े, है जमीर पर लाक |
है जमीर पर लाक , नाक हर जगह घुसेंड़ें |
बड़े बड़े चालाक, चलें लेकिन बन भेड़ें |
रविकर रक्षक कौन, जहर जब भरा खून में |
कार्टून नासमझ, भिड़े इक कार्टून में ||
सही बात है।
कार्टून समझना ‘उनके‘ बस की बात नहीं।
सच कहा अपने
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
लोग दिमाग खोलकर सोचना ही नहीं चाहते। हर बात को भावनाओं से खिलवाड़ से जोड़ते हैं। मुद्दे की बात ही इतनी है कि इस कार्टून में ऐसा क्या है जो बवाला मचाया जाए? अरे दुनिया भर के महापुरुषों के कार्टून अखबारों में छपते रहते हैं उन पर तो कोई ऊँगली नहीं उठता। ठरकी हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरें बना गया उस समय कहाँ थे वे लोग जो आज जात-पात के आधार पर अम्बेडकर के कार्टून का विरोध कर रहे हैं? यह तो साफ़-साफ़ दिखता है कि विरोध करने वाले लोगों में हिंद्त्व के प्रति कोई विश्वास नहीं केवल दलित होने की उपलब्धी को नाजायज तरीके से कैश करना चाहते हैं। हिन्दुओं को पहले ही तोड़ चुके हैं अब जो मर गए उन पर तो सियासत खेलना छोड़ें।
और सबसे बड़ी बात, जो आपने पोस्ट में लिख ही दी है कि जिस समय यह कार्टून बना था उस समय अम्बेद्क्र्व नेहरु दोनों जिन्दा था। स्वयं उन्होंने ने ही विरोध नहीं किया जिन का कार्टून बना है।
सही कहा आपने, कार्टून वे ही हैं जिन्हें कार्टून समझने की बुद्धि न हो।
अब सरकारी चलानी है तो हर बात पे सहमत तो होना ही पड़ेगा न
कार में बैठें टुन ये हो कर
और खर्राटे मारेंगे
जाग गए जो कभी भूल कर
कार्टून पर ज्ञान बघारेंगे...'अमर पथिक'
पुस्तक पर कार्य करने वाले एक विद्वान के तो घर पर भी हंगामा किया गया. इसे पागलपन ही कहा जाएगा.
देश में कार्टून पे कार्टून कर रहे बवाल
सारी परेशानी भूल , कार्टून पे सवाल
कार्टून पे सवाल , संसद हुई बे हाल
और अन्नदाता मरे ,सड़े गेंहू की बाल
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'
इतने वर्षों बाद कोई जिन्न आया होगा इनकी नींद में जो अब इस कार्टून पर बबाल कर रहे हैं
शत प्रतिशत सही कहा आपने...
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