१९९४ में , 'रमन मैग्सेसे' सम्मान से पुरस्कृत किरण बेदी का नाम , देश विदेश में सम्मान के साथ लिया जाता है । भारत की पहली IPS अधिकारी , ने अपनी हिम्मत और लगन के सैकड़ों आदर्श उपस्थित किये हैं हमारे सन्मुख। आज वो आम आदमी के उत्थान के लिए समाज-सेवा में लगी हुई हैं।
इन्होने पुलिस सर्विस में जाने का सही निर्णय लिया , क्यूंकि ये एक ऐसा स्थान है , जहाँ रहकर पावर द्वारा बहुत से reforms किये जा सकते हैं। इन्होने जेल को रेफोर्म किया, कैदियों को किया तथा निरंतर प्रयासरत हैं समाज का स्तर ऊपर उठाने में।
किरण जी एक अनुशासनप्रिय व्यक्तित्व है , जिसमें उन्होंने कभी भी किसी प्रकार की ढील नहीं रखी। ट्रैफिक पुलिस में जब उनकी पोस्टिंग हुई तो उन्होंने प्रधान मंत्री , 'इंदिरा गांधी' की गाडी भी क्रेन से उठवा कर चालान कर दी। तब से इनका निक नाम 'क्रेन-बेदी' पड़ गया। निर्भीकता और कार्यों के प्रति इमानदारी की मिसाल हैं वो ।
गणतंत्र दिवस पर परेड को लीड कर रही थीं , जिसमें उनके उच्च अधिकारी ने उन्हें झंडा लेकर चलने की अनुमति नहीं दी, कारण ये बताया की वो स्त्री हैं और इतनी देर तक भार नहीं उठा सकेंगी । किरण जी ने कहा की जब वो इतनी कठिन ट्रेनिंग के बाद एक IPS अधिकारी बन सकती हैं तो क्या झंडा उठाकर परेड के दौरान नहीं चल सकती। अंत में किरण जी ही बातों को माना और उनको झंडा गर्व से थामने का अधिकार मिला।
दिल्ली में आयोजित एशियन खेलों के दौरान उनकी नियुक्ति , ट्रैफिक कंट्रोल आफिसर के पद पर हुई , तथा उनके पास बहुत कम समय में पूरी की जाने वाली जिम्मेदारी आ गयी। जिसको उन्होंने पूरी निष्ठां से निभाया और अत्यंत कम समय में ट्रैफिक में अनुशासन लाकर एक मिसाल कायम की। उन्होंने इसके लिए सुबह पांच बजे से लेकर रात ११ बजे तक अथक मेहनत की । उनकी माताजी ने घर का ध्यान रखा तथा किरण जी को निष्ठा से कार्य में सतत लगे रहने में बहुत सहयोग किया।
दिल्ली में एशियन खेलों के बाद किरण जी की पोस्टिंग ' Goa ' कर दी गयी। हर व्यक्ति की अपेक्षा उनसे कई गुना बढ़ गयी थी। गोवा वासी भी उनसे दिल्ली वाला अनुशासन अपने शहर में चाहते थे । किरण जी ने अपनी बेटी जो 'nephritis' के कारण AIIMS में भारती थी को छोड़कर गोवा में डयूटी ज्वाइन कर ली। उन्होंने कुछ समय माँगा दिल्ली में रहने के लिए, बेटी के लिए, लेकिन उनकी नहीं सुनि गयी । मौत से जूझ रही बच्ची को , छोड़कर जाने का मजबूत कलेजा सिर्फ किरण जी के ही पास है। ऐसे समय में हमेशा की तरह उनकी माँ ने ही बेटी का ध्यान रखा। बहुत कष्ट सहे लेकिन हमेशा लोगों की आशाओं पर खरी उतरीं।
सन २००२ में उन्हें भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला का खिताब मिला । उनके देश विदेश के बहुत से सम्मान मिले। जिसे उन्होंने सदैव अपने साथी आफिसर और subordinates के साथ बांटा और उन्हें श्रेय दिया।
जब किरण जी की नौकरी के मात्र दो वर्ष शेष थे और वो पुलिस कमिश्नर बनने के लिए सबसे उपयुक अधिकारी थीं और हर प्रकार से योग्य भी , तब भी उन्हें कमिश्नर नहीं बनाया गया और उनसे दो वर्ष जूनियर आफिसर को ये महत्वपूर्ण पद दिया गया। हमारे देश में सही व्यक्ति को उसका अधिकार नहीं मिलता । स्वाभिमानी तथा इमानदार अधिकारी किरण बेदी ने उस पद को त्याग दिया और निकल पड़ीं समाज सेवा के लिए। देश विदेश से हज़ारों कार्यक्रमों के लिए उनके पास आमंत्रण आने लगे।
ऐसा ही एक आमंत्रण उन्हें रजत शर्मा द्वारा दूरदर्शन से - " आपकी कचहरी " प्रोग्राम के लिए मिला। जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और जज की कुर्सी पर बैठकर न्याय कैसे किया जाता है , इसकी भी एक मिसाल कायम की । आज के दौर में जज की महिमामयी कुर्सी पर ' राखी सावंत ' जैसे लोग बैठकर अपनी फूहड़ भाषा से लोगों को डिप्रेशन और मौत के मुंह में भेज रहे हैं। कितना बड़ा अंतर हैं किरण जी और राखी के व्यक्तित्व में , लेकिन हमारा समाज लोगों के बीच का फर्क करना नहीं जानता।
किरण जी का व्यक्तित्व प्रेरणादायक है। मेरी आदर्श हैं वे। सभी महिलाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए की कैसे निस्वार्थ तथा समाजोपयोगी जीवन जिया जा सकता है।
१८ मार्च २००९ को Bangkok में किरण जी से रूबरू दो घंटे चर्चा में ये जानकारी मिली। उनका बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व है , जो मुझे प्रेरणा देता है।
हमारे देश को बहुत सी किरण चाहिए आज !
किरण बेदी जी को 'भारत-रत्न ' पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए ।
दिल्ली में आयोजित एशियन खेलों के दौरान उनकी नियुक्ति , ट्रैफिक कंट्रोल आफिसर के पद पर हुई , तथा उनके पास बहुत कम समय में पूरी की जाने वाली जिम्मेदारी आ गयी। जिसको उन्होंने पूरी निष्ठां से निभाया और अत्यंत कम समय में ट्रैफिक में अनुशासन लाकर एक मिसाल कायम की। उन्होंने इसके लिए सुबह पांच बजे से लेकर रात ११ बजे तक अथक मेहनत की । उनकी माताजी ने घर का ध्यान रखा तथा किरण जी को निष्ठा से कार्य में सतत लगे रहने में बहुत सहयोग किया।
दिल्ली में एशियन खेलों के बाद किरण जी की पोस्टिंग ' Goa ' कर दी गयी। हर व्यक्ति की अपेक्षा उनसे कई गुना बढ़ गयी थी। गोवा वासी भी उनसे दिल्ली वाला अनुशासन अपने शहर में चाहते थे । किरण जी ने अपनी बेटी जो 'nephritis' के कारण AIIMS में भारती थी को छोड़कर गोवा में डयूटी ज्वाइन कर ली। उन्होंने कुछ समय माँगा दिल्ली में रहने के लिए, बेटी के लिए, लेकिन उनकी नहीं सुनि गयी । मौत से जूझ रही बच्ची को , छोड़कर जाने का मजबूत कलेजा सिर्फ किरण जी के ही पास है। ऐसे समय में हमेशा की तरह उनकी माँ ने ही बेटी का ध्यान रखा। बहुत कष्ट सहे लेकिन हमेशा लोगों की आशाओं पर खरी उतरीं।
सन २००२ में उन्हें भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला का खिताब मिला । उनके देश विदेश के बहुत से सम्मान मिले। जिसे उन्होंने सदैव अपने साथी आफिसर और subordinates के साथ बांटा और उन्हें श्रेय दिया।
जब किरण जी की नौकरी के मात्र दो वर्ष शेष थे और वो पुलिस कमिश्नर बनने के लिए सबसे उपयुक अधिकारी थीं और हर प्रकार से योग्य भी , तब भी उन्हें कमिश्नर नहीं बनाया गया और उनसे दो वर्ष जूनियर आफिसर को ये महत्वपूर्ण पद दिया गया। हमारे देश में सही व्यक्ति को उसका अधिकार नहीं मिलता । स्वाभिमानी तथा इमानदार अधिकारी किरण बेदी ने उस पद को त्याग दिया और निकल पड़ीं समाज सेवा के लिए। देश विदेश से हज़ारों कार्यक्रमों के लिए उनके पास आमंत्रण आने लगे।
ऐसा ही एक आमंत्रण उन्हें रजत शर्मा द्वारा दूरदर्शन से - " आपकी कचहरी " प्रोग्राम के लिए मिला। जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और जज की कुर्सी पर बैठकर न्याय कैसे किया जाता है , इसकी भी एक मिसाल कायम की । आज के दौर में जज की महिमामयी कुर्सी पर ' राखी सावंत ' जैसे लोग बैठकर अपनी फूहड़ भाषा से लोगों को डिप्रेशन और मौत के मुंह में भेज रहे हैं। कितना बड़ा अंतर हैं किरण जी और राखी के व्यक्तित्व में , लेकिन हमारा समाज लोगों के बीच का फर्क करना नहीं जानता।
किरण जी का व्यक्तित्व प्रेरणादायक है। मेरी आदर्श हैं वे। सभी महिलाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए की कैसे निस्वार्थ तथा समाजोपयोगी जीवन जिया जा सकता है।
१८ मार्च २००९ को Bangkok में किरण जी से रूबरू दो घंटे चर्चा में ये जानकारी मिली। उनका बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व है , जो मुझे प्रेरणा देता है।
हमारे देश को बहुत सी किरण चाहिए आज !
69 comments:
..
मेरे मन के विचार आपने प्रकट किये. बेहद खुशी हुई.
"सूरज तो उग आया लेकिन किरणों पर प्रतिबंध लगे हैं."
ऐसे सुधारकों के द्वारा जागृति तो बेशक आ गयी है, लेकिन अभी भी जागृति लाने वालों को पूरे अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है.
..
आपने किरण बेदी के बारे में जानकारी देकर बहुत अच्छा कार्य किया है. मैं बेदी को The Tribune में छपे एक चित्र के माध्यम से जानता हूँ जिसमें एक अकाली प्रदर्शनकारी (संभवतः निहंग) खुली तलवार लिए खड़ा था और बेदी कानून व्यवस्था के हक में महज़ एक डंडे से चार्ज कर रही थीं. दूसरी जानकारी के तौर पर चंडीगढ़ स्थित बुड़ैल जेल है जिसे किरण बेदी ने आदर्श जेल का रूप दिया था. कहते हैं कि इस जेल में परंपरागत जेलों जैसी कोई चीज़ नहीं दिखती. कैदी रचनात्मक कार्य करते हैं और आराम से रहते हैं.
जहाँ तक कमिश्नर के पद का प्रश्न है उसके लिए लॉबिंग चलती है. लगता है किरण वहाँ पीछे रह गई. उनकी उपयुक्तता के बारे में कोई प्रश्न या संदेह नहीं था.
हम भी "क्रेन" बेदी के प्रशंसक हैं।
मर्दों का ego पर चोट पडता है जब यह crane, दोषी मर्दों के कान पकड़कर उपर उठाकर ले जाती है!
बस यही कारण रही होगी पदोन्नति न होने की।
सरकार को लगी होगी के मर्दों को इसके अधीन काम करने में हिचक होगी।
कृपया त्रुटियाँ सुधारिए।
१) दिल्ली में ऑलिम्पिक खेल? कब? आप शायद Asian Games की बात कर रही हैं। जहाँ तक मैं जानता हूँ भारत में अब तक ऑलिम्पिक खेल कभी भी आयोजित नहीं हुए हैं। आज भी कोशिश जारी है।
२)"आप की अदालत" टी वी प्रोग्राम किरण बेदी का नहीं था। रजत शर्मा का प्रोग्राम था। किरण बेदी वाला प्रोग्राम का नाम था "आपकी कचहरी"
३)इधर उधर कुछ मामूली spelling की गलतियाँ हैं। एक बार फ़िर पढ लीजिए।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
Dearest ZEAL:
Present, Ma'm.
Semper Fidelis
Arth Desai
... bahut sundar ... behatreen post !
किरण जी के बारे मे बहुत कुछ लिखा जा सकता है
वे भारत की शान है
लेकिन हमारे देश की विडम्बना ये है कि यहाँ
अच्छे आदमी को उसके अधिकार नही मिलते ।
kiran bedi sachmuch ek aadarsh hai... bahoot achchhi prastuti.
बहुत ही अच्छा लेख है ...मैं पढता जा रहा था बहुत ही उत्सुकता से और गंभीर होकर कि अचानक से राखी सावंत का नाम आ गया | मन कसैला हो गया...आप भी कैसे कैसे लोगों का जिक्र कर देती हैं |
वो सिर्फ महिला के नाम पर ही नहीं पूरी इंसानियत के नाम पर कलंक है |
किरण बेदी का व्यक्तित्व बहुत ही प्रेरणादायी है |
अंधेरे को रोशनी में तब्दील करने वाली किरण बेदी जी का व्यक्तित्व उनके नाम को सार्थकता प्रदान करता है.
बहुत अच्छी जानकारी है सच मे देश को किरण जैसी बेटियों की जरूरत है जो अपने संस्कारों को निभाते हुये जहाँ मे अपना नाम कमाया। शुभकामनायें।
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Vishwanath ji,
I have corrected the mistakes. Thanks for pointing it out.
Deepak ji,
Its true , a lot can be written , but since the post was getting too long, I kept it short. But definitely through comments I will write more about this wonderful Lady.
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@ Ethereal -
Your funny comment is showing your sick mentality. I dislike mockery. If you 'll continue writing such stupid comments , then I will definitely moderate it.
I am very cruel in moderating senseless comments , without any disparity. I am a serious person and I expect serious comments on my posts , which can do justice with the topic.
If you are just here to mark your presence, then do not do that. Just read and relax .
For funny comments look for some other sites on Google and spare me.
Dhanywaad .
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deshvasiyo ko garv hai bharat ke beti kiran bedi par
zeal good post
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Shekhar ji,
I was disappointed by Rakhi Sawant and Mallika type of women around.
So I chose to write about a daring, honest and selfless lady , instead of criticizing a shameless woman like Rakhi.
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किरण बेदी भारतीय जनमानस में एक नायिका की तरह विद्यमान है . उनके जेल सुधार कार्यक्रमों खासकर तिहाड़ जेल और कैदियों के प्रति मानवीय व्यवहार से हमारा मन उनके प्रति सम्मान से भर उठा .अच्छी अनुकरणीय पोस्ट .
किरण बेदी पर पूरे भारतीयों को नाज़ है. अच्छी पोस्ट के लिए आभार.
Ek vidambna yh bhi hai ki aaj raakhi sawant or mallika jaisi itemss bhi logon ke aadrsh baney huye hain,
Ek prerak post hetu abhaar.
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किरण बेदी एक बहुत अच्छी टेनिस खिलाड़ी भी हैं तथा उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी के लिए बहुत से खिताब जीते। १९६६ में उन्हें टेनिस में 'नॅशनल जूनियर चैम्पियनशिप' तथा १९७४ में 'सीनियर नैशनल चैम्पियनशिप' का खिताब मिला।
किरण जी खेलों पर बहुत जोर देती हैं। उनका मानना है की , व्यक्ति के बहतरीन स्वास्थ्य के लिए खेल बहुत जरूरी हैं। हमारा शारीर इनडोर परिस्थितियों के लिए आदि है, लेकिन खेलों द्वारा ही हमारा शारीर धूप और गर्मी जैसी कठोर परिस्थियों के सहने की क्षमता पैदा करता है।
टेनिस कोर्ट से ही किरण बेदी ने बहुत कुछ सीखा । वहां भेद भाव, चाटुकारिता, पावर का गलत इस्तेमाल और एक चैम्पियन के लिए लोगों का अडिग admiration ।
बहुत बार महिला खिलाड़ियों को साइड-कोर्ट , दे दिया जाता था, मेन-कोर्ट या सेंटर-कोर्ट में खेलने के लिए महिला के अधिकारों के लिए बहुत बार लड़ीं किरण बेदी।
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भारत की महान नारियों- उर्मिला, गार्गी, मैत्रेयी, लीलावती, रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती आदि के क्रम में किरण बेदी का भी नाम सम्मिलित हो गया है। जब से वे आई.पी.एस. अधिकारी बनीं तब से लेकर आज तक वे अपने साहसपूर्ण और सृजनात्मक कार्यों के लिए सदैव पत्र-पत्रिकाओं में चर्चित होती रहीं हैं। मेगसेसे पुस्कार के अतिरिक्त उन्हें जर्मन फाउंडेशन का जोसेफ ब्यूज पुरस्कार, नार्वे का एशिया रीज़न पुरस्कार, अमेरिका का मारीसन टाम निटकाक पुरस्कार तथा इटली का वूमेन ऑफ द ईयर 2002 पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। कानून की डिग्री के साथ वे ‘ड्र्ग एब्यूज़ एंड डोमेस्टिक वायलेंस‘ विषय पर डॉक्टरेट की भी उपाधि प्राप्त हैं। उनके द्वारा लिखित पुस्तकें ‘इट्स ऑल्वेज़ पॉसिबल‘, आइ डेयर‘ तथा ‘काइंडली बेटन‘ बहुचर्चित रहीं।
किरण बेदी हमारे देश की गौरव हैं। वे भारत की बेटियों के लिए आदर्श हैं।
दिव्या जी, आपने आज उनके बारे लिखा, हम सब गौरवान्वित हैं,...शुभकामनाएं।
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महेंद्र जी,
हमेशा की तरह आपकी सार्थक टिपण्णी के लिए आभार। किरण जी के बारे में जितना लिखें , उतना कम होगा । मैंने उनकी लिखी दो किताबें पढ़ी हैं। " I dare " सभी को पढना चाहिए। बहुत ही प्रेरक है। उनका असली व्यक्तित्व तो उनकी किताबों को पढ़कर ही समझा जा सकता है, मेरी पोस्ट तो उनके विशाल व्यक्तित्व को बताने में एक बूँद की तरह है।
किरण जी से चर्चा के दौरान हुए अनुभवों को शब्दों में रखने में असमर्थ हूँ। लेकिन कोशिश करुँगी उनकी कुछ बातें जो उनके मुख से सुनी , उन्हें यहाँ रखने की। बातों के दौरान जब वो कोई एन्कोउन्टर या फिर कोई अन्य प्रकरण बताती थीं तो बिलकुल डूब जाती थी उन घड़ियों में ।
उनका आत्मविश्वास और विनम्रता ह्रदय में अभी तक अंकित है और सदैव ही रहेगा। विरले ही किसी का व्यक्तित्व होता है ऐसा।
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भारत माता की बेटी -- 'किरण बेदी' -- एक आदर्श
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यक़ीनन...... पूरे देश को उन पर गर्व है..... एक महिला होने के नाते नाज़ है मुझे उनपर ......
किरण बेदी आंटी जी के बारे में अच्छी जानकारी मिली...हम सभी को उनसे सीखना चाहिए.
किरण बेदी अपनी माँ प्रेम लता की बेटी हैं उन्हें अपनी माँ की बेटी के रूप में जाना जाना चाहिए ... और भारत माता तो कल्पना है अगर धरती को कहते हैं भारत माता तो क्या धरती केवल इंडिया में ही है क्या वह तो हर देश में हर जगह है और वह जनन नहीं करती तो किरण बेदी उसकी बेटी केसे हुईं । कृपया अवश्य उत्तर दें धन्यवाद ।
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@ John, robotics,
जब किसी व्यक्ति का जीवन किसी एक को समर्पित न होकर एक बड़े समुदाय को समर्पित होता है, तो उसे सिर्फ अपना कहना स्वार्थ की श्रेणी में आता है।
जैसे महात्मा गाँधी ने करोड़ों लोगों की आजादी और अपनी मात्रभूमि के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया , इसलिए वो हम सबके पिता हैं और सभी भारतवासी उन्हें 'बापू' कहते हैं ।उसी तरह किरण बेदी भी , जो अपनी जन्म भूमि , भारत की सतत सेवा में समर्पित हैं , वो भारत की बेटी हैं।
भारत की प्रत्येक स्त्री भारत की बेटी है, हाँ जन्म देने वाली कोख जरूर पृथक है।
आब आप कहेंगे भारत माता कैसे हो गयीं ? तो जो पालन पोषण करे वही माता है। इस धरती से उपजे अन्न पर ही हमारा जीवन निर्वाह हो रहा है , तो हम सभी पर मात्र-ऋण है, जिसे भारत भूमि में जन्मी वीरांगना किरण बेदी बखूबी उतार रही हैं समाज सेवा द्वारा।
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
हम सबको किरण बेदी जी के बारे में जानकारी देने के लिए शुक्रिया ... हम सब भारतवासिओं को उनपर नाज होना चाहिए ... पर क्या करें ये एक ऐसा अस्तबल है जहाँ घोडा और गधा सब साथ रखे जाते हैं ...
हमें गर्व है भारत माँ की ऐसी हर संतान पर!
किरण बेदी तो हम सबका गोरव है |बहुत बढ़िया पोस्ट है |कितनी ही महिलाओ ने किरन बेदी को अपना आदर्श बनाया है और उनकी प्रेरणा से आगे बढ़ी है |चाहे वो पुलिस में हो या फिर अन्य क्षेत्र में ?यदि उनकी जानकारी या उनका भी जिक्र होतो आपकी पोस्ट और भी सार्थक होगी |
इन्ही आशाओ के साथ शुभकामनाये |
निस्चय ही और किरणें चाहिये।
किरण बेदी अपने आप में एक हस्ती हैं ... समाज का आदर्श ...
zeal
let me put in a question that may seem out of context but its related to your last post as well
kiran bedi is a career woman with a unsucessful married life her choice was always her career because she devoted better part of her life to become an police officer and could not think of wasting it just because her family thought it so
why are career successful woman not so successful in their family life , why does our society alwasy thinks that the prime duty of an educated woman should be to bring out better educated children ????
दिव्या जी आपने सही कहा किरण जी का व्यक्तित्व प्रेरणा दायक है !परन्तु मै आपकी एक बात से असहमत हूँ की सभी महिलाओ को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए,मेरा तो ये सोचना है की महिलाओ को ही नहीं पुरषों को भी उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए! किरण बेदी जी के बारे में आपने जो जानकारिया दी उसके लिए धन्यवाद !किरण बेदी जी को मै भी अपना आदर्श मानता हूँ !
बाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
निश्चित रूप से किरण बेदी सभी महिलाओं के लिये अनुकरणीय व्यक्तित्व हैं.
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रचना जी ,
आपका प्रश्न out of context नहीं है बल्कि बहुत सामयिक है।
पहली बात तो ये की किरण बेदी जी का वैवाहिक जीवन , किसी भी तरह से unsuccessful नहीं था , न ही है। उनके पति का हमेशा पूरा सहयोग रहा है किरण जी के आगे बढ़ने में। यदि एक विवाहित पुरुष इतनी तरक्की करता है तो उसकी पत्नी का उसके पीछे बहुत बड़ा योगदान होता है, चाहे वह महापुरुष महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तूरबा हो याफिर एक आम पुरुष हो। उसी प्रकार यदि एक विवाहित स्त्री किसी क्षेत्र में अपना परचम लहराती है तो उसकी सफलता के पीछे उसके पति का भी उतना ही बड़ा योगदान होता है।
जहाँ तक मैं किरण जी के बारे में जानती हूँ , उनके पति का उन्हें हमेशा सहयोग मिला है और आज वो जो NGO चला रही हैं, उसमे भी उनके पति का पूरा पूरा सहयोग है।
Continued...
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बहुत प्रेरणादायी पोस्ट है!
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बाल दिवस की शुभकामनाएँ!
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@--why are career successful woman not so successful in their family life ?
रचना जी ,
चाहे स्त्री हो या पुरुष , उसके पास समय तथा सामर्थ्य लिमिटेड होता है। जब हम किसी क्षेत्र में समर्पित हो जाते हैं , तो दूसरा पहलू थोडा सा उपेक्षित हो ही जाता है। यदि हम परिवार को प्राथमिकता देते हैं तो करियर उपेक्षित होता है और यदि कैरियर को प्राथमिकता देते हैं तो परिवार को समय कम मिल पाता है।
इसलिए करियर में ऊँचाइयों को छूने के लिए बहुत हिम्मत की जरूरत होती है। ज्यादातर महिलाएं भावुक होती हैं और परिवार को ही प्राथमिकता देती हैं।
मैं भी एक भावुक स्त्री हूँ, इसलिए मैंने भी करियर और परिवार के बीच , अपने परिवार को ही प्राथमिकता दी।
परिवार प्राथमिकता है तो करियर के साथ समझौता करना ही पड़ेगा । यदि करियर प्रिय है , तो परिवार पर उसका असर अवश्य होगा।
हर व्यक्ति अपनी-अपनी सोच , हिम्मत और परिस्थिति के अनुसार ही निर्णय लेता है। मैं इसके लिए समाज को जिम्मेदार नहीं मानती हूँ।
Continued...
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@--why does our society alwasy thinks that the prime duty of an educated woman should be to bring out better educated children ???? ...
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रचना जी,
समाज के ठेकेदारों ने सारे नियम अपनी सुविधानुसार बानाए हैं। इसलिए वे सोचते हैं की घर बैठकर महिलाएं बचों का पालन पोषण बेहतर तरीके से कर सकेंगी। लेकिन शायद उन्हें नहीं मालूम की घर बैठाकर अपनी पत्नी को वो कूप-मंडूक बना रहे हैं और उनके द्वारा अर्जित शिक्षा को जंग लगा रहे हैं।
समाज की दुहाई देने से कुछ नहीं होगा , अपने लिए हर परिस्थिति में एक बेहतर विकल्प ढूंढना स्त्री के हाथ में है। हमें अपनी शक्ति को स्वयं पहचानना है , खुद पर गर्व करना है, खुद को ज्यादा से ज्यादा जागरूक बनाना है , और उसके लिए अपने ज्ञान का निरंतर विस्तार करना होगा और दूसरों के साथ ज्ञान बाटना होगा। एक शिक्षित , जागरूक महिला चाहे नौकरी करे चाहे घर पर रहे, उसका ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता , और वो अपनी संतान का भविष्य बेहतर ढंग से बनाती है।
मुझे कभी समाज से शिकायत नहीं होती । समाज हमसे ही बनता है। किरण जी जैसे लोग समाज से कभी नहीं डरे , न ही व्यथित हुए, अपितु , कठिन डगर पर चलकर , उन्होंने लाखों महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।
क्यूँ न हम समाज के उस वर्ग का अनुकरण [जिसमें स्त्री पुरुष दोनों हैं ] , करें जो स्त्री के उत्थान में सतत प्रयत्न रत है।
यह भी हम पर ही निर्भर है।
आभार।
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किरण बेदी का स्मरण मात्र ऊर्जादायी है।
दिव्या जी
सबसे पहले तो john, robotics के प्रशन का सटीक जवाब देने के लिए वाह वाह....(उपयुक्त शब्द औऱ कोई नहीं समझ में आया)
एक बात जोड़ता हूं कि किरण बेदी जी टेनिस कि एशियाई चैंपियन भी रह चुकी हैं। ये चैंपियनशिप बाद में बंद हो गई।
रचना जी का प्रश्न काफी कुछ सच के करीब है। विस्तार में जाना नहीं चाहता।
डिग्रीधारी महिला को परिवार के लिए कैरियर छोड़ना चाहिए कि नहीं, इस पर आपके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूं। कोई भी ज्ञान व्यर्थ नहीं होता। उसका उपयोग कहीं न कहीं किसी न किसी तरह से होता ही रहता है। क्योंकी ज्ञान वो प्रकाश है जिसकी रोशनी छुपती नहीं है। जैसा कि मैने कहा कि देश का भविष्य देखना हो तो देश के पालने में झांकों।
इस पर एक पोस्ट लिखने का मन है। जल्दी ही लिखूंगा।
Great post! Long live Kiran Bedi!
ms bedi is a unofficial divorcee there is no document to verigy this fact but its well known fact and yhank you for the valuable input on my comment keep the good work going but keep in mind that there are hidden facts that are behind the fourwalls we merely see what is being shown
.
रचना जी,
मुझे तो उनका आदर्श, निष्ठा, बलिदान, लगन, संस्कार और देश तथा देशवासियों के प्रति समर्पण ही दीखता है। जिस तरह से वो आज गरीब और अनाथ बच्चों के भविष्य के लिए प्रयत्न रत हैं। शायद ही कोई होगा। वो एक ऐसा व्यक्तित्व हैं , जो कहीं पर ही किसी प्रकार का अन्याय, भ्रष्टाचार या अनुशासनहीनता नहीं देख सकती। आज वो Common wealth games में हुए भ्रष्ट लोगों के खिलाफ , बाबा रामदेव के साथ मिलकर एक प्रदर्शन करेंगी तथा , FIR दर्ज करवा रही हैं। कितने भारतीय हैं जो अन्याय और भ्रष्टाचार के प्रति कुछ करना चाहते हैं ? AC में बैठकर , किसी के सद्प्रयासों को हम आसानी से खारिज कर सकते हैं। लेकिन मुझे गर्व है उन सभी स्त्री पुरुषों पर जो निस्वार्थ भाव से देश हित में समर्पित हैं।
उनका divorce हुआ होगा तो कोई व्यक्तिगत कारण होगा, जिसे जानने में मुझे कोई रूचि नहीं है। यदि हम किरण बेदी जैसी महिला में भी कमियां ढूढेंगे , तो शायद ही कोई महिला होगी जिसका व्यक्तित्व अनुकरणीय हो।
अब क्या मुकेश अम्बानी की प्रशंसा करूँ , जिसने अपनी पत्नी को divorce नहीं दिया बल्कि अरबों रूपए अपने ऐश्वर्य को दिखाने के लिए ३६ मंजिला इमारत बना ली। स्वार्थी हैं ऐसे लोग, खुद से हटकर नहीं सोचते। देश में गरीबी और भ्रष्टाचार रहे, इन्हें कोई फरक नहीं पड़ता।
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किरण सूर्य की बेटी होती है
किरण बेदी कल्पना चावला से अच्छी हैं उन्होंने अपना देश तो नहीं छोड़ा उसकी तरह ।
किरण बेदी एक प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं ...
करियर के लिए कई बार परिवार उपेक्षित रह जाता है ..मगर जिस पुनीत उद्देश्य के लिए वे लडती रहीं , उनके परिवार को उन पर गर्व ही होगा ...परिवार को समय नहीं दे पाने की उनके पास सार्थक और जायज वजह है ...वे हर हाल में उनसे बेहतर हैं जो लोंग बिना किसकी ठोस कारण के परिवार को उपेक्षित रखते हैं ..मेरा यह कथन नारी और पुरुष दोनों के ही सन्दर्भ में देखा जाए !
..
दिव्या जी,
मन में एक प्रश्न जड़ें जमा रहा है. पूछ ही लेता हूँ.
जितने बड़े ओहदे पर लोग होते हैं. पुलिस कमिश्नर, [सीपी, डीसीपी, एसीपी], मंत्रियों के बेटे-बेटियाँ, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नेताओं के स्वयं - इन सभी के अपने-अपने NGOs क्यों होते हैं? वे सरकार से बड़े-बड़े अनुदान भी लेते रहते हैं. उन्हें अपने प्रभाव से बिना-व्यवधान अनुदान भी मिल जाते हैं. क्या इन NGOs से होने वाली गतिविधियों से समाज की वास्तविक सेवा होती है अथवा उस सेवा की आड़ में इन बड़े अधिकारियों के अतिरिक्त खर्चे पूरे होते हैं. क्या इनकी सेवाओं पर सरकारी या किसी जाँच एजेंसी की निगरानी होती है? मुझे कई NGOs ऐसे मिले जिनका केवल कवर ही अच्छा है वे अन्दर से खोखले हैं.
— कई धर्मात्मा, प्रवचनकर्ता, साधु, स्वामी ..... त्याग की मूर्ति बने रहते हैं. लेकिन उनकी व्यवस्था इस तरह बन चुकी होती है कि उनकी बेसिक जरूरतें छिपे रूप से चलने वाले पैसा खेंचू संस्थान पूरी करते रहते हैं.
— राहुल गांधी का क्या बिजनेस है? क्या वे कहीं से कमाई करते हैं? या फिर उनका भी कोई NGO उनकी मदद कर रहा है?
— इसी तरह के प्रश्न मुझे 'नव ज्योति' के सन्दर्भ में पूछने हैं?
— इस तरह के प्रश्नों को आप 'सूचना के अधिकार' के तहत लेना. इससे मेरा 'आदर' डॉ. किरण बेदी के प्रति कम हुआ न जानना.
..
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प्रतुल जी,
हमारे समाज में ज्यादातर NGO भ्रष्ट हैं। सिर्फ NGO ही नहीं , सभी व्यवसाय में भ्रष्टाचार अपना विकराल रूप धारण किये हुए है। हमें इसी में अपना जीवन निर्वाह करना है। भेड़ियों की भीड़ में इक्का-दुक्का उजले चेहरे होते हैं , हमें उनकी पहचान करनी है और उन पर श्रद्धा रखकर आगे बढ़ना होगा।
दुनिया में सबसे बड़ी चीज है श्रद्धा या विश्वास [ faith ]। जब हम इश्वर के सामने नतमस्तक होते हैं तो उसके गुण-दोष पर बिना विचार किये श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं। जब हम चन्द्रमा को अर्ध्य देते हैं तो उसके दाग के विषय में नहीं सोचते। जब हम एक डाक्टर के पास स्वास्थ्य होने की आशा के साथ जाते हैं, तो वहां भी चिकित्सक में faith ही होता है।
यदि हम मन में अविश्वास और द्वेष रखकर किसी से रूबरू होते हैं, तो उसका परिणाम कभी भी सुखद नहीं होता।
चूँकि मेरी श्रद्धा किरण जी में अडिग है , इसलिए उनकी NGO 'नव-ज्योति' में भी मेरी पूर्ण श्रद्धा है। और फिर नीर-छीर विभाजन तो व्यक्ति को 'स्व-विवेक' से ही करना होता है। इसलिए पूरी तरह मेरी द्वारा दी हुई सूचना पर विश्वास मत कीजियेगा।
वो कहते हैं न - "विश्वास फलता है "
"हीरे की पहचान सिर्फ जौहरी को ही होती है। शेष सभी के लिए वो कांच से बढ़कर कुछ भी नहीं होता । और हीरा भी अपने असली कद्रदान से ही तराशे जाने में आनंद महसूस करता है। शेष किसी के कद्र [ ना ] किये जाने पर द्वेष नहीं रखता "
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१८ मार्च २००९ , जब मैं किरण बेदी जी से मिलकर , अपने मित्र परिवार के साथ उनकी गाडी में वापस लौट रही थी , तो रास्ते में अचानक उन्होंने मुड़कर कहा -- " आपको नहीं लगता कि किरण बेदी कुछ arrogant [ अहंकारी ] हैं ? "
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ , मैंने अपने बगल में बैठी उनकी पत्नी कि ओर देखा, उन्हें भी अपने पति कि बात अच्छी नहीं लगी थी , फिर भी वो चुप थीं। वो लोग मुझसे बहुत बड़े हैं , मुझे उनकी बात काटना उचित नहीं लगा , इसलिए चुप रही।
लेकिन मेरे मन में उनके लिए जो आदर था वो उस दिन घट गया। तरस आया उनकी सोच पर । एक इमानदार हस्ती पर भी ऊँगली उठाने में कुछ लोगों को संकोच नहीं होता। एक महिला जो पुलिस कि नौकरी में है, जेल और कैदियों को सुधार रही है , अन्याय के खिलाफ लड़ रही है, अनेकों मुश्किलों से गुज़र कर आज इतनी शोहरत कमाई है। उसकी हिम्मत , इमानदारी , और जज्बे को सलाम करने के बजाये उन्हें " अहंकारी ' कह रहे हैं।
किसी कि वाणी होती ही इतनी ओजमय है , कि आम इंसान को वो अहंकारी दीखता है। लेकिन क्या ये जरूरी नहीं कि किसी पर ऊँगली उठाने से पहले स्वयं के अहंकार पर भी एक निगाह डाल लें ?
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'अहं' सृजन का आधार है. उसकी व्यक्ति में मौजूदगी अनुचित नहीं.
यदि उस अहं से सृजन केवल निज के लिये होता है तब वह अनुचित ठहराया जाता है.
' केवल निज के लिये' से मतलब है ........ अपने सुख और ऐश्वर्य के लिये, अपने उपभोग के लिये, अपने मज़े के लिये.
आध्यात्म में 'अहं' का बड़ा महात्म्य है.
'मैं' की भावना ही है जो हमसे प्रतिक्रियाएँ करवाए है
अन्यथा हम उदासीन हो गये होते.
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प्रतुल जी,
आपकी बातों से सहमत हूँ , आपने अहम् की जो परिभाषा दी , वो बिलकुल उचित है। बिना इस अहम् के व्यक्ति क्या ख़ाक आगे बढेगा और क्या कर सकेगा समाज के लिए । इसे ही दुसरे शब्दों में आगे बढ़ने का जज्बा , या समाज के लिए कुछ अच्छा कर गुजरने की तीव्र इच्छा या फिर पैशन [ passion ] कह सकते हैं
लेकिन अफ़सोस की बात ये है की जब लोग , दूसरों को 'अहंकारी' कहते हैं तो वो नकारात्मक होता है , वो कहीं न कहीं कहने वाले के मन के द्वेष को इंगित करता है।
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zeal where have i said that divorce needs to be treated as a blemis on kiran bedi ?? please read my both comments and then rationalize what i am saying . its about career and marriage not going together and its mostly in the case of woman
सच के लिए लड़ने का साहस और हासिल करने का माद्दा चन्द लोग ही कर पाते है. किरण बेदी उन्ही लोगो में से एक है यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुयी कि आप उनसे रूबरू हुयी थी. देश को और किरण चाहिए ..........
वैसे मेरे पास एक किरण है.....
किरन जी का जीवन न जाने कितनी नारियों को जीवन के घने कुहरे को चीरकर उन्हें नई ऊँचाइयाँ छूने की प्रेणना देता है !
किरन जी पर पूरे भारतवासियों को गर्व है !
धन्यवाद दिव्या जी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
www.marmagya.blogspot.com
किरण बेदी के बारे में जितना भी कहा जाय, कम ही होगा. सशक्त पोस्ट.
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'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
किरन बेदी जी बेहद प्रेरणादायक स्त्री हैं, हालकिं उनसे व्यक्तिगत तौर पर कोई सम्बन्ध नहीं है परंतु फिर भी वो मेरी हमेशा प्रिय रहीं हैं, जब उन्हे मेग्सेसे पुरुस्कार मिला था मैने उन्हें पत्र लिखकर बधाई दी थी और उनका संक्षित उत्तर भी आया। बाद में जब मेरा विवाह हुआ तो मेरी पत्नी भी उनकी बहुत बड़ी फैन निकली। अब हमारी बेटी भी उन्हे पसन्द करने लगी है जब भी किरन बेदी जी का ज़िक्र टीवी या अखबार में आता वो तुरंत हमें बताना अपना फर्ज समझती है।
बहुत कम ऐसे रोल माडल बचे हैं, अब भारत में! बहुत अच्छा लगा किरन बेदी जी के बारे में सब जाना हुआ फिर फिर पढ़्कर!
साधुवाद!
quite informative . nicely written...kudos 2 ur post !
वन्दे मातरम,
किरण बेदी जी समाज के लिए प्रेरणाश्रोत हैं, मै बचपन से उनसे बेहद प्रभावित रहा और आज इस प्रभावी और मेरे प्रिय ब्लॉग में उनके विषय में पोस्ट देखकर अभिभूत हो गया |
बधाई स्वीकार करें......
"जब किरण जी की नौकरी के मात्र दो वर्ष शेष थे और वो पुलिस कमिश्नर बनने के लिए सबसे उपयुक अधिकारी थीं और हर प्रकार से योग्य भी , तब भी उन्हें कमिश्नर नहीं बनाया गया और उनसे दो वर्ष जूनियर आफिसर को ये महत्वपूर्ण पद दिया गया।..."
ऊँचे बढ़ते, शिखरों पर, चढ़ते-चढ़ते
मैंने तूफानों को आते देखा है
हर यज्ञ में, निज आहुति पर
मैंने अग्नि शिखाओं को बढ़ते देखा है ...
आदरणीया बेदी जी मेरी भी आदर्श रही हैं /
हमें उन पर गर्व है .....
जहां तक प्रश्न है सेवा के अनंतर उनके साथ न्याय न होने का ..तो ये तो सही रास्ते पर चलने वालों के साथ होता ही है / और शायद यही वो परिस्थितियाँ हैं जो लोगों को लौह पुरुष या लौह महिला बनाती हैं / बेदी जी के साथ दो बातें हमेशा रहेंगी ......"राजनीतिक" या कहें कि "पुरुष अहं" की शिकार ....और प्रतिकूल स्थितियों में भी कर्त्तव्य-बोध और उसके प्रति समर्पण / सच पूछो तो इन्ही बातों ने उन्हें पूरी नारी जाति के लिए अनुकरणीय बना दिया है .हम सरकार की बात नहीं कहेंगे .......पर पूरे देश नें उन्हें सर आँखों पर बिठा रखा है ......उन्हें कोटि-कोटि नमन ....नित्य नमन !!!
ज़ील जी ! आपने बहुत अच्छी जगह पर कलम चलाई है (जोकि आप हमेशा करती हैं ) बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर ,
kyaa आप thaaeelaind में vartikal dileevaree की kuchh sambhaavanaayen dekhatee हैं ? yahaan is पर kaam chal rahaa है
एक प्रेरणादाई पोस्ट और महिलाओं के लिए ही नहीं सम्पूर्ण समाज की प्रेरणा किरण बेदी जी के बारे में जानकारी ..धन्यवाद इस पोस्ट के लिए...
यह देश का दुर्भाग्य है कि किरण बेदी जी को सरकार ने हाशिये पर डाल दिया ,और कोई जोरदार विरोध नहीं हुआ ।
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अजय जी,
यही प्रश्न मुझे व्यथित करता था, और आज भी करता है । और यही प्रश्न मैंने किरण जी से पूछा था । लेकिन अजय जी , कोई अकेला कितना कर सकेगा जबकि पूरा सिस्टम ही किसी के खिलाफ हो । ३५ साल की नौकरी में किरण जी ने rivalry और opposition ही सहा है। क्यूँकी उनको दकियानूसी और दिखावटी रिवाजों से नफरत थी। उनके seniors का कहना था की की जब आप सिस्टम का पार्ट नहीं बन सकती तो सिस्टम से बाहर हो जाना चाहिए। उनको इस गरिमामय पद से हटाने की साजिश थी । वे चाहते थे की किरण जी resign कर दें । ताकि वो भष्टाचार का पूरा पूरा लाभ ले सकें।
आज किरण जी अनाथ और गरीब बच्चों की मदद कर रही हैं , ये अच्छी बात है , बहुतका भला हो रहा है, लेकिन उनकी असली जरूरत हमारे देश के भ्रष्ट सिस्टम को रेफोर्म करने की है। जो वो कमिश्नर के पद पर रहकर बखूबी कर सकती थीं। लेकिन उन्हें इस मौके से वंचित कर दिया गया। कारण है ईर्ष्या ।
उनके त्यागपत्र को बिना आपत्ति तुरंत मजूर कर लिया गया। किसी को कोई दुःख नहीं की एक जिम्मेदार, इमानदार और संवेदनशील व्यक्ति दूर हो रहा है। हमारा कायर समाज भी चुप रहा, किसी ने विरोध नहीं किया उनके साथ होने वाले अन्याय का।
मुझे दुःख है। मुझे बेहद दुःख है की हम लाचार क्यूँ है इतने ।
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किरण बेदी जी को भारत-रत्न पुरस्कार मिलना चाहिए।
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bureaucracy है हमारे देश में। ये ही अदृश्य रूप में कंट्रोल कर रहे हैं हामारे समाज को। इनसे बचने का कोई उपाय नहीं है। या तो इनकी हाँ में हाँ मिलाओ या फिर शहीद हो जाओ इनके कोप से। Pygmy बन कर जीने के लिए मजबूर कर रहे हैं ये हमें। खोखला कर चुके हैं समाज को ।
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Kaushalendr ji,
I am not in medical practice here in Thailand. Unfortunately i have enough free time here , which i try to spend in free counseling, free consultation and free blogging.
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तुमने कलम उठाई है तो वर्तमान लिखना ,
हो सके तो राष्ट्र का कीर्तिमान लिखना .
चापलूस तो लिख चुके हैं चालीसे बहुत ,
हो सके तुम ह्रदय का तापमान लिखना ..
महलों मैं गिरवी है गरिमा जो गाँव की ,
सहमी सी सड़कों पर तुम स्वाभिमान लिखना
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हरीश प्रकाश गुप्त said...
किरण बेदी नाम ही स्वयं में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं।
पोस्ट के लिए आभार।
November 16, 2010 9:09 AM
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