अक्सर लोगों को ये कहते सुना है - " तुम भावुक हो , तुम कमज़ोर हो "
भावुक न होना दुसरे शब्दों में असंवेदनशील होने जैसा है। जो लोग ये समझते हैं की भावुक लोग कमज़ोर होते हैं , वो स्वयं को 'प्रक्टिकल ' कहते हैं। क्या भावुक लोग व्यवहारिक नहीं ? क्या वो दूसरों का दर्द अन्यों की तुलना में बेहतर तरीके से नहीं समझते । क्या दूसरों का दुःख गहराई से महसूस करना और उसके दुःख में शामिल होना भावुक व्यक्तियों की कमजोरी है । शायद हाँ ! संवेदनशून्यता की ओर बढ़ते हुए समाज को भावुक-जन कमज़ोर ओर अव्यवहारिक ही लगेंगे।
बुद्धिमान तथा व्यवहारिक समुदाय ये सोचता है की - अरे , आखिर ये मेरी इतनी मदद क्यों करना चाहता है ? जरूर इसमें इसका कोई निहित स्वार्थ होगा। अब शक का इलाज तो है नहीं। कुछ लोग सोचेंगे - अरे, इसके अपना घर परिवार नहीं है क्या , फुल टाइम दूसरों के बारे में सोचता रहता है ।
लेकिन भावुक इंसान तो भावुक ही है। इसकी नहीं तो उसकी मदद करेगा। दुनिया में दुखों का अम्बार है। इसलिए भावुक व्यक्ति कभी खाली नहीं बैठ पाता । किसी न किसी की चिंता उसको खाए ही रहती है। और वो भी मस्त रहता है परहित में सुख ढूँढने में।
भावुक व्यक्ति दूसरों के दुःख को शिद्दत से महसूस करता है और तत्पर रहता है उसके दुःख के निवारण के लिए। लेकिन कभी - कभी उसकी यही निस्वार्थ चेष्टा के गलत अर्थ लगा कर दुसरे उसकी निंदा करने लगते हैं। भावुक व्यक्ति एक सॉफ्ट टार्गेट बन जाता है , लोग उसे तरह तरह के अलंकारों से भी विभूषित करते हैं , लेकिन फिर वही "ढाक के तीन पात " । भावुक व्यक्ति फिर भी नहीं सुधरता, बहते जल की तरह अपनी दिशा मोड़ लेता है , और बहने लगता है , किसी और की शुष्क जिंदगी में आद्रता लाने के लिए।
मेरे विचार से एक भावुक व्यक्ति कमज़ोर नहीं होता बल्कि वो अपने जीवन की विषमताओं से लड़ना सीखता है , और दूसरों के दुखों का समाधान ढूँढने में तत्पर रहता है। हर बीतते दिन के साथ , अपने खट्टे-मीठे अनुभवों से वह निरंतर ही सीखता रहता है , और खुद को पहले से भी ज्यादा संवेदनशील और समाजोपयोगी बना लेता है।
भावुक व्यक्तियों को बस एक बात का ध्यान रखना चाहिए की कहीं उनके अतिशय प्रेम से किसी को घुटन तो नहीं हो रही । कहीं उसके पारिवारिक संबंधों में दरार तो नहीं आ रहीं । यदि कभी ऐसा लगे तो समय रहते थोड़ी सी दूरी बना लेना चाहिए ताकि आपकी भावुकता दूसरों के लिए परेशानी का सबब न बन जाए ।
जो लोग बात-बात पर बुरा मान जाते हैं, रूठ जाते हैं , रोने लगते हैं , वो भावुक नहीं बल्कि असली कमज़ोर होते हैं ।ऐसे लोग over-sensitive और touchy होते हैं । ऐसे लोगों को भावुक कहकर भावुकता का अपमान नहीं करना चाहिए।
भावुकता एक अति-दुर्लभ गुण है । और सफ़ेद-बाघ की ख़त्म होती प्रजाति तरह भावुक लोग भी समाप्तप्राय ही हैं। इंसान की पूँछ की तरह ये भी एक दिन विलुप्त हो जायेगी , क्योंकि असंवेदनशील समाज में इसकी कद्र और उपयोगिता घटती जा रही है।
विश्व भर के कुछ भावुक लोगों को मेरा नमन -- बापू, मंडेला, ओबामा , भगत सिंह , बोस, विवेकानंद, किरण बेदी, अटल जी , APJ कलाम और अन्य कई भावुक हस्तियाँ जिन्हें अपने देश से और आम जनता के दुखों से अतिशय प्रेम ओर सरोकार था और है।
क्या ये सब कमज़ोर हैं ? जी नहीं ! ये भावुक हैं , और इसलिए सिर्फ अपने बारे में नहीं अपितु एक बड़े समुदाय के लिए सोचते हैं सतत।
मैं भावुक हूँ ,
कमज़ोर नहीं ।
भावुकता मेरी ताकत है ,
और भावुकता ही मेरा गहना ।
आभार ।
59 comments:
भावुक और संवेदनशील लोगों की प्रजाति लुप्तप्रायः हो चुकी है - आपसे सहमत हूँ.
Divya,I feel you will be a great leader one day. All the best.
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विश्वस्तरीय कुछ भावुक लोगों को मेरा नमन -- बापू, मंडेला, ओबामा , भगत सिंह , बोस,विवेकानंद, किरण बेदी, और अन्य कई भावुक हस्तियाँ जिन्हें अपने देश से और आम जनताके दुखों से अतिशय प्रेम ओर सरोकार था और है।
— क्या भावुकता भी विश्वस्तरीय होती है?
— क्या भावुकता निम्नस्तरीय नहीं हो सकती?
— क्या यह भावुकता (जल्दबाजी) में उठाया कदम नहीं कि हम जिसके समक्ष झुकने जा रहे हैं क्या वे सचमुच में भावुक थे या हैं?
— क्या जल्दबाजी में किये गए कार्य भावुकता कहलायेंगे?
— "थोड़ा धैर्य अपने विचार, अपना मूल्यांकन निर्धारित करने के लिए", "जल्दबाजी मत करो बेटा", "भावुकता में मत बहो"... ये सभी वाक्य समय-समय पर हमारे बड़े हमसे बोलते रहते हैं.
— क्या दो व्यक्तियों का निपटारा करने में गांधी द्वारा शरीर और संस्कार से कमजोर व्यक्ति के पक्ष में निर्णय सुना देना ............... तुष्टिकरण है या भाबुकता?
ज़ारी .......
..
सहमत।
सोचने वाली बात कही आपने ।
भावुकता कमजोरी नहीं है।
इंसान भावुक होकर भी शक्तिशाली हो सकता है।
जो भावुक नहीं, जरूरी नहीं कि वे शक्तिशाली हैं।
इन दोनों में मुझे कोई सम्ब्न्ध नज़र नहीं आता।
हाँ एक बात जरूर कहना चाहूंगा।
यदि आप वाकई कमजोर हैं तो कृपया भावुक मत बनिए!
आज विशेष और भावपूर्ण शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
@@ जो लोग बात-बात पर बुरा मान जाते हैं, रूठ जाते हैं , रोने लगते हैं , वो भावुक नहीं बल्कि असली कमज़ोर होते हैं ।ऐसे लोग over-sensitive और touchy होते हैं । ऐसे लोगों को भावुक कहकर भावुकता का अपमान नहीं करना चाहिए।
क्या रोने वाले लोग कमजोर होते हैं...
कृपया इस बात पर गौर करें...
रोना सिर्फ एक अभिव्यक्ति है |
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— क्या दूसरा, तीसरा विवाह कर लेना हमारी अति भावुकता का परिचायक होगा?
— कोई व्यक्ति अपने अवैध सम्बन्ध को या अपनी अवैध संतान को 'भावुकता में हो गई भूल' ठहराए तो क्या वह क्षम्य है?
— कोई व्यक्ति भक्ति में बावरा होकर पशु-बलि को प्रेरित होकर उसके मांस को 'काली के प्रसाद' रूप में खाए और बँटवाये तो क्या वह भक्ति की भावुकता का प्रवाह होगा?
समाज में भावुकता भी भाँति-भाँति की देखने में आती रही है.
किसी को हो न हो मुझे तो आपसे बेहद अपेक्षाएँ हैं वह भी स्वार्थ पूर्ण ...........
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जो लोग बात-बात पर बुरा मान जाते हैं, रूठ जाते हैं , रोने लगते हैं , वो भावुक नहीं बल्कि असली कमज़ोर होते हैं ।ऐसे लोग over-sensitive और touchy होते हैं । ऐसे लोगों को भावुक कहकर भावुकता का अपमान नहीं करना चाहिए।
भावुकता एक अति-दुर्लभ गुण है । और सफ़ेद-बाघ की ख़त्म होती प्रजाति तरह भावुक लोग भी समाप्तप्राय ही हैं। इंसान की पूँछ की तरह ये भी एक दिन विलुप्त हो जायेगी , क्योंकि असंवेदनशील समाज में इसकी कद्र और उपयोगिता घटती जा रही है।
भावुकता के ऊपर लगे इस कमजोरी के आक्षेप को नष्ट करने का शुक्रिया..........
भावुक होना अच्छा है पर सतत दूसरों के बारे में सोचते रहना और अपनी तथा अपने परिवार की जरूरतों को अनदेखा करना अति भावुकता है । संवेदनशील आदमी भी किसी धुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति की मदद आगे होने वाले लफडों की आशंकाओॆ (पुलिस थाने के चक्कर, कोर्ट कचहरी के झंझट )
से नही कर पाता । इसके लिये हमारी व्यवस्था भी कम दोषी नही है । जो व्यक्ति जल्द गुस्सा होते हैं जल्द रोने लगते हैं उन्हें भी मै भावुक ही कहूंगी चाहे उनकी भावुकता उनके अपने व्यक्तिगत सुख दुख के लिये ही क्यूं न हो । किसी की सहायता करने के लिये भी हमें व्यवहारिक तो होना ही पडता है । जल्दबाजी में फैसला न लेते हुए स्थिति के पक्ष विपक्ष में विचार कर के ही फैसला लेना चाहिये ।
दिव्या जी मेरा मानना है की भावुक लोग ही इमानदार हुआ करते हैं.भावुक कमज़ोर नहीं होता उसको समाज कमज़ोर बना देता है. भावुक इंसान कभी मक्कार नहीं हो सकता.
सामान्यतः,भावुकता का आशय उस वृत्ति से है जिसके कारण कोई व्यक्ति खासकर किसी दुखद घटना पर इतना दुखी हो जाता है कि स्वयं उसको कोई स्वास्थ्यगत नुकसान होने की संभावना पैदा हो जाती है अथवा इस रूप में लेता है जिससे दुखद घटना का मुकाबला करने की इच्छा पैदा होने की बजाए,एक और दुख पैदा होने की आशंका पैदा हो जाती है। यह वास्तव में समवेदनशीलता नहीं,बल्कि एक प्रकार की मानसिक कमज़ोरी का ही लक्षण माना जाना चाहिए।
आपकी बात भी ठीक लग रही थी... पर प्रतुल जी कि टीप से भी सहमत दीखता हूँ..
बात वही आ गयी.. "अति स्वत्र वर्जयते"
बाकी रही आज कि बात तो - भावुकता हर जगह मिल जायेगी.... यही भावुकता किसी भी घर को, किसी भी संस्थान को और परिवार को जोड़े रखती है. भावना में संसार है..... भावुक शख्स कि भावना ही तो पत्थर में भगवान दूंद लेती है.
भावुक होना और कमजोर होना दोनो अलग अलग बाते है
भावुक आदमी सब के बारे मे सोचता है और उनकी सहायता करने के लिए तैयार रहता है परन्तु कमजोर आदमी तो स्चयं अपनी सहायता नही कर सकता।
हाँ भावुक लोगो को कुछ बुद्धिजिवी (स्वार्थी) लोग पागल, सनकी आदि समझते है वे सोचते कि ये पता नही क्यो दूसरे के दर्द मे मरहम लगाने आ जाता है
जहाँ तक भावुक लोगो के समाप्त होने की बात है तो मै आपसे सहमत नही हूँ क्योकि मेरा मानना है जितने लेखक, कवि, ब्लागर
समाज सेवी है वे सभी भावुक है तभी तो किसी दर्द देखते ही लग जाते है अपने काम पर।
भावुकता को कमजोरी नहीं मानना चाहिए , इस तथ्य को सही तरह समझाने के लिए आभार . वैसे एक विचार मेरे मन में आया की ऐसा क्यू कहा जाता है की कवि का मन भावुक होता है ..
कभी कभी आपके विषय और भाषा मुझे बहुत अपनी सी लगती है ...और मैं हैरान होती हूँ कि एक डॉक्टर और साधारण गृहिणी के विचार एक समान कैसे हो सकते हैं ..:)
भावुकता अगर आपको लगातार नुकसान पहुंचाती है(मेरा मतलब है यदि आपको ठगे जाने का एहसास होता है ) , तो कमजोरी ही मानी जाती है ...परिस्थिति के अनुसार भावुकता को व्यवहारिकता से संतुलित किया जाना चाहिए ...
मगर इंसान और पशु में फर्क दर्शाने के लिए भावुकता को होना आवश्यक है ...बस इसे संतुलित होना चाहिए ...जैसा कि दीपक जी ने कहा ," अति स्वत्र वर्जयते"
मैं भावुक हूँ ,
कमज़ोर नहीं ।
भावुकता मेरी ताकत है ,
और भावुकता ही मेरा गहना ।
कई बार लोग भावुक व्यक्ति के बारे मे ऐसे ही बिना सोचे अपनी राय बना लेते हैं लेकिन भावुकता कतई कमजोरी की निशानी नही है। बहुत विचारणीय पोस्ट है। बधाई।
और भावुक लोग ब्लैकमेल भी सबसे ज्यादा किये जाते हैं।
प्रणाम
nice post
दिव्या जी,
आज आपकी भावनाएं सर्वश्रेष्ठ है। मानवता के श्रेष्ठ गुण के स्थापनार्थ!!
***भावुकता को लम्बे काल से गलत अर्थों में लिया जा रहा है, और यह हुआ है सम्वेदनाहीन विचारधाराओं के कारण।
भावुकता हमारी भावनाओं का प्रकटीकरंण होता है, भावनाएं हमारी अन्तर आत्मा के गुण।
भावुक को कमजोर, या चतुर नहिं माना जाता, इसलिये कि वह अपने अत्मीय गुण त्याग नहिं पाता। इसमें क्या आश्चर्य कि सम्वेदनाविहिन, चतुर-व्यवहार-कुशल लोग इस अच्छे गुणों को सहजता से स्वीकार कर ले।
भावुकता को कमजोरी नहीं एक गुण की तरह देखा जाना चाहिए.... वो गुण जो हमें संवेदनशील बनता है.... संवेदनशीलता हमें सही मायने में इंसान बनाती है...
दिव्या जी,
आपकी आज की पोस्ट मे सब कुछ समाहित है और आपने तो कहने के लायक कुछ छोडा ही नही……………यथार्थ को लफ़्ज़ों मे उतार दिया है……………भावुकता इंसान होने की निशानी है ना कि किसी कमजोरी की। बस ये दुनिया ही समझ नही पाती और ना जाने क्या क्या कह जाती है मगर आज के वक्त मे ये भी सच है कि भावुक होना चाहिये मगर इन्सान को साथ मे प्रेक्टिकल भी होना चाहिये ताकि कोई तुम्हारी भावुकता का गलत फ़ायदा ना उठा ले।
भावुकता एक अति-दुर्लभ गुण है । और सफ़ेद-बाघ की ख़त्म होती प्रजाति तरह भावुक लोग भी समाप्तप्राय ही हैं। इंसान की पूँछ की तरह ये भी एक दिन विलुप्त हो जायेगी , क्योंकि असंवेदनशील समाज में इसकी कद्र और उपयोगिता घटती जा रही है।
आपकी इन पंक्तियों के बारे में मुझे कुछ कहना है। मुझे लगता है कि इंसान में जैसे सत्य बोलना आदि गुण होते हैं वैसे ही भावुकता भी एक गुण हैं। प्रत्येक व्यक्ति का मन किसी न किसी बात से भावुक होता ही है। कोई माँ को लेकर भावुक है तो कोई बहन को लेकर। लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी एक ही बात से भावुक हों। जिसे अपने जीवन में जिस बात का अभाव अनुभव होता है वह उसी से भावुक हो जाता है। यह गुण शाश्वत है, कभी भी समाप्त हो नहीं सकता। वर्तमान युग में हम चाहे कितने भी व्यावहारिक क्यों ना बन जाए लेकिन हमारे मन में चाहत हमेशा रहती ही है और जितनी कठोरता हम बरतते हैं मन की चाहत और प्यास बढ़ती ही है। इसलिए आज प्रत्येक व्यक्ति टूटते रिश्तो के कारण चाहे कितना भी व्यावहारिक क्यों ना दिखायी दे वह अन्दर से अधिक भावुक हो चला है। इसलिए यह भावुकता घटने के स्थान पर और बढेंगी। ऐसा मेरा सोचना है।
समय के साथ-साथ इंसान के सोचने के ढंग में भी बदलाव आया है , जहां पहले भावुक और संवेदनशील प्रव्रती को सराहा जाता था वही आज इस प्रव्रती को एक दोष के रूप मे देखा जा रहा है , आज स्मार्टनेस का जमाना है भावुक और संवेदनशील व्यक्ति इस दायरे से बाहर हैं ,स्मार्ट किसे कहा जाता है सभी जानते है ,लेकिन मुझे व्यक्तिगत तौर पर दुःख होता है जब किसी व्यक्ति की संवेदनशीलता ख़त्म हो जाती है , क्योंकि मृत कोशिकाओं को स्पर्श का अहसाश नहीं होता है ,
एक पठनीय पोस्ट हेतु आभार ...............................
जो लोग भावुक लोगो को कमजोर मानते है वो इर्श्यवश ही अपने कथन की पुष्टि करते है |
कई बार त्वरित निर्णयों को भावुकता की संज्ञा दी जाती है |
भावुक इन्सान सिर्फ प्रेम और प्रेम ही बांटता है |
ऐसे भावुक इंसानों के लिए आंखे नम होना भी तो भावुकता का परिचायक ही है न ?
आपसे सहमत. संवेदनशून्यता की ओरही तो समाज बढ़ रहा है.
Thanks Divya, I know you are a great reader as well.
मेरे विचार से एक भावुक व्यक्ति कमज़ोर नहीं होता बल्कि वो अपने जीवन की विषमताओं से लड़ना सीखता है , और दूसरों के दुखों का समाधान ढूँढने में तत्पर रहता है। हर बीतते दिन के साथ , अपने खट्टे-मीठे अनुभवों से वह निरंतर ही सीखता रहता है , और खुद को पहले से भी ज्यादा संवेदनशील और समाजोपयोगी बना लेता है
इतने सुंदर लेखन के लिए बधाई
जज़्बात न हों तो इंसान और पत्थर का फर्क खत्म हो जाएगा ।
भावुकता को दुर्बलता से नहीं जोड़ा जा सकता है, बुद्धि का प्रयोग बीच बीच में करते रहना चाहिये।
भावुक व्यक्ति कभी भी कमजोर नहीं हो सकता..........
भावुकता में भी कई भाव होते है, कई जज्बात होते हैं,
इंसान यदि इंसान है तभी वो भावुक है........
भावुकता कमजोरी नहीं होती सहमत ...
पर अति भावुकता में इंसान अपना ही नुक्सान कर लेता है.वैसे अति हर चीज़ की ही बुरी होती है.भावुकता के साथ बुद्धि का प्रयोग आवश्यक है.
विचारणीय पोस्ट आभार.
"Bhavukta" ki paribhasha sab apne anusar show karte hain.....waise bhavuk hona ek gun hai, jiski kami ho gayee hai......Shika ne sahi kaha agar koi budhimaan bhavuk ho to wo jo bhi karega, dusre ke liye achchha karega..:)
मैं भावुक हूँ ,
कमज़ोर नहीं ।
भावुकता मेरी ताकत है ,
और भावुकता ही मेरा गहना । ... आपने अपनी छोटी सी कविता में अपने आलेख का सार कह दिया है.. सार्थक विचार और आलेख !
मैं भावुक हूँ ,
कमज़ोर नहीं ।
भावुकता मेरी ताकत है ,
और भावुकता ही मेरा गहना ।
बहुत ही सही कहा आपने ...और यह गहना हर एक के पास नहीं होता, यदि ऐसा नहीं होता तो यह पंक्तियां यूं जीवित न हो उठती, एक बार फिर सुन्दर एवं लेखन ।
... saarthak va bhaavpoorn post !!!
dr divyaji bahut sundar likha hai aapne
aapki post shodhparak hoti hai badhai
bhut kub rachana lekh hai
भावुक लोग वह हैं जो ‘भाव’ नहीं देते और सब की मदद के लिए तत्पर रहते हैं और कमज़ोर वो जो क्म ज़ोर के कारण पीछे हट जाता है :)
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥ एक नजर इधर भी :- ए... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥
एक नजर इधर भी :-
एक अनाथ बच्चे और उसे मिली एक नयी माँ की कहानी जो पूरी होने के लिए आपके कमेन्ट कि प्रतीक्षा में है कृपया पोस्ट पर आकर उस कहानी को पूरा करने में मदद करने हेतु सभी मम्मियो और पापाओ से विनती है ॥
http://svatantravichar.blogspot.com/2010/11/blog-post_18.html
भावुकता पर आपके विचारों से सहमत।
भावुकता मानव का एक सकारात्मक गुण है। भावुकता विहीन हृदय तो पत्थर के समान है।
अतिशय भावुकता वांछनीय नहीं है।
मानव समाज के कल्याण के लिए कार्य करने वाले सच्चे संत-महात्मा, ऋषि-मुनि, वैज्ञानिक, साहित्यकार, दार्शनिक, समाज सुधारक आदि के लिए भावुकता एक सकारात्मक और प्रेरक शक्ति रही है।
भावुकता कदापि कमजोरी नहीं है बल्कि शक्ति है।
मनन करने योग्य प्रस्तुति के लिए बघाई।
BHAVIKTA KI BAAT KAR.....AAP HAMARE BHAWNA KO BHARKA RAHI HAIN(EXCUSE)...YSE GURUWAR AMAR KI BATON SE SAHMAT...
PRANAM
भावुकौर कमजोरी दो अलग - अलग शब्द हैं तथा दोनों के अर्थ भिन्न है,
किन्तु जो अधिक भावुक है उसके अन्दर कुछ कमजोरी आना स्वाभाविक है
dabirnews.blogspot.com
भावुकता अथवा संवेदनशीलता को कमजोरी नहीं मना जाना चाहिए |
सार्थक लेखन की अनवरतता के लिए शुभकामनायें ......
भावुक व्यक्ति कभी कमज़ोर नहीं होता. उनमें इंसानियत और boldness दोनों गुण पाए जाते हैं.आपने जो निम्न उदाहरण दिये हैं उनमें ये गुण हमेशा मौजूद रहे
बापू, मंडेला, ओबामा , भगत सिंह , बोस, विवेकानंद, किरण बेदी, अटल जी , APJ कलाम etc.
जो लोग बात-बात पर बुरा मान जाते हैं, रूठ जाते हैं , रोने लगते हैं , वो भावुक नहीं बल्कि असली कमज़ोर होते हैं ।ऐसे लोग over-sensitive और touchy होते हैं । ऐसे लोगों को भावुक कहकर भावुकता का अपमान नहीं करना चाहिए।
भावुकता एक अलग गुण है ...जो लोंग रोते हैं या बहुत जल्दी रूठना और मनाना करते हैं वो केवल भावुक नहीं होते ...वो केवल सीमित दायरे में सोचते हैं ...भावुकता एक शाश्वत गुण है जो एक संस्कारी व्यक्ति में भी होता है तो किसी दुराचारी में भी होता है ...अब भावुकता किस रूप में है वो अलग बात है ...सबसे ज़रुरी है विवेक का साथ में होना ...
बहुत अच्छी पोस्ट लगायी है ..विचारणीय ...
अपना अनुभव तो कुछ कड़वा है। मेरी इस कमज़ोरी का बहुतों ने फ़ायदा उठाया है।
Dearest ZEAL:
A very nice post.
Today in the corporate world also, the new paradigm is not about IQ but EQ – Emotional Quotient. There is a conscious effort being made to see that in pursuit of one’s goals, people do not become ruthless.
I agree with you about the outlook of emotional people and their ever-readiness to help others since they are more prone to align to the worries and concerns of the people.
However, there is a very thin line between being emotional and being soft. The line is very blurred and time and again, emotional people do get taken for a ride, especially when the person approaching them knows this element of gullibility – the tendency to believe people and taking what they say to be true – which eventually hurts the emotional person all the more.
He/she recedes into a shell asking the question to own self – Is being cheated the reward I get for being empathetic and also sympathetic to the so-called issues the person shared with me?
Such experiences shake the fundamental faith emotional people have everyone. It brings about a wariness for some, possibly. Some certainly are stronger and cope up with it.
A ‘practical’ person would be able to manage being tricked a bit more easily. He/she would shrug off the mishap and move on bearing in mind the experience for future caution.
An emotional person would also manage somehow but the scars left on the mind would take much longer to heal and that is detrimental to the health of the emotional person.
Coming to the names mentioned towards the end of your post, I am not sure I agree. There is a difference between being fervently nationalistic and emotional. I am not able to strongly correlate the two. For example, how can we say APJ is an emotional person? He became the President primarily because he is a Muslim - very renowned and well-educated Muslim at that – and the Congress who always wants to show-case its ‘secular’ image, found in him the perfect ‘pawn’. At other times, Congress has nominated Reserved Category Person or, talking of present, a Lady. This is sheer politically ‘practical’ nature of Congress which got these people the highest seat. Also, in our political system there is always horse-trading. Ruling party nominates Presidential Candidate and the opposition picks the Vice-President. Both are mere ‘rubber-stamp’ positions and so the parties rarely bother. After all, usme kahaan 70000 crore yaa 176000 crore milne waale hain? Laughz. I call it absolute double-standard that you forsake your home and go about helping others, in the instance of Kiran Bedi. She is purely into showbiz and trying to make money by pretending to be ‘emotional’. And the way she is getting to be on shows and travel around the world, she is quite successful in her pretense, I must say. Bhagat Singh, Bose were revolutionaries. They did not bother to worry about shedding blood to get freedom. Emotional people won’t kill someone, I am sure. But determined, fierce nationalists would certainly. Political figures like MK Gandhi, AB Bajpayee, Mandela, Obama even if are emotional, they will be strongly required to be practical because they are leaders. They can’t ‘afford’ to be emotional. Vivekanand, I just do not know beyond the name and a tourist spot statue in Kanyakumari, nor do I wish to know.
Semper Fidelis
Arth Desai
भावुकता को इसके इर्द गिर्द बने ऐसे ही भाव-वाचको से पृथक करने का सार्थक प्रयास..
आपका मेरे ब्लॉग पर आना अच्छा लगा...
आपकी टिपण्णी से ऊर्जा मिली अच्छा लिक्कने कि...
राजेश नचिकेता
http://swarnakshar.blogspot.com/
जो लोग बात-बात पर बुरा मान जाते हैं, रूठ जाते हैं , रोने लगते हैं , वो भावुक नहीं बल्कि असली कमज़ोर होते हैं ।ऐसे लोग over-sensitive और touchy होते हैं । ऐसे लोगों को भावुक कहकर भावुकता का अपमान नहीं करना चाहिए।
बहुत अच्छा विश्लेषण और अंतर किया है आपने।
वास्तव में भावुकता एक नैसर्गिक गुण है। इसका मूल सत् है। यह हमें सन्मार्ग की दिशा में प्रेरित करती है। असली प्रसन्नता और खुशी का स्रोत है। जबकि जिसे हम प्रैक्टिकल कहते हैं वह विशुद्ध रूप से क्रत्रिम है। एक प्रैक्टिकल व्यक्ति अपनी खुशियों को भी क्रत्रिमता के आवरण में लपेटे रहता है। एक समय आता है जब उसे भी असली खुशी का अर्थ समझ आता है।
जी हाँ :)
श्री अर्थ देसाईजी अपनी हर टिप्प्णी के अंत में लिखते हैं "Semper Fidelis"
यह एक Latin phrase है।
अर्थ है "Always faithful"
सोचा कि सब की जानकारी के लिए यह बता दूँ।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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बहुत अच्छा लेख है दोस्त.....
(मेरी लेखनी.. मेरे विचार..)
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aaj aapka blog dekha , aur saari posts bhi padha , aap bahut hi accha likhti hia aur specially ye waala lekh to mujhe bahut pasand aaya hai .. ab choonki main bhi bhaavuk hoon to aapki baate mujhe bahut acchi bhi lagi aur ek do jagah aapki baato se mujhe kuch seekhne ko bhi mila..
aapko badhayi
vijay
भौतिकता के पीछे भागने वाले को भावुकता की क्या समझ होगी !
आपसे सहमत हैं श्रीमान
You are right sir
100/right sir
Han hote hai
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