कहते हैं अच्छे कर्मों का फल भी अच्छा होता है। लेकिन बहुधा ऐसा देखा गया है की हमें अपने सत्कर्मों का पूरा पूरा फल नहीं मिलता। किसी की मदद की तो बदनामी मिली, कभी ज़हीन बुद्धि से उच्च शिक्षा हासिल की तो उम्र बीत गयी चौके चूल्हे में। कोई देश की आजादी के लिए लड़ता है , तो फांसी मिलती है । चार दिन भी सुकून के उसके नसीब में नहीं। जबकि रिश्वतखोर और कामचोर ऐश से रहते हैं। कभी कोई जी-जान से किसी बड़े काम को अंजाम देता है तो श्रेय कोई और ले उड़ता है। कभी खूनी बेधड़क घूमता है जबकि निर्दोष व्यक्ति दुसरे की गुनाह की सजा भुगतता है। तो फिर कर्म और भाग्य का रिश्ता क्या है ?
मेरे विचार से यदि १००% कर्म किया जाए , किन्तु यदि भाग्य साथ नहीं है तो कर्म व्यथा जाएगा। लेकिन यदि कर्म कुछ न भी करें , तो भी यदि भाग्य प्रबल है तो व्यक्ति को , धन , दौलत, अच्छी नौकरी , चाहने वाले और शोहरत सब कुछ छप्पर फाड़ कर मिल जाता है ।
वैसे आपका क्या विचार है ? कर्म बड़ा है या फिर भाग्य ?
66 comments:
भाग्य तो कुछ है नहीं मेरे ख्याल से ... कर्म ही बड़ा है ...
आप थोडा गलत कह गई है यहाँ ... जिन व्यक्तिवों का उल्लेख आपने किया है उनमे कोई गुण हो या न हो ये अलग बात है ... पर उन्होंने भी कर्म किया है ...
अब ये अलग बात है कि वो बुरे कर्म किये हैं या अच्छे कर्म ...
समाज ऐसा है कि बुरे कर्म अच्छे कर्म से ज्यादा असरदार होता है ...
अब आप इसे भाग्य कह सकती हैं ...
नहीं पता जी
ma;m wainse soniya gandhi,mayawati,or malika to sikshit hai.
kher chodiye wo alag baat hai. ma'm mere hisaab se bhgya bada hai, kyonki dhiru bahi ambani ke yaha paida hone wale or bikhari ke yahan paida hone wale bache ka kya karm hoga? jo jainsa bhgyashali hoga wo wainsi jagah paida hoga...
मै तो अब तक यही मानता था की कर्मण्य लोगों पर भाग्यश्री मुस्कराती है . लेकिन आपके बताये हुए इन विभूतियों की भाग्य प्रबलता पर रश्क हो रहा है , यहाँ तो कर्म को रगड़ने के बाद भी भाग्यश्री कही दूर कोने से चिढाती है .
कर्म
very nice.bhagy sach hai leki uske sahare rahana durbhagyapurn hai
सोनिया गाँधी, मायावती, राबड़ी देवी और राखी सावंत, मल्लिका ने परिश्रम (कर्म) किया है यह मानता पड़ेगा.
कुछ विद्वानों के तर्क आने दें
फ़िर कुछ कहेंगे।:))
मेरे ख्याल से तो कर्म और भाग्य व्यक्ति के दो पैर है अगर एक कमजोर हो व्यक्ति बड़े प्रयास से ही आगे बढ़ता है और अगर दोनों मजबूत हो तो वह सफलता की राह में दौड़ जाता है
@कभी ज़हीन बुद्धि से उच्च शिक्षा हासिल की तो उम्र बीत गयी चौके चूल्हे में।
:) बात तो सही है .
@मेरे विचार से यदि १००% कर्म किया जाए , किन्तु यदि भाग्य साथ नहीं है तो कर्म व्यथा जाएगा। लेकिन यदि कर्म कुछ न भी करें , तो भी यदि भाग्य प्रबल है तो व्यक्ति को , धन , दौलत, अच्छी नौकरी , चाहने वाले और शोहरत सब कुछ छप्पर फाड़ कर मिल जाता है
१०० % सहमत...
कर्म करने के लिये मनुष्य स्वतंत्र है और साथ ही उसे बुद्धि भी प्रदान की गयी है जिसका वो जैसे चाहे उपयोग कर सकता है अगर अच्छे कर्मो मे करेगा तो भाग्य निश्चित ही अच्छा बनेगा और बुरे मे करेगा तो भाग्य क्या करेगा क्योंकि जो किया हमारे कर्मो ने ही किया तो जब उसका फ़ल भोगने का वक्त आता है तब इंसान रोने लगता है कि मैने तो ऐसा नही किया फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ मगर वो अतीत मे कुछ न कुछ ऐसा जरूर कर चुका होता है जिसके फ़लस्वरूप उसे वो भोगना ही पडता है ……………बाकी भाग्य कभी बडा नही हो सकता । भाग्य तो कर्मो की फ़सल है जैसा बीज डलेगा फ़सल वैसी ही होगी।
भाग्य कर्म से बड़ा है ,
कर्म तो सभी करते हैं किन्तु फल सभी को एक सा नहीं मिलता , जितना भाग्य में होता है उतना ही मिलता है ,
किन्तु इसका अर्थ ये नहीं की हम कर्म करना ही छोड़ दें ,
हमें कर्म करते हुए भाग्य पर भरोसा करना चाहिए
dabirnews.blogspot.com
एक माँ एक पिता कित्नु उनके पुत्र व पुत्रियाँ दोनों के भिन्न रूप भिन्न विचार , सभी चीज़े भाग्य में पहले से ही लिखी हुई है
हाँ अल्लाह ने हमें हाथ पैर जुबां दिए हम उनका अच्छा प्रयोग करे या बुरा ये हमारे उपर है
हमें केवल कार्य करना चाहिए और सोचना चाहिए जितना कर्म में होगा उतना मिलेगा ,
और निरंतर अथक परिश्रम करते हुए अपने पालनहार इस सृष्टि के रचयिता से प्राथना करना चाहिए
अच्छा कर्म से आपका तात्पर्य पुरुषार्थ से है!!
मैं समझ रहा था पूर्वकृत जो जन्म-जन्मांतर हमारे साथ चलते है।
पांच कारणों पर आप यह लिंक देख सकते है:
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/11/blog-post_11.html
मै तो कहूँगा कि कर्म से भाग्य का निर्माण होता है .......
अतः कर्म>>>>>>>>भाग्य
सदकर्म ही व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण करते हैं .... आभार
कर्म ही व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण करते हैं .... आभार
सही कहा आपने....
अपने हाथ में तो कर्म ही होता है,भाग्य नहीं...इसलिए निर्लिप्त भाव से कर्म करना चाहिए...
ज्योतिष के अनुसार: भाग्य और कर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, पिछले जन्मों के कर्मों का प्रतिफल इस जन्म का भाग्य है और इस जन्म के कर्म अगले जन्म का भाग्य बनाते हैं।
इस अवधारणा पर माथापच्ची करने से पहले आत्मा के देह बदलने के सिद्धांत को मानना जरूरी है।
भाग्य सबसे बड़ा है .. किन्तु भाग्य हमारे बस में नहीं.. हम भाग्य को निर्धारित कर सकते है.. अच्छे कर्म - अच्छे भाग्य का निर्माता है.. इस लिए भाग्य को भूल कर कर्म पर विश्वास करें ..
कर्म के साथ प्रबल भाग्य का होना जरुरी है|
पता नहीं...
अनुभव तो आपको समर्थन देने के लिए वाध्य कर रहा है.
अंग्रेजी में एक कहावत है
fortune favours the brave..
और बात बिलकुल सही है...
कर्म प्रधान है. कर्म से भाग्य का लिखा आप बदल सकते हैं.
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा!
जो जस करइ सो तस फल चाखा!
... karm aur bhaagy .... sundar post !!!
कर्म अपने हाथ में है इसलिए अपना ध्यान तो इसी तरफ रहता है बाकि इश्वर की मर्ज़ी....
यक़ीनन भाग्य ही बड़ा होता है...दिल को समझाने के लिए कर्म को बड़ा कहा जा सकता है...
ज़हीन बुद्धि से उच्च शिक्षा हासिल की तो उम्र बीत गयी चौके चूल्हे में। शिक्षा हासिल करने के बाद चूल्हा चोका करना क्या छोटा काम है ?
कर्म और भाग्य में बड़ा कौन ?नहीं ?कर्म और भाग्य में श्रेष्ट कौन ?
सबसे पहले यह तय करे की कर्म किसे कहते है ?भाग्य किसे कहते है ?
90% कर्म, 10% भाग्य.
कर्म किए जा फ्ल की चिंता मत कर ....
यह कह सकते हैं हैं की भाग्य से ही सब कुछ मिलता है पर इस पर वश नहीं ....वश तो कर्मों पर है... इसलिए हम कर्म के ज़रिये भाग्य बदलने की सोच सकते हैं भाग्य के ज़रिये कर्म नहीं .... बहुत उदहारण मिल जायेंगें जिन्हें भाग्य ने सब कुछ दिया लेकिन उन्होंने अपने कर्मों से सब बिगड़ लिया.....
चैतन्य जी नें सही कहा……
पुनर्जन्म की अवधारणा के बिना, कर्म-फ़ल में विसंगतियां ही नज़र आयेगी। और भाग्योदय क्यों, समाधान नहिं पा सकते।
जगत में जो भी अनियमित,अकारण सा घटित होते देखते है और स्पष्ठ कोई संगति नहिं दिखाई देती, तब उसके कारण हमें दूर पूर्वजन्म में सोचने पर बाध्य करती है।
कर्म और भाग्य एक दुसरे के पूरक हैं. लेकिन इतना भी सीधा नहीं है ये सम्बन्ध. जैसा की आप कह रही हैं की कभी कभी बिना ज्यादा परिश्रम के भी बहुत कुछ मिल जाता है और कभी परिश्रम के बावजूद भी कुछ हासिल नहीं होता. आपने कर्म भाग्य और कर्म-फल को जोड़ने की कोशिश की है.
मेरा मानना है की इस जन्म का भाग्य इस जन्म के फल से जुडा हुआ ना हो के पिछले जन्म के कर्म से जुड़ा हुआ है. मतलब ये हुआ की इस जन्म के कर्म से अगले जन्म का भाग्य निर्धारित होगा. और इस जन्म के धर्म से अगले जन्म की योनी (की अगले जन्म में क्या बनेंगे....आदमी, या कोई और जीव.).
इसीलिए वांछित फल ना मिलने पर भी कर्म अच्छे रखने चाहिए. ताकि अगले जन्म में भोग सके या अच्छी योनी प्राप्त कर सके. जिनको अभी कुछ अच्छा मिल रहा है कम परिश्रम के उन्होंने पिछले जनम में कुछ अच्छा किया होगा...
अच्छा हां, अब अगर कोई पुनर्जनम पर अगर चर्चा करना चाहे तो इसके लिए कोई और फोरम में करेंगे....लेकिन गीता में पुनर्जनम की बात लिखी है बहुत शुरू में ही.....
-राजेश.
अच्छा कर्म करने पर ही सफलता मिलती है! कर्म के बाद ही भाग्य के बारे में सोचते हैं ! सुन्दर पोस्ट!
Dearest ZEAL:
The benign or malignant nature of Fate is but a determination of our own plans with those which has been the Providence’s. When they are in harmony, we feel we are blessed by Fate and when there is a non-planarity, the same Fate is seen as averse.
If I were to ask myself the question, I would strongly aver that Fate’s benevolence is very imperative in whatever we pursue.
There are myriad examples where we see people of equal caliber experience varied destinies. In all aspects, these men [and women too, zmiles] might be equal but that one person on whom Fate casts a doting eye begets what others too had aspired for. There is no dearth of qualitative achievement in any of those nor is there in any way a differential in their will to put in the best and yet, Fate intervenes in favor of one.
By virtue of our ambition to progress, each of us will try to do his/her best and that is our commitment to our work. Here it is pointless to talk of people who take lame umbrage under the wailing of ‘God is not with me’ and do not put in their best.
The challenge of any adversity is overcome only by determined adaptability. When we adapt to the situation, we firmly demonstrate the will to work. Our bit is done. Now it is for the Heavens to take cognizance of all things material to our destiny.
Here, I bring to the table a very favorite element of mine – Hope.
I firmly believe that forsaking of Hope is the quickest way to turn Fate against oneself. The moment one resigns on hope, even the best efforts are cast to naught in consideration. Because, misery and penury rule sovereign over a hopeless heart, morbid mind, sad soul.
Hope gives the will to work on regardless of the conditions and Hope is ally to Fate. Together, Hope and Fate will lead us to realization of our wishes.
I conclude with the lines by Bharthari:
A bald man felt the sun's fierce rays
Scorch his defenseless head,
In haste to shun the noontide blaze
Beneath a palm he fled:
Prone as he lay, a heavy fruit
Crashed through his drowsy brain:
Whom fate has sworn to persecute
Finds every refuge vain.
Semper Fidelis
Arth Desai
कलियुग में तो भाग्य ही लग रहा है ...
मगर फिर भी मैं मानती हूँ कि शुभ कर्मों द्वारा भाग्य में कुछ सुधार किया जा सकता है !
सब कर्मों का फल तुरंत नहीं मिलता -प्रारब्ध(पूर्व कर्मों से प्रेरित),क्रियमाण और संचित,किसी न किसी
खाते में रहेंगे .इसलिए कर्म आवश्यक है .
भई अपना तो पूरा विशवास है कि भाग्य ही सर्वोपरि है. वो कहते हैं कितना ही परिश्रम कर लो पर भाग्य से ज्यादा नहीं मिलेगा. एक उदहारण अपने प्यारे शाहरुख़ खान हैं. उनसे ज्यादा परिश्रमी , प्रतिभाशाली और सुन्दर लोग बालीवुड में हैं पर सफलता सिर्फ उनके कदम चूम रही है. ये भाग्य नहीं तो और क्या है?
भाग्य पर विश्वास करने वालों को इस बात पर भी विश्वास करना चाहिए कि यह सब कर्मों का ही फल है ...भले ही वो किसी भी जन्म के हों ....कर्म करना आपके वश में है ..लेकिन आपकी किस्मत में क्या है और क्या नहीं यह वश में नहीं है ...तभी गीता में भी यही उपदेश दिया गया है ...कर्म करो फल कि इच्छा मत करो ...
मेरा इस सूत्रवाक्य में विश्वास है ---- समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता ...... लेकिन कर्म अपनी जगह है ..यदि प्रयास ही नहीं किया जायेगा तो जो मिलना है वो भी नहीं मिलेगा ..
बुरा ना माने वैसे आप खुद भी बहुत भाग्यवान हैं... :-) :-) :-)
Ham aapke vicharo se 100% sahmat hain.
डा० अमर कुमार जी की धारणा व्यवहारिक सत्य है।
किन्तु प्रश्न ही तब खडा होता है,जब कुशल प्रबँधन और उपर्युक्त समय के संयोग के बाद भी परिणाम प्रतिकूल होते है। अथवा अनियमित होते है। तब किसी पूर्वकृत कर्म-संयोग को मानने के लिये बाध्य होना पडता है।?
भगवद्गीता की ही याद आ गयी..
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"
कर्म तो करते ही रहना चाहिए.. आगे जितना मिलना है उतना मिलेगा.. जिंदगी को जितना समझने की कोशिश करेंगे उतने ही उलझेंगे और उतना ही कम जी पाएंगे.. इसलिए बेहतर है कि सोचने की बजाय जिया जाए.. कुछ कर्म किया जाए!
जय हो!!
मेरे ब्लाग पर आकर उत्साहवर्द्धक सुझाव देने हेतु आपका धन्यवाद.
कहीं सुना है कि- निष्काम कर्म ईश्वर को मानव का ऋणी बना देता है और ईश्वर उसे ही सहज ब्याज सहित भाग्य के रुप में मानव को वापस लौटा देता है ।
kuch karo .
बड़ा कोई भी नहीं है, आवश्यक दोनों ही है।
हमें कर्म करते रहना चाहिए, उसका फल मिलना, न मिलना तो परमेश्वर की इच्छा पर निर्भर करता है. आभार.
सादर,
डोरोथी.
भाग्य और कर्म (पुरुषार्थ) दोनों एक दुसरे के पूरक हैं प्रारब्ध को फलित करता हुआ भाग्य कहलाता है और कर्म की प्रधानता भौतिक जीवन की धुरी है सच है की व्यक्ति को इश्वर के द्वारा प्रदात कोटे के हिसाब से ही फल प्राप्त होता है किन्तु सिर्फ कोटे के आधार पर जिन्दगी नहीं छोड़ी जा सकती है इसके लिए कर्म अति आवश्यक है इसी कर्म को पुरुषार्थ भी कहते हैं मैं आपको डॉ जैनेन्द्र द्वारा लिखित "भाग्य और पुरुषार्थ" लेख पढने की सलाह देता हों अवश्य पढ़े सब कुछ स्पष्ट हो जायेगा .
भाग्य पे विश्वास तो ठीक है, लेकिन कर्म उससे ज्यादा जरूरी हो जाता है,
बधाई हो इस सुन्दर लेखन के लिये ....।
जीवन में घटित होने वाली घटनाएं तो यही सिद्ध करती हैं कि भाग्य कर्म से बड़ा है। प्रायः हम देखते हैं कि अयोग्य और कर्महीन लोग संपन्नता, समृद्धि और प्रतिष्ठा पाते हैं तथा कर्मठ लोग अभाव का जीवन जीते हैं। नेता, अभिनेता, व्यापारी, आतंकी जैसे लोग बिना परिश्रम के अचानक करोड़ों-अरबों में खेलने लगते हैं जबकि दिन-रात शारीरिक और मानसिक श्रम करने वाले किसान-कारीगर और बुद्धिजीवी श्रेणी के लोग जीवन भर सुख -समृद्धि से वंचित रहते हैं।
अच्छे कर्म करने वाले स्वामी विवेकानंद, श्रीनिवास रामानुजन, जार्ज कैंटर, संत ज्ञानेश्वर, गजानन माधव मुक्तिबोघ जैसे महान व्यक्तित्व अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं लेकिन भ्रष्ट और बुरे कर्म करने वाले लोगों को कोई बीमारी भी नहीं होती। यह सब भाग्य का ही खेल नहीं तो और क्या है ?
मनुष्य आलसी न हो इसके लिए कर्म का सिद्धांत बनाया गया। कर्म-सिद्धांत से मैं भी सहमत हूं। लेकिन कर्म से अधिक शक्तिशाली भाग्य है।
nice post...great
.
हानि- लाभ-जीवन-मरण-यश-अपयश विधि हाथ।
लाभ ही तो भाग्य है, जो इश्वर ने अपने हाथ में रखा है। मनुष्य का भाग्य पर जोर नहीं है।
श्रीकृष्ण ने भी यही कहा की कर्म किये जाओ , फल की इच्छा मत रखो , क्यूँकी हम मनुष्य तो कर्म ही कर सकते हैं। यदि भाग्य में नहीं है तो एक ढेला भी नहीं मिलेगा।
इंसान कामचोर और निट्ठल्ला न हो जाए, निराश होकर गांडीव न रख दे, अजगर की तरह सुस्त न हो जाए , इसलिए कर्म में सतत लगे रहने का उपदेश है।
लेकिन निराशा तो तब होती है , जब कर्मशील मनुष्य जो निरंतर कर्म में लगा हुआ है, फिर भी उसे उसकी निष्ठा का फल नहीं मिलता।
मन को तसल्ली देने के लिए मान लेती हूँ की मैंने पूर्व-जन्म में अच्छे कर्म नहीं किये थे जिसके कारण , इस जन्म में की गयी मेहनत का लाभ नहीं मिल रहा।
मन में भरी निराशा से उपजी थी ये पोस्ट। लेकिन 'आशा' हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करती रहती है और यही " HOPE" की कभी तो मनोकामना पूरी होगी , मनुष्य कर्मों में लगा रहता है...
" उदासी भरे दिन , कभी तो ढलेंगे "
.
I wanted to be the first to quote the Bhagwad Gita on this subject.
But I am too late now.
Pratik Maheshwari has already done that.
I agree.
Let us do our duty.
That is in our hands.
Leave the rest to God (Shekhar Suman does not believe in God nowadays. So let him and his fellow atheists leave it to their fate/good luck or bad luck, Chance, Kismat, or whatever they want to call it.)
Don't worry about Fate. It will favour you sometimes, it will go against you sometimes.
On an average, over an entire lifetime, Fate's Pluses and Minuses will cancel each other.
Your positive Karma will always be a plus.
Thanks for this opportunity to try my hand at some philosophy.
Regards
G Vishwanath
dhanyawad ki apne hamre lekh ko ache lekh ki talika me rakha
apke dwara likhe is lekh me apne karma or bhagya me kon bara swal kiya he meri najar me to bina karma bhgya ka hona namumkin he. isley in dono ka mishran hi apko har wo chiz hasil karne me shayak hoti he jiko ap pana chahten he ..
बहुत अच्छी बहस. कहना होगा:-
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
तुंडे तुंड सरस्वती
भाग्य कर्म से बनता और बिगडता है
प्रयत्यक्ष या अप्रयत्यक्ष प्रारब्ध के किये हुये कर्म के आधार पर ही मनुष्य के भाग्य की रचना होती है ।
किया गया कर्म कभी खाली नही जाता, परमात्मा सबका भला चाहते है लेकिन बिना पाप कर्म कराये मुक्त भी नही करते।
यदि कर्म की पुरी व्याख्या जानना चाहती है तो कृप्या मुझे अपना ईमेल एड्रैस भेजे मै आपको एक पुस्तक भेजना चाहूंगा
कर्म ही बड़ा है - कर्म से भाग्य और चमक सब साथ साथ आ जाते हैं
मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूं। आदमी के हाथ में कर्म करना ही रह गया हैं। किस्मत की चाबी तो किसी ओर के हाथ में हैं।
Magnificent beat ! I wish to apprentice whilst you amend your
website, how can i subscribe for a weblog web site?
The account helped me a applicable deal. I have been a little
bit acquainted of this your broadcast offered brilliant transparent idea
Also visit my web site; MelodiKCookman
You're so awesome! I don't suppose I've read anything like that before.
So wonderful to discover another person with genuine thoughts
on this subject. Really.. thanks for starting this up. This web site is one thing that's needed
on the internet, someone with a bit of originality!
Also visit my page; DwightBRebeiro
I think fate is better than effort because every person do effort very hardly but I think not every person get success only thos persons would be succeed whose fate with them
I think fate is better than effort because every person do effort very hardly but I think not every person get success only thos persons would be succeed whose fate with them
Post a Comment