Saturday, December 25, 2010

माई नेम इस मोहन - मोहन की जवानी ...

जब तक पुरुषों पर जवानी ज्यादा छायी रहेगी , महिलाओं की जवानियाँ सड़क पर शर्मसार होती रहेगीबड़े फख्र से ये बतायेंगे की पुरुष कभी बूढ़े नहीं होतेएक्टिवे ही रहते हैंकुछ ज्यादा ही hyperactive हैं

आखिर पुरुष क्यूँ नहीं विरोध करते घृणित , गन्दी , अश्लील मानसिकता का ? समाज में मुन्नी बदनाम और शीला की जवानी जैसे भद्दे गाने चल रहे हैं , किसी को परवाह नहींकोई सरोकार नहींक्या इन्हें इतना भी भय नहीं की इनकी बेटियाँ इसी समाज में बड़ी हो रही हैंअच्छी से अच्छी शिक्षा भी बेकार जायेगी जब तक ये भोंडापन रहेगा समाज मेंपुरुषों को भी विरोध करना चाहिए

भला हो बनारस की जागरूक महिलाओं का , जिन्हें परवाह हैं अपनी संस्कृति कीकहीं तो विद्रोह हुआ इस अश्लील , गाने का कैटरीना और मल्लिका और राखी सावंत में अंतर क्या है ? भारत को पतन की तरफ की तरफ ले जा रही ये महिलाएं भयानक जुर्म कर रही हैंसंस्कृति को नीलाम कर रही हैंइनके खिलाफ भी कानून बनना चाहिए और कार्यवाई होनी चाहिए

ये महिलाएं ही जिम्मेदार है , बढ़ते हुए बलात्कार जैसी घटनाओं की और युवाओं की मानसिकता को विकृत करने कीआखिर वेश्याओं और इन महिलाओं में भला अंतर क्या हैफरहा खान तो हर-एक अभिनेत्री से अश्लील नाच करवाने के बाद ही उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का खिताब मिलने देगी

सुर्ख़ियों में रहने के लिए इतना नीचे गिरना जरूरी है क्या ?

एक इन्जिनीरिंग कॉलेज में एक लड़के अभिषेक ने दो लड़कियों को blackmail करके उनसे , १७० लड़कियों के MMS बनवाकर विदेशों में बेचकर करोड़ों कमा लिएवाह ! मजे भी लूटे और कमाई इतनी आसानअरे इससे तो अच्छा है , जिसे शौक है वो ब्लू-फिल्में देखे और समाज को साफ़-सुथरा रहने दे

सेंसर बोर्ड सो रहा है अथवा नेत्रहीन है जो आँख के सामने इतना कुछ होते हुए देख रहा है और कोई आपत्ति भी नहींशीला दीक्षित जी को यदि इस गाने पर भी आपत्ति नहीं तो समझ लीजिये की उनकी आत्मा मर चुकी है

अपनी संस्कृति पर क्या कोई लेख लिखे , जब उसे डूबाने वाले कतार बांधे खड़े हैं

63 comments:

vandana gupta said...

आज कौन सभ्यता और संस्कृति के बारे में सोचता है शीला जी से तो उम्मीद ही मत करो ..........वो तो हर बात से अपना पल्ला झड़ लेती हैं ...............आम इन्सान सोचता है सिर्फ इस बारे में क्यूँकि वो ही भुक्त भोगी है मगर उसकी बात का असर ही कितना होता है जब तक किसी हाई प्रोफाइल व्यक्ति के साथ ऐसी कोई घटना ना हो जाये .

ABHISHEK MISHRA said...

सारी समस्याए एक दूसरे से कही न कही जुडी हुई है .आप इन अभिनेत्रियों को दोष दे रहा है जो पूर्णतया सही नही है , बाजार में आपूर्ति मांग से हिसाब से होती है जो व्यापार का नियम है . अब जब बाजार में इतनी मांग है और बेरोजगारी चरम पर है जो अगर ये नही करेंगी तो दूसरी अवसर का लाभ उठा लेगी . वास्तविक समस्या पुरुष समाज के आदिम मानसिकता में निहित है .
जहा तक पुरुषो के द्वरा शोषण की बात है तो कम ही सही पर महिलाये भी पीछे नही है . ऐसी बहुत सी घटनाये है जहा महिला होने का फायदा उठा कर उन्हों ने दूसरो को फसा दिया .
ये एक मानसिकता है जो पुरुष या स्त्री किसी में भी हो सकता है

Satish Saxena said...

शर्मनाक घटनाओं पर एक अच्छा लेख !

मुकेश कुमार सिन्हा said...

actuaaly mujhe lagta hai dhire dhire naitikta shabd apni value kho rahi hai apne desh me.......sayad yahi iska main karan hai....tabhi to Farah khan jo maaa hai, wo kahti hai mere bachcho ko shila ki jawani gana bahut pasand hai.....

Rahul Singh said...

अगर अपनी संस्‍कृति पर लेख न लिखा जाए, अच्‍छी चीजें न सुलभ कराई जाएं, तो ऐसी चीजें आती ही रहेंगी और हम कोसते बैठे रहेंगे.

Pratik Maheshwari said...

वो कहते हैं न.. "जो दिखता है वही बिकता है.." बस वही चल रहा है..
लोगों को पैसा कमाना हैं, उडाना हैं और मर जाना है..
ज़िन्दगी में उनका मकसद समाज के लिए नहीं वरन् अपने, सर और सिर्फ अपने लिए ही जीना है..
जब तक ऐसी सोच नहीं जाएगी तब तक यूँ ही चलता रहेगा..
पैसे ने सबको बर्बाद किया है और यह पैसे बहु-बेटियों की इज्ज़त भी ले रहा है.. भले ही रास्ता थोडा टेढ़ा-मेढ़ा हो..
इसका एक-मात्र उपाय है घर पर सही और सटीक शिक्षा.. थोड़ी कड़ाई भी रखनी ज़रूरी है बच्चों पर.. पूरी छूट देना भी अच्छी बात नहीं होगी..

आभार

M VERMA said...

.... मगर हमें शर्म नहीं आती. जिन्हें आती है वे चुप्पी साधे बैठे रहते हैं.

ZEAL said...

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प्रतिक जी ,

सहमत हूँ आपसे। कड़ा अनुशासन रखने की जरूरत है।

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ZEAL said...

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राहुल जी ,

आपने शायद सही परिपेक्ष्य में नहीं लिया उस वाक्य को। एक डाक्टर के पास जब कोई रोगी आता है तो उसमें उपस्थित लक्षणों में से जो सबसे acute होता है उसे पहले attend किया जाता है। यदि ज्वर तेज़ होगा तो पहले उसे कम करना होगा , उसके बाद ही आगे बढ़ा जा सकता है । उसी प्रकार यदि समाज में युवा वर्ग की मानसिकता विकृत हो रही है तो ये ज्यादा बड़ी समस्या है , पहले विकृतियों को हटाना जरूरी है नहीं तो समाज में स्वास्थ्य मानसिकता वालों का अभाव हो जाएगा , फिर संस्कृति की रक्षा के लिए लिखेगा कौन और पढ़ेगा कौन , और गर्व कौन करेगा जब मानसिकता ही अस्वस्थ्य होगी तो।

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अजित गुप्ता का कोना said...

दिव्‍या जी आप यह प्रश्‍न पूछ सकती हैं लेकिन अफसोस हमारे पास तो अब यह अधिकार भी नहीं रहा। हम जैसे लोग जब कहते हैं कि भारतीय संस्‍कृति में ऐसी बेहूदगी सरेआम करने को ठीक नहीं माना जाता तो हमें तो यह उत्तर मिलता है कि भारतीय संस्‍कृति में पचास वर्ष के बाद वानप्रस्‍थी हो जाना चाहिए। अर्थात परिवार और समाज के बीच में टांग नहीं अड़ानी चाहिए। बस उनकी सेवा करो, इससे अधिक कुछ नहीं। तो आपतो अब पचास के ऊपर हो गए इसलिए चुपचाप बैठो जी। हमें तो अब केवल देखना है कि कैसा संसार हमने बसा डाला है?

ZEAL said...

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अभिषेक जी ,

शायद आपने ध्यान से पढ़ा नहीं। यहाँ पुरुषों पर शोषण का आरोप नहीं बल्कि पुरुषों से अश्लीलता के खिलाफ विरोध करने की अपील है। क्या इन सन्दर्भों में सिर्फ महिलाओं को विरोध करना चाहिए ? क्या समाज सिर्फ स्त्रियों से बना है । क्या जिम्मेदारी दोनों की नहीं ?

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ZEAL said...

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अजित जी ,

सही कहा आपने । स्त्रियों को कैसे रहना चाहिए , कैसे उठना बैठना चाहिए , सीख देने वाले बहुतेरे मिलेंगे लेकिन समाज में हो रही बेशर्मी और अश्लीलता का विरोध करने एक भी पुरुष आगे नहीं आता। चाहे हिस [मल्लिका] जैसी फिल्मों के खिलाफ हो चाहे ऐसे अश्लील गानों के खिलाफ , लेकिन महिलाएं ही आगे आती हैं।

नत मस्तक हूँ उन महिलाओं के आगे जिन्होंने प्रदर्शन किये और इस भोंडेपन के खिलाफ अपनी आवाज़ मुखर की ।

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भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हम कहां से कहां पहुंच गये. संस्कार हीन संस्कृति दे रहे हैं हम अनैतिक लोग..

Kailash Sharma said...

बहुत शर्मनाक स्तिथी..आज जब ३-४ वर्ष का बच्चा मुन्नी बदनाम हुई या शीला की जवानी, जिसका कि वह मतलब भी नहीं समझता, गाता है और माता पिता उसे ताली बजा कर प्रोत्साहित करते हैं तो सिर शर्म से झुक जाता है.केवल चुप बैठने से काम नहीं चलेगा. पुरुषों को भी इसके विरोध में आगे आना चाहिए.

Aruna Kapoor said...

दिव्या जी!...आप से सहमत हूं कि जो हो रहा है,वह गलत है!...लेकिन यह कोई नया ट्रैंड नहीं है!...क्या सिर्फ 'मुन्नी' या 'शिला' नाम का इस्तेमाल ही गलत है?...कैटरीना, मल्लिका और राखी सावंत से पहले भी कई अभिनेत्रियां ऐसी प्रस्तुति कर चुकी है!... याद कीजिए माधुरी दीक्षित को...चोली के पीछे क्या है...फिल्म खल-नायक का यह गाना...और जय ललिता ने भी अपने जमाने में ऐसा ही एक गाना धर्मेन्द्र के साथ पेश किया था...फिल्म का नाम मुझे इस समय याद नहीं आ रहा!..ऐसे गलत ट्रैड पर रोक लगाने का काम सेंसर बोर्ड और सत्ताधारी पार्टिया ही कर सकती है...समाज की तरफ से विरोध बहुत बार हो चुका है लेकिन नतीजा शून्य ही आया है!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘जब तक पुरुषों पर जवानी ज्यादा छायी रहेगी , महिलाओं की जवानियाँ सड़क पर शर्मसार होती रहेगी’

शायद जब तक महिलाएं बिकने के लिए तैयार रहेंगी, सडक पर केवल वे ही शर्मसार होती रहेंगी... सारी महिला जाति नहीं :(

Bharat Bhushan said...

आपकी प्रतिक्रिया से सहमत हूँ. एक बहुत बड़े बिज़नेस समुदाय को इन बातों की समझ होनी चाहिए.
आप को क्रिस्मस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

पी.एस .भाकुनी said...

अपनी संस्कृति पर क्या कोई लेख लिखे , जब उसे डूबाने वाले कतार बांधे खड़े हैं। or aap yakin maniye inki tadat bahut badh chuki hai.......
vicharniy post hetu abhaar.....

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

यथार्थ की सामयिक अभिव्यक्ति हममें से कुछ लोगों को तो प्रेरित करेगी , विरोध का शंखनाद करने के लिये , तरीका कुछ भी हो सकता है।

प्रवीण पाण्डेय said...

अंजामें गुलिस्तां क्या होगा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अश्लीलता पर रोकथाम ज़रूरी होते हुए भी ऐसे गानों पर कोई क्या कर सकता है ...आप और हम इन को अश्लील कह रहे हैं लेकिन आज इन गानों पर कमेन्ट आते हैं रॉक हैं ...सबसे ज्यादा सुनाई देते हैं ..वैसे एक बात निश्चित है की ऐसे गानों की एक सीमित अवधि होती है ....कुछ दिनों के बाद यह सुनाई भी नहीं देंगें ....और यह कहना की गानों से मानसिक विकृतियाँ पनप रही हैं ..इससे मैं सहमत नहीं हूँ ...

अरुणा जी ,
आपने जिस पिक्चर का ज़िक्र किया है उसका नाम "इज्ज़त" है ..

राज भाटिय़ा said...

दिव्या जी, क्या मर्दो की दुनिया अलग हे? अजी हमे भी तकलीफ़ होती हे ऎसी बकवास बातो पर लेकिन जब कोई नारी सामने से अकड कर कहे कि मेरी चीज हे जिसे चाहे दिखाऊ तो पुरुष उस समय क्या करे?अगर पुरुष इन बातो पर ऎतराज करे, कपडो पर ऎतराज करे तो इन नारियो को अपनी आजादी याद आ जाती हे ओर पुरुषो को नाको चने चबा देती हे, पुरुष सारा दिन काम घर के लिये करता हे , ओर घर बनता हे नारी से, जिस मे मां बहिन बेटी ओर बीबी रहते हे, इस लिये एक पुरुष को भी यह सब गंदा ही लगता हे, जेसे यह कुछ नारिया धब्बा हे समाज पर वेसे ही कुछ पुरुष भी धब्बा हे समाज पर, इस लिये हम ना सभी पुरुष को या सारी नारियो को बुरा कह सकते हे, सिर्फ़ बुराई ओर बुरे लोगो को ही बुरा कहे तो उचित हे. धन्यवाद

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

इतनी गुस्से भरी पोस्ट !

रश्मि प्रभा... said...

jinhen naaj hai hind per wo kaha hain

ZEAL said...

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@-kajal kumar ji ,

काश यही गुस्सा सब में भर जाए।

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ZEAL said...

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@-और यह कहना की गानों से मानसिक विकृतियाँ पनप रही हैं ॥इससे मैं सहमत नहीं हूँ ...

संगीता जी ,
आश्चय है आपको इन अश्लील गानों का कोई कुप्रभाव क्यूँ नहीं दिख रहा । छोटे बड़े लड़के जिन्हें देश दुनिया की उचित समझ भी नहीं है, वो लड़कियों को देखकर फब्तियां कस रहे हैं -- " शीला की जवानी " और बच्चियां सहमकर स्कूल जाने से कतरा रही हैं। लगातार टीवी पर दिखा रहे हैं। क्या यह सब नज़रअंदाज़ करने लायक है ?

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ZEAL said...

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अरुणा जी,
माधुरी दीक्षित का गाना - " चोली के पीछे " ...इससे भद्दा गाना तो आजतक नहीं सुना मैंने। इसलिए तो इन सब का पुरजोर विरोध होना चाहिए।

यदि सभी लोग यह सोचकर बैठ जाएँ की जाने दो , थोड़े दिन में भूल जायेंगे सभी , तो कैसे काम चलेगा। छोटे-छोटे बच्चे हर गली-मोहल्ले में यही सुन रहे हैं । टीवी पर CD में , यही देख रहे हैं। उनकी सोच पर पड़ने वाले प्रभावों को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।

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ashish said...

सामाजिक बुराई को फैलने से रोकने में नारी और पुरुष दोनों का बुराइयों के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा . शीला की जवानी हो या मुन्नी बदनाम , ऐसे अश्लील गाने समाज के गिरते संगीत स्वाद को इंगित कर रहे है .

ZEAL said...

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भाटिया जी ,

आपसे सहमत हूँ। कुछ स्त्रियों को परहेज़ ही नहीं इन सब बातों से। बल्कि उन्हें तो हमारे जैसी मानसिकता वाली पिछड़े विचारों की लगेंगी। अपनी अस्मिता को बचाए रखने का दायित्व स्त्रियों पर ज्यादा है। लेकिन पुरुष भी विरोध करें तो सफलता थोड़ी आसान हो जायेगी।

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ZEAL said...

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डॉ श्याम गुप्त जी की टिपण्णी -

Dr shyam gupt - "अपनी संस्कृति पर क्या कोई लेख लिखे , जब उसे डूबाने वाले कतार बांधे खड़े हैं"--- वाह दिव्या..क्या बात है........लिखने वाले को लोग पुराण पन्थी, बेकवर्ड, पाषण युगीन कहने लगेंगे.....जब हम वैश्याओं, नाचने गाने वालियों, नन्गी घूमने वाली, वालों को”सेलिब’ कहकर उनकी आवभगत करेंगे...उनके प्रवचन टीवी, बिग बोस का घर, अटल अडवाणी रामदेव के साथ आपकी अदालत में प्रसारित करते रहेंगे .....तो यही तो होगा.....सेन्सर बोर्ड में जब हीरोइन ही होगी तो कौन रोकेगा यह सब....2:58 pm



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ZEAL said...

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Dr Shyam ,

I agree with you. You very wisely pointed out the loopholes in our system. Till they are given undue importance and said to be as celebrities, they are not gonna learn their lesson. We all need to realize this error in our system . A concrete strategy must be formed to fight this filthy situation.

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बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

अभी हमरे शहर के एगो पी.जी. कलेजवा मं शीला वाला कउनो गाना सालाना जलसा मं हुआ ...कुल लडकिया लोग नाची .....लड़का लोग देखा त ऊ सब भी झूमै लगा ...झूमबे करेगा न! ...मार-पिटाई हो गया....कुल नेता लोग आया ...पुलस अंकल लोग भी आया ....अगले दिन अख़बार में छपा के पुलस का बढियां इंतजाम नहीं था इसीलिये गड़बडाया...नहीं त सब ठीकै हो रहा था. आ इ सब जब हुआ त ...आप बिस्वास कीजियेगा दिव्या जी .....उन सब लोग का परिवारो देख रहा था तमासा .....कुल गुरुओ जी लोग देखा....अच्छे न लग रहा होगा तबिये न देखा ..... हमरे पास त टिबिऐ नई खे हमरा के नई खे पता के शीला जी वाला गनवा केतना अश्लील है .अभी दू दिन पहिले के बात है इ सब. अब आप का टिप्पणी कीजियेगा ...हड़बडाइये मत जरा सोच के बोलिएगा ..... हमरे सहरिया क नाव है जिला कांकेर छत्तीसगढ़ ....
अभी दू-चार दिन पहिले यू.पी. मं भी कुल बडका-बडका अधिकारी लोग सस्पेंड हुआ है .....खुल्ले आम अश्लील नाच करवाय रहा था. माया जी क राज है न ! आप के थाईलैंड मं कुच्छो नहीं होता है का ?

A.G.Krishnan said...

By showing vulgar programmes round the clock on TV, how can we expect ppl to behave like a Gentleman. Certainly the situation is alarming as pointed out by you.

Patali-The-Village said...

शर्मनाक घटनाओं पर एक अच्छा लेख|धन्यवाद|

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

वीरेंद्र सिंह said...

आपसे सहमत हूँ। सार्थक लेख के लिए मेरी तरफ़ से आपको बधाई।

Sushil Bakliwal said...

राष्ट्रीय गौरव के इस मुद्दे पर आपकी चिन्ता व आक्रोश कितना भी जायज क्यों न हो किन्तु उपभोक्तावाद के इस युग में फरहा खान जैसों के द्वारा अपनी मलाईका, केटरीना व राखी सावंत जैसे माध्यमों से अभी तो हमें ये दिखाना बाकि है कि कैसे पामेला एंडरसन मात्र एक टावेल लपेटकर 12-15 लोगों के बीच में करोडों दर्शकों को टी. वी. पर अपने बदन की नुमाईश करते हुए रह सकती है ।
और फिर इस किस्म के दर्शनीय संचार माध्यम भी तो इन्हीं के कब्जे में हैं । लिहाजा आप नक्कारखाने में तूती की आवाज के समान अपना विरोध दर्ज करते रहिये । बहुसंख्यक लोग तो इनकी तिजोरियां भरवाने इनके पास पहुँच ही रहे हैं ।
और फिर मसला चाहे ब्लेकमेल होती लडकियों का हो या शोषण का शिकार युवतियों का अधिकांशतः कोई महिला की पहल के द्वारा ही ये लडकियां उन पुरुषों के चंगुल तक पहुंचती दिखती हैं ।

कडुवासच said...

... saarthak lekhan ... gambheer samasyaa ... ashleeltaa ki rokathaam ki dishaa men saarthak pahal honaa hi chaahiye ... "munni & sheelaa" had ho gai !!!

सुज्ञ said...

जब तक पराई आग से मजे लेने की मानसिकता बदल नहिं जाती। और यह भय पैदा नहिं होता कि यह आग हमें भी जला सकती है। तब तक इन बुराईयों का कोई इलाज़ नज़र नहिं आता।

JAGDISH BALI said...

U are absolutely correct, but sadly a large chunk of fairsex will call it an orthodoxy and narrowmindedness. This is the sad part of our thinking that more the models expose more appropriate they are considered to be successful actresses. In fact, woman are selling themselves as commodity. This blind following of the western culture.

S.M.Masoom said...

समाज में मुन्नी बदनाम और शीला की जवानी जैसे भद्दे गाने चल रहे हैं , किसी को परवाह नहीं।
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सच कहा है, इसके खिलाफ आवाज़ उठाना ही चाहिए. लेकिन आज जिन फिल्मो मैं यह गाने हैं ...उसे देखने महिलाएं और पुरुष ,सपरिवार जाते हैं.. यह ज़िम्मेदारी सभी की की है और कम से कम महिलाएं तो ना जाएं, तभी पुरुष सुधरेंगे..

महेन्‍द्र वर्मा said...

ऐसी अपसंस्कृति का विरोध अवश्य होना चाहिए।
अगर कानून और सेंसर बोर्ड कुछ नहीं कर रहा है तो आम जनता को ही कोई ठोस कदम उठाना होगा।
अगर विरोध नहीं हुआ तो कुसंस्कृति के इन वाहकों को और ज्यादा प्रोत्साहन मिलेगा।
बनारस की नारियों का इस मसले पर विरोध करना एकदम सही है। पुरुषों को भी विरोध करना चाहिए।
वरना सिनेमा और टी.वी. हमारी बची-खुची भारतीय संस्कृति को तहस-नहस कर देंगे।

Dorothy said...

क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.

आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

सादर
डोरोथी

rajesh singh kshatri said...

Bahut Khubsurat Abhivyakti.

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

वाकई आपका यह लेख बेहद प्रसंसनीय एवं वर्तमान परिवेश में प्रासंगिक है, आपके विचारों से सहमत होते हुए शुभकामनाएं प्रेषित कर रहा हूँ

Pahal a milestone said...

I read your article.very well wrote.somewhere these filmy industry's elements are responsible for polluting our society and its morals.don't know when will govt. show awareness about these things.

मनोज कुमार said...

बिल्कुल पतन है! विचारोत्तेजक आलेख। इस तरह के गानों का विरोध होना ही चाहिए। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
एक आत्‍मचेतना कलाकार

केवल राम said...

आदरणीय दिव्या जी
आपकी इस पोस्ट को लगभग 4-5 बार पढ़ा परन्तु एक बात हर बार सोचता रहा की आखिर दोष किसका है .............इस वातावरण को बनाने के लिए ....समझ आया हमारा ....और अब इस वातावरण को संवारने की जिम्मेवारी भी हमारी ही है ....भारतीय संस्कृति तो उच्च मानदंडों से भरी है पर क्या हम उसका पालन कर पाए हैं ..यह हमने उसे संसार में फेलाने का प्रयास किया है ...शायद नहीं ...हमारे पास तब तक ऐसे हालत बनते रहेंगे जब तक हम अपने बजूद ..और अपनी संस्कृति की कदर नहीं करते ...शुक्रिया

वाणी गीत said...

सचमुच शर्मसार करने वाली हरकते हैं ये ...
समझ नहीं आता की इन अदाकाराओं को इस तरह के गाने या सीन करने की क्या मजबूरी है ....पैसे की तो इनके पास वैसे भी कमी नहीं ... बहुत दुःख होता है जब वे बड़े गर्व से इन गीतों को अपनी विशेष उपलब्धि बताती हैं ...!

Sadhana Vaid said...

दिव्या जी आपने बिल्कुल सामयिक मुद्दे पर आलेख लिखा है ! सेंसर बोर्ड के अधिकारी, जिनके पास पावर है ऐसी अनैतिकता को रोकने के लिये, निर्माता निर्देशकों के इशारों पर नाचते हैं ! टी वी प्रोग्राम्स में सरोज खान ऐसे घटिया और अश्लील गानों पर नवयुवा लड़के लड़कियों को थिरकना सिखाती हैं ! चैनल वाले ऐसे प्रोग्राम दिन में कई कई बार दिखाते हैं ! गुलज़ार साहेब और जावेद अख्तर जैसे गीत लेखकों का ज़माना शायद खत्म हो चुका है ! ऐसे भद्दे और कुत्सित मानसिकता वाले गीत लोकप्रियता के चरम पर हैं ! बच्चे स्कूलों में टीचर्स के सामने ऐसे गानों पर डांस करते हैं और उनके अभिभावक प्रसिद्धि की लालसा मन में पाले उन्हें प्रोत्साहित करते हैं ! ऐसे नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कौन सुनेगा जहाँ सभी एक ही दिशा में दौड़े चले जा रहे हैं ? वाराणसी की महिलाओं को मेरा भी सलाम है और कामना है उनका यह विरोध कारगर साबित हो ! धन्यवाद !

Dr. Braj Kishor said...

दुखद है पर अप संस्कृति जरी रहेगी, हमारी नापसदगी के बावजूद.

ethereal_infinia said...

Prologue
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Wished there was the liberty to express one's thoughts freely without the trepidation of termination.

But then, it is like wishing for Utopia.

I do not wish to write a full-fledged comment knowing very well that it will be moderated.

Lest it be presumed I am in favor of such songs, let me clarify it is absolutely to the contrary. But still, I do not wish a determined diatribe be consigned to the ignominious confines of moderation.


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Ergo, this is my comment -




Dearest ZEAL:

I read. Keep writing.


Semper Fidelis
Arth Desai

ZEAL said...

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@ Ethereal Infinia-

You are a biased person and you always write senseless things.

Do as you wish.

You are incurable.

Thanks.

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ZEAL said...

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Some people believe in contradicting always . They unnecessarily try to prove their intellect on others post . They are indeed sick.

It's a post on filthy mentality of society , directors , composers, actors n actresses but you are worried about your comment being moderated.

lol

Smiles.

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रविंद्र "रवी" said...

आजकल सभ्यता और संस्कृति लुप्त हो गयी है. ये शब्द अब किताबो में ही पढाने को मिलते है. सभ्यता से बोले तो समाज उसे पागल डरपोक करार देने लगा है. ये क्या हो गया है इस समाज को?

रविंद्र "रवी" said...

समाज में अब कोई आत्मा ही नहीं रही! वो कुम्भकर्ण की नींद सो रहा है.

Unknown said...

aapkee baat se poorn sahamati. jo log aise gaane likhte hai jo filmo mai rakhte hain aur heroine aise gaano pe nachtee hai aur ant mai ham sab jo aise gane sunkar gungunaate hain.

aise gaano aur aisee maansiktaa pe thoo...

Satish Chandra Satyarthi said...

मैं बस एक घटना बताऊंगा..
अभी चार महीने पहले.. जे एन यू में छात्रों एक डांस पार्टी से लौट रहे था मैं एक दोस्त के साथ... हमारे पीछे ३-४ लडकियां थीं.. फ्रेशर्स लग रही थीं.. और चारों जोर-जोर से 'मुन्नी बदनाम हुई.. डार्लिंग तेरे लिए..' गा रही थी... खुलेआम सड़क पर.. शोकिंग था ये सब...
कहीं ऐसे गाने इसी पीढ़ी को ध्यान में रखकर तो नहीं बनाये जा रहे..

खबरों की दुनियाँ said...

सार्थक लेख , चिंता का विषय हम सभी के लिए है । क्यूं कोई नहीं करना चाहता विरोध समझ से परे है । हाँ इस विषय पर कुतर्क करने को तैयार है भीड़ । लगता है सब के सब मदहोशी में जी रहे हैं । सब कुछ समझ कर भी नहीं समझना चाहते कुछ ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

अश्लीलता बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए, किसी कीमत पर भी नहीं।

सञ्जय झा said...

na 'anushasan' na 'prashasan' aise me bhai sugya
thik kah rahe hain....

जब तक पराई आग से मजे लेने की मानसिकता बदल नहिं जाती। और यह भय पैदा नहिं होता कि यह आग हमें भी जला सकती है। तब तक इन बुराईयों का कोई इलाज़ नज़र नहिं आता।


pranam.

सदा said...

आपके इस सशक्‍त लेखन के लिये यही कहूंगी कि एक बार फिर आपने अपनी कलम से ऐसी घटना को उजागर किया जिसपर अक्‍सर लोग मौन ही रहते हैं विचारणीय प्रस्‍तुति के लिये बधाई ...।

Amrita Tanmay said...

आपकी लेखनी में बहुत धार है . आपकी लेखनी यूँ ही निखरती जाए .