Thursday, January 6, 2011

मानवाधिकारों के लिए लड़ने की सजा उम्रकैद -- Dr Binayak Sen -- A prisoner of conscience


डॉ बिनायक सेन , एक परिचय -

- जनवरी , १९५० को रायपुर में जन्मे , डॉ सेन एक बाल-रोग विशेषज्ञ तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं
-मुक्ति मोर्चा शहीद अस्पताल के संस्थापक तथा चिकित्सा और मानवाधिकार के लिए ' जोनाथन मान ' पुरस्कार से सन २००८ में सम्मानित। Paul Harrison award , गरीबों की सेवा के लिए तथा Keithan Gold मेडल, प्रख्यात वैज्ञानिक होने के लिए
-डॉ सेन People's Union for civil Liberties [ PUCL ] के vice president हैंतथा छत्तीसगढ़ इकाई के general secretary हैं
-डॉ सेन ने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण आदिवासी क्षत्रों में गरीबों, दीन-दुखियों और दलितों को अपनी चिकित्सा सेवा दी तथा उनके मानवाधिकारों के लिए प्रयासरत हैं
-डॉ सेन को सन २००७ में गिरफ्तार किया गयाउन्हें सुप्रीम कोर्ट से २००९ में बेल मिली , तथा पुनः उन्हें २४ दिसंबर २०१० को गिरफ्तार करके , उम्र-कैद की सजा सुना दी गयी

डॉ सेन पर आरोप --

-देशद्रोह तथा षड़यंत्र
-नक्सलियों को सहयोग
-छत्तीसगढ़ के सुरक्षा नियमों [ CSPSA-2005 तथा unlawful activities prevention act-1967 ] का उल्लंघन

डॉ सेन के खिलाफ जुटाए गए सबूत [ Evidences]-

-चंद पेपर कटिंग्स
-कुछ CDs
-तथ जेल में नारायण सान्याल [नक्सल नेता]से मिलने और नक्सलियों के बीच की पाइपलाइन बनना

अब प्रश्न उठता है -

-क्या गरीबों और दलितों की मदद करना भी गुनाह है , जिसके लिए उम्र कैद की सजा होनी चाहिए
-क्या डॉ सेन केनिरंतर गिरते स्वास्थ की कोई परवाह नहीं
-क्या मानवाधिकारों के लिए लड़ना देश द्रोह है ?
- डॉ सेन अहिंसा में विश्वास रखते हैं , कभी भी उन्होंने हिंसा को बढ़ावा नहीं दिया , शान्तिपूर्वक गरीबों को चिकित्सा सेवा दी और उनके अधिकारों के लिए लड़े , फिर उनका जुर्म क्या है और ये देश-द्रोह कैसे हुआ ?
- आज कितने चिकित्सक हैं , जो गावों में जाकर काम करना चाहते हैंक्या डॉ सेन जैसे संवेदनशील व्यक्तित्व के लिए उम्र कैद की सजा उचित है
-उनपर लगाए गए आरोप तथा दिए गए सबूत अस्पष्ट हैं तथा येन केन प्रकारेण उन्हें दोषी करार देकर उन्हें जल्दबाजी में सजा दी जा रही है जो सर्वथा अनुचित लगती है
- ये सच है की आज नक्सलवादी कहर बरपा रहे हैं , हमारे सेना के निर्दोष जवानों को मार रहे हैं , हिंसा का मार्ग कोई विकल्प नहीं है , लेकिन इसके लिए एक अहिंसावादी , मानवाधिकार कार्यकर्ता को देशद्रोही तथा षड्यंत्रकर्ता करार देना उचित नहीं हैनक्सलवाद का फैलना , सरकार की अकर्मण्यता का नतीजा है , इसके लिए निर्दोष लोगों को सजा नहीं मिलनी चाहिए

किसी भी प्रतिबंधित संगठन [ माओवादी ] आदि से लिनक्स होने पर section-39 के तहत अधिकतम सजा १० वर्ष हैजिसे sedition के साथ जोड़कर IPC , section 124A के तहत उम्र कैद में तब्दील कर दी गयी


क्या पत्र वाहक होना तथा घर से साक्ष्य के तौर पर maoist सम्बन्धी मैगजीन मिलना राज-द्रोह है ? कमज़ोर साक्ष्यों और सबूतों की बिना पर एक सभ्रांत नागरिक को आननफानन में सजा सुनाना कहाँ तक उचित है ?

इस उलझे हुए विषय पर सभी पाठकों के विचारों का स्वागत है

आभार

72 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

itna to dimag nahi hai ki aapke vyakhya ko sahi tarike se main bhi vyakhya kar paun...

par itna samajh aata hai jo bhi desh drohi ho usse saja milni hi chahiye...chahe arundhati ho ya dr. vinayak sen...!!

Dr. Divya u r the best....bahut saare aise mudde aap late ho, jo sach me samne aana chahiye...beshak rai me bhinnata ho...:)

waise aapke bahut saare post mujhe bure lage hain...lekin jo bhi ho.......:)

Deepak Saini said...

निशब्द

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

ye bahut galat kadam uthaya hai court ne...ye democracy par aik gehra aghaat hai.. apni baat rakhna aur pichde logo kee madad karna aur unke adhikaaro ke liye awaaj uthana .. koi gunaah nahi... aur iske liye umr kaid ... ye loktantr par aik chot hai aur aik swaliya nishan hai ki ye kaisa NYAYA hai.. ye ANYAY hai.. aapki yah post kal charchamanch par hai..

Unknown said...

कह नहीं सकते कि हकीकत क्या है? पर किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का कहना बिलकुल सही है। वास्तविकता तो यह है कि बिनायक सेन किसी भी अपराध के दोषी नहीं हैं। उन का अपराध तो सलवाजुडूम की कार्यवाहियों के द्वारा आदिवासियों पर किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध तथा छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा कानून का विरोध करना रहा है, जो उन का जनतांत्रिक अधिकार था। एक जनतांत्रिक अधिकार के उपयोग के लिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। फिर भी छत्तीसगढ़ को उदार लोकतंत्र सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है।

Pahal a milestone said...

Thanks 4 dis article.well wrote..this article tell us that hw much u fight for truth or legal right,,sumwhere only we have to suffer..no one is ready to take responsibilty..

सम्वेदना के स्वर said...

विषय उलझा हुआ ही है!
क्योकि वो विनायक सेन हैं, न्याय व्यवस्था का ऐसा "सलेक्टिव क्रिटिसिज़्म" क्या ठीक होगा?

जरा स्मरण करें भारतीय जेलों का जहाँ कितने ही निरपराध लोग जीवन काट रहें हैं।

देश की सबसे काबिल जाचँ एजेंसी किस तरह काम करती है, उसका नमूना आरुषि-हेमराज हत्या कांड और मामा क्वाट्रोची के केस को बन्द करने की उसकी गुहार के बाद, देश भर की दीवारों पर लिखा जा चुका है!

Bharat Bhushan said...

सच्ची बात तो यह है कि आदिवासी आज भी एक ऐसी व्यवस्था के शिकार हैं जहाँ उनके लिए न्याय, न्यायालय, मानवाधिकार आदि कोई मायने नहीं रखते. न ही उनके पास न्याय पाने के लिए पैसा है. वे कोर्ट में जाएँ कैसे, पूरी व्यवस्था उनके शोषण के लिए ही काम करती प्रतीत होती है. हो सकता है कि सेन उनके हित में एक हारती हुई लड़ाई लड़ रहे हों. दिव्या जी, आपकी पोस्ट ने उदास कर दिया है.

arvind said...

aapkaa kahanaa bilkul vaajib hai...hamaare desh me manavaadhikaar shabd ek majaak ban gayaa hai..

ashish said...

मै विनायक सेन के बारे में ज्यादा अवगत नहीं हूँ. संचार माध्यमो से जो थोड़ी बहुत जानकारी मिली है उसके बिना पर मै कोई पुख्ता राय नहीं बना पाया हूँ . हिंसा का पथ चाहे वो न्याय के लिय ही हो कभी उचित नहीं होता और अगर विनायक सेन कभी हिंसा में लिप्त नहीं रहे या हिंसको का साथ नहीं दिया (शासन के खिलाफ ) तो ये सजा केवल राजनैतिक है . वैसे नक्सल हिंसा को सख्ती से दबाने के लिए शासन को गेंहू के साथ घुन भी पिसना ही पड़ेगा .

अरुण चन्द्र रॉय said...

देश में न्याय पद्धति एक माखौल से कुछ अधिक नहीं रह गया है... इतनी आलोचना के बाद भी कुछ नहीं हो रहा है... सत्ता का यह अड़ियल रवैया लोकतंत्र के लिए खतरा है...

आपका अख्तर खान अकेला said...

mamale ki apil chl ri he qaanun andhaa he lekin sch zrur ubhr kr samne aata he is maamle men bhi jnab bri ho jayenge . akhtar khan akela kota rajsthan

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

कौन सही कौन गलत.... अब तो न्यायालय पर भी प्रश्नचिह्न लगने लगे!!!!!!!!

अजय कुमार दूबे said...

पर हमें ये भी सोचना चाहिए की न्यायलय ने उन्हें देशद्रोही कैसे मान लिया आखिर हमारी न्याय ब्यवस्था आसानी से सहमत तो नहीं हो सकती. कानून के वजह से ही तो ये संभव है

जब कानून किसी को दोषी माने और लोग उसका विरोध करे तो ऐसे कानून की विवेचना की जरूरत है .

@सम्वेदना के स्वर said...

विषय उलझा हुआ ही है!
क्योकि वो विनायक सेन हैं, न्याय व्यवस्था का ऐसा "सलेक्टिव क्रिटिसिज़्म" क्या ठीक होगा?
आपने सही कहा भाई साहब जब कोई खास फसता है तो कानून बुरा लगता है

G Vishwanath said...

हाँ, उन्होंने बहुत अच्छा काम किया।
पर बिल्कुल बेकसूर भी नहीं हैं।
माओवादियों से सहानुभूति थी।
मेरी राय में वह एक गंभीर जुर्म हैं
माओवादि जबरदस्ती सत्ता हासिल करना चाहते हैं, केन्द्रीय सरकार को हिंसा द्वारा उखाद फ़ेंककर।
उन्हें चीन से सहायता भी मिल रही है।
यदि किसी को उन लोगों से सहानुभूति है तो मेरा विचार है कि ऐसे लोग देश से गद्दारी कर रहे हैं

एक साल की सजा, और चेतावनी उपयुक्त रहेगी, आजीवन कारावास तो सरासर ज्यादती है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

Kunwar Kusumesh said...

आजकल सही-ग़लत में फर्क कर पाना मुश्किल हो गया है.
अजीब समय आ गया है.

दिवस said...

आदरणीय दिव्या जी...व्यक्तिगत रूप से तो मेरा आपसे कोई मतभेद नहीं है किन्तु इस विषय पर मै कुछ बातों पर ध्यान चाहता हूँ| भारत में वामपंथी, नक्सलवादी व माओवादी हमेशा इसी हथियार का सहारा लेते हैं| गरीबों के नाम पर वे ऐसे राजनीति खेलते हैं कि जनता भी उनके बहकावे में आ जाए| पहले इन आदिवासी क्षेत्रों का विकास होने में बाधा यही लोग खड़ी करते हैं फिर बाद में खुद गरीबों के मसीहा बन कर उनकी हमदर्दी पाने का काम करते हैं| बाद में इन्ही गरीबों को क्रान्ति के लिये हिंसा का मार्ग भी दिखाते हैं| इसी प्रकार आदिवासी क्षेत्रों में नक्सलवाद व माओवाद पनपा है| याद होगा कश्मीर में आतंकवाद भी कुछ कुछ इसीप्रकार भड़काया गया था| वहां पर आतंकवाद भड़काने का मकसद कश्मीर को भारत से अलग कर पाकिस्तान में मिलाना था और धीरे धीरे समूचे भारत पर इस्लामी झंडा फहराना| वहां हिंसा धर्म के नाम पर भड़काई गयी और यहाँ विकास के नाम पर| जिस प्रकार कश्मीर के युवाओं के मन में वहां के नेताओं ने यही भर रखा था कि ये हिन्दू तुमसे नफरत करते हैं अत: हमें हिन्दुस्तान से अलग हो जाना चाहिए ठीक उसी प्रकार विनायक सेन जैसे लोग आदिवासियों को यही भड़काते हैं कि संवर्न आपसे नफरत करते हैं अत: वे आप का विकास नहीं होने देते| इस प्रकार एक साधारण सा आदिवासी नक्सलवाद और माओवाद का सहारा लेता है जो कि इन वामपंथियों का लक्ष्य है कि समूचे भारत को लाल झंडे के नीचे लाना| आपको याद होगा कि वीरप्पन ने भी इसी प्रकार कई गावों को गोद लेकर अपनी चन्दन तस्करी चलाई थी| और जब वीरप्पन मारा गया तो यही गाँव वाले हाय तौबा मचाने लगे|

सरकार की गलती यह है कि वह इन आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं करती और इसका फायदा उठाते हैं ये वामपंथी| आप गौर करें कि नक्सलवाद और माओवाद ठीक उसी प्रकार केवल वामपंथी क्षेत्रों में पनपा है जैसे आतंकवाद मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में|

और जहाँ तक सबूतों की बात है तो नारायण सान्याल जो कि एक नक्सली है और जेल में सजा भोग रहा है उससे १७ महीनों में ३६ बार विनायक सेन का मिलना संदिग्ध ही है| इसी के साथ कुछ पेपर कटिंग्स, CDs और maoist सम्बन्धी मैगजीन मिलना ये सब विचार करने योग्य बाते हैं, इन्हें इतनी आसानी से अनदेखा नहीं किया जा सकता| यह सबूत के तौर पर काफी मज़बूत हैं, विनायक सेन या नारायण सान्याल खुद तो सच बोलने से रहे|

अत: सरकार की गलती का फायदा ये वामपंथी उठा रहे हैं और नुकसान आप और हम| इसमें अदालत की क्या गलती है? उसने तो फैसला तथ्यों के आधार पर ही सुनाया है| उसे विनायक सेन से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो है नहीं| और छत्तीसगढ़ नक्सली बहुल क्षेत्र है अत: यह भी नहीं कह सकते कि न्यायाधीश पर कोई दबाव था| दबाव होता तो इन्ही का होता|

अत: मेरा मानना यहाँ पर यही है कि यहाँ भी वही निजाम चला है जो पिछले कुछ सालों से भारत में चलता आया है| और विनायक सेन भी इसी अपराध में शामिल है| वह दोषी है तो सजा का हकदार भी होगा, गरीबों की सेवा करते रहने से कोई देश द्रोही सजा से मुक्ति तो नहीं पा सकता|

यहाँ पर यह मेरा मत है, इस विषय पर आपने हमारी राय मांगी है| मेरा आपसे कभी कोई व्यक्तिगत मतभेद नहीं रहा, मै तो हमेशा आपके विचारों का समर्थक ही रहा हूँ यह आप भी जानती हैं|

कोई गलती हो तो क्षमा करें...धन्यवाद|

नया सवेरा said...

... gambheer maslaa !!

मनोज कुमार said...

बहुत सी नई बातों से अवगत हुआ।

Sunil Kumar said...

kisi ki sahayta karne par koi aarop lagta hai to vah sarasar nainsafi hai , yah hamari nyyayvyabastha par sochne ko vivas karti hai

ZEAL said...

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Maoists are not dangerous to this country. Only policy of this Govt. is dangerous to this country. The govt should first concentrate on poor. The gap between rich and poor increasing. Even today, a third of population do not get single meal. Education, health, infrastructure etc are all privatized. How poor will get benefit of health care, education etc. Economy liberalization is not the solution to this country. This will help only to the rich to become more rich. Another aspect is corruption. No top politicians have been punished in independent India so far for corruption.This helps politicians take the corruption courageously as their way of life. Corruption should be controlled.

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ZEAL said...

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The Chhattisgarh High Court should take cognizance of the matter suo moto and hear the matter in an enlightened manner. It should grant Dr. Sen bail immediately. This is the minimum it could do in order to contain the damage done to the credibility of our judicial system. The verdict against Dr. Binayak Sen is a big slap against all democratic norms.

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सूबेदार said...

दिब्य जी- आपने एक अच्छा विषय निकाला है जहा तक मानवाधिकारियो की बात है ये सभी भारत बिरोधी गतिबिधियो में लिप्त है जब सेना के ऊपर हमले,निरपराध हिन्हुओ पर हमला होगा तो एक भी मानवाधिकार बादी दिखाई नहीं पड़ता लेकिन जब आतंक बादियो पर सेना या पुलिस के जवान कार्यवाही के लिए जाते है तो ये सफ़ेद झंडा लेकर खड़े हो जाते है , जहा तक डॉ सेन का विषय है सेन दूध के धुले नहीं है डाक्टर होना एक अलग बात है ऐसे सैकड़ो डाक्टर वनबसियो के बीच कम करते है डॉ सेन मानवाधिकार के नाम पर देश द्रोही गतिबिधियो का सञ्चालन कर रहे थे तथा कथित प्रगतिशील पत्रकार जो बामपंथी विचार के नाम पर मावोबदियो को बढ़ावा देना ही नहीं देश बिरोधी गतिबिधि का सञ्चालन करना, ये वही लोग है तिश्ता जावेद,और कश्मीरी आतंक बादियो को पुरे देश में राष्ट्र बिरोधी को बढ़ावा देने का काम कर रहे है ,इस नाते न्यालय को दोषी ठहराना ठीक नहीं .

G Vishwanath said...

Divyaji,
Normally I agree with your views.
But this time I am unable to agree.
I support the views expressed by Er Diwas Dinesh Gaur.
Regards
G Vishwanath

मनोज भारती said...

सच्चे इंसानों के साथ ऐसा होता रहा है ...आवाज उठाने के लिए धन्यवाद!

Arvind Jangid said...

दोषी को सजा हर हाल में मिलनी चाहिए, चाहे वो कोई भी हो.

ZEAL said...

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A Raja , Kalmadi , Gilani , leaders involved in Adarsh society scam , all are free in this free India. Because they all are big people , highly influential and above all they have power .

But A person who is dedicated to downtrodden , poor and oppressed lot has been sentenced for life term.

It's indeed very sad.

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ZEAL said...

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Corruption in the political system is damaging India beyond repairs. We are heading towards a chaotic situation in the country if timely action is not taken by the present Govt.Ordinary citizens are becoming frustrated day by day.

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ZEAL said...

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Sen stands convicted on such thin evidence although the jailers punched holes in the police version by deposing that all the meetings between Sen and Sanyal were strictly supervised, thereby ruling out the possibility of any letters being exchanged.

Other prosecution witnesses who turned hostile included three hotel managers who contradicted the police story that Sen used to meet Guha in their hotel.

In a bid to buttress its finding that Sen was guilty of sedition, the trial court read much sinister significance into the Maoist-related magazines and leaflets found in his house. In its concluding paragraphs, the verdict refers to these magazines along with those three letters to sustain the sedition charge.


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ZEAL said...

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Unfortunately , government has proved his efficiency by arresting and giving a life sentence for sedition to a frail, ailing, 61-year-old doctor-cum-social worker who has dedicated his life to the welfare of tribal communities and other marginalized people too small and insignificant to be noticed by the Indian state from the remote and lofty perch that it occupies.

But our govt has no punishment for Kasab, Raja n Radias .

Alas !

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ZEAL said...

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The advocates of Indian law Please open ur eyes. We all know that naxalisim is a biggest problem in the country but at the same juncture we all are hesitant to make those people's life better and bring them back to mainstream in a peaceful manner. Mr.Sen has tried to do the same thing. The picture that has been portrayed in the court of law is blur and misguided by the police. I don't say that Maoist have not done damage .. but what we are doing is not justifiable. Please don't punish people who want their fellowmen back to normal life. don't jail for the very reason that they treat the illness of a patient, be it a Maoist. Its not the right way to tackle the issue. Let people reach out to those who are needy.

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amar jeet said...

दिव्या जी आपके द्वारा लिखे ज्वलंत विषयों ने हमेशा ही समाज को देश को इस देश की कानून व्यवस्था को आइना दिखने का काम किया है परन्तु मै इस विषय पर आपके विचारो का विरोधी हु डॉ. विनायक सेन हो या नारायण सान्याल या अन्य वे सभी जिसे हाल ही मै सजा सुनाई गयी हो उचित है मैंने न्यायधीश महोदय ने जो निर्णय दिया है और जिन तथ्यों को आधार बना कर दिया है पूरा पढ़ा है एक एक तथ्य तर्कसंगत है !
जब हमारे जवान नक्सलियों से लड़ते लड़ते शहीद होते है तब ये तथाकथित मानवाधिकारो का परिचय पत्र लिए घुमने वाले उन विषयों पर क्यों मौन रहते है !समाज सेवा के नाम पर झोला लटकाए तथाकथित मानवाधिकार संघठनो ने सिर्फ भोले भले आदिवासियों के हाथो में हथियार ही नहीं पकडाए अपितु नक्सल प्रभावित राज्यों के विकाश की गति को भी धीमा किया है

सोमेश सक्सेना said...

दिव्या जी जानकर खुशी हुई कि आप नक्सल आंदोलन और डॉ बिनायक सेन का समर्थन करती हैं।
इस मामले में आपसे सहमत हूँ।
इंग्लिश वाली टिप्पणियों में आपने तथ्यों और तर्कोँ के साथ अपनी बातें रखी हैं जो पठनीय और विचारणीय हैं। पर हिंदी में क्यों नहीं?

ZEAL said...

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कुछ भ्रांतियां --

लोगों को भ्रान्ति है की डॉ सेन नक्सल वादियों के सहयोगी हैं। ---नहीं वो सिर्फ मानवाधिकार कार्यकर्ता है जो सिर्फ चिकित्सा सेवा सेवा दे रहे हैं ग्रामीण इलाके में जहाँ कोई भी चिकित्सक जाने से भी डरेगा।

मानव अधिकारों के लिए लड़ते समय भेद भाव नहीं किया जा सकता । ---डॉ सेन , नक्सलवादियों द्वारा सेना के जवानों को मारने के विरोधी हैं तथा सरकार द्वारा नक्सलवादियों को "शूट at साईट " वाली तर्ज के भी विरोधी हैं। क्योंकि वो मानav अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं इसलिए वो selectively tough नहीं होना चाहते। डॉ सेन की सहानुभूति शहीद हुए जवानों के साथ पूरी पूरी है , जिसके खिलाफ उन्होंने आवाज़ उठायी है। डॉ सेन अहिंसावादी हैं , वो नक्सलियों की हिंसा के समर्थक कैसे हो सकते हैं भला?

सरकार ने भी मजबूर होकर नक्सलियों को गाजर मुली की तरह काटने मारने का आदेश दे रखा है। हिंसा से हिंसा चौगुनी तेज़ी से भड़क रही है । हिंसा कोई समाधान नहीं है इस मसले का। डॉ सेन अहिंसा द्वारा इस मसले का हल निकालना चाहते थे । कोई तो होना चाहिए जो शेर की मांद में जाकर शांतिपूर्वक नक्सलियों को समझा सके। इस कार्य को डॉ सेन करना चाहते थे क्यूंकि उन्हें लगता है की शान्ति वार्तालाप से ही इस मसले को सुलझाया जा सकता है। उन्हें कोई करोड़ों रूपए का scam तो करना नहीं । निस्वार्थ समाज सेवा देश द्रोह नहीं होती।

सरकार नक्सलवाद को रोके , उसमें लिप्त असामाजिक तत्वों को सजा दे । लेकिन शान्ति बहाली के लिए प्रयासरत संवेदनशील व्यक्तियों को शक में दायरे में घेरकर उम्रकैद दे देना अनुचित है। न ही डॉ सेन को सजा देकर नक्सलवाद का हल निकाला जा सकता है। हाँ दम तोडती समवेदनाएं मनुष्य के जीवन से बिलकुल ही ख़तम हो जायेंगी। फिर शायद कोई भी नहीं सोचेगा कभी गरीबों और दलितों के लिए लड़ाई लड़ने की ।

नक्सलवादियों को कोई तो होना चाहिए समझानेवाला , आखिर वो समझेंगे कैसे की वो इन नृशंस हत्याओं द्वारा वो कुछ गलत कर रहे हैं । डॉ सेन बस इसी पुरजोर कोशिश में थे की नक्सलवादी ये समझ सकें की हिंसा से अधिकार नहीं मिल सकते। इसमें डॉ सेन को सरकार से नरमी की अपेक्षा थी।

दोनों पक्षों को अहिंसा का मार्ग अपनाने के लिए ही तो कह रहे थे डॉ सेन । जिस अहिंसा से बापू ने हमें आजादी दिला दी , वही अहिंसावाद आज गुनाह बन गया। और उम्रकैद की वजह ?

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ZEAL said...

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सोमेश जी ,

कभी कभी लिखने के लिए बहुत कुछ होता है । दिमाग में आने वाले विचारों को रोकना नहीं चाहती इसलिए आलसी बनकर आसान वाला रास्ता चुन लेती हूँ। जब फुर्सत में होती हूँ , तो हिंदी में विस्तार से लिखती हूँ। यहाँ पर विषय बड़ा है, भाषा नहीं। मुझे मालूम है जो लोग वास्तव में रूचि रखते हैं सत्य को जानने की वो मेरी हर टिपण्णी को पढेंगे , अन्यथा हिंदी वाली भी नहीं पढेंगे। लेकिन मेरी पूरी कोशिश रहेगी की हिंदी में ही लिखूं।

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PAWAN VIJAY said...

कोई भी लड़ाई बिना बलिदान के जीती नहीं जा सकती अगर बिनायक सेन सही है तो जेल जा कर वह जीत गए है और यदि दोषी है तो सरकार ने सही कदम उठाया है

Girish Kumar Billore said...

परायी देश पर जो टिप्पणी की उसे यहा भी पेस्ट कर रहा हूं
उन के बारे में सोचिये जो माओवाद के कारण तबाह हो चुके हैं नकारात्मक्ता का मूल स्रोत रोकना ज़रूरी है. वैसे यदी वे दोषी हैं या नही अदालतों को देखने दीजिये भारत की अखण्डता पर किसी की विकृत निगाह क्षम्य नही

ZEAL said...

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प्रथम दृष्टया मुझे भी लगा था था सरकार का निर्णय उचित है , लेकिन अपनी आदत से मजबूर , लेख लिखने के पूर्व बहुत लोगों के विचार सुने और बहुत से अखबारों को खंगाला,बहुत सोचा, मनन किया, जानकारी हासिल की और एक राय बनायी है।

क्यूँ राजा , राडिया, कलमाड़ी , शिवराज पुरी , अरुंधती , गिलानी , आदर्श घोटाले को सबने एक सुर में निंदा की , लेकिन डॉ सेन के प्रति देश की आधी जनता सहानुभूति रख रही है।

इस पोस्ट पर मेरा उद्देश्य सिर्फ प्राप्त तथ्यों को आपके सामने रखना है । उचित निर्णय के लिए तो हमारे देश की न्याय व्यवस्था है ही।

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A.G.Krishnan said...

It is unfortunate to see things like this happening but I am glad, active people (as above)+ million others, are with Mr.Sen

ZEAL said...

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It is a paradox that people like "Gilani" are allowed to give separatist speeches in the heart of Indian capital, but people like Sen are sentenced for life term . If Sen deserves this, then Gilani must be hanged, but he is protected by Indian security forces.

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सदा said...

आपकी बात एवं विचारों से पूर्णत: सहमत हूं ...।

G Vishwanath said...

Divya,

You are quoting the case of Raja, Kalmadi etc.
Your argument seems to be :

Why is Dr Sen being punished when Raja, Kalmadi etc go scot free?

The correct argument should be:

Why is Raja / Kalmadi not being punished when Sen is being punished?

I have no sympathy for any one who sympathizes with either Terrorists like Taliban/LET/Al Queda/JEM etc or Maoists. Both want to take over our country by force. It is an undeclared war. The terrorists across the border are motivated by religion as an issue and the Maoists want to use people's poverty as an issue. Both are wrong.You don't remove poverty by killing those who are not poor. Maoists should fight elections, come to power and then do whatever they want. If they kill people, the Government has a right to kill them in return.
If Maoists can punish a Government official who falls into their hands, the Government is justified in punishing any one who is found to have assisted/supported or collaborated with the Maoists.
This is a WAR!
===========
Continued-----

G Vishwanath said...

Sen may have been a great social worker. Let us give him credit for it.
But will you excuse Taliban/LET operatives just because they did great work during Pakistan's earthquake?

Let Dr Sen be rewarded with prizes/awards/ etc for his noble work. I have no issues with that.
But if he has sympathized with Maoists, he must be punished. Let the awards and punishments go hand in hand.

Of course, I agree that he does not deserve a life sentence. A brief period of simple imprisonment followed by a warning should have been enough.

Gilani / Hafeez Sayeed and others too deserve exemplary punishment. I am not supporting them at all.

Pointing to them does not absolve Sen. When a traffice policeman stops and fines you for jumping a traffic signal, do you ask him why he is not catching so many others who also did it?


Regards
G Vishwanath

ZEAL said...

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विश्वनाथ जी ,

डॉ सेन ने माओवादी और नक्सलवादी का साथ दिया ये कहाँ सिद्ध हो रहा है ? किसी के घर से ऐसी मगज़ीन मिले जिसमे माओवादी अथवा किसी भी संगठन की सूचना हो तो क्या वो माओवादी से मिला हुआ हो गया ? क्या कोई विभिन्न विषयों पर पढ़ भी नहीं सकता ? यदि ऐसा है तो सरकार की तरफ से घोषणा होनी चाहिए की कौन सी पुस्तकें पड़ें अथवा घर में रखें ।


इस लेख में मेरी सहानुभूति डॉ सेन के साथ है , तो क्या मैं भी मओवादिओं की समर्थक हो गयी ? और देशद्रोही के समर्थन में लेख लिखकर देशद्रोही भी हो गयी ?

यदि डॉ सेन की वैचारिक साम्यता किसी से होती है या वो किसी सन्दर्भ में जानकारी रखने हेतु कोई मैगज़ीन पढ़ते हैं तो घर से प्राप्त किताबों के आधार पर किसी को देशद्रोही नहीं करार किया जा सकता।

हिंसावादी नक्सलियों को चिकित्सा देना और उनकी पीड़ा को समझना मानवीयता है , देशद्रोह नहीं।

डॉ सेन नक्सलवादियों को हिंसा के लिए उकसा तो नहीं रहे थे , डॉ सेन तो सरकार और नक्सलियों दोनों से ही अहिंसा को अपनाने की अपील कर रहे थे । आखिर इसमें गलत क्या है ?

एक मानवाधिकार कार्यकर्ता , मानवाधिकारों के लिए लड़ रहा है तो गलत क्या है ? बस गलती इतनी है डॉ सेन की उन्हें दलितों के लिए लड़ाई ना लड़ के , समाज में बैठे सफेदपोशों के लिए लड़ना चाहिए था।

उन्होंने बेकार में - " आ बैल मुझे मार " को चरितार्थ कर दिया।

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ZEAL said...

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नक्सलवादियों से किसी को सहानुभूति नहीं है , लेकिन निस्वार्थ रूप से गरीबों की चिकित्सा सेवा देने वाला देशद्रोही कैसे हुआ ये नहीं समझ आया।

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ZEAL said...

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@--Let the awards and punishments go hand in hand.

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I am not talking of the awards he has received so far. It was mentioned as a part of his introduction only.

As far as punishment is concerned, it should be on some solid grounds. The weak evidences against him are not enough to justify life term imprisonment.

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Sadhana Vaid said...

नक्सलवाद का सम्बन्ध तीन प्रकार के भारतीय नागरिकों से है पहले वे निरीह और दलित आदिवासी जो सदियों से पिस रहे हैं, दूसरे वे आदिवासी जो व्यवस्था के खिलाफ अपने तरीके से आंदोलन कर रहे हैं जो हिंसक भी है और तीसरा वर्ग ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों का है जो आदिवासियों के इस युद्ध से हमदर्दी रखता है और उनकी मदद के लिये क़ानून के विरुद्ध भी जाकर उनकी सहायता करने के लिये तत्पर रहता है ! इन बुद्धिजीवियों की सहायता से आदिवासियों का जीवन स्तर कितना ऊपर उठ पायेगा यह कहना तो मुश्किल है लेकिन इतना अवश्य है कि ऐसे लोगों की सहायता उनकी परेशानियों को बढाने में और उनके हालात को बद से बदतर करने में अवश्य कारगर सिद्ध हो रही है ! मुझे याद पड़ता है गांधीजी ने कहीं कहा था कि सही लक्ष्य के लिये यदि गलत साधनों का प्रयोग किया जाता है तो इसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता ! वैसे डा. सेन के अनेक सराहनीय कार्य भी हैं जिनके लिये सारे विश्व से उन्हें सराहना भी मिली है ! किन्तु जो गलत है वह गलत ही है ! हाँ दण्ड कितना मिलना चाहिए इसके लिये अभी हायर कोर्ट्स मौजूद हैं !

amit kumar srivastava said...

your concern is everybody's concern.may good sense prevails upon the judiciary.

राज भाटिय़ा said...

मुझे इस बारे कुछ नही पता , लेकिन मै जानने की कोशिश कर रहा हुं, आखिर सच्चाई क्या हे?

ZEAL said...

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.Having sympathy for oppressed and downtrodden cannot constitute Betrayal to India but I believe that support to people like Kalmadi, Kanimozhe and A Raja is treachery to the Nation .

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ZEAL said...

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The latest statement of the Minister for Law that soon we will be burdened with another Right-that is Right to Justice.Sounds good but let’s pause to incisively look into the justice which is going to be our Right. Should Justice be a Right-is Justice not by itself a guarantee that it is for all? Should there be Convocation of the people of India in which this Right will be conferred? And will be another Right on the list of the UPA to go for vote catching. Now what is the quality of justice that is being made a right? Is it the Justice which Ruchika was given, is it the Justice that evaded Aarushi. What is the Right to Justice that Veerappa Moily has in mind?

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ZEAL said...

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Justice varies from courts to courts. Sentences pronounced in the lower courts are quashed at the Higher courts and those of the High courts in the Supreme Courts.
If Courts really are attuned to dispense Justice then why transfer of cases from one State to another-should not Courts in all the States dispense justice. What about the justice which the Courts have already dispensed with-say the sentences which it has pronounced why are these not executed? Afzal Guru’s case is a typical example. Should this nation not have Justice? Should it be burdened by having to spend crores of its hard-earned money on keeping these criminals in the prisons?

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ZEAL said...

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Lets envisage a world where every person is assured of two meals a day, where every child is happily engrossed in school activities , where there is justice at the door step for all, where there is peace and harmony in that world .

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arvind said...

anuchit hai.

सुज्ञ said...

सम्वेदना के स्वर बंधुओ से सहमत

nilesh mathur said...

दिव्या जी, ये सचमुच बहुत ही दुखद है!

Gopal Mishra said...

mujhe is case ke baare me jyada pata to nai hai ...par aisa India me kai baar ho chuka hai ki jise inaam milna chahiye use saja milti hai aur jise saja milni chahiye use inaam milta hai...ummeed hai ye sab hm logo ke jeete ji khatam ho jaye!!!

वीरेंद्र सिंह said...

अगर विनायक निर्दोष हैं तो सजा ग़लत है। लेकिन इस बात का निर्णय तो कोर्ट को करना है। इसीलिए पक्के तौर पर इस विषय पर फ़िलहाल तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

महेन्‍द्र वर्मा said...

बेहद संवेदनशील मामला है।

इस विषय पर मैं तटस्थ नहीं हूं, मेरे अपने निजी विचार हैं,
लेकिन अफसोस, मैं अपने विचारों को यहां व्यक्त नहीं कर सकता।

उपेन्द्र नाथ said...

देशद्रोह और कानून तोड़ने कि सही परिभाषा शायद मुश्किल है........... सारे देशद्रोही और कानून तोड़ने वाले खुले मस्त और जनता के हितों कि बात करने वाला उम्रकैद........

ABHISHEK MISHRA said...

अगर विनायक सेन निर्दोष है तो फिर वो गिरफ्तार होने से पहले पिछले ३५ दिन में से ३1 बार जेल में माओवादी नेता से मिलने क्यों गए .?????????????????????
साफ था इन्होने बिचौलिए का काम करते हुए संदेशो का आदान प्रदान किया .मानवता आधिकार की आड़ में देशद्रोह .
क्या माओवादी हिंसा में मारे गए लोग इस देश के नागरिक नही है या फिर उन की कीमत जानवर की जान के कीमत के बराबर है
आप ने तो पहले से ही विनायक सेन को निर्दोष मान लिया है अब चाहे आप के सामने कितने ही पक्ष रख दिए जाये पर विनायक सेन निर्दोष ही रहेंगे

ZEAL said...

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मैंने इस लेख पर अपने विचार रखे । मेरे सम्मानित पाठकों ने भी अपने विचार रखे । सभी का आभार। जिन्होंने इस लेख को पढ़ा लेकिन अपना विचार नहीं रखा, उनकी विवशता को समझ सकती हूँ , तथा पढने मात्र के लिए भी उन्हें आभार।

अंत में न्याय व्यस्था से उचित न्याय की उम्मीद में हम सभी ..

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Bharat Bhushan said...

Many Sens were slain for doing social and developmental work in areas where Adivasi or Dalits lived. Divya, you have many a time condemned corruption in public life. In general, interior of India suffers from big corruption of another kind. There it comes as a unified effort to eat away money meant for welfare of the downtrodden or keep it unutilized. The objective is to keep them in a position of cheap labor or forced labor. It is due to caste bias. There is lack of education and awareness amongst poor masses. They apprehend legal complications and do not come forward to protest. (Some NGOs have started working for them). What courts can do in this matter? Judges are also part of society. They may not be corrupt in the legal sense but they may be having caste bias or working under socio-political pressure thus forming ground for Naxalism. Non deliverance of justice to the socially condemned is one of the major causes behind many faceted social problems of India. You will agree that a sustainable society is required for sustainable growth.

ZEAL said...

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भूषण जी ,

आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ। स्वार्थ में अंधी ये दुनिया गरीबों और दीन दुखियों के उद्धार से कोई सरोकार नहीं रखती। अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए ये दुनिया चाहती है की गरीब सिर्फ गरीब ही बने रहे और दलित हमेशा पिछड़े रहे। इनके विकास के लिए जो पैसा आता है , उसको सरकार हड़प कर जाती है , इनके विकास पर एक प्रतिशत भी नहीं खर्च होता । गरीब और दलित भी इश्वर द्वारा दी हुई बुद्धि रखते हैं। वो सब समझते भी हैं। लेकिन वास्तव में प्रोटेस्ट करने में झिझकते हैं, क्यूंकि वो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं , उनकी कोई सुनवाई नहीं है, उनका कोई हमदर्द नहीं है। ऐसे में इनमें आक्रोश का भर जाना एवं हिंसक हो उठना बहुत स्वाभाविक है।

यदि कोई इनसे सहानुभूति रखते हुए इनके उद्धार एवं विकास के लिए सोचता है तो ऐसे संवेदनशील व्यक्तियों के लिए न्याय व्यवस्था में , उम्रकैद की व्यवस्था की गयी है।

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ZEAL said...

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यदि सरकार नक्सलवादियों के साथ नरमी का रवैय्या अख्तियार करके मानवीयता से नहीं पेश आएगी तो वे और उग्र एवं हिंसक हो जायेंगे और इस आतंरिक कलह का फायदा बाहरी शक्तियां जैसे 'चीन' आदि देश उठायेंगे। वो गरीबों की मजबूरी को बहुत सस्ते में खरीदेंगे , उन्हें राशन और हथियार मुहैय्या कराके पूरे देश को तबाह करेंगे।

इस बात का हल बातचीत से निकाला जा सकता था। और एक ऐसा व्यक्ति जो सरकार और नक्सलवादियों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बन सकता था वो हैं - डॉ बिनायक सेन । लेकिन नहीं सरकार ने तो इस नरम आवाज़ को कुचल दिया । हिंसा अपनी जगह रह गयी। दलित, दलित ही रह गए। डॉ सेन को खामोश कर दिया गया। और छत्तीसगढ़ की सुरक्षा सुनिश्चित कर ली गयी।

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ZEAL said...

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डॉ सेन का हश्र देखने के बाद क्या कोई भी समझदार व्यक्ति , दलितों के उद्धार के बारे में सोचने का गुनाह करेगा ?

सरकार की तत्परता वन्दनीय है।

और क्या कहूँ !

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डा० अमर कुमार said...

Enough has been debated here, No comments for now !
Have you seen today’s Hindustan Times ?
It reads at Page 7 ;


“Binayak verdict miscarrriage of justice”

Nobel laureate Amartya Sen said the verdict of a Chahattisgarh court sentenciong doctor-activist Binayak Sen to life on sedition charges smacked of “political motivation”and hoped that it would be struck down by a higher court.
“The matter is sub-justice. But as an Indian citizen and a human being, I must exercise my own judgement to ask if this is correct. Sedition means pulling the state down by violence. It cannot be suggested Binayak did this,”he said at an event to release a book on Binayak Sen.
“On the contrary, his writing indicates violence is wrong. There is a deep moral argument against sedition here,” he said.
Sen said he was amazed by the judgement that is now being challanged by the jailed doctor who’s been accused of conspiring with the Maoists. “It has a threatening nature and seems to have political motivation. Any intelligent perwon would find the judiciary acted very peculiarly. I hope the high court or Supreme Court quashes this.”
Binayak Sen story, he said, was one of dedication. “It is about the dedication of a great human being. It brings to light a miscarriage of justice. It focuses attention on Indian Democracy. And it shapes visionsof a future to which Binayak makes a big contribution.”

ZEAL said...

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Dr Amar ,

Thanks for the update. Let's hope for the best in nation's interest.

कहीं पढ़ा था --

भगतसिंह , मत आना तुम भारतवासी बनकर ,
देशभक्ति की सजा अब भी 'फांसी' ही है ।

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Rohit Singh said...

विनायक सेन जी के बारे में काफी कुछ जानने का प्रयास कर रहा हूं.....इसलिए कुछ कहना अभी जल्दीबाजी होगी.....हां फैसला काफी कमजोर है ये साबित होता दिख रहा है और .... इस अधार पर ये फैसला उच्च औऱ उच्चतम न्यायल में बदल सकता है...पर गांधीजी के साथ इस जोड़कर देखना गलत संदेश देता है....गांधी औऱ विनायक सेन में अंतर है.....काफी..

अजय कुमार दूबे said...

अगर हम आप के बात को सच मान भी लें .पर कोई पागल ही होगा जो एक सेवा करने वाले इंसान को जेल में बंद कर दे ,वो भी एंटी नैशनल एलिमेंट होने के नाते. और अगर आप का विश्वास इतना ही सच्चा है तो अभी तो सज़ा लोवर कोर्ट से हुई है, अभी तो हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट बचा हुआ है।

पर इतना जल्दी में आपने न्यायतंत्र में ऊँगली उठाना ठीक नहीं मैंने आपने ब्लॉग पे इसके दुसरे पहलु को उजागर करने की कोशिस की है
अगर आप सही है भी तो भी मै विनायक सेन को तब तक नायक नहीं मान सकता जबतक हमारी प्रणाली उन्हें बरी न कर दे

मै भी विनायक सेन के सकारात्मक काम की तारीफ कर सकता हु पर उनके नकारात्मक कामो (जैसा की कोर्ट ने माना है )की अनदेखी नहीं कर सकता

आप ही बताइए ...हमें सबसे पहले किसपे भरोसा करना चाहिए ...
हमारे यहाँ ३ कोर्ट किस लिए बने है ??

इसलिए की पहले ही फैसले में लोग आपने तंत्र पे बिस्वास खो दे ??
एक बात और आपने कुछ कॉमेंट्स में दागी नेताओ की बात कही है

उससे मै भी सहमत हु की वो भी गलत नेता है पर इसका मतलब ये नहीं की इन नेताओ के आलावा और कोई गलत नहीं हो सकता
और इन्हे सजा मिलने के बाद उन्हें दोषी माना जाये न्यायतंत्र ऐसे काम नहीं करता ....दूसरो के दोष से आपना दोष नहीं छुपाया जा सकता

किसी एक आरोपी के लिए इतना हाय-तोब्बा मचाया जाना उचित है? ऐसे फैसले तो इस देश में रोज होते हैं। बहुत सारे फैसले ऊपरी अदालतों में जा कर पलट भी जाते हैं। लेकिन इतनी-सी बात के कारण हम देश की न्याय प्रणाली को ही कठघरे में खड़े कर दें? विनायक सेन के पास तो फ़िर भी वकीलों, पूर्व जजों, प्रॉपगैंडाबाजों की फौज है। इतनी न्यायिक प्रक्रियाओं से तो देश के एक सुविधाहीन आम आदमी को भी गुजरना पड़ता है। लेकिन न्याय का अपना तरीका है, वह अपने ही हिसाब से चलेगी।

खैर ये तो मेरा विचार था आप जो समझे ....
अगर डॉ. सेन सही होंगे तो बरी होंगे ही ...तब भी मुझे आपने तंत्र पे विश्वास रहेगा ...तब तक आपको और डॉ. सेन को और सकारात्मक बने रहना चाहिए
लेकिन आज की तारीख में हमारी प्रणाली द्वारा अपराधी साबित हुए विनायक हमारे नायक नहीं हो सकते।

दिव्या जी चर्चा के लिए धन्यबाद
http://anubhutiras.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

छत्तीसगढ़ के लोगों नें डाक्टर विनायक सेन का नाम पहली बार तब सुना जब उन्हें नक्सली संबंधों के आरोप में बंदी बनाया गया, जबकि वे वर्षों से छत्तीसगढ़ में रह रहे बताये जाते हैं . तभी शेष दुनिया के साथ छत्तीसगढ़ के लोगों को भी पहली बार यह पता चला कि वे बाल रोग विशेषज्ञं हैं..और गाँवों में गरीबों की चिकित्सा करते हैं. अभी सजा सुनाने के बाद नक्सलियों नें 'सजा के विरोध में' एक सप्ताह के बंद की घोषणा कर यह प्रमाणित कर दिया है कि सेन और उनके बीच कुछ तो था . बंद का बस्तर जैसे इलाकों में असर दिखाई देना भी शुरू हो गया है. बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार सेवियों की ओर से कई मंचों पर डाक्टर सेन के समर्थन में हलचलें शुरू हो गयी हैं ...वे डाक्टर हैं इसलिए लोगों की सहानुभूति उनके प्रति होना स्वाभाविक है .आभिजात्य के प्रति हमारा आकर्षण नया नहीं है ........पर अब कुछ सवाल हैं -
१- अभी तक नक्सलियों नें कितनीं सजाओं के ख़िलाफ़ ऐसे कदम उठाये हैं ?
२- डाक्टर सेन गाँवों में इतने लोकप्रिय क्यों नहीं हो सके जहां वे सेवा कर रहे थे ? उन गाँवों के लोगों नें अभी तक अपने मसीहा के समर्थन में कोई आवाज़ क्यों नहीं उठायी ?
३- बस्तर में आये दिन नक्सली हिंसा (अत्यंत वीभत्स ) होती रहती है ....डाक्टर सेन और मानवाधिकार कर्ताओं नें यहाँ क्यों मौन साध रखा है ? पुलिस के साथ-साथ निर्दोष आदिवासी भी उनकी हिंसा के शिकार हो रहे हैं ...मानवाधिकार के ये दो-दो स्वरूप क्यों हैं ?
४- अभी हाल में पता चला है कि नक्सली विभिन्न स्रोतों से बहुत उगाही करते हैं उनके पास करोड़ों की संपत्ति है .....उस संपत्ति से उन्होंने जनहित के कितने काम किये हैं ?
५-आदिवासी क्षेत्रों में सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों को तोड़ने के पीछे नक्सलियों के विकास और जनहित का कौन सा स्वरूप सामने आता है ? डाक्टर सेन नें कभी इसका विरोध क्यों नहीं किया ? जबकि वे नक्सली साहित्य के अध्ययन में रूचि रखते थे ...जब आप किसी विचार धारा को पढ़ते हैं तो या तो उससे सहमत होते हैं या असहमत. डाक्टर सेन यदि असहमत थे तो उन्होंनें कभी भी नक्सलियों की हिंसक गतिविधियों के सम्बन्ध में अपनी राय से जनता को अवगत क्यों नहीं कराया ?
6- नक्सली मुठभेड़ों में नक्सलियों द्वारा चीन निर्मित हथियारों का स्तेमाल किया जाना कई बार प्रमाणित हो चुका है, डाक्टर सेन या मानवाधिकार से जुड़े लोगों नें अभी तक इसके ख़िलाफ़ आवाज़ क्यों नहीं उठायी ?
७- आखिर वे कौन लोग हैं ज़ो शहरों में नक्सली तंत्र को पोषण देने का कार्य कर रहे हैं ?...कुछ समय पूर्व रायपुर में विधायक निवास में नक्सली पर्चे पहुंचाए गए थे .......किसने पहुंचाए .....क्या नक्सलियों नें ? या किसी सफ़ेद पोश नें ?
किसी भी प्रकार की हिंसा को उचित नहीं ठहराया जा सकता ..... चाहे वह वैचारिक हो या स्थूल. हम भावुकता में आकर एक पक्षीय धारा में बहने लगते हैं पर संवेदनशील मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है .....निश्चित ही यदि किसी पूर्वाग्रह मात्र के कारण डाक्टर सेन को सज़ा दी गयी है तो यह निंदनीय है ...और अभी तो उनके पास अपनी निर्दोषिता सिद्ध करने के पर्याप्त अवसर भी हैं.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

दिव्या जी ! एक कान से दूसरे कान तक कोई बात पहुंचते -पहुंचते हकीकत से दूर होती जाती है, नक्सलियों को गाजर-मूली की तरह काटने का न तो आदेश दिया गया है न काटा जा रहा है ....हमारे हॉस्पिटल के ठीक सामने सड़क के दूसरी ओर जिला जेल है जिसमें कई नक्सली बंद हैं ....हमारे एक साथी डाक्टर नियम से विजिट पर जाते हैं, एक शिल्पकार भी प्रति दिन जेल जाकर कैदियों को काष्ठशिल्प का प्रशिक्षण दे रहा है ..ताकि जब भी वे बाहर आयें तो समाज की मुख्य- धारा में शामिल हो सकें और खुद का रोजगार कर सकें.....जेल में भी उनके साथ मानवीय व्यवहार ही किया जा रहा है......आपसे एक निवेदन है अब जब भी लखनऊ आना हो तो एक बार बस्तर ज़रूर आइये ....मेरा दावा है कि आपकी धारणाओं में आमूल परिवर्तन हो जाएगा ....हम आपको कुछ ऐसी हकीक़त से भी रू-ब-रू करायेंगे जिसका बयान यहाँ नहीं किया जा सकता, किन्तु जिसे देख कर आपको लगेगा कि लोग कितने भ्रम में हैं. आप सादर आमंत्रित हैं बस्तर की धरती पर.