Tuesday, February 22, 2011

ब्लॉगजगत में गुंडागर्दी या मात्र एक गीदड़-भभकी ?

Mithilesh dubey has left a new comment on your post "निर्वस्त्र होने से क्रांति नहीं आती , ना ही न्याय ...":

मेरा कमेन्ट क्यूँ प्रकाशित नहीं किया गया ??? उसमे क्या अभद्रता थी , कृपया उसे सार्वजनिक करें अन्यथा अपनीछिछा लेधर के लिए तैयार रहिये , शायद आपने अभद्रता देखी नहीं है अभी तक ????

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Posted by Mithilesh dubey to ZEAL at February 21, 2011 7:21 PM



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उपरोक्त टिपण्णी है मिथिलेश दूबे जी कि , जिन्होंने तिलमिलाकर मेरी छिछा लेदर करने कि धमकी दी है । दूबे जी , आप स्वतंत्र हैं अपने ब्लॉग पर कुछ भी करने के लिए । ब्लॉग भी आपका है और लेखनी भी आपकी । जी भरकर छिछा-लेदर कीजिये ।समझ नहीं आता ये ब्लोगर किसी कि रोजी-रोटी चलाते हैं जो इस अंदाज में धमकाते हैं जैसे सरपरस्त हों ।

न मैं किसी कों जबस्दास्ती अपनी पोस्ट पढने कों कहती हूँ , न ही टिपण्णी करने कों । पाठकों पर किसी प्रकार कि पाबंदी नहीं है । और मुझ पर भी किसी प्रकार का दबाव नहीं है । कोई भी मुझे अपनी टिपण्णी छापने के लिए विवश नहीं कर सकता ।

जो लोग विषय पर सहमत या असहमत हैं , उन दोनों के विचारों का स्वागत है , लेकिन जो लोग द्वेष , ईर्ष्या , पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कमेन्ट लिखते हैं , उनका स्वागत कतई नहीं है । मुझे सबसे बुरे वे लोग लगते हैं जो व्यक्तिगत आक्षेप करते हैं लेखिका पर । ऐसी अभद्र टिप्पणियां सीधे spam में जाती हैं। समय नष्ट करने वाले , धमकी देने वाले और झगडालू लोग दूर ही रहे।

जो समय एक सकारात्मक लेख लिखने में लगना चाहिए वो इन भड़ासियों के कारण बर्बाद हो जाता है । बहुत सोचा इसको avoid कर दूं , लेकिन फिर लगा कि इनका असली चेहरा भी सामने आना चाहिए लोगों के ।

दूबे जी , जाइए अपने ब्लॉग पर दिव्या को जी भरकर गाली दीजिये । बहुत से लोग यही कर चुके हैं , आप भी उसी जमात में शामिल हो जाइए । आपकी छिछा लेदर पर दो चार छछूंदर तो आ ही जायेंगे उचकते हुए , आपको मरहम लगाने और अपनी पुरानी रंजिश निकालने।

याद रखियेगा , शांतिप्रिय एवं समझदार ब्लोगर्स के पास नीर-छीर विभाजन करने का विवेक है । वो अपनी बुद्धि से किसी के बारे में राय बनाते हैं। आप जैसे भड़ासियों कि द्वेषपूर्ण पोस्ट द्वारा नहीं।

जैसे दुनिया अच्छे लोगों पर टिकी हुई है वैसे ही ब्लॉगजगत में भी बेहतरीन लोगों कि कमी नहीं है । बहुत से पाठक और ब्लोगर्स मित्रवत हैं, जिनकी शुभकामनायें ही मेरी ताकत हैं।

63 comments:

OM KASHYAP said...

पाठक और ब्लोगर्स मित्रवत हैं

OM KASHYAP said...

ye kya ho raha he
ye kya ho raha he

kshama said...

Afsos ki aapke oopar ye sab likhne kee naubat aa gayee!Mai swayam kuchh arsa poorv aise bhayanak daurse guzar chuki hun.

Sunil Kumar said...

टिप्पणी छापना या छापना लेखक का अधिकार है इसमें किसी प्रकार की जोरजबर्दस्ती करना एक शिक्षित वर्ग के लिए अच्छा नहीं है | दिव्या जी आप अपनी जगह बिलकुल सही है |

Deepak Saini said...

मिथलेश जी ने ठीक नही किया,
ब्लाग जगत मे ये सब बाते मन को ह्रास करती है

Deepak Saini said...

दिव्या जी आपने जो लिंक दिये है वो खुल नही पा रहे ।
(शायद मेरे सिस्टम मे ही कुछ दिक्कत है )

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Irfanuddin said...

hhmmmmmm.....
why people are being so personal here????

जीवन और जगत said...

ब्‍लाग लेखन में यह आम हो चला है कि ध्‍यानाकर्षण के लिए या सस्‍ती लोकप्रियता के लिए या अपने ब्‍लाग पर लोगों की अधिकाधिक टिप्‍पणियां बटोरने के लिए ऐसे ओछे हथकण्‍डे अपनाये जा रहे हैं। जहां एक ओर हिन्‍दी ब्‍लॉग लेखन अंग्रेजी ब्‍लागिंग की तरह समृद्ध हो रहा है वहीं, अंग्रेजी ब्‍लागिंग की बुराइयां भी इसमें आ रही हैं। हमें इससे बचते हुए हिन्‍दी ब्‍लागिंग को स्‍वस्‍थ वातावरण देना होगा। ऐसा करने के लिए एक दूसरे के मतों का सम्‍मान करना जरूरी है। यदि किसी से असहमत भी हों तो असहमति शालीन तरीके से होनी चाहिए और अपनी बात भी शालीन तरीके से रखनी चाहिए।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

दुबे जी, यह गलत बात है। ज़बरदस्ती करके आप क्या हासिल करेंगे। कोई आपकी टिप्पणी नहीं छापता है तो उसके अपने कारण होते हैं। इसलिए ऐसी धमकी या ज़बरदस्ती से गुरेज़ करें, यही प्रार्थना है। आगे आप खुद विद्वान हैं :)

प्रतुल वशिष्ठ said...

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दुबे जी से संवाद के बारे में मुझे पूरी बात तो नहीं पता लेकिन आपका पिछला लेख नया था और एक संभ्रांत महिला के नज़रिए से आधुनिक अभद्रता पर किया गया तार्किक घात था.
मुझे तो वह मेरे मन की बात लगी थी जो आपने पहले लिख दी. उस लेख के समर्थन में तो पूरी एक लम्बी पंक्ति थी फिर शिकायत कहाँ और किनको है?

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Rakesh Kumar said...

hum to yahi keh sakte hai aapko ki
"veer tum badhe chalo,dheer tum badhe chalo,
saamane pahaad ho, singh ki dahaad ho,
tum kabhi ruko nahi,tum kabhi jhuko nahi.."

मनोज कुमार said...

@ शांतिप्रिय एवं समझदार ब्लोगर्स के पास नीर-छीर विभाजन करने का विवेक है । वो अपनी बुद्धि से किसी के बारे में राय बनाते हैं।
सहमत हूं।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

हे पंडित जी लोगो ! अपने ब्राह्मणत्व का परिचय दीजिये .......ब्राह्मण किसी की छीछा लेदर नहीं करते......यह कार्य तो असुरों का है .........ऐसा न हो कि शरीफ लोग ब्लॉग पर आना ही छोड़ दें. आप किसी को बाध्य क्यों करना चाहते हैं ?

Atul Shrivastava said...

दिव्‍या जी,आपने सही किया, इस अवांछित टिप्‍पणी को लेकर एक पोस्‍ट लिखकर। कम से कम कुछ चेहरे तो बेनकाब हुए।
वैसे आपके जिस पोस्‍ट के संदर्भ में ये बातें हो रही हैं। उस पोस्‍ट को मैंने भी पढा था और उसी दिन उस पर अपने विचार भी रखे थे।
उस पोस्‍ट में मुझे तो कुछ भी गलत नहीं लगा।
आज भी हिन्‍दुस्‍तान में कई जगहों पर अंधविश्‍वास के नाम पर स्‍त्रियों को नग्‍न किया जाता है ताकि इंद्र देवता प्रसन्‍न हो जाएं।
निर्वस्‍त्र प्रदर्शन जरूर अपने देश में नहीं होता।
लेकिन जहां तक मेरी समझ है आपकी पोस्‍ट स्‍त्रियों के स्‍वाभिमान को लेकर थी।
आप लगी रहें।
वो कहते हैं न कि, 'हाथी चले बाजार तो ...........'

G.N.SHAW said...

zeal ji ne ek tarah se anya mahilao ke bicharo se hat kar hi lekh post ki thi.jo ek yatharth ke kaphi najadik tha.bloggers dhairy se kaam le tatha samaj ko swaksh banane me apana yog dan kare.apasi ranjis shobha nahi deti. reader and writter dono ke apane -apane adhikar hai .blogger abhadra tippanio se bache.

राज भाटिय़ा said...

ऎसा करना बिलकुल गलत हे,ओर अगर कोई ऎसा करता हे तो धीरे धीरे वो सब से दुर हो जायेगा,इस से अच्छा हे दुबे जी आप से माफ़ी मांगे, ओर आंईदा ऎसी कोई बात ना करे जिस से किसी का भी दिल दुखे, वो भी खुश रहे ओर भी खुश रहे, माडरेशन इसी लिये लगाया जाता हे कि किसी को आशोभनिया टिपण्णी को रोका जाये,

Saleem Khan said...

जैसे दुनिया अच्छे लोगों पर टिकी हुई है वैसे ही ब्लॉगजगत में भी बेहतरीन लोगों कि कमी नहीं है । बहुत से पाठक और ब्लोगर्स मित्रवत हैं, जिनकी शुभकामनायें ही मेरी ताकत हैं

डा. अमर कुमार said...

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मिथिलेश दुबे की भाषा बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती ।
पर मैं समझता हूँ मॉडरेट किये जाने या टिप्पणी न छापने का एक प्रोटोकॉल या शिष्टाचार होता है । यदि उसका पालन किया जाये तो ऎसे मतभेद अखाड़े का रूप न लिया करें । मेरे पास ऎसे कई कई उदाहरण हैं... उनमें से एक नमूने के तौर पर यहाँ

Re: [ई-स्वामी] Please moderate: " ्रतिक्रियाएं जो टिप्पणियों में न ीं मिलतीं! "
mailed-by : gmail.com
details 8/19/08
अमर,
आपकी टिप्पणी मिली. ज़रा ड्राफ़्डिया मोड में लिखी हुई है! यह समझ में नहीं आया की आप किसे गरिया रहे हैं? किसके लेखन को कचरा कह रहे हैं? कौन दबाव में लिख रहा है और कौन वेश्यावृत्ती कर रहा है?
आपकी यह टिप्पणी प्रकाशित नहीं कर रहा, आपका संदेश मुझ तक पहुंचना था पहुंच गया, ठीक!
मेरा एक निवेदन है, प्रवचन देने में जल्दबाज़ी ना करें, आप चार माह से ब्लागिंग कर रहे होंगे हम साढे चार साल से हिंदिनी चला रहे हैं! जरा समय लें और हमारा पुराना लिखा ही पढ लें!
शेष कुशल,
ई-स्वामी

Akhilesh pal blog said...

ye sab nahi hona chahiye aap apane blog par swatantra hai kisaki tipani prakasit karani hai kisaki nahi

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

अभद्र बातें सिर्फ अपनी ब्लॉग पे त्रफ्फिक बढाने के लिए नहीं करना चाहिए....
एक दुसरे का सामान बहुत जरूरी है...
ऐसी टिप्पणियों को नहीं छापना लेखक का अधिकार है...

News And Insights said...

मुझे नही लगता ऐसी चीजों से किसी को विचलित होने की जरूरत है| आपको तो शायद नही ही | मैंने आपके बारे में एक और सज्जन(?) की दो तीन पोस्ट पढ़ी थी| उसके बाद मैंने उस लिंक पर जाना ही छोड़ दिया| शायद वह ब्लॉग भारतीय संसंद में तब्दील हो चुका था|जहाँ अच्छी चीजें कम ऐसी चीजें ज्यादा मिल रही थी|

Gopal Mishra said...

i can just laugh on such kiddish behaviour.

Bharat Bhushan said...

आप से पूर्णतः सहमत हूँ.

किलर झपाटा said...

छ में ई की मात्रा छी, छ में आ की मात्रा छा, ल में ए की मात्रा ले, द छोटा द, र छोटा र, छीछालेदर। लीजिए ज़ील जी, मैंने स्पैलिंग कर दी हिन्दी में छीछालेदर की। ओ.के.।

अजय कुमार said...

टिप्पणी छापना या न छापना तो पोस्ट लिखने वाले का अधिकार है ॥
moderation तो इसीलिये लगाया जाता है । दबाव डालना अनुचित है ।

Rahul Singh said...

शुभकामनाएं.

आचार्य परशुराम राय said...

लगता है लोग अपनी आदिम प्रवृत्तियों से मुक्त नहीं हो पाएँ हैं। आपके साहस को नमन।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप ने बताया, अच्छा किया। टिप्पणी मॉडरेट करना ब्लागस्वामी का अधिकार है। यदि उसे ऐसा करने के लिए धमकी दी जाती है तो यह अपराध है।

ashish said...

टिपण्णी अगर लेखक को विषय से भटकी और अनुचित लगती है तो उसको मोडरेट करना उस विशेषधिकार है . मुझे प्रतीत होता है की ब्लॉग लिखने वाले सभी लोग नीर क्षीर के विभाजन में प्रवीण होंगे . जबरदस्ती वाली बात समझ से परे है . आंख खोलती पोस्ट .

Satish Saxena said...

द्विवेदी जी से सहमत हूँ ...

पी.एस .भाकुनी said...

जो लोग विषय पर सहमत या असहमत हैं , उन दोनों के विचारों का स्वागत है , लेकिन जो लोग द्वेष , ईर्ष्या , पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कमेन्ट लिखते हैं , उनका स्वागत कतई नहीं है ।
आप से पूर्णतः सहमत हूँ.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kya aisa bhi hota hai...bhadra manane wale logo me:(

अजित गुप्ता का कोना said...

जीवन के अनुभव की कमी के कारण ऐसी धमकियां दे दी जाती हैं। लेखन के क्षेत्र में ऐसा बहुत होता है इसलिए इसे भी लेखन का हिस्‍सा ही मानकर चलें।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आद. डा. दिव्या जी,
यह जानकार बड़ा दुःख हुआ कि टिप्पणी प्रकाशित न करने पर इस तरह की धमकी आपको दी जा रही है ! आप किसी की टिप्पणी अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने या नहीं करने के लिए स्वतंत्र है ,इसके लिए धमकाने वाली बात तो सरासर गुंडागर्दी है ! आप स्वस्थ मानसिकता वाले लोगों को साथ लेकर चल रही हैं यही हम सब का लक्ष्य है ! घृणित मानसिकता और सीमित सोच वाले लोगों की बातों पर ध्यान भी न दें !
आपके लेख हमेशा समाज के लिए उपयोगी होते हैं ! अच्छे साहित्य सृजन के साथ आप हिंदी के प्रचार प्रसार में जो यागदान दे रही हैं उसे नकारा नहीं जा सकता !
शुभकामनाएं

Arvind Mishra said...

"कृपया उसे सार्वजनिक करें अन्यथा अपनीछिछा लेधर के लिए तैयार रहिये , शायद आपने अभद्रता देखी नहीं है अभी तक ????"
यह लहजा तो निश्चय ही ठीक नहीं है,आपत्तिजनक है-मगर मिथिलेश की मूल टिप्पणी क्या थी?
हम कौवे के पीछे भाग तो लिए मगर अपने कान की सलामती को देखा ही नहीं!
क्या उसे अब प्रकाशित कर सकेगीं? नहीं तो फिर इस पोस्ट को भी लिखने से श्याद परहेज करना था..
मगर यह निर्णय भी आपका ही है -मेरा विचार कोई जरुरी नहीं कि सर्वमान्य हो !

सम्वेदना के स्वर said...

अगर नज़र अन्दाज़ करना सम्भव हो तो इन बातों को नज़र अन्दाज़ करने की कोशिश करनी चाहिये।

ये बातें कहीं नहीं ले जातीं।

rashmi ravija said...

शांतिप्रिय एवं समझदार ब्लोगर्स के पास नीर-छीर विभाजन करने का विवेक है । वो अपनी बुद्धि से किसी के बारे में राय बनाते हैं।

बिलकुल सही कहा...यहाँ सबलोग समझदार हैं...और यह ब्लोग्स्वामी का अधिकार है कि वह अशोभनीय या विषय से हटकर की गयी टिप्पणी को मॉडरेट करे.

अन्तर सोहिल said...

कोई किसी को पढने और टिप्पणी के लिये निमंत्रण नहीं देने जाता है।
"टिप्पणी" यानि किसी दूसरे के शब्द हमारे ब्लॉग पर
"छपें या ना छपें" यह ब्लॉग स्वामी का अधिकार है।

प्रणाम

संजय भास्‍कर said...

ऎसा करना बिलकुल गलत हे,

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

क्यों भाई मिथिलेश जी ? क्या हो गया आपको जो दिव्या जी जैसी विनम्र और क्रन्तिकारी लेखिका के साथ इस तरह का अशोभनीय व्यवहार किया | भैया हम सभी एक डाल के पंछी हैं, प्रेम से चहचहाएंगे तो बड़ा आनंद आयेगा|
इस तरह का लड़ाई-झगड़ा सड़क पर ही होना चाहिए , कलम के मंच पर शोभा नहीं देता |

मेरे भाव said...

aapki bebak tippani aur aapse sahmat hoon.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

दिव्या जी ,
आप इन बेकार की बकवासों से हतोत्साहित न हों , आप होंगी भी नहीं क्योंकि यह आपके स्वभाव में ही नहीं है |
आप जिन ज्वलंत एवं अनछुए मुद्दों पर अपनी धारदार कलम चलाकर उन्हें बहस का विषय बना देती हैं , वहां तक बहुतों की सोच पहुँच ही नहीं पाती | आप हिंदी गद्य को अनवरत समृद्ध कर रही हैं , यह जारी भी रहेगा -कोई भी बाधा इसे रोक नहीं पायेगी |

ZEAL said...

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आदरणीय डॉ आर्विंद मिश्र ,

जो टिपण्णी अनुचित एवं मेरे ऊपर आक्षेप थी और उस समय नहीं प्रकाशित कि गयी जब लिखी गयी थी , तो उसे यहाँ सार्वजनिक करने का अनुरोध कैसे कर सकते हैं आप ?

* क्या अपना अपमान सार्वजनिक करती फिरूं और लोगों से सहानुभूति की भीख मांगू ?
* क्या मेरे पास निर्णय लेने कि शक्ति नहीं है कि क्या उचित है और क्या अनुचित ?
* दुबे जी ने विषय पर एक शब्द भी नहीं लिखा था बल्कि मेरे ऊपर व्यक्तिगत टिपण्णी कि थी ।
* मैं पहले ही स्पष्ट कर चुकी हूँ , की विषय से इतर की गयी व्यक्तिगत एवं अपमानजनक टिपण्णी प्रकाशित नहीं की जायेगी ।
* कोई भी किसी का ग़ुलाम नहीं है । न परिवार में , न समाज में , न ही ब्लॉग जगत में।
* भाषा की महिमा हर किसी कों समझनी होगी । अनर्गल प्रलापों का मेरे लेख पर कोई स्थान नहीं है।
* दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है । मेरे पूर्व के लेखों पर बहुत से लोगों ने विवाद उत्पन्न करके लेख की आत्मा को ही मारने की कुचेष्टा की । इसलिए ईर्ष्यालू एवं विवादी लोगों से दूर रहना ज्यादा पसंद करती हूँ।

Continued..

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ZEAL said...

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इस लेख कों लिखने के लाभ -

* एक तो दुबे जी इस भ्रम में नहीं रहेंगे की उनकी गीदड़-भभकी से कोई डर गया ।
* दुसरे न जाने कितने ही ब्लोगर्स इस तरह की गुंडागर्दी का शिकार होते हैं लेकिन सहन कर लेते हैं । आखिर किसी तो पहल करनी होगी ब्लॉगजगत की इन अभद्रताओं के खिलाफ ।
* इस लेख के लिखने के बाद मुझे उम्मीद है दुबे जी जैसे लेखक किसी को धमकी नहीं देंगे भविष्य में ।
* कभी कभी ऊँट को पहाड़ के नीचे लाकर उसका कद बताना पड़ता है ।
* जो स्त्री समाज में स्त्रियों के स्वाभिमान एवं जागरूकता के लिए लडती है , वो क्या अपने ही अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष न करे ?
* जो स्त्री समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लडती है , वो क्या ब्लॉगजगत में व्याप्त अभद्रताओं को नज़र अंदाज़ कर देगी ? ( Charity begins from home )


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ZEAL said...

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In continuation -

और आपसे बेहतर मुझे कौन जानेगा ? आप ही तो कहते थे - " दिव्या तुम्हारे अन्दर मुझे लेखन की बहुत संभावनाएं दिखाई देती हैं " । ये बात आपने तब कही थी जब मुझे लेखन की A B C तक नहीं आती थी । क्या आज आपको अपने ही वक्तव्य पर शक हो रहा है ?

आपके ब्लॉग पर कभी दिल से टिपण्णी लिखा करती थी । फिर आपने जो किया वो सभी को मालूम है । लेकिन फिर आपने माफ़ी मांग ली तो मेरे दिल में भी कोई द्वेष नहीं है । जब आप यहाँ टिपण्णी करते हैं तो आभार स्वरुप आपके ब्लॉग पर आकर मैं भी टिपण्णी लिखती हूँ , लेकिन अब लाख कोशिश करूँ , दिल से नहीं लिख पाती आपके ब्लॉग पर । ( रहिमन धागा प्रेम का मत तोड्यो चटकाय , टूटे से फिर न जुड़े , जुड़े गाँठ पड़ जाए )

विषयांतर न हो जाए , इसलिए वापस आती हूँ विषय पर --

भाषा की अहमियत बहुत है हम सभी के लिए । अनर्गल प्रलापों को , व्यक्तिगत आक्षेपों को , व्यंग को बखूबी परख सकती हूँ । व्यक्ति के intention और agenda को समझना इतना मुश्किल तो नहीं । इसलिए यदि कोई टिपण्णी मोडरेट करी गयी है तो सोच समझ कर ही करी होगी न ? इतना भरोसा तो आप मुझ पर कर ही सकते हैं।

पिछले छः महीनों मुझे ग्यारह हज़ार टिप्पणियां मिली हैं , यानि मैंने भी असंख्य ब्लॉग्स पर कम से कम इतनी टिप्पणियां तो लिखी ही होंगी । लेकिन आज तक किसी को भी मेरी टिप्पणियों से शिकायत नहीं हुई । हमेशा विषय पर ही लिखा । कोशिश यही रही की विषय के साथ न्याय हो सके और लेखक तथा लेखिका की भावनाओं को ठेस भी न पहुंचे ।

मेरी प्रति- टिपण्णी से यदि आपको ठेस पहुंची हो तो करबद्ध क्षमा प्रार्थी हूँ।

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ZEAL said...

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@ संवेदना के स्वर -

किसी बात को नज़र अंदाज़ करना मेरी फितरत में ही नहीं है । छोटी से छोटी बात भी नज़र अंदाज़ नहीं कर पाती । इसे मेरा दोष ही समझ लीजिये ।

वैसे आपने मेरी पिछली कई महत्वपूर्ण विषयों पर लिखी पोस्टों को नज़र अंदाज़ कर दिया , लेकिन इस पोस्ट को नहीं कर पाए । मुझे दुःख हुआ । आप यदि आते तो आपके बहुमूल्य विचारों से लेख के साथ न्याय भी होता और पाठकों का लाभ भी होता ।

लेकिन शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं बनता । आपके ना आने का दो ही कारण हो सकता है -

* परिवार और नौकरी के कारण व्यस्तता , अथवा
* मेरी किसी टिपण्णी से उत्पन्न नाराज़गी ।


यदि व्यस्तता है तो कोई बात नहीं , लेकिन नाराजगी है तो गुस्सा थूक दीजिये । अपनों से कोई नाराज रहता है भला ज्यादा दिन तक ?

आभार ।

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दिगम्बर नासवा said...

पता नहीं क्या होता जा रहा है ब्लॉग-जगत को ...
अपना अपना काम क्यों नहीं करते सब ...

Manish said...

'अन्यथा अपनीछिछा लेधर के लिए तैयार रहिये , शायद आपने अभद्रता देखी नहीं है अभी तक ????'

ऐसी भाषा का प्रयोग सर्वथा अनुचित है और किसी सज्जन व्यक्ति से तो ऐसी भाषा का प्रयोग करने की आशा नहीं की जा सकती |
टिपण्णी प्रकाशित करना अथवा न करना ब्लोगर का विसेशाधिकार है, उसके लिए धमकियाना तो सर्वथा अनुचित है |

मेरे विचार से ऐसी गुंडा-गर्दी करने वालो का ब्लॉग-जगत को सार्वजनिक- बहिष्कार कर देना चाहिए |
हम सभी ब्लोगर एक परिवार के सदस्यों जैसे है और यह परिवार संस्कारवान- विचारवान और बौद्धिक रूप से सम्पन्न लोगो का है | वैसे भी जिसकी भाषा नहीं सुन्दर हो उसके विचार या लेख कैसे सुन्दर होंगे, क्यूंकि आपकी भाषा ही आपके विचार बताती है और विचार मन में जन्मते है इसलिए सुन्दर भाषा सुन्दर मन का परिचायक है |
किसी को भी किसी पर व्यक्तिगत टिपण्णी नहीं करनी चाहिए | ऐसा आचरण किसी को भी शोभा नहीं देता | और ऐसे आचरण का विरोध किया जाना चाहिए |

सुज्ञ said...

टिप्पणी विचार विनिमय के लिये होती है।
और किसी भी विचार से सहमत असहमत और इग्नोर करने का सभी को अधिकार है।
मोडरेशन तो ब्लॉग-लेखक का सर्वाधिकार सुरक्षित की तरह है।
और टिप्पणीकार के लिये छ्पी तो छपी न छपी तो न सही क्या फर्क पडता है। आवेश में आना उचित नहीं।
उस दशा में जब मांगे गये या आवश्यक स्पष्टिकरण को ब्लॉग-लेखक न छापे तो शालीनता से शिकायत की जा सकती है।

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Amrita Tanmay said...

kya karengi divya jee.. nakli chehre lagakar naari jati ko doyam darja dene vale bahut milenge .. unki geedar-bhabhaki se hamen nahi darna hai.. ham aaj ki hain .int ka jabab patthar se dene ka jajba rakhate hain ..

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० दिव्या जी आप ऐसे लोगों पर आलेख लिखकर उनको और अधिक चर्चित न करिये आपका विशाल पाठक वर्ग है |ऐसे लोगों के विरुद्ध आपको कानून की मदद लेनी चाहिए |हम आपके साथ हैं और ऐसे लोगों की निंदा करते हैं |

दिलबागसिंह विर्क said...

आपका लेख पढ़ा , सारी टिप्पणियाँ पढ़ी , जिस लेख को लेकर यह सब हो रहा है वो भी पढ़ा था , कुलमिलाकर दुःख हुआ इस विवाद को देखकर .
असहमति होना बुरा नहीं है लेकिन ब्लॉग जगत की असहमति का यह तरीका चिंताजनक है और क्या कहूं एक हाइकु कह रहा हूँ ---
जीना तो ऐसे
न डरना किसे से
न ही डराना .
शायद यह आपके और दूबे जी दोनों के लिए है .
आशा है ये विवाद थमेगा . नफरत पहले ही बहुत है जरूरत है तो प्यार की . आओ इसके लिए प्रयास करें

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

डटी रहिये बहन....
आपका ऐसी परिस्थितियों में डट कर मुकाबला करने का गुण ही हम भाई-बहन को कुछ अर्थों में एक सा बनाता है। ऐसे न जाने कितने आएंगे। भड़ास यदि तर्काधारित समीक्षा और आलोचना है तो सार्थक अन्यथा तो बस भौ-भौं ही है अभी हाल ही मे भड़ास पर आपके लिये संजय कटारनवरे नाम के एक बंदे ने लिखा है यदि समय मिले तो देखें। हर अल्ल-बल्ल लिखने वाले को भड़ासी होने का श्रेय मत दीजिये क्योंकि कम से कम ब्लाग जगत में आपका भइया भी भड़ासियों के सरदार कहे जाते हैं :)
सादर
भइया

vijaymaudgill said...

divya ji main aapse sehmat hu. aap ne jo kiya theek kiya. jiski jitni samajh vo utna hi karega aur kahega. bas aap likhti rahiye.
ek aur baat jo in bato se zyada mahatavpuran hai. blog jagat main kai aise digajj hai jinke comments aise jaandaar hote hain ki post ko chaar chand laga dete hain jo hum sab ki soch main izafa karte hain aur sochne ke naye-naye nazariye dete hain ki kaise likha jaye aur kaise kisi ko parha jaye. isliye jo bhi comment karo itna soch kar karo ki vo aapka vyaktitav darshata hai.

Dr.J.P.Tiwari said...

अरे मेरे प्यारे भाई बहनों!
यह कौन सा खेल शुरू हो गया. यहाँ दुबेजी गलत है, उनकी भाषा और शैली शिष्ट नहीं कही जा सकती. लेकिन बहुत हो गया.. कहीं कहीं तो विराम लेना ही पड़ेगा. अछ हो बात यहीं समाप्त किया जाय. एक बात आज जो प्रमादित हुयी वह सुखद है की सत्य के पक्षधर अभी है और रहेंगे. मेरा तो मानना है की दुबे जी भी यदि ब्लॉग जगत में सक्रीय है तो जरूर अच्छ और सम्वेदंस्जील रहे होंगे. मैं उन्हें जानता तो हाही पान्तु मेरी अपनी मान्यता यही है की संवेदी व्यक्ति ही ब्लॉग पाठक और लेखक होता महीन तो किसी को इतनी फुर्सत कहाँ है पढने और लिखने की. आप लोग बुद्धिजीवी है, शांतिप्रियता का परिचय दें. सभी मित्रो से यही अनुरोध है. सम्मान दे और सम्मान प्राप्त करे . ..तथास्तु.

Anupam Karn said...

आपने निर्भीकतापूर्वक उपरोक्त आपत्तिजनक टिप्पणी छापा और ब्लॉगजगत की एक खामी को उजागर किया.
दुबे जी शायद अपनी टिप्पणी न छापे जाने को अपनी मानहानि से जोड़कर देखा और फिर ऎसी टिप्पणी की. ये उनकी अज्ञानता को दर्शाता है क्योंकि टिप्पणी को छापना या न छापना हर ब्लॉगर का अपना अधिकार है.(जैसे उनका अपने ब्लॉग पर)
उम्मीद है दुबे जी ने अपनी गलती को समझा होगा. हिन्दी ब्लॉगजगत एक परिवार की तरह है उम्मीद है ये बरकरार रहेगा!

ZEAL said...

.

आदरणीय भाई , डॉ रुपेश ,

निश्चय ही ध्यान रखूंगी की आगे से भडासी शब्द का किसी भी नकारात्मक जगह पर प्रयोग न करूँ , क्यूंकि ये शब्द बहुत से सम्मानित , निर्भीक , स्पष्टवादी और इमानदार ब्लोगर्स के साथ भी जुड़ा हुआ है । इस तरफ ध्यान दिलाने के लिए आभार ।

.

Giribala said...

ऐसा भी होता है क्या? :-/

सञ्जय झा said...

koi-firk nahi parta......kya kahiye......
.....jane dijiye.......ab bhi sabak lene ke badle
bharak rahe hain......nuksan apna hi karenge......

pranam.

वाणी गीत said...

हर ब्लॉगर टिप्पणी छापने या नहीं छापने का निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है !

aarkay said...

आपसे असहमति का तो प्रश्न ही नहीं.
छापना , न छापना ब्लॉगर का अधिकार है !

Anonymous said...

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