आजकल ब्लॉगर्स एक दुसरे से मुलाक़ात कर रहे हैं ! देश-विदेश, शहरों और राज्यों की दूरियां छोटी हो रही हैं ! दिल मिल रहे हैं ! परस्पर प्रेम वर्षा हो रही है और मुलाकातियों के हृदयों में एक-दूजे के लिय सम्मान उफान पर है ! उनके ब्लौग पर आलेख आ रहे हैं एक दुसरे की शान में ! प्रसन्नता की बात है , लेकिन ऐसा प्रतीत होता है जैसे जो लोग मुलाकातों से वंचित रह जाते हैं उनका अस्तित्व ही नहीं ! मुलाकातियों का गुट बन जाता है , जिसमें अन्य ब्लॉगर्स उपेक्षित रहते हैं ! उनके लेखन का कोई सम्मान नहीं और उनसे किंचित द्वेषपूर्ण व्यवहार भी होता है !
- प्रश्न यह है की क्या सम्मान लेखन को मिलना चाहिए या व्यक्ति को ?
- आत्मीयता सिर्फ मुलाकातों पर निर्भर है क्या ?
- क्या यह गुटबाजी को तो बढ़ावा नहीं दे रहा ?
- क्या यह अन्य ब्लॉगर्स की उपेक्षा का कारण तो नहीं बन रहा ?
- क्या इसके कारण लेखक का फोकस बेहतर विषयों से हटकर गैर जरूरी सोशल-नेटवर्किंग पर तो नहीं केन्द्रित हो रहा ?
मुझे लगता है , मेल-मिलाप हो, प्रेम रहे , सम्मान रहे लेकिन अन्य ब्लॉगर्स को उपेक्षित होने का अहसास न करायें , गुटबाजी न करें और बेहतर लेखन के लिए सम्मान बना रहे!
59 comments:
ब्लॉग लेखन से जुड़ा है। पहले लेखन को सम्मान मिलता है बाद में लेखक को। लेखक के लेखकीय कर्म और व्यक्तिगत स्वभाव में द्वैत है तो वह लेखन ईमानदार नहीं कहा जा सकता। बहुत से लेखकों का सामाजिक दायरा विस्तृत है,लेकिन कुछ अन्य लेखकों का सामाजिक दायरा संकुचित है। कुछ लेखक अपनी सोच और लेखन में एकरूपता बनाए रखते हैं और ऐसे लेखक अपनी विचारधारा के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं चाहते। जो उन्हें अकेला बना डालती है। कुछ लेखक अपने जीवन अनुभवों को सामाजिक संदर्भ में और रोचक ढ़ग से प्रस्तुत करते हैं,ऐसे लेखकों के ब्लॉग को अधिक पसंद किया जाता है।
कुछ लेखक ब्लॉग में भी संगठन को देखना चाहते हैं,यह स्वतंत्र धारा के लेखकों को अनुपयोगी पाता है। निश्चित ही ब्लॉग लेखन में विविधता है,लेकिन कुछ लेखक को उतने पाठक नहीं मिल पाते, जितने कि संगठानात्मक रूप से काम करने वाले ब्लॉगर्स को।
एक अच्छा व विचारणीय मुद्दा ...धन्यवाद !!!
आपने बहुत सही कहा, मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ
:)
Blogger वाणी गीत said...
स्नेह , प्यार और मेल -मिलाप तो ठीक है ,मगर कमेन्ट देने लेने के लिए इसकी अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए ...
कई लोग इसलिए ही आउट डेटेड मान लिए जाते हैं क्योंकि उनकी प्रत्यक्ष मेल मुलाकात में रूचि नहीं होती ! क्या कमेन्ट देने या लेने के लिए ब्लॉगर मीटिंग का हिस्सा बनना जरुरी ही होगा ?
http://www.blogger.com/comment.g?blogID=6340570424549373370&postID=4589932732937615332
अनवर जमाल के मेंढको वाले कुवे को चूने से भर के बंद करने कि कोशिश की है.
.
यह अंदाज़ पसंद आया कल कि चर्चा मंच पे इसे लगा ही देता हूं.
दिव्या जी, "दिल्ली दिल वालों की है" (?), और यह तो 'दिल दा मामला है'!
एक अंग्रेजी की कहावत है. " एक से पंख वाले पक्षी एक जगह एकत्रित होते हैं",,, और शायद अपने अनुभवों का आदान प्रदान करते हों (?)...
जब कव्वों की सभा हो रही हो (जैसा हमने तब आम देखा जब हम बच्चे थे और किसी दिन माली द्वारा मैदान में पानी देने के कारण हमारा फुटबौल अथवा क्रिकेट का खेल संभव नहीं हो पाता था, किन्तु अब ऐसे दृश्य संभवतः दुर्लभ हो गए हैं?) तो क्या कभी आपने उनके बीचे कबूतरों या कोयलों को देखा है ? मुंबई में कबूतरों को केबल पर लम्बी लम्बी लाइन से बैठे देखता था...
हिन्दू मान्यतानुसार ८४ लाख प्राणियों की योनियों से गुजर - सभी रूप रोटी बनाने के लिए आटे की लुगदी समान मिटटी, पानी, वायु, आदि, और शक्ति (अग्नि) के योग से बने,,, और काल-चक्र में प्राकृतिक शक्तियों द्वारा उत्पत्ति के पश्चात जीव आदमी का रूप पाता है,,, केवल अपने परम ज्ञानी निराकार रचयिता को पाने के उद्देश्य से!
किन्तु उसी रचयिता द्वारा प्रकृति में भटकाने वाली शक्तियां भी बनायीं गयी हैं जो 'आम आदमी' को अधिकतर 'परम सत्य' तक पहुँचने में बाधा पहुंचाती हैं, जिस कारण 'संकट मोचन हनुमान' अथवा 'विघ्नहर्ता गणेश', या उनके प्रतिनिधियों, की सहायता आवश्यक है :)
Nice post.
पाताल को जाती हुई हिंदी ब्लॉगिंग का गुज़र दिल्ली के एक कुएँ से हुआ तो उसे कुछ मेंढकों ने लपक लिया और ब्लॉगिंग शुरू करते ही उस पर एक छत्र राज्य की स्कीम भी बना ली । वे चाहते थे कि तमाम हिंदी ब्लॉगर्स की नकेल उनके हाथ में रहे ताकि ब्लॉगिंग में वही टिके जिसे वे टिकाना चाहें और जो उनकी चापलूसी न करे , उसे वे उखाड़ फेंके चाहे वह एक सच्चा आदमी ही क्यों न हो।
आप क्या जानते हैं हिंदी ब्लॉगिंग की मेंढक शैली के बारे में ? Frogs online
दिलों मे सम्मान क्या मेल-मिलाप के बाद उपजता है ?
वैसे तो मेल-मिलाप अच्छा ही है लेकिन हो सकता है किसी के प्रति जो थोड़ी बहुत सम्मान है मेल मिलाप के बाद वह भी जाता रहे इसलिए मैं तो कहता हूँ "अज्ञात प्रेमिका" की भांति ब्लॉग जगत में बने रहें तो अच्छा है,
आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु.
मेल मिलाप अच्छी बात है, ऐसी मुलाकातों का जिक्र अपने ब्लॉग पर संस्मरण आदि के रूप में करने में भी कोई बुराई नहीं है। लेकिन गुटबाजी नहीं होनी चाहिए। किन्तु उपेक्षा से यदि आपका तात्पर्य ऐसे ब्लॉगर्स की टिप्पणियां न मिलने से है, तो मेरे विचार में यह उचित नहीं है। अच्छा लिखने पर टिप्पणियां न मिलना हताशाजनक तो है, पर लगातार अच्छा लिखने वाले पर लोगों की नजर पड़ ही जाती है। जरूरी नहीं कि ब्लॉगर्स सामाजिक रूप से मिले जुलें न ही ऐसा सबके लिए संभव हो पाता है, किन्तु अच्छी ब्लॉगिंग के जरिये भी पहचान बनाई जा सकती है। जहां तक मेरा खुद का सवाल है, मैं सवयं एक अंतर्मुखी प्रकृति का व्यक्ति हूँ, इसलिये सामाजिक स्तर पर अधिक लोगों से मिलने जुलने की मेरी प्रवृत्ति नहीं है, लेकिन मुझे पढ़ने का शौक है इसलिये मैं दूसरों के ब्लॉग पढ़ता हूँ और जो पोस्ट अच्छी लगती है या आपत्तिजनक लगती है उस पर अपनी टिप्पणी देकर दूसरे ब्लॉग पर पहुँच लेता हूँ।
आपका दर्द अपनी जगह ठीक है। मैं भी आजतक कई ब्लागर्स से मिली हूँ लेकिन मैंने उसका प्रचार नहीं किया और ना ही गुट बनाया। इस दिल्ली प्रवास पर भी सौभाग्य से खुशदीपजी और शहनवाज मिलने आ गए, बहुत अच्छा भी लगा। लेकिन हमने यही निश्चित किया था कि इस बात का अनावश्यक प्रचार नहीं करेंगे। लेकिन मैं इतना जरूर चाहूंगी कि तुम जब भी भारत आओ तो कम से कम मुझसे मिलकर जरूर जाओ। वैसे मिलने के बाद कुछ लोग और अच्छे लगने लग जाते हैं और कुछ लोगों के बारे में बना हुआ भ्रम टूट जाता है। मुझे भी डर ही लगता है कि कहीं थेडी बहुत बनी हुई छवि समाप्त ही ना हो जाए।
ब्लोगर मिलन का अर्थ गुटबाजी नही होता वहाँ सिर्फ़ एक दूसरे से परिचय और बढ जाता है । और जहाँ तक लेखन की बात है तो जो सम्मान के लायक होता है उसे सम्मान खुद मिल जाता है उसके लिये गुट बनाने या ना बनाने से कुछ नही होता…………और ना ही ऐसा होता कि जिनसे नही मिल पाये तो उनके लिये सम्मान कम हो जाता है ऐसा कुछ नही होता ।
Q.प्रश्न यह है की क्या सम्मान लेखन को मिलना चाहिए या व्यक्ति को?
@.... लेखन के कारण व्यक्ति सम्मान पाता है.
Q.आत्मीयता सिर्फ मुलाकातों पर निर्भर है क्या?
@ अंश जब अंशी से मिलता है तब वह अपनी अंशीयता भी खो बैठता है अर्थात आत्मा जब वृहत आत्मा (परमात्मा) से मिलता है तब उसे अलगाव की वेदना नहीं रहती ... आत्मीयता (अपनत्व का भाव) लोप हो जाती है.... किन्तु जीव का असमय परमात्मा से एकाकार हो जाना उसके भटकाव का कारण बनता है.
सीधी बात कहता हूँ.. किसी भी व्यक्ति का बिना कारण मिलना आत्मीयता में कमी ला देता है.
सही कहा है आपने .हमें समभाव से योग्य लेखकों और उनके लेखन का उत्साहवर्धन करना ही चाहिए
Q. क्या यह गुटबाजी को तो बढ़ावा नहीं दे रहा?
@ जी, गुटबाजी बढ़ती तो है और ये गुटबाजी तभी की जाती है जब अकेले व्यक्ति में खुद इतनी ताकत नहीं होती कि अपने क्षेत्र में अपने बलबूते स्थापित हो पाये ... एक उदाहरण देता हूँ ... 'साहित्य जगत में अज्ञेय जी के 'तार-सप्तक' प्रयास के बाद इतने अधिक ग्रुप बने कि उनसे ही उनकी पहचान है ... यदि अकेले चलते तो अन्धकार में ही रह जाते ... कमज़ोर लेखन वाले दंद-फंद से, जुगाड़ से , लल्लो-चप्पो से जब एक ऊँचाई नहीं छू पाते तो वे एक गान गाते हैं ......."वक्त की आवाज है मिलके चलो.........."
और वे 'समूह' की जगह 'गुटबाजी' में उलझ जाते हैं. समूह में रहना अच्छा है लेकिन गुटबाजी में एक अन्य विशेषता भी शामिल है "नवोदित को अपने खेमे में खींचने की या विपरीत बहने वाले नवोदित की टांग खिंचायी की.
Q. क्या यह अन्य ब्लॉगर्स की उपेक्षा का कारण तो नहीं बन रहा?
@ पूरी संभावना है ... फिर भी यह शोध का विषय हो सकता है.
अपनी अल्प बुद्धि पर जोर डालते ही, आपके प्रश्नों का उत्तर क्रमश : यथानिम्न देना चाहूँगा :
१ सबसे पहले सम्मान लेखन को मिलना चाहिए
२ शायद ऐसा है पर होना नहीं चाहिए
३ लगता तो कुछ ऐसा ही है
४ प्रत्यक्ष या परोक्ष उपेक्षा हो रही है
५ आपका सोचना बिलकुल सही है
अपनी भी यही हार्दिक इच्छा है कि "मेल-मिलाप हो, प्रेम रहे , सम्मान रहे लेकिन अन्य ब्लॉगर्स को उपेक्षित होने का अहसास न करायें , गुटबाजी न करें और बेहतर लेखन के लिए सम्मान बना रहे! "
बहुत अच्छे प्रश्न उठाये हैं दिव्या जी !
Q. क्या इसके कारण लेखक का फोकस बेहतर विषयों से हटकर गैर जरूरी सोशल-नेटवर्किंग पर तो नहीं केन्द्रित हो रहा ?
@ इस बात को मुझसे बेहतर वरिष्ठ ब्लोगर समझ सकते हैं... मैं तो केवल उन विषयों को तवज्जो देता हूँ जिनसे आंदोलित होता हूँ बाद में उस विषय के जन्मदाता से वास्ता जोड़ता हूँ.
संपर्कों के तीव्रगामी युग में मिलना तब ही हो जब रहा न जाये, और पठनीय विषयों के चयन की वृत्ति "सार-सार को गही रहे, थोथा देय उडाय" रीति से होनी चाहिए.
no comment....
jai baba banaras...
हमेशा की तरह बेहतरीन विषय और विचारणीय प्रस्तुति ...जिस पर सबकी अपनी-अपनी राय हो सकती है ..आभार ।
मुझे लगता है , मेल-मिलाप हो, प्रेम रहे , सम्मान रहे लेकिन अन्य ब्लॉगर्स को उपेक्षित होने का अहसास न करायें , गुटबाजी न करें और बेहतर लेखन के लिए सम्मान बना रहे!
यह सटीक बात है ... ब्लॉगर की पहचान उसके लेखन से और दी जाने वाली टिप्पणियों से होती है ... सम्मान या प्रेम के लिए मिलना कतई ज़रुरी नहीं ..पर यदि मौका मिले और मुलाक़ात हो तो बुराई भी कोई नहीं ...
Aapkee chinta sahee hai.....lekin mere vicharse har jagah gutbazee nahee hotee....shayad kaheen,kaheen ho jatee hai.
BAHUT HI ACCHE VISAY KE BAARE ME LIKHA HAI HAME LEKHAN KO MAHATV DENA HAI AADMI KO NAHI
मिलना जुलना तो मनुष्य की प्रवृति है , चलता रहेगा , गुटबंदी के लिए इसका प्रयोग तो अनुचित ही होगा
mel milap theek hai lekin bina mel milap ke bhi blogger ek-doosre ke rachnaatmk roop se nazdeek ho skte hain aur ye mel milap se jyada jroori hai
बहुत ही वैचारिक पोस्ट डॉ० दिव्या जी आभार
पुनश्च :
अजित गुप्ता जी का डर भी जायज़ है . मुलाक़ात के बाद आंकलन वस्तुपरक न हो कर वैयक्तिक हो जाता है . इसमें. अत्यधिक प्रेम या अकारण घृणा , नापसंदीदगी , दोनों की ही सम्भावना रहती है. मुझे तो लेखन के ज़रिये ही रूबरू होना अच्छा लगता है !
मिलना-मिलाना हमेशा ही सुखद एहसास दिलाता है, अनेकों विचारों का आदान-प्रदान होता है... लेकिन अगर कोई किसी कारण मिल ना पाए तो भी कोई बात नहीं....
जहाँ तक बात गुटबाज़ी की है, तो मैं तो सभी गुटों में शामिल हूँ, या यूँ कहूँ कि गुटबाजी में विशवास ही नहीं करता हूँ... बस "जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए" तर्ज़ पर...
विचारणीय मुद्दा....
आपने मेरे दिल की बात कह दी है........१००% सहमत हूँ आपकी साड़ी बातों से........ब्लॉगजगत भी राजनीती की गंदगी से भरा जा रहा है.......
और लोगो का नहीं पता...पर मैं तो काफी लोगो से मिल चुकी हूँ...ब्लॉग पर मिलने का जिक्र भी किया...फोटो भी लगाए...पर ना मिलने के पहले टिप्पणियों के आदान-प्रदान या गुटबाजी जैसी कोई बात थी ना मिलने के बाद....
बस दोस्ती की वजह से मिले
दिव्या जी ,
मिलना-मिलाना हर एक के लिये संभव नहीं होता .जिन्हें ऐसे अवसर और सुविधायें प्राप्त हैं वे उनका आनन्द लें .जिन्हें नहीं हैं उन्हें अपने लेखन पर ही संतोष करना पड़ेगा - महत्व मिले या न मिले !
आपको तो फिर भी पढ़नेवाले बहुत हैं .ठीक है ,सबकी अपनी-अपनी सामर्थ्य !
छड्डो जी
बस दिल साफ़ होणा चाहिदा ..
bilkul theek kaha aapne.. I have not met any of the bloggers so far but i do respect all who i read and respect what they write , yes i have reservations and we argue but thats individual views.
but as you say it is ttrue that there is no goupism etc but i dont understand about politics coming in blogging .. how ..
I am happy and fine with everyone I joke and talk with everyone the same way as i do with people whom i read the first time or who i read today first time ..
and in case this happens then it jsut shows their mentality , got nothing to do with me ..
I visit everyone and comment on all i go they come ot my blog or not its their LOSS :)
Bikram's
इसमें कोई सन्देह नहीं कि रूबरू मुलाकात से परिचय बढ़ता है, कदाचित प्रेम भी पनपता और बढ़ता है फिर भी लेखन की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता .
गुटबाजी वही लोग करते हैं जिन्हें अपने अस्तित्व में कुछ अभाव अथवा अवकाश प्रतीत होता है . जो लोग भीतर से भरे होते हैं वे न तो गुटबाजी करते हैं और न ही ऐसा करने वालों की परवाह करते हैं
अपनी क्षमता अनुसार सृजन करना और सबके साथ स्नेहसिक्त व्यव्हार रखना ही श्रेयस्कर है
ठीक तो है!
स्तुति के बाद प्रार्थना और फिर उपासना!
तीनों शब्दों की व्याख्या फिर कहीं पर करूँगा!
मुझे तो ये आशंकाएं निराधार लगती है| गुटबाजी तो बिना मिले भी हो सकती है|
way4host
विचारणीय मुद्दा है।
1.सम्मान लेखन को मिलना चाहिए। लेखन की गुणवत्ता से लेखक सम्मान का पात्र हो ही जाएगा।
2.आत्मीयता सिर्फ मुलाकातों पर ही निर्भर नहीं है।
3.आंशिक रूप से ।
4.शायद, लेकिन अन्य ब्लॉगर्स को चाहिए कि वे स्वयं को उपेक्षित महसूस न करें ।
5.कुछ दिनों के लिए ऐसा हो सकता है।
अन्ततः लेखन ही सर्वोपरि हो।
जी नहीं दिव्या जी । कोई किसी से मिलने का प्रयास तभी करता है जब उसके लिए दिल में सम्मान होता है । मिलने के बाद छवि और भी बेहतर हो सकती है या धूमिल भी हो सकती है । आभासी दुनिया में लेखन के आधार पर ही पसंद नापसंद बनती है । इसमें किसी को उपेक्षित महसूस करने की तो बात ही नहीं आती । और न ही यह गुटबाजी है ।
ब्लोगिंग भी एक सोशल-नेटवर्किंग ही है जहाँ ज़रूरी नहीं कि हर वक्त मुद्दों पर ही बात करते रहें ।
ब्लोगर मीट के बजाय व्यक्तिगत मुलाकात ज्यादा उपयोगी साबित होती हैं , ऐसा मेरा मानना है ।
जो अपनी समझ में २००५ में आया था, वो ब्लौगिंग का सत्य ("सत्य कटु होता है") यह है कि 'बिके हुए' समाचार पत्रों / टीवी से सही समाचार अथवा सूचना न मिलने के कारण जनता ने, परेशान हो, इन्टरनेट पर यह सुविधा उपलब्ध होने से एक क्रांति सी आरंभ हो गयी...
किन्तु जो मुझे पिछले ६ वर्षों में दिखाई दिया, कुछ ही वर्षों में अनेक ब्लौगर लिखना छोड़ते चले गए, क्यूंकि उनके पास अब कुछ 'नया' अथवा 'लाभदायक' माल बेचने को नहीं रह गया था (ज्ञानी प्राचीन 'हिन्दू' कह गए कि यह संसार एक झूटों का बाज़ार है, यहाँ केवल झूट ही बिकता है), और वे सूखे हुए झरने समान रह गए थे :(
पहले जो प्रत्येक सप्ताह में पोस्ट करते थे अब वो महीने महीने तक पोस्ट नहीं करते, या करते भी हैं तो अन्य किसी व्यवस्था में दिखने वाले दोषों पर लिख रहे हैं, और दूसरों से अपेक्षा कर रहे हैं कि वो इतने शक्तिशाली राजनैतिक तंत्र को तोड़ डालें!... जबकि दूसरी ओर वो भी हिन्दू ही थे जो कह गए कि काल-चक्र उल्टा चलता है :)
जैसा मैंने कुछेक को कहते हुए सुना, आज का जवान महात्मा गांधी को मूर्ख कहता है क्यूंकि वो लंगोटी पहन और लाठी लिए घूमते रहे और अंत में, ('शोले' में गब्बर की याद दिलाते), उन्होंने गोली भी खाई! क्यूंकि इतनी भीड़ है और परेशान हैं, कुछ फिर भी मिल ही जायेंगे जो किसी 'बाबा' अथवा 'नेता' से उम्मीद रख उसके पीछे चल पड़ेंगे... किन्तु अधिकतर को तो अभी तक निराशा ही हाथ लगी हैं... आशा करते हैं कि 'कृष्ण', 'मन मोहन', अपना मानव व्यवस्था को अंततोगत्वा सही करने का वादा शीघ्र निभायेंगे, क्यूंकि आशा पर ही 'जीवन' निर्भर है :)
हम तो स्वान्तय सुखी के लिए लिखते हैं उसी के लिए मिलते हैं
सूरदास ,तुलसीदास , रहीम ,कबीर ,बिहारी को किसने देखा पर अंततः रचना और कॄतियों को ही यश और सम्मान मिला ना ।
लेखन की गुणवत्ता का ही सम्मान होना चाहिये ।
तर्क वितर्क अच्छे चल रहे हैं और सभी विचारकों को पढने में मज़ा भी आ रहा है .
रचना जी भी इसी विषय पर काफी कुछ कह रही हैं बिना लाग लपेट के .
नहीं ऐसा नहीं है कि केवल मुलाकातों से ही दिल में सम्मान उमड़ता है| ब्लॉग जगत में व्यक्ति से अधिक लेखन महत्वपूर्ण है| हाँ बातचीत होने पर व्यक्तिगत सम्बन्ध बन सकते हैं, जो कि बुरा नहीं है| किन्तु इसका असर ब्लॉग जगत पर नहीं पड़ना चाहिए| गुटबाजी को इसीलिए यहाँ नकारा जाना चाहिए|
वहीँ दूसरी ओर यदि किसी स्वच्छ उद्देश्य के लिए गुटबाजी हो रही है तो इसे सकारात्मक रूप से भी लिया जा सकता है| किन्तु इस गुटबाजी का भी असर इस ब्लॉगजगत पर न ही पड़े तो उचित होगा|
जैसा कि आशुताश भाई ने लिखा कि "हम तो स्वान्तय सुखी के लिए लिखते हैं उसी के लिए मिलते हैं"
इसी विचारधारा के चलते मैं भी उनसे व उनके जैसे कई अन्य ब्लॉगर मित्रों से मिला व बातचीत भी करता रहता हूँ| यह एक उद्देश्य की पूर्ती के लिए किया जा रहा है| हाँ यह भी सच है कि हम लोग व्यक्तिगत रूप से एक दुसरे से काफी जुड़ गए हैं किन्तु इसका असर ब्लॉग जगत पर नहीं पड़ने देते| किसी को पता भी नहीं है कि इस दुनिया में किन किन लोगों से मैं व्यक्तिगत रूप से मिल रहा हूँ अथवा बातचीत करता हूँ|
जहां तक सम्मान की बात है तो इस आभासी दुनिया में लेखक के लेखन से ही उसकी छवि निर्धारित की जाती है| अत: सम्मान भी लेखन का होना चाहिए| बातचीत करने पर एक दुसरे के बारे कुछ ओर जानने का अवसर मिलता है, किन्तु वह एक अलग बात है|
अत: आपके विषय का पूरी तरह समर्थन करते हुए मैं ब्लॉग जगत में स्वार्थवश की गयी गुटबाजी को पूरी तरह नकारता हूँ|
सहमत हूँ आपसे...
कुछ हद तक सही भी है ! दिखावे की दुनिया ज्यादा ! संतुलन बनानी चाहिए !अन्यथा एक तरफ प्यार तो दूसरी तरफ कुंठा साथ - साथ जन्म ले लेंगे ! और इसके परिणाम घुश और कालाबाजारी जैसा ही दिखेगा !
Agreed in totality,what I have felt in last one year of my introduction is that we live in a false world of garlanding each other,most of the times writer becomes important than writing.If one understand this the problem is solved.One should write what the heart feels and not by design.
you have expressed it nicely
Though keeping with the time,I should have added "as always"also
विचारणीय और सार्थक प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
दिव्या जी आप गुटनिर्पेक्ष आंदोलन का नेहरू जी की तरह नेत्रुत्व कीजिये।
वैसे जहां तक सम्मान और समारोह की बात है एक्त्रित हुये बिना ब्लाग जगत को स्थापित करना असंभव है। खास बात है किसी भी पुरूस्कार की चयन प्रक्रिया के बेदाग और सार्वजनिक होने से ही उसका महत्व बना रहता है।
अपने को माटी का पुतला जान, में एक अन्य ब्लॉग में लिखी टिप्पणी आपके ब्लॉग में भी दे रहा हूँ - जिसको पढना होगा वो पढ़ लेगा :)
अब प्रश्न यह उठ सकता है कि क्या जो मानव व्यवस्था के किसी भी, और प्रत्येक अंश में, दोष दिख रहे हैं, जबकि विद्वानों द्वारा सदियों से कानून आदि निरंतर बनाये जाते चले आ रहे हैं उन पर शत प्रतिशत कार्यान्वयन संभव क्यूँ नहीं हो पाता है?...
कह सकते हैं कि दोष आम आदमी की, प्रत्येक व्यक्ति की, विभिन्न ग्रहण क्षमता को जाता है, यानि अज्ञानता को जाता है...
उदाहरण के लिए, किसी भी कक्षा में एक ही विषय पर गुरु एक बड़ी संख्या में बच्चों को एक ही पुस्तक से पढाता है... वर्ष के अंत में, या कभी भी, वो प्रश्न पत्र बनाता है... और जब अंक प्रदान करता है तो आप किसी भी काल और स्थान में पाएंगे कि कुछ थोड़े बच्चे ०% अथवा इसके निकट अंक पाते हैं, कुछ १००% के निकट, और अन्य शेष किसी औसत संख्या के आस पास... जिसे एक 'वैज्ञानिक' ही शायद कह सकता है कि मानव प्रकृति के नियंत्रण में है, किन्तु कहता नहीं है!
शायद यह भी डिजाइन कि विशेषता है और 'हम' दोष कठपुतली का मानते है, अथवा दुर्भाग्य का!
अब प्रश्न यह भी उठ सकता है कि प्रकृति अथवा परमेश्वर अपनी ही सृष्टि में, विशेषकर मानव रुपी मिटटी के अस्थायी पुतलों में अनादि काल से क्या खोजता चला आ रही/ रहा है ?
अभी इस मामले से हम दूर ही हैं.. "राही चल अकेला" वाली तर्ज पर
मेरे ख्याल से आपसी मुलाकात से एक दूसरे को नजदीक से जानने का मौका मिलता है ,रिश्ते और गहरे हो जाते हैं ।
बिना ऊपर की टिप्पणियों को पढ़े यानी उनसे बिना प्रभावित हुए आपने बात कह सकता हूं, कहना चाहता हूं।
मिलना-मिलाना बहुत ही , मेरा निजी मामला है। कइयों से मिला हूं। कुछ जो कोलकाता आते हैं, यहा मिल लेते हैं, कुछ उनके शहर मैं जाता हूं, मिल लेता हूं। उनमें से कुछेक के बारे में लिखा भी तो बस एक पात्र समझ कर। इसलिए नहीं कि उनसे मुझे टिप्पणी चाहिए या कि उनको मैं टिप्पणी देने ही जाऊंगा।
आपने बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है , ये चिंतन का विषय है . क्योंकि लेखन शायद कही पीछे रह जाता है ...
बधाई
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
thought provoking post....thanx
:)
टिप्पणी चाहे दें न दें आपको पढ़ने का मोह नहीं छूटेगा...पढ़ने का मौका नहीं छोड़ते चाहे पोस्ट और टिप्पणी लिखने का वक्त न मिले..
मिलना जुलना बुरा नही लेकिन गुट बनाना गलत कहुँगी..बेहतर लेखन के लिए सम्मान तो मिलना ही चाहिए....
"ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ कोब्लॉगर्स मीट वीकली (3) Happy Friendship Day में आप आमंत्रित हैं /
लेखन पर ध्यान देना ही अच्छी बात है.मिलने में यदि बनावटीपन और दिखावा ही हो और गुटबाजी हो,उससे किसी की उपेक्षा होती हो तो वह किस काम का.लेखन से ही दिल और दिमाग का मिलन हो जाता है.
अब देखिये ने हमने तो कितनी बार आपके ब्लॉग पर आपकी थाईलैंड की पार्टी का आनंद उठाया है.ऐसे ही मिलन आयोजित करती रहिएगा.
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