जब संविधान बना था तो दलितों को आरक्षण देने का प्राविधान मात्र १० वर्षों के लिए किया गया था, उसके बाद इसे हटा दिया जाना था, लेकिन गन्दी और सस्ती राजनीति करने वाले नेताओं ने इस आरक्षण को अपनी महत्वाकाक्षाओं को पूरा करने की सीढ़ी बना लिया। हिन्दुओं को बाँटने के लिए दलित को लगातार ये एहसास दिलाया की वो शोषित है और उस पर जुल्म हो रहा है । लेकिन अफ़सोस की बात तो ये हैं की दलितों का एक बड़ा तबका जो इस आरक्षण से लाभान्वित हो चुका है , वो आपस में ही राजनीति कर रहा है और आरक्षण का लाभ अन्य दलितों तक पहुँचने ही नहीं दे रहा और इसका खामियाजा भुगत रहे हैं बहुसंख्यक।
सरकार को किसी की भलाई से कुछ नहीं लेना देना, वो तो बस वोट-बैंक बनाने के लिए एक को लाभ देगी और एक का खून पीयेगी। सोचना तो आपको स्वयं ही होगा।
इज्ज़त के साथ जीना है तो आरक्षण का विरोध करो।
Zeal
10 comments:
आओ फूट डालें राज करें ,खेलें आरक्षण -आरक्षण ,
फिर एक कबीलाई समाज बनाएं बांटे देश को छोटी छोटी रिस्तों में ,
३०१ पाकिस्तान बनाएं ,
पटेल सरदार को अपनी गलती का एहसास कराएं ,
बहुत सही कहा..
फुट डालो और राज करो की निति अपनाई जा रही है !!
आरक्षण के पीछे सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है,
इसका फायदा बहुत कम है...
अपने समाज मिएँ ये तो लंबे समय से होता आया है ...
वास्तव में वैधानिक तौर पर अब कोई भी वर्ग भारत में शोषित नहीं है। सभी को अपनी प्रगति के लिये परिश्रम तो करना ही चाहिये। जाति के आधार पर यदि आरक्षण दिये जायें तो निस्संदेह आरक्षित वर्ग दूसरे वर्गों की अपेक्षा विशिष्ट वर्ग बनता चला जाये गा। परिणाम स्वरुप अब अधिक से अधिक वर्ग अपने आप को शोषित तथा उपेक्षित साबित करने में जुटते जा रहै हैं।
धर्म निर्पेक्षता की आड में अब मुस्लिम तथा ईसाई भी अपने लिये आरक्षण की मांग करने लगे। वह भूल गये कि बीते कल तक वह हिन्दू धर्म को जातिवाद के कारण बदनाम कर हिन्दूओं को अपने धर्म परिवर्तन का प्रलोभन इस आधार पर दे रहे थे कि उन के धर्म में सभी जातिवाद रहित और बराबर हैं। यह दोगली नीति आरक्षण नीति की उपज है जिस के कारण हिन्दू समाज को अकसर बलै्कमेल किया जाता है।
अहिन्दू धर्म धडल्ले से प्रचार करते रहै हैं कि उन के धर्म में जाति के आधार पर कोई भेद भाव नहीं किया जाता। यदि उन के इसी प्रचार को सत्य माने तो जो हिन्दू अपना धर्म छोड कर ईसाई या मुस्लिम परिवर्तित हों जाते हैं उन को आरक्षण का लाभ बन्द हो जाना चाहिये क्यों कि उन्हें तथा कथित हिन्दू शोषण से मुक्ति मिल जाती है। नये धर्म में जाने के पश्चात उन की प्रगति तो बिना परिश्रम अपने आप ही हो जाये गी।
देश को भी
आरक्षण की
जरूरत है
विश्व समुदाय में
आईये
यू एन ओ में
आवेदन करें ।
अब भारत के नेताओं को विश्व स्तर पर आरक्षण की बात करनी चाहिए...अग्रेजों ने हमारा शोषण किया...इस लिए वो आगे निकल गये...अब पहले हमें उन्हें अपने बराबर लाना है...फिर रेस शुरू करना...अमेरिका और जापान में पैदा व्यक्ति हमसे आगे कैसे रह सकता है...पूरी दुनिया को बराबरी का हक है...विश्व के सारे दलित-पिछड़ों एक हो...पूरी दुनिया में सामान व्यवस्था की स्थापना ही लक्ष्य होना चाहिए...हर देश, हर कौम अपने आपको दूसरे से ऊपर समझती है...क्या अन्य देशों में सारी बिरादरियां बराबर मानी जातीं हैं...क्या वहां जातिगत आधार पर आरक्षण है...मेरे एक दलित मित्र अपने सवर्ण मित्रों से उसी तरह पेश आने की कोशिश करते हैं...जैसे उनके गाँव में पंडित या ठाकुर उनसे करते रहे होंगे...मैंने कहा प्रभु आज आप पावर में हो तो कृपा करके वैसा व्यवहार ना करो...जैसा तुम अपने लिए पसंद नहीं करते...
जातिगत आरक्षण की जगह यदि हम देश को ही आरक्षण दिलाएं और विश्व-स्तर पर अपने राष्ट्र की पहचान बनाएं, तो बेहतर होगा। चलिए यु एन ओ चलकर आवेदन लागायें।--बहुत अच्छी लगी यह बात।
यही तो हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है देश बँटता जा रहा है और सरकार बस कुर्सी बचाने के चक्कर में लगी रहती है
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