हमने ये तो सुना है की ऊर्जा का ह्रास नहीं होता । सिर्फ़ इसका स्वरुप बदलता है । Kinetic ऊर्जा potential में बदलती है और जरूरत पड़ने पर वापस उसी स्थिति आ जाती है। पानी से बिजली बना सकते है । गोबर से गैस । और तरह तरह से ऊर्जा का संरक्षण कर सकते हैं
तो क्या हमारी education कभी waste हो सकती है ? क्या ऊर्जा की तरह शिक्षा का भी विभिन्न स्वरूपों में इस्तेमाल नहीं होता ? क्या हमने जो डिग्री अर्जित की है , उसका पूरा-पूरा उपयोग न होने की स्थिति में वो बर्बाद या नष्ट हो जायेगी ? क्या हमारी शिक्षा जीवन के प्रत्येक कार्य में उपयोगी नहीं है? यही शिक्षा हमारा मनोबल नहीं बढाती ? क्या शिक्षा हमारे एनालिटिकल गुण को नहीं बढाती ? क्या वक्त बेवक्त हमारी शिक्षा दूसरों के काम नहीं आती ? क्या एक शिक्षित माँ बच्चों का पालन पोषण बेहतर ढंग से नहीं करती । क्या शिक्षा हमें जागरूक बनने में मदद नहीं करती ? क्या एक शिक्षित नारी , अपने घर परिवार का बेहतर संचालन नहीं करती ? क्या एक शिक्षित व्यक्ति समाज के लिए ज्यादा उपयोगी नहीं है ?
क्या शिक्षा तभी फलदायी है , जब हम अपनी अर्जित डिग्री द्वारा धनार्जन करते हैं? क्या उसी डिग्री द्वारा किसी की निस्वार्थ सेवा करना गलत है ? क्या अर्जित धन ही शिक्षा की उपयोगिता सिद्द करता है ?
मेरे विचार से शिक्षा कभी बर्बाद नहीं होती। , कभी नष्ट नहीं होती। शिक्षा स्वयं के लिए भी वरदान है, दूसरों के लिए भी और एक स्वस्थ समाज बनाने के लिए भी ।
वैसे आपकी क्या राय है । क्या education बेकार जा सकती है ?
तो क्या हमारी education कभी waste हो सकती है ? क्या ऊर्जा की तरह शिक्षा का भी विभिन्न स्वरूपों में इस्तेमाल नहीं होता ? क्या हमने जो डिग्री अर्जित की है , उसका पूरा-पूरा उपयोग न होने की स्थिति में वो बर्बाद या नष्ट हो जायेगी ? क्या हमारी शिक्षा जीवन के प्रत्येक कार्य में उपयोगी नहीं है? यही शिक्षा हमारा मनोबल नहीं बढाती ? क्या शिक्षा हमारे एनालिटिकल गुण को नहीं बढाती ? क्या वक्त बेवक्त हमारी शिक्षा दूसरों के काम नहीं आती ? क्या एक शिक्षित माँ बच्चों का पालन पोषण बेहतर ढंग से नहीं करती । क्या शिक्षा हमें जागरूक बनने में मदद नहीं करती ? क्या एक शिक्षित नारी , अपने घर परिवार का बेहतर संचालन नहीं करती ? क्या एक शिक्षित व्यक्ति समाज के लिए ज्यादा उपयोगी नहीं है ?
क्या शिक्षा तभी फलदायी है , जब हम अपनी अर्जित डिग्री द्वारा धनार्जन करते हैं? क्या उसी डिग्री द्वारा किसी की निस्वार्थ सेवा करना गलत है ? क्या अर्जित धन ही शिक्षा की उपयोगिता सिद्द करता है ?
मेरे विचार से शिक्षा कभी बर्बाद नहीं होती। , कभी नष्ट नहीं होती। शिक्षा स्वयं के लिए भी वरदान है, दूसरों के लिए भी और एक स्वस्थ समाज बनाने के लिए भी ।
वैसे आपकी क्या राय है । क्या education बेकार जा सकती है ?
75 comments:
Dearest ZEAL:
Nice post.
Semper Fidelis
Arth Desai
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@- Ethereal ,
The post is not at all nice if it fails to stir some thoughts in an educated person like you.
The post contains so many questions, but unfortunately you didn't feel like answering them or even pondering over them .
Do you comment just for marking your presence here ?
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मेरे विचार से शिक्षा कभी बर्बाद नहीं होती। , कभी नष्ट नहीं होती। शिक्षा स्वयं के लिए भी वरदान है, दूसरों के लिए भी और एक स्वस्थ समाज बनाने के लिए भी ।
Agree with you. Very- very useful & meaningful post for all.....
Thanks....
शिक्षित और साक्षर इन दोनों शब्दों में बहुत अंतर है , साक्षर व्यक्ति वो है जिसने डिग्रियां तो प्राप्त की हैं, पर उसका कोई दृष्टिकोण नहीं है ..दूसरा शिक्षा का सम्बन्ध डिग्रियों से नहीं समझ से है ...समझदार व्यक्ति को शिक्षित कहा जा सकता है ...और शिक्षा कभी बेकार नहीं जाती
aapse sahmat hoon, shiksha ke bina insan ka koi wajood nahin hai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
ज्ञान का डिग्री से क्या सम्बन्ध ?
ज्ञान ही हमें और जीवों से श्रेष्ठ और अलग करता है बशर्ते "ज्ञानी" ज्ञान का दुरुपयोग न करें !
शुभकामनायें दिव्या !
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@ केवल राम,
निसंदेह समझदारी एक अच्छा एवं उपयोगी गुण है।
लेकिन यहाँ बात अर्जित EDUCATION की हो रही है। बहुत से लोग जो डिग्री हासिल कर चुके हैं लेकिन उसका उपयोग धनार्जन में नहीं कर पा रहे हैं , तो क्या उसे व्यर्थ कहा जाना चाहिए ? क्या वही शिक्षा हमारे अन्य कार्यों में परिलक्षित नहीं होती ? क्या धन अर्जित न हो सके तो वो उपयोगी नहीं रह जाती ?
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डॉ सतीश सक्सेना ,
अक्सर लोग सहानुभूति जताते हुए मिलते हैं की अपनी शिक्षा बर्बाद मत होने दो। कुछ करो, अर्थात धनार्जन करो अपनी अर्जित डिग्री से। मैंने इसी सन्दर्भ में ये प्रश्न रखा है सामने , की क्या धनार्जन न होने की स्थिति में शिक्षा से अर्जित ज्ञान, आत्मविश्वास और जागरूकता सभी व्यर्थ है ?
ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता, मेरा इसमें अटूट विश्वास है..
डॉ ???
यह पूंछ किस लिए ??
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डॉ सतीश,
आत्मविश्वास तोड़ने वाले बहुत मिले, शायाद इसीलिए ये पूछ हो । शायद खुद को सांत्वना देने लिए ।
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बिलकुल बीकार नही जाती शिक्षा। केवल राम जी से सहमत हूँ। शुभकामनायें।
..
क्या शिक्षा द्वारा अर्जित ज्ञान कभी बेकार जाता है ?
@ शिक्षा द्वारा सप्रयास अर्जित ज्ञान है :
[१] अर्थोपार्जन की समझ, जीविकोपार्जन की योजनायें, स्वयं के सुखद जीवन की कल्पनाएँ;
[२] परहित के भाव, कल्याणकारी कार्यों में योगदान, अन्योन्याश्रितता की समझ, पारस्परिक संबंध निर्वाह.
[३] बेहतर बनने की चाह, प्रतिस्पर्धा में अव्वल आने की तमन्ना, अधिक से अधिक जानकारियों की भूख.
शिक्षा द्वारा अप्रयास [ बिन प्रयास] अर्जित ज्ञान है :
[1] क्रमतर शिक्षा हमें छोटे दायरों से निकाल बड़े दायरों में ले जाती है.
[२] हमारा दृष्टिकोण विस्तार लेता जाता है. हम संकुचितताओं से बाहर निकलते हैं. कुछ कुंठाओं को छोड़ पाने की हिम्मत पाते हैं.
[३] मनोबल, धैर्य, संतुलन, आत्मविश्वास जैसे भाव-मनोभावों का अनायास ही अनुभव करने लगते हैं.
क्या शिक्षा अनुपयोगी हो सकती है कभी ?
@ हाँ, कभी-कभी.
— जिसने केवल शिक्षा का उद्देश्य डिग्री जुटाना और उससे आर्थिक सबलता हासिल करने को ही 'सफलता' माना है. उनके लिये शिक्षा वैयक्तिक स्तर पर तो उपयोगी है. परन्तु ऐसे लोगों से शिक्षा से मिलने वाले बिना-प्रयास वाले गुण पीछे छूट जाते हैं.
— परिवेश और परिस्थितियाँ यदि केवल तनाव में रखें, मिलने वाले और सम्बन्धी जन केवल हतोत्साहित ही करते रहें तो अच्छे-खासे डिग्रीधारी के दिमाग में भी जंग लग जाती है. तब समस्त शिक्षा अनुपयोगी साबित होती है. आजकल गृह-कार्यों में ही व्यस्त रहने वाली अधिकांश गृहणियों का यही हाल है.
.......... वैसे यह सत्य है कि शिक्षा अनुपयोगी तो नही होती केवल इस्तेमाल न होने से समाज और परिवार में व्यक्ति का महत्व और सम्मान घटा देती है.
..
शिक्षा कभी बेकार नही जाती,
ये शिक्षा और ज्ञान ही है जो मनुष्य को दुसरे जीवो के श्रेष्ठ करता है
किसी भी प्रकार की शिक्षा या ज्ञान (जरूरी नही धनोपार्जन के लिए ही हो) कही ना कही
काम जरूर आता है।
इसका मै आपको एक उदाहरण देता हँू मैने 1998 मे यूं ही शौक शौक मे उर्दू पढी थी,
पुरा परिवार एवं यार दोस्त भी मेरे उर्दू पढने पर एतराज करते थे। पर मै लगा रहा और
उर्दू मे इण्टर पास किया। कुछ साल तो उर्दू का कोई काम न पडा तो मुझे लगा कि उर्दू
पढना बेकार गया परन्तु जब मैने 2007 मे अपने गाँव मे दुकान (शादी कार्ड प्रिंटिंग आदि) खेाली तो मझे सबसे ज्यादा काम उर्दू मे ही करने को मिला।
डिग्री तो खरीदी जा सकती है .ज्ञान हमेशा सदमार्ग की और ले जाता है ... आभार
aap apne sare prashno me se 'nahi' ko nikal de....
mere pratiuttar yahi hai......
pranam.
डिग्री और शिक्षा दो अलग बातें हैं इस बात से एकदम सहमत हूं।
कई बार तो डिग्रीयों का ये खेल अहंकार को पोसता सा लगता है।
शिक्षा बहुत बहुआयामी बात है, मेरी दृष्टि में जो जीवन को सरल और प्रेमपूर्ण बनाने में सहायक हो वह शिक्षा ही भली है।
हम कितने शिक्षित हैं इसको जानने के तीन parameter मै तो यह मानता हूं :
1. चित्त की शांति
2. समष्टि के प्रति करुणावन व्यवहार
3. भावात्मक असुंतलन से मुक्ति
बिलकुल बेकार जा सकती है जी.
ब्लौग जगत में ही देखिये कितने विद्वान लोग हैं. कुछ लोग तो PhD हैं पर दूसरों के धर्मों और आचरणों में उन्हें खोट ही नज़र आते हैं.
यहाँ ज्ञान से मेरा अभिप्राय पढाई-लिखाई द्वारा अर्जित ज्ञान से है. वास्तविक ज्ञानियों के लिए डिग्रियां मायने नहीं रखतीं.
सतीश सक्सेना जी से सहमत कि ज्ञान का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए.केवल डिग्री को ही ज्ञान और धनार्जन का पैमाना नहीं माना जा सकता.
यदि मात्र शैक्षिक योग्यता को ही ज्ञान का पैमाना माना जाता तो आज 'कबीर' पर लोग P.hd.नहीं कर रहे होते जिनकी शिक्षा नगण्य थी.
ये केवल बाजारवाद का परिणाम है कि आज शिक्षा धनार्जन/नौकरी पाने का माध्यम मात्र बनकर रह गयी है.इस शिक्षा का हमारे चरित्र निर्माण में कोई योगदान नहीं है.
शिक्षा को केवल धनोपार्जन का माध्यम मानना मेरे हिसाब से उचित नहीं है . शिक्षा मनुष्य के जीवन में रहन सहन , सोच विचार और मानवीय गुणों और तर्क शक्ति को सही रास्ता दिखाती है . शिक्षा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती . अच्छी पोस्ट .
शिक्षा द्वारा अर्जित किया गया ज्ञान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता ...चाहे वह जीविका का साधन बने या न बने ... बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने इस पोस्ट को ....बधाई ।
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ :
"शिक्षा कभी बर्बाद नहीं होती। , कभी नष्ट नहीं होती। शिक्षा स्वयं के लिए भी वरदान है, दूसरों के लिए भी और एक स्वस्थ समाज बनाने के लिए भी ।"
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शिक्षा एक ऐसा जरिया है जो हमारे जीवन को एक नवीन सोच, नयी राह देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज बनाने मे मदद करता है.
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ऊपर प्रतुल वशिष्ठ जी ने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दी है ...
दिव्या जी,
शिक्षा कभी बेकार नही जाती …………चाहे परोक्ष रूप से चाहे अप्रत्यक्ष रूप से अर्जन तो होता ही है तभी तो सकल घरेलु उत्पाद मे आज घरेलु महिलाओ को भी शामिल किया जा रहा है……………ज्ञान कभी व्यर्थ नही जाता उसी से एक सभ्य सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है्।
शिक्षा सही समय पर उपयोग करने पर लाभकारी अन्यथा व्यर्थ है .
शिक्षा अनुभव से पुष्ट हो कर ज्ञान में परिवर्तित हो जाती है और ज्ञान ही काम आता है .
शिक्षा को उपयोगी बनाना हमारे हाथ में है .
शिक्षा कभी व्यर्थ नही जाती!
--
हिम्मते मर्दा!
मददे खुदा!
शिक्षा कभी बर्बाद नहीं जाती।
आपके ब्लॉग ने उर्जा संरक्षण के नियम से शिक्षा संरक्षण के नियम का अहसास कराया है. शिक्षा भी कभी नष्ट नहीं हो सकती हाँ यह एक रूप से दुसरे रूप में बदल सकती है.जैसे आज कई उच्च शिक्षित महिलाओ की अर्जित डिग्री शिक्षा का रूपांतरण अगली पीढ़ी में संस्कारित ज्ञान शिक्षा में हो रहा है. प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति शिक्षा के विविध रूपों का उपयोग कर समाज और राष्ट के निर्माण में अधिक सार्थक योगदान देता है.
मेरी राय में आपके इस ब्लॉग के समस्त प्रश्न चिन्हों का उत्तर उस अर्थ में है जिस से यह निश्चय होता है कि''शिक्षा बेकार नहीं जा सकती.''
"क्या शिक्षा द्वारा अर्जित ज्ञान कभी बेकार जाता है. ? क्या शिक्षा अनुपयागो हो सकती है कभी ?"
उपर्युक्त title के अंतर्गत कई प्रश्न लेख में खड़े कर दिये गए है. केवलराम ने शिक्षा के साथ समझ की अनिवार्यता पर बल दिया. डॉ.दिव्या ने प्रति उत्तर में टिप्पणी केवल शिक्षा और उसकी उपयोगिता पर केन्द्रित रखने की इच्छा ज़ाहिर की है.
मेरा submission है की जब तक शिक्षा को सस्कृति और सभ्यता से जोड़ते हुए प्रश्न नहीं उठेगा ,वह प्रश्न ही अधूरा होगा और उसका to the point उत्तर नहीं दिया जा सकता.उदाहरण:-
क्या आपने लोगों को बेवकूफ बनाना छोड़ दिया?
उत्तर केवल हाँ या न में देना है.
अब सोचिए क्या इसका हाँ या न में to the point उत्तर दिया जा सकता है.
कहने का अभिप्राय समझ गए होंगे.
बात शिक्षा के उपयोग की कहने के बजाय उसके सदुपयोग की करनी होगी.अन्यथा अब तो जितने criminals/cyber crime वाले हैं सब अच्छे खासे शिक्षित लोग है. सोचिये इनका शिक्षित होना आपको कैसा लगता है.
nut shell में शिक्षित होने के साथ संस्कारित होना भी बहुत ज़रूरी है.
शिक्षा एक विद्या है,मात्र अनुभव-ज्ञान। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है वह उसका सदुपयोग करे या दुरपयोग। लेकिन उपयोग होता ही है, व्यर्थ नहिं जाती।
मानसिकता है, उधर्वगामी या अधोगामी!!
शिक्षा कभी बेकार नहीं जाती। ज्ञान भी एक उर्जा है, यह कभी नष्ट नहीं होती।
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है, शिक्षार्थी का सर्वांगीण विकास करना। सर्वांगीण विकास का आशय है-‘व्यक्ति के व्यक्तित्व को इस तरह से गढ़ना कि उसमें समाज में सम्मानपूर्वक जीने लायक क्षमता विकसित हो सके।‘ केवल डिग्री हासिल करना इसका उद्देश्य नहीं है। इस संदर्भ में आपके द्वारा उठाए गए सारे प्रश्नों के लिए मेरे उत्तर सकारात्मक हैं। अर्जित शिक्षा से धनोपार्जन ही हो, यह आवश्यक नहीं। सही शिक्षा से दुनिया को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। यह व्यक्ति की सोच और समझ को परिष्कृत करती है जिससे एक शिक्षित व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। एक शिक्षित मां के द्वारा नई पीढ़ियां शिक्षित होती हैं।
निस्संदेह, शिक्षा एक वरदान है, स्वयं के लिए भी और दूसरों के लिए भी।
यहीं पर अपवाद स्वरूप, शिक्षा द्वारा अर्जित ज्ञान के दुरुपयोग की बात भी सामने आती है। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान में परमाणु बमों का प्रयोग जैसी अनेक घटनाएं अर्जित ज्ञान के दुरुपयोग के उदाहरण हैं। शिक्षा का ऐसा दुरुपयोग मानवता विरोधी है। आज भी दुनिया भर में सक्रिय अनेक उग्रवादी संगठनों में उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भी शामिल हैं और मानवता विरोधी कार्यों में सक्रिय हैं। इस संदर्भ में यह बात सामने आती है कि शिक्षा कुछ मामलों में अनुपयोगी भी हो सकती है।
आपने जो आलेख प्रस्तुत किया है वह निश्चित रूप से शिक्षा के सकारात्मक रूप को ही ध्यान में रख कर लिखा गया है। मैंने इसके नकारात्मक रूप की, जो अपवाद स्वरूप ही है, इसलिए चर्चा की क्योंकि यह आज विश्व की ज्वलंत समस्या बनी हुई है।
शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती ... मानती हू कि उसी के कारण हम अपनी अगली पीढ़ी को तथा समाज में बेहतर ढंग से आगे आते है !
पर आपको नहीं लगता जो शिक्षा हम लेते है अगर उसका सही उपयोग न करे तो वो शिक्षा उसके पीछे जो हमारी मेहनत और बहुतसे उससे जुड़े सपने व्यर्थ हो जाते है !
बहुत बार हालत ऐसे हो जाते है आप चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते उस हालत में बेहतर है कि अपनी उस ज्ञान को समय के साथ बढ़ाना चाहिए ..इस के लिए आज बहुत से साधन आज उपलब्ध है !
@ डॉ अमर कुमार,
संशय मुझे खुद है कि मैं डागदर हो गया फिर यकीनन झोलाछाप हूँगा ! कृपया मुझे इस बड्डी डिग्री से माफ़ करें....मैं बारहवां पास ही भला :-)
दिव्या जी ने डॉ कहा है तो उनके मन में कहीं न कहीं कुछ तो है ??
सम्मानित हुआ कि प्यार से याद किया :-)
शिक्षा व्यर्थ कभी नहीं जाती, लेकिन हाँ यदि आप नैतिकता एवं मानवता भुल जाते है तो ये जरुर व्यर्थ हो जाती है.............
व्यक्ति के सिर में जो भर गया उसने अपना कार्य करना है. उपयोगी विचार उपयोगी होंगे और अनुपयोगी बातें अपका समय और ऊर्जा खाएँगी. ढँग की शिक्षा कभी बेकार नहीं जाती.
jo sabki raay hai wahi meri bhi.
शिक्षा कभी बेकार नहीं जाती
aap hamesha important topics par likhti hain.
thx
It is true that many persons have been formally trained in some subject but they don't use that particular training or education in their professional lives.
This is particularly true of engineers who later do MBA or enter the software industry.
But this does not mean that their education has been a waste.
Education trains your mind to be able to use it well later in any situation.
Some persons are lucky in the sense that whatever they studied for marks as students, they used for earning money in their professional lives (for example: doctors).
But more people in the world have earned their money not through what they studied in college except those who chose to become teachers/lecturers/professors of the same subject.
If a person feels his education has been a waste, the fault is with him, not with education.
When you are a student, choose the subject that is dear to you and study well.
Don't worry too much about how you will use it later and how much money it will pay.
That is commercialising education.
दिव्या जी इन सवालों के जवाब २-४ लाइन मैं नहीं दिया जा सकते लेकिन विषय अच्छा है कोशिश कर रहा हूँ
सवाल: तो क्या हमारी education कभी waste हो सकती है ? क्या ऊर्जा की तरह शिक्षा का भी विभिन्न स्वरूपों में इस्तेमाल नहीं होता ?
सवाल २ : क्या हमने जो डिग्री अर्जित की है , उसका पूरा-पूरा उपयोग न होने की स्थिति में वो बर्बाद या नष्ट हो जायेगी ?
जवाब: अगर education का सही इस्तेमाल ना किया जाए तो यकीनन waste हो सकती है?
सवाल : क्या हमारी शिक्षा जीवन के प्रत्येक कार्य में उपयोगी नहीं है? यही शिक्षा हमारा मनोबल नहीं बढाती ? क्या शिक्षा हमारे एनालिटिकल गुण को नहीं बढाती ? क्या वक्त बेवक्त हमारी शिक्षा दूसरों के काम नहीं आती ? क्या एक शिक्षित माँ बच्चों का पालन पोषण बेहतर ढंग से नहीं करती । क्या शिक्षा हमें जागरूक बनने में मदद नहीं करती ? क्या एक शिक्षित नारी , अपने घर परिवार का बेहतर संचालन नहीं करती ? क्या एक शिक्षित व्यक्ति समाज के लिए ज्यादा उपयोगी नहीं है ?
जवाब: शिक्षा का डिग्री से बहुत गहरा रिश्ता नहीं. किसी ज्ञानी की सांगत भी इंसान को शिक्षित बना सकती है और ऊपर सभी सवालों का जवाब है हाँ शिक्षा उपयोगी है, उतनी ही जितना उसका इस्तेमाल किया जाए.
सवाल: क्या शिक्षा तभी फलदायी है , जब हम अपनी अर्जित डिग्री द्वारा धनार्जन करते हैं? क्या उसी डिग्री द्वारा किसी की निस्वार्थ सेवा करना गलत है ? क्या अर्जित धन ही शिक्षा की उपयोगिता सिद्द करता है ?
जवाब: शिक्षा के बहुत से उपयोग है जिसमें धन अर्जित करना भी है, डॉ पैसे ले के भी दावा दे सकता है और फ्री मैं भी. दोनों स्थिति मैं इस्तेमाल शिक्षा का ही हुआ.
आप के विचार सही हैं"मेरे विचार से शिक्षा कभी बर्बाद नहीं होती। , कभी नष्ट नहीं होती। शिक्षा स्वयं के लिए भी वरदान है, दूसरों के लिए भी और एक स्वस्थ समाज बनाने के लिए भी"
लेकिन इस समाज मैं पढ़े लिखे जाहिल भी पे जाते हैं यह वो हैं जिन्हें शिक्षा का इस्तेमाल ही नहीं करना. अस्वस्थ समाज भी शिक्षित ही बनाते हैं.
और बहुत बार आप की शिक्षा इस्तेमाल मैं नहीं आती ,अगर सही अवसर इस्तेमाल का ना मिले तो. जैसे मैंने ली डिग्री BSC botany zoology और बन गया बनकर. इस विज्ञानं की शिक्षा काम तो आई लेकिन इसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो सका, अवसर ना मिनले के कारण.
सच्चा ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता ॥
मेरे हिसाब से शिक्षा दो प्रकार की होती है. पहली शिक्षा वो जिसमे हम शिक्षित बनाते हैं यानि की सामान्य पढना लिखना और जीवन की दूसरी उपयोगी बातें सीखते हैं और दूसरी शिक्षा वो जब हम किसी विषय में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं. सामान्य शिक्षा तो जीवन में हमेशा ही काम आती है पर जब हम किसी विशेष विषय में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं जैसे चिकित्सा या इंजीनियरिंग और अगर हम उसका उपयोग नहीं करते तो वो शिक्षा व्यर्थ है और हमने अपने और समाज के दुसरे लोगों का समय और अवसर बर्बाद किया है.
सतीश सक्सेना जी की बात से सहमत .
शिक्षा और डिग्री दो अलग अलग चीज़ हैं बड़ी बड़ी डिग्री वाले भी घोर जाहिल /अशिक्षित देखे जाते हैं.
शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती.हमेशा हर जगह स्वत ही उजागर हो जाती है.
पूरा श्लोक तो याद नहीं आरहा है लेकिन ’’वि़घ्या ददाति विनयं और विनय से पात्रता हासिल होती है । पात्रता से धन प्राप्ति होती है , धनात धर्म तत सुखम
शिक्षा कभी बेकार जा ही नहीं सकती.शिक्षित गृहिणी और अशिक्षित गृहिणी के घर और बच्चे देख के हम शिक्षा की उपयोगिता जांच सकते हैं.
ज्ञान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता. इस सुंदर और विचारोत्तेजक आलेख के लिए धन्यवाद. आभार
सादर,
डोरोथी.
शिक्षा अर्जित कर अंहकार से भर जाना अपनी उर्जा का क्षरण है और शिक्षा अर्जित कर उसके द्वारा अपने ज्ञान को अधिक पुख्ता कर समाज
को निश्चित दिशा दी जा सकती है |उचित शिक्षा और सही ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता |अर्थ उपार्जन करना ही मुख्य ध्येय नहीं है शिक्षा का ?
चूँकि आज के युग में डिग्रियों को ही शिक्षा का का मापदंड माना जा रहा है |शिक्षा को सही तरीके से जीवन में व्यवहार में लाया जय तो हर मायने में वो सार्थक है \एक छोटा सा उदाहरन देना चाहूंगी |जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो गृह विज्ञानं में बहुत सारी छोटी छोटी बाते बताई जाती थी मसलन सब्जी कैसे धोना ,किस तरह सफाई से खाना बनान ,कैसा परोसना ,गृहणी के कर्तव्यो का पालन करना जिसमे सरे परिवार की जिम्मेवारी आती है |आज तो कई माध्यम है ऐसे चीजो को समझाने के लिए फिर भी हमने उन चीजो को अपने जीवन का अंग बना लिया जो की आज ४५ साल बाद भी वही अंकित हो गया |
और अपनी ग्रहस्थी को शिक्षा के माध्यम से सुचारू रूप से चलाने की कोशिश की |
जीवन में सीखी हुई कोई चीज व्यर्थ नहीं जाती और जीने के लिए जिस तरह रोटी ,कपडा और मकान जरुरी है और ये जरूरते स्थायित्व रहने के लिए शिक्षा ही बेहतर विकल्प है |
मुझे तो नहीं लगता दिव्या जी शिक्षा कभी व्यर्थ जाती है...... सबसे ज्यादा तो हमारी पढाई हमें मनोबल देती है.... अच्छा सोचने अच्छा करने को प्रेरित करती है.....
दिव्याजी
ज्ञान बेकार नहीं होता। ये उसे धारण करने वाले पर निर्भर करता है। तभी कहा जाता है कि मुर्ख का अर्जित किया गया ज्ञान नदी पर बने रेत के पुल के समान है। आधुनिक संदर्भ में कहें तो परमाणु बम बनाने की तकनीक ओसामा को मिले तो उसने विनाश ही मचाना है। अब ज्ञान की परिभाषा पर जाएं तो ये कई तरह से होता है। यहां ज्ञान औऱ अर्जित डिग्री में थोड़ा सा भेद है। डिग्री कभी बेकार नहीं जाती,आधुनिक जीवन में नौकरी के लिए तैयार करने वाली अधिकतर डिग्रीयां जरुरी है। चिकित्सा या इंजिनियर जैसे पेशे जरा इतर हैं। इनका ज्ञान अर्जित करने के बाद इस्तेमाल न करने पर कुछ समय के लिए धुंधला पड़ सकता है पर गायब नहीं हो सकता। बाकी डिग्रीयां सतत पढ़ते रहने से ताजा रहती हैं। जहां तक मां के शिक्षित होने की बात है तो ये सच है कि यदि मां शिक्षित है तो पूरा परिवार शिक्षित है। इसलिए डिग्री लेकर घर बैठ जाने वाली महिलाएं किसी स्तर पर कम नहीं होती। आने वाली नस्ल को ज्ञान देकर देश का निर्माण वहीं करती हैं। कहते हैं कि देश का भविष्य कैसा होगा, ये जानने के लिए उसके पालने में देखो।.....
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यहाँ पर आई टिप्पणियों से विचारों को आयाम मिला। जो विचार मैं यहाँ प्रस्तुत करने में असमर्थ रही , उन्हें हमारी विदुषी बहनों तथा विद्वान् ब्लोगर मित्रों ने बखूबी सामने रखा। हर एक टिपण्णी ने शिक्षा से जुड़े बहुआयामी पहलुओं को सामने रखा । निसंदेह शिक्षा व्यर्थ नहीं जाती , यह आप सभी की बातों से स्पष्ट हो गया। कुछ पाठकों ने तो मेरे विचारों को मानो शब्द प्रदान कर दिए। उदाहरणों से स्पष्ट करने के कारण , विषय काफी ज्यादा स्पष्ट हुआ। प्रत्येक टिपण्णी बहुमूल्य है, और समस्त प्रश्नों का सा-उदाहरण, उचित उत्तर भी है।
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शिखा जी की टिपण्णी ने मन में एक प्रश्न खड़ा कर दिया , यदि आप लोग उस पर प्रकाश डाल सकें तो मन में उपजे इस प्रश्न का भी उत्तर मिल सकेगा।
क्या शिक्षा इंसान को जाहिल बनाती है ?
मेरे विचार से , जैसे शक्कर का गुण है मिठास, उसे कहीं भी घोलेंगे/ मिलायेंगे तो वो मिठास ही पैदा करेगी , वैसे ही शिक्षा भी मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारेगी ही, विनयशील ही बनायेंगी , सुसंस्कारित ही करेगी , किसी ओर से हानि नहीं करेगी। इसीलिए आज शिक्षित होना हामारी मूलभूत जरूरत हो गयी है। किसी भी समुदाय में reservation से लोगों को ऊपर नहीं उठाया जा सकता , अपितु शिक्षा ही हमें विकासोन्मुख कर सकती है ।
आपका क्या विचार है?
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Dearest ZEAL:
Honored to read your response and I ask myself -
I may be educated but am I learned?
I may have knowledge but do I have wisdom?
I may be vebose but do I have content?
I may have conviction but am I moderate?
And is it not said that Wisdom is the better part of Valour?
Now, when I am querying my wisdom itself, valour is at an even more dismal distance to attempt.
Semper Fidelis
Arth Desai
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@ Ethereal ,
काश विषय पर कुछ लिखा होता आपने। खैर ..
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इस उपयोगी पोस्ट की चर्चा
आज के चर्चा मंच पर भी है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/337.html
words to words i ok to u.
वन्दना@
शिक्षा कभी बेकार नही जाती …………चाहे परोक्ष रूप से चाहे अप्रत्यक्ष रूप से अर्जन तो होता ही है तभी तो सकल घरेलु उत्पाद मे आज घरेलु महिलाओ को भी शामिल किया जा रहा है……………ज्ञान कभी व्यर्थ नही जाता उसी से एक सभ्य सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है्।
वन्दना जी की उपरोक्त प्रतिकिर्या में पूर्णत:सहमती जताते हुए अपनी ऑर से इतना और जोड़ना चाहूँगा की प्रोफेशनल एजुकेशन के मामले में कहा जा सकता है की यदि धनोपार्जन ही आपका मुख्य उदेश्य था और आप ऐसा नहीं कर पाए तो जाहिर है आपकी शिक्षा व्यर्थ गई, अन्यथा शिक्षा किसी भी सूरत में व्यर्थ नहीं जाती है , यहाँ पर उद्देश्य ही तय करता है की आपकी शिक्षा व्यर्थ गई या सार्थक हुई .....
aap ke liye dusro ke liye, aur samaj ke liye.it is must for good edu..
उपयोग करने वाले पर निर्भर है ।
दिव्या जी आपके ब्लॉग में इस बार देर से आना हुवा काफी लोगो ने अपने विचार बहुत ही सुंदर ठंग से रखे ! शिक्षा मेरे विचार से कभी भी नष्ट नहीं होती और शिक्षित होने का मतलब रोजगार प्राप्त करना नहीं होता है मैंने कई ऐसे लोगो को नौकरियों में देखा है जो की आर्थिक रूप से सक्षम है और ये कहते है की भई शिक्षित है और खाली समय रहता है इसलिए नौकरी कर रहे है !लेकिन वे यह नहीं सोचते की उनका टाइम पास या शिक्षित होने का सदुपयोग किसी को बेरोजगार बना रहा हैं !यदि आप पड़े लिखे है सक्षम है तो ये मत सोचिये की सिर्फ व सिर्फ नौकरी ही इसका एक मात्र उपाय है और भी कई कार्य है जिसमे शिक्षा का उपयोग है!
Depends on us. For Example you're not wasting your education. On the other hand there are many people who are not getting anything from their education. Means They are wasting their education.
Divya ji..It depends on us.
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वीरेंद्र जी,
आपकी टिपण्णी ने तो मेरी दुखती रग ही पकड़ ली ! सभी पाठकों ने सार्थक टिप्पणियां दी , शिक्षा के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं से अवगत कराया। मेरे मन के द्वन्द को कुछ विराम भी मिला लेकिन आराम नहीं। लेकिन आपकी एक पंक्ति ने बहुत सुकून दिया वर्ना हम तो इसी झंझावत से जूझ रहे थे की - "पढ़े फारसी , बेचे तेल "
कभी कभी , कुछ लोगों के` व्यंग बाण की चिकित्सा की शिक्षा रखके ब्लॉग्गिंग कर रही हो ? थक गयी थी स्पष्टीकरण देते देते। फिर लगा , अपनी शिक्षा से लोगों की जेब काट रही होती तो ये तोहमत तो न लगती की - तेल बेच रही हूँ, अथवा, किसी अच्छे विद्यार्थी की सीट मार दी, अथवा शिक्षा व्यर्थ हो गयी ।
क्या मोटी फीस लेकर , मेरी शिक्षा सार्थक हो जाती ? क्या मुफ्त में निस्वार्थ होकर , बिना शुल्क लिए , समाज की सेवा करने से शिक्षा व्यर्थ हो जाती है ?
जो सस्ते में मिले तो बैगन काना ही होगा ?
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शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती ....यह बात सत्य है ...शिक्षित व्यक्ति हर तरह से बेहतर सोच सकता है ..उसका मानसिक विकास इतना हो चुका होता है की वो समाज और परिवार के लिए अच्छा काम कर सकता है ...लेकिन यह बात भी सच है कि शिक्षित और सभी होने में अन्तर है ...सभ्यता संस्कारों से आती है ..भले ही शिक्षा पाने के दौरान हम कितनी ही अच्छी बातें पढ़ लें लेकिन यदि वो हमारे आचरण में नहीं आया तो पढ़ना बेकार है ...व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर यदि उससे धनोर्पार्जन नहीं किया तो लोंग अक्सर यह कह देते हैं कि इतना पढने का क्या लाभ ....भले प्रत्यक्ष रूप से लाभ न हो लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसकी उपयोगिता कम हो जाती है ...विद्या धन ऐसा धन है जो बांटने से बढ़ता है तो कम तो हो ही नहीं सकता ...अच्छी पोस्ट ..और लोगों ने बहुत अच्छे और सार्थक विचार रखे हैं ...
पोथा पढि पढि जग भया पंडित हुआ ना कोय ।
अगर हम सिर्फ डिग्रीयों के अर्जन को ग्यान कहते है तो हो भी सकता है कि उनका होना व्यर्थ हो जाय , किन्तू अगर हम शिक्षा के सही मानये समझ लें तो यही शिक्षित होना है और ऐसी शिक्षा बेकार तो हो ही नही सकती
पढे ढाई आखर प्रेम का , तो वो पंडित होय
तो जो ज्ञानी होगा वो दुनिया मे हमेशा प्रेम बढाता है , और यह उसकी निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया होती है
पोथा पढि पढि जग भया पंडित हुआ ना कोय ।
अगर हम सिर्फ डिग्रीयों के अर्जन को ग्यान कहते है तो हो भी सकता है कि उनका होना व्यर्थ हो जाय , किन्तू अगर हम शिक्षा के सही मानये समझ लें तो यही शिक्षित होना है और ऐसी शिक्षा बेकार तो हो ही नही सकती
पढे ढाई आखर प्रेम का , तो वो पंडित होय
तो जो ज्ञानी होगा वो दुनिया मे हमेशा प्रेम बढाता है , और यह उसकी निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया होती है
depends on what your priorities in life are
अशिक्षित लोग ईश्वर के निकटतम हैं।
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राधारमण जी,
हमारी आम जनता वैसे ही इश्वर में अंध-विश्वास रखती है। यदि उसे ये पता चल गया की अशिक्षित होने से इश्वर का सानिद्ध्य मिलेगा , तो धरे रह जायेंगे, सर्व शिक्षा अभियान। कोई पढ़ेगा ही नहीं और सब मोक्ष प्राप्ति में लग जायेंगे। वैसे एक फायदा होगा- जब लोग शिक्षित ही नहीं होंगे तो शिक्षा जैसे संसाधन बर्बाद भी नहीं जायेंगे।
रचना जी,
महत्वपूर्ण बात कही आपने। सहमत हूँ आपसे।
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बेकार तो नहीं जाता, पर अगर सतत उपयोग नहीं हो तो धार तेज नहीं रह पाती !!
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राम त्यागी जी,
सहमत हूँ आपकी बात से, इसलिए सतत जुड़े रहना चाहिए अपने प्रोफेशन से, चाहे जिस भी तरीके से संभव हो।
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किरण बेदी नाम ही स्वयं में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं।
पोस्ट के लिए आभार।
सबसे पहले तो बधाई स्वीकारें .....इस बात के लिए कि इसी बहाने एक सार्थक विमर्श के लिए अवसर मिला (यद्यपि यह विमर्श हर व्यक्ति को सतत करते रहना चाहिए ...खैर...)
हमें "शिक्षा" शब्द के अर्थ, भाव, उद्देश्य, और पात्रता पर भी विचार करना होगा.
शिक्षा वह है जो हमें सीख देती है, सीख कर हम संस्कारवान बनते हैं, इसके पीछे भाव है कल्याण का, उद्देश्य है आनंद की प्राप्ति. अंतिम बात है पात्रता ....तो सारी बात यहीं पर आकर अटक जाती है. पहले सुपात्र शिष्य को ही ज्ञान दान मिल पाता था, आज ऐसा नहीं है. मापदंड बदल गए हैं -प्रवेश परीक्षा में पास हो जाना ही सुपात्रता है , हम क्वालिटी पर नहीं क्वान्टिटी पर ध्यान दे रहे हैं. इसने भौतिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है और निराश विद्यार्थियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति को जन्म दिया है .....शिक्षा के प्रति अब हमारा वह भाव नहीं रहा जो कभी भारत का आदर्श हुआ करता था, अन्यथा उच्च शिक्षित आई. ए. एस. अधिकारी भ्रष्टाचारी न होते. यह प्रमाणित करता है कि शिक्षा से वह व्यक्ति संस्कारित नहीं हो सका ...क्योंकि सुपात्र नहीं था न !
हम अपनी-अपनी पात्रता के अनुरूप सीख ग्रहण करते हैं .......पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ....कभी राम जैसा तो कभी रावण जैसा. राम से अधिक विद्वान था रावण ( अब बात चली है तो बतादूँ कि रावण स्त्री-रोग एवं प्रसूति-तंत्र तथा बाल-रोग विशेषज्ञ भी था, सीता को रावण की पुत्री माना जाता है, इन-विट्रो निषेचन में महारत थी उसे, महर्षियों के रक्त से पृथक किये जींस की जेनेटिक इंजीनियरिंग के एक नायाब और सफल प्रयोग का जनक था वह ), विषयांतर के लिए क्षमा करें, मूल बात पर आता हूँ.
विद्वता हमें विश्लेषणात्मक क्षमता प्रदान करती है ......ज्ञान के लिए यह आवश्यक तो है पर अनिवार्य नहीं. कई बार हम ठोकरें खाकर भी परिस्थितियों से सीख नहीं ले पाते...कई बार उच्च-शिक्षित होकर भी हम दूरदर्शी नहीं हो पाते. सवाल यह है कि हमारे अन्दर ज्ञान की प्यास कितनी है. ज्ञानी लोग सच्चे (सत) ज्ञान की बात करते हुए देखे जाते हैं .......तो क्या ज्ञान असत भी होता है ? हाँ ! यही तो पात्रता है. इंजीनियर बनके हमें करना क्या है ......एटम बम या एटामिक ऊर्जा ? लक्ष्य क्या है ? -यह तय होना चाहिए. डाक्टर ओझा कहते हैं .... आप अपनी जितनी ऊर्जा कविता लिखने में जाया करते हैं उतनी ऊर्जा में तो इम्म्युनाइजेशन पर अच्छा काम कर सकते हैं . उनके हिसाब से मेरी ऊर्जा व्यर्थ ही जाया हो रही है ...(जैसी कि आपकी ). मैं निजी प्रक्टिस नहीं करता .........आर्थिक तंगी रहती है ...इसका समाज में विश्लेषण इस प्रकार किया गया - "समझ में नहीं आता ये प्रेक्टिस क्यों नहीं करता ?".....या "आदर्श का मारा है बेचारा "....... या "झक्की है " या ......."गधा होगा, नक़ल करके डाक्टर बना होगा". यह सामाजिक मूल्यांकन है .....किन्तु ज्ञान के मार्ग में यह मूल्यांकन पूर्णतः अनुपयोगी है, दिव्या जी ! इस मूल्यांकन से हमारा आपका क्या लेना-देना ? अरे थोड़ा पागलपन भी आने दीजिये अपने ऊपर ......लोगों को मुझ पर तरस आता है, मुझे लोगों के ऊपर तरस आता है ......वे अपनी दुनिया में खुश ...हम अपनी दुनिया में . एक डाक्टर साहब पी.जी. हैं....उस दिन देखा मुर्गे की टांग खा रहे थे .....खींच के खाया ....फिर बाहर आके मुह से धुंआ भी उड़ाया .....मुझे मजा आया ...मन ही मन हंसता रहा. क्या उन्हें यह बताने की आवश्यकता है कि उनका कोलिस्ट्रोल कहाँ जाएगा ? मजे की बात ये कि वे हृदय रोग विशेषज्ञ हैं. कुछ लोग हैं जो किताबी ज्ञान को व्यावहारिक नहीं मानते ....या कि शायद ....वह केवल उपदेश के लिए ही है.....ऐसा मानते हैं .
यदि आपका चरम लक्ष्य "आनंद" है तो इन टिप्पणियों के लिए मन में विषाद क्यों ? आपका विवेक जो कहता है वही करिए न !
अब ई देख्खिये ! अपने लालू को पूरा दुनिया का लोग का-का नहीं कोह्ता है मगर ऊ अपना चाल बदले हैं का ? तब्ब ! आप्पे काहे अपना चाल बदलियेगा , नहीं न! हाँ अब ठीक है - जाइए चा-वा पीजिये आ खुस रोहिये.... सुद्ध दुधवा त आज कल मिलबे नहीं करता है नहीं त कहते कि -जाइए थोरा दूध-वुध पीजिये आ खुस रोहिये .
कई वर्षों से इस विषय पर कुछ लिखना चाहता था, आज आपने अवसर दे ही दिया . पर मन अभी भरा नहीं .....शेष फिर कभी .
हाँ ! हमारे पुत्र जी भी कुछ कहना चाहते हैं .....मैं उनकी बात को उन्हीं के शब्दों में लिखे दे रहा हूँ -
" शिक्षा जीवन में गुणात्मक विकास करती है इसलिए कभी व्यर्थ नहीं जा सकती .......बशर्ते उसे केवल नौकरी के उद्देश्य से न लिया गया हो ..यह तो शिक्षा का स्थूल उद्देश्य हो गया ....मैं खुद पढ़ने के बाद नौकरी नहीं करूंगा . लोगों ने इसे व्यावसायिक बना दिया है ...लोग स्कूल में शिक्षा नहीं मात्र सूचना एकत्र करने जाते हैं,....किताबें भी सूचनाएं ही देती हैं ...उनका उपयोग पाठक की मूल वृत्ति और उसके संस्कारों द्वारा तय होता है ".
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कौशलेन्द्र जी,
आपने और आपके बेटे ने बहुत सटीक बात स्पष्ट शब्दों में लिखी है। एक बेहद सार्थक टिपण्णी के लिए आभार। जो कुछ अनकहा रह गया था। उसे आपकी टिपण्णी पूर्णता प्रदान कर दी।
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क्षमा करें। मेरी टिप्पणी किरण बेदी वाले आलेख पर लगनी चाहिए थी।
- हरीश
**शिक्षा**
मूल बात सतोप्रधान बनने / बनाने की है |
जो व्यक्ति शिक्षा, निम्नलिखित अष्ट शक्तियों में निखार लाने के लिये लेता/ देता है, वह शिक्षा का सदुपयोग कर रहा है |
१. समेटने की शक्ति
२. सहन शक्ति
३. समाने की शक्ति (to adjust )
४. परखने की शक्ति
५. निर्णय शक्ति
६. सामना करने की शक्ति (specially in calamities)
७. सहयोग की शक्ति
८. विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति
गुण, गुण है| उसका सतोगुण उपयोग या तमोगुण उपयोग व्यक्ति निर्भर है|
The main purpose of education is to construct unanimous, lasting and genuine defenses of peace first in one’s own mind and then in the minds of others. A clean virtuous mind dynamically facilitates accomplishment of this purpose. For cleaning of mind, truthfulness is the main tool. Truthfulness combined with amiability purifies the mind crystal-clear. The benefits of truthfulness or cleanliness of mind, similar to external cleanliness, are felt by the person who comes in contact of such purified soul (मन, बुद्धि, संस्कार ; आत्मा के तीन अंग). Education should strengthen people to survive with truthfulness. The lack of truthfulness / purity in educationists keeps defeating (or deviating) the purpose of education.
ज्योति प्रकाश जी,
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एक बेहद ही सार्थक टिपण्णी के लिए आभार। आपकी टिपण्णी से हम सभी लाभान्वित होंगे।
हरी प्रकाश ji ,
आपकी टिपण्णी , सही पोस्ट पर लगा दी गयी है।
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