हर घर का संचालन गृहलक्ष्मी करती है । घर के हर सदस्य की ज़रुरत का पूरा-पूरा ख़याल रखती है। खरीददारी करते समय पति और बच्चों की जरूरतों का पूरा ध्यान रखा जाता है । महिलाओं के दिमाग में पूरा चार्ट होता है हर आइटम का। सब्जी और फल खरीदते समय , क्या घर पर नहीं है , क्या लाना है , क्या परिवर्तन करना है , पति को क्या पसंद है आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है । लेकिन फलों के कोटे में स्त्रियाँ अपने नाम कुछ नहीं करतीं।
सुबह पति और बच्चों का लंच पैक करते समय एक कर्तव्यनिष्ठ पत्नी और माँ फल रखना नहीं भूलती ।
लेकिन अफ़सोस की बात तो यह है की ज्यादातर स्त्रियों के फलों के कोटे में उनके नाम का एक भी सेव नहीं होता। आखिर क्यूँ ? क्या महिलाओं को लगता है की वो सुपर महिला है और उन्हें पौष्टिक तत्वों की जरूरत नहीं है ? या फिर स्त्रियाँ अपने को परिवार में सबसे हीन समझती हैं जो नियम से फलों का सेवन नहीं करतीं ? फलों की खरीददारी और उसका आबंटन और नियंत्रण गृहलक्ष्मी के हाथों में होते हुए भी ये स्त्रियाँ फल खाने से इतना परहेज़ क्यूँ करती हैं। कभी आप भी अपनी पसंद का फल अपने लिए खरीदा कीजिये।
महिलाओं को भी फलों की उतनी ही आवश्यकता है , जितना पुरुषों और बच्चों की । इश्वर के दिए हुए शरीर को मंदिर समझकर उसकी हिफाज़त कीजिये । जब आप स्वस्थ्य रहेंगी तभी आप अपने परिवार का ख़याल रख सकेंगी। पति और बच्चों को फल सर्व करते समय अपने स्वास्थ्य की अहमियत को भी समझिये और उनके साथ आप भी फल खाइए।
घर के पुरुषों का ये नैतिक दायित्व होना चाहिए कि मुंह में पहला निवाला डालने के पहले और फल की पहली फांक खाने के पहले एक बार अपनी पत्नी और बूढी माँ से पूँछे कि क्या उन्होंने भी फल खाया या नहीं । आप व्यस्त हैं ये ठीक है , लेकिन इतनी भी क्या व्यस्ततता कि आपको , अपनों कि चिंता ही ना रहे ।
An apple a day , keeps a doctor away !
Health is wealth !
59 comments:
इस बात पर अक्सर भाभी, बहन और माँ से इस बात पर चर्चा होती ही है. की वो सब को खाना दे देती है और अपने लिए कुछ रखना जरूरी नहीं समझती. वो पेड़ की तरह होती है जो अपना फल खुद नहीं खाता.
सभी माताओं और बहनों से अनुरोध है कि वो अपने स्वास्थ का ध्यान रखिये क्योकि वो घर की धुरी की तरह होती हैं.
बहुत से घरों में देखा है ऐसा भी ..वृद्ध माँ वाली बात अच्छी लिखी आपने ...वर्ना महिलाएं आजकल अपने बारे में तो सोचने लगी है , वृद्ध माँ-बाप /सास-ससुर ही उपेक्षित रह जाते हैं ..
आज से ध्यान रखूँगा!
आज से ध्यान रखूँगा!
bilkul saarthak aalekh.mahilayen apne swasthya par tulnatmak roop se kam dhyan deti hain.
आपका यह संदेश महिलाओं के लिए भी उतना ही उपयोगी है.
सभी को खाना चाहिये और महिलाओं को और भी अधिक..
main bhi ye nahi kar pati ... per is baat ko nazarandaj na karun, yah koshish hogi
सहमत
यह सही है कि महिलायें अपने स्वास्थ पर कम ध्यान देती हैं..बहुत कारण हो सकते हैं, मुख्य रूप से पारवारिक परिस्थितियाँ,त्याग की स्वाभाविक भावना,अपने लिए आलस्य आदि..मेरी पत्नी आपके पोस्ट्स बहुत ध्यान से पढती हैं, आपकी पोस्ट पढाने के बाद उनकी प्रतिक्रिया थी सेब काटकर खाने का टाइम कहाँ है..यही ज्यादातर स्त्रियों की प्रतिक्रिया होती होगी,अभी हमारे पास समय नहीं है बाद में खा लेंगे , और यह बाद में कभी नहीं आता और कई बार सेब खराब होने पर फैंकना मंजूर करेंगी, समय पर खाने की वजाय..क्या किया जा सकता है ऐसी परिस्थितियों में?
दिव्याजी
आपने बिलकुल सही सलाह दी है फल खाने की महिलाओ को |मै चिंतित हूँ पिछली पोस्ट पर आई टिप्पणियों से जाना की आप अस्वस्थ है मुझे कुछ समझ नहीं आरहा की मै इतनी नजदीक होकर भी जान नहीं पाई |
ईश्वर जल्दी स्वस्थ करे |क्या आप अपना ध्यान रख रही है ?और कैसे सम्पर्क किया जा सकता है आपसे ?
वाणी जी ने भी सही कहा है |मेरी एक भाभी (बुआ की बहू )का किस्सा याद गया | भाभी को फल खाने का बहुत शौक है तरह तरह के फल लाती और खुद खाती अपने बेटे को खिलाती भाई ज्यादा फल नहीं खाते |और अपनी सास को बुआ को रोज एक केला दे देती |बुआ जी को सेब बहुत पसंद the अक दिन उनके पोते ने (जो की शायद उस सा ल का )रहा होगा अक सेब काटकर अपनी दादी के कमरे में ले जाने लगा दादी को खिलाने इतने में भाभी ने देख लिया और झट से बेटे के हाथ से ले लिया और कहा- ये कहाँ ले चला ?उसने कहा दादी को दूंगा \भाभी ने उसके हाथ से लिया और कहने लगी -तुझे मालूम भी सेब कितने महगे है दादी को केला दे दे |
शायद यह वाकया हिंदी फिल्मो का द्रश्य ही लगे |बुआ ने सुन लिया उस दिन के बाद उन्होंने केला भी नहीं खाया उनकी बेटिया जब भी ले जाती उन्हें खूब सेब खिलाती \आज उनको गुजरे हुए ५ साल हो गये |\हालाँकि इस पोस्ट से इसका कोई मतलब नहीं वानीजी की टिप्पणी देखकर यह वाकया याद हो आया |
Baat to aapki sahi hai lekin mere sath iske vipreet hai
महिला एक ऐसा सूर्य है जिसके इर्दगिर्द सारे परिवार के लोग ग्रहों की तरह घूमते रहते हैं :)
हमारे घर में भी ऐसा ही होता है।
सही बात है, फल खाते रहना होगा।
हमारे यहाँ पत्नि फ़ल तो क्या, दाल चावल भी पति से पहले खाती नहीं थी।
शादी के बाद हमने आदेश दे दिया।
मेरे लिए कोई इन्तजार नहीं करेगा
यदि मेरे आने में देर हो जाती है तो पत्नि को खाने की न केवल पूरी छूट है पर मेरी इच्छाह भी यही है कि वह भूखी रहकर मेर इन्तजार न करें।
पत्नि कहती है कि खाना खाने के बाद फ़ल का सेवन करना पचन के लिए अच्छा नहीं होता
फ़ल को भोजन करने से पहले खाना चाहिए। इसमे कितना सत्य है?
मेरी angioplasty के बाद डॉक्टर नें मुझे चीकू न खाने का उपदेश दिया।
क्यों?
यदि जानकारी हो, तो कृपया बताएं
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
हमारे यहाँ पत्नि फ़ल तो क्या, दाल चावल भी पति से पहले खाती नहीं थी।
शादी के बाद हमने आदेश दे दिया।
मेरे लिए कोई इन्तजार नहीं करेगा
यदि मेरे आने में देर हो जाती है तो पत्नि को खाने की न केवल पूरी छूट है पर मेरी इच्छाह भी यही है कि वह भूखी रहकर मेर इन्तजार न करें।
पत्नि कहती है कि खाना खाने के बाद फ़ल का सेवन करना पचन के लिए अच्छा नहीं होता
फ़ल को भोजन करने से पहले खाना चाहिए। इसमे कितना सत्य है?
मेरी angioplasty के बाद डॉक्टर नें मुझे चीकू न खाने का उपदेश दिया।
क्यों?
यदि जानकारी हो, तो कृपया बताएं
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
महिलाएं नरमदिल होती हैं संभवतः इसलिए उनका ऐसा स्वभाव होता होगा.वैसे महिलाओं का परिवार में बराबर ध्यान रक्खा जाना चाहिए,उन्हें स्वयं भी अपना ध्यान रखना चाहिए..
यह एक,प्रकार त्याग ही है जो अपने लिए कोई फल का चयन नहीं करतीं.
....महिलायों का ये समपर्ण भाव है, जो प्राकृतिक होता हैं, लेकिन पुरुषों को भी महिलायों का पूरा ध्यान रखना चाहिए.
आपसे सहमत। बहुत अच्छा आलेख।
स्त्री जाति को मानसिक गुलामी में कैसे बाँधा हुआ है, यह उसी का उदाहरण है. आपकी नसीहत बहुत काम की है. आभार.
बहुत अच्छी हिदायत है.दिव्या जी ,शुक्रिया ,मैं इस बात का ध्यान रखूंगा कि परिवार का हर सदस्य फल खाए.
डॉ.दिव्याजी आपने एक दम सही बात कई है
दिव्व्या जी हमारी बीबी हमारे पास बेठी मुस्कुरा रही हे, क्योकि हम सब को जब फ़ल देती हे तो उसे भी खाना पडता हे वर्ना मै भी नही खाता. ओर कभी कभी मै भी उसे फ़ल छीख कर आधा देता हुं
छील* गलती सुधार ले
I do not agree with you. Men also now a days do all the work which you attribute women to do. At least i do ..
पर ये हमारी माताओं को कौन समझाए। दिन भर इसी बात पर लड़ाई होती रहती है। मैं उठता हूं 12-1 बजे दिन में तो पता चलता माताश्री ने खाना नहीं खाया है। जिस दिन जल्दी उठ जाओ उस दिन भी यही हाल। उन्हें समझाते समझाते तो लगता है कि एवरेस्ट पर चढ़ जाता आसानी से।
priy divya ji
pranam
apke kathya samyik to hote hi hain samvedanshil& anchuye bhi. jinko sanskaron men
utarne ki bhi aavshykta hai . achha prasang .
dhanyavad /
इस ब्लॉग की अच्छी अच्छी बातों पर अच्छा अच्छा टीपने का मन होते हुए भी कोई फ़ायदा नहीं। क्योंकि यहाँ अपनी कोई कद्र नहीं। चलते हैं।
महिला एक ऐसा सूर्य है जिसके इर्दगिर्द सारे परिवार के लोग ग्रहों की
तरह घूमते रहते हैं :)
chachha mouleshwarji sahi kah rahe hain....
pranam.
दिव्या जी
आपसे असहमत हूं
जितनी ज़रूरत हम को [पुरुषों को]है उससे दुगनी ज़रूरत है.
मैने देखा दुनियां के 90% काम तो महिलाएं ही करतीं हैं शीर्षक में आंशिक संशोधन के साथ आलेख स्वागतेय है
ये बात घरेलू महिलाओं पर १००% लागू होती है किन्तु कामकाजी महिलाये तो अपने लंच के साथ बैग में फल भी खूब लाती है , खाती भी है आवश्यक भी है . सन्दर्भ अच्छा है.
हमेशा की तरह यह प्रस्तुति भी बेमिसाल ...बधाई ।
bilkul sahi.
aapse shat-pratishat sahmat hoon.
सही सवाल।
सुन्दर और बेहतर सीख।
सुन्दर
घर के पुरुष सदस्यों और बच्चों को भोजन कराने के मामले में महिलाएं बहुत ज्यादा उदार होती हैं। फल तो क्या, अधिकांश महिलाएं तो सब को खिलाने के बाद बचे-खुचे दाल भात पर ही संतोष कर लेती हैं।
एक चिकित्सक के रूप में आपके द्वारा दिए गए सुझाव पर महिला और पुरुष, दोनों को ध्यान देना चाहिए।
बहुत ही जरूरी विषय पर प्रकाश डाला है...महिलाएँ जिस तरह पूरे परिवार के खान-पान का ख्याल रखती हैं....परिवार के बाकी सदस्यों को भी चाहिए की उनका ख्याल रखे...और महिलाओं को भी अपनी तरफ ध्यान देने की जरूरत है..
इसी से सम्बंधित विषय पर लिखने की कब से सोच रही हूँ...पर दूसरे विषयों में ही उलझी हुई हूँ...कोशिश करती हूँ, जल्दी ही कुछ लिखूं....
@ कैलाश जी ,
ज्यादातर पत्नियां यही कहती हैं की समय कहाँ हैं सेब काटकर खाने का । ऐसे लोगों को समझाने से फायदा नहीं , सिर्फ एक तरीका है इन्हें समझाने का। पति होने के नाते आप इन्हें फल काटकर प्लेट में दीजिये , दो दिन आप ये क्रम जारी रखेंगे , तो पत्नी को अपने स्वास्थ्य की कीमत स्वयं समझ आने लगीगी । फिर समय भी निकलने लगेगा।
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राज भाटिया जी ,
आपका तरीका सबसे सही है ।
" तुम नहीं खाओगी तो मैं भी नहीं खाउंगा " , यदि तरीका है स्त्रियों को खिलाने का । वरना वो तो अपना ध्यान रखने से रहीं।
इस अपनेपन से प्यार भी बढ़ता है । स्वास्थ्य के साथ-साथ , और भी समस्याओं का हल निकल आता है।
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महेंद्र वर्मा जी ,
बहुत बार खाने में दो रोटी के लिए आटा कम हो जाता है और स्त्री अपने परिवार को खिलाकर , स्वयं बिना खाए ही सो जाती है । हर रोज़ बचने वाली बासी रोटी को अपने भोजन का हिस्सा तो स्त्री अपनी नियति मानकर ही चलती है। ऐसे में यदि पति स्वयं खाने के पहले अपनी अन्नपूर्णा का भी ध्यान रखे तो शायाद बहुत सुखदाई होगा।
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-.
@ Vishwanaath ji ,
चीकू सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर यदि आप उन्हीं विशेषज्ञ से पूछकर यहाँ जोड़ सकें , तो पाठकों का लाभ होगा।
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- फलों को भोजन से पूर्व ही खाना चाहिए।
- दिन में तीन से चार बार खाना चाहिए।
-जब भी सिगरेट और चाय की तलब हो तो तो एक छोटा सा फल लेकर खाना चाहिए।
- सुबह नाश्ते में पराठे की जगह फलों को स्थान देना चाहिए।
- भोजन में अपनी प्लेट को रंग बिरंगे फलों से आधा भरना चाहिए।
-diabetes के मरीज़ को अपने चिकित्सक के परामर्श के बाद ही , कुछ विशिष्ट फलों का ही सेवन करना चाहिए।
- फलों को dining table पर बिलकुल सामने रखा होना चाहिए , ताकि उसे देख-देख कर उसे खाने की प्रेरणा मिलती रहे।
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नीलेश जी की बात बहुत अच्छी लगी - " आज ही से ध्यान रखूँगा " - जब जागें तभी सवेरा।
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स्त्रियाँ अपने स्वास्थ्य का खुद ख्याल रखें तो बेहतर होगा , वर्ना उनके मन में कहीं न कहीं ये पनपता रहेगा की मैं इनका इतना ध्यान रखती हूँ , ये मेरे बारे में नहीं सोचते। ऐसा सोचने से आपके वो , आपके बारे में सोचना तो शुरू नहीं कर देंगे , लेकिन आप निरंतर कमज़ोर होती जायेंगी और असमय अनेक रोगों का शिकार हो जायेंगी ।
खूब खाइए - अच्छा खाइए - अच्छा खिलाइए ,
खुश रहिये - खुश रखिये ,
यदि आप स्वस्थ्य हैं , तो आपका परिवार भी खुशहाल है।
आप लक्ष्मी हैं, सरस्वती हैं, अन्नपूर्णा है - कृपया अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिये।
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रोहित जी ,
रोज़ लड़िये इसी बात पर माँ से । एक ना एक दिन सफलता ज़रूर मिलेगी। शायाद आप दिल से गुजारिश नहीं करते।
रश्मि जी ,
आपको अपने घर आँगन में वापस देखकर खुश हूँ। ऐसी भी क्या व्यस्तता ? जब जो दिल में आये , उस विषय लिख ही डालिए।
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@ किलर झपटा ,
प्यार और इज्ज़त मांगने से नहीं मिलता, कमाया जाता है ।
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@ AS -
इसमें कोई संदेह नहीं की आज बहुत से पुरुष अपने परिवार में स्त्रियों को सम्मान देते हैं, उनका पूरा पूरा ख़याल रखते हैं और उनके कामों में , बिना शर्म महसूस किये उनकी हाथ बताते हैं।
आपसे सहमत हूँ।
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हाथ बंटाते हैं ** - correction !
आद.दिव्या जी,
मेरे घर का भी यही हाल है ,आज मैं आपका लेख अपनी श्रीमती जी को पढ़ाऊंगा शायद कुछ प्रभाव पड़े !
Quote:
@ Vishwanaath ji ,
चीकू सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर यदि आप उन्हीं विशेषज्ञ से पूछकर यहाँ जोड़ सकें , तो पाठकों का लाभ होगा।
Unquote
==============
उस विशेषज्ञ से पाँच मिनट के लिए मिलने में ५०० रुप्यों का खर्च होता है और एक हफ़्ते पहले appointment book करना पडता है।
सोचा, चालाकी से यहाँ मुफ़्त में सलाह ले लूँ।
कोई बात नहीं, अगली बार जब check up के लिए जाएंगे, तब पूछेंगे।
आशा करता हूँ कि चीकु सम्बन्धी सवाल का जवाब के लिए अतिरिक्त परामर्श शुल्क देना नहीं पडेगा।
कुछ पता चला तो यहाँ, निशुल्क सूचना दूँगा।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
apna hit chhodkr privar ke lie jeeti hai , isilie to aurt devi hai aur isi karn uska bhartiy smaj men vishesh darza bhi hai , lekin aapki bat bhi bilkul jayj hai . shrir ki dekhbhal to sbhi ko krni chahie , fir aurt ki jimmedariyon ka to khin ant hi nhi .ath unhe fal khane hi chahie . aapka lekh unhen laparvahi krne se avshy rokega .
आदरणीय डॉ.दिव्याजी,
नमस्कार
आपने एक दम सही बात कही है,
लेकिन मेरे घर में ऐसा नहीं होता है हमारे घर सब एक साथ फल खाते है और मेरी बहन को फल खाने का बहुत शौक है !
सही कह रही हैं आप ... महिलाये अपने बारे में सोचती ही नहीं कभी.
हमारी श्रीमती जी (रेखा) ने हमसे पूछा तो हमने उनको आपकी ये पोस्ट दिखा दी :)
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Mishra ji ,
You did the right thing. Hope Rekha ji will take the post seriously.
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