कलाकार अपनी कलाकृतियों से अव्यक्त भावों को चित्रित करते हैं। कूची और रंगों के अद्भुत संयोजन से लोगों के दिलों दिमाग पर छा जाने वाले बेहतरीन चित्र उकेरते हैं , जो युगों तक अमिट छाप छोड़ जाते हैं हमारे स्मृति पटल पर । अपनी कलाकृतियों द्वारा ही कलाकार राज करते हैं कलाप्रेमियों के दिलों में । एक उत्कृष्ट कलाकृति की मिसाल है 'मोनालिसा' की मुस्कान । युगों-युगों तक वो मुस्कान ह्रदय को आह्लादित करती रहेगी और एक चित्रकार को करोड़ों दिलों में सदा जीवित रखेगी।
लेकिन आज किस वस्तु का दुरुपयोग नहीं हो रहा है ? अश्लील साहित्य लिखे जा रहे हैं । अश्लील फिल्में बन रही है , और अब तो कला जगत भी संक्रमित हो गया है अश्लीलता और अभद्रता से।
जहाँ इस्लाम में परदा-प्रथा पर इतना जोर दिया जाता है वही हुसैन साहब ने हिन्दू देवी-देवताओं को नग्न चित्रित किया अपनी कलाकृतियों में । अब बुद्धिजीवी वर्ग के चित्रकार श्री प्रणव प्रकाश भी कला को कलंकित कर रहे हैं। MBBS और MBA की डिग्री रखने वाले श्री प्रणव प्रकाश जी ने एक स्त्री 'अरुंधती रॉय' का विरोध जताने के लिए उन्हें दो पुरुषों के मध्य निर्वसन चित्रित किया।
इस तरह के चित्र , कलाकार की विकृत मानसिकता को दर्शाते हैं । लोगों को अपने क्रोध पर काबू होना चाहिए । आवेश में आकर किसी स्त्री का अपमान करने के उद्देश्य से उसका निर्वसन चित्र बनाना अत्यंत निंदनीय है। प्रत्युत्तर में अरुंधती की तरफ से भी ऐसे ही चित्र बनें तो फिर अराजकता का एक अंतहीन सिलसिला चल पड़ेगा।
यदि अदालत में न्याय न मिलने पर हताशा की अवस्था में निर्वसन हुई निशाप्रिया भाटिया को मानसिक चिकित्सालय जाने का आदेश दिया जा सकता है तो फिर प्रणव प्रकाश जैसे चित्रकारों को भी मानसिक चिकित्सालय में ही होना चाहिए।
कुछ खोखले तर्क -- चाहे शराबी हो , कातिल हो , बलात्कारी अथवा आतंकवादी , हर कोई अपने कृत्य को येन-केन प्रकारेण , न्यायोचित ठहरा ही लेता है । वैसा ही कुछ अब ये कलाकार भी कर रहे हैं । संस्कारों और मानव मूल्यों को अपनी थोथी दलीलों द्वारा लज्जित कर रहे हैं , और समाज को एक गलत दिशा दे रहे हैं।
पहली दलील मल्लिका शेरावत की -- फिल्म 'हिस ' पर इनके interview को टीवी पर सुना । इनका कहना था "जब 'सर्प' अपनी केंचुल छोड़ता है तो वह नग्न होता है , इसलिए फिल्म में जब सर्प कन्या का जन्म हो रहा है तो जन्म के समय तो व्यक्ति नग्न ही होता है" --अतः मल्लिका भी निर्वसन हैं फिल्म में। अब व्यस्क लोग इनकी दलीलों से सीखेंगे जन्म का सिद्धांत।
दूसरी दलील एक महिला शिक्षिका की -
"जयशंकर प्रसाद की कामायनी में प्रलय के पश्चात का चित्रण है, अब बताइये कि प्रलय में सब नष्ट हो गया हो तो वस्त्र दिखाना कहां तक उचित है। श्रद्धा और मनु को वस्त्र विहीन दिखाना ही ठीक है। अब श्रद्धा का सौंदर्य दिखाना आसाना हो जाता है और मनु का शरीर सौष्ठव "
--------
लेकिन मैडम अभी कौन सी प्रलय आई है जो स्त्री को निर्वसन दिखाना पड़ा ? जब प्रलय होगी और लोग भूखे मरेंगे तो वस्त्र के साथ-साथ कूची और रंग भी नहीं बचेंगे चित्रकार के पास । पेट की ज्वाला शांत करने में व्यस्त होंगे । उस समय क्रोध , लोभ , मोह सब नष्ट हो जाएगा , स्त्री और पुरुष का भेद मिट जाएगा । वसन और निर्वसन को सोचने समझने की बुद्धि नहीं बचेगी । सिर्फ अपने जीवन को बचाने का भय शेष होगा।
तीसरी दलील एक पुरुष कलाप्रेमी की -
"चित्र निहारने की वस्तु है , विचार-विमर्श की नहीं "
ज़रूर निहारिये जनाब , लेकिन जब उस चित्र के साथ किसी का नाम न जोड़ा गया हो ।
मुझे लगता है , कलाकारों को तथा चित्रकारों को अपनी कलाकृतियों में किसी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । स्त्री को निर्वसन चित्रित करना , चित्रकार की विकृत मानसिकता की परिचायक है ।
बुद्धिजीवी वर्ग अपनी गैरजिम्मेदाराना दलीलों से ऐसे कृत्यों को उचित ना ठहराएं तथा अपनी संस्कृति और मानव मूल्यों को शर्मसार न करें । कला को सौन्दर्यबोध का माध्यम होना चाहिए , वीभत्स नहीं ।
आभार ।
लेकिन आज किस वस्तु का दुरुपयोग नहीं हो रहा है ? अश्लील साहित्य लिखे जा रहे हैं । अश्लील फिल्में बन रही है , और अब तो कला जगत भी संक्रमित हो गया है अश्लीलता और अभद्रता से।
जहाँ इस्लाम में परदा-प्रथा पर इतना जोर दिया जाता है वही हुसैन साहब ने हिन्दू देवी-देवताओं को नग्न चित्रित किया अपनी कलाकृतियों में । अब बुद्धिजीवी वर्ग के चित्रकार श्री प्रणव प्रकाश भी कला को कलंकित कर रहे हैं। MBBS और MBA की डिग्री रखने वाले श्री प्रणव प्रकाश जी ने एक स्त्री 'अरुंधती रॉय' का विरोध जताने के लिए उन्हें दो पुरुषों के मध्य निर्वसन चित्रित किया।
इस तरह के चित्र , कलाकार की विकृत मानसिकता को दर्शाते हैं । लोगों को अपने क्रोध पर काबू होना चाहिए । आवेश में आकर किसी स्त्री का अपमान करने के उद्देश्य से उसका निर्वसन चित्र बनाना अत्यंत निंदनीय है। प्रत्युत्तर में अरुंधती की तरफ से भी ऐसे ही चित्र बनें तो फिर अराजकता का एक अंतहीन सिलसिला चल पड़ेगा।
यदि अदालत में न्याय न मिलने पर हताशा की अवस्था में निर्वसन हुई निशाप्रिया भाटिया को मानसिक चिकित्सालय जाने का आदेश दिया जा सकता है तो फिर प्रणव प्रकाश जैसे चित्रकारों को भी मानसिक चिकित्सालय में ही होना चाहिए।
कुछ खोखले तर्क -- चाहे शराबी हो , कातिल हो , बलात्कारी अथवा आतंकवादी , हर कोई अपने कृत्य को येन-केन प्रकारेण , न्यायोचित ठहरा ही लेता है । वैसा ही कुछ अब ये कलाकार भी कर रहे हैं । संस्कारों और मानव मूल्यों को अपनी थोथी दलीलों द्वारा लज्जित कर रहे हैं , और समाज को एक गलत दिशा दे रहे हैं।
पहली दलील मल्लिका शेरावत की -- फिल्म 'हिस ' पर इनके interview को टीवी पर सुना । इनका कहना था "जब 'सर्प' अपनी केंचुल छोड़ता है तो वह नग्न होता है , इसलिए फिल्म में जब सर्प कन्या का जन्म हो रहा है तो जन्म के समय तो व्यक्ति नग्न ही होता है" --अतः मल्लिका भी निर्वसन हैं फिल्म में। अब व्यस्क लोग इनकी दलीलों से सीखेंगे जन्म का सिद्धांत।
दूसरी दलील एक महिला शिक्षिका की -
"जयशंकर प्रसाद की कामायनी में प्रलय के पश्चात का चित्रण है, अब बताइये कि प्रलय में सब नष्ट हो गया हो तो वस्त्र दिखाना कहां तक उचित है। श्रद्धा और मनु को वस्त्र विहीन दिखाना ही ठीक है। अब श्रद्धा का सौंदर्य दिखाना आसाना हो जाता है और मनु का शरीर सौष्ठव "
--------
लेकिन मैडम अभी कौन सी प्रलय आई है जो स्त्री को निर्वसन दिखाना पड़ा ? जब प्रलय होगी और लोग भूखे मरेंगे तो वस्त्र के साथ-साथ कूची और रंग भी नहीं बचेंगे चित्रकार के पास । पेट की ज्वाला शांत करने में व्यस्त होंगे । उस समय क्रोध , लोभ , मोह सब नष्ट हो जाएगा , स्त्री और पुरुष का भेद मिट जाएगा । वसन और निर्वसन को सोचने समझने की बुद्धि नहीं बचेगी । सिर्फ अपने जीवन को बचाने का भय शेष होगा।
तीसरी दलील एक पुरुष कलाप्रेमी की -
"चित्र निहारने की वस्तु है , विचार-विमर्श की नहीं "
ज़रूर निहारिये जनाब , लेकिन जब उस चित्र के साथ किसी का नाम न जोड़ा गया हो ।
मुझे लगता है , कलाकारों को तथा चित्रकारों को अपनी कलाकृतियों में किसी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । स्त्री को निर्वसन चित्रित करना , चित्रकार की विकृत मानसिकता की परिचायक है ।
बुद्धिजीवी वर्ग अपनी गैरजिम्मेदाराना दलीलों से ऐसे कृत्यों को उचित ना ठहराएं तथा अपनी संस्कृति और मानव मूल्यों को शर्मसार न करें । कला को सौन्दर्यबोध का माध्यम होना चाहिए , वीभत्स नहीं ।
आभार ।
74 comments:
अश्लील साहित्य लिखे जा रहे हैं । अश्लील फिल्में बन रही है , और अब तो कला जगत भी संक्रमित हो गया है अश्लीलता और अभद्रता से ।निसंदेह ! सस्ती लोकप्रियता की चाहत ?
ऐसी मानसिकता को क्या कहा जाय ?
आभार .........
तर्क का तो प्रत्युतर होता है किन्तु कुतर्क का कोई उत्तर नहीं होता
bahut shaktishali aur sachcha lekh.
नग्नता में कला मुझे तो नहीं दिखाई देती है . वैसे भी बदला लेने के लिए किसी का नग्न चित्रण निंदनीय ही है . यथार्थपरक आलेख .
यही तो विडम्बना है कि लोग आजकल नग्ना को कला का रूप देने में लगे हुए हैं!
divya ji, bahut badhiya....
badhai.......
समस्या का एक पहलू मीडिया और खबरों में आकर (या लाकर) सेलीब्रिटी बनने (या बनाने) का रोग (या धन्धा) भी है।
जब राहुल महाजन,राखी सावंत,मीका,बिग बास के बिग्डैल आदि नोट पीट सकते हैं और उपर से "लैप-डाग" मीडिया में खूब "ख्याति" भी बटोर सकते हैं तो ये सब तो होगा ही!!
सही दिशा दिखाता लेख ...पर कोई सही दिशा देखना भी चाहेगा ? ऐसे लोगों पर बात चीत ही न की जाए तो उनकी ख्याति पाने की लालसा स्वयं दम तोड़ देगी ...
बहन जी कम से कम निगेटिव पब्लिसिटी के भूखे हिंदू देवी-देवताओं का नग्न चित्रांकन करने वाले मकबूल फ़िदा हुसैन को इतने सम्मान से साहब न लिखें यदि आपके मन में उनकी साहबियत मान्य है तो कोई वाद नहीं है(सिर्फ़ हुसैन न लिखें वे एक श्रद्धेय इमाम और इस्लाम के चौथे खलीफ़ा के बेटे थे जो कि उस दौर के आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ते शहीद हुए थे)
बाजारवाद का दौर है तो मल्लिका शेरावत हों या अन्य इस तरह के लोग ये समझ चुके हैं कि बदनाम हुए तो क्या हुआ प्रसिद्धि तो मिली जैसे पूजा भट्ट ने तो नग्न होकर अपने शरीर पर ही पेंटिंग कराके इसी टोटके को अपनाया था। आजकल वीभत्सता,भय,अश्लीलता सभी का बाजार बन गया है क्योंकि बाजार ने षडयंत्र करके बड़े धीरे से संचार माध्यमों से घर परिवार में घुस कर "बिंदास बोल कांडोम वाली संस्कृति" बीजारोपित करी है। बुद्धिजीवी वर्ग के पास खुद को सही बताने के तर्क होते हैं जिन्हें हम कुतर्क कहते हैं पर वे पढ़ेलिखे षडयंत्रकारी हैं।
आपका आभार
लिखती रहिये
अनोप मंडल
एक ओर एक नग्न स्त्री की तस्वीर रख दी जाए और दूसरी ओर एक भारतीय परिधानों से सजी युवती की। किसे ज्यादा देखा जाएगा, नि संदेह पूर्ण परिधानों वाली युवती की तस्वीर को।
मेरा मानना है कि इस तरह के हथकंडे थोथी वाहवाही लूटने के लिए अपनाए जाते हैं।
अच्छी पोस्ट। शुभकामनाएं आपको।
आवेश में आकर किसी स्त्री का अपमान करने के उद्देश्य से उसका निर्वसन चित्र बनाना अत्यंत निंदनीय है। प्रत्युत्तर में अरुंधती की तरफ से भी ऐसे ही चित्र बनें तो फिर अराजकता का एक अंतहीन सिलसिला चल पड़ेगा
.
बस यही हमारे समाज की कमी है. और इस ब्लॉगजगत मैं भी इसी का असर दिख रहा है.
@ संगीता स्वरूप जी ने जो कहा वह करने योग्य है.
मैं संगीता स्वरूप (गीत) जी के एक -एक शब्द का समर्थन करता हूँ |
खुश और सेहतमंद रहो !
.
जिन लोगों को लगता है की इस विषय पर चर्चा नहीं होनी चाहिए । वो लोग कृपया इस लेख पर टिपण्णी न करें । किसी के ऊपर कोई जबरदस्ती नहीं है टिपण्णी करने की ।
मुझे लगता है की समाज में हर वो बात , जो गलत हो रही है उसके खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए । सब चलता है , वाला attitude मेरा नहीं है ।
जिन लोगों को ये लेख व्यर्थ लग रहा हैं वो कृपया टिपण्णी लिखने में अपना समय नष्ट न करें । मुझे ये चर्चा आवाश्यक लगी तभी तो ये लेख लिखा है । अतः बार-बार ये लिखना की - 'चर्चा न करें ' मुझे कुछ जम नहीं रहा।
शीर्षक बता देता है की लेख में क्या है । जिसे नहीं पसंद है विषय , उस पर कोई दबाव भी नहीं है टिपण्णी करने का।
कम से कम मुझे इतनी आजादी तो दीजिये की मैं क्या लिखूं और क्या न लिखूं ।
आभार ।
.
हम जब तक समाज में रहते हैं तब तक समाज के अनुशासन को भी मानना पड़ेगा। समाज नग्नता को स्वीकार नहीं करता है इसलिए समाज की वर्जनाओं को भी देश के संविधान की तरह मानना पड़ेगा। ऐसे कलाकारों को निर्वसन होकर होकर किसी कंदरा में रहना चाहिए।
मुझे लगता है , कलाकारों को तथा चित्रकारों को अपनी कलाकृतियों में किसी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । स्त्री को निर्वसन चित्रित करना , चित्रकार की विकृत मानसिकता की परिचायक है ।
bilkul theek
कितना ही शोर मचा लें हम मगर होता कुछ नही है हमारे देश मे …………आज मानसिकता ही विकृत हो गयी है…………ऐसे मे कलाकार को अपनी मर्यादा का ध्यान तो रखना ही चाहिये।
दिव्या जी ,
नग्नता या अश्लीलता का प्रदर्शन कला के हर क्षेत्र में निंदनीय है , अब चाहे वह चित्रकला हो -संगीत हो -साहित्य हो अथवा नृत्य | इस तरह के कार्य करनेवाले कुत्सित मानसिकता के ही कहे जायेंगे | इनकी अपने कृत्यों के सापेक्ष, उसे सही ठहराने की दलीलें हास्यास्पद ही लगती हैं | सर्वमान्य अवधारणा के विपरीत किया जाने वाला आचरण कदापि उचित नहीं कहा जा सकता | हमारे समाज का एक छोटा सा धड़ा अपने निहित स्वार्थवश ऐसे लोगों का समर्थन भी करता रहा है जो चिंता का विषय है |
कहा जाता है कि शैतान भी अपने पक्ष में बाइबिल से तर्क ले आता है.
अश्लीलता चित्र की हो या भाषा की निंदनीय तो है ही.
"बुद्धिजीवी वर्ग अपनी गैरजिम्मेदाराना दलीलों से ऐसे कृत्यों को उचित ना ठहराएं तथा अपनी संस्कृति और मानव मूल्यों को शर्मसार न करें । कला को सौन्दर्यबोध का माध्यम होना चाहिए , वीभत्स नहीं । "
बिलकुल सही कहा आपने !
कला को बदनाम होने से बचाना चाहिए| मेरा मानना है अगर आप प्रसिद्धि पाने के लिए या चर्चा में बने रहने के लिए कुछ करते हो तो आप कलाकार नहीं हो सकते| चित्रकार को तो और संवेदनशील होने की ज़रूरत है| लेकन अफ़सोस कि इसे बदनामी की राह देने वालों में कलाकार और चित्रकार ही सबसे आगे हैं| केन्द्र में स्त्री रहती है क्योंकि दुनिया में अगर सबसे ज्यादा बिकाऊ कोई चीज़ है तो वह है स्त्री का शरीर| इस आपाधापी और खुद को स्थापित करने की होड़ में स्त्रियाँ भी आगे हैं, नग्नता का सहारा उसका एक उदहारण है, जो सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है|
यह दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही किसी भी कीमत पर स्वीकार करने योग्य नहीं है|
दिव्याजी,
आपके निम्न विचार कि
"लेकिन मैडम अभी कौन सी प्रलय आई है जो स्त्री को निर्वसन दिखाना पड़ा ? जब प्रलय होगी और लोग भूखे मरेंगे तो वस्त्र के साथ-साथ कूची और रंग भी नहीं बचेंगे चित्रकार के पास । पेट की ज्वाला शांत करने में व्यस्त होंगे । उस समय क्रोध , लोभ , मोह सब नष्ट हो जाएगा , स्त्री और पुरुष का भेद मिट जाएगा । वसन और निर्वसन को सोचने समझने की बुद्धि नहीं बचेगी । सिर्फ अपने जीवन को बचाने का भय शेष होगा।"
आपके दिल के आक्रोश को व्यक्त करते हैं.
मै भी अश्लीलता के विरुद्ध हूँ. पर थोडा सा विषयान्तर कर रहा हूँ. खजुराहो और कोणार्क की नग्न मूर्तियों के बारे में क्या विचार हैं आपके और सुधिजन पाठकों के.
मै अश्लीलता के विरुद्ध.....
वे समाज के दुश्मन और हे के पात्र है !!धन्यवाद !
किसी से बदला लेने, कियी को नीचा दिखाने या अपमानित करने के लिए कला को माध्यम बनाना निंदनीय है। ऐसा करना कला को अपमानित करना है। ऐसा व्यक्ति कलाकार हो ही नहीं सकता, वह तो कुंठा का शिकार एक मनोरोगी कहलाएगा।
अशालीनता को उचित ठहराने के लिए दिया जाने वाला तर्क, तर्क नहीं कुतर्क है, केवल कुतर्क। कुतर्कियों के पास समझ नहीं होती।
अश्लीलता चित्र की हो या भाषा की निंदनीय तो है ही
kunwar kusumesh ji k sath sehmat hu.
ये सब विकृत मनोरोगी हैं
इनका इलाज होना चाहिए।
@ "चित्र निहारने की वस्तु है , विचार-विमर्श की नहीं "
इनसे कोई कहे ऐसे चित्र अपने घर परिवार के लोगों का ये बनाना चाहेंगे।
धिक्कार है ऐसे लोगों को। ऐसी सोच को।
दिव्या जी मै आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ. आप ऐसे विचारणीय विषयों पर अपनी लेखनी का सदुपयोग कर रही हैं. आपको बारम्बार मेरा नमन...
@खजुराहो और कोणार्क की नग्न मूर्तियों के बारे में क्या विचार हैं आपके और सुधिजन पाठकों के.
आदरणीय राकेश जी! जो बात गलत है वो सदैव गलत ही होगा. रही बात कोणार्क व खजुराहो की कला की तो वो उन सामंती राजाओं की मानसिकता का प्रदर्शन है जो कला की चासनी के रूप में परोसा गया . सच्ची कला तो वो है जिसका आनंद पुरे परिवार के साथ उठाया जा सके. आप स्थिर मन से सोचिये क्या हम ऐसी जगह पर अपनी पुत्री के साथ जा सकते हैं? उनके सवालों का जबाब दे सकते हैं ? यदि नग्न चित्रण में कला दिखती है तो हम वस्त्र क्यों पहनते हैं. क्या नग्न होना ही प्रगतिशीलता है. यदि यह उचित है तो फिल्मो में सेंसर क्यों? प्ले बाय जैसी पत्रिका पर प्रतिबन्ध क्यों ?
आप से आग्रह है की आप भी ऐसे समाज विरोधी मिथ्या विचारों तथा गलत परम्पराओं तथा अंध विश्वास के विरुद्ध हमारे मुहीम में शामिल हों!
ब्यूटी लायिज इन द आईज आफ बिहोलडर एंड अ थिंग आफ ब्यूटी इज ज्वाय फार ईवर
दमदार आलोचनात्मक लेख कला और साहित्य का कुछ तो आदर्श होना चाहिए |डॉ० दिव्या जी आपकी सोच बिलकुल सराहनीय है |
कला का दुरूपयोग असहनीय लगता है ।
निश्चय ही विषय विचारणीय है और बहुत सटीक अवलोकन हैं आपके।
Absolutely great are your views. I agree.
मक़बूल फ़िदा हुसैन और प्रणव प्रकाश जैसे लोग बौद्धिक विक्रिति के शिकार हैं,उपरवाला उनपर रहम करे यही मेरी भावना है।
हम कौन होते हैं तय करने वाले कि कैसी कला बने और कैसी न बने? इसका निर्णय स्वयं समय करेगा कि कौन सी कला दीर्घजीवी रहेगी।
वस्त्र आदिम समाज के इतिहास का बहुत छोटा सा हिस्सा है । वस्त्र विहीन चित्रण इतना खूबसूरत भी हो सकता है कि आप सुधबुध खो दें, कला और सौन्दर्य बोध सबका अलग हो सकता है। लेकिन ऐसे विषय पर निर्णय देने से बचना चाहिये जिसका आपको आधा अधूरा ज्ञान हो। सिर्फ़ इसीलिये मैं हर कला को बैनेफ़िट और डाउट देता हूँ (हुसैन को भी), उनकी भारतमाता वाली पेंटिंग मुझे तो बहुत पसन्द आयी।
बाकी पसन्द न आयी तो क्या, इससे हुसैन की कला कम नहीं हो जाती।
इस प्रवत्ति पर विराम लगना चाहिये कि हमें नहीं पसन्द तो ऐसा नहीं चलेगा। मत देखिये वैसी कला आप, मत कीजिये उसकी चर्चा लेकिन अगर आप कला के विद्वान नहीं हैं तो कम से कम उसे कलंकित कहने का भी आपको कोई हक नहीं है।
Who will guard the guards?
husaain to hai...nishchit...
केंचुली छोडता सर्प और कपडे छॊडती मल्लिका एक समान :)
ज़हर जो भरा है :)
नग्नता का ही आज चलन हे, सब इसे ही आधुनिकता समझ रहे हे, इस के बिरुध बात करने वालो को गवार या वेबकुफ़ समझते हे यह लोग...खजुराहो और कोणार्क की नग्न मूर्तियों के बारे में क्या विचार हैं, यह भी बेहुदगी ही हे कोन जायेगा वहां अपनी बेटी ओर बहन के संग? या कोन वहा से चित्र खींच कर अपने घर मे मां बहन को दिखायेगा?आज की फ़िल्मे ओर इस के कलाकारो को एक बहाना चाहिये अपनी गंदगी दिखाने के लिये, बस हमे ही इन सब को नकारना चाहिये, आप के इस सुंदर लेख की एक एक बात से सहमत हुं, धन्यवाद
बहुत सही कह रही हैं आप ये विकृत मानसिकता ही है जो इस तरह के चित्रों में झलकती है और जिससे आये दिन समाज और देश को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है.
किसी का नग्न चित्रण ,रचयिता की मानसिक विकृति है,उसका समर्थन
विकृतियों का विस्तार करना है.जब कि कला सुसंस्कृत बनाती है , जीवन की मूलवृत्तियों को सँवारकर सुन्दर बनाती है ,सत्य के साथ शिव और सुन्दर का जुड़ाव कला का कृतित्व है.
.
@ नीरज रोहिला ,
किसने कहा की लेखिका कला की पारखी नहीं है ? आपको कैसे पता चला की लेखिका का ज्ञान आधा-अधूरा है ?
अगर सबको Benefit of doubt देना है तो ए राजा और कलमाड़ी और कसाब के खिलाफ ही आवाज़ क्यूँ ? फिर अरुंधती और गिलानी के खिलाफ आवाज़ क्यूँ ? फिर बेचारे मनमोहन सिंह जी पर चुप्पी का आरोप क्यूँ ?
यदि सबको अपने काम से काम ही रखना है तो प्रकाश प्रणव को परायी स्त्री का अभद्र चित्र बनाने की आवश्यकता क्या थी ? सबसे पहले ऐसे सिरफिरे कलाकारों को अपना नग्न चित्र बनाकर वाह-वाही लेनी चाहिए । M F Hussain जी ने तो हिन्दू धर्म की आस्था के साथ ही खिलवाड़ कर दिया । मीनाक्षी फिल्म में जब Hussain जी का विरोध मुस्लिम समुदाय द्वारा हुआ तो उन्होंने तुरंत माफ़ी मांग ली , लेकिन हिन्दू देवी देवताओं की आस्था के साथ भद्दा माज़क करने के लिए उन्होंने कभी माफ़ी नहीं मांगी। यदि यही काम वो अपने देश 'क़तर' में करते तो उनके कतरे बना के फेंक दिया जाता ।
और प्रणव प्रकास जैसे लोगों के कारण ही आज भी महिलाएं अपमानित और असुरक्षित हैं। एक तरफ ऐसे लोग स्त्रियों को लज्जा का पाठ पढ़ते हैं , दूसरी तरफ निर्लज्ज होकर स्त्रियों को अपमानित करते हैं ।
ऐसे घटिया और मानसिक रोगियों को आप कलाकार कहते हैं ? ऐसे लोग 'स्वप्नदोष' नामक रोग से भी पीड़ित होते हैं । और ऐसे लोग SADIST भी कहलाते हैं , जो वीभत्स चित्रों द्वारा ख़ुशी हासिल करते हैं । ऐसे पुरुषों से उनकी अपनी बेटियाँ भी महफूज़ नहीं रह सकतीं। इन लोगों के लिए तो 'porn-sites' भी काफी नहीं ।
.
.
खाली कूची हाथ में ले लेने से कोई कलाकार नहीं हो जाता ? कालाकार तो वो है जो कला को नए आयाम देता है , कला को नयी ऊँचाइयों तक ले जाता है ।
पता नहीं कुछ लोगों को निर्वसन स्त्री शरीर में क्या ख़ूबसूरती दिखती है ? आदिकाल के वनमानुष बनकर जीना पसंद है तो बात ही अलग है ।
.
digbhramit mastshk sadaiv vikritiyon ka sath deta hai .yah unaka dosh nahin hai unake sanskaron ka hai .dridh lekhan ke liye sadhuvad . "jwala tum
kuchh bhi nahi ,bujha denge,samandar rahabar hamara hai " .
with great difficulty man learnt to cover himself over the years and we called it civilisation .now in this modern age people started shedding it just like that and we are calling it art ....wot a fall my countryman ..
according to me both the artist and the model are equally abnormal when it comes to making and displaying the same in public ..
just imagine the traumatic experience one undergoes seeing their kith and kin in that state ...luks like we are hell bent on going back into the stone age ,in the name of modernism and art ...may be i am a lil fuddy duddy to think on these lines ....plz cover urselves ladies n gentleman ..dont let ur beauty turn vulgar ..thanks
कला में नग्नता केवल हमारे देश में ही नहीं, दुसरे देशों में भी है ... केवल इस वजह से इसका विरोध मुझे नहीं जंच रहा है ... खजुराहो के मंदिरों में जो नग्नता दिखाई गई है वो जग प्रसिद्द है ... कला के रूप में सराहा गया है ... युगों तक सराहा जायेगा ... क्यूंकि उसमें किसीके खिलाफ बदला लेने की भावना नहीं है ... कोई धर्म विशेष को चोट पहुँचाने की भावना नहीं है ...
मैं आपकी इस बात का समर्थन करता हूँ कि आजकल जिस तरह से नग्नता को परोसा जा रहा है वो गलत है ... MFHussain हो या प्रणव प्रकाश ... इन लोगों ने कला का दुरुपयोग किये हैं ...
MFHussain की वो कलाकृति (यदि उसे कलाकृति कही जा सके तो) जिसमें उन्होंने हिंदू देवियों की नंगी तस्वीर बनाई है ... एक धर्म के प्रति उपहास और अपमान है इसमें कोई संदेह नहीं है ... इससे उस आदमी की घटिया मानसिकता का परिचय मिलता है ...
आदरणीय डॉ.दिव्याजी,
नमस्कार
मैं आपकी बात से पूरी तहरे सहमत हूँ! आपका आभार
दोष नग्नता में नहीं उसे देखने वाली दृष्टि में है....
जहां तक मुझे पता है आपकी विशेषज्ञता चिकित्सा शास्त्र में है .....उत्तमा जी कला संकाय में हैं -अल्मा मैटर एक है दोनों का
तो क्या इल्म की माँ ने ही अपने आँख के तारों(प्यूपिल्स ) का पक्षपात पूर्ण तरीके से लालन पालन किया ..?
नीरज रोहिल्ला जी के विचार को ऐसे ही नहीं टरकाया जा सकता है -
वे विषयगत विद्वान् न होते हुए भी कितने विनम्र हैं और यहाँ विषयगत विद्वता न होकर भी लोग कितने उग्र हैं ..
सच यह है -विद्या ददाति विनयम ....
निसर्ग की खूबसूरत चीजें -आसमान तारे चंदा और वादियाँ सभी तो निर्वसन होकर ही सौन्दर्य की राशियाँ ,अजस्र स्रोत हैं ..
फिर नर नारी तन के समग्र सौन्दर्य को निहारने में ऐसी क्लैव्यता क्यूं? विह्वल संकोच क्यूं ?
ये काम ही बिना मतलब की ख्याति के लिए किया गया है....बिना अंजाम सोचे....सौंदर्य को दिखाना और शरीर और कपड़ों से परे हो जाना एक बात है और इस तरह से किसी पर अपनी भड़ास निकालना दूसरी बात....
गलत बात...
मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
.
@ अरविन्द मिश्र -
कृपया विषय पर लिखें । किसी की पैरवी न करें तो बेहतर होगा । इस ब्लॉग पर गुटबाजी का कोई स्थान नहीं है ।
.
.
@ अरविन्द मिश्र -
यदि आपको लगता है की मेरे अन्दर विनम्रता नहीं है तो कृपया मुझसे दूर रहिये । न तो आप जैसी विद्वान् हूँ , न ही विनम्र । इसलिए आपके लिए यही हितकर होगा की आप अपने विद्वान् एवं विनम्र मित्रों के ब्लौग पर ही जाया करें । मुझसे पर्याप्त दूरी रखें तो मेरे और आपके , दोनों के लिए श्रेयस्कर होगा ।
आप यहाँ टिपण्णी कर जाते हैं तो मुझे ना चाहते हुए भी आपके ब्लॉग पर आना पड़ता है ।
जब आपके मन में मेरे लिए इतना द्वेष है तो आपको मुझसे दूर ही रहना चाहिए। ये पोस्ट न आपके ऊपर है , न आपके मित्रों के ऊपर है । फिर आपको मिर्ची क्यूँ लग रही है ?
यहाँ चर्चा , विषय पर हो रही है , ब्लॉगर्स की विनम्रता पर नहीं। जो मेरे मित्र हैं उन्हें मैं विनम्र ही लगती हूँ । लेकिन दुश्मनों को कभी विनम्र नहीं लग सकती ।
नीरज जी को जो उचित लगा , उन्होंने लिखा । जो मुझे उचित लगा , वो मैंने प्रति-टिपण्णी में लिखा । इसमें आपको क्या आवश्यकता आन पड़ी मुझसे झगडा करने की ? यहाँ विमर्श चल रहा है , सभी समझदार है । फिर आप इतने व्यक्तिगत क्यूँ हो जाते हैं मेरी पोस्ट पर ? मैं विनम्र हूँ या या नहीं , इसका सर्टिफिकेट देने का कोई अधिकार नहीं है आपको।
पहले भी आप मुझे 'कटही-कुतिया' कह चुके हैं । आपकी विनम्रता तो जग जाहिर है ।
अरविन्द जी , ईर्ष्या का कोई इलाज नहीं है । आपके लिए उपयोगी एक लेख का लिंक दे रही हूँ। पढ़ लीजियेगा।
.
.
Here is the link for you -
इन्द्रिय निग्रहण --- ईर्ष्या एक घातक मानसिक विकार --- Jealousy-A malignant cancer !
http://zealzen.blogspot.com/2010/10/jealousy-malignant-cancer.html
.
बिल्कुल सही कह रही हैं आप ...सशक्त लेखन यूं ही अनवरत् चलता रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ ..।
सार्थक प्रस्तुति, बधाईयाँ !
उत्तम लेखन.....
स्वतंत्र विषय चयन...
कदाचित चित्रकार जब निर्वसनता और नंगेपन के भावार्थ में लीपापोती करें तब विवादास्पद प्रसिद्धि हासिल करने का प्रयास मात्र रहता है।
एम.एफ़.हुसैन से उसकी बेटी और मां बची हुई हैं यदि आप चाहें तो आपको उसके उन चित्रों की लिंक दे दूं जहां उसने भारतमाता व अन्य हिंदू देवी देवताओं का नग्न/वीभत्स चित्रण करा है लेकिन वहीं खुद की मां बहनों और जिनसे जूते खाने का डर है उन्हें कपड़ों में बनाया है।
अरविन्द मिश्र पर ध्यान मत दीजिये यदि वे आपको पशु समझते हैं। नग्न तो जैन मुनि भी होते हैं कदाचित कोई उनमें भी सौन्दर्य तलाश सकता होगा और स्तनपान कराती मां भी यदि किसी को वीभत्स लगे तो ये उसकी निजी सोच होगी।
वैसे आप प्रतिक्रिया करेंगी इसमें संदेह है।
दिव्या जी बहुत सही लिखा आपने आज अश्लीलता देश के हर एक क्षेत्र में इस कदर समाहित होता जा रहा है मनो लोगो मैं होड़ लगी हो की कौन इसमें डॉक्टरेट पहले हासिल करेगा ! न जाने लोग क्यों अपनी सभ्यता और संस्कृति को कदम कदम पर शर्म सार कर रहे हैं . बहतरीन लेख लिखा है आपने
नग्नता में कला खोजना और उसे कला का रूप देना .... या उस रूप को पसंद करके अपने कला साधक का परिचय देना ... दोनो ही ग़लत हैं ...
.
@-वैसे आप प्रतिक्रिया करेंगी इसमें संदेह है...
--------
संजय जी ,
नहीं जानती आपने ये क्यूँ लिखा । फिर भी आपके वाक्य में छुपा व्यंग समझ सकती हूँ। क्या लिखूं ? इंसान हूँ न , इसलिए कभी-कभी मैं भी उदास होती हूँ। मित्र कभी बनाया नहीं ना , इसलिए अकेले ही लडती हूँ खुद से भी और समाज से भी । और वक़्त लग जाता है संभलने में । मेरी उदासी को ही मेरी हार समझ लीजिये। आज लिखने की अवस्था में नहीं हूँ, शायद कल कुछ लिखूं।
.
sarahniya post ! aapse sahmat hun !
विरोध का यह तरीका बिलकुल भी उचित नहीं कहा जा सकता.. आपसे बिलकुल सहमत हूँ !!
दिव्या जी:
इस नग्नता को बढ़ावा कौन देता है...हम आप और ये समाज और हमारी व्योस्था..
जब M F हुसैन जैसा देशद्रोही हमारे देवियों की नग्न चित्र बनता है और किसी ने उसे गलत कहा या विरोध किया तो आप आपके(माफ़ करें ये व्यक्तिगत नहीं है) और लेखको जैसे बुद्धिजीवी उस देशद्रोही..................... के सहयोग में आ जातें है...
इसका मतलब इस व्योस्था के लोग ही कहतें है की तुम नंगा करो देवी को नारी को..सब सही है क्युकी तुम कलाकार हो और हमारे जैसे नामर्द बुद्धिजीवी तुम्हारे साथ है..
आप का एक लेख पढ़ा था नारी सशक्तिकरन पर मुझें बताएं क्या नारी के शारीर का प्रदर्शन सशक्तिकरण है..ऐसा ही देखने को मिलता है ..
और शायद में अतिवादी हूँ पुरे सम्मान के सस्थ एक प्रशन है अरुंधती राय जिसे देशद्रोहियों को के साथ क्या करना चाहिए कृपया बता दें.
अश्लीलता और कला के बीच बहुत मोटी लकीर है। जो स्थूल मस्तिष्क हैं उन्हें शायद यह अंतर न दिखे। ऐसे ही लोग कला और यथार्थ के नाम पर अश्लीलता, दृश्य और श्रव्य दोनों, को संगत ठहराते हैं। उनको ही बच्चे को स्तनपान कराती माँ और प्ले ब्वाय पत्रिका के उत्तेजक चित्रों में कोई अंतर नहीं दिखेगा। आज के संदर्भ में खजुराहो और कोणार्क के तर्क कुतर्क ही अधिक लगते हैं। क्योंकि यह हमें ही तय करना है कि हमें आगे जाना है या पीछे की ओर। मुझे आज तक ऐसा कोई चित्रकार नहीं मिला जिसने
आपका मूल्यांकन शत-प्रतिशत सत्य है। ऐसे चित्रकार मानसिक विकार के शिकार हैं और उन्हें मनोचिकित्सक की आवश्यकता है।
बात तो आपकी सच्ची होती हैं ,लोगों को बुरी क्यों लग जाती हैं ।मसला तो बिल्कुल सही उठाया है आपने ।
इस तरह के हथकंडे थोथी वाहवाही लूटने के लिए अपनाए जाते हैं। आपके लेख में सच्चाई है.
.
आशुतोष जी ,
आप अरुंधती राय के बारे में मेरी राय जानने चाहते हैं तो निम्लिखित लिंक पर पढ़िए । अक्टूबर माह में ये लेख लिखा था । दो मुद्दे एक साथ लिखने का तो औचित्य नहीं है न । किसी के प्रति आक्रोश जताने के लिए , स्त्री को निर्वस्त्र करना अत्यंत निंदनीय है , समस्त नारी जाति का अपमान है , मानवता का हनन है और क़ला के नाम पर कलंक है। एक सभ्य व्यक्ति ऐसा करने के पहले अपनी बहन बेटी के बारे में जरूर सोचेगा । देशभक्ति का ये मतलब नहीं है की , किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जाए ।
-----------
काश्मीर को आज़ाद होना चाहिए -- भूखे नंगे हिंदुस्तान से -- अरुंधती रॉय
http://zealzen.blogspot.com/2011/03/blog-post_10.html
---------------
अजीत गुप्ता जी से सहमत समाज में रहना है तो उसके बनाये नियम किसी हद तक मानने पड़ेंगे
is post par lagatar nazar rakhhe the....jis sandarbh ke samarth-virodh me kai post aa chuki
hai......oos vimarsha me vayakitigat evem akshep
poorn tipplaniyon ko chorkar ......sab grahya hai.
pranam.
@दिव्या जी:
में स्त्री को निर्वस्त्र करने का समर्थक नहीं हूँ..मैने सिर्फ ये पूछा था की अरुंधती जैसे देशद्रोही की सजा क्या होनी चाहिए..
में दो प्रसंगो को एक साथ नहीं ला रहा हूँ दोनों एक साथ जुड़े है..मुझे ये बताएं इस हमारे बुद्धिजीवी वर्ग एवं सरकार के लोगों ने M F हुसैन जैसे देशद्रोही को देश से बाहर जाने के बाद उसे ससम्मान भारत में बुलाने का प्रयास किया..
दुर्गा को माँ का दर्जा मिला है तो उसने बनायीं उनकी नग्न तस्वीर...कानून सबके लिए एक होता है अगर हुसैन का हम स्वागत करतें हैं तो माननीय प्रणव प्रकाश जी का क्यों नहीं???
क्युकि हुसैन ने तो हिन्दू आस्था पर आघात किया और प्रणव ने एक देशद्रोही को नग्न किया...
महिला होने के साथ साथ वो एक देशद्रोही भी है..फिर भी मैं नग्नता का समर्थन नहीं कर रहा हूँ लेकिन हुसैन जैसो के लिए भी कानून और विचार एक जैसे ही होने चाहिए..
.
आशुतोष जी ,
शायद आपने दिए गए लिंक को पढ़ा नहीं । अरुंधती का वक्तव देशद्रोही है , जो अत्यंत निंदनीय है ।
हुसैन जी की अभद्र पेंटिंग भी निंदनीय है , जिसके लिए जनता ने विद्रोह किया और आज वो क़तर के नागरिक हैं। यहाँ उनका कोई स्वागत नहीं है । और इसी तरह प्रणव प्रकाश की हरकत भी निंदनीय है ।
इसमें भेद कहाँ है ? सभी पाठक और टिप्पणीकार एक सुर में निंदनीय कृत्यों की निंदा कर रहे हैं।
.
मैंने बिलकुल पढ़ा था ...
मैं इस व्योस्था की बात बता रहा था की हमारे केंद्रीय मंत्री ने खेद प्रकट किया था हुसैन के प्रसंग को लेकर.. उन्होंने कहा था की हुसैन का पुनः स्वागत है..
हम इसी व्योस्था का हिस्सा हैं...
.
जापान में आई तबाही के बाद , मेरे कुछ मित्रों ने पत्रों द्वारा चिंता जताई और कुशल क्षेम पूछी। थाईलैंड पूरी तरह समुद्र से घिरा हुआ है और भारत के एक अकेले राज्य से भी छोटा है । मेरा निवास समुद्र से आधे किलोमीटर की दूरी पर है । township की समानांतर सड़क , Beach -road है। फिरहाल समाचारों में अभी तक तो यहाँ कोई खतरा नहीं बताया गया है । भारत भी पूरी तरह सुरक्षित ही बताया गया है । जापान में विपदा में फसे लोगों के लिए इश्वर से प्रार्थना कार रही हूँ।
जिन्होंने मेरे बारे में सोचा और चिंता जाहिर की , उन सभी की शुभकामनाओं के लिए आभार।
.
Post a Comment