प्रशंसा एक ऐसा भाव है , जो प्रशंसा मिलने वाले का उत्साह वर्धन करता है , और दिशा-निर्देश करता है। प्रशंसा एक सकारात्मक ऊर्जा है जो सृजनकर्ता , विद्यार्थी , कर्मचारी तथा प्रत्येक क्षेत्र में , व्यक्ति के मनोबल को बढाती है और उसे अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगाने का बल और दिशा मिलती है। इसी उद्देश्य से , सर्टिफिकेट्स , मेडल्स , प्रशस्ति-पत्र , इंसेंटिव , उपहार आदि का चलन है ।
प्रशंसा , किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाती है। उसके व्यक्तित्व को निखारने में मददगार साबित होती है।लैंगिक भेदभाव से परे , प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है। चाहे स्त्री हो , पुरुष हो , बालक हो , युवा हो अथवा बुज़ुर्ग।
प्रशंसा करना भी एक कला है। कुछ लोग सकुचाते हैं , लज्जा वश प्रशंसा नहीं कर पाते । कुछ लोग अंतर्मुखी व्यक्तित्व के होने के कारण अपने मन की बात नहीं कह पाते । कुछ लोग पूर्वाग्रह और द्वेष के चलते प्रशंसा नहीं कर पाते । कुछ लोगों के ह्रदय में प्रशंसा के भाव ही कभी नहीं आते , वो दूसरों को कमतर ही समझते हैं सदा। कुछ लोग अपने प्रतिद्वंदी की प्रशंसा से कतराते हैं ।
प्रशंसा अक्सर झूठी भी होती है , जिसे चाटुकारिता की श्रेणी में रखते हैं। वो अपना काम निकलवाने की दृष्टि से अथवा रिश्तों को जबरन बनाए रखने के उद्देश्य से की जाती है । इसे स्वार्थ की श्रेणी में रखते हैं।
प्रशंसा करना भी सबके बस की बात नहीं। केवल निर्भीक तथा पूवाग्रहों से रहित , एक पवित्र ह्रदय में ही प्रशंसा के भाव आते हैं , और जिह्वा पर सरस्वती की अनुकम्पा से काव्य बन , सुनने वाले के कानों में मिश्री घोलते हैं ।
आभार ।
प्रशंसा , किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाती है। उसके व्यक्तित्व को निखारने में मददगार साबित होती है।लैंगिक भेदभाव से परे , प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है। चाहे स्त्री हो , पुरुष हो , बालक हो , युवा हो अथवा बुज़ुर्ग।
प्रशंसा करना भी एक कला है। कुछ लोग सकुचाते हैं , लज्जा वश प्रशंसा नहीं कर पाते । कुछ लोग अंतर्मुखी व्यक्तित्व के होने के कारण अपने मन की बात नहीं कह पाते । कुछ लोग पूर्वाग्रह और द्वेष के चलते प्रशंसा नहीं कर पाते । कुछ लोगों के ह्रदय में प्रशंसा के भाव ही कभी नहीं आते , वो दूसरों को कमतर ही समझते हैं सदा। कुछ लोग अपने प्रतिद्वंदी की प्रशंसा से कतराते हैं ।
प्रशंसा अक्सर झूठी भी होती है , जिसे चाटुकारिता की श्रेणी में रखते हैं। वो अपना काम निकलवाने की दृष्टि से अथवा रिश्तों को जबरन बनाए रखने के उद्देश्य से की जाती है । इसे स्वार्थ की श्रेणी में रखते हैं।
प्रशंसा करना भी सबके बस की बात नहीं। केवल निर्भीक तथा पूवाग्रहों से रहित , एक पवित्र ह्रदय में ही प्रशंसा के भाव आते हैं , और जिह्वा पर सरस्वती की अनुकम्पा से काव्य बन , सुनने वाले के कानों में मिश्री घोलते हैं ।
आभार ।
75 comments:
shi kha prshnsa ki mhiba to ajib he bhtrin chintn bhtrin lekhn mubark ho . akhtar khan akela kota rjasthan
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दो माह पूर्व एक ब्लौग पर एक पोस्ट पढ़ी थी -- " महिलाएं प्रशंसा की भूखी होती हैं " -- स्त्री-पुरुष के भेद को बढ़ाते , इस बचकाने लेख को पढ़कर ये लेख लिखने की प्रेरणा मिली ।
उनकी चर्चा तो फोरम पर, कर करके मान बढाते हो
और मेरे आँचल में छुप-छुपकर , क्यूँ व्यर्थ मुझे बहलाते हो ?
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"प्रशंसा करना भी सबके बस की बात नहीं। केवल निर्भीक तथा पूवाग्रहों से रहित , एक पवित्र ह्रदय में ही प्रशंसा के भाव आते हैं , और जिह्वा पर सरस्वती की अनुकम्पा से काव्य बन , सुनने वाले के कानों में मिश्री घोलते हैं ।"
बहुत सुन्दर बात बताई आपने.शायद सभी प्रार्थनाओं का रहस्य भी पवित्र और निर्मल ह्रदय से निकले उद्गार ही हैं,जो सुनने वालों के
अंत:करण को भी शांति और आनन्द प्रदान करने में सक्षम होते हैं.
प्रशंसा करने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है कोई अपनी प्रशंसा को ग्रहण कैसे करता है...अगर पैर ज़मीन से ऊपर उठने लगें तो समझ लेना चाहिए कि एक दिन हाल हवा भरे गुब्बारे जैसा ही होगा...ज़मीन पर वापस आएगा तो कोई पूछेगा भी नहीं...अटल जी की कविता सटीक है-
हे प्रभु, मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
कि गैरों को गले मैं लगा न सकूं...
जय हिंद...
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खुशदीप जी ,
जो हवा में उड़ने लगते हैं , वो प्रशंसा के पात्र ही नहीं होते । व्यर्थ है ऐसे मूढ़ लोगों का जिक्र ही ।
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Divya ji bahut sateek bat kahi hai .Rajeev ji ne aapke blog ka ullekh ek anoothhe andaj me ''ye blog achchha laga ''par kiya hai .aap ''http://yeblogachchhalaga.blogspot.com''par aakar hamara utsahvarnan karen .
झूठी प्रशंसा हमेशा चाटुकारिता की श्रेणी में नहीं रखी जा सकती, बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए अध्यापक तथा अभिभावक झूठी प्रशंसा करते हैं|
हाँ, मेरे ब्लॉग पर भी कमेन्ट आयें इस उद्देश्य से की जाने वाली प्रशंसा चाटुकारिता में आ सकती है|
इससे मिलता जुलता एक लेख कुछ समय पहले जाकिर जी के ब्लॉग पर पढ़ा था
क्या आपने अपने ब्लॉग से नेविगेशन बार हटाया ?
आपने प्रशंसा के कोष्टक में प्रोत्साहन लिखा है। प्रोत्साहन और प्रशंसा दो अलग बात हैं। वास्तविक प्रशंसा प्रोत्साहन देती है लेकिन नकली प्रशंसा कभी प्रोत्साहन नहीं देती। प्रोत्साहन से व्यक्ति अपने कार्य में उत्साह से आगे बढ़ता है जबकि झूठी प्रशंसा से व्यक्ति कार्य में पीछे हटता है और केवल प्रशंसा के तरीकों को ही ढूंढता रहता है।
आज मैं आपकी प्रशंसा कर रही हूँ कि आपने मोडरेशन हटा दिया। अब टिप्पणी करने में टिप्पणीकर्ता को आनन्द आएगा क्योंकि उसका सम्मान जो सुरक्षित हुआ है। आपका आभार।
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योगेन्द्र जी ,
बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए अध्यापकों और माता-पिता द्वारा की गयी प्रशंसा न तो झूठी होती है , न ही चाटुकारिता। उसे प्रोत्साहन कहा जाता है ।
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प्रशंसा का बहुत ही सुन्दर विश्लेषण किया है आपने !
अच्छे कार्यों की प्रशंसा करने के लिए मन में अच्छी भावना का होना बहुत ज़रूरी है !
झूठी प्रशंसा अहंकार को जन्म देती है !
इस सुन्दर लेख के लिए साधुवाद स्वीकार करें !
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पशंसा को दिनकर जी के शब्दों में व्याख्यायित करता हूँ :
कहते हैं जिसको सुयश-कीर्ति, सो क्या है?
कानों की यदि गुदगुदी नहीं, तो क्या है?
यश-अयश चिन्तना भूल स्थान पकड़ो रे!
यश नहीं, मात्र जीवन के लिए लड़ो रे !
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और मेरे शब्द :
उत्तम कोटिक साहित्य आप रचते हैं.
इक नयी विधा को आप सही खंचते हैं.*
टिप्पणी-शतक प्रतिदिन ही तो लगते हैं.
फिर भी कस्तूरी-यश पाने भगते हैं.
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खंचते हैं : साँचा में ढालना, खाँचा तैयार करना.
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हम तो आपके लेखों की प्रशंसा ही करेंगे, इसे चाटुकारिता में मत रखियेगा..
अजित जी ,
सच्ची प्रशंसा , हमेशा प्रोत्साहित करती है , इसलिए कोष्ठक में प्रोत्साहन लिखा है ।
हर कार्य का एक उपयुक्त समय होता । ब्लौग जगत में मात्र सात माह से हूँ । शुरू में मोडरेशन नहीं था । एक से एक मानसिकता वाले लोग , अश्लील और अभद्र कमेन्ट लिख रहे थे , इसलिए मोडरेशन जरूरी था । अब मुझसे द्वेष रखने वाले ठन्डे होकर बैठ गए हैं , इसलिए हिम्मत करके मोडरेशन हटाया है ।
कुछ लोगों ने मेरी मजबूरी को नहीं समझा , लेकिन ज्यादातर लोगों ने मेरी मजबूरी और परिस्थिति को बखूबी समझा। उनकी आभारी हूँ ।
मोडरेशन लगाना मेरी मजबूरी थी , पसंद नहीं ।
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आपने बिलकुल सही कहा... प्रशंसा हमेशा ही हौसला बढ़ाती है. वहीँ झूटी प्रशंसा चाटुकारिता मात्र होती है, साथ ही यह इंसान में दंभ भी भारती है...
मोडरेशन लगाना मेरी मजबूरी थी , पसंद नहीं ।
प्रशंसा करना भी एक कला है।
प्रशंसा , किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाती है।
प्रशंसा के विषय में आपने बहुत सटीक विचार अभिव्यक्त किये हैं ..आपका आभार इस सार्थक पोस्ट के लिए
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@--उत्तम कोटिक साहित्य आप रचते हैं.
इक नयी विधा को आप सही खंचते हैं.*
टिप्पणी-शतक प्रतिदिन ही तो लगते हैं.
फिर भी कस्तूरी-यश पाने भगते हैं..
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प्रतुल जी ,
कृपया ये आक्षेप तो न लगाइए की मैं प्रशंसा की भूखी हूँ। क्या आप प्रशंसा भी खंजर मारकर करते हैं ?
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prashansa motivtion ka kaam karti hai...aisa maine khud me paya hai..:)
प्रशंसा , किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाती है...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ....बधाई ।
a g r e e d..........
pranam.
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इस आलेख को लिखने के लिये आप प्रशंसा की हकदार हैं !!!
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और इस टिप्पणी के लिये ... ?
आप ही बताइये न... ;)
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प्रशंसा aur प्रोत्साहन ek-doosre ka haath pakarkar hi chalte hain.....bahut sachcha aur sundar lekh.
बहुत अच्छा आलेख।
चापलूसी करना सरल है , प्रशंसा करना कठिन ।
waakai prashansa karna aasaan nahi...
sachi aur sahi baat...prasansa insan ko achchha karte rahne ki prerna deti hai...magar behtarin log prasansa ka intazar nahi karte..Aapka post sarthak hai.
एक कहावत है...आपने सुनी ही होगी!' खुशामत तो खुदा को भी प्यारी होती है'.....तो फिर मनुष्यों को क्यों नही होगी?...हां! जिसे चांपलुसी कहते है वह झूठी प्रसंसा होती है और करने वाले किसी स्वार्थ को ध्यान में रख कर ही करते है!...सुंदर आलेख !
मैं इस लेख व वाद विवाद की सच्ची प्रशंसा करता हूँ...
कभी कभी झूठी प्रशंसा भी मनोबल बढाती है....जैसे भारत के खिलाडी बंगला देश के खिलाफ जीतते हैं तो हम प्रशंसा करतें है कुछ इस प्रकार की विश्व विजय ही कर लिया उन्होंने...चलो इसकी प्रेरणा से कम से कम अगले मैच में अच्छा करने का प्रयास तो होता ही होगा
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प्रसँशा और प्रोत्साहन में एक बड़ा फासला है,
इस आलेख में आपकी ईमानदारी प्रशँसनीय है ।
वैसे आपकी सभी बातों से सहमत हूँ पर कभी कभार अत्यधिक प्रशंसा से गलत फल निकलता है ...
आपने इस पोस्ट में सही बात बताई है ...
दिव्या जी आभार, प्रेरक आलेख। ओशो रजनीश ने कहा कि निंदा से बचना चाहते हो तो प्रशंसा की चाह मत करो। प्रशंसा चाहोगे तो निंदा मिलेगी। बस इतना ही।
दिव्या जी ,
विचार तो मेरे भी कुछ ऐसे ही है ,आप की पोस्ट के विषय मैं |पर
थोड़ी अलग सोच से,उतनी ही जितनी एक पड़े लिखे और अनपड़ मैं|पर इस पर फिर कभी ? अभी तो एक शिकायत है ?
प्रशंसा का हकदार तो मैं हूँ नही !अपने जन्मदिन पर आप की बधाई का हकदार भी नही था ? खेर....
खुश और स्वस्थ रहें !
अशोक सलूजा !
दिल से की गयी प्रसंशा , प्रसंशक को भी आत्मीय सुख देती है .
प्रशंसा और चापलूसी... दोनों ही कला है। यदि कलात्मकता न रही तो प्रशंसा में चापलूसी झलक ही जाएगी और चापलूसी हद से बढ गई तो भेद खुल ही जाएगा:)
प्रशंसा और चाटुकारिता में अंतर स्पष्ट करने में आपका लेख वाकई प्रभावपूर्ण रहा. प्रशंसा करना करने वाले और सुनने वाले दोनों के व्यक्तित्व की गहराई को उजागर करता है उलट चाटुकारिता खोखलेपन को !
आप जैसी विदूषी को प्रोत्साहित करना तो हमारे बूते से बाहर की चीज है। आप हमारी प्रोत्साहन जरूरतों से उपर उठ चुकी है।
प्रसंशा निश्चित ही हमारे मन के भाव है, विलक्षण विषयों पर आपकी सहज पकड़ की हम निर्दोष प्रशसा करते है।
'चाटुकारिता क्या होती है' विषय थोड़ा और विस्तार चाहता है।
प्रशंसा आवश्यक है, बस यह याद रखा जाये कि वह चाटुकारिता न बन जाये।
ब्लॉग जगत में प्रशंसा के अलग मापदंड हैं...यहाँ तो कई लोग कहीं-कहीं...दंडवत नमस्कार करते नज़र आते हैं...मुझे तो घंटियाँ भी सुनाई पड़ने लगती हैं.:)
कहाँ चाटुकारिता की गयी है और कहाँ वास्तविक प्रशंसा....चयनित शब्द सारे भाव बता देते हैं.
सच्ची प्रशंसा ... प्रोत्साहन का ही एक रूप है.
प्रशंसा और चाटुकारिता में बहुत महीन रेखा है जिसे न समझ पाने पर हम कुछ का कुछ कर समझ बैठते हैं..
बहुत अच्छा आलेख लिखा है आपने. आलेख पढ़ कर लगता है कि आधा किलो श्रीखंड खा लिया हो. यह वास्त्विक अनुभूति भी है और जेनुइन सी प्रशंसा भी :))
वाकई ! प्रशंसा करना भी हर किसी के बस की बात नहीं ।
वाह!
बहुत ही सुन्दर विश्लेषण...निर्मल मन से निकली निस्वार्थ प्रशंशा निश्चय ही मनोबल को बढाती है..
अच्छी प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है...
सही कहा
प्रशंसा और चाटुकारिता में भेद करने के लिए विवेक और दृष्टि दोनों ही तेज चाहियें !
उत्तम आलेख !
आपका लेखन दिनानुदिन निखरता जा रहा है।
यह मानव का सहज स्वभाव है कि वह प्रशंसा चाहता है। मनुष्य के भीतर जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रशंसा और प्रोत्साहन के द्वारा ही किया जा सकता है।
प्रशंसा से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है, यह निर्बल को सबल बना देती है, सबल को और अधिक सक्षम बना देती है।
आतमहीनता और अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति के लिए प्रशंसा औषधि का कार्य करती है।
सच्ची प्रशंसा करने वालों का हृदय विशाल होता है, झूठी प्रशंसा करने वालों के हृदय में धूर्तता भरी होती है।
दिव्या जी नमस्ते, बहुत सही विचार रखे हैं आपने!
मै महेंद्र वर्मा जी द्वारा उल्लेखित विचारों से भी पूरी तरह सहमत हूं..
यदि आप किसी की सही बातों का समर्थन में उसकी प्रशंशा खुले दिल से करते है तो वही उसके कलम की ताकत बनती है.
यदि कोई सही बातों के समर्थन में की गयी प्रशंशा को चाटुकारिता की श्रेणी में रखता है तो यह उसके दिमाग के दिवालियेपन का ही परिचायक है.
nice post.
डेल कार्नेगी ने कहा था --बी लैविश इन प्रेज । लेकिन आपने सही कहा कि प्रशंसा करना सबके बस की बात नहीं ।
हमें तो झूठी तारीफ करने वालों से कोफ़्त होती है ।
A bear hug for Divya !
Simply beautiful Write up!
आपकी पोस्ट(और परोक्ष रूप से आप)की प्रशंसा में टिपण्णीकार काफी कुछ लिख चुके हैं दिव्या जी, किन्तु इस बात के लिए दाद देनी ही होगी कि आपने 'प्रशंसा' शब्द की अच्छी मीमांशा की है. ...... आभार.
न जाने लोग हर बात को ब्लॉग जगत से क्यों देखना शुरू कर देते हैं ...प्रशंसा बस प्रशंसा होती है ....और पाने वाला बखूबी जनता है की सच्ची है या झूठी ...
हाँ यदि किसी के कार्य की सच में सराहना की जाये तो उससे प्रोत्साहन अवश्य मिलता है ...यदि ब्लॉग जगत से ही जोड़ना है तो यहाँ कोई टिप्पणी दे कर चाहे नम मात्र की ही हो ...क्या चाटुकारिता कर लेगा ? यह तो अपनी अपनी सोच है ...कहने को बहुत बड़ी बड़ी बातें करते हैं पर मेरे - तेरे भाव से ऊपर नहीं उठते ..प्रशंसा या सराहना से हर इंसान का हौसला बढ़ता है भले ही वो जिस चीज़ की प्रशंसा की जाए उसमें पारंगत हो या नहीं हो पर आगे बढने का प्रयास ज़रूर करता है ..अब इसे आप झूठी प्रशंसा भी कह सकते हैं ...
मुझे याद है जब शादी से पहले कभी भी घर में मैं कुछ खाने के लिए बनाती थी तो पापा तारीफ करते थे ...इसलिए नहीं की तारीफ के काबिल बनती थी वो चीज़ ..बस इस लिए कि बनाने का हौसला खत्म न हो ...
खैर अपनी अपनी सोच है ...
-- "प्रशंसा , किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाती है। उसके व्यक्तित्व को निखाने में मददगार साबित होती है। लैंगिक भेदभाव से परे , प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है। चाहे स्त्री हो , पुरुष हो , बालक हो , युवा हो अथवा बुज़ुर्ग।"
आपकी इस बात से पूर्णत: सहमत
प्रशंसा की प्रशंसनीय व्याख्या और व्याख्याता अभूतपूर्व प्रशंसा का पात्र...
Hello Zeal!! Thankyou for visiting my blog. It was a pleasent surprise to see you there. I am following your blog too, though I shall be reading the English posts. Keep blogging. Good work.
प्रशंशा कभी झूठी नहीं होती, अगर वास्तविक है , आप कह सकते हैं वास्तविक और अवास्तविक की पहचान कैसे की जाये. साधारण है जो आपकी प्रशंशा विषयवार करे और विश्लेषित प्रशंशा करे वो झूठी नहीं हो सकती, झूठी प्रशंशा तो मुख पर होती है , और बार बार की जाती है. खुशदीप जी की बात ठीक है प्रशंशा से गुब्बारा नहीं होना चाहिए , खुशदीप जी ,गुब्बारा अपने आप फूट भी जाता है. और गुब्बारे स्वयं प्रशांशित ही होते है इसी लिए फूटते भी है शीघ्र, अंत मैं हक़दार की प्रशंशा जरूर करनी चाहिए..
बहुत सुन्दर लेख... प्रशंसा कौन नहीं चाहता भूरी भूरी ...झूटी प्रशंसा मे भी ताकत है ... वो व्यक्ति जिसकी प्रशंसा की जाती है वह अच्छा करने का और उस लायक बनने का प्रयास ही करता है... हां जो प्रशंसा झुठा दंभ भरती हो उसको भी समझना चाहिए ...उसी तरह निंदा से भी हरोत्साहित नहीं होना चाहिए ...हालाँकि निंदा कई बार हौशला तोडती है... सादर
आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है...
अमृतरस
My~Life~Scan
prashanshniy lekh
प्रशंसा करना और उसे स्वीकार करना भी एक कला है। वर्ष २००० में You’re Too Kind – A Brief History of Flattery नामक एक पुसतक आयी। यह इस विषय पर बेहतरीन पुस्तक है और पढ़ने योग्य है।
सराहनीय आलेख बधाई /शुभकामनाएं |
बहुत ही सारगर्भित आलेख लिखा है आपने.
सार्थक प्रशंसा करना जितना जरूरी है,प्रशंसा पचा पाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
सार्थक आलोचना भी कम महत्वपूर्ण नहीं,पर ब्लॉग जगत में कम ही पाई जाती है.
प्रशंसा सहृदयता की द्योतक है पर एक सीमा में रहने पर ही .
"चापलूसी करना सरल है , प्रशंसा करना कठिन"
मनोज जी की उक्त टिप्पणी एकदम दुरुस्त और क़ाबिले-ग़ौर है.
सही कहा आपने दिव्या जी ! प्रसंसा सबको अच्छी लगती है लेकिन एक अच्छे काम की प्रसंसा व्यक्ति में जोश भर देती है तो बुरे काम की प्रसंसा नेतिकता का हनन है !
आपने बहुत अच्छा कहा दिव्या जी! मेरे यह अनुभव है की सच्चे मन से किसीके गुण जन कर प्रशंसा कर के हमारे भी मन को बहुत शांती और प्रसन्नता मिलती है | कुछ लोग अपने आप को इतना कम समझते है की हमारी सच्ची प्रशंसा भी उनको झूट लगती है |
अंतिम पंक्तीया ह्रिदय को छू गयी |
divya ji,
bahut badhiya sahamat hun aapse...
par ye jhuti prshnsha nahi hai....
मेरी एक परिचिता है उंकी आदत है हर किसी चीज की तारीफ करना इससे मै काफी प्रभावित हुई एक बार मुझे उनके साथ कुछ दिन रहने का अवसर मिला इस बीच वो कितने ही लोगो से मिलती उनकी भी हर वस्तु की प्रशंसा करती |मसलन वह कहती -आपकी साड़ी बहुत सुन्दर है ,वाह अपने क्या खाना बनाया - आपनेबिलकुल सही कहा - आदि आदि|मेरी नजर में न ही वो साड़ी सुंदर थी न ही वो खाने में कोई स्वाद था |उनकी इस आदत से मुझे कोफ़्त सी होने लगी और न चाहते हुए भी पता नहीं मेरे मन में विचार आया की अगर कही गोबर भी पड़ा हो गा तो वे यही कहेंगी कितना प्यारा गोबर है ?अब उनकी प्रशंसा करने की इस आदत से उनको नजदीक से जानने वाले कोई प्रोत्साहित नहीं होते |
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@-कहते हैं जिसको सुयश-कीर्ति, सो क्या है?
कानों की यदि गुदगुदी नहीं, तो क्या है?
@--प्रशंसा से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है, यह निर्बल को सबल बना देती है, सबल को और अधिक सक्षम बना देती है।
आतमहीनता और अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति के लिए प्रशंसा औषधि का कार्य करती है।
@-पापा तारीफ करते थे ...इसलिए नहीं की तारीफ के काबिल बनती थी वो चीज़ ॥बस इस लिए कि बनाने का हौसला खत्म न हो ...
@-डेल कार्नेगी ने कहा था --बी लैविश इन प्रेज
@-प्रशंसा सहृदयता की द्योतक है
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एक से बढ़कर एक टिप्पणियों में नए-नए विचारों के आने से विषय को सार्थकता एवं विस्तार मिला है । किसको सराहूँ , किसे छोड़ दूँ , आप सभी का यहाँ पर अपने विचार रखने के लिए आभार।
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दिव्या जी ,
प्रशंसा का बहुत ही सार्थक ,सटीक और सूक्ष्म विश्लेषण किया है आपने |
केवल निर्भीक तथा पूर्वाग्रहों से रहित , एक पवित्र ह्रदय में ही प्रशंसा के भाव आते है .......सत्य वचन
प्रशंसा हमेशा खुल के और दिल से करनी चाहिए ... और उस बात पर करनी चाहिए जो उसके योग्य हो ....
आलोचना का अर्थ ही है भली भांति देख भाल कर किया गया विवेचन . साथ ही इसका मंतव्य है सुधार न कि हतोत्साहित करना या अस्तित्व को ही चुनौती देना. . बाकी आपने सब कुछ तो लिख ही दिया है.
सटीक सोदाहरण अत्युत्तम आलेख.
बधाई , दिव्या जी !
क्षमा चाहूँगा यह टिप्पणी ग़लत जगह चस्पां हो गयी .
प्रशंसा और प्रोत्साहन की कमोबेश भूख सभी को होती होती है। इसमें स्त्री या पुरुष, बच्चा या बूढ़ा कोई मायने नहीं रखता। आपके विचार उचित हैं। आभार।
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