Friday, March 25, 2011

रिश्तों की मिठास


जैसे दो चुम्बक को पास लाने पर एक दुसरे को प्रतिकर्षित करते हैं , उसी प्रकार मनुष्यों में अति निकटता प्रतिकर्षित करती है और रिश्तों की मिठास को छीन लेती है ऐसा शायद इसलिए होता है क्यूंकि सिमटती दूरियां , जज्बातों को बढ़ाती जाती हैं और अपेक्षाएं दानवाकार हो जाती हैं जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पातीं तो मन में विषाद बढ़ता जाता है और रिश्तों में कडवाहट बढ़ने के साथ साथ , दूरियां बढती चली जाती हैं इसलिए आवश्यक है की हर रिश्ते में एक स्वस्थ्य दूरी अवश्य रहे

अक्सर ऐसा भी देखा गया है की जिसके आप ज्यादा समीप होते हैं और अपना दुःख सुख बांटते हैं , वही आपसे द्वेष रखने लगता है और आपमें ही उसे सारी खामियां नज़र आने लगती हैं। सारी दुनिया के भ्रष्टाचार छोड़कर वो आपको ही सुधारने की पुरजोर कोशिश करने लगता है। वो मित्र कम , प्रवचनकर्ता ज्यादा लगने लगता है। वही मित्र जिसके शब्द कभी गुदगुदाते थे और दुखों पर मरहम की तरह शीतल हुआ करते थे , वही नश्तर का काम करने लगते हैं। कारण शायद अति निकटता

रिश्ते , कभी-कभी बैंक अकाउंट की तरह लगते हैं , जिसमें धन डालो वो बढ़ता ही जाएगा और यदि कुछ अवधि तक धन डिपौज़िट नहीं किया तो खाता निष्क्रिय [dormant] हो जायेगा उसके बाद दुबारा चालू करने के लिए 'दंड राशि ' अलग से भरनी पड़ेगी इसलिए खातों में धन और रिश्तों में प्रेम सदा बना रहना चाहिए

इसलिए निरंतरता भी बनाए रखनी चाहिए बिना किसी का personal space छीने , प्रेम की अविरल धारा बहती ही रहनी चाहिए यही रिश्तों की मांग है। ठहरा हुआ जल दूषित हो जाता है , इसलिए सतत प्रवाह ही रिश्तों की मिठास बरकरार रखते हैं।

आभार

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47 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

vaah kya bhtrin khoj he pyar ke farmule ki mzaa aa gya mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

Arvind Jangid said...

यह भी सत्य है की वर्तमान में personal space कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. दूसरी बात जो रिश्ते को मजबूत बनाती है, वो है विश्वास, जो शायद अब कब होता चला जा रहा है. वर्तमान जीवन शैली भी टूटते रिश्तों का प्रमुख कारण है.

आपका आलेख प्रेरणादायी है, आभार.

Bharat Bhushan said...

मन बना ही ऐसा है. जहाँ वेराइटी नहीं वहाँ नीरसता है. रिश्तों की निरंतरता में जीवन के अन्य सुहाने रंग घुलते रहें तो उनकी सार्थकता बनी रहती है. बहुत बढ़िया पोस्ट.

Arun sathi said...

मैं इससे सहमत नहीं हूं। दरअसल यह रिश्ता है ही नहीं। यह सौदागरी है जिसको रिश्ते का नाम नहीं दिया जा सकता है। रिश्ता कभी भी बैंक की तरह नहीं होता जिससें रूपये डालने की जरूरत पड़े रिश्ता तो अविरल बहते उस झरने की तरह है जिसकी शितलता हमें आत्मिक शांति और शकुन देती है।

ashish said...

किसी के सोच को बिना प्रभावित किये अविरल प्रेम धारा. बढ़िया चिंतन .

ZEAL said...

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अरुण साथी जी ,

आपने शायद ध्यान नहीं दिया , खाते और रिश्ते निष्क्रिय न हों , इसके लिए "खातों में धन और रिश्तों में प्रेम सदा बना रहना चाहिए"

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Unknown said...

रिश्ते धरोहर की तरह सम्हाल कर रखने होते है,
कुछ रिश्ते ज्यादा सम्हालने होते है कुछ कम, खूबसूरत रिश्ते ज्यादा संवेदनशील होते है.

जीवन और जगत said...

इसीलिए कहा गया है 'कभी-कभी दूरी भी जरूरी है दो प्रेमियों में प्‍यार बढाने के वास्‍ते।' वहीं दूसरी ओर अपने निन्‍दकों के लिए कहा गया है 'निन्‍दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।'

udaya veer singh said...

By a philosopher ' it is i therefore i am ' . I dont know , life is mortal or immortal , it is disputed but life creates really some stances ,those are calculable . If its a relation by heart& mind can not calculate by any instrument ,
only can feel &fallow ,if i think 'It is i ----]
Thanks for raising good issue.

नीलांश said...

IN FAVOUR:
A GOOD RELATION IS ONE IN WHICH WE ENCOURAGE GOOD HABITS AND DISCOURAGE BAD ONES AND IT IS A MUTUAL ONE........RESPECTING THE DIGNITY OF OTHERS IS NECESSARY......

ONLY ONE QUOTE...EVERY CHILD IS SPECIAL BUT FEW CAN KNOW ITS SPECIALTY

ABHISHEK

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

देखिये निस्वार्थ तो कुछ होता नहीं. हर जगह कुछ न कुछ आदान-प्रदान होता है. अब स्वार्थ का रूप जो कुछ भी हो. बाकी इस से सहमत कि थोड़ा सा स्पेस तो होना चाहिये तभी रिश्ते दीर्घायु हो सकते हैं..

रश्मि प्रभा... said...

रिश्ते , कभी-कभी बैंक अकाउंट की तरह लगते हैं , जिसमें धन डालो वो बढ़ता ही जाएगा । और यदि कुछ अवधि तक धन डिपौज़िट नहीं किया तो खाता निष्क्रिय [dormant] हो जायेगा । उसके बाद दुबारा चालू करने के लिए 'दंड राशि ' अलग से भरनी पड़ेगी । इसलिए खातों में धन और रिश्तों में प्रेम सदा बना रहना चाहिए।
bilkul sahi

सुज्ञ said...

रिश्तों की व्यवस्था या उसका गणित समझ पाना बडा दुष्कर है।
उसकी सच्ची मिठास का बोध होना तो और भी कठिन है।

कोई व्यक्ति होता है,कितना भी अच्छा रहें, हम उससे जुड ही नहीं पाते।
कभी किसी से विचार नहीं मिलते और निभाते चले जाते है। अभी हमारी हाँ में हाँ मिलाने वाला अति प्यारा लगता है तो कभी वितृष्णा से भी उसे निकट रख लेते है। और कभी अनावश्यक समझ तज भी देते है।
कोई कडवा किन्तु हितैषी लगता है, तो कोई भले कितना भी हितैषी हो अगर कडवा है तो नहीं सुहाता।

आप किसी मित्र को निस्वार्थ निष्कपट चाहते रहें पर आवश्यक नहीं सामने वाला उसे निस्वार्थ दृष्टि से ही ले। ऐसे रिश्तों में मधुरता घोलना कभी उसकी सोच पर निर्भर हो जाता है तो कभी उसकी आवश्यकताओं के अधीन।

@अरूण साथी जी, आप रिश्तों की मेंटेनेंस को सौदागरी कहते है, किन्तु चिंतन किजिए,शीतलता,आत्मिक शांति और शकुन आदि मिठास चाहना हमारी स्वार्थपरता नहीं है,यह सुख हम दोनो तरफ से चाहते है, जब नहीं मिलता तो वह रिश्ता त्याग देते है।

कहनें का अर्थ यह नहीं कि हर सुख के लिये मानवीय स्वार्थ जुडा है अतः उन्हें भुल जाना चाहिए। बल्कि हम स्वयं सुयोग्य बन सकते है, मिठास का मेंटेनेंस(निर्वहन) करना हमारा कर्तव्य है। और सब स्वतः नहीं हो जाता, हमें पुरूषार्थ करना पडता है।

आज के विषय के परिपेक्ष में इस उक्ति "आप भले तो जग भला" पर पुनः चिंतन करें सभी।

A.G.Krishnan said...

Yea true.....some distance has to be maintained always in order to feel closer.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वो मित्र कम , प्रवचनकर्ता ज्यादा लगने लगता है। वही मित्र जिसके शब्द कभी गुदगुदाते थे और दुखों पर मरहम की तरह शीतल हुआ करते थे , वही नश्तर का काम करने लगते हैं। कारण शायद अति निकटता ।

विचारणीय बात कही है ...कहा भी गया है हमेशा थोड़ी दूरी निकटता को बनाए रखती है ...बहुत अधिक अपेक्षाएं उपेक्षा को जन्म दे देती हैं ..

aarkay said...

दिव्या जी ,वैसे भी रिश्तों में गर्माहट या घनिष्टता individual space की मांग के चलते कम हो रही है , ऐसे में आपका लेख सार्थक भी है और प्रासंगिक भी. familiarity breeds contempt भीं ठीक ही कहा गया है . जहाँ तक मित्रों के उपदेशक बनने की बात है , ग़ालिब ने ठीक ही कहा है

"ये कहाँ की दोस्ती है बने दोस्त भी हैं नासेह
कोई चारासाज़ होता , कोई ग़मगुज़ार होता "
आपका यह कहना भी ठीक है कि रिश्तों और दोस्ती के खाते में कुछ न कुछ जमा होते रहना चाहिए, नहीं तो खाता inoperative हो जाता है और दुबारा चालू करने में कुछ भुगतान करना पड़ता है .

इस उत्तम लेख के लिए बधाई !

Unknown said...

ठहरा हुआ जल दूषित हो जाता है , इसलिए सतत प्रवाह ही रिश्तों की मिठास बरकरार रखते हैं।
satya vachan---------

jai baba banras........

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

अक्सर ऐसा भी देखा गया है की जिसके आप ज्यादा समीप होते हैं और अपना दुःख सुख बांटते हैं , वही आपसे द्वेष रखने लगता है और आपमें ही उसे सारी खामियां नज़र आने लगती हैं। सारी दुनिया के भ्रष्टाचार छोड़कर वो आपको ही सुधारने की पुरजोर कोशिश करने लगता है। वो मित्र कम , प्रवचनकर्ता ज्यादा लगने लगता है। वही मित्र जिसके शब्द कभी गुदगुदाते थे और दुखों पर मरहम की तरह शीतल हुआ करते थे , वही नश्तर का काम करने लगते हैं। कारण शायद अति निकटता ।


बिलकुल सही कहा आपने ! कई लोग यह बात नहीं समझ पाते हैं ! frustration इस कदर हावी हो जाता है कि इंसान बिलकुल अंधा हो जाता है ...

मदन शर्मा said...

सुज्ञ जी की बातों से पूरी तरह सहमत ! रिश्ता तभी सफल होता है जब हम एक दुसरे के भावनाओं का आदर करें तथा जो भी कार्य करें निस्वार्थ भाव से .

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

दिव्या जी ,

आपका लेख किसी सच्चे संत के प्रवचन जैसा लगा , सो जीवनोपयोगी और ग्राह्य तो होगा ही !

वैसे भी साधारण सी कहावत है --"ज्यादा मिठास में कीड़े पड़ जाते हैं "

आपका लेखन एक नया मोड़ ले रहा है | 'कठोरमना' विशेषण को सम्हालियेगा |

rashmi ravija said...

अपेक्षाएं दानवाकार हो जाती हैं । जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पातीं तो मन में विषाद बढ़ता जाता है और रिश्तों में कडवाहट बढ़ने के साथ साथ , दूरियां बढती चली जाती हैं ।

शत -प्रतिशत सच...
रिश्तों में space बहुत जरूरी है.

mridula pradhan said...

रिश्ते , कभी-कभी बैंक अकाउंट की तरह लगते हैं , जिसमें धन डालो वो बढ़ता ही जाएगा । और यदि कुछ अवधि तक धन डिपौज़िट नहीं किया तो खाता निष्क्रिय [dormant] हो जायेगा । उसके बाद दुबारा चालू करने के लिए 'दंड राशि ' अलग से भरनी पड़ेगी । इसलिए खातों में धन और रिश्तों में प्रेम सदा बना रहना चाहिए।
aapki yah salaah hamesha yaad rakhne layak hai.....

प्रवीण पाण्डेय said...

रिश्ते ध्यान देने से ध्यान देते हैं।

सदा said...

हूं ...बहुत ही अच्‍छी ज्ञानवर्धक बातें कहीं है आपने इस आलेख में ..

बहुत-बहुत बधाई ...और लेखन के लिये शुभकामनाएं ।।

Sushil Bakliwal said...

निःसन्देह हर रिश्ते में एक सम्मानजनक दूरी अवश्य रहना चाहिये ।

राज भाटिय़ा said...

पता नही जी, लगता हे हमारा चुंबक खराब हे, अगर दो दिन के लिये भी परिवार से दुर जाता हुं तो मुझे यह दुनिया अच्छी नही लगती, बीबी ओर बच्चे भी आधे हो जाते हे...

डा० अमर कुमार said...


बाबा तुलसीदास कहिन हैं..
आपतकाल परिखेऊ चारी
धीरज धर्म मित्र अरु नारी
ज़ाहिर है, किसी विषम घड़ी में या कुछ गलत दिखने पर नारी ( पत्नी - सर्वश्रेष्ठ मित्र ) और बेचारे मित्र ( जनरल क्लास मित्र ) कुछ सुझाव देंगे, सलाहियत की बातें समझायेंगे.. न कि आपको ( या किसीको ) पीछे कर खुद ताल ठोंक कर खड़े हो जायेंगे ! अब इस सलाहियत को प्रवचन मानने का मुझे कोई कारण नहीं दिखता ।
प्रतिकर्षण को ठेठ भाषा में झिड़की कहते हैं शायद ? अधिकाँश ब्लॉगर Delusion of Grandeur से भले ही न ग्रसित हों, पर त्वरित प्रतिकर्षण की अपेक्षा भी नहीं रखते ।

सञ्जय झा said...

rista to hamara bhi hai.....pathak aur lekhak ka
.........aur vichar jitne milte jayenge....madhur
hota jayega......banana asan hai...nibahna duskar.

......aap to bas apne lekhan se apne evam pathkon
ke vichar-pravah ko sakriya rakhiye........yahi to
hasil/jama hai is jagat ka...........

pranam.

बाबुषा said...

hmmm...true !

Relations n bank account..nice simile Divya.

Dr Varsha Singh said...

बिना किसी का personal space छीने , प्रेम की अविरल धारा बहती ही रहनी चाहिए ......

यही सच है....अच्छा विश्लेण किया है आपने...
हार्दिक बधाई।
Wow, very beautiful flower.

Sunil Kumar said...

रिश्तों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया है आपने लेकिन मेरा मानना है की कीप यौर हैण्ड सेपेरट बट हेअर्ट टुगेदर तभी मिठास कायम रहेगी अच्छा आलेख आभार

धीरेन्द्र सिंह said...

रिश्तों पर यह लघु लेकिन पूर्ण आलेख है. बैंक अकाउंट का बिम्ब वर्तमान परम्परा को बेनकाब करता नज़र आता है. रिश्तों की इस नाजुकता का मजाक बनाते हुवे कॉलेज में हम अक्सर कहा करते थे ;

मना की मेरी जिंदगी में
तुम्हारा आना नहीं है
पर
आना-जाना तो है.

आज रिश्ते भी आना-जाना जैसे हो गए हैं. यह आधुनिकता, एकल परिवार, नौकरी-सेवा के लिए प्रवास आदि के कारण है जिससे रिश्तों में काफी तेज़ी से परिवर्तन हो रहा है. आजकल रिश्ते अनुभव नहीं किये जाते हैं बल्कि तौले जाते हैं. एक बार फिर कहूँगा की यह विषय पर लघु लेकिन पूर्ण प्रस्तुति है.

Unknown said...

अच्छा लिखा है. बधाई
मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन करें.
क्या यही है पत्रकारिता का स्टैंडर्ड
चीयर लीडर्स की जगह आएंगी चीयर क्वीन्स

महेन्‍द्र वर्मा said...

रिश्ते अबूझ पहेली की तरह होते हैं। दो लोगों के बीच, चाहे वे निकट संबंधी हों या मित्र, का घनिष्ठ अपनापन कभी-कभी कट्टर दुश्मनी में बदल जाता है। कभी कभी सर्वथा अपरिचित व्यक्ति भी अपना-सा लगने लगता है। सब कुछ दिल-दिमाग की tuning का खेल है।

रिश्तों की आंच को बनाए रखने के लिए किंचित दूरी आवश्यक है। इतने निकट भी न जाएं कि भक् से जलकर राख हो जाए और इतना दूर भी नहीं कि ठंडी होकर बुझ जाए।

Kunwar Kusumesh said...

संगीता स्वरुप जी की टिप्पणी से सहमत हूँ.

Amit Chandra said...

जहॉ तक मैं समझता हुॅ किसी भी रिश्ते में समझदारी और समर्पण जरूरी है। पास या दुर रहने से शायद कोई फर्क नहीं पड़ता।

Khushdeep Sehgal said...

निराशा वहीं होती है जहां रिश्तों से उम्मीद होती है...
मन का हो तो अच्छा और न हो तो और भी अच्छा...

जय हिंद...

शोभना चौरे said...

रिश्तो में रिश्तो में संतुलन बनाये रखने से ही रिश्तो में मिठास बनी रहती है |कौशलेन्द्र जी के ब्लॉग से मालूम हुआ आपके वहां भूकम्प आया है |
ईश्वर से प्रार्थना है सब कुशल मंगल हो |

Rakesh Kumar said...

मुझे तो यही समझ आता कि रिश्तों कि पहचान में विवेक की अत्यंत आवश्यकता है.एक बार सज्जनता की पहचान हो जाये,फिर तो हठ कर के भी पहचान बढ़ानी चाहिये.क्योंकि नीति है 'साधू ते होई न कारज हानि'. वर्ना तो जीवन भर हम 'Games people play' ही अपनाते रहतें है ,जिसमे कभी हार की कड़वाहट तो कभी जीत की अफीम चखते रहते हैं ,आत्मीयता से कोसों दूर.

Atul Shrivastava said...

सच कहा रिश्‍तों में मिठास कायम रखने प्रेम बनाए रखना चाहिए।
अच्‍छा लेख।

Patali-The-Village said...

रिश्तो में रिश्तो में संतुलन बनाये रखने से ही रिश्तो में मिठास बनी रहती है| धन्यवाद|

जयकृष्ण राय तुषार said...

दिव्या जी प्रेम पर आपका विवेचन बहुत सुंदर लगा |बधाई |वसीम बरेलवी का एक शेर है -
जो तुममे मुझमे चला आ रहा है बरसों से
कहीं हयात उसी फासले का नाम न हो

सहज समाधि आश्रम said...

सुग्य जी से सहमत

amit kumar srivastava said...

behtarin,ishvar kare aapka account kabhi inoperative naa ho ,isi par maine bhi ek baar kuchh likhaa tha,thoda vakt nikaliyega...
http://amit-nivedit.blogspot.com/2010/10/eddy-currents.html

अजित गुप्ता का कोना said...

रिश्‍तों एक एक मर्यादित दूरी की मैं भी पक्षकार हूँ। बहुत नजदीकियां दूरियों में तब्‍दील हो जाती हैं।

आचार्य परशुराम राय said...

एक संतुलित और प्रौढ़ समझ पर निर्मित रिश्ते सतत बने रहते हैं। वैसे अपेक्षाओं की पूर्ति और अनापूर्ति प्रायः रिश्ते में मिठास और खटास पैदा करते हैं। आभार।

सुधाकल्प said...

दिव्या जी ,आपने कुछ ही शब्दों में एक बड़े सच को उजागर किया है |रिश्तों में एक झीना पर्दा होना ही चाहिये और उनकी मधुरता के लिये प्यार की निरन्तर बहती शुभ्र धारा|
सुधा भार्गव