- पहला- विज्ञान , आविष्कार , संस्कृति , भाषा , प्रेम , जनसंख्या , बीमारियाँ , भूकंप , प्रलय , ज्योतिष , आस्था , प्रकृति , इतिहास , भूगोल , गणित , आंकड़े , तरक्की और विकास , मंदिर , सभ्यताएं , वेद-पुराण , धर्म , भ्रष्टाचार इत्यादि ।
- दूसरा - मन के विचार , मन का कोलाहल , मन में उत्पन्न असंख्य प्रश्न , खट्टे मीठे अनुभव , विमर्श , गोष्ठी , प्रतिक्रियाएं , उपलब्धियों की अभिव्यक्ति , मन का आक्रोश , ह्रदय की चिंता या व्यथा की अभिव्यक्ति , थोडा सा खट्टा , थोडा चरपरा , अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ,आत्मा , पुनर्जन्म , छोटी-छोटी खुशियाँ और बहुत कुछ..
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साहित्य में पहले प्रकार के विषय आते हैं। साहित्यकार इसपर अपनी लेखनी चलाते हैं और साहिय को समृद्ध करते हैं । लेकिन इसका उपयोग शिक्षा एवं शोध के दौरान ज्यादा है , जहाँ विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार विषय का चयन करते हैं।
ब्लॉगिंग में उपरोक्त वर्णित , दुसरे प्रकार के विषय आते हैं , अर्थात जो ह्रदय में है उसे बिना लाग-लपेट के कहना और पूछ लेना । अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर देना और पा लेना । बिना भाषा और साहित्य की कसौटी पर चढ़े खुद को अभिव्यक्त करना । बिना किसी तमगे अथवा प्रमाण पत्र की चाह में , मन-मस्तिष्क में आये विचारों को सरलतम भाषा में 'जस का तस' रख देना ।
ब्लोगिंग एक बेहतरीन माध्यम है विमर्श का जो एक बहुत बड़े वर्ग को आपस में जोड़ने में सक्षम है । जुड़ना ही मानव-स्वभाव है । इसलिए ब्लोगिंग लोकप्रिय भी हो रही है ।
'साहित्य' का स्थान समाज में स्त्री की तरह है। क्यूंकि स्त्री , अपने स्थान और सम्मान के लिए संघर्षरत है। वो चाहती है की उसके योगदान और अहमियत को समझा जाए । इसके विपरीत 'ब्लॉगिंग' की स्थिति समाज में पुरुषों की स्थिति के समान है --अपने आप में मस्त और बिंदास ।
जैसे स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक हैं , वैसे ही साहित्य और ब्लॉगिंग एक दुसरे के पूरक हैं। दोनों की अपनी अलग-अलग अहमियत है। मेरे विचार से वो दिन दूर नहीं जब दोनों के बीच की विभेदक रेखा मिट जायेगी । अंततः Globalization का दौर है ।
आभार
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60 comments:
क्या बात है ! बड़ी ऊँची उड़ान लगाई है
"'साहित्य' का स्थान समाज में स्त्री की तरह है। क्यूंकि स्त्री , अपने स्थान और सम्मान के लिए संघर्षरत है । वो चाहती है की उसके योगदान और अहमियत को समझा जाए । इसके विपरीत 'ब्लॉगिंग' की स्थिति समाज में पुरुषों की स्थिति के सामान है --अपने आप में मस्त और बिंदास"
आपके कटाक्ष के बारे में क्या कहा जाये पर साहित्य अपना स्थान पा ही लेगा ब्लोगिंग में भी ,कितनी भी बिंदास हो ब्लोगिंग.क्योंकि साहित्य सर्जन के विकास की प्रक्रिया है,जो मन और समाज दोनों को प्रतिबिम्बित करने में सक्षम है.वैसे स्त्री पुरुष का भेद तो स्थूल रूप में ही लगता है अंदर में तो सबके आत्मा ही व्याप्त है.तो बाहरी भेद छोड़, अंदर चलें ना! .
सार्थक एवं सटीक विश्लेषण !
पहले प्रकार के विषय में सोच के लिखना होता है और दूसरे प्रकार के विषय में लिख के सोचना पड़ता है....
साहित्य के लिए सैंकड़ों द्वार हैं । लेकिन अभिव्यक्ति के लिए बस ब्लोगिंग ही है जो सब को निशुल्क , निर्विरोध , २४ अवर्स इ डे , सेवेन डेज इ वीक उपलब्ध है ।
यह तो विचारों का एक गुल्लक है । जितना चाहे , अपनी पसंद और सामर्थ्य अनुसार , डालते रहो ।
ये विश्लेषण भी अच्छा रहा .आनंद आया पढ़कर . आभार
नए नए तर्क उत्पन्न कराता है साहित्य। इसलिए साहित्य के साथ रहने से व्यक्ति सृजनशील बनता है।
दराल साहब के विचारों से सहमत...
ठीक कहा आपने , ब्लॉग्गिंग पुरुष के सामान है एकदम बिंदास. दिव्या जी अब is पर एक पोस्ट तो bantee है की पुरुष kitne बिन्दाश होते हैं और sahitya kitna stree , अच्छे paridaam की aashaa करनी चाहिए
बढ़िया तुलना की है आपने !
कहीं आपका आशय हिंदी साहित्य और हिंदी ब्लॉगिंग से तो नहीं ?
मेरे विचार से ब्लॉगिंग अभी साहित्य के पूरक खड़ा नहीं हो पाया है। हाँ साहित्य संवर्धन में योगदान जरूर दे रहा है।
धीरे धीरे ब्लॉगिंग अपने पैर पसार रही है, हम आपके जीवन में ही यह भेद मिट जायेगा।
साहित्य का दायरा बिलकुल अलग है ...साहित्य की पहुँच से अभी भी ब्लॉग्गिंग दूर है ! और यह सबके बस की बात भी नहीं !
achha vichar
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फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं.... !
यह विषय टिप्पणी में समेटने वाला नहीं है ।
शायद आपने मॉडरेशन हटा दिया है, आशा है इसका कारण मेरा आग्रह न रहा हो !
बात अपनी औ तुम्हारी
साँझी पीड़ा जो हमारी।
वो स्वरों को खोलकर, जाँचना सब चाहते हैं,
भाव उठ, बह चले जो, बाँचना सब चाहते हैं,
कर्म है उनका यही तो इस कर्म का अधिकार दे दो
संग ही मेरे हृदय के मर्म का आधार दे दो ।।
यह क्या है... साहित्य या महज़ ब्लॉगरीय अभिव्यक्ति ?
यदि कमलेश्वर को बीच में घसीटा जाये तो उनके लिखे अनुसार..
"इन कफ़स की तीलियों से
छन रहा है कुछ नूर - सा
कुछ फज़ा कुछ हसरते परवाज़ की बातें करो... "
कहीं दर्ज़ हो जाने के बाद यही फ़ज़ा और हसरते परवाज़ साहित्य कहलायेगा ।
यही शख़्स कहीं आगे लिखता है..
"इन बंद कमरों में मेरी साँस घुटी जाती है
खिड़िकियाँ खोलता हूँ तो ज़हरीली हवा आती है"
यह छटपटाहट सामयिक सँदर्भों की ब्लॉगिंग कही जा सकती है ।
अब सवाल यह है कि, यदि साहित्य समाज का दर्पण है... और इस दर्पण में आप अपनी तस्वीर तो देख ही सकते हैं, साथ ही दुनिया को भी आइना दिखा सकते हैं.. तो इस नाते ब्लॉगिंग क्या हुई... उन्मुक्त अभिव्यक्ति की एक साहित्यिक विधा या माध्यम... ? यह आप पर है कि, इसे अपनी सुविधानुसार आप जो भी कहना चाहें !
सही कहा
क्या आपने अपने ब्लॉग में "LinkWithin" विजेट लगाया ?
:)
वैसे ही साहित्य और ब्लॉगिंग एक दुसरे के पूरक हैं। दोनों की अपनी अलग-अलग अहमियत है ।
jai baba banaras...
मेरे विचार में ब्लॉगिंग स्त्र्योचित है और साहित्य पुरुषोचित क्योंकि साहित्यिक गिरोहों में कई बार लठबाज़ी भी होती है :))
'साहित्य' का स्थान समाज में स्त्री की तरह है। क्यूंकि स्त्री , अपने स्थान और सम्मान के लिए संघर्षरत है। वो चाहती है की उसके योगदान और अहमियत को समझा जाए । इसके विपरीत 'ब्लॉगिंग' की स्थिति समाज में पुरुषों की स्थिति के सामान है --अपने आप में मस्त और बिंदास ।
ha ha ha ha ! :) :) :) Divya, u have absolutely no idea how much I love ur similes ! :)
Way to go lady !
जैसे स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक हैं ,
this is not correct and if a person like you says so then i am surprised
primarily its not man - woman who are "purak" its just husband and wife who are "purak"
this is the biggest mis norm which takes woman empowerment back by decades
man and woman are 2 entities and when they marry they become one entitiy BUT only when they marry
in all other circumstances they are not "purark" of each other
woman plays many roles so does man
how can a father be a purak to daughter or
a son to mother or brother to sister a male boss to female subordinate , etc and vice versa
zeal
when we write we need to rethink on many things
from childhood we are taught thinks that we need to understand and analyis
in older times woman had just one role to become a wife , no more now
i hope you will try to go into a logic of this statement and i hope to read a analytical post from your angle when ever you can
as regards saahitya
साहित्य रचा नहीं जाता
साहित्य रच जाता हैं
रचियता ख़ुद अपनी रचना को
साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं
कालजयी होगा तो रह जायेगा
साहित्य तब ख़ुद बन जायेगा
वरना गूगल के साथ ही
विलोम हो जाएगा
to sum up i dont agree with this post sorry and yes i understand its written on a lighter note
सटीक विश्लेषण !
वर्तमान स्थिति के आधार पर देखा जाए तो आपका विश्लेषण सही है। लेकिन जिन विषयों को आपने ब्लॉगिंग की श्रेणी में रखा है उन पर साहित्यकारों ने भी कलमें चलाई हैं और जिन्हें आपने साहित्य का विषय बताया है उन पर ब्लागरों ने भी की बोर्ड खटखटाया है।
मुझे लगता है कि भविष्य में साहित्यकार और ब्लॉगरों के बीच की विभाजक रेखा मिट जाएगी। साहित्यिक ई-पत्रिकाएं शुरू हो चुकी हैं, साहित्यिक ई-लेखन भी यत्र-तत्र दिखाई देने लगा है। साहित्यकारों के द्वारा व्यक्तिगत रूप से ई-प्रकाशन भी शुरू हो जाएगा।
सही है दौनो विषय मगर एक दूसरे के पूरक ।मनके विचार विज्ञान/मन का कोलाहल आविष्कार/ भाषा....गोष्ठी/ज्योतिष...मन में उठते अनेक प्रश्न/ आस्था ...अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर/ तरक्की और विकास...थोडा खटटा थोडा चरपरा/ भृष्टाचार...मन का आक्रोश/धर्म...छौटी छोटी खुशियां । भूकम्प दृचिन्ता/वेदपुराण..पुनर्जन्म।/ आदि इत्यादि।
साहित्य और व्लागिंग एक दूसरे के पूरक ही नहीं सहायक भी है।
आपनें साहित्य और ब्लॉगिंग के बीच जो भेद-रेखा खींची है वह समय सापेक्ष है। कौन सा वह विषय है जि साहित्य में लिखा जा रहा और ब्लॉगिंग में नहीं लिखा जा रहा/या लिखा नहीं जा सकता।
दोनो की रचना का मूल स्रोत है विचारों का प्रवाह/उठते प्रश्न/कल्पनाएं और सोच का उन्मुक्त विचरण।
उल्टे ब्लॉगिंग साहित्य रचना से कहीं अधिक है। ब्लॉगिंग में आपका अपने पाठक से सीधा सम्वाद कायम होता है। इस सम्वाद से आप अपने विचारों को परिष्कृत कर सकते है, उसे नई उडान की प्रेरणा मिलती है इन सम्वादों से कल्पना की चीर उडान मिलती है तो व्यवहार का धरातल भी। नई रोशनी उपलब्ध होती है तो पुराने संदर्भ भी। और जनते अजानते पाठक आपके वैचारिक स्वेच्छाचार को सौम्य अनुशासन भी दे जाता है।
लेखन तो बस रचा जाता है, समय बीतने पर ही वह साहित्य या कालजयी सहित्य की श्रेणी में परिगणित होता है। उसी तरह ब्लॉग लेखन भी समय के साथ साथ साहित्य की उन्नत विधा में स्थापित होगा। क्योंकि यहां ही 'विचार-विनिमय' उपलब्ध है।
साहित्यकार लेखन करते हुए बडा सावधान रहता है कि उसके विचार बालिश, हास्यास्पद अथवा निम्न श्रेणी में न माने जाय। आज ब्लॉगर यह विचार नहीं करता, पर स्थापित होने के बाद उन स्वछंद (बिंदास)वैचारिकता के लिये शायद पछतावे का समय आए।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
विद्वान सुग्य जी से सहमत । वैसे आपने
आत्मा , पुनर्जन्म , को बहुत कम आंका ।
मैडंम इन पर दार्शनिक लिखते है । जो
साहित्यकारों से बहुत ऊँचे होते है ।
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लेख सामयिक,सटीक एवं सार्थक ...मगर ..तुलना गज़ब की !
हम तो दराल साहब के विचारों से सहमत,वैसे सभी के विचार बहुत मन भाये, धन्यवाद
डॉ.दिव्या, प्रतीकों और बिम्बों को अपने लेखन में अच्छा लपेट लेती हैं। बहुत अच्छा। बहुत सुन्दर।
हिंदी ब्लागिंग पर हुई वर्धा सम्मेलन की चर्चा में डॉ. कविता वाचक्नवी के शब्द याद आ रहे हैं। उन्होंने कहा था कि ब्लाग मनोविआस नहीं बल्कि अपनी भाषा, लिपि, साहित और संस्कृति को बचाने का युद्ध है।
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साहित्य वही है ... जिस लेखन में हित की भावना समाविष्ट हो.
'सहितेन भावस्य साहित्यं' ... ब्लॉग लेखन हो अथवा भुर्ज-पत्र लेखन हो .. मतलब किसी भी प्रकार का लेखन हो यदि उसमें समाज सापेक्ष हित की भावना निहित है वह साहित्य ही है.
पहले श्रुति परम्परा वाला 'साहित्य' था.
फिर उसके बाद पठ्य-परंपरा वाला 'साहित्य' रचा गया. मनुष्य की स्मृति क्षीण हो जाने और कंठस्थ करने में अरुचि होने के कारण ही लिपि ने कागज़ की खोज कर ली.
ततपश्चात, ब्लॉग-परम्परा वाला 'साहित्य' आया. यह मनुष्य की तुरंत प्रतिक्रिया की चाहना की देन भी है.
इसका कारण यह भी है कि पुस्तकों से लगातार अरुचि बढ़ रही थी तब ज्ञान-प्राप्ति की चाहना ने उसे नये प्रारूप में [इंटरनेट माध्यम] तलाश लिया.
ब्लॉग-सामग्री और उस पर उसका पाठक तुरत-फुरत प्रतिक्रिया देकर आत्म-तुष्टि महसूस भी कर लेता है.
अब तक 'पुस्तकों में लिखे हुए को' पढ़कर उसपर टीका-टिप्पणी करके हम आपना पक्ष लेखक को न तो दर्शा सकते थे और न ही कुछ उसमें कुछ गुंजाइश दिखा सकते थे.
लेकिन ब्लॉग-लेखन में टिप्पणियों के ऑप्शन ने इस कमी ख़त्म कर दिया और लेखक और पाठकों को समकक्ष ला दिया.
यह एक अच्छी शुरुआत है. आपने विषयों का बहुत अच्छा वर्गीकरण किया है.
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अपनी खासियत बनी रहे तो बेहतर.
very true indeed.... Blogging is going to be a very effective tool for those who want a platform to share there thoughts with people around...
जाट देवता का आशीर्वाद है, अवश्य मिटेगा फ़ासला
बस कुछ समय लगेगा।
अच्छा विश्लेण किया है आपने... हार्दिक बधाई।
साहित-समाज और नारी का आपने बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है!
गहन चिन्तनयुक्त विचारणीय लेख ...
रोचक प्रस्तुति..
तुलना ठीक है ...
ek bilkul naye tarah ka maulik chintan !
critically analysed.
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मैं तो यही कहूँगा कि ब्लॉगिंग साहित्य नहीं है और न ही उसे 'साहित्य' होना या होने का प्रयत्न करना चाहिये...
ब्लॉगिंग रहे अपने आप में मस्त और बिंदास तभी वह ब्लॉगिंग कहलायेगी... :)
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ब्लोगिंग एक बेहतरीन माध्यम है विमर्श का जो एक बहुत बड़े वर्ग को आपस में जोड़ने में सक्षम है । जुड़ना ही मानव-स्वभाव है । इसलिए ब्लोगिंग लोकप्रिय भी हो रही है ।
bilkul sahi kaha .bhav aur vishya ko lekar sundar charcha .
दिव्या जी बहुत सुंदर विश्लेषण आप द्वारा किया गया है बधाई और शुभकामनाएं |
बहुत अच्छा लिखा है आपने.....सहमत हूँ आपसे......कई बार ऐसा होता है की ब्लॉग की किसी पोस्ट में लोग साहित्यिक महत्ता ढूँढने लग जाते हैं......आपने बहुत तरीके से दोनों में अंतर को दर्शाया है ......आज दुबारा आपके ब्लॉग पर आया हूँ इससे पहले एक बार आया था तो मेडिकल से सम्बंधित कोई पोस्ट दाल राखी थी आपने जो अपनी समझ से परे थी :-)
पर आज इससे बहुत प्रभावित हुआ.....आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे ......शुभकामनायें|
sadhan ko sadhya man lena kahan tak uchit hai.....
blogging ek madhyam hai......sahitya evam sahitya se itar sab kuch ke liye............
apke vichar vimarsh ke liye sahi hai......
pranam.
जो फिट वही हिट
दिव्या जी , आपकी बात से सहमति तो है पर साहित्य और ब्लोगिंग को दो धडों में बाँट कर आपने दुविधा में तो डाल ही दिया है किसी एक का पलड़ा भारी बताना शायद मुझे महंगा पड़े .
एक विचारणीय विषय पर उत्तम आलेख !
अच्छा विश्लेषण है ...प्रतुल जी की बात से सहमत
संजय झा जी नें सार्थक और सटीक बात कही……
वस्तुतः ब्लॉगिंग तो सर्जन का एक साधन है, एक माध्यम है, कोरे पन्नों की तरह। आप उस पर बस रच सकते है अपने विचारों को। आपका कर्तव्य है रचना करना, आगे चलकर वह साहित्य माना जाय या विमर्श सभा क्या फर्क पडता है।
सार्थक व सटीक । साहित्य और ब्लाग में इतना फासला तो है जितना स्त्री व पुरुष में । ब्लाग भले ही साहित्य में स्थान पा लें किन्तु ब्लाग को साहित्य होने का भ्रम कभी पालना भी नहीं चाहिये ।
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बहुत कुछ निर्भर करता है देखने वाले की आँखों पर । सार्थकता या फिर श्रृंगार।
समानता में यकीन रखती हूँ , इसी उद्देश्य से ये लेख लिखा है। चाहे स्त्री हो अथवा पुरुष , साहित्य हो अथवा ब्लॉगिंग , कवि हो अथवा लेखक , मुझे नहीं लगता की किसी को , किसी से कमतर आंकना चाहिए । आज ब्लॉगिंग के क्षेत्र में साहित्य से जुड़े हुए लोगों का प्रतिशत बहुत कम है , ज्यादातर तो गैर-साहित्यिक लोग ही हैं, इसलिए शब्दों में अलंकरण तो कम हो सकता है लेकिन सार्थकता ही अहम् है। तारीफ़ तो व्यक्ति के इस जज्बे की होनी चाहिए की ब्लॉगर भी यथा-शक्ति हिंदी की सेवा कर रहा है और विषयों को विस्तार दे रहा है ।
मेरे विचार से आज की ब्लॉगिंग ही कल का साहित्य होगी । जो सबको साथ लेकर चलते हैं , वही आगे बढ़ते हैं ।
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nice
साहित्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। उनमें एक परिभाषा यह भी दी गई है कि साहित्य जीवन और समाज का दर्पण है तथा इसकी अभिव्यक्ति के अनेक माध्यम हैं। ब्लॉग सद्यः और बिना किसी बाधा के अभिव्यक्ति का ज़रिया है। जिसके पास जो है अभिव्यक्त कर रहा है। नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं इसलिए किसी को एक दूसरे कमतर आँकने वाली बात व्यक्तिगत मानदंडों पर निर्भर करता है। इसे सार्वभौमिक नहीं कहा जा सकता। स्त्री पुरु़ष तो हर घर में होते हैं। पत्नी और बेटी अलग-अलग भूमिकाओं में होती हैं। कमतर कैसे?
दिव्या जी छमा करे आपके ब्लॉग के माध्यम से , बाकलीवाल जी को कहना चाहता हूँ की ब्लॉग को साहित्य न समझने की बात शायद अतिरंजित है, या फिर आपने कविताओं की ब्लॉग्गिंग पढी ही नही,
आपसे अनुरोध है सिर्फ -रश्मि प्रभा जी का कविता ब्लॉग पढें, संगीता जी की कविताये पढ़े, मृदुला प्रधान जी को पढ़े बस फिर कोई निर्णय करैं , ब्लॉग साहित्य है की नहीं, दिव्या जी की बात अनुचित नहीं है की ब्लॉग भी साहित्य है भले शैशव अवशता मैं हो और हो सकता है की कुछ ब्लोग्स साहित्य की श्रेणी मैं न आते हों ... सुशील जी अन्यथा नहीं लेंगे..
दिव स्वसे!
नमस्ते.
"मेरे विचार से आज की ब्लॉगिंग ही कल का साहित्य होगी । जो सबको साथ लेकर चलते हैं , वही आगे बढ़ते हैं ।"
@ .......बातों ही बातों में आपने एक अति उत्तम बात कह दी. मुझे आपका उपर्युक्त कथन सूत्र से कम नहीं लगा.
बधाई. उत्तम विचार और उत्तम लेखन ................ आपका लिखा [कुछ एक पोस्टों को छोड़कर] साहित्य में ही आता है. जिस प्रकार साहित्य की कई विधायें हैं. कहानी, उपन्यास, एकांकी, नाटक, कविता, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा-वृत्तांत, रिपोर्ताज, प्रबंधकाव्य (महाकाव्य, खंडकाव्य), चम्पू, जीवनी, आत्मकथा आदि आदि.... उसी प्रकार ब्लोगिंग अथवा ब्लॉग-लेखन भी एक विधा के रूप में विकसित हो चुका है. आज न सही कल इसे मान्यता अवश्य मिलेगी.
दिव्या जी कोई बच्ची आपको यहाँ बुला रही है ।
http://yeblogachchhalaga.blogspot.com/
आप सभी की सार्थक टिप्पणियों से ज्ञानवर्धन हुआ , ह्रदय से आभारी हूँ ।
Blogging, in my opinion, will not replace any news media but will play an active role in expressing ones thoughts and preferences.
सच कहा है ... ये फ़र्क जल्दी ही मिटने वाला है ...
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