सरस्वती की जिन पर कृपा होती है , अक्सर लक्ष्मी उनसे दूर ही रहती हैं। बड़े-बड़े साहित्यकार जो सचमुच कलम के धनी हैं और निरंतर साहित्य की सेवा कर रहे हैं , उनसे लक्ष्मी रूठी रहती हैं , आखिर ऐसा क्यूँ होता है ?
किसी भी साहित्यकार , लेखक , विश्लेषक को धन का स्वाद चखने को कम ही मिलता है । किसी संस्थान अथवा विज्ञान अथवा कार्य स्थल पर भी , असली दिमाग रखने वाले को धन तो दूर , श्रेय तक नहीं मिलता । बस राजनीति करने वालों पर लक्ष्मी की असीम कृपा बरसती है । ऐसे में सरस्वती को भी कोई सौलिड स्टैंड लेना चाहिए । अपने उपासकों पर कृपा दृष्टि रखनी चाहिए।
कितने भाग्यशाली हैं वे , जिन पर सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की संयुक्त कृपा होती है।
किसी भी साहित्यकार , लेखक , विश्लेषक को धन का स्वाद चखने को कम ही मिलता है । किसी संस्थान अथवा विज्ञान अथवा कार्य स्थल पर भी , असली दिमाग रखने वाले को धन तो दूर , श्रेय तक नहीं मिलता । बस राजनीति करने वालों पर लक्ष्मी की असीम कृपा बरसती है । ऐसे में सरस्वती को भी कोई सौलिड स्टैंड लेना चाहिए । अपने उपासकों पर कृपा दृष्टि रखनी चाहिए।
कितने भाग्यशाली हैं वे , जिन पर सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की संयुक्त कृपा होती है।
51 comments:
कितने भाग्यशाली हैं वे , जिन पर सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की संयुक्त कृपा होती है।
खूब कही , लेकिन आजकल सरस्वती ने हल्का फुल्का स्टैंड ले रखा है कम से कम से उनके उपासक अपनी रोजी रोटी तो चला ही लेते है . धन पशु बन जाना कोई उपासना थोड़े है . .
होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
पुरानी कहावत है - "अति हर चीज की बुरी होती है", सिर्फ पढ़ना, लिखना, मेहनत करना कहाँ की समझदारी है? जो लेखक, कवि, साहित्यकार सिर्फ लिखने पर ही ध्यान देते हैं उनको यह भी समझना चाहिए कि आपको अपने कार्य से रुपये प्राप्त करने के लिए भी कार्य करना पड़ेगा, सरस्वती जी सेल्स गर्ल नहीं हैं जो आपके किये कार्य को बेचने निकलेंगी
"भगवान उनकी मदद करते हैं जो अपनी मदद आप करते हैं" - आपको अच्छा लिखना है तो उसके लिए आप मेहनत करते हो पर जब कमाने की बात आती है तो शांत बैठ जाते हो, क्यूँ? ये बात यहाँ भी लागू होती है कमाने के लिए भी मेहनत करोगे तो जरूर कमाओगे
"सेवा करने से मेवा मिलता है" - सरस्वती की साधना की तो अच्छा दिमाग मिला और आपने अच्छा लिखना शुरू कर दिया, पर लक्ष्मी की साधना नहीं की तो लक्ष्मी क्यूं कर प्रसन्न होने लगीं? अरे यार अपने लिखे हुए पर कॉपी-राईट लो, उसको प्रचारित करने के लिए कार्य करो, पुस्तक छपवाओ, उसको बेचने के लिए कार्य करो किसी फिल्म बनाने वाले से संपर्क करो अपनी कहानी सुनाओ ये सब तुम्हारे लिए लक्ष्मी जी करेंगी क्या?
मैं समाज की सेवा कर रहा हूँ - ऐसा यदि कोई साहित्यकार तब कह रहा है जब वह ज्यादा कम नहीं पा रहा है तो हकीकत मैं वह महामूर्ख है, ऐसे साहित्यकारों ने कैसी सेवा की है वह इन बिंदुओं में देखिये
- आप समाज के लिए एक बहुत गलत उदहारण बनते हैं कि साहित्यकार सिर्फ गरीब होते हैं और कई लोगों को साहित्यकार बनने से रोक देते हैं
- आप जैसे लोगों की वजह से ही लोग अपनी संतान को आज कवि, कहानीकार, लेखक बनाने के बजाय इंजीनियर - डॉक्टर बनाना पसंद करते हैं
- आप जैसे लोगों की वजह से ही आज व्यंग्य, कविता, गजल जैसी अच्छी चीजों का स्तर इतना नीचे गिर गया है
यदि आप अच्छे साहित्यकार है (यानि अच्छे विचारक हैं ) तो अपने कमाने पर पूरे दिन में कम से कम 2 घंटे विचार जरूर कीजिये जिससे आने वाले समय में साहित्यकार को इज्जत की नजर से देखा जाए और अभिभावक अपने बच्चे के साहित्यकार बन जाने पर फक्र करें और "गेंहूँ और गुलाब" दोनों का अनुपात समाज में बराबर रहे
यहाँ आप का अर्थ "गरीब साहित्यकारों" से है, अपने ऊपर ना लें
...यह तो सदियों से होता आया है दिव्याजी...गालिब हो,या प्रेमचंद हो!...अब लक्ष्मीमाता को कौन क्या समझाएं!
kamobesh sahmati hai apse........
der se hi sahi holi ki subhkamna kubool karen....
sadar.
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
मन में लक्ष्मी का मोह हो तो सरस्वती साथ छोड़ देती हैं। सरस्वती का वरदान जिसे प्राप्त होता है उसे लक्ष्मी की आकांक्षा भी नहीं रह जाती। दो वक्त का भोजन और साहित्य साधना के लिए मिलने वाला पर्याप्त समय ही उसकी निधि है। हाँ हमें यह देख जरूर अफसोस होता ही कि प्रेमचंद, गालिब जैसे साहित्कार हमेशा अभावों में जीये, आज सभी उनपर भरपूर नेह वर्षा कर रहे हैं। काश यह सम्मान जीते जी उन्हें मिला होता !
सरस्वती और लक्ष्मी का आपसी बैर हमें भुगतना पड़ता है जो इन दोन के बीच में आ जाते है
बढ़िया पोस्ट है दिव्या जी.
इसी विषय पर कुछ दिनों पहले मैंने भी एक पोस्ट लगाई थी.
http://hindizen.com/2011/02/21/spiritual-lsd/
तभी मैं कहूं कि मैं बीस साल पुराने अपने चेतक महाराज(स्कूटर) पर ही सवारी क्यों करता हूं...ये बात है तो फिर कोई मलाल नहीं..
जय हिंद...
शायद J K. ROWLING.....
सुन्दर आलेख।
वाकई भाग्यशाली होते हैं वे जिनपर दोनों की कृपा होती है ...!
सरस्वती परिस्थितियों से समझौता नहीं करने देती।
ल्क्ष्मी की कृपा बनी रहे इसके लिए कई स्तरों पर समझौता करना होता है।
ये मुझे लगता है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।
KABHI KISI KO MUKAMMAL JAHAAN NAHI MILTAA.....
महत्वपूर्ण यह है कि आपकी लालसा, कुंठा और प्राथमिकता क्या है.
lekin suna hai Laxami aur saraswati me MOU sign ho gaya hai is liye umeed bandhi hai thodi :-)
दिव्या जी , यह वास्तव में ही बड़ी विडम्बना
है . बुदापे में अक्सर सरस्वती की मानस संतानों को कौड़ी कौड़ी के लिए मोहताज होते देखा है.
देवी सरस्वती को अवश्य ही कोई स्टैंड लेना चाहिए .
दिव्या जी,आपकी गुझीया थी ही इतनी मीठी की सारा ब्लोक जगत चट कर गया--अब तो आपको अगली होली तक इन्तजार करना पड़ेगा भाई ?
आज का विषय बहुत जान लेवा है --?
सचमुच जहां सरस्वती होती है वहाँ लक्ष्मी लापता होती है और जहां लक्ष्मी होती है वहाँ से विद्या की देवी गायब !
इसीलिए हम जेसे लोग 'मध्यम वर्गीय ' कहलाते है यानी थोड़ी सी दिमागी तरी !
थोड़ी सी जेब हरी !!
शानदार लेख ..बधाई !
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
रंग के त्यौहार में
सभी रंगों की हो भरमार
ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार
यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।
आपको और आपके परिवार को होली की खुब सारी शुभकामनाये इसी दुआ के साथ आपके व आपके परिवार के साथ सभी के लिए सुखदायक, मंगलकारी व आन्नददायक हो।
सरस्वती और लक्ष्मी के बीच दूरियॉ भारत में ही अधिक दिखलाई पड़ती है। समाज जितना शिक्षित और जागरूक होगा सरस्वती और लक्ष्मी उतनी ही करीब होंगी। इस मुद्दे पर उठाए गए सवाल सत्य हैं और वह यह भी दर्शाते हैं कि समाज को बेहतर बनाने के लिए अभी सघन प्रयासों की आवश्यकता है।
भाग्य की देवी कौन हैं।
सुना है कि कलयुग में अब लक्ष्मी और सरस्वती की दोस्ती हो गई है :))
अरे ऐसा लगता है सरस्वती माता को भारत में ही यह परेशानी है.बाकी जगह तो उनके उपासकों के पास वह लक्ष्मी के साथ ही जाती हैं.:)
आर्थिक अभावों से जूझते साहित्यकारों के प्रति आपकी संवेदनशील सोच सराहनीय है |
आपका लेख विचारणीय है , कहीं न कहीं छुपा कोई न कोई दर्द मुखर हो रहा है |
योगेन्द्र पाल जी से पूरी तरह सहमत!!
वाकई विडम्बना यही है कि साहित्यकारों ने स्वयं व्यवसाय व्यपार को हेय समझा और उसे हेय चित्रित भी किया।
भला हो नवयुग का जहां इन्टरनेट व वेब नें साहित्य और व्यापार के बीच की दूरी को घटाया है।
सॉफ़्ट्वेयर (विद्या) एक उत्तम दर्जे के व्यापार के रूप में स्थापित हुआ।
व्यापार करते हुए भी सेवा और देशहित साधा जा सकता है।
mujhe lgta hai ki is vidmbna ka shikar sirf hindi lekhk hain
shayd angrezi lekhakon ke sath to esa nhin hota.
kya main sahi nhin hoon?
सही कह रहीं है आप!
मंचीय कवियों के पास गिनती की 4 कविताएं होती है!
मगर लक्ष्मी की कृपा होती है!
और सरस्वती....?
फॅमिली बैकग्राउंड का क्या अर्थ है ? पूरी तरह से सोचकर लिखें ... शब्दिकता पर न जाएँ
मंचीय कवि मां सरस्वती को प्रणाम करते हैं , लक्ष्मी का आशीर्वाद स्वयं मिल जाता है ।
आजकल बस मार्केटिंग सही होनी चाहिए ।
बल्किुल सही तथ्य है यह। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मी और सरस्वती में बैर है इसलिए वे साथ साथ नहीं रह सकतीं।
एक ही व्यक्ति पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों की कृपा रही हो, इसके उदाहरण उंगलियों में गिने जा सकते हैं। भारतीय साहित्यकारों में जयशंकर प्रसाद और भारतेन्दु हरिश्चंद्र ही धनसंपन्न थे।
साहित्यकार फ़क़ीरी में भी ख़ुश रहता है.
साहित्यकार तभी बना जा सकता है जब उसे दर्द और चुभन का अहसास हो :)
दिव्व्या जी, कभी आप ने आरती पर गोर किया हे...
ऒम जय जगदीश हरे...
इस मे एक लाईन पहले आती थी.
सब को सम्मति दे भगवान.... लेकिन आज कल इसे लोग भजते हे
सब को सम्पंति दे भगवान.... आप अगली बार सम्पंति कहे फ़िर देखे.
वैसे मैने देखा हे लक्षमी वहां ज्यादा जाती हे जहां उल्लू ज्यादा होते हे:) पता नही क्यो, हमारे पास तो इधर से आती हे तो उधर से निकल जाती हे, जैसे दर्शन देने आई हो, ओर हम दर्शन कर के ही खुश हो जाते हे.
सरस्वती देवी की आराधना, साधना कर लक्ष्मी देवी को प्राप्त किया जा सकता है और लक्ष्मी देवी की आराधना कर लक्ष्मी प्राप्त कर aajkal srsvatvi देवी को asani se paya जा सकता है |लक्ष्मी
देवी ka aradhy agar sarsavati देवी की" साधना" karta है to sachhe artho me dono deviya sath sath santuln bnaye rakhti है upasak ke pas .bshrte budhhi ke devta gneshji ka bhi ashirwad ho to .
कहते हैं लक्ष्मी जी उल्लू पर सवार हों तो उजाड कर देती हैं.
और नारायण के साथ गरुड़ पर सवार हो तो निहाल कर देती हैं.
उल्लू जाहिल ,काहिल,बुद्धि हीनता का प्रतीक है.
गरुड़ तीव्र सूक्ष्म बुद्धि का प्रतीक है ,जिसकी उडान सर्वत्र नारायण यानि
आनन्द को लेकर होती है.
लक्ष्मी श्री ,यश,वैभव धन आदि की प्रतीक हैं.
संसार में छः प्रकार के धनं ( या सुख) बताये गए है
1: उत्तम विद्या का सुख - जो अच्छी बुद्धि वालों को ही मिलती है |
2: उत्तम वैवाहिक जीवन का सुख- जो भाग्य से प्राप्त होता है |
3: उत्तम संतान सुख- आज्ञाकारी ,संस्कारी, दीर्घायु संतान उत्तम है|
4: अच्छे स्वास्थ्य का सुख- मानसिक,शारीरिक आधार पर निरोगी व्यक्ति ही स्वथ्य है |
5: अच्छे धन का सुख- जब जैसी आव्य्श्यकता हो वैसा धन आपको प्राप्त हो|
6: सम्मान का सुख- आप लोगो में प्रिय हो आपका आदर हो तो यह आपका धन है |
ब्रम्हाण्ड (या इश्वर, प्रकृति आप उसे जिस नाम से भी बुला लें ) ऎसी व्यवस्था रखता है की
इन पांचो में से सभी एक समय पर किसी एक के पास एक साथ नहीं रहें |
अगर बुद्धि अच्छी हो गई तो धन का सुख बुद्धि के अनुपात में कम रहेगा |
अगर दांपत्य जीवन का सुख ठीक मिला तो संतान सुख उस अनुपात का नहीं होगा |
अगर धन का सुख संतोषजनक मिल सके तो स्वास्थ्य ही मानसिक और शारीरिक किसी न किसी आधार पर बिगड़ जाएगा |
सारे सुख हो पर लोग आपका मान न करे | आपको ह्रदय में स्थान न दे ऐसा भी होता है |
बड़े ही कम महाभाग्य वाले लोगो को यह सारे छओ सुख इक्कठे मिल पाते है |
असल में यह ब्रम्हाण्ड की संतुलन की निति है ... जो किसी कमी का एहसास देकर आपको चलायमान रखती है जीवन के प्रति आपको उद्देस्य्पूर्ण बनाये रखती है |
पूर्णता जीवन का अंत है.. अपूर्णता में ही जीवन का आग्रह है |
बस इसलिए कोई कमी हमेशा रह जाती है .....
Blessed are the ones who have the blessings of both.
आपके लेखों पर टिप्पणी करना मेरे जैसे साधु आदमी के बस की बात नहीं । ये विद्वान ही
कर सकते हैं ।
बल्किुल सही तथ्य है यह।
योगेन्द्र पाल जी से पूरी तरह सहमत!!
लक्ष्मी और सरस्वती तो हमारे दिमाग/विश्वास कि उपज है दिव्या जी, हर व्यक्ति अपनी प्राथमिकता स्वयं ही निश्चित करता है और अपनी उर्जा उसी तरफ लगता है जो भी उसे ज़यादा या पहले चाहिए! हाँ यह अलग बात है कि कुछ लोग समझोता कर लेते हैं तो कुछ अपना स्वाभिमान बनाये रखते हैं! हमें सिर्फ मानवता नहीं छोड़नी चाहिए यकीन मानिये देर-सवेर दोनों ही देवियाँ प्रसन्न हो जाती हैं, और सभी को यह याद रखना चाहिए कि" वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता, बुरा भी नहीं" !!!
आपकी स्वयामूल्यांकन को मजबूर करने वाली पोस्ट के लिए आभार...
आज तो सरस्वती के मंदिरों (स्कूल, कॉलेज) में लक्ष्मी की अपार कृपा है। यह बात दूसरी है कि विद्या देने वाले शिक्षकों से रूठी रहती है।
जिन साहित्यकारों को दोनों में संतुलन बनाना आता है उन पर सरस्वती के साथ साथ लक्ष्मी की भी कृपा बरसती है !दोनों को पाने के लिए एक ही सूत्र है लगन,विश्वास और श्रम !
सरस्वती का आशीर्वाद हो तो इस युग में लक्ष्मी कृपा मिल ही जाती है।
विद्वान धनी और धनहीन दोनों ही रूप में मिलते हैं। सरस्वती और लक्ष्मी का कोई स्वभावगत विरोध तो किसी भी स्तर पर नहीं देखने में नहीं आता। आज जो संसार में समृद्धि और विकास दिखाई पड़ रहा है, वह सरस्वती और लक्ष्मी दोनों का समन्वय है।
nice post bdhai dr.divya ji
बिलकुल सही कहा आपने.
जब देवी देवता न्याय नहीं रखते तो धरती का कोई मानुष किसी का कितना ख्याल रखेगा!
You are absolutely correct !
या तो आप लक्ष्मीपति हो सकते हैं या विद्यापति ,दोनो का पति एक साथ होने पर फ़िर तो लोचा होना ही है,कुदरती ईर्ष्या-डाह आपस में स्त्रियों का ...हा,हा, क्या अच्छा विषय आप ढूंढ लाती हैं...
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