Monday, March 14, 2011

इक्यावन बुके , पच्चीस हज़ार टिशू-पेपर के पैकट -stand in queue please !

सब तरफ उत्सव की तैय्यारियाँ दिख रही थीं। फिजा में उल्लास के साथ कसक भी बिखरी हुई थी । बसंत के सुर्ख रंगों में होली के अनंत रंग घुले हुए थे। वातावरण में संगीत की सुन्दर धुन बज रही थी ...

तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो ...
क्या गम है जिसको छुपा रही हो ...

हमने एक सतरंगी टोकरे में इक्यावन बुके सजाये हुए थे और एक ट्रक भर के पचीस हज़ार ब्लॉगर्स के लिए टिशू पेपर की व्यवस्था की थी । पंक्तिबद्ध होकर सभी ब्लॉगर अपने-अपने लिए निर्धारित वस्तुएं ग्रहण करते जा रहे थे और मुझे शिष्टाचारवश धन्यवाद भी दे रहे थे । मैं भावुक नयनों से सभी को भीनी-भीनी विदाई दे रही थी।

तभी कोने में बैठी राधिका पर मेरी नज़र पड़ी । रोने के कारण उसकी नाक सुड-सूड़ कर रही थी पूछा "क्या हुआ ?, कुछ लेती क्यूँ नहीं "। उसने कहा - "एक से मेरा क्या होगा "......हमने कहा - "आप दो लीजिये".....बोली- " इतने ब्लॉग लिखे कि सूख कर छुहारा हो गयी , लेकिन मुझे कोई भी ब्लॉगर-सम्मान नहीं मिला" , मेरे दिल के छालों के लिए एक बरनौल मिल जाये तो कुछ राहत आये"

पाठकों से निवेदन है जाते जाते अपने पैकट से मेरे लिए भी एक टिशू पेपर देते जाइए हो तो रुमाल ही दे दीजिये और मेरी सखी राधिका के लिए बरनौल भिजवा दीजियेगा

फिजां में गाने की धुन बदल चुकी थी ...

मुबारक हो सबको समां ये सुहाना ..
मैं तो दीवाना , दीवाना , दीवाना ..
मैं खुश हूँ मेरे आंसुओं पे जाना ..
मैं तो दीवाना , दीवाना , दीवाना ...

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58 comments:

धीरेन्द्र सिंह said...

आपकी सहेली राधिका से सहानुभूति है मुझे। पर कितनी लम्बी कतार है मेरा नंबर तो अभी आया ही नहीं। कहीं सब खतम हो गया तो मैं किसस् मांगूंगा और राधिका जी जैसे दो-दो की मांग करनेवाले और हो गए तो। यह सच है कि दीवाना ही ब्लॉग लिख सकता है लगातार फिर भले ही सूखकर कांटा क्यों ना हो जाए। एक गुदगुदाती सी रचना।

Aditya Tikku said...

Ati utam-****

Dinesh pareek said...

बहुत अच्छा अति सुन्दर बस इसी तरह लगे रहिये
http://vangaydinesh.blogspot.com/

सुज्ञ said...

सारगर्भित अभिव्यक्ति!!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kidhar nishana hai aapka :)

G.N.SHAW said...

अतिसुन्दर ...मै कतार देख कर घबडा गया हूँ ! समझ में नहीं आता क्या करू ? होली मुबारक हो !

सञ्जय झा said...

line me lag liye no. ane par bata dijiyega.............

pranam...

oh...ho....han radhika ko dekhte rahiyega.

Sawai Singh Rajpurohit said...

दो से भी मेरा क्या होगा हम कतार में खड़े है प्ल्ज़ मेरे लिए

ZEAL said...

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@ भारतीय नागरिक -

अभी कुछ न पूछिए , बस शालीनता से अपना टिशू-पेपर का पैकट लीजिये और हमको धन्यवाद ज्ञापित कीजिये कि आपके नेत्र-जल स्राव के लिए हमने समुचित व्यवस्था कि है । वैसे यहाँ सभी मॉल्स में टिशू आउट ऑफ़ स्टॉक हो गया है । आपकी रूमाल कि दरकार है ।

Smiles ...

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केवल राम said...

समझ गया आप क्या कहना चाहती हैं ....!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:) :) अच्छा निशाना साधा है ...

Irfanuddin said...

ha haa.... enjoyed the read.....
Really a good take on all those awards....
BTW even i need a Burnol..... :)

ZEAL said...

भाइयों एवं बहनों -

कृपया ये मत कहिये कि निशाना साधा है । अपनी आदत है साफ़ साफ़ अभिद्या में लिखना ।

ये लेख सम्मानित ब्लॉगर्स को बधाई एवं शुभकानाएं देने के लिए है तथा राधिका जैसे सौभाग्य से वंचित लोगों के साथ हार्दिक सहानुभूति रखता है ।

कतारबद्ध होकर जाइये अपने bouquet उठाइये अथवा अश्क पोंछने के लिए tissue ले जाइए । जाते समय रुमाल ऑफर करना न भूलियेगा ।

और हाँ धीरेन्द्र जी कि तरह गुदगुदी महसूस हो तो आभार देना मत भूलियेगा ।

इस लेख में एक निर्मल हास्य है, कृपया पढ़िए और मुस्कुराइए।

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ZEAL said...

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@ सवाई सिंह राज पुरोहित,
कतार में धक्का -मुक्की कि अनुमति नहीं है । आप देर से आयें हैं , इसलिए मेरे पीछे खड़े हो जाइए। मैं टिशू कि कतार में हूँ।

@ केवल राम -
आप सीरियस लग रहे हैं ?

संगीता जी ,
Smiles...

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Coral said...

हा हा हा...... अपना नंबर हमेशा ही पीछे रहेगा .....:)

अशोक सलूजा said...

कभी-कभी ऐसे भी गुद-गुदा लेना चाहिए !
हो मौसम सुहाना ,तो मुस्करा लेना चाहिए ||

सदा खुश रहें !
अशोक सलूजा

सदा said...

बधाई का तरीका बहुत अच्‍छा लगा ...पर कुछ लोग घबरा भी सकते हैं या कुछ को यह भी लग सकता है कि आप खिंचाई कर रही हैं ...पर सच तो यही है आपकी तरह बधाई का ख्‍याल हर एक को कहां आएगा ...शुभकामनाएं इस बेहतरीन लेखन के लिये ...।।

सम्वेदना के स्वर said...

राधिका के लिये एक शेर :

रस्ते को भी दोष दे आंखे भी कर लाल
चप्पल में जो कील है, पहले उसे निकाल


(पोस्ट पढ़कर अब,हम भी होली के मूड में हैं!)

आशुतोष की कलम said...

चलो आज मेरे नसीब में भी tissue आ गया ..
लेकिन अश्क पोंछने के लिए नहीं रखूँगा ... क्या करूँ कवि ह्रदय जो हूँ..सोच रहा हूँ सजा के रख लूँ..
दिव्या जी और लाइन में खड़े ब्लोगर्स की याद दिलाता रहेगा जब इन्टरनेट कनेक्शन नहीं रहेगा तब भी...

ZEAL said...

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सदा जी ,

अपना काम है लिखना । मैं तो सभी के दुःख सुख में शामिल हूँ। कोई मेरे बारे में क्या सोचता है , इस बारे में मैं सोचती ही नहीं ।

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ZEAL said...

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चैतन्य जी ,
मस्त शेर लिखा है आपने । हम भी होली के मूड में आ गए हैं ।

आशुतोष जी ,
गजब का आईडिया है ।

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aarkay said...

दिव्या जी, एहतेहातन हमने तो कई बुके डाउनलोड कर लिए हैं क्योंकि queue तो आप तोड़ने देंगी नहीं .
उत्तम आलेख !

Rakesh Kumar said...

हँसते हँसते रोना ,या रोते रोते हंसना ? किस गम को छि पाया जा रहा है दिव्याजी ? मुबारकबाद के लिए तो धन्यवाद .लेकिन दीवाने के आंसू तो राज खोलेंगे ही. कहा गया है 'रहिमन असुआ नयन ढरी,जिय दुःख प्रकट करिएँ.'अब आप बताएं तो अच्छा,और न बताएं तो अच्छा ये आपका राज है. लेकिन ,आपका निर्मल बालपन सुहाता है और आ.अशोक सलूजा की वाणी में 'हो मौसम सुहाना ,तो मुस्कुरा लेना चाहिए'. होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.

vandana gupta said...
This comment has been removed by a blog administrator.
vandana gupta said...

काश! कोई तो नम्बर मेरा भी होता
चाहे 52 वां होता…………
आज हर राधिका की यही कहानी…………
हाथ मे टिशु पेपर
आँखो मे पानी
अब चाहे बरनौल लगाओ
चाहे लगाओ पानी
मैने तो अपनी कह दी
दिल की जली कहानी
हाय हाय!अब कैसे चैन पाऊं
बिन सम्मान न अब मै जी पाऊं
लेखन भी अवरुद्ध हो गया
ख्वाब मेरा भी टूट गया
कोई तो लगा दो
मेरी भी बारी
आज हर राधिका की यही कहानी…………

ZEAL said...

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RK जी ,
ज्यादा चालाकी नहीं , सदा जी के पीछे कतार में स्थान ग्रहण कीजिये ।

राकेश जी ,
चुप चाप कतार में लग जाइये , वर्ना पीछे वाला /वाली आगे हो जायेगी ।

वंदना जी ,
चलिए हम ५३ वें का ख्वाब देख लेते हैं । आपकी कविता में आनंद आ गया ।

Smiles..

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पी.एस .भाकुनी said...

इक्यावन बुके और पच्चीस हज़ार टिशू-पेपर के पैकट,
bahut na insafi hai ye .............

ashish said...

हम चुप्पी मारे कतार में है .

शोभना चौरे said...

अपने लिए तो अंगूर खट्टे है |
शारूख खान जब भी किसी अवार्ड फंक्शन में नाचता है तो उसे अवार्ड जरुर मिलता है |वैसे आजकल नित नये अ वार्ड फंकशन अपनी गरिमा भी खोते जा रहे है |
वैसे नाचना कोई बुरी बात नहीं है पर हर समय ठीक नहीं ?
राधिका के लिए होली पर एक गीत .
शायद बर्नल की कमी न लगे |हा हः हा
टेसू सा रंग हो तुम
मोगरे की खुशबू हो तुम
फागुन के महीने में
ढंडी बयार हो तुम .......

ZEAL said...

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टेसू सा रंग हो तुम
मोगरे की खुशबू हो तुम
फागुन के महीने में
ढंडी बयार हो तुम .......

वाह! वाह ! वाह! ......शोभना जी , सच्ची कसम से ....बरनौल कि भरपाई कर रही है आपकी फागुनी बयार ...मज़ा आ गया ...

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प्रवीण पाण्डेय said...

हमें लिखने में ही आनन्द मिलता रहता है, कोई स्नेह दे दे तो बोनस।

ZEAL said...

सही कहा ...लिखने का ही आनंद है असली ...इसीलिए तो ये लेख लिख कर आनंद उठाया जा रहा है फागुन का...

वाणी गीत said...

rumaal aapko de diya to apne aansu kisse ponchenge ?
nooooooo!

जयकृष्ण राय तुषार said...

दिव्या जी आपको सपरिवार इन्द्रधनुषी शुभकामनाएं |इलाहाबाद और हिन्दुस्तान का रंग आप पर हमेशा छाया रहे |होली की शुभकामनाएं |आपकी भाषा बहुत दमदार है विषय पर पकड़ भी है इसलिए अगर समय मिले तो एक उपन्यास लिख डालिए|यह एक सार्थक और सृजनात्मक लेखन होगा ,इसका फयदा भी दूरगामी होगा हिन्दी या इंग्लिश किसी भी भाषा में लिखें |नमस्ते

Shekhar Suman said...

हम तो अपने आप को आमिर खान समझते हैं यूँ शाहरुख़ खान की तरह हर एवार्ड बटोरना पसंद नहीं.. :)
हम भी कतार में हैं.....

VIVEK VK JAIN said...

ye kya h....mei bilkul bhi nhi samjha.....

डॉ टी एस दराल said...

दुनिया में कितना ग़म है
मेरा ग़म कितना कम है ।

हा हा हा ! दिव्या जी , आप भी हमारी तरह छुटभैये ब्लोगर बन गई ।

वंदना जी की कविता में होली का आनंद आ गया ।

amit kumar srivastava said...

an oblique satire...

महेन्‍द्र वर्मा said...

कहीं फागुन, कहीं सावन ।
smiles

Kailash Sharma said...

क्या करेंगे लाइन में लग कर...लाइन को देख कर जो मज़ा आ रहा है वही काफी है..

ZEAL said...

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हा हा हा.. डॉ दाराल ...छुटभैये ब्लॉगर होने में अनजाना सा सुख है ।
वाणी जी ...हम दोनों एक ही रुमाल से काम चला लेंगे । आप सीधी तरफ इस्तेमाल कर लेना , मैं कोने में पोंछ लूंगी। ...Smiles ....

इस लेख पर हर टिप्पणीकार कि टिपण्णी बहुत रोचक है । सबसे बड़ी खासियत ये है कि मैंने जिस हलके-फुल्के मूड में लिखा था , पाठकों ने उसे उसी तरह पढ़ा भी है । जिन लोगों को कभी मुस्कुराते नहीं देखा था...उन्हें भी मुस्कुराते देखकर अच्छा लगा .....

कहीं फागुन , कहीं सावन...... वाह महेंद्र जी .....आनंद ला दिया आपने।

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ZEAL said...

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जयकृष्ण तुषार जी ,

आपके अनुरोध पर एक उपन्यास लिखा है जो नायिका प्रधान है , लेकिन स्वप्नों कि उड़ान बहुत ऊंची होती है , अब दिल कर रहा उस उपन्यास पर एक फिल्म बने और उसके निर्देशक आमिर खान हों , लेकिन आमिर जी को मनायेगा कौन ? Three idiots के निर्देशन के बाद उनके रेट बहुत हाई हो गए हैं ...कुछ जुगाड़ कीजिये।

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रूप said...

क्या कहें हम , इतने लोग लाइन में हैं कि हमें लगता है पीछे खड़े होना बेमानी होगा .

'दरअस्ल कुछ ख़ता तो अपनी भी है ,

हम दौड़ लगा न पाए !'

ZEAL said...

दौडिए रूप जी , हम हैं न साथ में ...company मिलेगी..Smiles...

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

holi ki fuhar achchhi lgi

main to nya hoon , ktar men antim hi rhoonga

राज भाटिय़ा said...

अरे अरे रुकिये रुकिये.... मेरे स्टोर से सारे टिशू पेपर बिना पेमंट किये ले आई, ओर ओर यहां लोगो को डांट डांट कर बांट रही हे, अजी कोई लाभ नही, मैने कभी भी, ओर कही भी अपने भारतिया लोगो को लाईन मे लग कर शांति से कोई भी काम करते नही देखा,आप कितना भी डांट ले कोई ना कोई धक मुक्की करेगा ही, लेकिन मुझे क्या यह पकदिये इन टीशू पेपर का बिल एक सप्ताह तक कभी भी भुगतान कर दे, ओर वो इक्यावन बुके वाला भी बाहर खडा हे..:) राम राम

आचार्य परशुराम राय said...

I am waiting for my turn standing as a last man in the queue. Thanks for laughter post. I have noting in my hand other than this comment and this may please be treated as handkerchief on my behalf.

Sushil Bakliwal said...

क्या आपके ही टिश्यू पेपर में से मैं भी शेअर कर लूँ ?

मदन शर्मा said...

अरे बाप रे बाप! पचीस हज़ार टिशु पेपर के पैकेट किन्तु मात्र इक्यावन बुके ! अरे भैया ये तो सरासर ना इंसाफी है. खैर मैं तो शायद सब से जूनियर ब्लोगर हूँ इस लिए बाहर से ही खड़ा हो के धक्का मुक्की का आनंद लूँगा.
लगे रहो भाई लाइन में, मैं तब तक अपनी श्रीमती जी के साथ गुझिया पापड़ ही बनवा लेता हूँ . अंत में अगर कुछ टिशु पेपर बच गया तो मेरे काम आ जायेगा.
आपको आपके परिवार को होली की अग्रिम शुभकामनाएं

Manish said...

जी हम भी आ गए कतार में..
देर से आये है कतार लम्बी हो गई है..

पर आशा है की जी हमें भी गमला (मतलब बुके) मिल जायेगा...

नहीं तो सांत्वना-पुरस्कार में टिशु-पेपर तो मिलेगा ही.. ;)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह क्या बात है दिव्या जी!
होली की शुभकामनाएँ!

ZEAL said...

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वाह वाह वाह ...इतने मीठे , रसीले , चुटीले कमेंट्स हैं...आनंद आ गया ...अभी तक मुस्कराहट है आप लोगों की शोखी और मस्ती पर।

राज भाटिया जी ...आप को कैसा पता चल गया कि हम आपके स्टोर से टिशू लाये थे ?...खैर अब जान ही गए तो तनिक धीरज धरें ...सब ब्लॉगर से वसूली करके रकम भिजवाते हैं ...

परशुराम जी कि handkerchief बहुत useful रही ...चार-पांच ब्लॉगर ने साझा इस्तेमाल किया ...

मदन शर्मा जी , आप कतार तोड़कर भाभी जी के साथ गुझिया बनवा रहे हैं ...अएं ? ..इ का बात हुई ?...चिंता न कीजिये , हम लोग कम नहीं ....पूरी ट्राफिक ( कतार) , भाभी जी कि गुझिया कि तरफ divert कर दी गयी है ...कम न पड़े ...टिशू तो लोगों ने बाँट लिए , लेकिन अपनी गुझिया कोई न बांटेगा ...पक्का समझिये।

बाकलीवाल जी , अब दुःख कि घडी में अपना ही अपने काम आता है ...जरूर साझा कीजिये टिशू ..दो चार आँसू भी शेयर हो जायेंगे...

आशीष जी और दिलबाग जी तो चुपचाप कतारबद्ध हैं...प्यारे बच्चे हैं... काफ़िर जी का गमला हाजिर है ।

शास्त्री जी , आपको भी होली मुबारक...

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ZEAL said...

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Dear Amit-Nivedita ,

It was not an oblique satire. There is a subtle difference between satire and humour. It depends on a person how to see the situation (glass as half-full or the glass as half-empty).

It's not a big deal to make a tough situation enjoyable. I tried to add some humour in a particular situation and the commentators made it all the more enjoyable with their purity of thoughts and sense of humour.

Thanks to each and everyone.

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BK Chowla, said...

I do see this as a glass full.
Very interesting post

सञ्जय झा said...

ek tissue paper hame bhi do.....kabke line me lage
the abhi tak no. nahi aaya baad wale.....age nikal
liye......oon...oon...oon.....


pranam.

ZEAL said...

.

Chowla ji ,

Many thanks to you .

.

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