Monday, April 4, 2011

ब्लॉग अनुभव -- भाग -११

एक -

यूँ खफा होकर क्यूँ दूर छुप गए हो ,
संदेसा तो भेजा था - " आशा है आप समझेंगे "
अब बेकार ही कहते हो ...
"हमसे आया गया, तुमसे बुलाया गया"

दो-

उनकी टिप्पणी की भड़ास पर ,
प्रति-टिप्पणी लिखने की प्यास थी बहुत
लेकिन पी गए हम अपनी तलब को ,
नियति समझकर...
आखिर ब्लौगिंग के दस्तूर जो समझ लिए थे हमने...

तीन -

कमबख्त , इतनी देर से क्यूँ आते हो ...
मेरी पोस्ट बदल जाती है ,
तुम टिपण्णी देने से बच जाते हो

चार -

होली गयी , दिवाली आई
टिप्पणीकारों ने,
कॉपी-पेस्ट की दूकान चलाई
त्यौहार गए तो वर्ल्ड कप गया
ब्लोगर्स को भी क्रिकेट का बुखार गया
सब टीवी से चिपके थे , मेरी हालत अजीब हो रही थी ,
अच्छी भली पोस्ट भी , शहीद हो रही थी
नीचे लिविंग रूम से ,
बाप-बेटे की रह-रह कर आवाज़ रही थी .... ....ऊऊऊऊऊऊउ ....
परेशान होकर बिटिया बोली-- Please don't Shouttttttttttttttttttt ...

हमने भी लैपटॉप shut down किया ,
सोचा , आराम बड़ी चीज़ है , चलो सो ही जाते हैं
कल तक तो ब्लोगर्स का बुखार उतर जाएगा
मुरझाती पोस्टों का खुमार लौट आएगा
लेकिन ये क्या ????
बुखार बरकरार था , धोनी को मिले लाखों
और ब्लोगर्स पर खुमार था
जहाँ देखो वहां बधाई के बाज़ार लगा रहे थे ,
हम भी कॉपी -पेस्ट करके करीने से सज़ा रहे थे

पाँच -

गंभीर है मेरी बिमारी , कहते हैं जिसे - "बोरियत"
कुछ करो संजीदगी से , पूछो केवल खैरियत
राधिका बोली -
"दिव्या तुम्हारा अब कुछ नहीं हो सकता ,
अरिष्ट लक्षण साफ़ नज़र रहे हैं
उँगलियों पे गिनो गिनती ,
परलोक के दिन अब करीब रहे हैं "

आभार

57 comments:

Unknown said...

एक हलकी-फुलकी पोस्ट के लिए बधाई,आप भी मज़ा लीजिये धोनी के मुंडन में, ये दर्शक ही है कब किसका मुंडन कर दे कोई ठीक नहीं, जीते तो पलक पावडे वरना पाकिस्तानी कोड़े, आप तो लिखिए सिर्फ लिखिए बोरियत अपने आप मिट जाएगी, ये पोस्ट पढके मन हल्का हो गया, शंकाए मिट गयी जो आपने एक पहले की पोस्ट में उठायी थी, शुभकामनाये

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

`उँगलियों पे गिनो गिनती ,
परलोक के दिन अब करीब आ रहे हैं "

कहीं भी जाएं....लैपटाप तो साथ है ना :)

Satish Saxena said...

अपने आपको आयरन लेडी कहती हो और निराशाजनक शब्द .....खेद जनक बात हैं डॉ दिव्या श्रीवास्तव !

सारे कष्टों और दुश्वारियों पर इंसान ने हँसते हँसते विजय पायी है! इस विश्व में ऐसा कुछ नहीं जिसपर इंसान न जीत सके सवाल हौसला बनाए रखने का है ! आशा है आखिरी पैरा को मिटा दोगी...
शुभकामनायें !

kshama said...

Ha,ha,ha! Jahan jayiyega hame payiyega!!!

Darshan Lal Baweja said...

सुन्दर कविता, मन को भा गयी।

Rakesh Kumar said...

परलोक में भी आप चैन कहाँ पाएंगी
नित नई पोस्ट वहां भी लिखती जायेंगी
टिप्पणिओं की जब बरसात होगी
तो प्रति-टिपण्णी से वे सब आत्मसात होंगी
फिर फर्क क्या हुआ परलोक या इहलोक में
यहाँ भी पोस्ट आप लिख ही रहीं है
बस प्रति टिपण्णी से टिप्पणिओं को
आत्मसात कीजियेगा और जिंदगी का यूँ ही
मजा लीजियेगा.
बोरियत की क्या अपनी बिसात है
जब सारा इलाज खुद आपके पास है.
अपनी तो अपनी दूसरों की भी बोरियत दूर करती हैं आप
जब सुन्दर से लेख और टिपण्णी पर प्रति टिपण्णी करती हैं आप.

Dr. Yogendra Pal said...

दूसरी सबसे अच्छी लगी

mridula pradhan said...

behad manoranjak....

Satish Saxena said...

जब समय मिले इसे अवश्य पढना ....
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/04/blog-post_14.html

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बस यूँ ही लिखा कीजिए
हास्य लिखने वालों को हिला दीजिए
नीम करेले के मिक्चर पिलाने के बाद
जो एक मीठी गोली ना दे
उस डाक्टर के पास जाना ही बेकार

उतर गया क्रिकेट का बुखार
मगर लगता है
आजीवन चलती रहेगी
ब्लॉगिंग की धार
आपके इस पोस्ट को
ढेर सारा प्यार।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

दिव्या जी अरिष्ट लक्षण का अर्थ है "imminent signs of death " आपसे ऐसी निराशा की आशा नहीं थी. हम अपनी जिजीविषा से मृत्यु को पीछे धकेल सकते हैं. कविता अपनी सम्पूर्णता के साथ प्रस्तुत हुयी है ....अब मत कहना कभी कि आप कविता नहीं लिख सकतीं ...सख्त हिदायत है. और अरिष्ट के बारे में तो सोचना भी मत.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आज आनन्द आ गया...

Udan Tashtari said...

अरे, शुभ शुभ बोलिये.

नवसंवत्सर की शुभकामनाएं.

मीनाक्षी said...

हमने अपनी निराशा को दफ़न किया तो यहाँ फिर से निराशा के दर्शन हो गए...ऐसा क्यों ??

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दुनिया रंग रंगीली!

Rahul Singh said...

'अनुभब' और 'टिपण्‍णी'- जैसा आपने लिखा है, में संशोधन 'अनुभव' और 'टिप्‍पणी' करने पर कृपया विचार करें.

प्रवीण पाण्डेय said...

जब नदी की तलहटी में पैर पड़ते हैं तभी सबसे अधिक उछाल मिलता है जीवन को।

amit kumar srivastava said...

how can you deliver so much of "thoughts". आप बहुत चुप रहती है क्या? बोलने वाली सारी ऊर्जा बचा कर, लेखन में उड़ेल देती हैं । जो भी हो very impressive, keep going.

सुज्ञ said...

हो जाय यदि छुआ छुत का रोग
या फिर शब्द-तन में उग आए कांटे
समझ तो यही कहती है
ऐसे में मित्रों के निकट न जाएं तो अच्छा।

विषाद भरे मन को विषाद ग्रस्त मित्रों से न बांटो
तब वहाँ उमंग से उत्साही मित्रों को ही छांटो

अब याद न कभी अरिष्ट हो, लक्ष्य बस अभिष्ट हो
स्वमान मर्दन करते हुए, व्यवहार अपना शिष्ट हो

अजित गुप्ता का कोना said...

यह लोक क्‍या छोटा पड़ रहा है जो परलोक की सोच रही हो?

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

अच्छी काव्यमय अभिव्यक्ति बहुत ख़ूब।

Akshitaa (Pakhi) said...

हा..हा..हा...बहुत मजेदार पोस्ट रही यह तो..बधाई.
____________________
'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.

सञ्जय झा said...

apne anubhav ko sat-pratishat sahi tarike se bataya hai..............lekin antim line 'thik'
nahi hain......satish bhaijee ke baton par gour
farmayen..........

pranam.

Unknown said...

ek hasmukh post.....

jai baba banaras......

ashish said...

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ,दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।
यही रहो और रोज लिखो .

सम्वेदना के स्वर said...

नहीं नहीं...अभी नहीं :)

नववर्ष की शुभकामनायें।

Unknown said...

वाह आपने बहुत ही शानदार लिखा है। वर्ल्ड कप की वजह से तो सब कुछ शांत हो गया। ब्लॉगिंग भी।

मेरा ब्लॉग भी देखें
अब पढ़ें, महिलाओं ने पुरुषों के बारे में क्या कहा?

महेन्‍द्र वर्मा said...

निर्मल हास्य की कविताएं तो अच्छी बन पड़ी हैं।
कवि और लेखक परलोक क्या, वो तो त्रिलोक, सप्तलोक और चौदह भुवनों का घर में बैठे-बैठे ही भ्रमण कर लेते हैं।

डा० अमर कुमार said...


यह पोस्ट बड़ी है, मस्त मस्त.... यह पोस्ट बड़ी है, मस्त !

मुकेश कुमार सिन्हा said...

wah jee wah!!.........aap to gambhir post karti thi...ye changes kaise:D

शिवा said...

बहुत सुंदर कविता

शोभना चौरे said...

अरे रे ,अभी तो आइ,पि एल झेलना है अब ये मत पूछ बैठना की आई पी एल क्या होता है ?
बस एक पश्न हमेशा उठता है मन में देश प्रेम सिर्फ यहाँ ही क्यों उमड़ता है जन समुदाय में ?और ये देश प्रेम के अंतर्गत आता है क्या ?
और अभी तो इसी लोक में बहुत कुछ है परलोक की बात कहाँ से आ गई ?
शुभकामनाये

Shekhar Suman said...

everything is nice except the last para... :(
god bless you...

vandana gupta said...

मज़ेदार्।

अशोक सलूजा said...

दिव्या हमारी ,है सब की तू प्यारी
अच्छा नही है डराना उनको ,
जिनकी लागे तू सबसे ज्यादा दुलारी||

आशीर्वाद!

aarkay said...

आप तो अच्छी खासी कविता भी कर लेती है , दिव्या जी ! आपका यह कवयित्री रूप भी भा गया .

aarkay said...

पुनश्च :
आपके दिनकर की "हुँकार " वाले तेवर ही अच्छे लगते हैं , न कि परलोक की चर्चा !
खुश रहें !

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

दिव्या जी,

इहलोक में परलोक कहाँ से घुस आया ?

मगर यह भी खूब रही !

Mohini Puranik said...

चौथी मे हालत हमारी बयान की! धन्यवाद! दिव्याजी!

Sushil Bakliwal said...

उँगलियों पे गिनो गिनती ,
परलोक के दिन अब करीब आ रहे हैं "

कहीं भी जाएं....लैपटाप तो साथ है ना.

दर्शन कौर धनोय said...

बहुत खूब दिव्या जी आप तो कवि बन गई --

अब तो कविता के लिए अलग से ब्लोक बना ही डालो
टिपण्णी न सही कॉपी -पेस्ट तो कर ही देगे !

जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया है आपने !

सदा said...

हूं ...हमेशा की तरह यह भी अच्‍छा है ... शुभकामनाएं ।

Rakesh Kumar said...

Sorry,उपरोक्त टिपण्णी तो केवल मजाक में की थी.आपकी पोस्ट 'कैसे इंकार करदूं की डरती नहीं' से जाना कि आप अस्वस्थ चल रही हैं.प्रभु से प्रार्थना है कि अति शीघ्र आप स्वास्थ्य
लाभ करें .जाने अनजाने में मुझ से कहीं कुछ गलत लिखा गया हो तो ,please क्षमा कीजियेगा.

ZEAL said...

.

राकेश जी ,

आपकी टिप्पणी तो बहुत ही पसंद आई है मुझे । सॉरी कहकर क्यूँ अनायास ही शर्मिंदा कर रहे हैं हमें । मैंने ये पोस्ट सचमुच बिलकुल मस्ती के मूड में ही लगाई है। कृपया मस्ती के साथ ही पूरा-पूरा आनंद उठाइये और मेरा भी आनंद बढाइये। शीघ्र ही नयी पोस्ट के साथ उपस्थित होउंगी।

छोटी-मोटी बातों से घबराकर हम मस्ती करना थोड़ी ही छोड़ देंगे।

I am always fit, fine and zealous.

.

kshama said...

Are aapne aapki nayi post pe comments kyon rok diye?Aap kahiye,sab kuchh kahiye....hame bhee aapke saath,saath kahne deejiye!

मदन शर्मा said...

कुछ वर्ड कप जितने की ख़ुशी में मस्ती मनाने तथा कुछ निजी कार्यों में व्यस्त रहने के कारण मै देर से आया. इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ. मैंने आपके सारे पोस्ट पढ़े. बहुत बेबाक लेखन है आपका. जितनी भी तारीफ की जाय कम है. एक निवेदन है आपसे!! कितनी भी आंधियां आयें किन्तु ये साहस कभी नहीं छूटना चाहिए. यही आप की पहचान है. सौ झूठ पर एक सत्य ही भारी होता है. झूठ का एक न एक दिन पतन होना ही है किन्तु सत्य कभी नहीं मिटाया जा सकता. हौसला रखिये!! ईश्वर की कृपा रही तो बीमारी से भी पीछा छूटेगा आपका .
मेरे और से आपको हार्दिक शुभ कामनाएं ..........

मदन शर्मा said...

इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं......

गिरधारी खंकरियाल said...

क्या परलोक में भी स्थान रिक्तता का विज्ञापन निकला है ?


ये नयी पोस्ट के लिए जिस पर बैन लगाया है :-


सुख दुःख जीवन के दो पहलु है परन्तु दुखो से भयाक्रांत होना एक डॉक्टर को शोभा नहीं देता . निराश होने की आवश्यकता नहीं समय पर सब कुछ सही होता चल जाता है

Sunil Kumar said...

अच्छा हुआ दिव्या जी अपने बता ही आप मस्ती के मूड में है हम घबरा ही गए थे

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

दिव्या जी ,
आप निराश न हों तो अच्छा ही होगा | सभी बाधाएं दूर होंगी , आप शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ होकर पूर्व की भाँति
ब्लाग जगत में दहाडेंगी | हमारी सारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं |
हाँ , आप तो स्वयं डाक्टर हैं ---जो भी परेशानी हो उसका इलाज़ अविलम्ब करा लें |

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

दिव्या जी ! मुझे लगता है कि तुम सबकी चहेती बन गयी हो ...सब तुम्हें प्रेम करते हैं ...and it is not conditional but spontaneously we love you .... जो कभी तुम्हारे विरोधी थे वे भी अन्दर ही अन्दर तुम्हें प्रेम करते हैं ...कोई सहानुभूति नहीं ...एक सहज अनुराग है. तुमने ठीक कहा, एक डॉक्टर प्रोग्नोसिस को अच्छी तरह समझ सकता है ...उससे कैसे न डरा जाय ? पर जो सुनिश्चित है हम वहीं क्यों उलझ कर रह जाएँ ? आगे बढ़ते हैं...पास में जितने पल हैं उनका भरपूर उपयोग जीवन को जीने में लगा दें.....जब हमें यह पता नहीं होता कि हमारे खाते में कितने पैसे हैं तो बड़ी दुविधा होती है पर एक बार जब पता चल जाय तो हम प्लान कर सकते हैं कि कितने पैसे कहाँ खर्च करने हैं .....और एक बेहतर व्यवस्था बन सकती है. हम पूरी ज़िंदगी कुछ पलों में भी जी सकते हैं ...बहुत बेहतर तरीके से. और फिर यह तो यात्रा है अनंत यात्रा ....एक पड़ाव भर आने वाला है पिछले पड़ाव की तरह ...अगले स्टेशन की उत्सुकता से प्रतीक्षा होती है किसी भी यात्री को .....वहां डर नहीं उत्सुकता मिश्रित आनंद होता है.....एक बार मैं अस्वस्थ्य था तब मेरे लडके (उस समय ८ वीं में पढ़ता था )ने मुझसे कहा " आपकी मृत्यु पर मैं औरों की तरह बिलकुल नहीं रोऊँगा" उसकी माँ ने डांटा ...चुप, कुछ भी बोलता रहता है. लडके ने फिर कहा - "नहीं माँ ! हमें तो खुश होना चाहिए कि पिताजी को एक नया जीवन मिलने वाला है. उनका टिकट यहीं तक का होगा.यहाँ से दूसरा टिकट लेना पडेगा. और अगली यात्रा फिर शुरू इसमें दुःख क्यों ?" अच्छी-अच्छी दिव्या रानी ! मुझे नहीं पता तुम्हें क्या हुआ है पर इतना समझ सकता हूँ कि तुम्हें अपनी prognosis पता है. पर आगम की चिंता छोड़ कर उपलब्ध पूंजी को बेहतर तरीके से प्लान करके खर्च किया जा सकता है. तुमसे अनुरोध है अगस्त में जब भारत आना तो मुझे खबर करना कुछ पल मुस्करायेंगे ....हँसेंगे .....उत्सव मनाएंगे.....और यदि संभव हुआ तो आपको एशिया का नियाग्रा जल प्रपात भी दिखाएँगे जोकि बस्तर में है.

Kailash Sharma said...

उनकी टिप्पणी की भड़ास पर ,
प्रति-टिप्पणी लिखने की प्यास थी बहुत ।
लेकिन पी गए हम अपनी तलब को ,
नियति समझकर...
आखिर ब्लौगिंग के दस्तूर जो समझ लिए थे हमने...

एक नया रूप..बहुत सुन्दर और रोचक लगा..आभार

Sawai Singh Rajpurohit said...

आदरणीय डॉ दिव्या श्रीवास्त
क्या बात है आज ?
हमसे कोई गलती हो गई या किसी और की बात पर नाराज है या कोई और बात है!

आप तो डाक्टर है अब में बीमार हो जाहुगा.........

!!शुभ रात्रि !!

Sawai Singh Rajpurohit said...

और !!शुभ रात्रि !!

ZEAL said...

.

कौशलेन्द्र जी ,

प्रेम और स्नेह ही तो जीवन में विश्वास का संचार करते हैं । और इसी के सहारे , बड़ी से बड़ी जंग भी जीती जा सकती है। आपसे मिले इस स्नेह के लिए मन में कृतज्ञता है।

.

Manoj K said...

आपके दिन गिनने वाले के हाथ में कितनी उँगलियाँ है...

झलकियाँ अच्छी लगीं..

Dr.J.P.Tiwari said...

गंभीर है मेरी बिमारी , कहते हैं जिसे - "बोरियत"
कुछ करो संजीदगी से , पूछो न केवल खैरियत
राधिका बोली -
"दिव्या तुम्हारा अब कुछ नहीं हो सकता ,
अरिष्ट लक्षण साफ़ नज़र आ रहे हैं
उँगलियों पे गिनो गिनती ,
परलोक के दिन अब करीब आ रहे हैं "

इस पोस्ट में सब कुछ बदला-बदला सा है.कथ्य भी, सन्देश भी, तेवर भी. यह सन तो ठीक है लेकिन इधर कुछ दिनों से निराशा और अवसाद के भाव आखिर क्यों? समेदंशील होना बुराई नहीं अच्छाई है लेकिन एक लौह महिला का एकाएक रूपांतरण होना कहीं आशंकित करता है, एक डॉ सा लगने लगा है. आप पहले जैसी ही बेबाक रहें, वही तेवर आवश्यक है, सृजन और सुधार दोनों ही दृष्टि से. आप स्वस्थ रहे यही कामना है.