Friday, April 1, 2011

आज 'सुधार दिवस' है --आप सभी को बधाई एवं शुभकामनायें .

प्रतिदिन कोई न कोई दिवस होता है जिसकी हमें जानकारी नहीं होती। आज सुधार दिवस है। इस दिन हर व्यक्ति को स्वयं में सुधार लाने का पयत्न करना चाहिए। मैं स्वयं को सुधारना चाहती हूँ , इसके लिए पिछले एक दशक से प्रयासरत हूँ। मुझे लगता है आप लोग भी मेरी मदद कर सकते हैं मुझे सुधारने में। इसलिए आपको जो भी कमी मुझमें दिखती हो , उसे निसंकोच टिपण्णी के माध्यम से मुझ तक पहुंचाइए। इस तरह से आप मुझ पर एक उपकार करेंगे।

आपको संकोच न हो इसलिए अपनी कुछ खामियां स्वयं ही लिख रही हूँ , आगे की कड़ी आप बनायेंगे।

  • बहुत अंतर्मुखी हूँ
  • संवेदनशील हूँ
  • अति गंभीर हूँ
  • बचपन में रोती बहुत थी ( इस मामले में सुधर चुकी हूँ , रोती नहीं हूँ अब)
  • जिससे स्नेह करती हूँ , उसपर स्नेह बहुत ज्यादा लुटाती हूँ , जिससे उसका दम घुटने लगता है ( सुधार जारी है , ज्ञान होते ही दूरी बना लेती हूँ ताकि लोगों को oxygen मिल सके )
  • अक्सर सच बोलती हूँ , जो मित्रों को आहत कर देता है ( सुधार जारी है ..)
  • संवेदनशील होने के कारण , कभी व्यक्तिगत दुःख तो कभी समाज में फैली अनियमितताओं से दुखी हो जाती थी जिसके फलस्वरूप मेरा उत्साह शून्य पर पहुँच जाता था , इसलिए अपना नाम 'ZEAL' रख लियाजिसका अर्थ है - उमंग, उत्साह , जोशआज बहुत से मित्र 'ज़ील' या 'ZEAL' पुकारने लगे हैं , जिससे उत्साह की निरंतरता बनी रहती है
  • भावुक होने के कारण , समाज के भ्रष्टाचार से ह्रदय जल्दी व्यथित होता था और मित्रों का आरोप था की भावुक लोग कमज़ोर होते हैं , इसलिए खुद को लोहे के समान कठोर बनाना चाहती हूँ । ( प्रयास जारी है )
  • कुछ मित्रों का ये भी कहना है की मैं बहुत कठोर हूँ और मुझे स्नेह करना ही नहीं आताबिलकुल blunt हूँवैसे मुझे ये बात सच नहीं लगतीफिर भी लोगों के बार-बार ऐसा कहने से यही सच लगने लगा है (सुधार जारी है)

ज्यादातर लोग शिष्टाचारवश मेरी कमियाँ मुझे नहीं बताते । लेकिन आज सुधार दिवास है , इसलिए निसंकोच और बेझिझक होकर मेरे दोषों को इंगित कीजिये। मुझ पर उपकार होगा। सबसे ज्यादा कमियां बताने वाला मेरा सबसे बड़ा शुभ-चिन्तक होगा ।

आपके विचार जानने के बाद स्वयं में सुधार-प्रयासों की गति और भी तेज़ कर दी जायेगी ।

आपके स्वागत में ....

80 comments:

Darshan Lal Baweja said...

आप दूध नहीं पीती वो पीया करें :)

डॉ. दलसिंगार यादव said...

दो बातें कहना चाहता हूं-एक, लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल; इसी बात को ऐसे भी कहा जा सकता है-जाकी रही भावना जैसी हरि मूरत देखी तिन तैसी। इसका मतलब कि दृष्टिकोण ही आधार है। अतः किसी और को सुधारने की बात तो अपने दृष्टिकोण को थोपने जैसे ही है। दो, बुरा जो देखन मैं चला, मुझसा बुरा न कोय। अतः सुधार दिवस पर संकल्प लिया जाए कि दूसरों को सुधारने के बजाय खुदी को कर बुलंद। अच्छा संदेश देने के लिए धन्यवाद।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पहले मैं खुद तो सुधर जाऊं...

केवल राम said...

सुधरने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहनी चाहिए जीवन के अंतिम पल तक

Satish Saxena said...

ब्लॉग जगत में अक्सर हम लोग ईमानदारी से काम नहीं कर पाते,गूगल द्वारा मुफ्त के दिए प्लेटफार्म पर, लेखनी का जौहर दिखाते हम लोग,अपने आपको महान लेखक मानते देर नहीं लगाते हैं और बची खुची कसर टिप्पणियों के बदले आई टिप्पणिया कर देती हैं !

खैरात के बदले खैरात में मुफ्त बँटती इन टिप्पणियों के कारण, हम सब, दिन प्रतिदिन अपने प्रभामंडल का विस्तार होते महसूस करते हैं और उस आभासी स्वयंभू प्रभामंडल को आत्मसात कर लेते हैं :-)

हार्दिक शुभकामनायें !

अजित गुप्ता का कोना said...

आज सुधार दिवस है यह तो हमें पता ही नहीं था, हम तो केवल अप्रेल-फूल ही मानकर चल रहे थे। हम भी सुधरने की कोशिश करते हैं। मुझे एक बात ध्‍यान आ रही है कि अपने बचपन को देखो, उसे स्‍मरण करने का प्रयास करो, हम कैसे निर्मल और निश्‍चल थे, बस वैसे ही बनने का प्रयास करो। लेकिन क्‍या यह सम्‍भव है?

प्रतुल वशिष्ठ said...

.

आपने अपनी खामियाँ तो नहीं लिखीं. वे सब की सब तो अच्छाइयाँ हैं. आपकी कमियाँ बताता हूँ :
— तरल का एक गुण होता है जहाँ ढलान पाता है, बह जाता है. स्वभाव में तरलता होनी चाहिए लेकिन समझदारी के साथ - कहाँ बहना है अथवा कहाँ नहीं ?
— अग्नि का एक गुण होता है जिसे शुष्क पाता है, जला देता है. स्वभाव में आग्नेय तत्व होना चाहिए लेकिन विवेक के साथ - शुष्कता तटस्थता वाली (दूषित) है अथवा हताशा वाली ?
— धुंध का एक गुण होता है जब छाती है तो समीप की वस्तुयें भी आँखों से ओझल हो जाती हैं और जब छंटती है तब बिना बदलाव सब वही का वही दिखता है. स्वभाव में धुंध-सी निस्पृहता होनी चाहिए लेकिन कोहरे के ओसीय गुण के साथ - जब अपना अस्तित्व मिटाये तो हृदयों को नम कर जाये.

....... आपको तमाम उदाहरणों से समझाया जा सकता है लेकिन केवल कथित 'सुधार दिवस' पर ही, बाक़ी दिवस तो हमें ही सुधारा जाता है.

.

Rahul Singh said...

अच्‍छा दिन चुना है आपने कन्‍फेशन पोस्‍ट के लिए.

एस एम् मासूम said...

ज़िन्दगी का हर दिन सुधार दिवस होता है. आज एक दिन मैं कोई खुद को क्या सुधरेगा? वाह आप ने तो अपने बारे मैं बहुत सी बातें एक साथ बता दी. बस यहे आप मैं कमी है.. दूसरों को भी अवसर दें..

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आपने सही लिखा...

मेरे विचार से भी आत्मावलोकन ही व्यक्ति में सुधार लाता है...

सञ्जय झा said...

OH...HO.....AAJ 1ST APRIL........HAI........MOORKH DIVAS..........AAP KAH RAHE HAIN SUDHAR DIVAS.....

AGAR SUDHARNA HAI TO POST KA TITLE SUDHARIYE......

PRANAM.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आद. दिव्या जी,
अच्छा है,इसी बहाने स्वयं को टटोलने का मौका मिला !
अभी तो स्वयं में ढूंढ़ रहा हूँ ! जहाँ तक आपके बारे में कमियाँ बताने का सवाल है अगले सुधार दिवस तक कोशिश करूँगा !
आभार !

सम्वेदना के स्वर said...

ये सुधार दिवस पहली अप्रैल को किसने रख दिया? अब समझ आया हम क्यों नहीं सुधरते।

मूर्खता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। फर्स्ट अप्रैल की शुभकामनायें|

राजभाषा हिंदी said...

उत्तम विचार।
* किसी दूसरे व्‍यक्ति की आलेचना करने से पहले हमें अपने अन्‍दर झॉंक कर देख लेना चाहिए।

डा० अमर कुमार said...


हुआ करे सुधार दिवस, मेरा क्या
मेरा तो आज बुखार दिवस है ।
आज बुखार में जो पड़ा हूँ, इसलिये किसी को ब्लँट कहके पँगा क्यों लूँ ?

पुनःश्च------------------
सँदर्भ : लेखक को सजा देने के उद्देश्य से टिप्पणियों को डिलीट करना बचपना है ।
प्रत्युत्तर : अपने लिये बचपना सुन कर अच्छा लगा । इस बचपने के लिये मुझे खेद है दिव्या दादी !

Deepak Saini said...

सही दिन चुना है जी सुधरने के लिए
चलो आज हम भी कोशिश करते है सुधरने की
अब जो खुद कमियो का सागर हो वो क्या किसी ZEAL की कमी बतायेगा
शुभकामनाये

Unknown said...

kiya baat hai????


jai baba banaras....

अन्तर सोहिल said...

आपमें कमी हो, मुझे क्या?
पोस्ट में कमी बता सकता हूँ, कि आप पोस्ट को जस्टीफाई नहीं करती हैं :)

प्रणाम

अन्तर सोहिल said...

जस्टीफाई यानि अलाईनमेंट में जस्टीफाई

Rakesh Kumar said...

अब क्या क्या कमियां गिनाएं दिव्याजी आपकी,
खुद अपनी ही कमियां बताके आपने पहले, बात की शुरुआत की
ये तो वही बात हुई न कि पहले पत्थर वह मारे,
जिसमें कोई कमी न हो.
सबसे पहले तो ये बताएं कि आपने 'दिव्या' क्यूँ नाम रक्खा ,
नाम तो रक्खा ही ,इतनी कमियों को भी दिव्यता से संभाल रक्खा.
'अंतर्मुखी, संवेदनशील,गंभीरता,न रोना,स्नेह करना और सच
बोलना' यदि कमियां है,तो कृपा बताएं क्या क्या अच्छाई हैं आपकी.
कहीं ऐसा तो नहीं कमियां बता कर ,अच्छाइयों को गिना रहीं हैं
और हम सब का बहुत चतुराई से "अप्रैल फूल" बना रहीं हैं.
बुरा न मानिए जी ,बस आप भी "अप्रैल फूल" बन जाईये जी .

Satish Saxena said...

और दिव्या दादी ,
डॉ अमर कुमार के पीछे मैं भी :-)
तुम्हारी गलतियाँ बता के मुझे भी पिटना नही तुमसे ...कभी भूले से ही सही प्यार तो कर जाती है उससे भी जाता रहूँगा :-(
सस्नेह

Satish Saxena said...

दिव्या दादी गलती से लिखा माना जाए , उसकी जगह दीदी पढ़ा जाए ...
आज ही नया कीबोर्ड खरीदता हूँ :-(

aarkay said...

बहुत ख़ामियों पर आप अपनी नाज़ करते हैं
अभी देखी कहाँ हैं आपने ख़ामियां मेरी

उत्तम आलेख !

रश्मि प्रभा... said...

sudhar ka karkram shuruuuuuuuuuuuu

ashish said...

उपदेशक और समाज सुधारक तो मै हूँ नहीं , इसलिए पहले अपने गिरेबान में झांक लू शायद इसी बहाने मेरा भी उद्धार दिवस मन जाए.

मीनाक्षी said...

पहले खुद को सुधार लूँ तो कहूँ कुछ ...

vandana gupta said...

बुरा जो देखन मै चला बुरा ना मिलया कोय
जो मन खोजा आपना मुझसे बुरा ना कोय

हम तो इसी प्रक्रिया मे चल रहे है।

गिरधारी खंकरियाल said...

आत्मावलोकन से सुधरा जा सकता है जो आप ने किया, सुधारा नहीं जाता .

rajiv said...

Kam se kam aaj ke din to Bewakoofi ki baat mat kariye ;-)

सुज्ञ said...

जिस क्षण सुधार की आकांक्षा या आवश्यकता महसुस होती है, सुधार उसी क्षण से आरम्भ हो जाता है।

दुनिया में बहुत सी चीजें अच्छी बुरी होती है, और उपर से उनका अच्छा बुरा होना अपेक्षाओं पर निर्भर है।

इस सुधार-रथ का भी विवेक ही सारथी है, बस इस विवेक को हेय, ज्ञेय और उपादेय का विश्लेषण करना आना चाहिए।

Kunwar Kusumesh said...

अरे मूर्ख-दिवस के दिन-सुधार दिवस भी ? मुझे लगता है आप बाद में कहेंगी की मैंने सबको मुर्ख-दिवस पर मूर्ख बनाया क्योंकि मुझमे तो कोई कमी है ही नहीं इसलिए सुधार की ज़रुरत ही नहीं.ये इसलिए भी क्योंकि आपने अपनी जो कमियां गिनाई हैं,वो तो सब खूबियाँ हैं .अब देखते हैं की आपको मेरी बात पर गुस्सा आया की नहीं? तब सुधार के बारे में चर्चा करेंगे.

Kunwar Kusumesh said...

और हाँ ये दादी - दीदी वाला सब क्या चक्कर है भई.

रचना said...

i accept you as you are

Kavita Prasad said...

आपसे उम्र और अनुभव दोनों में ही छोटी हूँ, इसलिए सुधार तो नहीं कहूँगी... हाँ आपके व्यक्तित्व की जीतनी झलक इस पोस्ट से मिली है उसमें कही एक बात से असहमत हूँ| अपने लिखा कि " भावुक होने के कारण , समाज के भ्रष्टाचार से ह्रदय जल्दी व्यथित होता था और मित्रों का आरोप था की भावुक लोग कमज़ोर होते हैं , इसलिए खुद को लोहे के समान कठोर बनाना चाहती हूँ । ( प्रयास जारी है )"

यदि हम में भावनायें ही ना रहेंगी तो काया हम मनुष्य कहलायेंगे? भावुक होना अलग बात है और विवेक का सही इस्तेमाल ना करना दूसरी|
मेरी नज़र में हमें सिर्फ अच्छा इंसान होना चाहिए, अगर आईना देखें तो मुस्कराहट और अपने प्रति सम्मान होना चाहिए ना कि प्रश्न-चिन्ह!!!

अच्छे मंतव्य के लिए आभार...

Dr Varsha Singh said...

सुधार दिवस ?????
यह भी खूब कहा..

शुभकामनाये .

Kavita Prasad said...

sorry it has 2 b "जितनी" and "क्या" instead of "काया हम मनुष्य कहलायेंगे" "जीतनी"

अपनी ख़राब हिंदी टाइपिंग के लिए शर्मिंदा हूँ :[

अशोक सलूजा said...

दिव्या , तुम जैसी हो ,वैसी ही ठीक हो |कमियां पता लगने पर तो
तुम और ठीक हो जाओ गी ,और कमियां बताने वाला और कमी...?

आशीर्वाद !

दर्शन कौर धनोय said...

दिव्याजी,कमीयाँ किस में नही होती --सब में होती है ! हाँ ,जो कमियों से सिख ले महान वही होता हे --इंसान है ही कमियों का पुतला ! वरना भगवान न बन जाए ?
क्या यह सचमुच "अप्रेल फुल" था....?

विशाल said...

दिव्या जी,अब क्या कहूं.
आपकी यह पोस्ट आपके बड़प्पन को ही दर्शाती है.
जो व्यक्ति अपनी कमियाँ दूसरों को बता सकता है,वह महानता की और अग्रसर हो रहा होता है.
आपके व्यक्तित्व की बेबाकी आपके लेखन में भी झलकती है.
इसी लिए तो आपके हज़ारों फैनस में मैं भी एक हूँ.
आपके व्यक्तित्व को सलाम.
आपकी कलम को सलाम.

अरुण चन्द्र रॉय said...

अच्‍छा दिन चुना है आपने कन्‍फेशन पोस्‍ट के लिए.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचार अच्छे हैं ..पर इसके लिए भी दिवस होता है नहीं मालूम ...चलिए पढ़ कर अप्रैल फूल तो बन ही गए हैं :):)

सुधार के लिए आत्मावलोकन ही काफी है

Er. सत्यम शिवम said...

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (2.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Manish said...

दिव्या जी, आज "सुधार दिवस" भी है.. यह बता कर मेरे कलेंडर ज्ञान में सुधार करने के लिए धन्यवाद.
वर्ना मैं मुरख आज के दिन को तो अपने जैसो को समर्पित "राष्ट्रीय मुर्ख- दिवस" के रूप में मनाता रह था |वैसे आपने जो "खामिया" बताकर आज के दिन अपने बारे में लिखा है, उसे आपकी खामियां मान कर आज मैं अपनी मुर्खता का परिचय नहीं देना चाहता...

बहुत अंतर्मुखी, संवेदनशील, अति गंभीर, अक्सर सच बोलना, भावुकता, ये दुर्गुण कब से हो गए ??
और स्वयं को कठोर कहना- ये आपका अपने विषय में ग़लत आंकलन है... असल में आपसी संबंधो में ये भावनाओं के प्रकटीकरण में आने वाला शब्दकोष का आभाव है..चूँकि आप सोचती है की निशब्द भावनाए ही सत्य होती है.. और उन्हें किस तरह कहा जा सकेगा भला ? और क्या भावनाओं को दो - चार शब्दों तक सीमित किया जा सकेगा ?
और चूँकि आप कुशल कलाकार नहीं है इस कारण आप को देखकर लोगो को आप की भाव भंगिमा से आप की भावनाओं का पता नहीं चल पाता..
आप का विश्वास कार्य में है... प्रमाण में नहीं
असल में आप उम्मीद करती है की सामने वाला आप को समझ लेगा... पर सामने वाला तो आपसे स्पस्टीकरण, प्रकटीकरण चाहता है...और शायद प्रमाण भी..
और वो करना आपके व्यक्तित्व की बुनावट में है नहीं... इसलिए आप कठोर लगती है...
हर व्यक्ति जैसा है उसे वैसा ही रहना चाहिए.. वह उसी प्रकार सफल है और संसार में अपना योगदान कर सकता है...

आज आपने अपने बारे में जो लिखा पता नहीं क्यूँ लिखा... :)
पर मैंने आज आपके व्यक्तित्व का पंचनामा करने की चेष्टा की है...
ध्यान रखे की यह मेरा आंकलन है तथा इसमें कुछ सही न लगे तो माफ़ कीजियेगा
मेरा उद्देश्य किसी को आहात करने का नहीं है |

Aakshay thakur said...

हर चीज मे नियंत्रण होना चाहिये. चाहे वो भावुकता हो या फिर स्नेह करना.
अति भावुक होना या अति स्नेह करना नुकसानदायक होता है.

किसी चीज के बारे मे बहुत ज्यादा सोच सोच कर दिमाग नही खपाना चाहिये.

चाहे वो देश समाज मे फैला भ्रष्टाचार ,बुराईया आदि हो या फिर व्यक्तिगत दुःख.

क्यो कि हमारे बहुत ज्यादा सोचने से भी इन सब स्थितियो मे
0.01 % भी बदलाव नही आता. तो क्यो फालतू मे हम अपना दिमाग खपाये और टेँशन ले.
हाँ चिँतन मनन करना आवश्यक है. खुद भी जागरुक रहना चाहिये और दूसरो को भी जागरुक करे लेकिन चिँता करके अपने शरीर को मानसिक कष्ट नही देना चाहिये.

अंर्तमुखी लोगो मे एक बात ये होती है कि वो वैसे तो जल्दी किसी से घुलते मिलते नही लेकिन जिसके साथ घुलते है तो ऐसा घुलते है कि अपनी जिँदगी की पूरी किताब खोल कर रख देते है.
इस प्रवति से भी बचना चाहिये.

ऐसे लोग दिल से कोमल होते है और इनके अंदर भावनाये बहुत ज्यादा होती है.

लेकिन ये अपनी भावनाये ठीक से प्रदर्शित नही कर पाते या कह लीजिये करना नही चाहते.
इसलिये दूसरे लोग इनको कठोर हदय वाला समझते है.

और अगर आपके मित्र आपके सच बोलने से आहत होते है.
तो आहत होने दीजिये.
क्यो कि जो अच्छे मित्र होते है वो आपके सच बोलने का बुरा नही मानेँगे.

Nirantar said...

Bold words from the Iron Lady
keep it up
सोमवार, २७ सितम्बर २०१०
खुद से बात करना जरूरी है

कम सोचूँ ,कम बोलूँ ,
कम पढूं, कम जानूँ

कम लिखूं ,तो अच्छा है,
कम सहूंगा,कम भुगतूंगा

अपने आप को जानने,
पहचाने का अवसर मिलेगा

निरंतर सब के खातिर
अपने को खो रहा था

अपने को पाने का ऐसा
मौक़ा फिर कब मिलेगा

दूसरों को जानने के लिए
खुद को जानना जरूरी है

दूसरों की बात करने से पहले
खुद से बात करना जरूरी है

27-09-2010

G.N.SHAW said...

जो भी हो...उसे नहीं मानता क्यों की आज ....? है ... संक्षेप में कहूंगा ..समयानुसार ..आग , पानी और हवा बनो !

महेन्‍द्र वर्मा said...

@आज सुधार दिवस है। इस दिन हर व्यक्ति को स्वयं में सुधार लाने का प्रयत्न करना चाहिए।
हमारी नजरें तो उक्त पंक्ति पर अटक गई हैं, इसलिए शुरू करते हैं, अपने आप से।

दिलबागसिंह विर्क said...

achchha april fool bnaya hai

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

सुधार दिवस !!!!! अच्छा एप्रिल फूल बनाया :)

ZEAL said...

.

इस लेख को ख़ास तौर पर आज के दिन लिखा क्यूंकि एक अप्रैल को 'मूर्ख दिवस' के रूप में मनाकर पूरा एक दिन व्यर्थ किया जाता है । इसके बजाये यदि यही दिन सकारात्मक रूप में 'सुधार-दिवस' की तरह मनाया जाए तो इस दिवस की विशेष महत्ता एवं उपयोगिता होगी मेरी समझ से ।

इसलिए १ अप्रैल २०११ से 'सुधार-दिवस' का प्रारम्भ कर रही हूँ। आज नहीं तो कल , यह दिवस देश-विदेश में जोर-शोर से अवश्य मनाया जाएगा , जिससे व्यक्तित्व का विकास होगा । ऐसा मेरा विश्वास है ।

.

ZEAL said...

.

२५ % टिप्पणीकारों ने लेख के मर्म को समझा उनका विशेष आभार।
२५ % टिप्पणीकारों ने संजीदगी से मेरी खामियां बतायीं , उनका भी आभार । कोशिश करुँगी अपनी कमियों को दूर कर सकूँ ।
२५ % टिप्पणीकारों में मुझे वैसा ही स्वीकार कर लिया , जैसा इश्वर ने मुझे बनाया है । आपकी इस सहृदयता का आभार।

.

ZEAL said...

.

अक्षय ठाकूर जी ,
जहाँ तक मुझे याद है , आपका और मेरा जन्म-दिन एक ही है । आपने अंतर्मुखी व्यक्तित्व की बहुत सही विवेचना की है।

डॉ अमर ,
@ बुखार है ...
ये क्या हाल बना रखा है , कुछ लेते क्यूँ नहीं ? --गरम गरम बुखार में , ठंडा-ठंडा 'dermicool' कैसा रहेगा ?

.

ZEAL said...

.@--तुम्हारी गलतियाँ बता के मुझे भी पिटना नही तुमसे ..

प्रिय सतीश सक्सेना जी ,

डरती तो मैं हूँ आपसे । दो माह पूर्व आपकी 'cyber crime' वाली पोस्ट पर जो आपने सुझाव दिए थे , उस पर मेरा दो शब्द का कमेन्ट था --" Brilliant idea"------- लेकिन इन दो शब्दों को लिखने की बहुत बड़ी सजा दी थी आपने । आपके मित्र राजेश उत्साही जी ने आपसे कहा कि -"दिव्या का कमेन्ट क्यूँ छापा ?" -- आपने कहा -- " अब नहीं छापूंगा और दिव्या के ब्लॉग पर कभी कमेन्ट भी नहीं करूँगा "---फिर आप दोनों का मेरे खिलाफ तकरीबन दस टिप्पणियों में विचारों का आदान प्रादान हुआ । मोडरेशन लगा होने के बावजूद आपने पहले उन टिप्पणियों को प्रकाशित किया , फिर डिलीट कर दिया , ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उस अपमान करने वाले संवाद को पढ़ सकें । वो सभी टिप्पणियां मेरे पास मेल में सुरक्षित हैं । बहुत दुःख हुआ था उस अपमान से , लेकिन विवाद करना मेरा स्वाभाव नहीं है , इसलिए बिना कुछ कहे , उस दिन के बाद से आपके ब्लॉग पर आना छोड़ दिया है।

आप बहुत बार लिख चुके हैं कि आपको डांट दूंगी ...आदि आदि .....मैं तो खुद ही आपसे बहुत डरती हूँ , और आपके ब्लॉग पर आती भी नहीं । आप व्यर्थ मुझसे मत डरा कीजिये। आपके मित्रगण भी ब्लॉग-जगत कि नामचीन हस्तियाँ हैं । पारिवारिक सम्बन्ध भी हैं , फिर भला आपको मुझ जैसे छोटे ब्लॉगर से डरने कि क्या ज़रुरत है ।

मैं आपसे सचमुच बहुत डरती हूँ । बहुत डर-डर के इतना लिखा है । इश्वर जाने इसका क्या अंजाम भुगतना पड़ेगा।

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आपकी बाद वाली दो टिप्पणियों में एक निर्मल हास्य है , जिसके लिए आपका ह्रदय से आभार। आप मुझे दादी कहें या फिर दीदी , दोनों ही अच्छा लगेगा मुझे।

.

amit kumar srivastava said...

you are extra ordinarily different from others and you justify yourself very well the way you are...dont spoil yourself by the thought of reform...

आचार्य परशुराम राय said...

आपने जिन्हें अवगुणके रूप में गिनाया है, वे तो मुझे सद्गुण ही लग रहे हैं। कहीं आप April Fool Day तो नहीं मना रही हैं? पाठकों ने काफी सुझाव दिए हैं। वैसे जहाँ तक मैंने पढ़ा और अनुभव किया है मानसिक संवेग (emotions)बुरे नहीं होते हैं। केवल उनका रचनात्मक प्रयोग करने का अभ्यास करने की आवश्यकता होती है। आभार।

Atul Shrivastava said...

अच्‍छी शुरूआत। मुर्ख दिवस मनाकर हम नाहक ही एक दूसरे को बेवकूफ बनाने की को‍शिश करते हैं। इस दिन को यूं भी मनाना चाहिए, यह बताकर आपने एक नई चीज दे दी।
वैसे मैं इस बात में केवल जी का समर्थन करूंगा कि जीवन में हर पल नए सुधार की नई सीख की गुंजाईश रहती है।
दिव्‍या जी आपको शुभकामनाएं।

शूरवीर रावत said...

Nice post. ........ Thanx.

Satish Saxena said...

शुभकामनायें दिव्या !

Bharat Bhushan said...

मुझ से पहले आए टिप्पणीकारों को धन्यवाद. वे पहले न आए होते तो मैं तो पहली अप्रैल को भूला हुआ था. मुझे अपनी यादाश्त में सुधार करना होगा.

प्रवीण पाण्डेय said...

साहस का कार्य है, स्वयं का शाब्दिक प्रस्तुतीकरण।

शोभना चौरे said...

"सुधार दिवस" की स्थापना के लिए बहुत बहुत बधाई |
"जिससे स्नेह करती हूँ , उसपर स्नेह बहुत ज्यादा लुटाती हूँ , जिससे उसका दम घुटने लगता है ( सुधार जारी है , ज्ञान होते ही दूरी बना लेती हूँ ताकि लोगों को oxygen मिल सके "
इस बीमारी की दवा की उम्मीद तो मै आपसे रखती हूँ जी |
जब हम अपने पुराने फोटो देखते है तो लगता है कितने सरल थे हम |आज कितने कठिन हो गये है की अपने अप को हल ही नहीं कर प् रहे है |
दुखस्य किं कारणं?
आशा दुखस्य कारणं|

मदन शर्मा said...

बहुत खूब !!
मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभ कामनाएं .....

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

सुन्दर अभिव्यक्तियों सजा "कमी सुधार दिवस" अच्छी परिकल्पना है दिव्या जी, भूले बिसरे कह गए है कमी अपनी देखो फिर आगे बढ़ो, आपने तो अच्छाइयों को देखा और उन्हें कमियां गिना दिया, हमारे साहित्य में कमियां , गिनाने का न रिवाज है न जरूरत , इस वर्चुअल जगत में जो दूसरों की कमियां गिनाते है वो , छमा करे दंभ से भरे होते है , घिरे होते है, आपके सुधार दिवस की परिकल्पना का विस्वास कर , कुछ शब्द मैंने भी लिखे है अनुभूतियो के पढियेगा जरूर.. आपको आपकी पोस्ट का जवाब मिल जाये शायद.. , अभिवादन सहित शुभकामनाये

किलर झपाटा said...

बचपन में रोती बहुत थी ( इस मामले में सुधर चुकी हूँ , रोती नहीं हूँ अब)

ग़लत .......
रोती तो आप अब भी हैं ज़ील जी।
हा हा।

बाय भाभी।

किलर झपाटा said...

ज़ील भाभी, आपसे एक बात बात पूछूँ ?
आप इतनी अच्छी अच्छी, इतनी हाई लेवल की, इतनी ऊँची ऊँची, इतनी प्यारी प्यारी बातें कैसे कर लेती हैं यार ?
हा हा। हैप्पी न्यू फ़ायनेन्शियल इयर २०११-१२.

Aakshay thakur said...

हाँ आपको सही याद है. मेरा भी जन्मदिन 11 जुलाई को होता है.

और इसीलिये मै आपके स्वभाव को आसानी से समझ गया.
और इसीलिये मैने ये कहा कि हर चीज मे नियंत्रण आवश्यक है.

क्यो कि मै अपने को बखूबी जानता हूँ और एक ही तारीख मे पैदा हुये लोगो का स्वभाव अलग अलग नही हो सकता.

ZEAL said...

.

शोभना जी ,

आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ । बच्चे से बड़ा होने के बाद व्यक्ति अक्सर कठोर हो जाता है । कारण है बच्चे को ज़रा भी दुःख होने के बाद , उसके पास माता पिता होते हैं जो तुरंत उसके आँसू पोंछ देते हैं , अपने अतुलनीय अथाह प्यार से बच्चे के मन का दुःख हर लेते हैं। और बच्चा वापस आ जाता है हंसी-ख़ुशी मित्रों के बीच , वापस एक नए विश्वास और नयी उमंग के साथ । लेकिन बड़ों के पास एक अवस्था के बाद माता-पिता वाला अति-सुन्दर और मोहक विकल्प समाप्त हो जाता है । इसलिए व्यक्ति अपने मन के दुखों और आघातों को धीरे-धीरे पीने लगता है। परिणामस्वरूप वो अति-कठोर हो जाता है , शायद आघातों से अपनी रक्षा करने के लिए।

जिनके पास एक अच्छा मित्र होता है , जो उसे हर परिस्थिति में समझ सके और साथ कभी न छोड़े , उसे कठोर आवरण में खुद को बंद कर लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

.

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० दिव्या जी दिनों दिन आप दार्शनिक होती जा रही हैं |बहरहाल लेख बहुत सुंदर है |बहुत ही सुधरा हुआ इंसान देवता हो जाता है और आम आदमी के किसी काम का नहीं होता इसलिए मेरी सोच है की आप एक बेहतर इंसान और डॉ० बनी रहें ताकी लोगों के सुख ;दुःख में उनकी मदद कर सकें |शुभकामनाएं |

ZEAL said...

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@ अक्षय ठाकुर ,

आपसे बेहतर कौन समझ सकेगा की Cancerians बहुत नाज़ुक-मिजाज़ होते हैं । संकोची स्वभाव के कारण किसी से करीब आने से भी डरते हैं । लाखों में कोई एक ही होता है , जिसे वे अपना हमराज़ बनाते हैं । आधात मिलने पर शिकायत नहीं करते , विवाद भी नहीं ....बस चुप चाप स्वयं को 'withdraw' कर लेते हैं । सामने वाले को पता भी नहीं चलता । क्यूंकि crabs अपने कोमल मन को एक अति मज़बूत आवरण (Shell) में बंद कर सुरक्षित महसूस करते हैं ।

बारह राशियों में crabs से ज्यादा संवेदनशील शायद ही कोई और हो । वे स्वयं को कठोर नहीं बनाते , न बना सकते हैं । वे तो सिर्फ अपने-आपको एक अति-कठोर आवरण में बंद कर लेते हैं , जहाँ कोई भी उनके मन को आघात न पहुंचा सके।

केवल स्नेह ही उन्हें इस आवरण से बाहर ला सकता है । कुटिल भाषा और कुटिल संवाद उन्हें दूरी बनाये रखने पर मजबूर करता है। मन को आघात न पहुंचे , इसलिए प्रेम करने से वे डरते हैं ।

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ZEAL said...

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प्रिय देवर झपाटा ,
सदा सुखी रहो , प्रसन्न रहो , तरक्की करो ।


Amit ji ,

You single line caressed the soul . Thanks.

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ZEAL said...

your single line **....[correction]

ZEAL said...

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जयकृष्ण राय तुषार जी ,

आपकी बात से अक्षरतः सहमत हूँ । कोशिश है कमियों को दूर करने की , ताकि इंसान बनी रह सकूँ । अपने जैसों आम इन्सांसों के बीच जो सुख है , वो कहीं नहीं है और किसी प्रकार से भी नहीं है।

जब तक व्यक्ति परिवार और समाज के लिए उपयोगी है , तभी तक जीवन की सार्थकता है।

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ZEAL said...

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कुछ लोगों ने कहा मैंने अपनी अच्छाई गिना दी, पर क्या करूँ मुझे इसी में अपना दोष दीखता है । मैंने तो पहले ही निवेदन किया था की आप मुझे मेरी कमियों से अवगत करायें ताकि मैं खुद को बहतर बना सकूँ , लेकिन शायद आप चाहते ही नहीं की मुझमें सुधार हो , इसलिए होशियारी का परिचय देते हुए ज्यादातर लोग कमियाँ बताने से कतरा गए।

लेकिन सच कहूँ ...जिन्होंने मुझे वैसा ही स्वीकारा , जैसी मैं हूँ ... उनके लिए मन में स्नेह के भाव हैं।

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Unknown said...

अरे ..अरे .. दिव्या जी ये क्या किया आपने, हमारे कविता ब्लॉग पर आपके द्वारा उत्तरित उद्बोधन आपके लिए कदापि नहीं हो सकते .. इस एक कारुणिक सच्चाई को स्वयं और समाज को आइना दिखने की कोशिश है बस .. आपके लिए उत्तर तो आपकी पोस्ट पर दे चूका हूँ

सदा said...

बिल्‍कुल सच्‍चा लिखा है हर शब्‍द और अच्‍छा लिखा है ...शुभकामनाएं ।

Bhola-Krishna said...

डोक्टर दिव्या जी , धन्यवाद , आज पहिली बार आपके दो ब्लॉग पढ़े! "प्रेम" और "सत्य" दोनों ही विषय आज की दुनिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ! हमने भी अपने सभी लेखों में , "बाबा" की कथा में भी " सत्य , प्रेम ,करुना तथा सेवा" पर विशेष जोर दिया है ! शास्वत सत्य से परिचित होना प्रथम आवश्यकता है ! सत्य को किसी कीमत में छोड़ना नहीं है ! "प्रेम" के बिना तो भक्ति होगी नहीं !और कलि काल में कल्याण का एक मात्र साधन यही है ! बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! बहुत बहुत बधाई ! शुभ कामनाएं ! भोला- कृष्णा

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

आप जैसी है वैसी ही रहा कीजये, नहीं तो लगेगा कि जील जी का ब्लॉग कोई और हैक कर के पोस्ट किये जा रहा है. आपकी स्पष्टवादिता, सीधी बात की मेरे ख्याल से सबको आदत हो गयी होगी..... यह आदत बने रहने दे......

Unknown said...

thodee bahut kamee to yahaa har kisee mai hai
dariyaa bhee khoobiyo ka magar aadmee mai hai
uske gunaah kee sajaa auro ko kyu mile
kya chandramaa kaa daag kahee chaandnee mai hai
(kunwar bechain)

Anonymous said...

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