Monday, April 4, 2011

स्पष्टवादिता बनाम कूटनीति और मानसिक प्रदूषण

कोई भी लेखक अथवा कवि जब भी कुछ लिखता है तो उसमें उसके अनुभव ही शामिल होते हैं। जो वो महसूस करता है , अथवा आस-पास के परिवेश में , परिवार में , समाज में जो देखता है और सुनता है , उसे ही आपने लेखन में शब्दों का रूप देता है। इसीलिए यदि किसी को लगे की ये उसे इशारा करते हुए लिखा गया है, तो ये अनुचित होगा। जब किसी बात की बार-बार पुनरावृत्ति होती है , तो विचार शब्द बनकर लेखों अथवा कविताओं में ढलते हैं।

आज चर्चा करुँगी स्पष्टवादिता की स्पष्टवादी लोग नफे-नुकसान के बारे में ज्यादा नहीं सोचते , केवल अपनी बात को स्पष्ट तौर पर कह देते हैं , जिससे समाज का किसी किसी तरह से भला ही होता है सुनने वाला नाराज़ हो जाता है , लेकिन वह भी कहीं कहीं विचारों से परिष्कृत हो जाता है वो आत्मचिंतन करता है , खुद में सुधार लाता है और कभी-कभी अहम् के चलते दूरी भी बना लेता है

लोग कहते हैं स्पष्टवादियों के दुश्मन ज्यादा ज्यादा होते हैं और उन्हें कम लोग पसंद करते हैं लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता मेरे विचार से ईमानदार और सच्चाई पसंद लोग अक्सर स्पष्ट वक्ता ही होते हैं आनायास झूठ के बोझ और दिखावे को ढोते नहीं हैं। उनके शब्दों में चाशनी भले ही घुली हो , लेकिन लोगों के विचारों में घुले द्वेष को जड़ से मिटाने में सक्षम होते है।

स्पष्ट कहने सुनने में एक अनजाना सा संतोष मिलता है। स्पष्ट कहकर ऐसा लगता है जैसे मन का बोझ हल्का कर लिया हो और समाज में फैले मानसिक प्रदूषण को भी दशमलव में कम कर दिया हो। स्पष्टवादिता से लोग नाराज़ तो होते हैं , लेकिन परिपक्व मानसिकता वाले लोग नाराज़ नहीं होते बल्कि अहमियत समझते हैं इस गुण की ।

स्पष्टवादिता से किसी का दिल तो दुःख सकता है लेकिन मन में मलिनता नहीं आती कहीं कहीं कुछ सार्थकता ही है स्पष्टवादी होने में फिर कहा भी गया है - "सत्य कटु होता है" -- स्पष्टवादिता एक बड़े समुदाय के हित में होती है । उसमें जो सही है वही कहा जाएगा । दूसरों को मीठा लगे इसकी चिंता नहीं की जाती । अन्यथा स्पष्टवादिता अपना अर्थ खो देगी।

चाणक्य ने कहा है - "Straight trees are cut first " , लेकिन कटने के डर से कोई अपना स्वभाव नहीं त्याग सकता। जैसे ही अपना स्वार्थ देखा किसी ने , वो स्पष्टवादी से कूटनीतिज्ञ बन जाएगा।

मेरे लेख पर टिपण्णी करने वाले अधिकाँश टिप्पणीकार मुझसे बुद्धि एवं अनुभवों में श्रेष्ठ हैं , इसलिए निवेदन है , कृपया आपने अनुभवों से विषय को सार्थकता प्रदान करें

आभार

51 comments:

सञ्जय झा said...

SPASTVADITA TO APNE AAP ME HI EK VISHESH-GUN HAI.......

PRNAM.

Satish Saxena said...


स्पष्ट वादिता ही होनी चाहिए, कोशिश करें कि इस "स्पष्टवादिता" से किसी "निर्दोष " का दिल न दुःख जाए ! इसके लिए, विषय विशेष पर, अपनी समझ का आकलन पूर्वाग्रह रहित कर लेना चाहिए !

अधिकतर महान लोग अपना आकलन करने में गलती करते पाए गए हैं दिव्या ! अतः अपने आकलन में अपने ईमानदार मित्रों और पारिवारिक बड़ों का सहयोग लेना चाहिए , वे बिना डरे हमें, हमारी बेवकूफियों के बारे में बताने में समर्थ होते हैं ! अक्सर मित्र लोग हमारी तारीफ़ करके हमें भुलावे में रखना पसंद करते हैं !

जरूरी नहीं कि हम अपनी समझ को सबसे श्रेष्ठ मान लें ! दस जगह अन्यायी का अपमान करें मगर इस जोश में एक भी निर्दोष का अपमान नहीं होना चाहिए ...

सब कुछ बेकार हो जाएगा !

ईमानदार लोगों को अपनी आत्मा से प्रश्न करते रहना चाहिए ख़ास तौर पर उन्हें, जिन्हें अन्य आलोचकों पर भरोसा ना हो ! आत्मा अपने आप से कभी झूठ नहीं बोलती !

सस्नेह शुभकामनायें दिव्या !

सम्वेदना के स्वर said...

"स्पष्टवादिता" खतरों के खिलाड़ीयों का काम है। "कूटनीति" सुरक्षा पसन्द, लाभ-हानि का लेखाजोखा रहने वालॉं का (हालाकिं Long term में यह Zero Sum Game ही साबित होता है)

Amit Sharma said...

नए संवत २०६८ विक्रमी की हार्दिक बधाई।
नया साल आपके और आपके कुटुंब को आनंद प्रदायी हो।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥"

Sushil Bakliwal said...

स्पष्टवादिता हर हाल में गुण है जो कम ही लोगों में पाया जाता है और अधिकांश लोगों द्वारा हजम नहीं किया जा पाता । लेकिन उस दरम्यान बन जाने वाली दूरियां स्थायी भी नहीं रह पाती ।

ashish said...

सत्यम ब्रूयात प्रियम ब्रूयात . ना ब्रूयात सत्यम अप्रियम ..

मुकेश कुमार सिन्हा said...

spastvadita ka gun waise aam jindagi me pareshani hi de jati hai....:)

अजित गुप्ता का कोना said...

मेरी राय में स्‍पष्‍टवादिता वह है जो सत्‍य का सामना कर सके। गलत को गलत और सही को सही कह सके। किसी कमजोर और सच्‍चे इंसान के पक्ष में खड़े हो सकें। आपके द्वारा बतायी गयी घटनाओं में व्‍यावहारिकता की कमी नजर आती है। चिकेन पोक्‍स से ग्रसित बच्‍चों के लिए निमन्‍त्रण के स्‍थान पर मिठाई भिजवानी चाहिए थी और पूरा समय पीहर में रहने के स्‍थान पर ससुराल वालों के सम्‍मान को भी ध्‍यान में रखना चाहिए थां अकेली सासू माँ ही तो परिवार नहीं है। तीसरे केस में एक बहस है, जिसके पक्ष और विपक्ष दोनों होते हैं इसलिए स्‍पष्‍टवादिता कहना असंगत लगता है।

Unknown said...

नए संवत २०६८ विक्रमी की हार्दिक बधाई।
नया साल आपके और आपके कुटुंब को आनंद प्रदायी हो।

"सत्य कटु होता है"

aati savartra varjate..

jai baba banaras.....

vandana gupta said...

जिससे किसी का अहित ना हो वो सत्य ही ठीक है।

Rakesh Kumar said...

स्पष्टवादिता अच्छी बात है. यदि वह किसी को व्यर्थ ठेस न पहुंचाए ,
कडुवी के बजाये प्रिय और हितकारी हो तो और भी अच्छी बात है.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

दिव्या जी ,

कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता ; उसे बहुत कुछ अपने परिजनों , मित्रों , बड़े-बुजुर्गों , ग्रंथों , परिवेश और अनुभवों से सतत प्राप्त होता रहता है | समय की भट्ठी में तपकर इंसान कुंदन बनता है | जीवन नित नव शिक्षा ग्रहण करते रहने की एक निरंतर प्रक्रिया है | अतः हमें कहीं भी यदि अच्छा मिले तो अवश्य ग्रहण करना चाहिए |

रही बात स्पष्टवादिता की ....तो ईमानदार और निडर व्यक्ति ही स्पष्टवादी बन सकता है | आप स्पष्टवादी हैं , इसमें कोई दो राय नहीं | यही आप की असली पहचान भी है | इसे अपने लेखन में कायम रक्खें ...आप कायम रक्खेंगी भी |

भाई अपना तो यही कहना है ......."अपनी बानी कबिरा बानी , जो बोले सो खरी-खरी "

वाणी गीत said...

मैं अजीत गुप्ता जी से सहमत हूँ ...स्पष्टवादिता और व्यवहारिकता दो अलग बाते हैं ...!
नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

डा० अमर कुमार said...


टिप्पणी से पहले एक जिज्ञासा :
क्या तुम्हें यह नहीं लगता कि इस ब्लॉग पर इधर हाल की कुछ पोस्ट, कुछ अधिक ही आत्मकेन्द्रित है ?

अब रही टिप्पणी :
इसी साफ़गोई के चलते तो अपुन मारे गये गुलफ़ाम
सब कुछ सीखा मैंनें.... ना सीखी होशियारी
सच है दुनिया वालों.... कि हम हैं अनाड़ी

मेरे पास फ़क्र करने के लिये यही अनाड़ीपन बच रहा है,
वह भी तुमसे तज़ुर्बे के तौर पर बाँट लें, तो बचेगा क्या

ZEAL said...

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डॉ अमर ,
आपका कहना सही है । अपने विचार और अनुभवों को लिखती हूँ , इसलिए आत्मकेंद्रित कहना उचित ही है आपका। इससे मेरा अज्ञान दूर होता है और समाज का भी थोडा भला हो जाता है इन लेखों को पढ़कर , क्यूंकि समाज में मेरे जैसे अज्ञानियों की कमी नहीं है।

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ZEAL said...

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व्यवहारिक लोग ही तो दुसरे शब्दों में कूटनीतिज्ञ कहलाते हैं।

Diplomacy is an art !

मैं व्यवहारिक लोगों का बहुत सम्मान करती हूँ , लेकिन न जाने क्यूँ स्पष्टवादी लोग ही मेरे दिल में अपना घर बनाते हैं।

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mridula pradhan said...

spashtwadita jab tak kisiko thess nahi pahunchaye tabhi tak theek hai....kayee bar doosron ki khushi ko madhye-nazar rakhte hue chup rah jana padta hai.....

दिगम्बर नासवा said...

स्पष्टवादिता होनी चाहिए .... पर स्पष्ट बोलने का मतलब दिल दुखाने से कभी नही होना चाहिए .... अच्छा लिखा है आपने ...

सदा said...

सत्‍य कटु अवश्‍य होता है, इसलिए कभी हारता नहीं, देर-सवेर अपना अहसास जरूर कराता है और हमेशा विजयी भी होता है .. एक बार फिर इस बेहतरीन आलेख के लिये बधाई ।

aarkay said...

बिलकुल ठीक कहा आपने. स्पष्टवादिता से हो सकता है आप तात्कालिक रूप से लोगों को कुछ नाराज़ कर दें परन्तु किसी और की प्रसन्नता के लिए अपने आपसे किये गए किसी समझौते से होने वाली संभावित हानि तथा अनिच्छा से किये गए त्याग के मिथ्याभिमान से बच जाते हैं .
उत्तम आलेख !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

कोई भी लेखक अथवा कवि जब भी कुछ लिखता है तो उसमें उसके अनुभव ही शामिल होते हैं।

कभी खुद के अनुभव तो कभी औरों के अनुभव और कभी अनुभवहीनता :)

Deepak Saini said...

ईमानदार और निडर व्यक्ति ही स्पष्टवादी बन सकता है

सञ्जय झा said...

@mouleshwar chachha..........apki tip sikh bhari hai.............

pranam.

बाबुषा said...

दिव्या ,

मैं तो बहुत बुरी हूँ ! साफ़ कहना..खुश रहना !

सच है कि दुश्मन कमाए मैंने ..
न जाने वो कब आशिकों में बदल गए !

मैं स्पष्टवादिता के साथ हूँ ! लोग उन्हें पसंद करते हैं मन ही मन ..बस डरते हैं थोडा और कुछ नहीं ! :-)

amrendra "amar" said...

नए संवत २०६८ विक्रमी की हार्दिक बधाई।
बेहतरीन आलेख के लिये बधाई ।

प्रवीण पाण्डेय said...

अन्ततः स्पष्टवादियों को ही सुना जाता है, वे परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होते हैं।

नीलांश said...

spashtvaadita acchi hoti hai
par kutniti ka sahara lena parta hai kabhi kabhi


jo log apne burai ko samajhte hain aur apne acchai ka upyog doosron ki bhalai me karte hain wo dhire dhire man ke mail ko saaf karte jaate hain.....

par kisi ka dil na dukhe aisi baaten bolna chahiye..par jo anubhavi hote hain wo dil se nahi lagate balki sikhte hain ...aur sikhate hain.....

apka follower abhishek

shikha varshney said...

स्पष्टवादिता अच्छी बात है. यदि वह किसी को व्यर्थ ठेस न पहुंचाए ,
कडुवी के बजाये प्रिय और हितकारी हो तो और भी अच्छी बात है
(राकेश कुमार जी से सभार .)

Kailash Sharma said...

"स्पष्टवादिता से लोग नाराज़ तो होते हैं , लेकिन परिपक्व मानसिकता वाले लोग नाराज़ नहीं होते बल्कि अहमियत समझते हैं इस गुण की ।"
लेकिन परिपक्व मानसिकता वाले लोग कितने हैं? स्पष्टवादिता अपने आप में बहुत अच्छा गुण है.लेकिन कई संबंधों में हम को व्यावहारिकता का ध्यान भी रखना होता है.और कौन इसका निर्णय करेगा कि जो हम कह रहे हैं वह सम्पूर्ण सत्य है, हो सकता है कि जिसे हम सम्पूर्ण सत्य समझ रहे हैं वह ऐसा न हो.सत्य हमें स्पष्ट रूप से कहना चाहिए, लेकिन अप्रिय सत्य को कहने से जहां तक संभव हो बचना चाहिए.

Coral said...

स्पष्टवादिता से सच में जादातर लोग नाराज़ हो जाते है ...लेकिन सत्य सत्य होता है चाहे वो मीठा हो या कडुवा ...सुन्दर आलेख आभार

Kunwar Kusumesh said...

नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .

जयकृष्ण राय तुषार said...

यह एक बेहतरीन वैचारिक लेख है कम से कम मैं इस लेख से सौ प्रतिशत सहमत हूँ |बधाई डॉ० दिव्या जी आप अपनी बात बेहद सटीक और दमदार ढंग से पाठकों के समक्ष रखतीं हैं |आज मुझे आप में किरण बेदी नजर आ रहीं हैं |बधाई और शुभकामनाएं |

G.N.SHAW said...

जवर्दस्त बात कही है आप ने !मेरे मन की बात आप ने कह दी ! 'स्पष्ट कहने सुनने में एक अनजाना सा संतोष मिलता है। स्पष्ट कहकर ऐसा लगता है जैसे मन का बोझ हल्का कर लिया हो और समाज में फैले मानसिक प्रदुषण को भी दशमलव में कम कर दिया हो। स्पष्टवादिता से लोग नाराज़ तो होते हैं , लेकिन परिपक्व मानसिकता वाले लोग नाराज़ नहीं होते बल्कि अहमियत समझते हैं इस गुण की । "- बहुतो के कान खड़े हो गए होंगे !

Rahul Singh said...

स्‍पष्‍टवादी को यदि अवसर की समझ और कहने का सलीका नहीं है तो स्‍पष्‍टवादिता दुर्गुण बन जाती है.

डॉ टी एस दराल said...

स्पष्टवादिता में अड़ियलपना नहीं होना चाहिए । कूटनीति भी ज़रूरी है ।

kshama said...

Spashtwadita har haal me ek gun hai...lekin spasht bolnewalon ke liye spasht sunna bhee zarooree hai!

रूप said...

Bekar ki laffaji hai. Aaj ka spashtwadi asamajik hai. Aur jhoothi prashansha samajikta. Baharhal lekh achcha hai.....

वीरेंद्र सिंह said...

मुझे स्पष्टवादिता में परिस्तिथिनुसार थोड़ी सी व्यवहारिकता का समावेश अच्छा लगता है. वैसे यदि कोई मेरे बारे में सपष्ट राय रखे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं. हाँ, मैं दूसरों के बारे में लिखने या कहने से पहले थोडा व्यवहारिक रहता हूँ. वैसे आपके नज़रिए में भी मुझे कोई ग़लत बात नज़र नहीं आती.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

डॉ. साहिबा सब अपना भोगा हुआ ही लिखते हैं!
--
नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को प्रणाम करता हूँ!

amit kumar srivastava said...

"if you cannot annoy somebody with what you write, i think there is little point in writing" .

दिलबागसिंह विर्क said...

satyvadi kaun hai yhan

har koi apna nfa-nuksan dekhta hai

yhi to durbhagy hai

Bharat Bhushan said...

हमारे मन का ओपन एरिया जितना अधिक होता है लोगों को हमें बेहतर समझने में उतनी ही आसानी हो जाती है. हमारी सोच और दूसरों की समझ को एक साथ कार्य करने का अधिक मौका मिलता है.

बहुत अच्छी पोस्ट.

Dr. Braj Kishor said...

आप ने अच्छा लिखा है,ब्लाग लेखन के विषय वस्तु ,शैली, पाठक और प्रतिक्रिया का भी सर्वेक्षण होना चाहिए.आखिर में यह भी महत्वपूर्ण है की हम क्यों लिखते हैं,शायद इस लिए कि कुछ कहना चाहते हैं. ....just sharing .....

निवेदिता श्रीवास्तव said...

स्पष्ट्वादी व्यक्ति अपने खरे बोलों से समाज का तो हित कर जाता है ,किन्तु खुद को सबकी निगाह में गुनाहगार बना जाता है ।हालांकि बाद में वही सच्चा साबित होता है .....

Unknown said...

आज के डिप्लोमेटिक युग में कुछ स्पष्टवादी होना ही ठीक होता है घोर स्पष्टवादिता, आपको दम्भी समझने का अवसर देती है जिससे जहा तक हो सके बचना चाहिए, मुह्फत्त होना भी स्पष्टवादिता की श्रेणी में आता है और शायद आप इससे सहमत होगे की मुह्फत्त होना कोई भे पसंद नहीं करता और ऐसे व्यक्ति से स्वतः दूरी बन्ने लगती है . एक सीमा तक स्पष्टवादी होना गुण है और ये गुण सभी में होना चाहिए

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सही बात तो यही है कि मैं सभी ब्लॉग पर स्पष्टवादी नहीं रह पाता। वहीं खुलकर विचार व्यक्त करता हूँ जहाँ लगता है कि ब्लॉग मालिक समझेगा और अन्यथा नहीं लेगा।
किसी भी वाद पर यकीन नहीं करता। वादी होना ही नहीं चाहता। बेपेंदी के लोटे की तरह उधर लुढ़क जाता हूँ जिधर मन भावन पढ़ने को मिलता है। आनंद लेने व देने में यकीन करता हूँ।

सबकी सब जाने
अपनी तो मैं जानू या रब जाने
खुलकर कहता बात अगर मिल जाते जाने पहचाने
हकलाता रहता हूँ हरदम
जब मिलते हैं
अनजाने।

महेन्‍द्र वर्मा said...

स्पष्टवादी लोग ही ज्यादा व्यावहारिक होते हैं। ऐसे लोग कपटी नहीं होते।
लेकिन कई अवसरों पर स्पष्ट बोलने से हानि हो सकती है, जैसे- दुर्घटना, मृत्यु, भयंकर बीमारी जैसी बातों को साफ-साफ बताने से किसी को सदमा पहुंच सकता है।

महत्वपूर्ण विषय पर महत्वपूर्ण चर्चा । आपके लेख समाजोपयोगी होते हैं।

प्रतुल वशिष्ठ said...

स्पष्टवादी यदि स्वयं को कहूँ तो काफी लोग कहेंगे कि यह सच नहीं. आपकी भाषा तो प्रायः अस्पष्ट रहती है. छिपी रहती है लक्षणाओं और व्यंजनाओं के पीछे.
हाँ, सत्यवादी स्वयं को मन ही मन मानता हूँ. बहुत अधिक स्पष्टवादिता हमारी कुरूपता को सामने ला देती है. इसलिये अपनी विकृति को मार्जित करते रहने का निरंतर प्रयास रहता है.

मनोज कुमार said...

आपके विचारों से असहमति की गुंजाइश नहीं है, स्पष्ट कहने की आदत डालना ही चाहिए।

Jyoti Prakash said...

आशीषजी ने बिल्कुल ठीक श्लोक उधृत किया है :

सत्यम ब्रूयात प्रियम ब्रूयात , मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम


प्रथम अभ्यास सत्य बोलने का है ( झूठ बोलने से तौबा तौबा )| इसमें प्रवीणता लाने के लिए कम बोलना आ जायेगा | इस प्रथम अभ्यास में प्रवीण हो जाने के बाद प्रिय बोलने का अभ्यास स्वतः होने लगेगा , नही तो सुख शान्ति में बाधा उत्पन्न होने लगेगी | प्रिय बोलने के चक्कर में प्रथम अभ्यास कभी भी नही भूलना चाहिये जो की आधार है | प्रिय झूठ से कहीं बेहतर मौन है | सत्यवादिता ही स्पष्टवादिता है |

Jyoti Prakash said...

पुनश्च : -


जो निराकार परमात्मा से अगाध प्रेम करता है उससे 'सत्यम ब्रूयात प्रियम ब्रूयात , मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम ' की पालना आहार शुद्धि द्वारा सहज होने लगती है |



सत्यनारायण की कथा का सत्यनारायण व्रत !

ओम् शान्ति |