Thursday, August 16, 2012

एक बेहद ज़रूरी पोस्ट, कृपया ध्यान दें

मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर की --"पदोन्नति में आरक्षण समाप्त कर देंगे" , इन्होने उत्तर प्रदेश में लोगों को खुश करके चुनाव जीत लिया। जीतने के बाद आरक्षण समाप्त करने की दरयाफ्त भी कर दी केंद्र से। लेकिन अफ़सोस की वह अपील सरकारी दफ्तरों की किसी जंग लगी दराज में दम तोड़ रही है।

मायावती जिसका काम ही हिन्दुओं को बांटना है, उन्होंने आरक्षण समाप्त करने का पुरजोर विरोध किया। अब २१ अगस्त को एक विधेयक पा
स होने वाला है जिसमें पद्दोनती के अवसरों पर दलितों का अधिकार होगा। बहुत जूनियर दलित होगा तो भी वह आरक्षण के तहत पद्दोन्नत कर दिया जाएगा।

हमारे जनरल कैटेगरी के हिन्दू भाई-बहन जो Deserving हैं , promotion के लिए, उनका हक मारा जाएगा। हज़ारों लोग इस अनैतिक, और गलत नीति के कारण अपने अधिकारों से वंचित हो रहे हैं।

आरक्षण के नाम पर मायावती हिन्दुओं को बाँट रही है और अपनी महत्वाकांक्षा की आग में लाखों जनरल केटेगरी के हिन्दुओं का शोषण कर रही है।

बीजेपी सो रही है क्या । क्यों नहीं विरोध करती इस घटिया , दोगले (पदोन्नति सम्बन्धी विधेयक) का ?

हम पुरजोर विरोध करते हैं इस आरक्षण का। हिन्दुओं को दलित और सवर्ण में मत बांटो। पद्दोनती का अधिकार काबिलियत और सिनियोरिटी के आधार पर होना चाहिए, जाती के आधार पर नहीं।

Zeal

32 comments:

प्रतुल वशिष्ठ said...

बात से सहमती प्रकट करता हूँ.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए धन्यवाद!

शूरवीर रावत said...

पदोन्नति में आरक्षण के विरोध में माननीय उच्चतम न्यायालय अपना निर्णय दे चुकी है और उत्तराखण्ड में भी माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल भी अपना फैसला सुना चुकी है. किन्तु उस फैसले के विरोध में उत्तराखण्ड के लगभग सभी दलित विधायक और सांसद लामबद हो गए हैं और सरकार पर इस फैसले को पूर्ववत रखने का दबाव बना रहे हैं. किन्तु इसमें आश्चर्य की बात यह है कि साठ से अधिक सवर्ण विधयक व चार सांसद में से किसी ने भी पक्ष (या विरोध) में अपना बयां नहीं दिया है. न कांग्रेस और न बी जे पी के विधायकों ने. जबकि सभी सवर्ण अधिकारी-कर्मचारियों ने एकता दिखाते हुए 27 जुलाई और आज 16 अगस्त को भी विशाल रैली निकाल कर माननीय उच्च न्यायलय नैनीताल के फैसले को लागू करने का दबाव बनाया है. सभी सवर्ण अधिकारी-कर्मचारियों को जो खल रहा है वह यह कि कोई भी सवर्ण जन प्रतिनिधि मुंह क्यों नहीं खोल रहा है ?
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Unknown said...

इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए , राजनीतिज्ञों की तरफ से कुछ नहीं होगा एषा मान कर चले , कोई और रास्ता निकलना होगा. सटीक बात बधाई दिव्या जी

Bharat Bhushan said...

आपकी यह पोस्ट वृहद् समस्या के एक प्रतिशत को भी कवर नहीं करती अतः उसी प्रतिशत में आपके विचारों से सहमति है.

दिवस said...

पदोन्नति में आरक्षण पर उच्चतम न्यायलय ने रोक लगा दे है किन्तु अब सरकार इसके खिलाफ एक नया क़ानून बनाने जा रही है| सोनिया के सामने जब देश की उच्चतम न्यायलय की कोई औकात नहीं तो भाजपा कौनसे खेत की मूली है?

ZEAL said...

भूषण जी, अपनी ९९ प्रतिशत असहमति भी दर्ज करा देते तो प्रबुद्ध और चिंतनशील पाठकों तथा लेखिका का भी ज्ञानवर्धन होता-- आभार।

ZEAL said...

आरक्षण ने हिन्दुओं को दलित और सवर्ण में बाँट दिया है। हिन्दू ही हिन्दुओं के सबसे बड़े दुश्मन हो गए हैं।

ZEAL said...

डिफेन्स और जुडीशियरी में भी आरक्षण दे दो। फिर न कहना - "हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ता क्या होगा "

Bharat Bhushan said...

डॉ. दिव्या जी, सारी समस्या पर चर्चा करने के लिए यह स्थान पर्याप्त नहीं है तथापि कुछ बिंदु यहाँ दे रहा हूँ.
1. यदि भारतीय समाज दलित और सवर्ण के रूप में बँटा न होता तो आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं होती.
2. आरक्षण प्रावधान जानबूझ कर कमज़ोर रखे गए हैं. जो हैं उन्हें कभी तरीके से लागू नहीं किया जाता और न ही आरक्षण के नियम बनाने की संसद ने कोशिश की.
3. आज भी आरक्षित पदों के सही आँकड़े ब्यूरोक्रेसी तैयार नहीं कराती कि कहीं दलितों की प्रशासन में सहभागिता न बढ़ जाए.
4. उत्कृष्ट कार्य करने वाले दलितों की रिपोर्टें आमतौर पर मध्यम दर्जे की लिखी जाती हैं. संघर्ष और प्रमाण देने के बाद कठिनाई से रिपोर्टों को ठीक किया जाता है. इससे उनकी पदोन्नतियाँ प्रभावित होती हैं.
5. मैरिट में आए दलित अधिकारियों को हतोत्साहित और अप्रभावी करने के सभी हथकंडे अपनाए जाते हैं. उनके स्थांतरण से पहले ही उनकी जाति की सूचना नए सेंटर पर पहुँच जाती है. वहाँ प्रकारांतर से बहुत ही सौम्य तरीके से उन्हें उनकी जाति की याद दिलाई जाती है.
6. दलित यदि जनरल में कंपीट करके नौकरी में आ जाए तो उसके सिर पर ‘सही सूचना छिपाने’ की तलवार लटकती रहती है. जाति पहचान छिपती नहीं.
7. दलित कर्मचारियों की पोस्टिंग के बारे में ‘सीक्रेट अनुदेश’ या ‘मौखिक आदेश’ जारी किए जाते हैं जो नियमों पर भारी पड़ते हैं.
8. जिनकी पदोन्नतियाँ होने वाली होती हैं उनके विरुद्ध झूठी शिकायतें करवा दी जाती हैं.
9. आजकल नया ट्रैंड चला है कि रिटायरमेंट से एक-दो दिन पहले उनके सस्पेंशन के आदेश निकलवा कर पेंशन लाभ रुकवा दिए जाते हैं ताकि उन्हें सरकारी नौकरी करने का ‘अंतिम मज़ा’ चखाया जा सके. ये सारी बातें एससी/एसटी कमिशन की जानकारी में हैं.
10. एक ‘मैरिट’ वाले दलित (इस टर्म को सवर्ण मन स्वीकार नहीं करता) और गैर-मैरिट वाले दलित में से पदोन्नति के लिए चुनाव करना हो तो कोशिश की जाती है कि गैर-मैरिट वाले को प्रोमोट किया जाए ताकि उसे ‘आरक्षण का नमूना’ बना कर कहीं भी बैठाया जा सके. नीयत की बात है.

सरकारी कार्यालयों में जो होता है उसके केवल संकेत यहाँ दिए हैं. समस्या टेढ़ी है और केवल आरक्षण या पदोन्नतियों में आरक्षण का विरोध करके उसका हल नहीं निकल सकता. किसी जूनियर को पदोन्त करके किसी वरिष्ठ के उपर बिठाना अन्याय है. लेकिन यदि जूनियर दलित है तो उसकी उसकी वरिष्ठता की रक्षा कौन करेगा, यह प्रश्न कार्यालयों के जातिवादी वातावरण में अनुत्तरित रहता है.

Bharat Bhushan said...

वैसे डिफेंस में डिफेंस कोटा है. डिफेंस सर्विसिज़ में आने और 'डिफेंस सर्विसिज़' में डिफेंस कोटे से आने का अंतर स्पष्ट है. ऐसे ही खेल कोटे का भी समझ लें. और भी कई कोटे हैं.

ZEAL said...

भूषण जी,
आपकी दलितों के साथ सहानुभूति उचित है, लेकिन उनको अधिकार दिलाने के चक्कर में वे अपने हिन्दू भाई-बहनों के ही अधिकार मार रहे हैं। हिन्दुओं से लड़ना आसान है, लेकिन जब मुस्लिम आबादी पूरी तरह भारत को गिरफ्त में ले लेगी , तो वह सबसे पहले दलितों को ही समाप्त करेगी। इसलिए समय रहते दलितों को ये समझ लेना चाहिए दलित और सवर्ण अलग नहीं हैं। हमें एक-जुट होना है। अन्यथा कांग्रेस तो divide and rule पॉलिसी से हिन्दुओं को आपस में ही लड़ा रही है। जो दलित काबिल हैं , meritorious हैं, वो निसंदेह ऊपर आयेंगे, चमकेंगे। हिन्दू होने का तमगा लगाओ, दलित होने का टैग क्यों?

Bharat Bhushan said...

धन्यवाद दिव्या जी, आपकी बातों में एक तत्त्व है.

मैं (दलित) अपने आपको हिंदू कहता हूँ लेकिन हिंदू दायरे में मेरी जो जगह है वह असुविधाजनक है. जो स्थिति है वह पीड़ादायक है.

नौकरियों में आए दलित अपने हिंदू भाई-बहनों का अधिकार नहीं मार रहे हैं बल्कि वे अधिकारों से वंचित लोग है जिन्हें आरक्षण का एक कमज़ोर सा अस्थाई सहारा दिया गया है.

दलित मानस जानता है कि सदियों से (नौकरियों समेत) इस देश के संसाधनों पर उसके अधिकार को लगभग समाप्त कर दिया गया है. आरक्षण के विरोध को भी वह इसी दृष्टि से देखता है कि उसे मिलने वाले किसी भी लाभ को रोकने का प्रयास किया जाता है.

कई दलित स्वयं पर हिंदू होने का ठप्पा लगा चुके हैं लेकिन जाति आधारित सामाजिक वयवहार से उन्हें फिर से निराशा की स्थिति में डाल दिया जाता है. ऐसी हालत में वे (विशेषकर गाँवों में) मुस्लिमों (हिंदू धर्म/अपना परंपरागत धर्म छोड़ कर मुसलमान बने दलितों) में सुरक्षित महसूस करते हैं. इसे विडंबना ही कहा जाएगा. सैयद और शेख़ आज भी अँबेडकर को कोसते हैं कि उसने बौध धर्म अपनाने जैसा ग़लत निर्णय लिया.

कांग्रेस की नीयत पर आपने जो कहा है उससे मैं शतप्रतिशत सहमत हूँ. दलितों की हालत पर बीजेपी ने कुछ कार्य शुरू किया है जिससे काफी उम्मीदें हैं.

ZEAL said...

देश में साम्प्रदायक्ता फैलाने वाली केवल ऐक ही पार्टी है काँग्रेस।

पहले उस ने हिन्दू-मुस्लमान के बीच देश का विभाजन करवाया। जब काँग्रेसियों को पता चला कि देश विभाजन के लिये हिन्दू उन्हें माफ नहीं करें गे तो उन्हों ने हिन्दूओं को बाँट बाँट कर कमजोर करना शुरु किया।

आरक्षण के बहाने हरिजन बनाये, उन्हें दलित कहा, फिर आदिवासी, अनुसूचित जातियाँ, और जनजातियाँ बनाई। फिर सिखों को अलग किया। सँविधान में ऐक होने पर भी जैन और बौद्धों को अलग पहचान दे दी। आरक्षण का झाँसा दे कर अल्पसंख्यकों और धर्म बदलने वालों को लुभाना शुरु किया।

कहीं भाषा के आधार पर देश को बाँटने के लिये प्रदेश बनाये, कहीं धारा 370 लागू करी, तो कहीं शिक्षा नीति बना कर मदरस्से और अल्पसंख्यक संस्थान खुलवा दिये। और यह क्रम अभी भी चल रहा है।

इन सब बातों से पेट नहीं भरा तो घुसपैठ करवानी शुरु की, बंगलादेशी, नेपाल से खदेडे गये नक्सलवादी, और पाकिस्तानी कशमीर से सदभावना की आड में आतंकवादी भारत में बसा दिये गये ताकि काँग्रेस को ऐक ऐसा वोट बैंक मिलजाये जिस के सामने हिन्दू कमजोर रहैं।। अब काँग्रेस देश वासियों को लिंगभेद के आधार पर बाँटने के लिये महिला आरक्षण भी ले आये गी।

जरा सोचिये - क्या इन सभी तत्वों के भेदभाव मिटा कर उन्हें ऐक ही समाज में संगठित करने के लिये काँग्रेस ऐक सामान्य आचार संहिता पूरे देश के लिये नहीं लागू करती?

काँग्रेस से बदतर दूसरी कोई साम्प्रदायक पार्टी इस देश में नहीं।

प्रतुल वशिष्ठ said...

भारत भूषण जी सामाजिक वास्तविकता रखते हैं... तो दिव्या जी उस वास्तविकता के पीछे के असल कारणों को इंगित करती हैं.

'आरक्षण' के बाद सामाजिक भेदभाव बढ़ा है कम नहीं हुआ... आजादी के बाद जातिगत विषमता पाटने का यदि शैक्षिक धरातल पर कार्य किया जाता तो अवश्य यह न्यूनतम होती.

लेकिन एक पार्टी ने इसमें 'राजनीतिक' रूप से सुप्रिम बने रहने के लिये छलकपट किया है.

Bharat Bhushan said...

धन्यवाद प्रतुल जी, पिछले दो वर्ष से मैंने डॉ. दिव्या को पढ़ा है और उनके विचारों को जाना है. वे सच्चाई पसंद हैं और मुद्दों पर खुले मन से सोचती हैं. आपका और डॉ. दिव्या का आभारी हूँ.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

ये सही है कि आरक्षण से कई लोगों का हक मारा जाता है, पर जब आप बहुत जिम्मेदारी से देखते हैं तो लगता है कि अभी देश में आरक्षण की जरूरत है। इसे सिर्फ वोट की राजनीति कह कर खारिज कर देना ठीक नहीं है,
देश का सामाजिक ढांचा चरमरा जाएगा..

ZEAL said...

महेंद्र जी असहमत हूँ आपसे। आरक्षण हमारे देश को दीमक की तरह खा रहा है। आरक्षण के दानव से , प्रतिभाएं असमय दम तोड़ रही है। स्वार्थियों का बोल-बाला हो रहा है देश में और प्रतिभाएं पलायन कर रही है विदेशों में।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Dear Divya Ji,
Namaste!
I posted this comment on Bhushan Bau Ji's blog. I think it is relevant here also:

बाऊ जी,
नमस्ते!

कुछ साल पहले तक मैं दिव्या जी के सुर में गाया करता था. और ये आपकी साफगोई है के एक प्रतिशत ही सही आप सहमत हैं उनसे.

आज थोड़ा फर्क है. दरअसल, हम 'सवर्णों' को 'दलितों' की पीड़ा का अहसास हो ही नहीं सकता. क्यूँ? क्यूंकि, जाके पैर ना फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई!?

मैं जातिवाद में नहीं मानता. क्यूंकि मुझे राजनीति थोड़ी करनी है! मेरे लिए तो आप बाऊ जी ही थे, हैं और रहेंगे! इंसान-इंसान में भेद चाहे फिर वो धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर हो शर्मनाक है. पर ऐसे कितने लोग हैं? और धृष्टता क्षमा हो, आप जैसे भी कितने लोग हैं जो विरोधी स्वर में भी सहमति की तलाश करेंगे?!

अम्बेडकर की एक बायोग्राफी (धनञ्जय कीर द्वारा) को पढ़ा है मैंने. वो कहते थे के हिन्दू समाज एक मीनार जैसा है, जिसमे ऊपर-नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ मौजूद नहीं हैं! शायद आरक्षण उसी सीढ़ी का नाम था.

अब अगर आज इसकी प्रासंगिकता की बात करूं तो मैं तो यही मानता हूँ के असल हकदारों को लाभ कम है वोट-लोभियों को अधिक. शायद आप मुझसे सहमत होंगे की आज दलितों में भी एक सभ्रांत 'सवर्ण' वर्ग है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी आरक्षण का लाभ ले रहा है. क्युंकी उसके पास धन है, साधन है, सुविधा है! और जो वंचित है......... वो तो वंचित ही है!
शायद आजादी के समय इतने साधन नहीं थे... लेकिन आज कम से कम ये तो किया ही जा सकता है/ किया जाना चाहिए:
१. बेहतरीन स्कूल और उम्दा टीचर जो बुनियादी शिक्षा का एक मजबूत खाका तैयार कर सकें, ताकि कोई केवल वोट बैंक ना बनकर रह जाए!
२. वंचित वर्ग, फिर चाहे वो कोई भी हो, बस हिन्दुस्तानी हो..... को तैयार किया जाए के वो अपने पैरों पर खड़े हो सकें!
३. आरक्षण का लाभ पा चुके और 'सीढ़ी' चढ़ चुके लोगों को कहा जाए: अब दूसरे भाइयों को मौका दो.
४. प्रोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए मेरे हिसाब से!

पढ़ी-लिखी सीरियस बातें करने से मेरे दिमाग पर अनावश्यक ज़ोर पड़ता है... मेरी ट्रेडमार्क वाहियात बातें आपकी बाट जोह रही हैं! ਅਖਿਯਾਂ ਉਡੀਕ ਦਿਯਾਂ...
जय भारत! जय भीम!
ढ़पोरशंख
--
द टूरिस्ट!!!

Ashish Mishra said...

आपकी बात एकदम सही है. हिन्दू कभी भी कमजोर नहीं रहा, लाचार नहीं रहा. फिर भी उसपर विदेशियों, विधर्मों यहाँ तक की गुलामों तक ने शासन कैसे किया. ????? क्योंकि हिन्दू आपस में ही बंटे हैं और उनको बांटा है सत्ता के दलालों ने. अपने फायदे के लिए. अगर आरक्षण की जरुरत है, समाज को एक करना है. यही सब कहती है न सरकार?? तो फिर क्या जरुरत है जाती आधारित जन गणना की ?? क्यों जानना चाहते है आप जाती? क्यों आर्थिक स्थित के आधार पर सरकारी सुविधाओं को देने के बजाय जाती धर्म के आधार पर देते हैं?
यह सब सिर्फ वोट की राजनीत है. देश को बर्बाद करने का कम है और कुछ नहीं.

Ashish Mishra said...

और हाँ जरा भारत भूषण जी से पूछिए कि वह आरक्षण के समर्थक तो है पर अगर उनके बेटे यां उनकी पत्नी कि तबियत बहुत ख़राब हो जाये और उनको इलाज करना हो तो वह कम जानकार और आरक्षण का लाभ पाकर डॉ. बने "दलित" से इलाज कराना पसंद करेगे या वास्तविक योग्यता वाले डॉ. से बिना उसकी जाति या धर्म पूछे?
उनसे कहिये इसका सही जबाब दे उनके बेहूदे तर्कों का जबाब उन्हें खुद मिल जायेगा.
प्रतिभा की कोई जाति या धर्म नहीं होती यह समझने की कोशिश करिए भूषण जी.

Unknown said...

@Ashush Mishra, tum kya samjhte ho, reserevation me anpad ko post mil jati hai, dalit educated nahi hai ?????? jo pad kar general doctor banta hai, wohi pad kar dalit b dr. banta hai .........



@Zeal, aap kehte ho mayabati hinduon ko baant rahi rahi, me puchhta hu hindu ek kab the ????????? 5000 saal tab ka itihas pad lo or batao brahmno ne kab dalito ko apna mana, mayabati to sirf apne adhikaro ki rakhsa kar rahi hai, hinduon ko divide karne wala to Manubaad hai ....

reservation manubadi saanp pe bharosa nahi kar sakte, isliye reservation ko nahi chhoda ja sakta ...


tum logon ki soch aaj bi vahi hai jo 2500 saal pehle thi, tum logon ne daliton ko kabhi apna nahi mana, duste dharm ke guruon ne apne-2 dharm ki development k liye kaam kiya hai, hindu dharm guruon (Brahmn) ne kya kia hai ?????? sirf jaati ke naam par banta hai, aur kuchh nahi .....


Bhagat said...

Ashish Mishra, tum kya samjhte ho, dalit bina pade hi dr. ban jaate hain ???? jo dalit dr. hain ky vo patients ka treatment nahi kar rahe ???? tum logon ko arakshan bahut chub raha hai na, ek baat batao .... aaj bhi jaati ke naam par daliton pe atyachar ho raha hai, kya iske baar me awaz uthai ??? unko aaj bhi kahi-2 sarvnik jagah se pani tab nahi peene diya jata, kabhi eske baare me awaz uthai ???? arakshan ke naam pe tum logon ko unequality kyon dikhti hai ?????

aur rahi hindu samaj me ekta ki baat.... 5000 saal pichhe tak ka itihas dekh lo aur mujhe batao hinduon me kab ekta thi, brahmno ne kab dalito ko apne equal mana ???

hinduon ko bantane ka thikra mayabati pe fod rahe ho .... hindu to kabhi ek the he nahi ...

har ek dharm ke guruon me apne-2 dharm ko develop kiya hai .... hindu guruon (brahmn) ne kya kiya dharm k liye ???? sirf unch, neech me divide kiya hai ....

arakshan to humare adhikaron ko bachane ka ek source hai kyonki hum bharosa nahi kar sakte aise logon pe.

Bhagat said...

@Ashish Mishra, tum kya samjhte ho, dalit bina pade hi dr. ban jaate hain ???? jo dalit dr. hain ky vo patients ka treatment nahi kar rahe ???? tum logon ko arakshan bahut chub raha hai na, ek baat batao .... aaj bhi jaati ke naam par daliton pe atyachar ho raha hai, kya iske baar me awaz uthai ??? unko aaj bhi kahi-2 sarvnik jagah se pani tab nahi peene diya jata, kabhi eske baare me awaz uthai ???? arakshan ke naam pe tum logon ko unequality kyon dikhti hai ?????

aur rahi hindu samaj me ekta ki baat.... 5000 saal pichhe tak ka itihas dekh lo aur mujhe batao hinduon me kab ekta thi, brahmno ne kab dalito ko apne equal mana ???

hinduon ko bantane ka thikra mayabati pe fod rahe ho .... hindu to kabhi ek the he nahi ...

har ek dharm ke guruon me apne-2 dharm ko develop kiya hai .... hindu guruon (brahmn) ne kya kiya dharm k liye ???? sirf unch, neech me divide kiya hai ....

arakshan to humare adhikaron ko bachane ka ek source hai kyonki hum bharosa nahi kar sakte aise logon pe.

ZEAL said...

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राज भगत उर्फ़ भगत जी , जेनरल कैटेगरी में , सीटें कम होने के कारण , मेधावी एवं योग्य विद्यार्थी भी एडमिशन नहीं पा पता ! जबकि दलितों और अल्पसंख्यकों को अयोग्य होने के बावजूद , आरक्षित सीटों के कारण एडमिशन आसानी से मिल जाता है और यही प्रक्रिया पदोन्नति में भी दोहराई जाती है ! आरक्षण द्वारा योग्यता एवं काबिलियत को भरपूर नाकारा जा रहा है ! और deserving लोगों के साथ बेहद अन्याय किया जा रहा है !

आरक्षण से दलितों और अल्पसंख्यकों को लाभ हो रहा है और सत्ता में बैठी घटिया सरकार को वोटों का लाभ हो रहा है ! जिनके साथ अन्याय हो रहा है , उसका दर्द तो वे ही जानते हैं , आप लोग क्या समझेंगे ! न ही कोई उम्मीद है आप लोगों से ! आपकी टिपण्णी में दिखी तल्खी इस बात को भी स्पष्ट दर्शा रही है की दलित हमसे अलग हैं ! बंटे हुए हैं ! आपके दर्द का कारण हम नहीं हैं , लेकिन हम लोगों के दुर्भाग्य का कारण आरक्षित वर्ग वाले अवश्य हैं ! और हमें बांटने हैं, ये विदेशी , गद्दार सरकार ! इसके गुण आप गाईये क्योंकि आप लोगों को आरक्षण का लाभ जो मिल रहा इनसे !

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Bharat Bhushan said...

@ Ashish Mishra Ji,
सरकारी अस्पतालों में बहुत से दलित वर्ग के डॉक्टर वर्षों से कार्यरत हैं. बहुत से दलितों के अपने क्लीनिक हैं और वे अपने व्यवसाय में सफल प्रैक्टिस कर रहे हैं और समाज-सेवा में संलग्न हैं.
कोई आरक्षण विरोधी किसी अस्पताल में जाकर डॉक्टरों से पूछता है क्या कि आपके नाम के साथ शर्मा लगा है, आप आरक्षण से तो नहीं आए या आप भाटिया हैं, आप आरक्षण से तो नहीं आए. कम अंकों के कारण आपने 5 लाख रुपए में मेडिकल की सीट तो नहीं खरीदी थी? वहाँ जाकर इलाज ही तो कराते हैं न?
एम्ज़ जैसे चिकित्सा संस्थानों में आरक्षण का विरोध चिकित्सा के क्षेत्र में आ रहे अकूत धन की कहानी है. उसका विस्तार यहाँ नहीं करना चाहता.

Bharat Bhushan said...

@ Dr. Divya
वकालत की जाती है कि आरक्षण का लाभ पढ़े-लिखे मैरिट वाले दलितों के लिए समाप्त करके उन दलितों को दिया जाए जो अभी ग़रीब हैं (जो अच्छी शिक्षा के मँहगा होने के कारण कंपीट करने की हालत में नहीं आए). वास्तविकता यह है कि उनके लिए आरक्षित सीटों को यह कह कर अनारक्षित करना बहुत आसान हो जाता है कि योग्य उम्मीदवार नहीं मिले. इसका लाभ किसे होता है, विचार करें.

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Unknown said...

divya ji mai ke baat se sahamat nahi hoo jo aap ne kaha ki muslim hindu par hamala karege to sabase pahale dalito ka nukssan hoga nahi jo hindu jaranal jati ka aadhikar aab muslim karne lage auar savarn jati dalit ye bhi sikhaya ki jati auar jati kase badalate hai