कुछ लोग सत्यवादी होते हैं।
सत्यवादी निर्भीक होते हैं।
निष्पक्ष और निष्कपट होते हैं।
किसी की भी चाटुकारिता नहीं करते।
सत्यवादियों के लिए अपना-पराया नहीं होता।
वे निर्लिप्त और निर्विकार होते हैं ।
सप्रयास अपनी स्पष्टवादिता को बनाये रखते हैं , वरना तो मार्ग से विचलित होने के अवसर बहुत होते हैं।
वे खरा-खरा ही बोलते हैं , किसी को तीखा लगता है , इस बात की परवाह किये बगैर।
खरा बोलने वाले , निंदा से विचलित नहीं होते, उसके लिए सदैव तैयार रहते हैं ।
हमारा खरा-खरा बोलना आपको 'खारा' लगता है तो इसमें हमारा क्या कसूर-?...हमें तो अपना खरापन ही सबसे ज्यादा मीठा लगता है।
कोमल प्रकृति वाले अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्वयं लें।
Keep Smiling !
Zeal
21 comments:
आपकी तीखी बात में हमारा सौभाग्य भी तो देखिए न डॉक्टर साहब. आपके इस स्वभाव को मैं काफी पहले से जानता हूँ और इसी लिए आपको पढ़ता भी हूँ :))
‘खरा‘ और ‘खारा‘ का सटीक प्रयोग।
अंदाज हल्का-फुल्का लेकिन विचार सौ फी सदी खरा।
हमारा खरा खरा बोलना आपको खारा लगता है तो इसमें हमारा क्या कसूर !!
:) सही
हां जी बात मे दम है
बढिया
सत्य कड़वा होता है और दवा भी हमेशा कड़वी ही होती है न?? पर उससे लाभ होता है. सो सच की दवा देते रहिये. अच्छा ब्लॉग.
सत्य कड़वा होता है और दवा भी हमेशा कड़वी ही होती है न?? पर उससे लाभ होता है. सो सच की दवा देते रहिये. अच्छा ब्लॉग.
खरे -खरे बोलों का खारापन स्वादिष्ट लगा और आज से हमारा नारा है -सत्य बोलिए ,स्वस्थ रहिये |
ऐसे बानी बोलिए मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे आपहुँ शीतल होय. .... दास कबीरा.
@
बानी बेशक बोलिए तीखी खरी-खरी.
कटुता इतनी न बढ़े मिश्री जाय डरी. ...... दास फकीरा.
जे बात ... ;-)
मेरा रंग दे बसंती चोला - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी मे दिये लिंक पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
खरा नहीं कुछ हरा बोल
बहुत सुंदर !
खरा खरा बोलता है
सादे को खारा बनाता है
जहाँ भी जाता है
अलग से बिठाया जाता है
बोलने का मौका उसको
कम भी दिया जाता है
मक्खन लगा कर जो
डबलरोटी खिलाता है
उसके सामने एक
सादी रोटी वाला
कुछ नहीं बेच पाता है !
सुशील जी , खरा बोलने वाले को सुनने और गुनने वाले बहुत होते हैं ! लोगों की आस्था भी उन्ही पर ज्यादा होती है ! चाटुकारों की भीड़ में खरा बोलने वाला विरला ही होता है !
प्रतुल जी , आपने कबीर दास का जो दोहा कोट किया है , वह इस पोस्ट पर अनुपयुक्त है, क्यों की कबीर ने अपने दोहे में खरा बोलने का विरोध नहीं किया है, न ही चाटुकारिता करने का सन्देश दिया है.
बहुत सच कहा है..
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