कल अपने मेसेज बॉक्स में , तारीफ के पुलिंदे के साथ, ओस की बूंदों से भीगा एक गुलाब मिला। इतनी प्रशंसा और प्रेम इस पृथ्वी पर संभव है विश्वास ही नहीं हो रहा था। मन का संशय बढ़ता ही जा रहा था। इसी दुविधा में अन्ना जी पर अपनी दूसरी पोस्ट लिख डाली। अन्ना के फैसले पर मेरे विचारों को जानने के बाद , गुलाब प्रेषित करने वाले ने त्वरित गति से अगला मेसेज भेज दिया-- "अहंकार, स्त्री का गहना नहीं होता" । एक प्रहर बीतने से पहले ही प्रेषक का प्रेम का बुखार उतर गया और आसमान साफ़ हो गया।
मेरी तरह यदि किसी अन्य स्त्री को ओस की बूंदों से भरा गुलाब मिले तो मन में आये संशय को तवज्जो अवश्य दें। २४ घंटे के अन्दर ही प्रेषक खुद ही आपको अहंकारी कहकर आपका संशय दूर कर देगा। --- ये फेसबुक है , यहाँ एक पोस्ट पढ़कर बुखार चढ़ता है और अगली पोस्ट पर 'मतभेद' होते ही उतर भी जाता है।
धन्य हो ओस की बूंदों तुम !
Zeal
5 comments:
:-)
धन्य हो तुम भी...
अनु
ज़रूर कोई दुर -मुख मूढ़ धन्य दिग्विजय सिंह का या उनके जैसे किसी ब्लोगिये का चेला होगा .इधर भी कई दिग्विजय घुस आयें हैं .
सोमवार, 6 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ सेविकर भाई बड़ा ही दुखद रहा है यह प्रसंग .राजनीति के आश्रय में कभी प्रेम पल्लवित नहीं हो पाता .
आवश्यक नहीं कि हर चीज़ हमारे मन के मुताबिक हो :))
ओस की बूंदों से भरा गुलाब भेजने वाला भी धन्य है ...
ऐसे सड़कछाप आशिक हज़ार घुमते हैं समाज में, तो फेसबुक अछूता कैसे रहे भला? ऐसे लोग केवल अपना अहम् पुष्ट करने आते हैं| कोई महिला हाथ आई तो हमारी, नहीं तो स्साली डायन अहंकारी|
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