Tuesday, August 7, 2012

राजनैतिक महत्वाकांक्षा

गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी जनता अब जागरूक हो गयी है। शायद कुछ ज्यादा ही जागरूक हो गयी है। जिसे देखो वही अपनी पार्टी बनाना चाहता है। अन्ना और केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं का बुखार अब केशूभाई पटेल पर भी छा गया है। मोदी के विरोध में लोग राजनैतिक पार्टियाँ बना कर मनभावन सपने देखने में लगे हुए हैं। लेकिन किसके हाथ में नेतृत्व सौंपना है वो अभी भी जनता के ही हाथ में है। चलिए देखते हैं भारत भूमि का भविष्य क्या है। इस राजनैतिक उथल-पुथल का परिणाम क्या होगा।

Zeal

10 comments:

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

राजनैतिक महत्वकांक्षा का होना गलत नही है , परन्तु वो स्वार्थ के लिए हो ये गलत है . वैसे भी अपने देश में ईमानदार वो है, जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिला !

kunwarji's said...

परिणाम की चर्चा आप पीछली पोस्ट में कर ही चुकी है!हिन्दू वोट बंटेंगे.....
पर शायद वहा मोदी को खतरा कम है!यही कांग्रेस को गम है!

कुँवर जी,

devendra gautam said...

kuchh badlao angdai le raha hai. usi kee aahat hai yah.

दिवस said...

नासमझ दोस्त से समझदार दुश्मन बेहतर है| भाजपा या यूं कहें मोदी को कांग्रेसी दुश्मनों से नहीं बल्कि अपने ही भाजपाई साथियों से खतरा है| परन्तु शेर कभी डरकर शिकार का विचार नहीं त्यागता| अब समय जनता के विश्वास की कसौटी का है| देखना है कि पिछले 65 वर्षों से चली आ रही तानाशाही व वर्तमान उथल-पुथल से जनता क्या निष्कर्ष निकालती है|

Prabodh Kumar Govil said...

aapne theek kaha. jaise saagar kinaare bajari men bachche ghar-ghar khelte hain, sansadakankshi log party-party khel rahe hain.

Maheshwari kaneri said...

कुछ नही होना है..वही ढाक के तीन पात..

Maheshwari kaneri said...

कुछ नही होगा ..बस वही ढाक के तीन पात..

Bharat Bhushan said...

राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ ज्योतिष ग़लत साबित हो जाता है. क्या अन्ना के साथियों का राजनीति में आना शेष राजनीतिक पार्टियों के ज़हर के लिए ज़हर साबित होगा? यह तो समय ही बताएगा.

प्रतुल वशिष्ठ said...

जिन पर पहले से है .... वह 'पार्टी'वाली राजनीति कर रहा है मतलब 'खिलापिलाकर'.

जिन पर नहीं है .... वह 'राजनीति' 'पार्टी' बनाकर करने की सोच रहा है.


खेत जोतने वाले ..... अलग
खेत में बीज बोने और समय-समय पर खाद-पानी देने वाले ....... अलग
खेत में खड़ी फसल काटने वाले ...... अलग.
आजादी का मन्त्र फूँकने वाले ... अलग
आजादी के लिये बलिदान देने वाले .... अलग.
आजादी का श्रेय लेने वाले .... अलग.
आजादी का फ़ल चखने वाले ....अलग.

स्वतंत्रता के समय गांधी के आन्दोलनों का फ़ल आखिर किनकों मिला? और अब अन्ना आन्दोलनों का फ़ल किनको मिलेगा...
प्रतीत होता है.... एक बार फिर इतिहास दोहराया जा रहा है.... जब तक अधुना 'सरदार पटेल' जैसे लोग आगे नहीं आयेंगे.... तब तक
तुष्टिकरण की रोटियाँ सेंकी जाती रहेंगी.

विकल्प में सबसे बेहतर है उसीको इस समय कमज़ोर करने की कोशिशें हो रही हैं.... लेकिन उसमें है कि और निखार आता जा रहा है.

Rakesh Kumar said...

यह संसार झाड और झाँखर
उलझ पुलझ मर जाना है

रहना नही देश बिराना है.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आकर
'फालोअर्स और ब्लोगिंग'के सम्बन्ध में मेरा मार्ग दर्शन कीजियेगा,