Tuesday, January 4, 2011

क्या ब्लॉग्स के माध्यम से हमारा योगदान समाज तक पहुँच रहा है ?

व्यक्ति के मन में एक जज़्बा होता है की हम भी समाज के लिए कुछ योगदान कर सकेंकुछ जागरूकता ला सकेंविसंगतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करके समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव ला सकें

कुछ वर्ष पहले तक ऐसी कोई सुविधा नहीं थी जहाँ हम विचार रख सकते हों , विमर्श कर सकते होंलेकिन आज ब्लॉग एक सशक्त माध्यम बन कर उभरा है , जिसके द्वारा हम लोग आपस में विचार -विमर्श कर सकते हैं तथा अपने विचारों एवं आक्रोश को समाज तक पहुंचा सकते हैंबहुत से लोग जो ब्लोग्स पढ़ते हैं, चाहे सरसरी तौर पर ही पढ़ें , लेकिन निरंतर उठने वाली आवाजें उनके अंतर्मन को कहीं कहीं कचोटती या झकझोरती तो होंगी हीशायद उनके दिल में भी वो आवाज़ बुलंद होती होगी और फिर उनके माध्यम से ये लहर आगे भी बढती होगी

मेरे मन में ये प्रश्न है की क्या वास्तव में हमारी आवाज़ जनता के अंतर्मन को influence करने में सक्षम है? क्या हमारी आवाज़ एक बहुत छोटे दायरे तक तो सीमित नहीं हैक्या हम ब्लोगर्स की आवाज़ , विशाल समुद्र में मात्र एक बूँद के सामान है ? क्या हमारे प्रयत्न व्यर्थ हैं ? क्या हमारे अथक परिश्रम की कोई सार्थकता नहीं है ?

मेरी एक पाठक राधिका ने कहा - " दिव्या तुम्हारी आवाज़ एक छोटे दायरे तक सीमित है , तुम अपनी शक्ति को अनायास ही व्यय कर रही हो, तुम्हारे प्रयासों से समाज में कोई बदलाव आने वाला नहीं है। "

उसकी बात से मन में उपजे इस प्रश्न को आपके सामने रख रही हूँ

मेरे विचार से , जो लोग मेरे सामाजिक लेखों को पढ़ रहे हैं और कहीं कहीं सकारात्मक रूप में प्रभावित अथवा सहमत हो रहे हैं, उनके द्वारा ये विचार चार अन्य लोगों तक पहुंचेगाफिर उन चारों के द्वारा १६ तक और इस प्रकार geometrical progression में विचार फैलेगा और लोगों में कहीं कहीं जागरूकता लाएगा हीदृढ विश्वास है की बिंदु-बिंदु से ही सिन्धु बना हैमेरी पहुँच बहुत सीमित हैं , लेकिन मेरे पास बेहतर विकल्प भी तो नहीं हैंइसलिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य के साथ कर्म जारी है

इस विषय पर आपके क्या विचार हैं और क्या सुझाव हैं , उनका स्वागत है

आभार

64 comments:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

हमारे विचार निस्संदेह फ़ैल रहे हैं पर उनका विस्तार संतोषजनक नहीं है. इसके कई कारण हैं. अभी भी बड़ी आबादी तक इंटरनेट की पहुँच नहीं है. घरों में कम्प्युटर आदि होने के बाद भी घर के बहुत से सदस्य ब्लौग आदि के बारे में कुछ नहीं जानते. अधिकांश लोगों के पास या तो मनोरंजन या ज्ञानवर्धन के अन्य साधन है या समय की झूठी कमी.

प्रतुल वशिष्ठ said...

.

चरैवैती चरैवैती ......

जो चलता रहता है वह स्वच्छ रहता है.
ठहरा हुआ गन्दला हो जाता है. सड़ता है. दुर्गन्ध फैलाता है.
प्रभावपूर्ण सीमित प्रयास असीमित कार्य करते हैं. यह ठीक वैसा है जैसा कि परमाणु-विखंडन.

.

आपका अख्तर खान अकेला said...

svaal anatrmn ko jhkjhordene vaala he jvaab men is mamle men koshihsh hona chaahiye . akhtr khan akela kota rajsthan

Kunwar Kusumesh said...

कर्म अच्छा है तो परिणाम भी अच्छे होंगे.
बेफिक्र रहिये,बस समाज में ज़हर घोलने वाले जो लोग आपका ध्यान divert करना चाह रहे हैं उनसे बचके रहना ज़रूरी है. वैसे आपको क्या बताना आप तो स्वयं ही योग्य हैं अतः सब अच्छी तरह से समझती ही हैं.

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

दिव्या जी, नमस्कार.
काफी दिनों बाद ब्लॉग पर सक्रिय हुआ हूँ. अब मुद्दे पर. राधिका जी की बात भी गलत नहीं है और आपकी बात भी सही है. ब्लॉग पर लिखना एक सार्थक पहल है. और ये तो जरूरी नहीं की जब तक इसका असर ना हो, तो लिखा ही ना जाए. ये तो अपने मन की अभिव्यक्ति का जरिया है. बहुत ज्यादा फर्क अगर ना भी पड़ता हो तो भी ना लिखने से तो अच्छा ही है की कुछ तो लिखा जाए.
ये और भी जरूरी हो जाता है जब अब की media थोड़ी biased हो गयी है.
कुछ भी हो, लिखना तो जरूरी है. ये पहली बात. दूसरी ये कि इस लेखन और विषय को प्रभावी बनाने का तो वो भी सोच लेंगे.

नए साल कि शुभकामना....
राजेश

Arvind Jangid said...

देखिए यह सत्य है की वर्तमान स्थिति में कलम की ताकत कुछ हद तक घुट गयी है, जिसके अपने कारण हैं, लेकिन यह भी सत्य है की कलम ने सदा ही इतिहास को परिवर्तित करके भी दिखाया है.

मेरी कुछ पंक्तियाँ


मत समझिए कलम को बेजान,
पन्ने इतिहास के पलट के देखिये।

खुले रहते दरवाजे हरदम जहाँ,
खुदा की दहलीज़ पर आके देखिये।

रही बात की पढ़ने का क्या असर होता है,

मैडम जी,

मेरा साफ़ साफ़ मानना है की व्यक्ति के भीतर "ईश्वरीय" तत्व होता है जिसे व्यक्ति जीवन की भाग दौड़ में कहीं न कहीं धूमिल कर देता है, लेकिन वो आग बुझ नहीं सकती, जरा सी सदविचारों की हवा क्या लगी, दावानल बन बैठती है.

देखें कैसे फैलती है नफ़रत की आग,
आप तो बस प्यार को फैलाते जाइए.

साधुवाद.

अजित गुप्ता का कोना said...

शब्‍द ब्रह्म होते हैं, कभी विनष्‍ट नहीं होते। इनका प्रभाव वातावरण में रहता है और जब संकुल बन जाता है तब प्रगटीकरण भी होता है। कल तक सैकड़ों लोग लिख रहे थे आज हजारों या लाखों लिख रहे हैं। कल करोड़ों लिखेंगे तो परिवर्तन तो लाजिमी है। बस इतना अवश्‍य है कि जो सुधारों को पैरोकार है वह स्‍वयं इनकी अनुपालना भी करे।

G Vishwanath said...

-------------------------------------------------------------------------------
क्या ब्लॉग्स के माध्यम से हमारा योगदान समाज तक पहुँच रहा है ?
-------------------------------------------------------------------------------
===============
टीवी या अखबार जितना तो अवश्य नहीं। पर कुछ लोकप्रिय ब्लॉग्गर लोग, अपने ब्लॉग/ ट्विट्टर वगैरह से कुछ हद तक सफ़ल होते हैं।
===============

------------------------------------
क्या वास्तव में हमारी आवाज़ जनता के अंतर्मन को influence करने में सक्षम है?
---------------------------------
===========
वह ब्लॉग्गर पर निर्भर होता है। अच्छे लेख पढे जाते हैं, link circulate होते हैं, चर्चा मंचो में बहस होती है, और कभी कभी अखबारों में या पत्रिकाओं में भी छपते हैं। साधारण/निकृष्ट लेख cyber space का कूडा बन जाता है।
---------------------------
क्या हमारी आवाज़ एक बहुत छोटे दायरे तक तो सीमित नहीं है।
----------------------
============
अमुक ब्लॉग्गर की आवाज शायद छोटे दायरे तक सीमित हो, पर जब कई ब्लॉग्गर बन्धु अलग अलग मंचों पर आवाज उठाते हैं तो अवश्य असर होना चाहिए।
===============

---continued---

G Vishwanath said...

--------------------------------
क्या हम ब्लोगर्स की आवाज़ , विशाल समुद्र में मात्र एक बूँद के सामान है ?
------------------------
============
एक बूँद ही सही, पर रसोई का काम करने वाले जानते हैं कि नमक का एक ही कण से स्वाद बदल सकता है। कोई नया विचार हमेंशा पहली बार किसी एक व्यक्ति के मन में ही जन्म लेता है। यदि उसमें दम हो तो आगे चलकर यह विचार सार्वजनिक बन जाता है
=================
------------------------------
क्या हमारे प्रयत्न व्यर्थ हैं ?
------------------------------
========
बिल्कुल नहीं। शायद हर समय सफ़लता नहीं मिलती पर काम व्यर्थ कभी नहीं।
===========
--------------------------------
क्या हमारे अथक परिश्रम की कोई सार्थकता नहीं है ?
-------------------------------
===========
भगवद गीता: कर्म करो। फ़ल के बारे में मत सोचो
=============
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

Rahul Singh said...

आपकी कुछ पोस्‍ट मेरे लिए असहमति योग्‍य होती हैं, लेकिन ज्‍यादातर ऐसी होती हैं, जिन्‍हें पढ़ कर मैं लाभान्वित होता हूं और मेरे कुछ ऐसे परिचित, जो ब्‍लॉग और वेब से नहीं जुड़े हैं, वे भी इनमें रुचि लेते हैं, जानना चाहते हैं. आप अपनी मर्यादा (आचरण की नहीं रुचि-सीमा के अर्थ में) और सामर्थ्‍य के अनुरूप निष्‍पादन करें और आपके पाठक समीक्षा का सहयोग देते हुए अपने स्‍तर पर स्‍व-निर्धारित दायित्‍वों को पूरा करें, करते रह सकें, यही कामना है.

shyam gupta said...

सच है, बून्द बून्द से ही तो समुद्र बनता है व जैसा अजित गुप्ता जी ने कहा शब्द ब्रह्म है ,अक्षर, अनाशवान - विग्यान के भाव से भी ऊर्ज़ा विनाशशील नहीं है- अतः निश्चय ही ओटे-छोटे प्रयास ही बडे बन जाते हैं--”एकला चलो रे’ के बाद ही आपके पीछे जन समुद्र चलने लगता है....एक कंकड बहुत है शान्त झील में हलचल के लिये..फ़ैंकते चलो...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पहुंच रहा है और तेजी से फैलेगा..

केवल राम said...

समाज हमारे विचारों को ग्रहण करता है ...चाहे उसके लिए कोई भी मध्यम अपनाया जाये ..जहाँ तक ब्लॉग का सम्बन्ध है ...इसने समाज में वैचारिक क्रांति पैदा की है ...बेशक इसका दायरा अभी आम व्यक्ति की पहुँच से बहार है ..परन्तु इसे सामाजिक बदलाब के रूप में जरुर देखा जाना चाहिए ..समाज में विचारों के आदान प्रदान में ब्लॉग की भूमिका निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है ..शुक्रिया

A.G.Krishnan said...

Through blogs, we are spreading messages exactly the same what we want to i.e. without passing through censor's knife.

Frankly speaking, Newspapers do not reflect people's voice in toto.

दिनेशराय द्विवेदी said...

समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने की बात आप करती हैं तो ब्लाग से कुछ आगे भी करना होगा। आप अपने यहाँ कोई सामाजिक कार्य समूह चला सकती हैं, या किसी समूह से जुड़ सकती हैं। उस समूह को देश भर के समूहों से जोड़ सकती हैं। आप के विचारों से समाज जहाँ जहाँ प्रभावित हो रहा है, उसे ब्लाग पर बता सकती हैं। ब्लाग एक साधन भर है, इस से आगे भी जहाँ बहुत है। अच्छे काम में इस का उपयोग कीजिए।

रवीन्द्र प्रभात said...

दिव्या जी,

आपने बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित पोस्ट दिया है आज, क्योंकि ऐसी स्वस्थ बातों की जरूरत है ब्लॉग जगत को ....इस दिशा में निशांत मिश्र जी की बातें मुझे प्रासंगिक लगी कि "हमारे विचार निस्संदेह फ़ैल रहे हैं पर उनका विस्तार संतोषजनक नहीं है. इसके कई कारण हैं. अभी भी बड़ी आबादी तक इंटरनेट की पहुँच नहीं है. घरों में कम्प्युटर आदि होने के बाद भी घर के बहुत से सदस्य ब्लौग आदि के बारे में कुछ नहीं जानते. अधिकांश लोगों के पास या तो मनोरंजन या ज्ञानवर्धन के अन्य साधन है या समय की झूठी कमी. "

किन्तु यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि..आज जिसप्रकार हिंदी ब्लोगर साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद समाज और देश के हित में एक व्यापक जन चेतना को विकसित करने में सफल हो रहे हैं वह कम संतोष की बात नही है । हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप देने में हर उस ब्लोगर की महत्वपूर्ण भुमिका है जो बेहतर प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन, सम सामयिक विषयों पर सूक्ष्मदृष्टि, सृजनात्मकता, समाज की कुसंगतियों पर प्रहार और साहित्यिक- सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी बात रखने में सफल हो रहे हैं। ब्लॉग लेखन और वाचन के लिए सबसे सुखद पहलू तो यह है कि हिन्दी में बेहतर ब्लॉग लेखन की शुरुआत हो चुकी है जो हम सभी के लिए शुभ संकेत का द्योतक है ।
हमारा समाज नयी-नयी चीजें अपना तो रहा है , साथ ही बहुत पुरानी चीजें छोड़ भी रहा है । बीता हुआ २०१० भी इसका गवाह रहा है और आने वाले दिनों में भी यह दौर कायम रहेगा । कुछ लोग कहते हैं कि ब्लॉग डायरी का दूसरा रूप है और दूसरी तरफ ब्लोगर की निजता पर प्रश्न भी उठाये जाते हैं । कुछ ब्लोगर पोस्ट के माध्यम से सफल नहीं हो पाते तो अनावश्यक प्रलाप में निमग्न रहते हैं ताकि मुख्यधारा में बने रह सके । कुछ तो जानबूझकर विवाद को हवा देते हैं और कुछ अपनी सहूलियतों के हिसाब से अपने लिए पैमाने तय कर लेते हैं । यही है हिंदी ब्लोगिंग की सच्चाई ।

केवल राम जी के विचारों से सहमत हूँ कि "समाज हमारे विचारों को ग्रहण करता है ...चाहे उसके लिए कोई भी मध्यम अपनाया जाये ..जहाँ तक ब्लॉग का सम्बन्ध है ...इसने समाज में वैचारिक क्रांति पैदा की है ...बेशक इसका दायरा अभी आम व्यक्ति की पहुँच से बहार है ..परन्तु इसे सामाजिक बदलाब के रूप में जरुर देखा जाना चाहिए ..समाज में विचारों के आदान प्रदान में ब्लॉग की भूमिका निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है...!"

Unknown said...

बेशक समाज तक पहुंच रहा है। कई ब्लॉगर ऐसे हैं जिनकी नीयत पर किसी को शक नहीं है और उनकी कही बात को पत्थर की लकीर की तरह माना जा रहा है। लेकिन कुछ ब्लॉगर ऐसे हैं जो रोज़ सुबह 3-4 ब्लॉग्स पर अपनी दुकान सज़ाकर बैठ जाते हैं लेकिन उनकी पोस्ट में ऐसा कुछ नहीं होता है जिससे समाज को कुछ मिले। ऊलजलूल लिखकर विवाद ही पैदा करते हैं। तर्क-कुतर्क करते हैं। अपनी निजी लड़ाई में दूसरों को बेवजह पार्टी बनाने की कोशिश करते हैं। अच्छे विचार समाज तक पहुंचते हैं और 1 फीसदी लोग भी उनको मानते हों तो समझिये मिशन कामयाब। समाज का एक तबका जिस तरह से अच्छे विचारों को ग्रहण करता है उसी तरह से बुरे विचारों से भी वो अवश्य प्रभावित होता होगा। इसलिये आवश्यकता इस बात की है सिर्फ अच्छे विचारों का प्रवाह कायम रहे और बुरे विचारों वाले ब्लॉग्स के तंत्रों, गढ़ों और चौपालों को हम लोग ध्वस्त कर दें। इसके बाद जो समाज बनेगा वो सपनों का समाज होगा। आमीन।

एस एम् मासूम said...

दिव्या तुम्हारी आवाज़ एक छोटे दायरे तक सीमित है , तुम अपनी शक्ति को अनायास ही व्यय कर रही हो, तुम्हारे प्रयासों से समाज में कोई बदलाव आने वाला नहीं है। "
.

दिव्या तुम्हारी आवाज़ एक छोटे दायरे तक सीमित है , तुम अपनी शक्ति को अनायास ही व्यय कर रही हो, तुम्हारे प्रयासों से समाज में कोई बदलाव आनेवाला नहीं है। "
मेरे ब्लॉग पे आयें वहाँ भी आप को ऐसी टिप्पणी मिलेगी.
कहीं ऐसा तो नहीं की हर ब्लोगर अपने काम को महान और दूसरों के काम को बेकार कहने की कोशिश कर रहा है?
.
जब तक इमानदार ब्लोगिंग और टिप्पणी नहीं होगी ,तब तक हालात नहीं बदलेंगे..

Sushil Bakliwal said...

निःसंदेह हमारे दायरे सीमित हैं किन्तु कभी अंग्रेजी शासनकाल में क्रांतिकारियों के दायरे भी शुरुआत में तो शायद इससे भी अधिक सीमित हुआ करते थे किन्तु उनकी वही छोटी सी लौ पहले मशाल बनी और फिर दावानल बनते हुए अंग्रेजों से देश को गुलामी से आजाद करवाकर ही थमी । इसलिये सिंधु की ओर चलते जाने का हम बिंदुओं का यब प्रयास भी सार्थकता के किसी वृहद दायरे तक पहुँच तो अवश्य ही रहा होगा ।

रवीन्द्र प्रभात said...

दिव्या जी,

प्रयास परिणाम का द्योतक होता है और आप जिस तरह का प्रयास कर रही हैं वह कम सराहनीय नहीं है , ब्लॉग एक सार्वजनिक मंच का स्वरुप ग्रहण कर चुका है . आप जो लिखती हैं उसे पूरी दुनिया अपने अंतर्मन में आत्मसात करता है, उसकी चर्चा मीडिया में होती है, बस जरूरत है इस माध्यम को गाँव की और लेकर चलने की ताकि हिंदी ब्लोगिंग आम जन से पूरी तरह जुड़ सके .अजित गुप्ता जी ने विल्कुल सही कहा है कि कल तक सैकड़ों लोग लिख रहे थे आज हजारों या लाखों लिख रहे हैं। कल करोड़ों लिखेंगे तो परिवर्तन तो लाजिमी है।

क्योंकि परिवर्तन दुनिया का आईना है इसलिए हर वर्ष परिस्थितियाँ बदली हुई होती है । परिस्थितियों का अंतर्द्वंद्व , सोचने-समझने का नज़रिया, वैचारिक दृष्टिकोण और कहने की शैली में बदलाव साफ़ दिखाई देता है ।

ashish said...

ब्लॉग पढना भले ही अभी कम लोगों की जद में हो लेकिन ऐसा कहना की अभिव्यक्ति व्यर्थ जाती है , बेबुनियाद है . ब्लॉग , अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन कर उभरा है और समाज में शनैः शनैः इसका प्रभाव बढेगा ही . सुन्दर लेख के लिए आभार .

गिरधारी खंकरियाल said...

well beginning is half done ! प्रारंभ अच्छा हो तो अंत भी अच्छा होगा निश्चित है

दिवस said...

दिव्या जी बात तो सही है कि ऐसे प्रयास कुछ गिने चुने लोगों तक ही पहुँचते हैं| क्योंकि १२५ करोड़ के देश में केवल ढाई तीन करोड़ लोग ही हैं जो इन्टरनेट का निरंतर उपयोग करते हैं| ऐसे में इतना छोटा प्रतिशत वर्ग ही है जो इन विचारों को पढ़ पाता है| दूसरी तरफ देश की युवा पीढ़ी को अब इस प्रकार के ब्लोग्स पसंद भी नहीं आते| उन्हें इन्टरनेट पर चैटिंग करने या फिल्म डाउनलोड करने से फुर्सत मिले तब तो कुछ काम करें| जब मै कौलेग में था तो बहुत से तो ऐसे भी थे जिनका अपना ई-मेल अकाउंट भी नहीं था| किन्तु फिर भी आपका ये प्रयास निरंतर जारी रखने चाहिए| आपका सोचना सही है कि यहाँ एक Geometrical Progression की संभावना है| कुछ तो करना ही है| क्यों कि हम जानते हैं कि Something is better than Nothing. आज का Something कल का Everythingबनेगा|

दिव्या जी मुझे आचार्य विष्णु गुप्त (चाणक्य) का एक कथन याद है कि "अन्धकार का साम्राज्य बहुत विशाल होता है, सहस्त्रों सूर्यों का तेज़ भी उसे नष्ट करने में असक्षम है, फिर भी एक दीपक बुझते दम तक अँधेरे से जूझता रहता है, क्यों कि वही उसका धर्म है|" अत: आप भी अपना धर्म निभाती रहें, आपके प्रयास अवश्य सफल होंगे| हम भी आपके साथ हैं| हमें इसी प्रकार अपने विचारों से लाभान्वित करती रहें|

धन्यवाद|

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

दिव्या जी, नववर्ष की सुभकामनाएँ ... शायद यही सच है ... आपकी पाठिका राधिका गलत नहीं बोली है .. दायरा बहुत सिमित है ... पर हाँ, कोशिश ज़ारी रहनी चाहिए ...

Unknown said...

आपने अच्छा जवाब दिया है. कहते हैं कि बात अगर पूरे कुनबे में फैलानी हो तो पत्नी को बता दो. या फिर किसी अन्य महिला को. मेरा कहने का मतलब है कि बात एक से ही फैलना शुरू करती है और सब तक पहुँच जाती है. हो सकता है कि आज हम लोग कम लोगों तक पहुँच रहे हैं. लेकिन आने वाला टाइम सेम नहीं रहेगा. बदलेगा.

सम्वेदना के स्वर said...

हम तो आशवस्त हो चलें हैं कि ब्लोग और इंटरनैट की यह दुनिया लोकतंत्र का पाचंवा खम्बा बन ही चुका है, मुख्यधारा का मीडिया जब कारपोरेट और सत्ता के द्वारा संचालित हो रहा है तो जनभावनाओं की असली प्रतिनिधित्व यहीं हो रहा है।

कौन सही कह रहा है और कौन गलत, ये तो सापेक्षिक बातें है...असली मज़ा यही है कि हर किसी को कहने का हक है!

सुज्ञ said...

अच्छे विचारों का प्रभाव तत्काल समाज पर नहीं हो जाता, वे बस वातावरण में बिखरे उत्प्रेरक जलवाष्प-अणु की तरह कार्य करते है, जिस किसी वस्तु में शीत-गुण हो, स्पर्श होते है, चिपक कर जल-बिन्दु का रूप ग्रहण कर लेते है।

गांधी-विचारों को सफ़ल होने में एक पूरा का पूरा गांधी-जीवन लग गया था। कुछ भी तत्काल नहीं हो जाता, और न असर दिखाई देता है। बस शनै शनै होता रहता है एक धीमे विकास की तरह। पर योगदान सर्वथा निष्फल कभी नहीं जाता। हाँ, परिणाम वांछित भी हो सकते है, और अवांछित भी।

योगदानकर्ता के अच्छे विचारों के साथ उसके मानवीय दुर्गुण भी प्रस्फुटित होकर, उन विचारों के साथ वातावरण में प्रसारित होते है। ब्लॉगर के अपने अहं, पाठकों का मोह, विवादप्रियता, प्रशंसको के प्रति सहज रूचि, आलोचकों के प्रति सहज अरूचि, विचारों में छुपी पूर्वाग्रंथियां, परिणामों की अधीरता आदि दुर्गुण भी सद्विचारों को आत्मसात करने में बाधक बनते रहते है।

ब्लॉगर योगदान कर्ता को धेर्य सहित बस हितबुद्धि और निर्पेक्ष भाव से सद्विचारों का प्रसारण करते रहना चाहिए।

सञ्जय झा said...

'SUGYA-RAJHANS' SE SAHMATI....

PRANAM....

नया सवेरा said...

... gambheer maslaa ... saarthak charchaa ... sakaaraatmak soch-vichaar ke saath lekhan jaaree rakhen !!

डा० अमर कुमार said...


मनोविनोद की अपनी हदें होती हैं, ऎसे ब्लॉग को अपने समय का थोड़ा हिस्सा देते हुये भी हम बहुत कुछ सकारात्मक दे सकते हैं.. और देना चाहिये । बुद्धिजीवी कहलाने का दम भरे वाले तबके के अधिकाँश सदस्य समाजिक सरोकारों को लेकर अचेत हैं । हमें इससे ऊपर उठना होगा... इसके लिये समय असमय एक दूसरे को सुधार की सँभावनायें भी दिखाते रहना होगा । यह तभी सँभव है, जब हम आत्मश्लाघा की चौंध से बाहर आयें । ब्लॉगिंग में वैचारिक क्राँति की इतनी तीव्र सँभावनायें हैं, तानाशाही तँत्र एवँ कम्यूनिस्ट देश इसे बैन करने में ही अपनी खैर मानते हैं । आख़िर यह विचारों के त्वरित आदान प्रदान का अनोखा मँच जो है ।

अरुण चन्द्र रॉय said...

यदि इंटरनेट यूजर्स के बीच भी हम सार्थक बात पहुंचा सके तो बड़ी उपलब्धि होगी हिंदी ब्लॉग्गिंग की... या ब्लॉग्गिंग की... बात निकल रही तो कहीं ना कहीं तक पहुचेंगी ही.. थोडा वक्त लगेगा इसे दिशा पकड़ने में..

प्रवीण पाण्डेय said...

निश्चय ही फैल रहे हैं, भले ही किसी भी मात्रा में।

राज भाटिय़ा said...

दिव्या जी, नमस्कार. मत भुले यह समुंदर भी एक एक बुंद से ही बना हे, एह बुंद काफ़ी होती हे हलचल पेदा करने के लिये, अफ़गाहे केसे फ़ेलती हे? वो भी तो किसी एक से शुरु होती हे, जेसे मुर्तिया दुध पी रही हे रातो रात पुरे विश्व मै फ़ेल गई यह अफ़गाह, बहुत हे एक बुंद समुंदर को हिलाने के लिये, आप लगी रहे हिम्मत ना हारे, अणू की एक बुंद की काफ़ी हे

जयकृष्ण राय तुषार said...

dr.divyaji aap jo kar rahi hain.vo sarahniya hai.mai radhika se bilkul sahmat nahin hun.pyas lagne per ek chullu pani ki jarorat hoti hai samandar ki nahin.nadi ki visalta aur gahrai dekhkar bhi navik kisi ko bachane se nahin darta hai.mandir ke ghanti ki aavaj drum ke shor se adhik prabhav rakhti hai.thanks with regards

अजय कुमार झा said...

दिव्या जी ,
बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाया है आपने , मगर यकीनन मुझे तो पूरी उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि आने वाले समय में यहां लिखा पढा जो भी जाएगा वो बहुत कुछ बदलेगा । एक छोटा सा उदाहरण देता हूं ..यदि मुझे ही ये कह दिया जाए कि बेधडक लिख दूं और मेरी नौकरी पर कोई आंच नहीं आएगी तो यकीन मानें , बखिया उधेड दूं कुछ ही दिनों में और ऐसा ही शायद और भी लोग सोच रहे होंगे । समय आनें दीजीए क्रांति तो आएगी ही और उसमें शब्दों का महत्व भी होगा ही ।

मेरा नया ठिकाना

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

'kaun kahta hai asman me chhed ho nahi sakta
ek patthar to tabiyat se uchhalo yaron'
ham sabko to isi vishvas ke sath likhte jana hai!

डॉ टी एस दराल said...

निश्चित ही पहुँच रहा है । लेकिन एक सीमित मात्रा में । अक्सर मुद्दों पर उठाई गई बात उन लोगों तक नहीं पहुँच सकती जिनके बारे में लिखा जा रहा है । जैसे आतंकवाद , धर्म , भृष्टाचार आदि मुद्दे हम स्वयं ही डिस्कस कर लेते हैं लेकिन असली गुनहगार क्या ब्लोगिंग करते हैं ।
फिर भी प्रयास जारी रहना चाहिए । क्योंकि बूँद बूँद से ही सागर बनता है ।

Dr Varsha Singh said...

यह एक सोशल नेटवर्किंग है। यह इंसान को इंसान से जोड़ता है। इसे ही ब्लॉगिंग का सबसे बड़ा सकारात्मक योगदान मानना चाहिए।

उपेन्द्र नाथ said...

दिव्या जी, हिंदी ब्लोगिंग का ये शुरूआती दौर है... आवाज तो गूँज रही है बस थोड़ा बिस्तृत रूप लेने में समय है... लेकिन ये भी आवाज नकारने योग्य नहीं...

Unknown said...

मैं तो शुरु से ही इस बात का हिमायती रहा हूं कि लगन एवं समर्पण से किया गया ब्लॉगिंग कार्य, कभी न कभी अपना असर अवश्य दिखाता है, शुरुआत में एक सीमित दायरे में फ़िर धीरे-धीरे दावानल के रुप में…

Bharat Bhushan said...

दिव्या जी आपके विचार मुझ तक पहुँचे हैं. साफ़ है कि आपका विचार फैला है. ब्लॉग का पहला कार्य यह अहसास है कि आपने अपनी बात कह दी. इसे विरेचन (catharsis) कहा जाता है. यह सकारात्मक पक्ष है. दूसरे यह है कि समाज में जा कर व्यक्तिगत संपर्क में कार्य करना एक अलग कार्यकलाप है जो अधिक सशक्त होता है. इसमें संदेह नहीं.

महेन्‍द्र वर्मा said...

ब्लॉग लेखन और पठन भले ही अभी सीमित दायरे में है लेकिन समय के साथ-साथ इसका विस्तार होता जाएगा और समाज के अधिक से अधिक लोगों तक इसके विचार पहुंचेंगे।

कोई भी लेखन व्यर्थ नहीं जाता। शब्दों की उर्जा कभी न कभी अपना परिणाम अवश्य प्रदर्शित करेगी, भले ही इसमें समय लगे।

Gopal Mishra said...

दुनिया न बदले न सही पर यदि हमारे प्रयत्न से किसी एक व्यक्ति का भी भला हो तो हमारा प्रयत्न सार्थक हो जाता है. Shakespeare ने दुनिया को एक stage कहा है और दुनियावालों को कलाकार और अगर सभी कलाकार अपना-अपना role ठीक से निभाएंगे तो picture को hit होने से कोई नहीं रोक सकता. Friends, let’s contribute our bit and everything will be fine

रचना दीक्षित said...

एक साथ समाज परिवर्तित हो जायेगा, शायद अतिश्योक्ति होगी. सामजिक परिवर्तनों की गति तो धीमी ही होती है. ब्लॉगिंग में भी कुछ अच्छे होंगे, तो कुछ स्तरहीन भी होंगे. पर यह सत्य है की सामूहिक प्रयास जागरूकता का साधन तो अवश्य ही बनेगा एक न एक दिन. बूँद बूँद ही अथाह सागर को जन्म देगी.

Unknown said...

क्या हमारे प्रयत्न व्यर्थ हैं ?
बिल्कुल नहीं। शायद हर समय सफ़लता नहीं मिलती पर काम व्यर्थ कभी नहीं।

Deepak Saini said...

अच्छा लिखा हुआ हमेशा फैलता है। हमारे जो भी विचार हम ब्लाग पर डालते है उन्हे सीमित लोग पढते है परन्तु जो उनके मन को कुरेदता है वो अपने मित्रो को बताता है और वो अपने मित्रो को, ये मेरा अनुभव है
इसलिए हमारा लिखा बेकार नही जायेगा।

मनोज भारती said...

सम्वेदना के स्वर से सहमत कि ब्लॉग जगत लोकतंत्र का पाँचवाँ खम्बा बन रहा है । अपने विचार अभिव्यक्त करती रहें, ये ना सोचें कि उनसे कोई प्रभावित हो रहा है या नहीं । जब भी कोई विचार पढ़ा जाता है, तो वह पाठक के मन में एक बीज बौ देता है, जो समय के साथ अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित होता रहता है,,व्यक्ति -व्यक्ति के बदलने पर ही क्रांतियाँ होती हैं ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ब्लाग के माध्यम से हमारा संदेश ब्लागरस तक भी पहुंचे तो गनीमत समझिए :)

Rohit Singh said...

दिव्याजी कोई भी शुरुआथ छोटी ही होती है। ये ठीक है कि अधिकतर आबादी तक इंटरनेट नहीं है, जिनके पास है वो निरंतर ब्लॉग पर नहीं आते। पर ये सोचना कि इसका असर नहीं होता गलत है। देखिए शुरुआत किस तरह से हुई है इसका उदारहण देता हूं।
ये डायरी नहीं है
पहले एक डायरी कहलाई ब्लॉग। पर डायरी और इसमें अंतर है। आप डायरी मैं वो हर अच्छी बुरी बात लिखते हैं अपने से जुड़ी जिसे आपके अलावा कोई नहीं जानता। मगर ब्लॉग अब ऐसा नहीं है।
2
अब देखिए लोग पहले एक दूसरे से मिलते नहीं थे। अब अपने दड़बे से निकलने लगे हैं लोग। एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं ब्लॉग के बहाने। यानि विचारों का संप्रेषण।
3
अब ब्लॉग मीटिंग में 50 से ज्यादा लोग जुटने लगे हैं। यानि विचार एकसाथ एकजुट होने लगे हैं। जहां इतने विचार जुटने लगेंगे तो तय है किसी न किसी समय बेहतरीन विचारों का विस्फोट भी होगा।
4
आज 100 ब्लॉगर निरतंर सक्रिय हैं। इसका मतलब उनके साथ जुड़े कम से कम 500 लोग ब्लॉग पर लिखते हैं हफ्तावार। यानि कि सीधे-सीधे 10,000 लोग ब्लॉग से हर महीने किसी न किसी तरह से जुड़े रहते हैं।
5
ब्लॉग पर अब अखबार ही नहीं टीवी की भी नजर होती है। जिससे वहां कि खबर भी लग जाती है जहां कि खबर देश नहीं जान पाता।
6
हिंदी ब्लॉग का असर होने लगा है। शुद्ध हिंदी के ब्लॉग पर शुद्ध अंग्रेजी के लोग अपने नए प्रयोग या प्रोडेक्ट की समीक्षा लिखने का आग्रह करने लगे हैं। हालांकि ये भी महज एक फीसती है। पर शुरुआत तो हुई। अंग्रेजी का विश्व मीडिया हिंदी ब्लॉग को नोटिस लेने लगा है। ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, जबकि मैं कोई बड़ा ब्लॉगर या पत्रकार नहीं हूं।


तो ये सोचना कि कोई फायदा नहीं बिल्कुल गलत है। आप इधर उधर की न सोचें बल्कि सरल शब्दों में जैसे विचार व्यक्त करती हैं उन्हें लिखती रहें।

मेरी एक पुरानी पोस्ट भी है.....इसी से मिलती जुलती

http://boletobindas.blogspot.com/2010/04/hindi-blog.html

जिस पर मैने कहा था कि समय हमारे कदमों को तलाशेगा। पर मजेदार बात ये है कि हम ही इतिहास बना रहे हैं तो क्या कहें।
हां लिखिए बिंदास.......

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर एवं सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्‍न भी ...लेकिन यकीन रखिये यह प्रयास व्‍यर्थ नहीं जाएगा ..।

G Vishwanath said...

दिव्याजी,

मेरी टिप्पणी का एक अंश
------------------------------
क्या हमारे प्रयत्न व्यर्थ हैं ?
------------------------------
========
बिल्कुल नहीं। शायद हर समय सफ़लता नहीं मिलती पर काम व्यर्थ कभी नहीं।
January 4, 2011 9:35 AM
=========

Poorviyaajee की टिप्पनी का एक अंश
क्या हमारे प्रयत्न व्यर्थ हैं ?
बिल्कुल नहीं। शायद हर समय सफ़लता नहीं मिलती पर काम व्यर्थ कभी नहीं।
January 4, 2011 9:02 PM
==============

अजीब इत्तेफ़ाक है!
हम दोनों का सोच भी एक और अभिव्यक्ति के शब्द भी एक!

पूर्वीयाजी को हमारा नमन
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

P.N. Subramanian said...

हम प्रयत्नशील रहें.

amit kumar srivastava said...

उत्साह बढाता लेख ।बधाई ।

SATYA said...

ब्लॉग अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन कर उभरा है,

दिव्यांशु भारद्वाज said...

ब्लॉग पिछले दशक की बड़ी उपलब्धि है। अभी यह शैशवावस्था में है। जल्द ही इसका विकास होगा। कर्म किए जाइए फल की चिंता नहीं किजिए।

सूबेदार said...

दिब्या जी नमस्ते आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है ये समुद्र में बुद के सामान तो है लेकिन ब्लॉग इस समय परिवर्तन का वाहक भले न बन सके लेकिन समाज को प्रभावित तो करता ही है इसे नाकारा भी नहीं जा सकता, अक्षर जो क्षय नहीं यानि ब्रहमांड में वह रहता ही रहता है इसलिए कोई भी कार्य जो अच्छे मन से किया जाता है वह वायुमंडल को प्रभावित करता ही है.

अजय कुमार said...

जरूर पहुंच रहा है ,हमारा प्रयास चलते रहना चाहिये ।

वाणी गीत said...

प्रयास छोटे पैमाने पर कारगर होते हुए ही एक वृहद् रूप लेते हैं ...दीप से दीप जलते हैं और उजियारा चहुँ और ...

सार्थक प्रयास ...!

Pahal a milestone said...

ब्लॉग पर भटकते विकृत मानसिकता वाले भाई -- कृपया सावधान रहिये इनसे.

paka yeh lekh pada or dukh bhi hua ki log is tarah ki mansikta bhi rakhten hen lekin mujhe nahi lagta ki ap jesi lekhika ko koi apne lakshya se diga sakata he. aap lekhon ke madhyam se jo roshni prakashit kar rahin he use aap prakashit karte jayega aese logon ki jamat to matr bhart me hi melege jo kisi ki kamyabi,shohrat or popularity jalten he. ap apne lekh ko lihte chalye jalne wale to jalten rahenge..

शोभना चौरे said...

दिव्याजी
पहले मै भी ऐसा ही सोचती थी कितु रोज रोज नये और सकारात्मक विचार पढ़कर मैंने अपने आप में बदलाव पाया और यही" कर्म की सार्थकता "लगी |
आप खूब लिखती रहे और सब लोग भी लिखते रहे अच्छा जब मेरे जैसी उम्रदराज के विचारो में सकारात्मक परिवर्तन आ सकते है है तो युवा लोग तो इसे जल्दी ही ग्रहण करेंगे |
बाकि अजितजी की टिप्पणी से पूर्णत सहमत |
शुभकामनाये

AK said...

ब्लॉग की सार्थकता और सशक्ता वाकई एक ज्वलंत मसला है

माननीया लेखिका एवं ब्लॉग जनित बाद के बहस से निम्न 2 मुद्दे उभरते हैं

१ इन्टरनेट एवं इन्टरनेट आधारित ब्लॉग की पहुँच

२ एकल प्रयास का औचित्य



१ इन्टरनेट एवं इन्टरनेट आधारित ब्लॉग की पहुँच

लेखिका की ब्लॉग के ६१ प्रतिउत्तर हैं और हर प्रत्युत्तर के लिए २ पाठक और लगायें तो 61X3 =183 यानि तक़रीबन २०० पाठक हैं . अब आप कागज़ के आविष्कार के पहले ले युग के बारे में क्या कहेंगे जब ताड पत्र पर लिखा जाता था और ऐसी पाण्डुलिपि के बमुश्किल १० -२० पाठक ही होते थे . बाकी लोगों को तो श्रव्य माध्यम से ही बताया जाता था. हमारे वेद भी लेखन कला के उद्भव के पहले ही लिखे गए थे . कई सौ सालों तक वेद सम्प्रेषण वाचक परम्परा द्वारा ही कुछ चुनिन्दा लोगों द्वारा किया गया और उन्हें सुरक्षित रखा गया .
अगर वेद के रचनाकार भी ऐसी उहापोह में रहते - कितने पाठक या सुनने वाले मिलते तो हो गया था बंटाधार .
संस्कृत व्याकरण में इसी कारण सूत्र का प्रयोग हुआ है ( महेश्वर सूत्र एवं प्रत्याहार ) . अल = समस्त स्वर + व्यंजन , हल = समस्त व्यंजन , चय = सभी वर्ग के प्रथम अक्षर .
फिर सूरदास का आप क्या कहते - वो तो लिख ही नहीं सकते थे पर क्या उन्होंने अपने ह्रदय के उदगार को लोगों के साथ नहीं बांटा ? और कबीर ?? वो लिखना नहीं जानते थे - बस वाचक परम्परा जानते थे .

बहुत से गावों में आबादी दौ सौ के आस पास ही होती है . क्या वहां लोग अपने मत नहीं रखते हैं ?

भगवान् बुद्ध का आप क्या कहेंगे - पहला प्रवचन सारनाथ में उन्होंने बस पांच लोगों को दिया था .
वैसे भी हमारे यहाँ पांच की परम्परा रही है . पञ्च में भगवान का वास माना जाता रहा है.
पंचतत्व सा पवित्र और सर्व समाहित करने वाला .

अब आते हैं ब्लॉग और ब्लॉगर पर : कई ब्लॉगर करोड़ पति हैं

http://ww-success.com/blog/index.php/millionaire-bloggers/

सवाल महज धन उपार्जन का नहीं है . उनकी ब्लॉग की पैठ लाखों करोड़ों लोगों में थी , तभी उन्होंने इतना धन उपार्जन किया .

२ एकल प्रयास का औचित्य

दवा की एक बूँद से ही जीवन मिल जाता है . इससे ज्यादा क्या कहा जाये .

अँधेरा कितना भी घना क्यों ना हो , रौशनी की एक लौ से भाग जाती है

अब दशरथ मांझी को ही लीजये . अकेले दम पहाड़ को तोड़ बस छैनी हथोडी से सड़क बना दी .
और 80 km की दूरी को घटा कर ३ km कर दिया

http://achchikhabar.blogspot.com/2010/12/dashrath-manjhi-mountain-man-hindi.html

http://en.wikipedia.org/wiki/Dashrath_Manjhi

एकल प्रयास हो या कोटिश प्रयास - असली बात होती है जज्बे की . सच एक कहे या करोड़ उस से सच की सत्यता नहीं बदलती . उसकी स्वीकार्यता जरूर बदल सकती है . पर झूठ को लाखों जुबान का सहारा चाहिए सच को नहीं .
सच कहिये , निर्भीक हो के कहिये .

निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा
मूल-कमल दृढ़-आसन बांधूं जी
उल्‍टी पवन चढ़ाऊंगा ।।
निर्भय निर्गुण ।।
मन-ममता को थिर कर लाऊं जी
पांचों तट मिलाऊंगा जी
निर्भय निर्गुण ।।
( संत कबीर )
पांच लोगों ने पढ़ लिया , तो पांचों तट मिल ही जायंगे .

और जहाँ तक बात जज्बे की है तो दुष्यंत कुमार की दो ग़ज़लें सब कह देती हैं


ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारों
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालोम यारों

दर्दे दिल वक़्त को पैगाम भी पहुचायेगा
इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारों

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारों

आज सीवान को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वे ख़त तो निकालो यारो

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सम्भालों यारों

कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों

लोग कहते थे की ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारों



इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है

एक चिंगारी कही से ढून्ढ लायो दोस्तों
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है

एक खँडहर के ह्रदय सी ,एक जंगली फूल सी
आदमी की पीर गूंगी ही सही गाती तो है

एक चादर सांझ ने सारे शहर पर डाल दी
इस अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है

दुःख नहीं कोई अब उपलब्धियों के नाम पर
कुछ हो ना हो आकाश सी छाती तो है



जज्बा हौसला और सच - ज़िन्दगी का सच भी है और ब्लॉग का भी

ZEAL said...

.

AK Sir ,

Thanks for this wonderful comment . It truly is enlightening .

regards,

.

Kailash Sharma said...

ब्लॉग पर उठाये गए प्रश्नों का दायरा केवल पढने वालों तक ही सीमित नहीं होता. अगर ब्लॉग में उठाये गए प्रश्न पढने वाले को झंझोड़ते हैं तो वह निश्चय ही उन्हें अपने परिवार और मित्रों के साथ बांटता है.यह सही है कि इसका प्रसार टी वी और समाचार पत्रों की तुलना मैं कम होता है,लेकिन सही दिशा में किया गया एक प्रयास भी कम प्रशंशनीय नहीं है.

Anonymous said...

fantastic issues altogether, you simply won a emblem new
reader. What could you suggest in regards to your submit
that you made a few days in the past? Any sure?

My web blog; source