Friday, January 14, 2011

ब्लॉगजगत का एक अत्यंत दुखद पहलु.

ये एक मानवीय स्वभाव है की अक्सर किसी को किसी की कोई बात बुरी लग जाती है और दुःख पहुँचता हैफिर विवाद होता है , और फिर रंजिश , फिर दूसरों पर अभद्र और अशिष्ट लांछन लगानाकभी कभी ये सिलसिला थमता ही नहींकुछ व्यक्ति बदले की भावना से कब इस मनोविकार से ग्रस्त हो जाते हैं , उन्हें पता ही नहीं चलताऐसे व्यक्तियों के जीवन का बस एक ही प्रयोजन रह जाता है , किसी भी तरह दुसरे व्यक्ति को नीचा दिखानालेकिन ऐसा करते समय वे ये भूल जाते हैं की दुसरे का अपमान करते समय वे अपने ही संस्कारों और चरित्र का परिचय दे रहे होते हैं

ऐसे अवस्था में सबसे दुखद बात ये है की , कुछ गुट्बाज जो ऐसा मौक़ा तलाशते हैं की पुरानी रंजिश कैसे निभाई जाए , वो इनके साथ हाथ मिलाकर इनके नफरत की आग को हवा देते हैंविवाद में निष्पक्ष रह पाना शायद बहुत बड़ा गुण है फिर भी , विद्वान् पाठक अपने अनुभवों और समझ के अनुसार नीर छीर विभाजन कर ही लेता है

एक सप्ताह पूर्व एक विद्वान् ब्लोगर ने अपने ब्लॉग पर एक स्त्री के खिलाफ एक लेख लिखा जहाँ रंजिश निकालने वाले दुसरे विद्वान् ब्लोगर ने आकर उस स्त्री पर अनेकों अभद्र एवं अश्लील टिप्पणियां लिखींचूँकि लेखक और वो टिप्पणीकार एक ही गुट के थे , इसलिए उसकी टिप्पणियाँ वहां सजा कर रखी गयीं लेकिन जिन सभ्रांत पाठकों ने इस अश्लीलता का विरोध किया , उनकी टिप्पणियाँ वहाँ से डिलीट कर दी गयीं

एक ब्लोगर प्रवीण शाह जब उस लेख पर आये तो उन्हें उस कीचड-उछाल लेख से बहुत प्रेरणा मिली तथा उन्होंने एक कविता लिखी - " मुझे झगडे बहुत पसंद हैं , मैं अमन के पैगाम नहीं देता " इनकी पोस्ट पर जो टिप्पणियां आयीं उनमें से सभ्य टिप्पणियों को छोड़कर अशिष्ट एवं अश्लील टिप्पणियां डिलीट कर दी गयींलेकिन दुखद बात ये है की जिस लेख से उन्हें प्रेरणा मिली थी , उस लेख के ब्लोगर तथा मित्र टिप्पणीकार , जो एक स्त्री का तिरस्कार कर रहे थे , उनकी टिप्पणियां प्रवीण शाह ने डिलीट नहीं की तथा ट्रोफी की तरह सजा कर रखींक्या गुटबाजी लोगों के खून में समां गयी है?

मैं कोशिश करती हूँ की ऐसी टिपण्णी लिखूं जो किसी को दुःख दे , पूर्वाग्रहों से रहित हो , ईर्ष्या से मुक्त हो , किसी के मन के दुःख दे , भड़ास रहित हो तथा लेखक अथवा लेखिका के लिए प्रोत्साहन युक्त हो , तथा विषय की सार्थकता भी बढाए

लेकिन शायद टिपण्णी लिखने में मुझसे कहीं कोई गलती हो रही है , इसलिए प्रवीण शाह जैसे विद्वान् ब्लोगर ने अशिष्ट टिप्पणियों के साथ मेरी टिपण्णी को डिलीट करना उचित समझामैं नीचे हरे रंग में अपनी उस टिपण्णी को यहाँ प्रकाशित कर रही हूँ , कृपया उसे पढ़ें और बताएं , क्या यह अभद्र है ?, अश्लील है ? भड़ास है ? किसी का व्यक्तिगत अपमान है ? या इमानदार विचार है

आपके विचारों से मुझे मदद मिलेगी ये जानने में की आपको कैसी टिपण्णी पसंद है , और फिर आपके ब्लॉग पर टिपण्णी करते समय जरूरी सावधानियां बरतने में मुझे मदद मिलेगी

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प्रवीण जी ,

बहुत अच्छी लगी कविता एवं प्रेरणादायी भी लगी क्रोध के वशीभूत होकर कुछ लोग अत्यंत अभद्र एवं अश्लील टिप्पणियां करते हैं बदले की भावना के वशीभूत होकर होकर वो अपने नैतिक मूल्यों को तिलांजलि दे देते हैं

किसी भी स्त्री को सरेआम बदनाम करने में कुछ पुरुष अपनी मर्दानगी समझते हैं क्यूंकि जिस स्त्री का वो अपमान कर रहे होते हैं , वो उनकी अपनी माँ और बहन नहीं होती , इसलिए अश्लीलता से ओत-प्रोत टिपण्णी एवं लेख लिखकर मर्दानगी का परिचय देते हैं

बहुत अफ़सोस होता है ये देखकर की आजकल के पुरुष माता-पिता के दिए संस्कारों की तिलांजलि कैसे दे देते हैंजिसके घर माँ बेह्नेनें हों वो कैसे किसी अनजानी स्त्री को , साथी ब्लोगर को , किसी अनजान पुरुष की पत्नी को , किसी की बेटी को , और छोटे-छोटे बच्चों की माँ पर अभद्र एवं अश्लील टिपण्णी लिख सकता है ?

परिवार से बाहर की स्त्री को अपमानित करने का license , ये पुरुष कहाँ से लाते है ? स्त्री को अपमानित करते समय क्या ये अपने संस्कारों का परिचय नहीं दे रहे होते ?

बेहद खेदजनक है की यदि कोई लेखक एक साथी ब्लोगर पर अश्लील लेख लिखकर , लोगों को अभद्र टिप्पणियां लिखकर अपमानित करवाता है कलम का इतना दुरुपयोग पहले कभी नहीं देखा था

यदि आज के कुछ ब्लोगर स्त्रियों का इस तरह से अपमान करेंगे , तो समाज के लिया इनका क्या योगदान होगा ?
क्या इस विकृत मानसिकता के चलते हम समाज सुधार और विकास के बारे में कभी सोच भी सकेंगे ?

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आपके बहुमूल्य विचारों की अपेक्षा में..

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54 comments:

Arun sathi said...

गंदे लोग
गंदी पसंद

डैन्ट वरी

ओशो ने कहा है

प्रशंसा चहोगे तो निंदा मिलेगी..

सो....

Darshan Lal Baweja said...

बेहद शर्मनाक वाक्या.....

Deepak Saini said...

इस तरह के लेख एवं टिप्पणी लिख कर कुछ लोग अपनी तुच्छ मानसिकता और तुच्छ संस्कार का परिचय देते है।

हरीश प्रकाश गुप्त said...

सही कह रही हैं आप। ब्लाग पर लोग गुटबाजी में टिप्पणियाँ कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो गुटबाजी से निरपेक्ष रहकर तटस्थ और मर्यादित विचार प्रकट करते हैं। आपकी पोस्ट स्वतंत्र और निरपेक्ष ब्लागरों की भावना को बलवती करेगी।

आभार

Bharat Bhushan said...

ब्लॉगरों के समूह हैं और उनसे निष्पक्षता की उम्मीद करना ठीक नहीं. सभी अपने विचारों को इंटरनेट पर रख कर अच्छा महसूस करते हैं. पुरुष प्रधान समाज में जैसे पुरुष हो सकते हैं वे यहाँ भी मिलते हैं. अच्छे भी, बुरे भी.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Sach kahun Divya jee....kisi lady ke liye bure comments ya abhadra bhasha ke prayog ke liye hi sirf babela kyon...:(


ham bloggers ko kisi bhi tarah ke abhadra bhasha ke prayog se bachna chahiye....kyon ham apne personal life ka gussa yahan aakar dusre ke blog pe nikalne lagte hain...:)

बाल भवन जबलपुर said...

Dr.Divya Srivastava ji
sampoorn prakaran samajh ke likhoongaa

रश्मि प्रभा... said...

kai baar log kuch bhi kah jate hain ... mere vichaar mein use hataiye aur khamosh rahiye ... saath dene ko kai haath bhi to hote hain

एस एम् मासूम said...

दिव्या जी सत्य के आधार पे यदि कोई बात सामने राखी जाए तो असर दिखती है. समूह मैं रहके अच्छा काम करना सराहनीय है लेकिन गुटबाजी किसी अच्छे काम को रोकने के लिए करना या किसी व्यक्ति कि बेईज्ज़ती झूटी दलीलों के साथ करना निंदनीय है.
लेकिन हमारी बुरी आदत यह है कि हम स्वं गुटबाजी करते हैं लेकिन जब कोई और हमारे खिलाफ गुटबाजी करता है तो हम चिल्लाने लगते हैं. यही ना इंसाफी समाज मैं असंतुलन पैदा करती है.
किसी भी इज्ज़तदार स्त्री कि बेईज्ज़ती करना , निंदनीय और असहनीय है..
.आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने..

G Vishwanath said...

बुरे ब्लॉगों को पढो मत।
वहाँ गलती से भी जाना नहीं।
यदि किसी ने आपके बारे में ऐसा वैसा कुछ लिख भी दिया तो react मत करना।
आप react करती हैं इसलिए वे और भी लिखते हैं।
हाँ, कभी कभी आप भी अपने टिप्पणीकारों को snub करती हैं।
यदि उन्होंने कुछ बेतुकी बात कह दी तो उनको माफ़ करना सीखिए।
हर बात का करारा जवाब देना भी जरूरी नहीं।
जवाब देकर, आप संतुष्ट हो जाती होंगी, पर आप एक पाठक खो देंगी।
Instead of winning an argument, try to win over your opponent.

--Continued--

G Vishwanath said...

ब्लॉग जगत पर किसी का नियंत्रण संभव नहीं है।
बुरे ब्लॉग कुछ दिन तक चलेंगे, फ़िर अपने आप बन्द हो जाएंगे।
अच्छे और प्रबुद्ध पाठक भी वहाँ जाना बन्द कर देंगे।
आप लिखती रहिए, और इन मामलों पर अपना समय और उर्जा नष्ट न कीजिए।
कुछ महीने पहले, आपका साथ देने के कारण एक अनामी टिप्पणीकार ने मेरे बारे में भी किसी अन्य ब्लॉग पर कुछ अनाप शनाप लिख दिया।
हमने कोई उत्तर नहीं दिया। उस ब्लॉग्गर/टिप्पनीकार को यह भी पता नहीं है, कि क्या मैंने उस टिप्प्णी को पढी या नहीं।
केवल दो दिन तक इन्तजार किया, यह देखने के लिए, कि ब्लॉग्गर उस टिप्प्णी को हटाता है या नहीं।
टिप्प्णी हटी नहीं। हम उस ब्लॉग पर अब जाते ही नहीं। मुझे मालूम ही नहीं पडता के क्या मेरे बारे में और कुछ लिखा जा रहा है कि नहीं। और जानने में कोई रुचि भी नहीं है।
आप भी मेरी तरह बन जाइए। मोटे खाल वालों का कोई कुछ नहीं बिगाड सकता।
आपको मेरा उपदेश शायद पसन्द न आई हो, पर इससे ज्यादा मैं क्या कह सकता हूँ?
इस टिप्पणी को आप नहीं छापती, तो मैं बुरा नहीं मानूँगा।

शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

और हाँ, आपका Font Size हमें अच्छा लगा। पढना आसान हो गया है। पिछली पोस्टों में हमें पढने में कठिनाई होती थी।

Kunwar Kusumesh said...

दुःख की बात तो है ही परन्तु इससे भी ज़ियादा दुःख की बात है की ऐसी गंदी भाषा और मानसिकता वाले लोग अपने आपको अम्न पसंद और शांति प्रिय बताते है और कुछ साथी नाम और टिप्पणी की लालच में उनके साथ भी अक्सर दिख जाते है.वास्तव में ऐसे लोग अम्न पसंद नहीं अम्न के क़ातिल होते हैं पर कौन समझाए किसी को.

ZEAL said...

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@-मुकेश कुमार सिन्हा -

शायद आपने लेख को ठीक से पढ़ा नहीं , या फिर ठीक से समझा नहीं। यहाँ मुद्दा स्त्री और पुरुष का नहीं है। यहः विषय है गुटबाजी , जिसके चलते गुट्बाज लोग एक दुसरे के ब्लॉग पर पर रंजिश निकाल रहे हैं तथा अशिष्टता को बढ़ावा दे रहे हैं।

यदि कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष ब्लोगर अपने विचार इमानदारी से विषय पर रखता है, तो उसकी टिपण्णी गुटबाजी के चलते डिलीट कर दी जाती है।

ऊपर जो टिपण्णी मैंने हरे रंग में प्रकाशित की है , वो प्रवीण शाह जी ने डिलीट कर दी । कारण स्पष्ट है गुटबाजी । डिलीट ही करनी थी और selected लोगों की टिपण्णी प्रकाशित करनी है तो मोडरेशन लगाना चाहिए । कम से मेरा समय तो न व्यर्थ होता। फर्जी और बेनामी टिप्पणियों के साथ मेरी टिपण्णी डिलीट कर यूँ अपमान तो नहीं करना चाहिए।

समस्या ये है की मेरे जैसे स्वतंत्र ब्लोगर जो गुटबाजी की परंपरा नहीं निभाते , उन्हें यही नहीं पता चल पाता की कौन उनसे द्वेष रखता है और उनके ब्लॉग पर कमेन्ट लिखें अथवा नहीं.

प्रवीण शाह जी ने अपनी पिछली पोस्ट्स पर मेरी टिप्पणियां सजा कर रखी हुई थीं इसलिए पुनः टिपण्णी लिखने की भूल हुई मुझसे । यदि मुझे ज़रा भी अंदाजा होता की इस बार गुटबाजी के चलते ये मेरा कमेन्ट डिलीट करेंगे तो कभी भी इनके लेख पर अपना समय नष्ट नहीं करती।

पाठकों से निवेदन है कृपया ये भी बताते जायें की मेरी टिपण्णी का उनके लेखों पर स्वागत है अथवा नहीं , ताकि मैं भी अब लेख देखकर नहीं बल्कि लेखक देखकर कमेन्ट किया करूँ।

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ZEAL said...

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विश्वनाथ जी ,

आपने अपने बहुमूल्य विचार रखे , जिसके लिए धन्यवाद। लेकिन क्षमा कीजिएगा आपको प्रति टिपण्णी लिख रही रही हूँ, जो आपको पसंद नहीं है।

मुझे जो बात अनुचित लगती है या जहाँ जरूरी लगता है , वहां react करना जरूरी समझती हूँ। जब मैं समाज में हो रहे बलात्कार और भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ react करती हूँ तो अपने लेख पर आने वाले कॉमेंट्स पर react कैसे ना करूँ।

खून इतना ठंडा तो नहीं की react करना बंद कर दूँ।

लोग अपनी टिपण्णी बेधड़क लिखते हैं तो फिर प्रति टिप्पणियों से डरते क्यूँ हैं ? जो कमज़ोर हैं वो डरकर भाग जायेंगे। जो भिन्न विचारों का सम्मान करना जानते हैं वो आते रहेंगे।

किसी को जबरदस्ती खुश करना मेरी आदत नहीं। टिप्पणीकारों की संख्या कम न हो जाए इसलिए react करना छोड़ दूँ ? ये नहीं होगा।

मेरे लेख पर मेरे जैसे निर्भीक , निष्पक्ष और मोटी खाल वालों का ही स्वागत है। छुई-मुई की तरह बुरा मानने वाले कृपया दूरी बनाए रखें।

टिप्पणियों की संख्या कम हो सकती है लेकिन मेरे पाठक निरंतर बढेंगे।

एक मजेदार बात ये भी है की मुझसे द्वेष रखने वाले ही मेरा लेख सबसे पहले पढ़ते हैं । Thanks to Google stats।

विश्वानाथ जी मेरी प्रति-टिपण्णी से यदि आपको कष्ट हुआ हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ। लेकिन यदि आप वाकई में मोटी खाल वाले हैं तो आते रहेंगे मार्ग दर्शन के लिए।

आभार।

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पी.एस .भाकुनी said...

आप चले रहिये , ब्लॉगजगत में गुटबाजी एक दुर्भाग्यपूर्ण एवं चिंतनीय विषय है , जिसके चलते सार्थक एवं उपयोगी लेखन को नुक्सान हो सकता है और कही-न-कही अछे ब्लोगरों का मनोबल भी कमजोर हो सकता है, फिलहाल टी यही कहा जा सकता है की जो भी ब्लोगर या पोस्ट या फिर टिप्पणियां इस ब्लॉगजगत की गरिमा को ठेंस पहुँचl रहें हैं उनको अधिक हवा न दी जाय ..........

सदा said...

आपने बिल्‍कुल सही लिखा है आपकी बात से सहमत भी हैं ...और जो बात गलत लगे तो उसका विरोध करना ही चाहिये ....आपके लेखन के लिये शुभकामनायें आप अपने विचारों पर अडिग रहें ।

अजित गुप्ता का कोना said...

आपकी पोस्‍ट डायरेक्‍ट खुल नहीं रही है। ब्‍लाग जगत में हम तो स्‍वच्‍छ मन से टिप्‍पणी करते हैं, यह नहीं समझ पाते कि उस पोस्‍ट का कोई छिपा हुआ प्रहार भी है क्‍या? फिर लोग हम पर प्रहार कर देते हैं कि आपने उस पोस्‍ट पर टिप्‍पणी क्‍यों की? अब तो टिप्‍पणी करने से पूर्व सारा इतिहास भी जानना पड़ेगा क्‍या?

सञ्जय झा said...

adarniya g.viswanath ji se sahmat.....

oonki tippani se sahmat hote hue apke prati-tipanni se sahmat kyon nahi hua ja sakta?

sahitya sadhak bhi shabd-prapanchak ke jaal me phaste nazar aa rahe hain.....

aap bhi bare hoiye aur barappan dikhayen......
jahan waqt jaya hota dikhe oose nazarandaz karna
bhi chahiye.....

apne apne jad me rahte hue bhi apni had badhai ja sakti hai .....(kshma sahit)

pranam.

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...

ब्लोग जगत एक सोचे-समझे षड्यंत्र के अंतर्गत महिलाओं को बदनाम किया जाता है. रचना जी को निशाना बनाया गया. बहन दिव्या को निशाना बनाया गया. प्रश्न यह है की ऐसा क्यों किया जा रहा है. तुच्छ मानसिकता वाले पुरुषो को क्यों कुछ नहीं कहा जाता?

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...

ब्लोग जगत एक सोचे-समझे षड्यंत्र के अंतर्गत महिलाओं को बदनाम किया जाता है. रचना जी को निशाना बनाया गया. बहन दिव्या को निशाना बनाया गया. प्रश्न यह है की ऐसा क्यों किया जा रहा है. तुच्छ मानसिकता वाले पुरुषो को क्यों कुछ नहीं कहा जाता?
एक मुस्लिम ब्लोगर खुद को पता नही क्या समझता है. - हिन्दू महिला ब्लोगरों के ब्लोगों पर उछलता रहता है-विशेष बात यह ही की मुस्लिम महिला ब्लोगरों से "प्रेम" नहीं जताता. उसकी सारी मर्दानगी हिन्दू महिला ब्लोगरों के लिए है. चालाकी यह की कुछ महिलाओं को माँ बना रखा है. सब पर लाइन मारता है अपनी माँ की आयु की ब्लोगरों को भी नहीं छोड़ता. उनको i love u कहता है
अब यह प्यार कैसा होगा- बताने की जरूरत नहीं. क्या वह अपनी माँ के साथ भी अवैध संबंध बना सकता है ?

इसे कोई कुछ नही कहता. क्यों???????????????????/

मुकेश कुमार सिन्हा said...

:)........naraj nahi hoiye....chhota mota vyakti hoon! aur bas koshish karta hoon, aap log se kuchh seekhun hi...!!


kabhi bhi mere baaton se aapko dukh pahuche sorry!! advance me!!

aur haaan aap ek nahi 100 comment karen..mere blog pe ...........saare sir aankho pe..!! moderation bhi nahi rakhta main..!

G Vishwanath said...

Ha! Ha! Ha!
I enjoyed reading your rejoinder.
Don't worry. I am not offended.
I will keep reading your blog and will comment as often as possible.
You are an Iron Lady!
You don't need any advice from me on how to handle hostility.
Keep going.
Regards
G Vishwanath

राज भाटिय़ा said...

ऎसे लो कम हे , ओर सब इन्हे पहचान जाते हे धीरे धीरे ओर फ़िर खुद वा खुद इन से दुर चले जाते हे, लेकिन दुख जरुर होता हे,ऎसी बातो से, इस लिये मै ऎसे लोगो की तरफ़ ध्यान ही नही देता, ओर अगर कोई गाली गलोच कर जाये तो उस की टिपण्णी कभी नही मिटाता, क्योकि दुसरे पढने वालो को उस की मनसिकता तो पता चले.

राज भाटिय़ा said...

लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बहुत ही निंदनीय कृत्य है , अश्लील लेख अथवा अश्लील टिप्पड़ियाँ लिखना ---- विशेषकर महिलाओं के प्रति हमें मर्यादा और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए |

आपकी टिप्पड़ी बिलकुल सही है .....

ऐसे लोगों से दूर ही रहना अच्छा होगा |

पी.एस .भाकुनी said...

trying to comment but due to bad connectivity -
anable to process....
P.S.Bhakuni

ashish said...

गुटबंदी तो एक सार्वभौम सत्य है इस ब्लॉगजगत का . मुझे लगता है की आप अपना कम करते रहो ईमानदारी से , प्रशंसक और विरोधी तो मिलते ही रहेंगे . आप अच्छा कम कररही हो , ऐसे ही लिखती रहो . एकबात और विचारो को कभी कोई बंधकर रख नहीं पाया है.

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

मैं आदरणीय विश्वनाथ जी की टिप्पणियों से बाबस्ता रखता हूं। "रियेक्शन" करने की जगह फ़र्दा में वैसे लोगों को इगनोर करना ही मेरे हिसाब से सही रास्ता है। मेरा ब्लाग सिर्फ़ एक अच्छे समालोचक के कड़वे टिप्पणीयों पर कुर्बान होगा बनिस्बत कि सैकड़ों गुटबाज़ों के चिकनी चुपड़ी टिपपणियों पर। ब्लाग की दुनिया भी अच्छे और बुरे लोगों से भरी है अच्छे लोगों के साथ अच्छे लोग आज नहीं तो कल जुड़ेंगे ही,भद्दे कमेन्ट्स और बुरी लेखनी की कोई उम्र नहीं होती कम से कम जिस साहित्यिक दायरे में हमारी लेखनी सासें ले रही हैं साथ ही हमको अपनी तासीर बदलने की भी ज़रूरत नहीं है शालीन शब्दों में किसी को दर्पण दिखाने में मैं भी पीछे हटने वालों से नहीं हूं वरना हम अपने ही दिल को कैसे भरोसा दिला पायेंगे कि हम एक साहित्यकार हैं।

गिरधारी खंकरियाल said...

दिव्या जी यदि इसी तरह की बहस आमने सामने हो जैसा की वर्णित है तो तब क्या होता? संभवतः लौह वय्क्तित्वा लड़ पड़ेगा और समस्या गहरी हो जायगी . ये तो ब्लॉग पर ही है. ना जाने कितने और लोग होंगे इस तरह के, जिन तक आप न पहुँच पाई हों. ऐसी सामग्री यदि पढ़ भी ली हो तो उपेक्षा करना ही हितकर होगा . G विश्नाथ जी ठीक कहरहे हैं.

Darshan Lal Baweja said...

कल 9 बजे सुबह देखे
विज्ञान पहेली -4 Science Quiz -4 (और Science Quiz -3 का उत्तर)

केवल राम said...

बहुत शर्नाक स्थिति है यह ...ब्लॉगजगत में हम विचारों का आदान प्रदान करने आये हैं ...पर ऐसी बातें पढ़कर दिल को ठेस पहुँचती है ..

Pahal a milestone said...

i likd yoz spirit..i was lso stunned wen read dose commentz..well...divya..Blog has made 4 sharing nd writing yoz thoughtz wdot ny restriction..no1 hava ryt 2 gt annoyd..let it be..criticism is anothr way to cherish yoz qualitiez:)

प्रवीण पाण्डेय said...

गुटीय दलदल और पारस्परिक आक्षेपों से ब्लॉग जगत को उबरना होगा।

महेन्‍द्र वर्मा said...

आपने अपनी टिप्पणी में उचित बातें ही लिखी हैं।

दूषित मानसिकता वालों से दूर रहना ही अच्छा, उनकी उपेक्षा की जानी चाहिए।
ऐसे संदर्भों में उपेक्षा से बड़ी कोई सजा नहीं होती।

Sunil Kumar said...

aise logon ko ignore karna padega nahi to sara samaya jabab dene men nikal jayga aur ham jaise loge vanchit rah jayenge kuchh accha padne se ..

डॉ टी एस दराल said...

इन्हें इग्नोर कीजिये दिव्या जी ।
त्यौहारों का मौसम है , एन्जॉय कीजिये ।
शुभकामनायें ।

Gopal Mishra said...

I too agree with Vishwanath jee..let's avoid such blogs for once and for all.

Kailash Sharma said...

मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ..अश्लील या अभद्र टिप्पणी करना किसी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता.

वीरेंद्र सिंह said...

दिव्या जी......ब्लॉग पर अश्लील भाषा का प्रयोग हर हाल में निंदनीय है। इसीलिए इसकी जितनी भी निंदा की जाए उतनी ही कम है। साथ ही ब्लॉग गुटबाजी भी कोई अच्छा संकेत नहीं है।

मनोज कुमार said...

मैंने दोनों उद्धृत पोस्ट नहीं पढी, इसलिए आपकी टिप्पणी पर टिप्पणी करना उचित नहीं समझता।
दूसरी बात कि जहां, your comment will be published aafter approval वहां जाना कम कर रहा हूं। वहां लगता है सरकार की दरवार में अर्ज़ी दे दिया हूं, अब क़बूल होगी या नहीं उनकी मर्ज़ी!
तीसरा, लोगों का मन न दुखे वाली आपकी बात अच्छी लगी, उससे सहमत भी हूं। और इसीलिए मैं तो बस यही लिखता हूं, “बहुत अच्छी पोस्ट, हार्दिक शुभकामनाएं।”

मनोज कुमार said...

अरे! यहां भी तो वही हाल है .... ‘Your comment will be visible after approval.’

nilesh mathur said...

टिप्पणी में तो कुछ गलत नहीं है! अच्छे बुरे लोग हर जगह मौजूद हैं, उनका किया भी क्या जा सकता है, बस हमें उनका बहिस्कार करना चाहिए!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बुरे को घर तक पहुंचाना ही चाहिये.

जयकृष्ण राय तुषार said...

d.divyaji goswami tulsidasji tak ko neecha dikhane me us samaj ke log peechhe nahin the lekin aaj goswamiji ke saman koi nahin hai ham aapke saath hain.jinko tamij aur tahjeeb nasib nahin ho unko lekhak kahlane ka bhi haq nahin hai

ZEAL said...

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@- मनोज कुमार -

आपने विषय पर तो टिपण्णी की नहीं , सिर्फ मोडरेशन के खिलाफ अपनी भड़ास निकाली है। लोग मेरे खिलाफ अभद्र टिपण्णी दूसरों के ब्लॉग के ब्लॉग पर लिखते हैं। आप क्या चाहते हैं, मोडरेशन हटा कर सारी अभद्र और अश्लील टिपण्णी यहीं अपने ब्लॉग पर आमंत्रित कर लूँ ?


आपने बताया की आप सभी ब्लॉग पर यही लिखते हैं -- " अच्छा लेख -हार्दिक शुभकामनाएं "......यह बताने के लिए आपका आभार। भविष्य में यही टिपण्णी आपके ब्लॉग पर लिखने की कोशिश करुँगी।

आभार।

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ZEAL said...

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कुछ पाठकों ने लेख को ध्यान से पढ़ा और विषय पर ही टिपण्णी की , मुझ पर व्यक्तिगत कमेन्ट नहीं लिखा - उनका विशेष आभार।

उपरोक्त कमेंट्स में बहुत से कॉमेंट्स पूर्वाग्रहों से रहित एवं निष्पक्ष लगे । मुझे जो सबसे बेहतरीन कमेन्ट लगा वो नीचे उद्घृत कर रही हूँ। यह कमेन्ट सबसे ज्यादा निष्पक्ष, सार्थक तथा पूर्वाग्रहों से रहित लगा।

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हरीश प्रकाश गुप्त said...

सही कह रही हैं आप। ब्लाग पर लोग गुटबाजी में टिप्पणियाँ कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो गुटबाजी से निरपेक्ष रहकर तटस्थ और मर्यादित विचार प्रकट करते हैं। आपकी पोस्ट स्वतंत्र और निरपेक्ष ब्लागरों की भावना को बलवती करेगी।

आभार
January 14, 2011 10:03 AM

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डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दिव्या बहन,आप लिबलिबे और रीढ़विहीन लोगों से जो कि ब्लागर भी होते हैं उनसे बहुत ज्यादा ही उम्मीद कर लेती हैं। भले ही "भड़ास" मेरे सामुदायिक ब्लाग का नाम हो लेकिन कदाचित जितना छिछोरापन और गुटबाजी तमाम नामचीन ब्लागर करते हैं वो भड़ास पर हरगिज़ नहीं है। आपने जो भी लिखा है उससे रत्ती भर भी अलग विचार नहीं है मेरे। आप प्रतिक्रिया करिये और ऐसी करिये कि ऐसे केंचुओं दोबारा साहस न हो यदि आप पीछे हट जाएंगी तो इनका साहस बढ़ जाता है। माडरेशन मत हटाइयेगा वरना ये मुखौटाधारी पाखंडी अपनी नीचता के असल रूप में आ जाते हैं और वर्चुअली तो आप इनका मुंह भी नहीं तोड़ सकते।
आशीर्वाद सहित
भइया

प्रवीण त्रिवेदी said...

.....समस्या की पूरी जड़ मुझे टिप्पणिओं को एक सीमा से अधिक महत्व दिया जाना ही है ....और कुछ नहीं ! समाज के हर वर्ग ,व्यक्त और विचारधारा के लोग यहाँ पर हैं ....तो गुटबाजी क्यों नहीं होगी ?

फिर भी लंबे समय में जी. विश्वनाथ जी टीप मुझे रुचिकर लगी ...उससे एक हद तक सहमति है .......इसके अलावा तो सब बेमानी है !

उपेन्द्र नाथ said...

सही कह रही हैं आप.............स्वस्थ लेखन को बढावा मिलना चाहिए.......

ZEAL said...

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भाई रूपेश ,

आपकी बात से अक्षरतः सहमत हूँ। और मोडरेशन हटाने की गलती तो कभी नहीं करूंगी। यहाँ लोग दूसरों की आवाज घोंट देना चाहते हैं , लेकिन नकारात्मक टिप्पणियों से विचलित हुए बगैर अपने ध्येय में सतत लगे रहना है . यही कलम का सच्चा सम्मान है।

आप अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकार आशीर्वाद देने आये , बहुत सुखकर लगा।

सादर,
बहन दिव्या।

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Rahul Singh said...

इस पोस्‍ट में जो संदर्भ आए हैं, उनसे ठीक परिचित न होने के कारण, इस पर कोई टिप्‍पणी करना मेरे लिए उचित नहीं होगा और यहां जो चर्चा है, उससे अनुमान होता है कि कुछ अप्रिय, अवांछित है, इसलिए वह टटोलने का भी औचित्‍य मुझे प्रतीत नहीं होता.
वैसे आपका लेखन संयत और मर्यादित ही रहता है.

Rohit Singh said...

विश्वनाथ जी की बात से काफी कुछ सहमत हूं। पूरी तरह भले ही नहीं....गलत बात को जवाब देना जरुरी होता है। भले ही एक बार सही।मुशिकल ये है कि विचारों की लड़ाई को लोग व्यक्तिगत समझने लगते हैं। फिर पोस्ट दर पोस्ट लिखना उनकी आदत बन जाती है। बेहतर होता है कि एक बार प्तत्युतर देकर उसे शख्स को भूल जाना चाहिए.....भाड़ में जाए ऐसे लोग......पर एक बात है जो विचार जहां से बेहतर हो लेते रहना चाहिए.....भले ही रावण से शिक्षा क्यों न लेनी पड़े .... पर ध्यान रखना चाहिए कि उसके सामने अपने धनुष बाण को छोड़कर नहीं.....सो विचारों का प्रसार करती रहिए...

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

This is very sad. Divya ji, please do not let things like these get to you. We should not give insensitive and disrespectful people the right to hurt us.

Disagreement is ok but humiliating a person just because she is a woman is not accepted.

अरुण चन्द्र रॉय said...

इस पोस्‍ट में जो संदर्भ आए हैं, उनसे ठीक परिचित न होने के कारण, इस पर कोई टिप्‍पणी करना मेरे लिए उचित नहीं होगा और यहां जो चर्चा है, उससे अनुमान होता है कि कुछ अप्रिय, अवांछित है, इसलिए वह टटोलने का भी औचित्‍य मुझे प्रतीत नहीं होता.
वैसे आपका लेखन संयत और मर्यादित ही रहता है.