वर्ल्ड कप के खुमार में एक बात ने नया चिंतन मन में पैदा कर दिया। धुरंधर धोनी को सफलता मिली तो उन्होंने ईश्वर के साथ किया हुआ वादा त्वरित गति से पूरा किया । खेल से पूर्व इश्वर की श्रद्धा से पूजा अर्चना की थी और खेल के बाद सबसे पहले उन्हीं का स्मरण किया।
ज्यादातर सफल व्यक्ति ( अम्बानी से ओबामा तक ), ईश्वर की ताकत में आस्था रखते हैं। अपने अस्तित्व और सफलताओं का श्रेय ईश्वर को ही देते हैं । फिर नास्तिक कैसे होते हैं कुछ लोग । नास्तिक हो जाने के लिए किन कारणों का योगदान होता है । क्या असफलताएं किसी को नास्तिक बना सकती हैं । क्या निराशा के भाव जब गहरे हो जाते हैं , तो व्यक्ति नास्तिक हो जाता है? नास्तिक व्यक्ति अपनी सफलताओं और सृष्टि के संचालन का श्रेय किसे देता है ? क्या नास्तिक जन्मजात होते हैं ?
जब तक कोई स्वयं न बताये की मैं नास्तिक हूँ अथवा आस्तिक हूँ , तब तक हम उसे अपना जैसा ही पाते हैं , मानवीय संवेदनाओं से युक्त। लेकिन जैसे ही इश्वर की चर्चा आती है तो नास्तिक व्यक्ति क्यूँ उसके खिलाफ बोलता है जिसकी सत्ता ही नहीं है उसकी नज़रों में ? जब सत्ता ही नहीं है तो विरोध किसका ?
ईश्वर की सत्ता है, तभी धर्म हैं । क्या ईश्वर को साम्प्रदायिकता का जिम्मेदार मानना चाहिए । या फिर इंसान की अज्ञानता जिम्मेदार है साम्प्रादायिकता के लिए ? क्या ईश्वर की सत्ता ख़तम की जा सकती है ? क्या नास्तिक-जन धर्म के झगड़ों को मिटाने में कोई सार्थक भूमिका अदा कर सकते हैं ?
oxygen न हो तो जीवन भी नहीं होगा, पर हवा को किसी ने देखा नहीं है आज तक । पंखा चला दें तो भी हवा को देखा नहीं जा सकता , लेकिन उसके अस्तित्व को भली-भांति महसूस किया सकता है। इसी तरह इश्वर को किसी ने नहीं देखा , लेकिन उसकी सत्ता को अनेक रूपों में महसूस अवश्य किया है।
मेरे विचार - इश्वर की सत्ता सर्वव्यापी है , कण-कण में है । ईश्वर एक ही है। मेरी हर सफलता और ख़ुशी ईश्वर की कृपा से मिली है। दुखों का कारण अपनी अज्ञानता को मानती हूँ। बहुत बार इश्वर के साक्षात दर्शन भी किये हैं। जो नास्तिक हैं , उनमें भी ईश्वर के दर्शन किये हैं ।
आपका क्या विचार है इस विषय पर ...
ज्यादातर सफल व्यक्ति ( अम्बानी से ओबामा तक ), ईश्वर की ताकत में आस्था रखते हैं। अपने अस्तित्व और सफलताओं का श्रेय ईश्वर को ही देते हैं । फिर नास्तिक कैसे होते हैं कुछ लोग । नास्तिक हो जाने के लिए किन कारणों का योगदान होता है । क्या असफलताएं किसी को नास्तिक बना सकती हैं । क्या निराशा के भाव जब गहरे हो जाते हैं , तो व्यक्ति नास्तिक हो जाता है? नास्तिक व्यक्ति अपनी सफलताओं और सृष्टि के संचालन का श्रेय किसे देता है ? क्या नास्तिक जन्मजात होते हैं ?
जब तक कोई स्वयं न बताये की मैं नास्तिक हूँ अथवा आस्तिक हूँ , तब तक हम उसे अपना जैसा ही पाते हैं , मानवीय संवेदनाओं से युक्त। लेकिन जैसे ही इश्वर की चर्चा आती है तो नास्तिक व्यक्ति क्यूँ उसके खिलाफ बोलता है जिसकी सत्ता ही नहीं है उसकी नज़रों में ? जब सत्ता ही नहीं है तो विरोध किसका ?
ईश्वर की सत्ता है, तभी धर्म हैं । क्या ईश्वर को साम्प्रदायिकता का जिम्मेदार मानना चाहिए । या फिर इंसान की अज्ञानता जिम्मेदार है साम्प्रादायिकता के लिए ? क्या ईश्वर की सत्ता ख़तम की जा सकती है ? क्या नास्तिक-जन धर्म के झगड़ों को मिटाने में कोई सार्थक भूमिका अदा कर सकते हैं ?
oxygen न हो तो जीवन भी नहीं होगा, पर हवा को किसी ने देखा नहीं है आज तक । पंखा चला दें तो भी हवा को देखा नहीं जा सकता , लेकिन उसके अस्तित्व को भली-भांति महसूस किया सकता है। इसी तरह इश्वर को किसी ने नहीं देखा , लेकिन उसकी सत्ता को अनेक रूपों में महसूस अवश्य किया है।
मेरे विचार - इश्वर की सत्ता सर्वव्यापी है , कण-कण में है । ईश्वर एक ही है। मेरी हर सफलता और ख़ुशी ईश्वर की कृपा से मिली है। दुखों का कारण अपनी अज्ञानता को मानती हूँ। बहुत बार इश्वर के साक्षात दर्शन भी किये हैं। जो नास्तिक हैं , उनमें भी ईश्वर के दर्शन किये हैं ।
आपका क्या विचार है इस विषय पर ...
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115 comments:
नास्तिक होना और आस्तिक होना यह व्यक्ति की समझ है ..लेकिन वास्तविकता यह है कि ईश्वर की सत्ता है और यही ईश्वर इस सृष्टि का संचालन कर रहा है ईश्वर की सता निराकार (FORMLESS) है सारी सृष्टि इसमें समायी है और यह सृष्टि में समाया है इसकी सत्ता के कई प्रमाण दिए जा सकते हैं ....आपका आभार
It is an issue on which every one will have a different and at times controversial opinion
यदि ईश्वर के होने या न होने का प्रश्न उठता है तो स्वतः ही स्पष्ट है की ईश्वर है.
यदि समय हो तो इसे देखिएगा.
Visit Here Please!भगवान क्या है?
ishwar hote hain...bhavna hogi acchai ki to ishwar hote hain...
jab lagan ke saath koi apna karm karta hai sab kuch sahte hue aur use safalata milti hai to wo ishwar ki shakti ka anubhav karta hai...
einstein ne bhi kaha tha Energy is god...the energy which is destructive as well as constructive.......that energy is due to our thought and work...it's our thinking and work which defines the existence of god...a power ...
खुदा (स्वयंभू) का अस्तित्व मैं भी मानता हूँ। पर ईश्वर तो मनुष्य की कल्पना मात्र है। मनुष्य ईश्वर का निर्माता है, यही कारण है कि ईश्वर कई तरह का है, शायद उतनी तरह का जितने मनुष्य हैं, और अब तक हो चुके हैं। सारी लड़ाई इस बात की है कि 'मेरा ईश्वर ही सही ईश्वर है'।
आप के विचार आप के बारे मे और केवलराम जी के केवलराम जी के बारे में यह प्रकट करते हैं कि आप दोनों आस्तिक हैं। मेरे बारे में पाठक स्वयं तय कर सकते हैं कि मैं नास्तिक हूँ या आस्तिक?
आस्था जीवन का आधार है, किसी न किसी पर तो आस्था रहती है हमारी।
मेरा राम तो तेरा मौला है,
एइयो ते बस रौला है...
जय हिंद...
मै विश्वास रखता हूँ की सृष्टी का संचालक कोई है , आत्मा और परमात्मा का सिद्धांत भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता . नास्तिकता के बारे में अपना ज्ञान शून्य है इसलिए कुछ कह नहीं सकता .
डॉ० दिव्या जिस तरह देशों के राष्ट्रपति /प्रधानमंत्री होते हैं ,घर का मुखिया होता है उसी तरह इतने बड़े अनंत ब्रह्मांड का का कोई मुखिया तो होगा ही |वह कौन है ,क्या है ,कहाँ है ये सब निरर्थक प्रश्न हैं |ईश्वर सर्वशक्तिमान है |हमे उस पर श्रद्धा रखनी चाहिए उसके प्रसाद और दंड दोनों को सहज मन से स्वीकार करना चाहिए |ईश्वर आपकी मदद करे |
just a question
when man rapes a female?
whose will is that.
आंखें तो अपनी हैं और फिर खुली आंखें तो क्या, बंद आंखें भी कुछ न कुछ देखती ही रहती हैं.
ईश्वर पर विश्वास करना या न करना किसी का व्यक्तिगत फैसला है। मैं स्वयं अज्ञेयवादी हूं। मेरे लिये धर्म का अर्थ है अन्त:मन से लिया गया विवेकशील आचरण।
कहीं पढ़ा था . " जीवन में निराशा ही व्यक्ति को नास्तिक बनाती हैं "
आभार...........
आस्तिक होने का मतलब ही है ईश्वर में आस्था रखना, और उपासना का अर्थ है ईश्वर के समीप पहुंचना. अब ईश्वर के समीप पहुँच कर(महसूस करके) भी क्या कोई कामना शेष रह सकती है, जाहिर है बिलकुल नहीं. फिर जो भगवान् से अपनी सफलता या जीवन के हर पल में सौदा करते है की यह काम हो जाये तो यह करूँगा ऐसा हो जाये तो वैसा करूँगा ---- उपासना तो कतई नही है.
भगवान् से प्रार्थना तो सिर्फ अच्छे-बुरे में फर्क करने की शक्ति प्राप्त होने, और बुराई से बचने के लिए होनी चाहिये. यह तो है आस्तिकता.
बाकी तो सब सौदेबाजी भगवान् की आड़ लेकर हमारी नास्तिकता ही है.
samjhne ki koshish kar rahe hain......
pranam.
मुझे नास्तिकता और आस्तिकता का झगड़ा ही व्यर्थ लगता है .कोई माने चाहे न माने हरेक की आस्था कहीं न कहीं अवश्य होती है जो किन्हीं चरम क्षणों में अनायास बोल उठती है .वैसे भी आस्था कहने-बताने की नहीं आंतरिक विश्वास की वस्तु है.
ईश्वर बस है आस्था ,करे प्रेम- संचार !
बाकी सब इंसान की ,बुद्धि,विवेक,विचार !
विचारणीय लेख !
आभार !
मैं तो इस पोस्ट पर टिप्पणियों का इन्तजार कर रहा हूं...
अभी मुझे तो पक्का पता नहीं कि कोई ईश्वर है या नहीं, हाँ खोज जारी है।
श्री दिनेशराय जी की बात से सहमति महसूस कर रहा हूँ।
"कोई मुखिया तो होगा ही" जैसी बातें साबित करती हैं कि उन्हें भी नहीं पता।
प्रणाम
jai baba banaras...
दिव्या जी ईश्वर और सम्प्रदायिकता दोनो अलग अलग है हां लड़ने वाले इसे साथ साथ लाते है।
मैं तो आस्तिक हूं।
Mano to main Ganga Maa Hoon
Na mano to Bahta pani
its the education which defines the god......
its the ignorance which defines the devil...
mentality..only mentality is the reason....
bahut achhe vichaar
आस्तिकता क्या है?
'अस्तित्व' को स्वीकार करना.
मतलब 'वजूद' को मानना.
अब जिसके प्रति आस्तिकता है. उसके प्रति आस्था भी रहनी चाहिए अन्यथा वह खोखली कही जायेगी.
न केवल उसका अस्तित्व स्वीकार किया जाये उसका आदर भी किया जाये. अब यह आदर कैसे हो?
उसे प्रसन्न करके. वह प्रसन्न कैसे होगा?
उसे हानि न पहुँचाकर हम उसे प्रसन्न कर सकते हैं. उसके प्रति सभी में सदभाव पैदा करके भी हम उसे प्रसन्न कर सकते हैं.
सरल उदाहरण :
माना कि आपके प्रति मेरी आस्था है. मेरा कोई कार्य ऐसा न होगा कि आप अप्रसन्न हों. आपको हानि हो.
अनुभूत उदाहरण :
जल और वायु के प्रति मेरी आस्था है. मेरा कोई कार्य ऐसा न होगा कि उनका प्रदूषण बढ़े. उनको प्रदूषित करके खुद को और अन्यों को संकट में डालूँ.
कुछ जटिल उदाहरण :
अब जिसे परमात्मा कहते हैं. वह क्या है? कण-कण में व्याप्त बताते हैं उसे.
तब क्या कण-कण ही परमात्मा तो नहीं. वह सर्वव्यापक है.
वह अंशी है, हम उसका अंश हैं.
अर्थात, जिस तरह कोई कंकण कई सूक्ष्म कणों से मिल बनता है और एक कण कई परमाणुओं से मिलकर बनता है
क्या परमाणु ही परमात्मा तो नहीं? जिसकी शक्ति से यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड गतिमान है.
जब कोई इस व्यवस्था को नहीं पहचानता, उसकी उपेक्षा करता है और अन्य किसी चमत्कारिक शक्ति से चमत्कृत होकर भक्ति का नाटक करता है तब उसे ही नास्तिक कहना चाहिए. मूर्ति के सम्मुख नतमस्तक होने वाला जरूरी नहीं कि आस्तिक हो. शायद वह भयभीत हो अपने स्वार्थ के पूरे न हो पाने से. सच्ची प्रभु-भक्ति वही जो किसी लोभवश दूषण न करे.
कुछ और स्थूल उदाहरण :
पुस्तक की पूजा है - पुस्तक को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिये उसे उचित पद्धति से पढ़ना और पढ़ाना.
वृक्ष पूजा है - वृक्ष के जीवन को अधिकतम समय के लिये सुरक्षा देना.
मूर्ति पूजा है - मूर्ति को लम्बे समय तक खंडन से बचाना मतलब टूटने से बचाना.
देव पूजा है - जितने भी पदार्थ अथवा व्यक्ति दान का गुण धारण किये हैं उनके प्रति आदर का भाव व्यक्त करना.
जल-देवता, वायु देवता, सूर्य-देवता, वृक्ष-देवता, अग्नि-देवता, गुरु-देवता, जन्म-देवता [माता-पिता], पालन-देवता [माता-पिता] आदि.
इन सभी देवताओं का ऋण ताउम्र बढ़ता रहता है इसलिये यही कर्तव्य है कि इन्हें प्रदूषित होने से बचाया जाये या इनसे मिले ज्ञान को प्रसारित किया जाये.
इश्वर की सत्ता सर्वव्यापी है , कण-कण में है ।yahi sach hai.....
किसी न किसी सत्ताको तो नास्तिक लोग भी मानते ही हैं ... चाहे वो इसे ईश्वर न कह कर कुछ और कहें ...
वैसे नास्तिक लोग भी अपने से बलवान व्यक्ति की सुनते हैं ... उनसे डरते हैं ... परोक्ष रूप से किसी न किसी की सत्ता मानते ही हैं ...
दिव्या जी, अपने आप को नास्तिक कहने वाले भी परोक्ष रूप में ईश्वर के अस्तित्व को मानते ही हैं , क्योंकि denial is also admission . इस के अतिरिक्त पूजा का भी अपना अपना ढंग हो सकता है , जैसे कुछ के लिए कार्य अथवा कर्त्तव्य का निर्वाह ही पूजा है . ईश्वर एक है और सर्वव्यापी है , इस में कोई संदेह नहीं !
विषय पर अलग अलग प्रतिक्रिया जानना सुखद है।
आज सभी की प्रतिक्रिया का अध्यन ही करते है। जानकारी में वृद्धि ही होगी
For me GOD is a supernatural power we all like to believe in for the reason that we may look upto someone in case of need or distress .
For me all my good and bad deeds are because he wants me to do so .
Good and Bad are words that we have made deeds are just deeds and nothing more
all decisions are correct at the point we take them but their repercussions in the long run tell us whether they were right or wrong
again right and wrong are merely words
I firmly believe GOD is there and responsible for every thing which means I AM NOT RESPONSIBLE FOR ANY THING
@sugyaji....bandhu thora aur dekh len.....lekin apne vichar jaroor den......u r dif...nt....
pranam.
ईश्वर तो सर्वत्र व्याप्त है ... इंसान के समझने का ही फेर हो जाता है ...बहुत ही सार्थक प्रस्तुति ।
naastik ya aastik honaa wyaktigat hai , lekin koyi to shakti jaroor hai
एक शक्ति तो है जो सर्वव्यापी है ना जाने लोग कैसे नास्तिक हो जाते हैं जबकि इतना तो सभी को पता है ,कि जो हवा भी चल रही जो हम सांसे ले रहे वो भी हमारी मर्ज़ी की नहीं है .उसकी इच्छा के बिना जहा में एक पत्ता भी नहीं हिलता है .....मै तो पूरी तरह से मानती हूँ इश्वर को और कितने प्रमाण भी देखें हैं हर मुश्किल कि घडी में उसने मुझे सहारा दिया है जो सर्वव्यापी है .....
विषय स्पष्ट नहीं हुआ। आस्तिकता और पूजापाठ दोनों अलग विषय हैं। ईश्वरीय शक्ति है इसको मानना आस्तिकता है और किसी भी सत्ता को नहीं मानना नास्तिकता है। लेकिन आस्तिक व्यक्ति का अर्थ पूजापाठी और कर्मकाण्डी होना कदापि नहीं है।
ईश्वर को न मानने के भी ज़बरदस्त तर्क हैं लोगों के पास. किसी का एक शेर देखिये:-
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा क्यूं मानें,
और जिसे देख लिया है वो ख़ुदा कैसे हो.
वैसे मैं भगवान में भरोसा रखता हूँ.
ॐ साईं राम.
आस्तिक होना एक विश्वास है उसी प्रकार नास्तिक होना भी
एक विश्वास है! आस्तिक ने माना हुवा विश्वास है तो नास्तिक ने ना माना
हुवा विश्वास है ! मानने ना मानने से परे इश्वर का अस्तित्व है जिसे हम सिर्फ महसूस कर
सकते है ! अच्छी पोस्ट है ........
@ "खुदा (स्वयंभू) का अस्तित्व मैं भी मानता हूँ। ................ मेरे बारे में पाठक स्वयं तय कर सकते हैं कि मैं नास्तिक हूँ या आस्तिक?"
दिनेशराय जी,
खुदा (स्वयंभू) का अर्थ है जो स्वयं पैदा हुआ, जिसे किसी नें पैदा नहीं किया। जो अनादि है। यह लक्षण तो ईश्वर के ही है,तब तो आप आस्तिक हुए, पर आगे आप ईश्वर के अस्तित्व को कलपना कहकर खारिज करते है तब तो खुदा (स्वयंभू) के अस्ति्त्व पुनः इन्कार हो गया।
खुदा (स्वयंभू) से शायद आपका अभिप्राय खुद (स्वयं) होगा, अर्थार्त अपने स्वयं के अस्तित्व को मानना, हमारा 'मैं' स्वयं हमारे शरीर से भिन्न कुछ है क्योंकि शरीर के लिये हम 'मै शरीर' नहीं 'मेरा शरीर' संज्ञा का प्रयोग करते है। अतः वह आत्मा है, और आत्मा के अस्तित्व में मानना भी आस्तिकता है।
रास्ते भिन्न भिन्न है और मंज़िल तो एक ही है ... नदियों का सागर में समाने जैसा :)
ईश्वर एक ऐसा 'व्यापक भाव और विचार' है जिसको अपनाने से स्थाई आनन्द और शांति का अनुभव होता है.शरीर रूप में स्थित यदि हमारी स्थिति बूँद के समान है तो समस्त शरीरों,जड़ चेतन में स्थित ईश्वर की स्थिती समुन्द्र के समान है.बूंद और समुन्द्र दोनों में ही पानी है इसी प्रकार हमारा और ईश्वर का स्वरुप आनन्द है केवल परिमाण का अंतर है..अब बूंद यदि 'व्यापक भाव और विचार' अपना कर समुन्द्र में मिले तो वह भी समुन्द्र हो जाएगी.यही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है.
भगवद्गीता के १२ वें अध्याय 'भक्ति योग' के अनुसार ईश्वर को चाहे सगुण साकार मानो,या निर्गुण निराकार दोनों प्रकार से ही ईश्वर से जुड़ा जा सकता है. बल्कि आनन्द से जुड़ने के लिये नास्तिक को भी कोई बाधा नहीं है .क्यूंकि नास्तिक वह है जिसे किसी पर विश्वास न होकर केवल खुद पर विश्वास होता है.
गीता अ.६ श्.५ व ६ के अनुसार
"मनुष्य अपने द्वारा अपना संसार समुन्द्र से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले ,क्यूंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु "
"जिसने अपने मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है ,वह आप ही अपना मित्र है और जिसके द्वारा मन और इन्द्रिओं सहित शरीर नहीं जीता गया है उसके लिये वह खुद आप ही अपना शत्रु के समान व्यवहार करता है."
तो फिर चाहे हम आस्तिक हो या नास्तिक अपना उत्थान हम हर स्थिति में कर सकते .जरूरत है तो बस निम्न भाव को त्याग व्यापक भाव अपनाने की.
मैं न आस्तिक हूँ , न नास्तिक..
बस मेरा ख़ुदा बदल गया है..
नास्तिक सता तो मानता है किन्तु उसके आगे झुकता नहीं . ठीक उसी तरह जैसे P B sheilly को नास्तिक होने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया था किन्तु उनकी कविताये रोमांटिक युग की प्रकृति पर लिखी सम्यक अनुभूति थी और प्रकृति ईश्वरीय सता का ही अंग है
.
बहुत पहले कहीं पढ़ा था, GOD...Generator,Operator,Destroyer... यही तो सृष्टि का नियम है, मुझे अच्छा लगा क्योंकि यह हमारे धर्म की मान्याताओं का समर्थन करता था । बाद में जाना कि सभी धर्मों के मूल में यही सोच है... अनेकता में एकता ।
यह भी जाना कि Everything has its own reason and a cause. कोई अदृश्य शक्ति है, जिसके होने का कारण है और सँचालन का एक उद्देश्य... यह शायद बिग-बैंग के पहले से रहा हो, कौन जानता है । चमत्कृत कर देने वाली इस आदि-शक्ति का कोई रूप न पाकर वैदिक मानव विस्मय से हाहाकार कर उठा...
नासदासीन नो सदासीत तदानीं नासीद रजो नो वयोमापरो यत |
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम ||
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ
किसने ढका था
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहां था
सृष्टि का कौन है कर्ता?
कर्ता है या है विकर्ता?
ऊँचे आकाश में रहता
सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता
या नहीं भी जानता
है किसी को नही पता
नही पता
नही है पता
नही है पता
वो था हिरण्य गर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान
वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान
जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
जिस के बल पर तेजोमय है अंबर
पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर
व्यापा था जल इधर उधर नीचे ऊपर
जगा चुके व एकमेव प्राण बनकर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर, हवि देकर
इस तरह आस्था का जन्म हुआ होगा, देश काल और समाज के हिसाब से ऎसे किस देवता की उपासना करें के ज़वाब ने मानव ने अपने अपने ईश्वर गढ़ लिये ( सूज्ञ जी, ध्यान दें ).. उसका विश्वास था कि ईश्वर ऎसा ही है, अन्य कोई ईश्वर है ही नहीं । मनुष्य मूल रूप से कबीलाई प्रकृति का है.. सो वह अपने ईश्वर को मान्यता दिलाने की मुहिम पर चल निकला, भले ही उसे इसके लिये रक्तपात ही क्यों न करना पड़ा हो.. यह मुहिम और श्रेष्ठता की लड़ाई आज तक जारी है ।
गिरने के डर से जैसे बालक दौड़ कर किसी मज़बूत सहारे को पकड़ लेता है, वैसे ही मनुष्य भी कमजोर क्षणों में कोई आश्रय तलाशता है.. यह हुआ सँबल ! एक भरोसो, एक बल, एक आस-विश्वास.. सबँल को सँभलाने वाले कितने ठेकेदार आ गये... जिसे कर्मकाँड कहते हैं.. मुझे नहीं लगता कि ऎसी कोई नियमावली ईश्वर ने बना कर भेजी होगी.... यदि प्रतीको में लें तो नँगे पैर जाना अपने अहँ का त्याग है, बाल मुड़वा देना अपनी प्रिय वस्तु की आहुति है ।
नास्तिकता क्या होती है, मैं नहीं जानता पर मैं सर्वव्यापी अनादि निराकार शक्ति पर पूर्ण विश्वास रखता हूँ जिसे हमने अपने अपने ईश्वर में गढ़ रखा है... पर कर्मकाँड और उसके ठेकेदारों पर मेरी पूर्ण अनास्था है !
यह टिप्पणी अनायास ही हो गयी, यदि इससे ज्ञान की बू आ रही हो तो विज्ञजन क्षमा करेंगे । मैं शास्त्रार्थ करना नहीं चाहता ।
ईश्वर है!...उसे देखा या दिखाया नही जा सकता!...सभी के जीवन में कुछ प्रसंग ऐसे आते ही है कि ईश्वर के अस्तित्व को मानना ही पड्ता है!....विचारणीय आलेख!
डा० अमर कुमार जी के प्रतिपादन से एक अपेक्षा सहमत।
निश्चित ही सृष्टि का साकार सुन्दर आयोजन नियोजन देखकर किसी शक्ति की शोध आवश्यक हुई होगी। वैसे भी ईश्वर आदि नाम हमारे ही रचे हुए है। उस शक्ति को किसी नाम से पुकारा जाना था…निराकार… अदृश्य शक्ति… मानवीय रूप या कल्पना भी न की जा सके ऐसी कोई शक्ति। इसी लिये ईश्वर के रूप रूपांतर है। पर निश्व्चित ही शक्ति तो अरूप ही है। वह अरूपी है इसीलिये आस्था का निमित है।
आपके इस प्रकटिकरण में स्वयंमेव आस्था विध्यमान है-"नास्तिकता क्या होती है, मैं नहीं जानता पर मैं सर्वव्यापी अनादि निराकार शक्ति पर पूर्ण विश्वास रखता हूँ" इस अटल सत्य को स्वीकार कर लेने के बाद ईश्वर को कोई फर्क नहीं पडता, बाकी को वह इन्सान की बाल सुलभ नादानियां ही मानता होगा।
आस्था हमारे जीवन को आसान बना देती है.बाकी आस्तिकता और नास्तिकता अपने अपने मन के भाव हैं.
अच्छा चिंतन है.
अगर कोई ये कहता है कि हम भगवान को नही मानते है.
तो न माने.
मुझे नही लगता कि उनके भगवान को न मानने से भगवान पे और भगवान की बनायी इस दुनिया पे कोई असर पड़ता है.
अक्सर लोग नास्तिक तब बन जाते है जब वो ये देखते है या खुद अनुभव करते है कि कोई व्यक्ति दिन रात भगवान को याद करता है. बहुत साधू स्वभाव का आदमी है. किसी का बुरा नही करता है.
लेकिन फिर भी उस व्यक्ति पे दुखो का पहाड़ टूटा पड़ा है.
और किसी दूसरे आदमी ने नीचता की सारी हदे पार कर दी है .भगवान को मानना तो दूर उनका अपमान करता है लेकिन फिर भी वो सुख भोग रहा है.
ऐसे मे आदमी का विश्वास भगवान से उठ जाता है और वो नास्तिक बन जाता है.
ऐसे नास्तिको से मेरा ये कहना है कि किसी मनुष्य के सुख और दु:ख उसके जन्म जन्मांतरो के किये गये कर्मो का परिणाम होते है.इसमे भगवान का कोई दोष नही होता.
जैसे कोई व्यक्ति चोरी डकैती और खून करे.और फिर भगवान से प्रार्थना करे कि उसे सजा न हो . और जब सजा हो जाये तब कहे कि भगवान नाम की कोई चीज नही होती है.
तो ऐसे मे उस व्यक्ति की बुद्धि पर लोगो को हसी ही आयेगी.
दूसरे टाइप के नास्तिक होते है जो फैशन के कारण नास्तिक बने होते है .उनका सोचना होता है कि भगवान को मानना आदि ये सब पुराने लोगो की सोच है. और वो अगर ऐसा करेँगे तो उनको भी पिछड़ा समझा जायेगा. इसलिये वो नास्तिक बन कर आज के फैशन मे बने रहना चाहते है.
ऐसे नास्तिको से बात करने का मतलब पत्थर पर सिर मानना है.
तीसरे टाइप के नास्तिक साइंस की आड़ मे ईश्वर के अस्तित्व को नकारते रहते है.
वो हर चीज मे क्यो, कहाँ , कैसे किया करते है.
ऐसे नास्तिको से मुझे ये कहना है कि वो मुझे ये बताये कि आज तक साइन्टिस्टो ने नया क्या किया है?
जो चीजे भगवान ने इस दुनिया मे पहले से ही मौजूद कर रखी है.
साइन्टिस्टो ने केवल उनके बारे मे ही तो जानकारी दी है.
जो चीजे पहले से ही मौजूद थी .उन्ही को जोड़ घटा कर नयी चीज बनाकर अपने आप को इतना खलीफा समझने लगे कि जिसने नयी चीजे बनाने के लिये सामान दिया उसी को नकारने लगे.
अगर मनुष्य ने पत्थर रगड़ कर आग निकाली तो पत्थर कहाँ से आये ?
और आग भी ज्वालामूखियो मे ,प्रथ्वी के गर्भ मे पहले से मौजूद है.
(2) अगर पानी से बिजली बनायी तो बिजली बनाने के लिये इतने बड़ी बड़ी नदियाँ और सागर कहाँ से आये ? किसने बनाये?
और वैसे बिजली भी आकाश मे बादलो की क्रिया से पहले से ही मौजूद थी.
{3} अन्न उगाने के लिये इतनी बड़ी उपजाऊ जमीन ,मिटटी कहाँ से आयी? किसने बनायी?
{4} तेल ,पैट्रोल ,सोना, चाँदी आदि ये सब धरती के अंदर कहाँ से आया? किसने बनाया?
अर्थात भगवान ने प्रयोगशाला तो पहले से ही तैयार कर रखी थी. साइन्टिस्टो ने तो के वल प्रयोग किये है.अगर ऐसी प्रयोगशाला पहले से न होती तो साइन्टिस्टो की कोई औकात नही थी.
कुल मिलाकर मुझे साइंस की आड़ मे भगवान को नकारने वालो से इतना ही कहना है कि
अगर इतने ही बड़े तीसमारखा बनते हो तो इस दुनिया मे पहले से मौजूद किसी भी चीज का सहारा लिये बिना कुछ नया बनाकर दिखाये .
अर्थात प्रयोगशाला भी खुद ही बनाये और फिर प्रयोग करे.
जैसे किसी मेल से स्पर्म और फीमेल से ओवम न लेकर खुद ही पहले क्रत्रिम रुप से स्पर्म और ओवम तैयार करे और फिर उसका फर्टिलाइजेशन करवा के बेबी तैयार करे.
तब मै भी नास्तिक बन जाऊंगा.
ऊपर की टिप्पणी बहुत ज्यादा लंबी हो गयी है.
क्यो कि जो मन मे आया लिख दिया.
भक्ति ऐसी कीजिये , जान सके ना कोय
जैसे मेहंदी पात में , रंग रही दब्कोय ।
अपना तो यही मानना है , बाकि तो सब दिखावा है ।
जब उसकी बनाई सृष्टि में कोई एक नहीं होता। सबके अम्मा, बाबू, बाबा, बाबी, भैया, बहन, पति, पत्नि दोस्त, यार, गर्ल-फ़्रैंड, बॉय-फ़्रैंड, लिव-इन, विव-इन वगैरह वगैरह होते हैं तो ईश्वर कैसे एक हो सकता है। यू आर राँग मैडम, ईश्वर्स आर सेवरल। अण्डरस्टुड!
M ishwar ko behas se kahin upar manti hu.. isliye no comments... fir bhi aapki post ne sochne par vivash kia aur mere dimaag ko jang lagne se bachaya islie thanks :)
दिव्याजी
आप धन्य है जो आपने अपनी पोस्ट पर ऐसी ऐसी टिप्पणियाँ करने का वातावरण तैयार कर दिया है जो अपने आप में 'पोस्टों' से भी ज्यादा ही हैं.हम भी धन्य हो रहे है इन टिप्पणिओं को पढ़ पढ़ कर.मेरी पोस्ट 'वन्दे वाणी विनयाकौ' पर भी एक टिपण्णी प्रिय विशाल जी (पुराना नाम 'Sagebob') ने की है,जिसका एक अंश मै यहाँ भी उध्रत कर रहा हूँ
" मतवादी जाने नहीं,ततवादी की बात,
सूरज उगा उल्लुवा,गिने अंधेरी रात,
हरिया तत विचारिये,क्या मत सेती काम,
तत बसाया अमरपुर ,मत का जमपुर धाम."
तत्व वादी और मतवादी का भेद बड़े सुन्दर प्रकार से व्यक्त किया विशाल भाई ने.आभार.
दिव्या जी यह बहुत ही गहन गंभीर विषय है । आपने जितने सार्थक प्रश्न उठाए हैं टिप्पणियाँ उतनी ही विचारशील हैं । मुझे इस विषय में अधिक ज्ञान तो नही है पर में मानती हूँ कि जीवन में आस्था व विश्वास होना जरूरी है । ईश्वर को मानना,चाहे किसी रूप में सही , इसीलिये हितकर है ।डा.अमर कुमार ,अक्षय ठाकुर के विचारों से मैं भी पूर्णतः सहमत हूँ । शिखा जी ने भी सही कहा है । आस्था हमें सम्बल देती है । सच तो यह है कि अहंकार व अधकचरे ज्ञानवश लोग ईश्वर के अस्तित्त्व को लेकर बहस छेडते हैं क्योंकि आदिकाल से यह प्रश्न आज तक भी अनुत्तरित बना हुआ है। आखिर मनुष्य व ईश्वर में अन्तर तो है ही न ।रहा प्रश्न साम्प्रदायिकता का तो इसका ईश्वर के अस्तित्त्व से कोई सम्बन्ध नही है । मनुष्य ने धर्म बनाया है ईश्वर को नही । साम्प्रदायिकता धार्मिक संकीर्णता से पैदा होती है ।
बहुत सुन्दर मनोविश्लेषण!
बधाई!
मानों तो मैं गंगा माँ हूं
न मानों तो बहता पानी।
मैं तो अभी निम्नांकित समस्या का हल ढूंढ रहा हूं-
1. ईश्वर सर्वशक्तिमान है,
2. ईश्वर दयालु है,
3. दुख का अस्तित्व है ।
उपर्युक्त तीन तर्क वाक्यों में से किन्हीं भी दो को सत्य मानें तो तीसरे को असत्य मानना होगा।
यदि ईश्वर दुख को दूर करना चाहता है और दूर नहीं कर पाया है तो क्या ईश्वर असमर्थ है? यदि वह समर्थ है तो भी दूर नहीं करना चाहता तो क्या वह अकृपालु है? और यदि वह समर्थ भी है ओर चाहता भी है कि दुख न रहे, तो फिर दुख का अस्तित्व क्यों है?
वैसे मैं आस्तिक या नास्तिक नहीं बल्कि ब्रह्मवाद में विश्वास रखता हूं।
ईश्वर नही है"
ईश्वर नही है,
ऐसा लगता है जब,
मिलते हैं नवजात शिशु,
कूड़े के ढ़ेर में,
दिखते हैं अबोध बच्चे,
भूखे प्यासे भीख मांगते हुए,
और देखता हूं जब,
कच्चे परिवारों से,
बाप का साया उठते हुए,
खबर छपती है जब,
जवान बच्चों की मौत की,
कैसे ईश्वर दर्शक बन सकता है,
मासूम बच्चियों के बलात्कार का,
ईश्वर बिलकुल ही नही है मानो,
जब मूक पशु,पक्षी होते हैं ,
शिकार मनुष्य की हिंसा के,
प्रार्थना है उस ईश्वर से,
दे सबूत अपने होने का,
मॄत्यु हो सभी की,
पर समय से,
ना हो कोई अनाथ,
ना हो कोई बेचारगी,
प्रकॄति का कार्य,
लगे प्राकॄतिक ही,
अ-समय या कु-समय,
ना हो कोई घटना,
मंदिर/मस्जिद में फ़टे बम कभी,
तो विध्वंस हो भले ही खूब,
पर अंत ना हो एक भी जीवन का।
प्रस्तुतकर्ता अमित श्रीवास्तव पर १२:१७:०० पूर्वाह्न
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10 टिप्पणियाँ:
वन्दना ने कहा…
दर्द का मार्मिक चित्रण्……………बेहद संवेदनशील रचना।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
रविवार, १२ दिसम्बर २०१० ४:०९:०० अपराह्न IST
Sonal Rastogi ने कहा…
झकझोर दिया आपने ...इश्वर को प्रमाण देना होगा अपने होने का
रविवार, १२ दिसम्बर २०१० ९:१३:०० अपराह्न IST
unkavi ने कहा…
bahut kathore rachnaa. shaheed-e-aazam bhagat singh ke lekh "main naastik kyon hoon" kee yaad dilaa dee aapane.
सोमवार, १३ दिसम्बर २०१० १०:३९:०० पूर्वाह्न IST
दिगम्बर नासवा ने कहा…
विचलित कर गयी आपको रचना ...
सोमवार, १३ दिसम्बर २०१० ३:३४:०० अपराह्न IST
अनुपमा पाठक ने कहा…
इश्वर तो प्रमाण देंगे ही...
हमें भी इंसान होने का प्रमाण देना होगा!!! इंसानियत की वीरान होती राह को आबाद करना होगा !!!
शुभकामनाएं!
सोमवार, १३ दिसम्बर २०१० ३:३७:०० अपराह्न IST
adhir ने कहा…
Sundar ati sundar.Bahut sundar likhte ho bhai.Yeh sab itna man ko vichalit karta hai.
Though I am not convinced to basic idea when we keep on asking the evidence of God's existance.
सोमवार, १३ दिसम्बर २०१० ६:४०:०० अपराह्न IST
amit-nivedita ने कहा…
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया। मैने कभी ईश्वर के अस्तित्व को ना तो नकारा है, ना ही चैलेंज करने का दुस्साहस कर सकता हूं। वास्तव में आप जिससे मदद की उम्मीद करते हैं,उसी की ही शिकायत करने का भी औचित्य बनता है।बस इतनी सी बात है।
सोमवार, १३ दिसम्बर २०१० ७:३९:०० अपराह्न IST
सत्यम शिवम ने कहा…
बहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना"at http://satyamshivam95.blogspot.com/ साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।
सोमवार, १३ दिसम्बर २०१० ७:५५:०० अपराह्न IST
अनूप शुक्ल ने कहा…
ईश्वर लगता है छठवें पे कमीशन की सुविधायें अभी तक मिल न पाने की वजह से भन्नाया हुआ है। :)
मंगलवार, १५ मार्च २०११ ८:४८:०० पूर्वाह्न IST
***Punam*** ने कहा…
"प्रार्थना है उस ईश्वर से,
दे सबूत अपने होने का,"
बस यही कहा जा सकता है...
लेकिन किससे ??
सुनने वाला ही नदारत है !!
मंगलवार, १५ मार्च २०११ ६:५९:०० अपराह्न IST
क्या ईश्वर के बारे में चिंतन-मनन या उसका पूजन-अर्चन किये बिना कोई शुद्ध आचार-विचार नहीं रख सकता?
मैं किसी ईश्वर के स्वरूप और उसके महत्व या होने-न-होने के विषय पर सर नहीं खपाता. यह भी मैं जानता हूँ कि न तो उसके विरोध में खड़े लोग उसके अनस्तित्व को साबित कर सकते हैं और न ही उसके समर्थन में खड़े लोग उसके अस्तित्व को सिद्ध कर सकते हैं फिर यह माथापच्ची कैसी?
क्या यह ज़रूरी है कि सत्य और नीति के पालन के लिए ईश्वर का सहारा लिया जाए?
क्या सारे घोर आस्तिक वाकई सदैव शुभ कर्म ही करते हैं?
क्या उसके अस्तित्व को नकारनेवाले (नास्तिक) बुरे व्यक्ति होते हैं?
यहाँ कई लोग आस्था से शक्ति पाने की बात कर रहे हैं. क्या कोरी आस्था से ही सब कुछ सकारात्मक हो जाता है?
आप क्या कहतीं हैं?
कह नहीं सकता कि मैं किधर हूं. लेकिन मेरे एक भाई का पुनर्जन्म हो चुका है, जिसके लिये नकारना सम्भव नहीं. कोई कुछ भी कहता रहे लेकिन यह हो चुका है. आगे चलकर विज्ञान पर खरी उतरने वाली कोई थ्योरी आ जाये तो कहा नहीं जा सकता. मेरा खुद का अनुभव रहा कि एक ऐसी पेपर में जिसमें मैं पास भी मुश्किल से हो पाता, पिचानवे प्रतिशत अंक मिले और उस पेपर को मैं अब शायद दोबारा पूरा हल भी न कर पाऊं.
लेकिन एक ऐसा मामला भी है जिसके कारण ईश्वर पर अविश्वास होने लगता है...
its all about one's experience and how he/she takes the things in day to day life.....
butttt undoubtedly there is someone like God and even the people whom we call NASTIK never disagree with this.
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दुःख का अस्तित्व होने से इश्वर का अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता । सृष्टि में सिर्फ सुख ही सुख होगा ये कहाँ लिखा है ? यदि सुख है तो इश्वर है और यदि दुःख है तो इश्वर नहीं है ? ये तर्क संगत नहीं लगता । सृष्टि में संतुलन बना रहे इसके लिए दुःख और सुख दोनों का विधान इश्वर द्वारा ही किया गया है । इश्वर की माया अलग है , वो इंसानों की तरह व्यवहार नहीं करता , न ही सोचता है। उसके अपने रचे हुए खेल हैं , जिसे खेलने के अलग-अलग दायित्वों के साथ मनुष्य की रचना की गयी है।
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इंसान का शरीर भी तो इंसान द्वारा बनाया हुआ नहीं है । आखिर किसने बनाया है इस शरीर को , कौन इसके अन्दर की हर क्रिया को संचालित करता है ? oxygen नहीं बनायीं मनुष्य ने । किसने दिया प्रकृति को हमें ?
हम पर्यावन की रक्षा के लिए पेड़ तो लगा सकते हैं , लेकिन पेड़ की वृद्धि के लिए सूर्य की रौशनी और पानी कौन देता है ? मनुष्य द्वारा बनायीं गयी मशीनों में से कौन सी मशीन इंसान , जानवर तथा पादपों की वृद्धि को संचालित कर सकती है ?
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इंसान का बच्चा नौ माह के गर्भधारण के बाद पैदा होता है , क्या विज्ञान इस अवधी को तीन महीने या फिर अठारह महीने कर सकता है ?
इश्वर ने स्त्री और पुरुष बनाए , क्या इश्वर की सत्ता नकार कर हम समस्त पृथ्वी पर सिर्फ पुरुष अथवा स्त्री को रच सकते हैं ?
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बहुत से किस्से रोजाना सुनते हैं जहाँ लोग मृत्यु होने के बाद लौट कर वापस आये और निर्धारित समय पर पुनः वापस गए ? क्या इश्वर द्वारा निर्धारित मृत्यु की तारीख हम बदल सकते हैं ?
हम मनुष्य द्वारा निर्मित Keyboard पर टाइप तो कर सकते हैं और शब्दों तथा Fonts को नियंत्रित तो कर सकते हैं , लेकिन सोचने की प्रक्रिया और मनन जो हमारा मस्तिष्क सतत कर रहा है , उन neurons और axons में संदेशों का संचालन कौन कर रहा है ?
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जापान जैसा देश जो विज्ञान में बहुत अग्रणी है , क्या वो प्राकृतिक आपदाओं को रोक सकता है ? क्या प्रकृति के संचालन को भी अपने हाथ में ले सकता है ? क्या इन क्लिमटिक चंगेस में भी किसी महासत्ता का हाथ नहीं ?
पृथ्वी अपने अक्ष पर घूम रही है ये तो विज्ञान ने मात्र ढूंढा है , लेकिन घूम कैसे रही है ? दिन और रात होते कैसे हैं ? ग्रहों और नक्षत्रों की गतियों का नियंत्रण कौन कर रहा है ?
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Climatic changes ** [correction]
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यदि हमारा शरीर पंचमहाभूतों का बना हुआ एक स्थूल शारीर है तो सूक्ष्म शरीर इश्वर की सत्ता को दर्शाता है। स्थूल शरीर विनाशी है , लेकिन सूक्ष्म शरीर विनाशशील नहीं है। हमारा चिंतन और मनन भी किसी शक्ति से संचालित है।
पूर्वजन्म और अनेक जन्म , इश्वर की सत्ता का बोध कराते हैं । संसार के दुःख और सुख कर्मों का फल हैं । इसके लिए ये कहना की दुःख का अस्तित्व है , इसलिए इश्वर नहीं हैं, तर्कसंगत नहीं लगता।
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दुःख में सुमिरन सब करें , सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करें , तो दुःख काहे को होय।
ज्ञानियों ने दुःख और सुख को समभाव से लेने की बात कही है । जो आस्तिक हैं और इश्वर की सत्ता में विश्वास रखते हैं , उनके पास भी अनेक दारुण हैं , लेकिन विचलित होकर उस सर्वशक्तिमान में आस्था को नहीं त्यागते ।
जैसे कोई गुस्से में अपशब्द बोलता है , वैसे ही निराशा और हताशा के कारण कुछ लोग इश्वर की सत्ता ही नकार देते हैं । इसका कारण है वो अपने ऊपर पूरा विश्वास नहीं कर पाते और शीघ्र विचलित हो जाते हैं ।
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जो इश्वर में बहुत ज्यादा आस्था रखते हैं और उन पर निर्भर करते हैं तथा उद्यम त्यागकर हर छोटी बड़ी चीज़ के लिए "इश्वर कर दे ", ऐसी अपेक्षा रखते हैं , वही सबसे ज्यादा निराश हो जाते हैं और कष्टों से विचलित होकर उस परमसत्ता में विश्वास खो बैठते हैं।
विश्व कप हुआ , जीत और हार दोनों निश्चित थी । एक को जीतना और दूसरी टीम का हारना तयशुदा था । क्या जो जीती और 'सुख' को पाया वो आस्तिक और हारने "दुःख" को पाने वाली नास्तिक टीम थी ?
आस्तिक तो दोनों ही टीम में रहे होंगे । अपनी-अपनी आस्था के अनुसार उस पर सत्ता का स्मरण भी किया होगा । लेकिन क्या हारने के बाद और "दुःख" मिलने के बाद उस परंसत्ता को नकार दिया जाएगा ? इश्वर तो सर्व विद्यमान है ,सबके साथ है , लेकिन थोड़ी सा भाग्य , मेहनत और लगन ने एक को जिता दिया ।
Tiger Woods नामक गोल्फ प्लयेर जब HIV positive निकला तो सबने कहा इश्वर ने अन्याय किया । लेकिन उस खिलाड़ी का वक्तव्य था - " जब तक मैं जीतता गया और शोहरत की बुलंदियों को छूता रहा तब तक कहूँ की इश्वर ने न्याय किया और जब थोडा सा दुःख आया तो इश्वर को दोषी ठहरा दूँ ? "
क्या इतना स्वार्थी होना उचित है ?
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Tiger Woods is HIV positive?!
That's NEWS for me!
सुन्दर तत्वबोध के लिये धन्यवाद.वास्तव में तो अहसान फरामोश है हम.इसीलिए गीता (अ.१५ श्.११) में कहा गया
"यत्न करनेवाले योगीजन भी अपने हृदय में स्थित इस आत्मा को तत्व से जानते है; किन्तु जिन्होंने अपने अंत:कारण को शुद्ध नहीं किया है (जो अहसान फरामोश हैं)ऐसे अज्ञानीजन तो यत्न करते रहने पर भी इस आत्मा को नहीं जानते."
हम भूल जातें हैं कि उसने हमें मनुष्य शरीर दिया,सही सलामत पाँचों इन्द्रियाँ दी,अनुभव करने को मन दिया ,सोचने समझने को अनमोल बुद्धि दी ,शरीर की रक्षा और पोषण के समस्त साधन दिए,मन के उत्थान के लिये अनुपम भाव दिए,बुद्धि के विकास के लिये विलक्षण विचार दिए,और क्या चाहिये उससे. जो देना जानता है वह लेना भी जानता है.अब यदि शरीर,मन बुद्धि का पोषण यदि हम कूड़े से करना चाहते हैं,तो कूड़े का ही अनुभव हमें मिलेगा,अमृतत्व का नही.
दिव्या जी नमस्ते बहुत ही सार्थक सवाल उठाया है आपने !
प्रतुल वशिष्ठ जी ने भी बहुत ही अच्छी तरह समझाया इश्वर पूजा के बारे में.
मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूँ. मेरा भी यही मत है.
उपरोक्त सज्जनों ने इतना कुछ लिख दिया है की अब मेरे पास कहने के लिए कुछ भी नहीं बचता. धन्यवाद
@ Tiger Woods नामक गोल्फ प्लयेर जब HIV positive निकला तो
@ That's NEWS for me!
टाइगर वुड्स नहीं, आर्थर ऐश की बात लगती है. इत्तफाक देखिये की सलिल जी की पोस्ट भी हाज़िर है भूल-सुधार के लिए.
Madam Would You Please Take The Trouble Of Quoting The Source Which Claims That Tiger Woods Is HIV POSITIVE. I Would Be Enlightened.
Regards
Dr. Shantanu
मेरे गधे को पता नहीं है कि वह कैसे पैदा हुआ लेकिन वह पैदा हुआ . उसे ज्यादा कुछ नहीं आता लेकिन फिर भी बच्चे पैदा कर लेता है और उसकी नस्ल करोड़ों साल से ऐसा करती आ रही है . जब गधे को अपना ही पता नहीं तब वह क्या बता पायेगा कि जो कुछ उसके अलावा है वह क्या है और क्यों है ?
जिसे सब पता है वही बता सकता है कि कौन सी चीज़ क्या है और क्यों है ?
जो क्रिया उससे जोड़ दे उसे योग और रूहानियत कहते हैं और यह सब सिखाने वाले को गुरु कहते हैं जो कि अब कम हैं और घंटाल बहुत हैं इसीलिये यहाँ इतनी अगर मगर हो रही है .
जो हमारे ब्लॉग पर अब तक न आया हो , वह कम से कम वहां झांक कर तो आये कि वहां कौन क्या अरमान लिए बैठा है ?
आस्था जीवन का आधार है, किसी न किसी पर तो आस्था रहती है हमारी।
जाट देवता की राम राम,
अयरन लेडी के कसूते जबाब देख, दिल खुश हुआ।
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@ Nishant-
@ Smart Indian -
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@-Tiger Woods नामक गोल्फ प्लयेर जब HIV positive निकला तो सबने कहा इश्वर ने अन्याय किया । लेकिन उस खिलाड़ी का वक्तव्य था - " जब तक मैं जीतता गया और शोहरत की बुलंदियों को छूता रहा तब तक कहूँ की इश्वर ने न्याय किया और जब थोडा सा दुःख आया तो इश्वर को दोषी ठहरा दूँ ? "
क्या इतना स्वार्थी होना उचित है ?
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भूल सुधार - वो वक्तव्य Arthur Ashe का है जिसने इतने भयानक रोग से ग्रसित होने के बावजूद इश्वर में अपनी पूरी आस्था व्यक्त की है , Tiger woods का नहीं ।
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@ - संदीप -
दिसंबर 200९ में Tiger woods काफी चर्चा में था HIV positive होने के संशय के लिए । ये शक उसकी पत्नी ने ज़ाहिर किया था। ऊपर टिप्पणी में भूल सुधार कर ली है ।
दो साल पुरानी न्यूज़ दिमाग में थी , जिसे यहाँ लिखने में गलत नाम का उल्लेख हो गया , जिसे सुधार लिया है । लेकिन Tiger woods समाचारों में HIV न्यूज़ के लिए ही छाये रहे। शेष आप नीचे दिए गए लिंक पर देख सकते हैं ।
"Tiger Woods & wife Elin at risk of contracting HIV"
http://www.thaindian.com/newsportal/sports/tiger-woods-wife-elin-at-risk-of-contracting-hiv_100287990.html
भूल सुधार कर ली है , कृपया विषयांतर से बचें।
आभार।
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@-Shantanu ...not Sandeep
[Correction -sorry]
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मुझे ये बात व्यक्तिगत लगती है ...
मैं खुद नास्तिक हूँ पर अभी इस बारे में कोई बहस या तर्क देने के मूड में नहीं हूँ ...
इस बारे में पहले हजारों मंच पर बहस हो चुकी है ...
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इश्वर अनेकों रूपों में हमारे बीच उपस्थित होता है ।
स्वामी विवेकानंद
डॉ राजेन्द्र प्रसाद
महात्मा गांधी
नेताजी बोस
लाल, बाल ,पाल
सरदार भगत सिंह
उधम सिंह
चंद्रशेखर आज़ाद
राजगुरु
बटुकेश्वर दत्त
डॉ एपीजे कलाम
भीमराव आंबेडकर
बाबा रामदेव
किरण बेदी
अन्ना हजारे .....और बहुत से अन्य ....
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बड़े नामों के बीच कुछ छोटे छोटे नाम जिन्हें कोई जानता नहीं , उन्होंने मेरे जीवन में फ़रिश्ते की महती भूमिका अदा की है ।
विमान हादसे में हमारा बच जाना ईश्वरीय कृपा ही है । "जाको राखे साइयाँ , मार सके न कोय"
अनेकों घटनाएं है जीवन की जिसकी चर्चा करना संभव नहीं है लेकिन पग-पग पर ईश्वर को मदद करते हुए पाया है एक पालक की तरह ।
क्या स्वामी दयानंद में ईश्वर नहीं , जिसने सती प्रथा के लिए लड़ाई लड़ी ?
नास्तिकों को सचिन तेंदुलकर में आस्था है लेकिन कोई सचिन से पूछे उसे किसमें आस्था है ?
क्यूंकि फल आने पर डालियाँ विनम्रता से झुक जाती हैं , इसलिए अक्सर सफल व्यक्ति अपनी सफलता का श्रेय अपनी से बड़ी सत्ता को देककर , अहंकार से मुक्त रहते हैं।
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हम लोग साधारण मनुष्य हैं, जो जन्म-मृत्यु ,पाप-पुण्य , कर्मों के घटनाक्रम और उनसे प्राप्त फलों [दुःख-सुख ] का लेखा-जोखा नहीं रख सकते । न ही हम लोग , महाभारत के संजय की तरह त्रिकालदर्शी हैं जो इश्वर के रचे इस खेल तो पूर्णतया समझ सकें । इसलिए ह्रदय में एक सम्मान और आभार सदा बना रहना चाहिए उस परम सत्ता के लिए। व्यथित होकर उसके अस्तित्व को नकारने में मनुष्य स्वयं ही अपने अस्तित्व को भी नकार देता है।
यदि ईश्वर में आस्था नहीं है , तो अपने भाई-बन्धु में प्रेम और आस्था कैसे संभव है ?
कहते हैं भक्ति ,आस्था और प्रेम का ह्रदय में उत्पन्न होना भी ईश्वर कृपा से ही संभव है।
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ईश्वर के साकार साक्षात होने न होने के विवेचन से मानव जीवन को कोई लाभ होने वाला नहीं।
किन्तु…,किन्तु,ईश्वर के अस्तित्व में आस्था, मानव-जीवन को सार्थकता एवं उद्देश्य प्रदान करती है। यह प्रमाणिक सत्य है।
आपके विचार गीता के वचनों की पुष्टि करते है,
अ.१० श्.३६
'मै छल करने वालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ .मै जीतनेवालों की विजय हूँ और निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्विक पुरुषों का सात्विक भाव हूँ.'
आ.१० श्.४१
'जो जो भी विभूतियुक्त अर्थात ऐश्वर्य युक्त ,कान्तियुक्त और शक्ति युक्त वस्तु है,उस उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति ही जान.'
ब्राह्य जगत में भी ईश्वर को अनेक प्रकार से अनुभूत किया जा सकता बशर्ते हमारा मन निर्मल और अनुग्रहीत हो और बुद्धि अनुभूत करने योग्य सूक्ष्म हो.
अहसान फरामोशी से तो ईश्वर अनुभूति किसी प्रकार से भी संभव नहीं है.
@फिर नास्तिक कैसे होते हैं कुछ लोग
पता नहीं कुछ नास्तिक असफल होते हैं.. या कुछ असफल लोग ही नास्तिक होते हैं.......
ये भी इश्वर की कृपा है, किसको आस्तिक और किसको नास्तिक बनाता है.
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राकेश जी ,
एक ग्रन्थ जिसमें मेरी सबसे ज्यादा आस्था है , वो है "भागवद गीता" । आप गीता के अंशों को उद्घृत कर विषय को और भी सार्थकता प्रदान करते हैं ।
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कुछ लोग जिन्हें इस चर्चा से कष्ट हुआ तथा व्यर्थ लगी उसके लिए खेद है , लेकिन मेरा बहुत ज्ञान वर्धन हुआ है । अनेक विद्वानों [राकेश जी , सुज्ञ जी , प्रतुल जी , डॉ अमर , अक्षय जी , रचना जी ,गिरिजा जी , अरुणा जी , अमित जी , निशांत जी , दिनेश जी , महेंद्र जी एवं अन्य सभी ..] के सत्संग से काफी कुछ सीखने को मिला । अनेक प्रकार से ठोस तर्कों को सामने रखना किसी एक मनुष्य के बस की बात नहीं है। इसीलिए विभिन्न विषयों पर विद्जनों के विमर्श से सदा लाभ ही हुआ है । जिन्होंने विरोध में तर्क रखे , उनसे भी सार्थक तर्कों को सोचने की प्रेरणा मिली। और मस्तिष्क का व्यायाम हुआ।
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यदि आस्तिकों का वर्गीकरण कर दिया जाए तो दो प्रकार में विभाजित हो जायेंगे-
आस्तिक एक - जो ईश्वर में आस्था कभी नहीं त्यागते , चाहे कितना ही दारुण दुःख क्यूँ न आ पड़े उन पर ।
आस्तिक दो -जो दुखों से विचलित होकर ईश्वर से नाराज़ हो जाते हैं छोटे बच्चों की तरह । क्यूंकि इनका बाल मन अत्यंत पवित्र होता है तथा ईश्वर से बहुत ज्यादा डिमांड करता है । आस्तिकों का यह दूसरा प्रकार [so called नास्तिक], अपने प्रियजनों की आस्था को कभी चोट नहीं पहुंचता ।
नास्तिकों का ये समूह अपनी पत्नी , अपने माता-पिता और इष्ट मित्रों की आस्था का बहुत सम्मान भी करते हैं। क्यूंकि ये लोग basically आस्तिक ही होते हैं ।
वैसे एक नया प्रश्न आ रहा है मन में । क्या स्त्रियाँ नास्तिक नहीं होतीं ? अभी तक मुझे कोई नास्तिक महिला नहीं मिली। क्या स्त्रियों में भक्ति , आस्था और विश्वास अधिक होता है ?
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@ Mahendra Verma की टिप्पणी गौर करने लायक है. ऊपर टिप्पणियों में बहुत कुछ कहा गया सो मैं भी कुछ कहता चलता हूँ. दुनिया में अनगिनत नास्तिक हुए हैं जिनको ईश्वर की आवश्यकता नहीं पड़ी. उनकी भी मनोकामनाएँ पूरी होती रहीं. देश नास्तिक हो गए थे (रूस जैसे) परंतु वहाँ भी प्रसन्न रहने वाले लोग पैदा हुए जो ईश्वर को नहीं मानते थे. ईश्वर एक दार्शनिक प्रश्न है जिसका दार्शनिक उत्तर हो सकता है. परंतु इससे उसका होना आज तक प्रमाणित नहीं हुआ. एक दार्शनिक ने कहा था कि बीसवीं शताब्दी में ईश्वर मर गया है तो नीत्शे ने कहा था कि मरता वह है जो होता है. ईश्वर कभी था ही नहीं.
मैं युवावस्था में आस्तिक था अब नास्तिक सा हुआ जा रहा हूँ.
आपने पूछा है 'क्या स्त्रियाँ नास्तिक नहीं होतीं?' इसके बारे में कहना चाहता हूँ कि महिलाओं का आस्तिक होना बड़ी कंट्रोल्ड सी स्थिति है. उनके नास्तिक होने की स्थिति में भारत के लाखों साधु भूखे मर जाएँगे.
आस्तिकता के प्रश्न पर मेरा विचार है-जो आदमी होकर आदमी से प्यार करता है , जिसका अपने ऊपर विश्वास है , वह आस्तिक है । जिसके मन में दया धर्म ही नहीं , न तो वह आदमी कहलाने का हक़दार है न आस्तिक !
someone had said Doctors are God.......
and the big doctor is the god itself...
मैं तो ईश्वर की सत्ता को शत प्रतिशत स्वीकारता हूँ | अपनी सफलता का श्रेय प्रभु को देता हूँ किन्तु यदि कहीं असफल होता हूँ तो उसे अपनी कमी मानता हूँ | निराश , दुखी अथवा असफल होने पर ईश्वर से लड़ता-झगड़ता
भी हूँ |
"वन हू कंट्रोल्स द होल क्रियसन इज ईश्वर " मेरी मान्यता है | बिना किसी नियंत्रक के कुछ भी नहीं चल सकता |
इसी आस्तिकता का परिणाम है कि.......
१-लगभग २० वर्षों से कई बीमारियों को झेलते हुए भी सामान्य जीवन जी रहा हूँ |
२-वर्ष २००२ में तीन अच्छे अस्पतालों के चिकित्सकों द्वारा जवाब देने और लगभग मृत की स्थिति में आने के बाद भी माँ शक्ति की कृपा से ठीक हुआ |
बिना मालिक के कुछ भी नहीं......
एक कुम्भकार चिकनी मिट्टी देखता है, वह उस मिट्टी में घडा देखता है, घडा बनाने में अक्षम व्यक्ति को वह मात्र मिट्टी ही नज़र आती है। कुम्हार पूर्ण आस्था से उसमें घडा देख सकता है।
शिल्पकार पूर्ण आस्था से अनगड पत्थर में अपनी कल्पना का शिल्प स्पष्ठ देख सकता है।
उसी तरह नवजीवन नवनिर्माण करने में समर्थ स्त्री सदैव अपनी इस योग्यता पर पूर्ण आस्थावान होती है, अपने लहू से एक नया साक्षात जीवन? उसे हर सम्भावना पर आस्थावान बना देता है। यह एक मनोवैज्ञानिक सोच है। इसीलिये महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक आस्तिक होती है।
मानव का आत्मविश्वास बडा चंचल होता है, विरले ही अपने विश्वासों पर दृढ रह पाते है। ईश्वर में आस्था उसी आत्मविश्वास को आधार प्रदान करती है। मानव निश्चिंत हो कठिनाईयों से लड पाता है, दुखों को अपनी ही गलती मान सीख ग्रहण करता है। सुखों के लिये ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करता है। और अपना जीवन सहज बना लेता है।
ज्यादातर लोग नास्तिक नहीं होते हैं.. वो लोग मंदिर मस्जिद या गिरजाघर में इश्वर को नहीं ढूंढते हैं..
पर हाँ कुछ लोग उस अदृश्य शक्ति को भी मानने से इनकार करते हैं जो मुझे अटपटा सा लगता है.. क्योंकि कहीं न कहीं वो भी भगवान का नाम ले ही लेते हैं पर समाज के सामने इस बात को इनकार करते हैं..
शायद ये समाज का या खुद के भीतर का डर है जो उन्हें यह बात कहलवाने से मना करता है कि उन्होंने भी कभी इश्वर को याद किया था..
पढ़े-लिखे अशिक्षित पर आपके विचार का इंतज़ार है..
आभार
ye post kuch khas ho gaya.........
@
कुछ लोग जिन्हें इस चर्चा से.........ye tippani dekar apne
hamare man ki baat kah di.........sabhi ko naman..
pranam.
मै जब १२ वीं कक्षा में विज्ञान का विद्यार्थी था, तो विज्ञान के गुमान में बिलकुल नास्तिक हुआ करता था.अपनी इंजिनियरिंग के दौरान संयोगवश स्वामी विवेकानन्दजी जी की कुछ किताब(कर्मयोग,ज्ञानयोग ,भक्ति योग आदि )पढ़ने को मिली.उनके विवेचना पूर्ण और सार्थक तर्कों से थोड़ी थोड़ी आस्था बनी ईश्वर के बारे में.फिर उनके गुरु श्री राम कृष्ण परमहंस जी को पढ़ने की जिज्ञाषा हुई.उनके लीलामृत और वचनामृत को पढा.आस्था और प्रबल हुई.फिर अनेक महापुरुषों(महर्षि अरविंदो,महात्मा गाँधी,सुभाषचन्द्र बोष आदि) की जीवनी और चरित्र जानने का प्रयास किया.इन सबकी ईश्वर में अटूट आस्था थी और इन्होने जीवन में महान कार्य भी किये.गीता उपनिषदों को पढ़ने समझने की कोशिश की.मेरी नास्तिकता का धीरे धीरे खुद के ही ज्ञान और अनुभव से लोप होता गया .पूर्ण लोप हुआ ऐसा नहीं कह सकता .क्यूंकि मन बुद्धि बहुत चंचल हैं.जब ईश्वर की कृपा होती है तभी कुछ ठहराव आता है.नहीं तो तर्क-कुतर्क कर बन्दर की तरह उछल कूद मचाते ही रहते हैं.ईश्वर को जानना और पहचानना मलिन और चंचल बुद्धि से संभव ही नहीं.प्रेम चाहिये ,भाव और विचार की व्यापकता चाहिये,अहंकार का नमन चाहिये.इसीलये तो कबीरदासजी ने कहा
"ये तो घर है प्रेम का ,खाला का घर नाही
शीश उतारे भुई धरे, सो पैठे इस माही"
ईश्वर से जुड़ने अर्थात भक्त होने के चार प्रकार गीता में बताये गए .
अर्थार्थी -जो अपना मतलब (अर्थ)पूर्ण करने के लिये जुड़े.
जिज्ञाशु -जो ईश्वर को जानने की तीव्र इच्छा व उत्कंठा के कारण जुड़े.
आर्त- जो दुखी और कष्ट से अति कातर होकर जुड़े.
ज्ञानी -जो ईश्वर को जानता और पहचानता है पर प्रेम के कारण जुड़े.
जो ईश्वर से नहीं जुड पाता वह 'विभक्त' है अर्थात टूटा हुआ है ,और अपने क्षुद्र अहंकार वश विभक्त ही रहता है चाहे वह अपने को आस्तिक कहे या नास्तिक.जुडना मन बुद्धि और अंत:करण से होता है.नहीं तो सब ढोंग और दिखावा,खुद को और दूसरों को धोखा देना मात्र है.
maine khin padha tha--- itni mehnat kro ki ishver par vishvas bna rhe
yah bat ingit karti hai ki jb aadmi haarta hai to uska ishver se vishvas utth jata hai
dhoni ne to ishver men aastha parket kar li , khuda kre shrilankaai khiladiyon ka vishvas n uthe ve to lgatar do bar haar chuke hain
मेरे विचार - इश्वर की सत्ता सर्वव्यापी है , कण-कण में है । ईश्वर एक ही है। मेरी हर सफलता और ख़ुशी ईश्वर की कृपा से मिली है। दुखों का कारण अपनी अज्ञानता को मानती हूँ। बहुत बार इश्वर के साक्षात दर्शन भी किये हैं। जो नास्तिक हैं , उनमें भी ईश्वर के दर्शन किये हैं ।
जब ईश्वर के साक्षात दर्शन किए हैं, तो ये सवाल क्यों और किससे ? महोदया !!!!
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@-जब ईश्वर के साक्षात दर्शन किए हैं, तो ये सवाल क्यों और किससे ? महोदया !!!!
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मनोज भारती महोदय ,
आपके प्रश्न के जवाब में ---- मैंने ये प्रश्न उठाकर बहुत कुछ नया जाना इस चर्चा से ।
वैसे आप अगर मुझे नीचा दिखाने के बजाये कुछ सार्थक विचार यहाँ लिखते तो बेहतर होता ।
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राकेश जी ,
बहुत सार्थक विचार रखे आपने गीता के वचनों को यहाँ प्रस्तुत करके। बहुत कुछ नया जाना आपके माध्यम से ।
सुज्ञ जी ,
कुम्हार और घड़े के उदाहरण द्वारा बहुत सुन्दर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करके आपने स्त्रियों में आस्तिक होने की प्रवृति को बताया है ।
आभार।
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ईश्वर में आस्था और विश्वास व्यक्ति का निजी मामला है. आस्तिक और नास्तिक विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और निजी जिंदगी पर निर्भर है. प्रसिद्द व्यक्ति अपनी सफलताओं का श्रेय ईश्वर को देते हैं जिसमें संस्कार से मिली आदत भी जिम्मेदार है किन्तु इससे भी अधिक मिडिया ज़िम्मेदार है जो ऐसी ख़बरों को प्रमुखता से दिखलाती है.
according to my opinion it is a very emotional topic and i think none can deal with it impartial of his/her feelings for god and his existence...
even i cant say even a word against my god but still there are many people who don't believe in god and are 'nastik' and i too think their failure and incomplete dreams make them feel so bitterly for god ...
but i would ask them a question if they really think that god is a fictitious character, if god is not here then how can such a big arrangement of nature is running successfully ?
if they have an answer then i can believe like them too...
Dearest ZEAL:
Taa'fir Sanam-kade mein naa aataa main lautkar
Ek zakhm bhar gayaa to udhar le ke aa gayaa
Feels good to be back. Zmiles.
Wonderful Post.
Faith is the cornerstone of success. One who loses faith will eventually lose in life.
And then, the basic premise of faith is just this -
No proof is needed for the believer
No proof is enough for the disbeliever
Congratulations on the fine write-up.
Semper Fidelis
Arth Desai
1107
haan divya didi saahi bolti hain
harr insaan me ishwariya gun hote hain
aur kisi kisi me ishwar samaksh shakti bhi hoti hai
vivekanand,mother terresa,bhagat singh kya nahi the unhone bhi to ek bigul choda tha ..ek power jo fir kranti le aaya desh me....isliye Ishwar vyapak hai har jagah ...har kan me...har man me...har kshan me...
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सादर,
श्रीमती लिंडा मूर
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