छोटे भाई को समर्पित है यह कविता-
तुम कहते हो नफरत करते , पर तुमको मुझसे प्यार है
मेरा प्रेम है हल्का-फुल्का, ये नफरत तुमपर ही भार है
जो नफरत बनकर है फूट पड़ी , बस वही प्यार का सार है
चाहे जितनी शिद्दत से कर लो , मुझको सब स्वीकार है।
भइया तुम क्या जानो कितना , करते मुझसे प्यार हो
अपने ही दिल के हाथों तुम, इतना क्यूँ बेज़ार हो ?
तेरे दर पर आउंगी जब , क्या दूर खड़े रह पाओगे ?
निश्चल, जड़ बन खड़े रहोगे , अंक में भर न पाओगे?
मामा कह जब वे दौड़ेंगे , क्या गोद में ले न पाओगे ?
बच्चों की मुस्कान देख तुम, क्या निष्ठुर रह पाओगे ?
शादी होगी जब तेरी तो, जीजू से द्वेष मनाओगे?
बहनें करती है जो रस्में , वो किससे करवाओगे ?
कौन करेगा टीका तेरा, हल्दी किससे लगवाओगे।
बहन से होगी इतनी नफरत तो , गैरों से ख़ाक निभाओगे।
प्यार में ज्यादा शक्ति है या, नफरत में है बतलाओ
मैं तुम्हें चुनौती देती हूँ, तुम नफरत करके दिखलाओ
गुस्से को मत शांत करो , नफरत मुझसे करते रहना।
स्नेह की अग्नि पावन है , तुम पिघलोगे ये कहती बहना
आभार
52 comments:
Dearest ZEAL:
Good attempt.
Nice creation.
Semper Fidelis
Arth Desai
सही कहा आपने दिव्या!..जीत प्रेम की ही होती है....बहुत भाव्पूर्ण रचना...स्वागत है!
बहुत सुन्दर कविता... प्रेम में बहुत ताकत होती है...
It's so sweet Divyaji! Brothers are always fighting, that's their way to love! :)
आँखें भर आयीं ......दिव्या जी !
कितनी भाव विभोर होकर आपने लिखी है.... यह सरल-सहज किन्तु सीधे ह्रदय तक पहुँचने वाली कविता |
भाई और बहन का अनन्य प्यार ....कैसे रूठ सकता है !
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'प्रेम' ही सब रोगों की दवा है.......... आपने अपने प्रेमपूर्ण वक्तव्य से यह सिद्ध कर दिया कि 'सम्पूर्ण चिकित्सक' वह हैं जो प्रेम-मनोरोगियों की भी चिकित्सा करना जानता है.
कविता विधा में ही इतनी शक्ति है कि वह हृदय के अनकहे भावों को निष्कपट भाव से रख पाता है और इसका प्रभाव भी असरकारक होगा... मुझे उम्मीद है.
किसी का नफरत करना .... प्रेम का ही रूपांतरण है... एक हद तक सही है.
लेकिन ......... 'अंगूर खट्टे हैं" वाली कथा अवश्य पढियेगा.. कुछ और निष्कर्ष भी हाथ आयेंगे.
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आप संबंधों पर मार्मिक कवितायें करने लगे हैं. अब आपको किसी से प्रमाण-पत्र लेने की जरूरत नहीं है. आप काव्य-क्षेत्र में भी स्थापित हो ही गये.
पवित्र प्रेम शाश्वत सम्बन्धों का आधार है। शिष्ट व्यवहार शालीनता से भरा होता है।
भाई-बहन का प्रेम पवित्र प्रेम होता है। इसमें नफ़रत शब्द की जगह ही नहीं है।
आपने जो शालीनता दिखाई है काव्यात्मक अभिव्यक्ति में, उस शिष्ट व्यवहार के बाद के बाद तो भाई के मन में जो कोई भी खटास होगी दूर जाएगी (गई होगी)।
MAM BAHUT ACHI KAVITA HAI. BHAI BAHAN KA JO RISTA HAI WO APNE AAP ME BAHUT PYARA HAI. BHAI OR BAHAN ME JO NOK JHONK HOTI HAI WO BAHUT HI PYARI HOTI HAI. OR EK BHAI KO TO BAHAN KE SAMNE PINGHLNA HI PADTA HAI. DHANYWAD
बहुत भाव्पूर्ण रचना|धन्यवाद|
भाई बहन का प्रेम ऐसा ही होता है।
:-)
गुस्से को मत शांत करो , नफरत मुझसे करते रहना।
स्नेह की अग्नि पावन है , तुम पिघलोगे ये कहती बहना
भाई बहन रिश्ता बहुत पवित्र होता है .....यह भी सच है कि प्यार और तकरार एक सिक्के के दो पहलु हैं .....एक के होने से दूसरा स्वतः ही आ जाता है और अंततः जीत प्रेम कि होती है ....बहुत सुंदर
भाई बहनके बीच नफरत तो हो ही नहीं सकती यह भी प्यार का एक रूप है आत्मीय संबंधों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है, भाई-बहन का प्यार सलामत रहे..
भाई की ब्यथा भी कुछ होगी..वो भी सार्वजानिक होनी चाहिए..
मगर आप की कविता बहुत ही मर्मस्पर्शी है..भाई जान अगर आप मुझे पढ़ रहें हो तो कृपया विद्वेष भुलाये और दिव्या जी की दिखाई हुए राह पर चलें..
प्रेम में अदभुत शक्ति है..
दिव्या जी वो भ्राता हैं कौन??
जब आएगी रक्षाबंधन, निश्चित ही उलझ जाओगे।
सूनी कलाई पे नफरत का, धागा क्या बांध पाओगे?
बस यह अभिव्यक्ति शेष थी!!
marmik
गुस्से को मत शांत करो , नफरत मुझसे करते रहना ।
स्नेह की अग्नि पावन है , तुम पिघलोगे ये कहती बहना
भावुक कर देने वाली कविता है। क्रोध और नफरत को स्नेह से, प्यार से ही जीता जा सकता है।
Being Brother & Sister always means being there for each other....in any situation, be it a fighting one.......
दिव्या जी ! जब हम किसी से बहुत प्यार करते हैं तो उस पर कब अपना अधिकार भी मानने लगते हैं ...पता ही नहीं चलता. पता चलता है तब जब कोई अपेक्षा पूरी नहीं हो पाती. हम अनजाने ही अपने प्रिय व्यक्ति के प्रति अपने बनाए मानक गढ़ने लगते हैं.....कोई आवश्यक नहीं कि उस मानक को स्वीकार किया ही जाय. क्योंकि जिसके लिए मानक गढ़े गए हैं उसके खुद के भी तो कुछ मानक हैं ....... मानकों के टकराव से व्यक्ति टूट जाता है और वह अपने प्रिय व्यक्ति के प्रति नफ़रत करने लगता है जो इस बात का प्रतीक है कि हम प्यार तो तुम्हें करते हैं पर हमारी शर्तों पर .....शर्त पूरी नहीं तो प्यार नहीं. दरअसल ऐसे लोग खुद को ज्यादा प्यार करते हैं. और चाहते हैं कि सामने वाला उनके मानकों के अनुसार जीवन जिए ...इसी में उसकी खुशी है. जबकि वह भूल जाता है कि हर किसी की अपनी ज़िंदगी है ...और उसे अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार है. हाँ ! यह एक अहम् की अकड़ भी है. प्यार ख़त्म नहीं होता रूपांतरित हो जाता है ...नफ़रत में .......दरअसल प्यार अब और भी गहरा हो गया होता है. दिव्या जी आपके भाई का प्यार आपके लिए कभी ख़त्म नहीं हो सकता. जैसे-जैसे नफरत बढ़े समझ लेना प्रेम भी उतनी ही इंटेंसिटी में बढ़ रहा है ...और इस प्रेम की तड़प नफ़रत को और बढायेगी. दोनों अन्योन्याश्रित हो गए हैं .....इन दोनों की वार्मिंग एक दिन दोनों को पिघला देगी. प्रतीक्षा कीजिए.
बहुत सुन्दर रचना ।
भावपूर्ण ।
सार्थक ।
लेकिन कोई भाई बहन से नफरत कैसे कर सकता है ?
स्नेह के बंधन में नफरत कहाँ ?बल्कि स्नेह का अतिरेक है जिसे आप ने नफरत का नाम दे दिया है |
इतने स्नेह को तो स्नेह ही मिलेगा |मुझे हमारा एक लोक गीत यद् आ गया आपकी इस सुन्दर कविता को पढ़कर |
बयनीका अगंना म पिपलई रे वीरा चुनर लाव्जे
लावजे तो सबई सारू लावाजे रे वीरा ,चुनर लावजे
नहीं तो रहजे अपना देश माडी जाया ,चुनर लावजे |
अर्थ -बहन के घर में शुभ प्रसंग आया है और जहं घर के पास बहुत बड़ा पीपल का पेड़ है वाही बहन का घर है |तुम मायरा लेकर आओगे तो पूरे परिवार के लिए लाना ,नहीं तो अपने देस में ही रहना मेरी माँ के लाल |
गीत तो बहुत बड़ा है और आंखे भी नम कर देता है आपकी कविता की तरह |
भाई जरुर आवेगा और स्नेह की वर्षा करेगा |
प्यार में ज्यादा शक्ति है या, नफरत में है बतलाओ
मैं तुम्हें चुनौती देती हूँ, तुम नफरत करके दिखलाओ
गुस्से को मत शांत करो , नफरत मुझसे करते रहना।
स्नेह की अग्नि पावन है , तुम पिघलोगे ये कहती बहना
बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
अच्छी अभिव्यक्ति के लिए बधाई
बेहतरीन प्रस्तुति
भाई की इस नफरत में भी प्यार ही है
जीत भी आखिर प्यार की ही होती है
नफ़रत प्रेम का दूसरा रूप ही तो है:)
बर्फ एक न एक दिन पिघलेगी।
संबंधों को सींचती कविता. दिव्या जी बहुत बढ़िया.
गुस्से को मत शांत करो , नफरत मुझसे करते रहना ।
स्नेह की अग्नि पावन है , तुम पिघलोगे ये कहती बहना
वाह क्या बात हे, बहुत भावुक बना दिया आज आप ने, धन्यवाद
गुस्से को मत शांत करो , नफरत मुझसे करते रहना।
स्नेह की अग्नि पावन है , तुम पिघलोगे ये कहती बहना |
भई बहन के स्नेह में पगी अच्छी अभिव्यक्ति ....इतने सुन्दर भावों को पढ़ कर तो भाई नाराज़ रह ही नहीं सकता ..
बहिन से कोई भाई नफरत कैसे करेगा ??
सुन्दर कविता, मन को भा गयी।
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वाह वाह, भावपूर्ण सरल अभिव्यक्ति !
Nice post,
मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में कहीं ज़्यादा
मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने....... हार्दिक बधाई।
प्रसंग सामयिक और विचारणीय। अपना प्रभाव छोड़ऩे में समर्थ।
आप कविता लिखने में भी सिद्धहस्त हैं ...
भावुक रचना !
बहुत सुन्दर रचना.
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आदरणीय जगन जी ,
सबसे पहले तो मैं आपको ह्रदय से आभार कहूँगी जिसने गलत बात के खिलाफ निस्वार्थ होकर आवाज़ उठाई। समाज में आप जैसी पुरुषों के कारण ही स्त्रियों के दिल में पुरुषों के लिए अभी भी सम्मान शेष है।
लोग बातें बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन एक स्त्री जब अपमानित होती है , तो उसके सम्मान की रक्षा करने वाला कोई विरला ही होता है। ९० % लोग ( स्त्री एवं पुरुष दोनों) ही केवल तमाशबीन होते हैं । किसी का तमाशा बनते देखकर चुपचाप तटस्थ रहकर ,एक Sadistic pleasure लेते हैं। ऐसे लोगों के साथ भी मैं सहानुभूति रखती हूँ।
आपका पुनः आभार जिसने एक स्त्री को अपमानित होते देखकर आवाज़ उठाई। आपको मेरे कारण अमरेन्द्र ने 'लप्पू-झन्ना' कहा , इसके लिए मुझे अफ़सोस है। आपका व्यक्तित्व , आपकी उच्च शिक्षा एवं उम्दा विचार आपकी शैली एवं आपके कमेट्स में भरपूर परिलक्षित होते हैं । आपको लप्पू झन्ना कहने वाला नादानी कर रहा है।
अपमानित होती एक स्त्री का साथ देने के लिए बहुत बड़ी चारित्रिक दृढ़ता की आवश्यकता होती है , जो डरे हुए भयभीत लोगों में नहीं होती , लेकिन आपमें है वो दृढ़ता।
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जहाँ तक अमरेन्द्र का सवाल है वो यकीनन बहुत गलत कर रहा है , लेकिन अभी वो छोटा है , जिसने दुनिया नहीं देखी है। शायद समय के साथ उसमें परिपक्वता आ जायेगी। अमरेन्द्र को मेरे लेख पर उल्लिखित एक सच्ची घटना को लेकर , फिर उसे तोड़-मरोड़कर एक मार्मिक कहानी बनाकर अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत नहीं करना चाहिए था। इससे इनका मंतव्य जाहिर हो गया है जो अछाम्य है ।
लेकिन अमरेन्द्र त्रिपाठी को क्या दोष दूँ। उसने तो पिछले सप्ताह मुझे मेल लिखकर सूचित हर दिया था की वो जीवन पर्यंत मुझसे शिद्दत से नफरत करेगा। ऐसी अवस्था अमरेन्द्र जो कर रहा है , उससे उसी की अपेक्षा की जा सकती है , इससे ज्यादा की नहीं।
अमरेन्द्र को संसार का कोई भी व्यक्ति समझा नहीं सकता। जब तक उसमें स्वयं में एक insight नहीं develope हो जाती ।
स्त्री चाहे दलित अथवा गरीब तबके की हो अथवा मेरी तरह साधन संपन्न हो , हर जगह स्त्री को प्रताड़ित और अपमानित ही होना होगा। अपमान करने वाला गरीब और अज्ञानी भी हो सकता है तथा विद्वान् और शिक्षित भी हो सकता है ।
ब्लॉगजगत में बहुत से ब्लॉगर्स ने अब तक कई लेख मेरे खिलाफ अपमानित करने के लिए लगाए हैं , लेकिन उन लेखों में उन्होंने अपने ही चरित्र का परिचय दिया है । मेरे ऊपर कीचड उछालने से कोई लाभ नहीं मिल सका उन लेखकों को।
मैंने बहुत से द्वेष रखने वाले लेखकों को आभार देकर स्वयं को किसी भी प्रकार के द्वेष से पृथक कर लिया था अपनी इस पोस्ट द्वारा --" प्यार आपका आभार हमारा "
http://zealzen.blogspot.com/2011/01/blog-post_21.html
सोचा था मुझसे द्वेष रखने वाले शायद शान्ति से जीने देंगे मुझे , लेकिन ये मेरा भ्रम था।
मेरे हाथ ज्यादा कुछ नहीं है । संसार का नियंता तो ऊपर बैठा है , वही सही गलत का उचित निर्णय करेगा। मेरे हाथ में स्वयं पर नियंत्रण रखना ही है । नफरत का बदला सदैव स्नेह से ही देने की कोशिश करूंगी। स्नेह नहीं दे सकूंगी तो दूरी बनाकर रखूंगी , इतना ही कर सकती हूँ।
शेष हरि इच्छा ।
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अनुपम उत्कृष्ट भावों से ओतप्रोत आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति को प्रणाम.
आप अपने को संत कहें या न कहें,पर आप उसी ओर तो बढ़ रहीं हैं नफ़रत के सूखें में प्यार की बरसात करके,आभार.
इश्वर भैय्या को सदबुद्धि दे .
गुस्से को मत शांत करो , नफरत मुझसे करते रहना।
स्नेह की अग्नि पावन है , तुम पिघलोगे ये कहती बहना
इस स्नेहिल अभिव्यक्ति के लिये बहुत-बहुत बधाई .. बहुत ही भावमय करते शब्द इन पंक्तियों के ।
भाई - बहन चाहे आभासी दुनिया के हों या फिर वास्तविक दुनिया के , प्रेम ही नैसर्गिक भावना है. जिसे आप भाई की नफरत समाजह रही हैं उसमें भी कहीं न कहीं उसका प्रेम निहित है. छोटी-मोटी बोल-चाल या लड़ाई झगडा तो सामान्य बात है. सगे भाई बहन की तो बात ही क्या, रानी कर्मवती द्वारा राखी भिजवाए जाने पर हुमायूँ ने उनकी भरपूर सहायता की थी . जीत सदा प्रेम की ही होना निश्चित है, इसमें कोई संदेह नहीं . नफरत की आंच को प्रेम की शीतलता की दरकार है !
आपके कवयित्री रूप का एक और बेहतरीन उदाहरण सामने है. बधाई स्वीकार करें !
bahut hii bhavpurn rachna. prem hii jiivan ka aadhar hae .
बेहद भावपूर्ण पंक्तियाँ...पढ़ कर किसी का दिल भी कठोर न रह पाए.
हम जिसे अपना समझते हैं उसी से कुछ कह भी सकते हैं...चाहे प्यार हो...चाहे नफरत...थोड़े शिकवे भी हों कुछ शिकायत भी हो तो मज़ा जीने का और भी आता है...भाई को मनाने की कोशिश है...वो भी ठसके के साथ...बहन हो तो ऐसी दमदार...
It is for the first time i am seeing a poem for a younger brother....very nice.
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