कुछ चिकित्सक पैसों की लालच में स्त्रियों का गर्भाशय निकाल कर उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। एक सामान्य स्त्री यह निर्णय नहीं ले सकती की गर्भाशय निकाले जाने की आवश्यकता किन परिस्थितियों में होती है। यह निर्णय केवल एक चिकित्सक ही ले सकता है। मरीज तो उस पर भरोसा करके अपना स्वास्थ और अपनी खून-पसीने की कमाई उसके हवाले कर देता है।
डॉक्टर का दायित्व है की वो मरीज के इस भरोसे का सम्मान करे।निज स्वार्थ के लिए उसके स्वास्थ से खिलवाड़ न करे। मरीज को किसी भी शल्य चिकित्सा से गुजरने से पहले किसी अन्य डॉक्टर से "second opinion" अवश्य ले लेना चाहिए। जो गरीब हैं अशिक्षित हैं , उनके सामने ज्यादा बड़ी समस्या है, वो ज्ञान , निर्णय, उचित सलाह , हर बात के लिए पराश्रित हैं । हमारा नैतिक दायित्व है की हम आस-पास के परिवेश में जरूरतमंदों को शिक्षित और जागरूक करें।
गर्भाशय निकालने की आवश्यकता निम्न परिस्थियों में पड़ती है-
- Vaginal prolapse
- Excessive obstetrical heamorrhage (अत्यधिक रक्तस्राव)
- गर्भाशय का कैंसर
- ओवरी का कैंसर
- सरवाईकल कैंसर
- गर्भाशय में ट्यूमर
- placenta praevia आदि।
गर्भाशय निकल जाने के दुष्प्रभाव-
- गर्भधारण नहीं हो सकता .
- यदि गर्भाशय के साथ ओवरी भी निकाल दी जाएँ तो Estrogen नामक हारमोन बहुत कम हो जाता है और ह्रदय रोग बढ़ते हैं और हड्डियों का घनत्व(डेंसिटी) कम होने से 'ऑस्टियोपोरोसिस' हो जाता है, जिससे हड्डी के फ्रैकचर होने की संभावनाएं बढ़ जाती है , ऐसा 'surgical menopause' के कारण होता है।
- urinary incontinence
- Vaginal prolapse
- bladder और bowel का proper support ख़तम हो जाता है।
- दैनिक कार्यों में कम से कम चार माह तक बाधा उपस्थित होती है।
- Ectopic pregnancy (यदि ओवरी नहीं निकाली गयी तो) very rare
- गर्भाशय को निकालने का विकल्प अंतिम होना चाहिए । इसके पूर्व अन्य चिकित्सा विधियों द्वारा इलाज करना चाहिए। लाभ न होने की अवस्था में Hysterectomy (removal of uterus) को अंतिम विकल्प की तरह अपनाना चाहिए।
Dysfunctional uterine bleeding, uterine fibroid , prolapse आदि की चिकित्सा , ablation आदि अन्य चिकित्सा विधियों से की जा सकती हैं । केवल लाभ न होने की स्थिति में ही अंतिम विकल्प का उपयोग होना चाहिए।
किसी भी रोग में क्या उचित है और क्या नहीं इसका निर्णय चिकित्सक ही ले सकता है, लेकिन मरीज को जागरूक होना बहुत जरूरी है। मन में आये किसी भी संशय को अपने डॉक्टर से पूछकर समाधान अवश्य कर लें।
आभार।
79 comments:
मुझे लगता है महिलाओ में बहुत कामन सा रोग हो गया है अधिक रक्तस्राव . मैंने अपने कई रिश्तेदार महिलाओ को उपरोक्त शल्य चिकित्सा से गुजरते देखा है .बाकी लूट खसोट तो हर जगह मची है .
दिव्या जी ! बेहतर होता कि इतनी अच्छी जानकारी के साथ तकनीकी शब्दों को सरल शब्दों में लिखा होता प्रोलेप्स और मीनोपौज जैसे तकनीकी शब्द बहुत सारे लोग नहीं समझ सकेंगे.
दूसरी बात यह कि आपको कमर कसके नेट पर मेडिकल कौन्सेलिंग के लिए तैयार हो जाना चाहिए ...हमारे देश में इसकी कितनी ज़रुरत है यह आपको बताने की ज़रुरत नहीं है.उच्च शिक्षित लोग भी सही जानकारी के अभाव में स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर बैठते हैं ......मैं खुद भी इलाज़ से ज़्यादा कौन्सेलिंग में विश्वास रखता हूँ ....और यही ज़्यादा करता हूँ ......आशा है कि इस तरफ ध्यान दोगी.
कौशलेन्द्र जी ,
आपका कहना बिलकुल सही है , लेकिन जिन शब्दों की हिंदी नहीं आती उन्हें इंग्लिश में ही रहने देती हूँ।
आशीष जी ! जैसा कि दिव्याजी ने बताया अति रक्तस्राव की स्थिति में हमेशा ही पूरा गर्भाशय (टोटल हिस्टेरेक्टोमी ) निकालने की आवश्यकता नहीं होती. यह तो आजकल एक चिकित्सकीय फैशन हो गया है. जबकि भारतीय चिकित्सा पद्यतियों में कई बार गंभीर स्त्री रोगों का भी बिना शल्य कर्म कराये बेहतर इलाज़ हो जाता है. और फिर रक्त स्राव कोई रोग नहीं बल्कि एक लक्षण है जो कई व्याधियों में हो सकता है.
दिव्या जी ,
बहुत जीवनोपयोगी जानकारी दी है आपने लेख में ....हमारा दायित्व है कि जहाँ भी संभव हो हम इसका सदुपयोग अवश्य करें |
आम आदमी डाक्टर को भगवान् समझता है , उसके साथ इस तरह का विश्वासघात चंद स्वार्थी लोगों द्वारा
किया जाना अति निंदनीय है |
जागरूक किये जाने की जरूरत है |
ek sahi jankaari .....
jai baba banaras.....
दिव्या जी
बहुत बढिया जानकारी दी है आपने इसी तरह बताती रहा करिये आपके मार्गदर्शन से काफ़ी लोगों को फ़ायदा होगा।
divya ji...bahut dukhad hai....par apne yahan to mahilaye..shaukh se garbhasay nikalbati hai,,
डॉ. को भगवान का दूसरा रूप माना जाता हैं , लेकिन कुछ स्वार्थी डॉक्टरों द्वारा आम आदमी के साथ इस तरह का विश्वासघात किया जाना बहुत ही दुःखद और निंदनीय हैः । ...... आभार
यह घटना मानवता को शर्मसार कर देने वाली है...
आपने गर्भाशय निकालने की आवश्यकता औरगर्भाशय निकल जाने के दुष्प्रभाव पर बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है....जागरूक की दृष्टि से यह जानकारी सभी को होनी चाहिए।
अत्यंत तथ्यपरक एवं सारगर्भित लेख के लिये हार्दिक बधाई।
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“देख तेरे सँसार की हालत क्या हो गई भगवान; कितना बदल गया ईन्सान, सुरज न बदला चाँद न बदला ना बदला रे आसमान; कितना बदल गया ईन्सान !!”
गुज़र गये वह ज़माने जब गीतकार इन बदलाव पर बिसूरा करता था, आज की तल्ख़ हकीकत तो कुछ इस तरह होगी
“देख तेरे सँसार की हालत क्या हो गई विज्ञान; कितना बदल गया विधान, भगवान भी नकली ईन्सान भी नकली सबको प्यारी रुपयों की पोटली; आज रुपया हैं भगवान; कितना बदल गया विधान !!
बहुत सही जानकारी दी है आपने। व्यवसाय और सेवा में फ़र्क़ होना चाहिए।
मरीज़ भी जागरूक हों ... ज़रूरी हैं इस तरह के आलेख।
कुछ संस्मरण हैं। कभी मन बना तो शेयर करूंगा।
दिव्या जी ,आपने ठीक लिखा है ऐसे डाक्टर तो वाकई शर्मसार करते हैं ।एक आम आदमी तो डाक्टर को धरती का भगवान ही मानता है ।
आपका आलेख क्लिष्ट विषय को आसान बना गया ....आभार !
यह तो पेशे को बदनाम करना ही हुआ...
जो अशिक्षित हैं उनके लिए क्या किया जाए...वही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं...पढ़े-लिखे सैकेंड ओपीनियन ले सकते हैं पर बेचारे जो गरीब हैं, अशिक्षित हैं वो क्या करें....यही सबसे बड़ा प्रश्न है....
सामयिक लेख और महत्वपूर्ण जानकारी. अपने profession से ग़द्दारी करने वाले चिकित्सकों के चंगुल से महिलाओं को बचाने का एक सराहनीय प्रयास !
बधाई !
परिवार नियोजन और स्टेम सेल की खातिर महिलाओं के जीवन से खेला जाता है जो निंदनीय है ॥
बेहद निंदनीय!
एक ऐसी सच्चाई से रूबरू करवाया जिससे आज हर दूसरी महिला गुजर रही है |जिन डाक्टर्स को गर्भाशय निकलना होता है वे तो बसकहती है आजकल तो गर्भाशय निकलना बिलकुल ब्रेड बटर खाने जैसा आसान हो गया है और ये भी कहती है की बच्चे होने के बाद गर्भाशय की क्या आवश्यकता है ?जो दुष्परिनाम आपने बताये है मै उसकी भुक्त भोगी हूँ |
राजस्थान की घटना निंदनीय है |कई बार महिलाओ को छुआ -छूत से भी छुटकारा मिल जायेगा यह कहकर भी बाध्य किया जाता है जिसमे अक्सर गाँव की महिलाओ का प्रतिशत ज्यादा होता है |
बहुत बहुत धन्यवाद इस तरह की और पुख्ता जानकारी देने के लिए |
आप को जिन शव्दो की हिन्दी नही आती उन्हे सरल बना कर दुसरे ढंग से भी समझा सकती हे ओर इस अग्रेजी के शव्द को बरेकेट(..) मे रख सकती हे, आप एक ब्लाग शुरु करे जिस मे इन सब छोटी मोटी बिमारियो के बारे लिखा हो, ओर उन का सरल इलाज भी साथ मे, ओर लोग टिपण्णियो मे आप से सवाल भी पुछ सके या ई मेल से जो महिलाये अपना नाम नही बता सकती, या अपना राज नही सब को बताना चाहती हे, यह एक बहुत अच्छा काम होगा, लोगो की कम से कम आंखे तो खुलेगी, ओर उन ड्रा० से तो बचेगे जो मरीज को खुब लुटते हे, जहां तक हो चलती फ़िरती हिन्दी ही सही (लेकिन हिन्दी मे लिखने से सब लोगो को समझ आता हे)लेकिन हिन्दी मे ही लिखे एक प्राथना. धन्यवाद
जानकारी देता उम्दा लेख. अभी जयपुर के पास सीकर जिले में तकरिबन सभी डॉक्टरों ने एक नया धंधा खोला है. कोई भी स्त्री जाए तुरंत कह देते हैं बच्चा ओपरेसन से ही होगा. निर्दयी डाक्टर बिना देरी किए चीरा लगा देते हैं, फीस होती है लगभग पचास हजार रूपये. बड़ा दुःख होता है. गरीब व्यक्ति अपना खेत बेच कर पैसे चुकाता है, यदि नोर्मल डिलीवरी हो तो डाक्टरों के कुछ बचता नहीं इसलिए बच्चे की जान को खतरा बता कर चीरा लगा डालते हैं. सात दिनों तक महिला को वहीँ रखते हैं, जिसका खर्चा अलग.
बड़े ही शर्म की बात है की इसमें ज्यादातर महिला डाक्टर ही लिप्त हैं, इनका भला कैसे होगा ? इन्हें जरुर इनके किए की सजा मिलेगी, चाहे देरी से ही सही.
आभार.
bahut badhiya jaankari di....yeh kaary sach me nindaneey hai...
रोज ही ऐसी कोई घटना प्रकाश में आ जाती है.ऐसे स्वार्थी डॉक्टर अब मुट्ठी भर नहीं टोकरा भर हो गए हैं.
अच्छी जानकारी दी आपने.
पहला हिस्सा चिंताजनक. दूसरा आसान नहीं समाधान.
सुंदर पोस्ट डॉ० दिव्या जैसा खेत होगा वैसी फसल और पौधे होंगे |किसी भी पेशे का दोष नहीं है समूचे समाज के इंजन की सर्विसिंग की आवश्यकता है |डॉ० वकील नेता अधिकारी हमारी [जनता ]ही कोख से जन्म लेते हैं अब खुद अपने गिरेबान में झाँकने की जरूरत है |रिश्ते नाते परिवार समाज क्या बचा है |
बिल्कुल सही कहा है आपने इस आलेख में ...बेहतरीन प्रस्तुति एवं मार्गदर्शन के लिये आभार ।
जानकारीपूर्ण सुन्दर लेख के लिए बहुत बहुत आभार.
बेहद सटीक अभिव्यक्ति ... आभार
यदि गर्भाशय के साथ ओवरी भी निकाल दी जाएँ तो महिला के चेहरे पर बाल यानी कि दाढ़ी मुछ आने लगती है और आवाज भी भारी हो जाती है ऐसा मादा जनन हार्मोनो के असंतुलित हो जाने से होता है
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विज्ञान पहेली -११
Shameless fellows. I am extremely hurt to read this.
Hope humanity will prevail.
जब से डाक्टरों ने खुद अपने अस्पताल खोले हैं इस तरह की घटनाएँ बहुतायत में होने लगी हैं। ये तो कुछ नहीं है। डाक्टर इस से भी बहुत नीचे चले गए हैं कमाने के फेर में। दूसरे प्रोफेशनल्स भी कम नहीं हैं।
बहुत जीवनोपयोगी जानकारी दी है आपने लेख में .
एक अति जागरूक आलेख!! साधुवाद दिव्याजी
अकसर मरीज स्वयं को दुविधा और चक्रव्यूह में पाता है।
अफ़सोस , तालाब को गन्दा करने वाली मछलियों की संख्या बढती जा रही है ।
लेकिन डॉक्टर भी उसी समाज का हिस्सा हैं , जिसमे हम सब रहते हैं और भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं ।
बदलना तो सब को ही पड़ेगा ।
बहुत आवश्यक एवं उपयोगी लेख...दुर्भाग्य से इन विषयों पर बहुत कम लेख मिल पाते हैं ! आशा है इस विषय का ध्यान रखेंगी !
शुभकामनायें !
आज कल लोगों को पैसे के अलावा कुछ नहीं दीखता... निंदनीय कृत्य
जागरूक करती उपयोगी प्रस्तुति।
@हमारा नैतिक दायित्व है की हम आस-पास के परिवेश में जरूरतमंदों को शिक्षित और जागरूक करें।
आपके इस महत्वपूर्ण सुझाव का अवश्य पालन करेंगे।
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है...
divya ji kafi dino baad mera aana hua net ki kathinayi ki vajah se .... sare post padhe aapke ,ye post aapne bahut hi jankari vardhak diye hain ,par aajkal dr. bhi apne peshe ko kamane ka jariya samjh kar zindagiyon se khel rahe ... bahut hi achhi prsututi
आपके ज्ञान और जन चेतना के निमित्त इस अभियान को नमन ! ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
जाट देवता की राम-राम,
मैं भी राज भाटिया जी की ही बात दोहराना चाहता हूँ।
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
docter 's ke kale karname ,aur jankari bhra aalekh
shaayd aapko bura lge lekin yah bhi sach hai ki lagbhag sbhi dr. kmishan vali mahngi aur genric dvaaen likhkar mriz ka shoshan karte hain
ऐसा निंदनीय कृत्या जो चिकित्सक पैसे के लालच में सलाह देते है और आधुनिकता के नाम पर मानवता को सर्मसार करने वाला ,समाज में जागरूकता जरुरी है आपने बराबर सामाजिक कुरीतियों की तरफ ध्यान खीचा है बहुत-बहुत धन्यवाद .
महत्त्वपूर्ण, उपयोगी जानकारी है और आपने मुश्किल से समझ में आने वाली बात सरलता से समझा दी. साधुवाद.
दुर्भाग्यपूर्ण
इस देश के लोगों को आजादी हजम नहीं हुई. जिन्हें आजादी की कीमत पता थी वे फना हो गये, नतीजा आपके सामने. सबके सब .... बन चुके हैं..
भ्रष्टाचार का सालों पुराना लेकिन हाल ही में उजागर रूप है यह भी..
डॉक्टरों ने अब अपने पेशे की भाषा छोड़ कर अपने अस्पतालों/औद्योगिक घरानों द्वारा दी गई भाषा बोलना शुरू कर दिया है. कहाँ जाएँ.
सुंदर आलेख. आभार.
सच्चाई का आभास !न जाने कितनी जिन्दगियां संवार देगा।
सुधा भार्गव
ganda hai par dhandha hai ye...har chiz ko dhanda bana diya hai...aisa doctor pakadna chahiye jo money minded na ho aur khamkhah doctery na kare...aise achchhe doctors hain, aur mil bhi jaate hain...bahut sahi kaha "एक पवित्र पेशे को शर्मसार करते मुट्ठी भर डॉक्टर"...
Dearest ZEAL:
The basic element with which one goes to any doctor is Faith.
Medicine is one such field where only the very best can practice and the ordinary folk know this fact and hence what a doctor opines is taken on face value.
Undoubtedly doctors are most knowledgeable and while knowledge with divine blessing heals each and every one, but with devil’s impetus it leads to gross avarice in some cases. That is what we see in the recent update you mentioned of Rajasthan. Illiteracy and poverty are also abetting factors for the malevolent practitioners. So often, we see that in small towns or ghettos locales of even big cities, most of the ‘doctors’ are simply quacks. But they thrive on, sadly.
Having said that, organ harvesting is not only restricted to ignorant masses. Even in advanced nations like US, there have been syndicated crimes of such nature by medicos. It all, eventually, boils down to trust that a patient places in the doctor.
When one vitiates the trust, then morals are cast away and ethics are forsaken. In such times, it is sheer misfortune of the sufferer.
You have advised that one must take a second opinion if there seems a need for it. As an individual, and one who may be slightly better educated than the quasi-illiterate victims, even I would be hesitant to take another opinion if a doctor whom I went to tells me something. That is because I inherently trust the doctor!
However, such instances like the one you have referred to really makes us wonder – Are we being taken for a ride? The number of such doctors is indeed very miniscule compared to the larger fraternity of do-gooders and that helps people maintain their belief in the practitioners of the most noble profession.
About the second part of your post, what do I say!! Superbly informative and well laid out. As one reads on, the stamp of your authoritative command over the subject matter impresses tremendously. The usage of medical terms and terminologies is so fluent. It can come only from strongest hold on the topic. Forever, I am in awe of your prowess. I am certain your information will help people a great deal.
Semper Fidelis
Arth Desai
Dearest ZEAL:
Sharing a thought.
A Tale Of Two Cities
I was in Hiroshima that day, know I
And also was I there then in Pompeii
Saw I, from above the earth and under
To death the cities two doth surrender
Heavens that day turned a blind eye
Pluto of Hades flashed a smile sly
Ah, history does in time repeat itself
Then on masses, now on a single self
Mute witness to the horror so treaded
Helpless, hapless, my pleas unheeded
Forbidden, forlorn, I not to be talked
Hunters, again now, prey boldly stalked
God’s Chosen Child! One Clarion Call this is!!
Hear! See! Beware! Sense! Act! Save! Please!!
Semper Fidelis
Arth Desai
जागरुक करती पोस्ट. आभार...
क्या बतायें दिव्याजी बस हमको कम से कम ये बात न याद आये तो अच्छा है। भुक्तभोगी हूँ। यही क्या आजकल तो मेडिकल प्रोफेशन बाजार वाद के हिसाब से चलता है। किदनी ही निकाल लेते हैं जो कि जीवन के लिये बहुत उपयोगी होती है यूटरस की तो बात ही छोडो। मै अपोलो हस्पताल से बहुत मुश्किल से आयी थी बच कर मेरे पति को तो उन्होंने किडनी मे भी टयूमर बता दिया था जब कि मुझे इस से रिलेटद कोई तकलीफ नही है न पहले थी। मैने ही जिद्द पकड ली कि दोबारा कुछ दिन बाद दाखिल हो जायेंगे। फिर मै नही गयी।मुझे नही लगता कि ऐसे भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सकता है जिनके मुँह खून लग चुका है वो कभी नही छोड सकते। अच्छी जानकारी धन्यवाद।
पैसे के लालच में कुछ स्वार्थी लोगों ने इस पेशे को बदनाम कर रखा है . आप ने आगाह करते हुई बहुत ही अच्छी जानकारी दिया है. .............. सुंदर प्रस्तुति.
very nice post
मरीज पूरी तरह से डाक्टर के ऊपर भरोसा करते है और डाक्टर इस हद को पार कर जाए तो बचा ही क्या ?
कुच्छ मुथिभर लोग नहीं दिव्या जी भारत में तो शहर की गली में आपको मिल जातें हें
दिव्या जी!
बहुत बढिया जानकारी दी है आपने!!
इसी तरह बताती रहा करिये आपके मार्गदर्शन से काफ़ी लोगों को फ़ायदा होगा.
आज गुड फ्राई डे क अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं आपको !!
durbhagyapurn ghatna.......
एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है जी -=-फिर डॉ. पेशा जितना सम्मानित है उतना ही बदनाम भी है
दिव्या जी ,
बहुत जीवनोपयोगी जानकारी दी है आपने लेख में ...सुंदर प्रस्तुति.
Its a matter of national shame .why people doing
this like ? Really they have lost their India.Very
very important and impressive related with sensibility, issue you have raised for all of us. very-2 thanks ji.
आप स्वयं डॉ.हैं फिर भी ऐसी स्पष्ट पोस्ट लगाई,आपकी नरम दिली और संवेदनात्मक सोंच की मैं दाद देता हूँ.आप हिम्मती है और अच्छी सोंच रखती हैं ,ये तो मैं समझता था,मगर इतनी अच्छी ये मैं नहीं समझता था.इसे आप मेरी नासमझी कहें तो भी बुरा नहीं मानूंगा.
आपकी जितनी सरहाना की जाए कम है... यह एक बहुत अच्छा प्रयास है... लोगों की जागरूकता जरूरी है... पैसे के लोभ में किये गए ओप्रेसन मानवता के साथ खिलवाड है... किन्तु कही ऐसा ना हो कोई ओप्रेसन के लिए जरूरतमंद डॉक्टर की सच्ची राय पर ही संदेह करे....
गर्भाशय और ओवरी निकाल देने से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से अवगत कराती अच्छी पोस्ट। दुख तो इस बात का है कि इन सब बातों को जानते हुए भी चिकित्सक धन के लोभ में इस तरह के दुष्कर्म में लिप्त हैं।
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@--आपकी जितनी सरहाना की जाए कम है... यह एक बहुत अच्छा प्रयास है... लोगों की जागरूकता जरूरी है... पैसे के लोभ में किये गए ओप्रेसन मानवता के साथ खिलवाड है... किन्तु कही ऐसा ना हो कोई ओप्रेसन के लिए जरूरतमंद डॉक्टर की सच्ची राय पर ही संदेह करे....
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डॉ नूतन ,
आपका कहना सही है। हो सकता है लोग डॉक्टर की सच्ची राय पर ही संदेह करें । लेकिन ये तो उनकी अज्ञानता होगी। जागरूक रहने के साथ ही अपने विवेक का इस्तेमाल करना है। हर परिस्थिति में विवेकपूर्ण निर्णय लेना है । और विवेकपूर निर्णय जागरूक व्यक्ति ही ले सकता है ।
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कहते हैं "Ignorance is bliss"....लेकिन इतना भी ignorant होना उचित नहीं की अपना हित-अहित ही न देख सकें।
अपने पेशे के खिलाफ लिखने में असीम कष्ट होता है । लेकिन न लिखना भी पक्षपात करने जैसा हुआ । अपने ही भाई-बहनों को अन्धकार में रखना आत्मा पर बोझ बन गया। बहुत बार कलम उठायी इस विषय पर लिखने के लिए लेकिन पर्याप्त हिम्मत और इमानदारी नहीं जुटा सकी । लेकिन इस तरफ डॉक्टरों में बढती व्यावसायिकता ने मजबूर कर दिया इस विषय पर निष्पक्ष होकर लिखने के लिए।
यदि चिकित्सक इस विषय पर अपनी कलम नहीं चलाएगा तो भ्रष्टाचार का मुहीम अधूरा रह जाएगा। जरूरी हैं की हर व्यक्ति चिकित्सा सम्बन्धी बातों को जाने । जो डॉक्टर पर भरोसे और विश्वास के साथ जा रहा है , उसके विश्वास के साथ मज़ाक नहीं होना चाहिए। स्वास्थ सम्बन्धी सलाह देने साथ साथ चिकित्सक को पूरी इमानदारी के साथ मरीज को उसकी बिमारी के बारे में बताना चाहिए और क्या-क्या विकल्प हैं , इसकी भी पूरी जानकारी convincing तरीके से देनी चाहिए।
बिना नैतिक दायित्वों के एक चिकित्सक अपूर्ण है और चिकित्सक कहलाने का हक़दार भी नहीं है।
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एक चिकित्सक पैसों में लिप्त होकर कहीं गरीबों की किडनी निकाल रहा है , कहीं नवजात शिशुओं को मारकर खा रहा है (Noida killings), कहीं पेट-दर्द की शिकायत पर आई स्त्रियों का अनायास ही गर्भाशय निकाल कर उन्हें मौत के घाट भेज रहा है ।
ये सब तो कम है , इसके आगे भी बहुत से भयाक्रांत कर देने वाले कारनामे हैं , जिसके लिए स्त्रियों को विशेष सावधान रहने की ज़रुरत है।
जो लोग अपनी बच्चियों को मेडिकल profession में पढने भेज रहे हैं , वो समय-समय पर उनसे बात-चीत करते रहे और सच्चाई से अवगत रहे , क्यूंकि बच्चियां और महिला मरीज बहुत सी बातों को बर्दाश्त करती हैं , लेकिन संकोचवश किसी से कह नहीं पातीं ,न ही मदद मांग पाती है , ऐसे में माँ-बाप को बहुत अलर्ट रहते हुए अपनी संतान की भरपूर रक्षा करने की ज़रुरत है।
स्त्रियों के लिए पग-पग पर खतरा है और बहुत ज्यादा सचेत रहने की आवश्यकता है , अन्यथा छोटे-बड़े अनेक हादसों से दो-चार होना पड़ता है , जो कभी प्रकाश में नहीं आते और एक स्त्री उम्र भर उस बोझ को ढोती है।
अधिक लिखकर स्पून फीडिंग की आवश्यकता नहीं है। थोडा लिखे को ज्यादा समझने की ज़रुरत है। जागरूक करना धर्म है , शेष व्यक्ति की किस्मत है ।
एक विशेष बात -- ऐसे भ्रष्ट डॉक्टर संख्या में बहुत कम हैं अभी भी , इसलिए हर चिकित्सक को संशय की दृष्टि से देखना और गुनाहगार की श्रेणी में रखना भी एक जिम्मेदार नागरिक को शोभा नहीं देता। अच्छे और बुरे लोग हर पेशे में हैं , लेकिन जागरूक व्यक्ति अपने विवेक से उचित-अनुचित का निर्णय कर लेते हैं।
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अधिक लिखकर स्पून फीडिंग की आवश्यकता नहीं है। थोडा लिखे को ज्यादा समझने की ज़रुरत है। जागरूक करना धर्म है , शेष व्यक्ति की किस्मत है । .............. is blog pe is tarah ki
post adhik jamti hai.....
pranam.
आप का ब्लॉग पढ़ कर मन को तस्सली मिली कि कोई आज भी है अच्छा लिखने वाला।
आप को समय मिले तो कभी हमारे ब्लॉग पर दस्तखत थे हमे अच्छा लगेगा।
दिव्या जी ,बहुत अच्छे मुद्दे पर आपने अपना बहुमूल्य विचार व्यक्त किया है...आपने बहुत ही सही कहा की पेशे की ईमानदारी खत्म सी हो गयी है...सच पूछिए तो यह सिर्फ चिकित्सा के क्षेत्र मे ही नहीं वरन शिक्षा और अन्य सेवा क्षेत्रों मे भी लागू होता है...
आपने बहुमूल्य जानकारी देकर बहुत बारा उपकार किया है...मैं कौशलेंद्र जी के मन्तव्य से की तकनीकी शब्द हिन्दी में होते तो ज्यादा समझ में आता, उतना साबका नहीं रखता क्यूंकि आज के इस युग में इन तकनीकी शब्दों कि जानकारी कम से कम उन सबों को है जो ब्लॉग साइट और इंटरनेट पर आते रहते हैं...
बहुत अच्छा प्रयास है आपका लोगों को जागरूक करने का...बधाई.
aapki post ne kafi mahtavpoorn jaankaaria di hai ,har kisi ke liye janna jaroori hai .
thanks Dr,divya,.....bahut achhi jankari dene ke liye....
अशिक्षित जनता के साथ अक्सर ऐसा होने की संभावना रहती है.
यह सब पढकर लगता है जैसे विज्ञान के कारण ही मानव के अन्दर छिपा दानव भी बाहर निकल आया हो....
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