खैरात के बदले खैरात में मुफ्त बँटती इन टिप्पणियों के कारण, हम सब, दिन प्रतिदिन अपने प्रभामंडल का विस्तार होते महसूस करते हैं और उस आभासी स्वयंभू प्रभामंडल को आत्मसात कर लेते हैं :-)
हार्दिक शुभकामनायें ! "
---------------------
उपरोक्त टिपण्णी में टिपण्णीकार का नाम नहीं दिया गया है , क्यूंकि नाम कभी जरूरी नहीं होता । लेकिन इस टिपण्णी में कही गयी बात शायद बहुत से टिप्पणीकारों के मस्तिष्क में शोर करती होगी इसलिए सोचा क्यूँ न इस पर थोडा मनन किया जाए।
उपरोक्त टिपण्णी में क्या झलक रहा है ? -- प्रशंसा ?, चाटुकारिता ? , नफरत ?, द्वेष ?, पूर्वाग्रह ?, ईर्ष्या , भड़ास ? , मन की विषाक्तता ? या फिर कुछ और ?
चूँकि यही टिपण्णी मुझे दो बार दी गयी , इसलिए आत्मावलोकन जरूरी हो गया की -
- क्या मैं ईमानदारी से नहीं लिखती हूँ ?
- क्या गूगल द्वारा मुफ्त में दिए गए प्लेटफार्म का अनुचित प्रयोग कर रही हूँ ?
- क्या अनेक विषयों पर यथाशक्ति मन में आये विचारों को शब्दों में ढालना , अनावश्यक जौहर दिखाना हुआ? रसोईंघर में स्त्रियाँ प्रतिदिन अपना जौहर दिखाती हैं , लेकिन यदि बेलन की जगह कलम भी थाम ली जाए तो वह जबरदस्ती का जौहर कहलायेगा ?
- मुझे तो नहीं लगता कोई ब्लॉगर स्वयं को 'महान लेखक' मान कर आसमान में उड़ने लगता है। सभी अपनी-अपनी यथाशक्ति लिख रहे हैं। अपनी बात औरों तक पहुंचा रहे हैं । इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है भला ? और इसमें जौहर दिखाने जैसी क्या बात है ?
- टिप्पणियों के बदले टिप्पणियां किस प्रकार से कसर पूरा करती हैं ? टिप्पणियां तो विषय पर होती हैं , इसमें कसर पूरा करने, न करने का सवाल ही नहीं पैदा होता। जो लोग 'लेखक' को केंद्र में रखकर टिपण्णी करते हैं , उन्हीं पर यह दोष लगाया जाना चाहिए , हर एक पर नहीं।
- खैरात के बदले खैराती टिप्पणियां ---खैरात भिखारियों को दी जाती है , ब्लॉगर भिखारी नहीं हैं , जिन्हें खैरात में टिपण्णी दी जाए।
- टिप्पणियां विषय से प्रभावित होकर इमानदारी के साथ एक अनजान लेखक के लेख पर भी दी जाती हैं।
- टिप्पणियां आपसी सद्भाव का भी प्रतीक हैं । जहाँ विचार मिलते हैं , वहीँ लोग टिपण्णी करना ज्यादा पसंद करते हैं।
- टिपण्णी के बदले में टिपण्णी करना कोई 'पाप' नहीं है , न ही खैरात की श्रेणी में आता है।
- किसी के आत्मविश्वास को 'आभासी स्वम्भू प्रभामंडल' कहना अनुचित प्रतीत होता है।
- ये टिप्पणीकार अक्सर 'नवोदित ब्लॉगर्स' के लेखों पर ये कहते पाये गए हैं - " आपकी लेखनी में दम है-शुभकामनायें"......अब इनको कौन समझाए की इनकी शुभकामनाएं और 'मिश्री की डली' से नवोदित ब्लॉगर्स प्रोत्साहन और आत्मविश्वास पाकर जब बेहतर लिखने लगते हैं तब इनकी 'आभासी स्वम्भू प्रभामंडल' जैसी टिपण्णी मिलने लगती है ।
ब्लॉग और टिप्पणियों की संख्या - क्यूँ होती है टिप्पणियों की संख्या कहीं ज्यादा कहीं कम?
- सर्प्रथम जो अच्छा लिखता है वो उसका फल भी पाता है। खैरात में कुछ नहीं मिलता । न ही खैरात देने वाला दिल रखते हैं लोग। ज्यादातर को बहुत गुना-भाग करते देखा है , टिपण्णी करने से पूर्व।
- टिप्पणियां जितनी आप करेंगे , कमोबेश उतनी ही पायेंगे। कृपणता दिखायेंगे तो खैरात भी नहीं मिलेगी , चाहे लेख कितना भी उम्दा क्यूँ न हो।
- कुछ लोग व्यस्तता के कारण ज्यादा टिपण्णी नहीं करते , न पाते हैं ।
- कुछ लोग द्वेष और ईर्ष्या के चलते टिपण्णी नहीं करते , न पाते हैं ।
- कुछ लोग दुसरे की थाली में रोटी गिनते रह जाते हैं , वही समय सार्थक टिपण्णी अथवा लेख लिखने में कर सकते हैं।
- दूसरों के ब्लॉग पर विष-वमन करने से बेहतर है, विषय पर दो पंक्तियाँ लिखी जाएँ।
- मन की घृणा को वश में रखकर , स्नेह को छलकने देना चाहिए टिप्पणियों में ।
- पुरजोर कोशिश होनी चाहिए की टिप्पणियों से अपमान न होने पाये लेखक का।
- कुछ लोग में passion होता है किसी कार्य को करने का । जो जितनी ज्यादा लगन से किसी कार्य को करता है , उसे उतनी ही ज्यादा सफलता मिलती है । यदि बात टिप्पणियों की संख्या पर भी लागू होती है।
- ज्यादा लोगों को आप मान देंगे , ज्यादा लोग आपको मान देंगे। मुक्त हस्त बाटेंगे , मुक्त हस्त पायेंगे।
- आप आलोचना करेंगे , आलोचना पायेंगे। प्रशंसा करेंगे, प्रशंसा पायेंगे। विषय पर टिपण्णी करेंगे, विषय पर टिपण्णी पायेंगे। जैसा करेंगे , वैसे भरेंगे।
- दिल खोल कर प्यार लुटायेंगे, उतना ही वापस पायेंगे। नया क्या है ?
- व्यक्तिगत आक्षेप करेंगे, लोग दूरी बना लेंगे।
- किसी के विचार हमेशा नहीं मिलते । कभी सहमती तो कभी असहमति होती ही है । लेकिन जो लोग सदैव असहमत ही दिखें तो उनके मंतव्य जाहिर हो जाते हैं।
- सबसे अहम् बात है की विचारों की समानता सदैव आकर्षित करती है । इसलिए सहृदय लोग परस्पर एक-दुसरे से जुड़ते चले जाते हैं और कारवां बनता जाता है ।
लिखने को बहुत कुछ है , लेकिन थक गयी हूँ , आगे आप भी कुछ लिखिए , विषय को आयाम मिलेगा ...
आभार।
.
57 comments:
कितना लिखें ब्लॉग पर पोस्ट और टिप्पणी पर टिप्पणी.
मेरा मन तो पोस्ट लिखने की अपेक्षा टिपण्णी करने में ज्यादा लगता है.यह ज्यादा आसान और भावों/विचारों को प्रकट करने का सुलभ माध्यम है.टिपण्णी लिखने का प्रोत्साहन भी आपसे ज्यादा मिला है.देखिये आपकी पिछली पोस्ट पर भी तीन टिपण्णी कर आया हूँ.पर टिपण्णी को मै कोई बनावटी प्रदर्शन मात्र नहीं मानता,न ही यह औपचारिकता है. आपसे मैं पूर्णरूप से सहमत हूँ कि
'सबसे अहम् बात है की विचारों की समानता सदैव आकर्षित करती है । इसलिए सहृदय लोग परस्पर एक-दुसरे से जुड़ते चले जाते हैं और कारवां बनता जाता है ।'
डॉ० दिव्या जी पहली और दूसरी पंक्ति से मैं सहमत नहीं हूँ बाकी आपका विवेचन सही है |ब्लॉग जगत में कई तरह के ब्लोगेर और कई तरह के ब्लॉग हैं |नियंत्रण का आभाव है |छंद मात्रा कविता की तमीज नहीं होते भी कमेंट्स आते हैं |अच्छा लिखने पर भी जिसको आना है वही आता है |कई बार कमेंट्स पर भी प्रति कमेंट्स नहीं आते और भी बहुत सी बातें हैं जो मैं नहीं लिखना चाहता |मैं इस विषय पर बहुत चिंता भी नहीं करता ,क्योंकि मेरा मकसद अपनी अच्छी चीजों को दुनियां के अंतिम पाठक तक पहुँचाना |सही सृजन करना अगर इस लफड़े में मैं पडूंगा तो सही कार्य करना मुश्किल होगा |मान्यता तो पत्र -पत्रिकाओं से मिलती है ,जहाँ सम्पादक रचना का स्तर तय करता है |फिर भी आपने अच्छा मुद्दा उठाया है |शुभकामनाएं |
आभार इस जानकारी के लिये।..:)
पहली बात यह कि ऎसा लिखने वाला मैं नहीं हूँ ।
दूसरी बात यह कि मुझे टिप्पणी ( हर प्रकार की ) देने में मज़ा आता है.. कई जगह तो मैं लात खाकर भी टिप्पणी देने पहुँच जाता हूँ... क्या करें, कँट्रोल ही नहीं होता । इसीलिये मैं स्व-घोषित लतखोरी लाल हूँ । ब्लागिंग का चरपरापन तो टिप्पणी पढ़ने और देने में ही है ।
उपरोक्त कड़वी टिप्पणी को अनायास मुँह में आये कँकड़ की तरह थूक दो ( डॅस्टबिन में ), और कुछ तीखा खा लो.. किस्सा खत्म !
आप आलोचना करेंगे , आलोचना पायेंगे।
....विषय पर आलोचना करने से इस डर से नहीं हिचकना चाहिए कि आलोचना करेंगे तो आलोचना पायेंगे। अपनी समझ से जो कमियाँ नजर आती हैं वो जरूर लिखना चाहिए। इससे दोनो को लाभ होने की संभावना होती है। आलोचक की आलोचना गलत हुई तो स्वयम् उसे, सही हुई तो जिसने पोस्ट लिखी उसे। आलोचक को दुश्मन नहीं मित्र समझना चाहिए। आलोचक को भी चाहिए कि वह विषय से संबंधित स्वस्थ आलोचना करे।
हाँ,अच्छी रचना होगी तो टिप्पनी मिलती है
और हमें अच्छे रचनाओं को पढना चाहिए
व्यक्ति विशेष पर न लिख हमें ऐसा लिखना चाहिए
की स्वयम भी संतुष्ट रहें और पाठकों को भी एक सिख मिले...
प्रतिदिन सिखने का नाम ही जीवन है..
हमें गलती भी स्वीकार करना चाहिए..
द्वेष भाव से लिखने से अच्छा न लिखना है...
हम जैसे तो बस सीखते रहते हैं प्रतिदिन.....
अहम् न आये लेखनी में वो ही आगे बढ़ता है
बाकी रब राखा ...
aapke blog ka follower abhishek
कई बार लोग सिर्फ Nice को कापी पेस्ट करके इतिश्री कर देते है ताकि लोग उनके भी ब्लोक पर जाए -हर इंसान मेहनत से कुछ लिखता है और टिपण्णी उसकी मेहनत का फल है पर जो लिखा है उसे तो पढो ,उस पर टिपण्णी दो तो आन्नद आए !
गूगल पर सर्च मारना भी क्या कम मेहनत का काम है ?कोई कही का इतिहास लिख रहा है तो सर्च मारना जरूरी है उनसे सम्बन्धित जानकारी इक्कठी करना,फोटू लेना कोई गुनाह नही है |हा ,गूगल की जानकारी के साथ -साथ उसकी खुद की जानकारी जरूरी है !
आज ख़ुशी का मोका है दिव्या जी ,सारे शिकवे -शिकायत भूल जाओ --यह तो "कोयले की दलाली है,हाथ तो काले होगे ही !"
zeal
some people think they are "saints" and this quote is from one such person
सुन्दर अभिनव विचार . इस टिपण्णी महिमा पर प्रकाश डालने के लिए आभार .
सबकी अपनी सोच होती है .....गुणा-भाग, अर्धविराम, पूर्णविराम में उलझ जाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है ..समय के अनुसार निरंतर साथ-साथ चलते रहने में ही सबकी भलाई है.. ... मैं तो सोचती हूँ की काश पर्याप्त समय मिलता तो मैं खूब ब्लॉग पढ़ती और कुछ अच्छा हमेशा लिख पाती तो कितना अच्छा होता ....... कोई कुछ भी कहे लेकिन यदि ब्लॉग का लिखा कोई पढता है और अपने विचार, कमेन्ट करता है तो ब्लॉग का ख्याल आता ही है और फिर लगता है कब ब्लॉग पढने या लिखें ...
आपने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है मैं तो यही कहूँगी की लिखते और पढ़ते रहिये हमेशा बिना ज्यादा किसी अपेक्षा के ... यदि हम अपना समय निकालकर सिर्फ अपने लिए न सोचकर कुछ औरों की ख़ुशी के लिए कर सकते हैं तो इसमें ज्यादा सोचने की कोई जरुरत नहीं होने चाहिए की कोई क्या कहता है ...
फिलहाल आपको प्रस्तुति के लिए और टीम इंडिया को व सभी देशवासियों को वर्ल्ड कप की बधाई
इस विषय पर पूर्व में कई बार पर्याप्त बहस हो चुकी है। सभी का अपना स्वभाव है, और यह विविधता ही तो नए विचारों को जन्म देती है। यदि सारे ही एक समान विचारवान हो जाएं तो फिर लेखन का विषय क्या होगा? विष निकलेगा तभी अमृत का महत्व समझ आएगा। मिर्ची खाने पर शक्कर की याद तो आने दें। आप नए विषयों पर तभी लिख सकते हैं जब आपको समाज ने नए विषय दिए हों और मैं समझती हूँ कि आप काफी भाग्यशाली हैं जिन्हें प्रतिदिन नए विषय मिलते हैं। आपको तो जश्न मनाना चाहिए। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
सुन्दर अभिनव विचार|
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|
दिव्या जी आपका यह कथन सबसे महत्पूर्ण है और आपके इस कथन से मैं सहमत भी हूं कि..‘दिल खोल कर प्यार लुटायेंगे, उतना ही वापस पायेंगे।’
जीवन की भंगुरता का अहसास जापान जैसे हादसों से प्रकृति जब-तब करा ही देती है, फिर कटुता में जीवन क्यों बिताया जाए......कम से कम मेरा तो यही सोचना है।
दोनों बातें सही है
१. यहाँ कई ब्लोग्स पर टिपण्णी के बदले टिपण्णी मिलती है
२. कई ब्लोग्स पे अच्छे लेख की वजह से टिपण्णी मिलती है
और ब्लॉग जगत में भी हमारे भारतीय समाज के जैसे खेमे बने हुए हैं, वो बात भी कुछ असर रखती है ...
कलयुगी मानवीय सोच सात्विक नहीं हो सकती । अधिकांश लोगों में राजसी प्रवृति देखने को मिलती है । कहीं कहीं तामसी प्रवृति भी प्रबल होती है ।
कोई इंसानों में ढूंढें , क्यों पावनता गंगा की !!
विश्व कप में भारत की जीत पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ ।
मुझे लगता है कि टिप्पणी किसी विचार को एक दिशा देने का कार्य करती है और एक सार्थक बहस को जन्म देती है, हाँ कुछ लेख ऐसे होते हैं जहाँ पर मुझे भी सिर्फ बहुत अच्छा, मजा आ गया ऐसा लिखना पड़ता है क्यूंकि उन लेखों पर वही लिखा जा सकता है जैसे किसी की कविता या कहानी पर वहाँ बहस की गुंजाइश नहीं होती, किसी-किसी की कविता पढ़ कर इतना अच्छा लगता है कि शब्द ही नहीं मिलते ऐसे समय पर कमेन्ट नहीं दिया जा सकता और नहीं दे पाता हूँ|
पर कमेन्ट की आशा कभी ना मुझे थी ना है आप चाहें तो मेरे ब्लॉग पर आयें, चाहें तो ना आयें मुझे फर्क नहीं पड़ता, लेख पढ़ें ना पढ़ें कोई बात नहीं :)
सबसे अहम् बात है की विचारों की समानता सदैव आकर्षित करती है । इसलिए सहृदय लोग परस्पर एक-दुसरे से जुड़ते चले जाते हैं और कारवां बनता जाता है ।
aapka likha hamesha hi mujhe bahut achcha lagta hai....aur is baar bhi yahi hua......
टिप्पणियां।
यह मुझे कितनी मिल रही हैं इस पर कभी ध्यान नहीं दिया।
मैं तो टिप्पणियां देने में यकीन रखता हूं।
यकीन मानें इसमें मेरा ही स्वार्थ है।
स्वार्थ यह कि इसी बहाने कई ब्लागों में घूमने का अवसर मिलता है और तरह तरह के पोस्ट पढने मिलते है।
अब किसी को एक टिप्पणी दे दी तो क्या हुआ, आखिर अपना स्वार्थ सिध्द हुआ, अपना ज्ञान ही बढ रहा है विविध विषयवस्तु पढकर।
कहा भी गया है जितना पढोगे उतना लिखोगे।
दिव्याजी, मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि 'दूसरों के ब्लॉग पर विष-वामन करने से बेहतर है, विषय पर दो पंक्तियाँ लिखी जाएँ।'
अक्सर ऐसा होता नहीं है। लोग विषय को दरकिनार कर अपनी ही थोपने की कोशिश करने लगते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। अरे लेखक ने किस सोच के साथ लिखा है यह तो देखें फिर कहें।
आपने अपनी इस पोस्ट के माध्यम से कई लोगों को आईना दिखाने का काम किया है।
bahut sunder vishy
tippni karke yah ummid rakna ki samne vala aapki post padhega ,koi gunah nhin hai.
koi bhi har kisi ke blog ka URL to janta nhin , ese men apna prichay dena kya bura hai
tippni vishay se smbndhit hoti hai . lekhak se nhin . ese men main to aapse sahmat hoon
इस विषय पर लोग कहते कुछ हैं पर अमल कुछ और ही करते हैं ...टिप्पणियों के बारे में कुछ भी कहना व्यर्थ है ..जिसकी जो इच्छा हो करे ..कोई किसी के विचारों से बंधा नहीं है ...पसंद आते हैं विषय तो ज़रूर टिप्पणी की जाती है ..और यह मेरी आदत ही समझिए कि जो भी पोस्ट पढ़ती हूँ वह अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने के लिए टिप्पणी भी ज़रूर करती हूँ ...उपस्थिति दर्ज़ कराने का मतलब यह कि उस पोस्ट लिखने वाले को महसूस हो कि उसकी पोस्ट पढ़ी गयी ..न कि इस लिए कि टिप्पणी दे कर कोई खैरात मांग रहे हैं ..हाँ वैसे यह सामाजिक चलन है ...जितना दोगे उतना पाओगे :)
manneeya ajit gupta jee ke vicharo se mai shat pratishat sahmat hoo........lagta hai mere bhavo ko shavd unhone diye hai.......
सपका अपना-अपना सोचने का तरीका है । कहीं पढने में आता है कि ब्लाग, टिप्पणी व समानांतर विषयों पर वो ही लिखते हैं जिन्हें और कुछ सोचने में नहीं आ पाता और प्रेक्टिकली ये देखते हैं कि ब्लाग और टिप्पणी जैसे विषयों पर जो पाठक पहुँचते हैं वे गंभीर या मनोरंजक जैसे विषयों पर लिखे गये लेखों को भी नहीं मिलते । इसलिये सुनो सबकी, करो मन की ।
हर प्रकार की टिप्पणी का अपना महत्व है। कोई भी टिप्पणी किसी भी दृष्टिकोण से की जाय व्यर्थ नहीं है।
ब्लॉगिंग का यही तो वरदान है कि एक टिप्पणी बक्सा उपलब्ध है। जहां किसी भी बात का भाव, प्रतिभाव, समर्थन या विरोध जानने का अवसर हाथों हाथ मिलता है।
कोई बुराई नहीं यदि हमारी रचना पढवाने के लिये दूसरे ब्लॉग पर उपस्थिति दर्ज करवाई जाय। क्योंकि आज हिन्दी ब्लॉगिंग पाठकों की कमी को झेल रहा है, साधारणतया हर ब्लॉगर ही पाठक है। लिखना भी जरूरी है और प्रतिक्रिया के लिये पढवाना भी जरूरी है।
कोई भी ब्लॉगर प्रतिदिन 2 से 3 घंटे देकर अधिकतम 10 पोस्ट से अधिक मनोयोग से पढ भी नहीं सकता। फ़िर सभी तक इमानदारी से पहूँच पाना मुश्किल है। अतः सभी का अपना संघर्ष है। जैसा बन पडे करता है।
किन्तु, पढकर दी गई सार्थक प्रतिक्रिया,
एक अलायदा स्वतंत्र दृष्टिकोण,
एक प्रखर विरोधी विचार,
तथ्यपरक चर्चा को उकसाती चेलेंजिंग प्रतिक्रिया, सर्वाधिक उपयोगी टिप्पणीयां होती है।
मेरे विचार से टिप्पणी ब्लॉग-लेखक को किसी तरह का आघात पहुंचाने के लिए, उसकी टांग खिंचाई के लिए या अपमानित करने के लिए नही होनी चाहिए!...अभद्र शब्दों का प्रयोग तो बिल्कुल ही नही होना चाहिए!...लेख द्वारा लेखक का आशय ना समझ आने पर सवाल पूछे जा सकते है...लेखक को टीप्प्णी द्वारा प्रोत्साहन देने से उसकी प्रसन्नता में वृद्धि होती है,उसे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है!यह चाटुकारिता नही है!...किस लेखक को कितनी टिप्पणियां मिलती है इसकी गिनती करने में समय जाया करने की जरुरत नही है!...टिप्पणियों के शब्द एक समान होना भी गलत ना समझा जाए!....सभी ब्लॉगर्स मित्रवत व्यवहार रखें, परस्पर प्रेमभाव और सदभावना से पेश आए, ब्लॉगर् संमेलनों द्वारा मिलना-जुलना बनाएं रखें तो ब्लॉग जगत स्वर्ग समान है!
...बहुत बढिया आलेख, धन्यवाद दिव्या!
टिप्पणियों पर इतनी बार लिखा जा चुका है की अब यह प्रश्न बेमानी सा लगने लगा है ...
टिपण्णी ....टिप्पणी :):)
चल चला चल ,अकेला चल चला चल....
जिन्दगी जीने का नाम है..
सोच सोच कर इसे ज़ाया करने से क्या फ़ायदा :)
divyaa bahan aek aap hi to hen jo roz tippniyon ki hqdar hen kyonki aap jo bhi likhti hen dil se likhti he or aesa likhti hen jo dil ko chhu letaa he isliyen aab best mhila ablogar bhi he . akhtar khan akela kota rajsthan
टिप्पणी खैरात में नहीं मिलती, अपने लेखन और अन्य ब्लागरों को पढ़ने और उस पर प्रतिक्रिया के एवज़ में अपने ब्लाग पर टिप्पणियां मिलती है। अब किसी की नासमझी पर समय गंवाना समझदारी तो नहीं न है:)
जो ऐसा कहते हैं उनकी सोच-समझ पर तरस आता है।
.
वाणी गीत said...
टिप्पणियों पर इतनी बार लिखा जा चुका है की अब यह प्रश्न बेमानी सा लगने लगा है ...
टिपण्णी ....टिप्पणी :):)
April 3, 2011 1:06 PM
--------------
प्रिय वाणी जी ,
प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त होता है , महिमा नहीं घटती। हम रोज बच्चों का टिफिन बनाते हैं , बोरियत नहीं होती । बहुत बार अन्य ब्लॉगर्स के लेखों पर जाती हूँ , कभी परेशान नहीं होती हूँ, हमेशा अच्छा लगता है । जीवन और मरण का चक्र शाश्वत है , एक ही बात को हम दोहराते हैं , अपने बच्चों को और समाज को चीख-चीख कर इमानदारी , संवेदनशीलता , विनम्रता और सद्भावना का पाठ पढ़ाते हैं , फिर भी ये सब बईमानी नहीं लगता। मुझे कोई भी विषय बासी नहीं लगता और बईमानी नहीं लगता। जब तक ब्लौग है , ब्लॉगिंग है , टिपण्णी है , तब तक वही विषय दोहराए जायेंगे । लिखने वाले पृथक , पढने वाले पृथक और समझने वाले भी पृथक लोग होंगे । भ्रष्टाचार पर लिखना बंद कर दिया जाए ? या फिर शहीदों को हर वर्ष याद करना बंद कर दिया जाए ?
वैसे पिछली कई पोस्टों पर आपकी कमी महसूस की , हो सके तो उन पर दृष्टिपात कीजिये , शायद बईमानी न लगे।
.
"लिखने को बहुत कुछ है , लेकिन थक गयी हूँ"
थक तो जायेंगी ही आप.
रोज़ नई पोस्ट लगाएंगी और फिर टिप्पणी पर काउंटर टिप्पणी , इन सब से आपका थक जाना स्वाभाविक है.
कौन क्या कहता है,उसके लिए बहुत परेशान होने की ज़रुरत नहीं.
मुझे जनाब वाली आसी का एक शेर अच्छा लगता है:-
हम फ़क़ीरों से जो चाहे वो दुआ ले जाये.
फिर उसके बाद किधर जाने हवा ले जाये.
बड़ा है शोर-शराबा यहाँ ,
इस "लोकसभा" में इस
अजनबी का ठिकाना कहाँ ||
आशीर्वाद!
कुछ ब्लोगर तो प्रसाद की तरह बस एक या दो शब्द की टिप्पणी दे कर चले जाते हैं और हमारे ब्लोगर साथी उसे भगवान का प्रसाद समझकर ख़ुश होते रहते हैं.अजीब हालत है इस ब्लॉग जगत की भी.
.
डा० अमर कुमार said...
पहली बात यह कि ऎसा लिखने वाला मैं नहीं हूँ ।
दूसरी बात यह कि मुझे टिप्पणी ( हर प्रकार की ) देने में मज़ा आता है.. कई जगह तो मैं लात खाकर भी टिप्पणी देने पहुँच जाता हूँ... क्या करें, कँट्रोल ही नहीं होता । इसीलिये मैं स्व-घोषित लतखोरी लाल हूँ । ब्लागिंग का चरपरापन तो टिप्पणी पढ़ने और देने में ही है ।
उपरोक्त कड़वी टिप्पणी को अनायास मुँह में आये कँकड़ की तरह थूक दो ( डॅस्टबिन में ), और कुछ तीखा खा लो.. किस्सा खत्म !
April 3, 2011 9:46 AM
------------
प्रिय डॉ अमर ,
ये आपका बड़प्पन है की आप अन्य बहुत से लोगों की तरह की तरह छुई-मुई नहीं हैं । आपके कम से कम दुसरे की बातों को तो सुनते हैं । दिए गए तर्कों का भी सम्मान करते हैं ।
अन्यथा , प्रति-टिपण्णी मिलते ही ज्यादातर लोग बुरा मानकर विदा ले लेते हैं।
--------------
@--उपरोक्त कड़वी टिप्पणी को अनायास मुँह में आये कँकड़ की तरह थूक दो ( डॅस्टबिन में )...
मुझे आपकी या किसी भी टिप्पणीकार की टिपण्णी कडवी नहीं लगती । हाँ , कुछ टिप्पणीकारों को मेरी प्रति-टिपण्णी जरूर कडवी लग जाती है।
जो लोग मोटी खाल वाले हैं , उनका सदैव स्वागत है । पतली खाल वाले स्वयं ही समय के साथ मुरझाकर , दूर हो जाते हैं ।
.
स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा।
ब्लॉगिंग और ब्लॉगर्स का अपमान मत कीजिये ....कृपया किसी के स्वाभिमान पर चोट मत कीजिये.
सहमत हूं आपसे....
मेरा विचार है की
१ ब्लॉग जगत में ज्यादातर लोग स्थापित साहित्यकार नहीं है(कुछ एक अपवाद भी है मगर ५% से ज्यादा नहीं)..तो मैं कई बार टिप्पड़ी देते समय ये नहीं लिखता की कविता ख़राब है इससे लेखक का मनोबल गिर जाता है...उसे मैं लिख सकता हूँ सुन्दर पंक्तिया सुन्दर भाव..कृपया फला पंक्ति पर ध्यान दे..
२ रचना पर किसने टिप्पड़ी दे ये भी महत्त्व रखता है कितने लोगो ने दी ये भी महत्त्व रखता है..लेकिन अगर कोई टिप्पड़ी नहीं मिली इसका मतलब रचना महत्वहीन है ऐसा नहीं है हो सकता है ब्लॉग की ज्यादातर लोगों तक पहुच न हो..
३ टिप्पड़ी देने वाले भी स्थापित साहित्यकार तो होते नहीं है इसलिए कभी कभी साहित्यिक रूप से कमजोर कृतियों को प्रशंशा मिल जाती है..जिससे साहित्य की समझ रखने वालो को दुःख होता है..तो ये तो उन्नत साहित्यकारों का काम है की ज्यादा से ज्यादा ब्लॉग पर जाएँ और समालोचना करें कृतियों की..अगर नहीं कर सकते तो मुह बंद रखें इस मुद्दे पर ....
कुछ लोग में passion होता है किसी कार्य को करने का । जो जितनी ज्यादा लगन से किसी कार्य को करता है , उसे उतनी ही ज्यादा सफलता मिलती है ।
यह बात अपन को पसन्द आयी। बाकी कोई कुछ भी कहता रहे, इधर परवाह नहीं।
किस किस को याद कीजिए?
किस किस को रोइए?
ब्लॉगिंग महान चीज है,
मशगूल होइए!
--
टीम इण्डिया ने 28 साल बाद क्रिकेट विश्व कप जीतनें का सपना साकार किया है।
एक प्रबुद्ध पाठक के नाते आपको, समस्त भारतवासियों और भारतीय क्रिकेट टीम को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।
मैं तो समझता हूँ... ब्लोगिंग अपने आप को व्यक्त करने का एक माध्यम है.. लिख के अच्छा लगता है.. हल्का महसूस होता है... लिखे हुए पर लोगों के विचार जानकर अच्छा लगता है.. न मिले भी तो उसके लिए तनाव लेने की आवश्यकता नहीं है...
जितने लोग..उतनी समझ....
डा० दिव्या जी,
आप तो एक आयरन लेडी है,
फिर भी ऐसे क्यों परेशान होती हो,
आपने नहीं सुना, गाडियाँ चलती है, कुत्ते भोकते है, काट नहीं पाते,
आपको ये याद रखना है, ये जिन्दगी के मेले दुनिया में कम ना होंगे अफ़सोस हम ना होंगे।
LOGO KYA HAI WO TO KAHATE Rahege
दिव्या जी, शुरुआती दिनों में एक बार मुझे भी लगा कि कुछ ब्लागों पर टिप्पणी ज्यादा होती है, कुछ खास रचनाएं न होने के बावजूद...कुछ अच्छे ब्लागों पर न के बराबर टिप्पणियां होती हैं। कुछ बेचैनी होती थी...। कुछ लोग तो दूसरे की रचनाएं चोरी से प्रकाशित करके भी टिप्पणियों से मालामाल होते देखे। फिर बेचैनी दूर हो गई। एक तो यह समझ में आया कि हमें सिर्फ रचनात्मक होना चाहिए..अच्छा करते रहना चाहिए..कुछ तो लोग कहेंगे कुछ न भी कहेंगे तो चलेगा। फिर यह भी समझ आया कि ऋषि-मुनियों की बात मानकर चलो। वो यह कि ज्यादा प्रशंसा नुकसानदेह होती है...। जहां तक यांत्रिक संसाधनों के दुरुपयोग/सदुपयोग की बात है तो मुझे लगता है कि वो बहुत ही गहन विचार का विषय है। किसे अच्छा कहें किसे बुरा, बड़ी सूक्ष्म रेखा है। मेरा मानना है कि साहित्यिक अभिरुचि वाले ही अच्छे ही होते हैं। एकाध बुरे हों तो उनके लिए माथा फोड़ा नहीं जा सकता। साफ कहूं तो अपन लोग जो कुछ भी कर रहे हैं, एकदम ठीक है। अब हर कोई तो गहन मीमांसा कर नहीं सकता...कई बार तो कोई बात इतनी अच्छी लग जाती है कि उसकी मीमांसा करना ही बेवकूफी लगती है, सो हर तरह के कमेंट का स्वागत करना चाहिए। कोई न करे तो अपनी रjचनाओं को बार-बार पढ़कर मगन रहना चाहिए। साहित्य बलात् विषय नहीं है। यह निःसर्ग का उपहार है, सो दूसरे से लेना देना ही क्या। क्यों...कुछ गलत तो नहीं बोला???? आजकल तबीयत ठीक नहीं है, सो हो सकता है सारा माजरा समझ न पाया होऊं, बाद में फिर टिप्पणी करूंगा...अभी तो अच्छी बहस के लिए धन्यवाद।
आदरणीय दिव्या जी,
ऐसी टिप्पणिया नहीं करनी चाहिए की आखिर हमें क्या मिलता है ऐसी टिप्पण करने में
ऐसी टिप्पणिया करने वालो के लिए एक सिक
“अपनी सोच को कैसे बेहतर बनाया जाए, यह सीखने से उत्कृष्ट कुछ नहीं है” अज्ञात
दिन मैं सूरज गायब हो सकता है
रोशनी नही
दिल टू सटकता है
दोस्ती नही
आप टिप्पणी करना भूल सकते हो
हम नही
हम से टॉस कोई भी जीत सकता है
पर मैच नही
चक दे इंडिया हम ही जीत गए
भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर2068)की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
आपका स्वागत है
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया
टिप्पणी सुख लेने पहली पढ़ी हुई पोस्ट में दुबारा जरूर जाना जाना चाहिए भले ही नई पोस्ट पढ़ने का अवसर न मिले।
ja ki rahi bhavana jaisee....
jai baba banaras....
बहुत बढ़िया है, टिपण्णी सचमुच खैरात नहीं . पर यार zeal ,बुरा नहीं मानना, मुझे तो बहुत कम टिप्पणियां मिलती हैं , और मैं समझता हूँ की शायद मुझे लिखना नहीं आता , या कि मैं टिप्पणियों के लायक नहीं हूँ !
अभी-अभी पढ़ा. काफी अच्छा विश्लेषण.
एक वरिष्ठ ब्लोगर के प्रश्नों का विश्लेषणपरक उत्तर भी.
दिव्या जी ,
आप पूरी ईमानदारी और निडरता के साथ लिखती हैं ....
आप गूगल द्वारा मुफ्त में दिए गए प्लेटफार्म का सर्वोचित उपयोग करती हैं..
अच्छा लेखन टिप्पड़ियों का मोहताज़ नहीं होता किन्तु जब वह अच्छा लेखक भी दूसरे लेखकों को पढने की
जहमत उठाये , अपनी टिप्पड़ियां दे |
क्या कहूं , यहाँ की गुटबंदी और मानसिकताओं के बारे में .......मैं कई ब्लागर्स के ब्लॉग पर कई बार गया , उनकी कृतियाँ पढ़ीं , अपनी टिप्पड़ियां दीं किन्तु उन स्वनामधन्यों ने मेरे ब्लाग पर एक बार भी नज़रे इनायत नहीं की |
मगर मैं आज भी कभी-कभार उनको पढता हूँ और अपनी राय भी दे आता हूँ | ख़ुशी की बात यह है कि ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है | इससे विचलित होने का कोई औचित्य मैं नहीं समझता |
दिव्या जी , आप जो भी लिख रही हैं उसका भविष्य में जब भी मूल्यांकन होगा ....सत्यता स्वतः सामने आ जाएगी | साहित्य समाज का दर्पण होता है ......इस आधार भूमि पर आपका लेखन बिलकुल खरा उतरता है |
मेरी सोच तो यहाँ तक है कि आज से यदि मैं ब्लॉग पर लिखना बिलकुल बंद कर दूं तब भी ब्लॉग जगत नहीं छोड़ पाउँगा | आप जैसी कई नारी शक्तियां अपने लेखों/रचनाओं से हिंदी साहित्य के लिए जो कर रही हैं , उसे देखकर ह्रदय ख़ुशी से भर जाता है | इसके साथ-साथ ही पुरुष रचनाकारों का भी जीवन , समाज ,और देश के हर
छुए-अनछुए पहलुओं पर सार्थक , बेबाक और रसपूर्ण लेखन मन को बाँध लेता है |
अतः किसी भी प्रकार की चिंता में बिना पड़े, लेखनी की धार को चमकदार बनाये रक्खें |
टिप्पणियां जितनी आप करेंगे , कमोबेश उतनी ही पायेंगे। कृपणता दिखायेंगे तो खैरात भी नहीं मिलेगी , चाहे लेख कितना भी उम्दा क्यूँ न हो।
बहुत ही सही कहा है आपने ....किसी एक पंक्ति के बारे में क्या कहूं पूरा आलेख विचारणीय और आपकी कलम की रोशनी से ओजमय है ...बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
लिखना लेखक का धर्म ( कर्तव्य ) है किन्तु पढना तथा उसका अर्थान्तर करना पाठक अधिकार है सम्मान कीजिये सिर्फ पाठक का !
जीत की बधाई के साथ नववर्ष ( सम्वत्सर ) और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
जी ठीक कहा आपने. किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाना सर्वथा अनुचित ही नहीं, असहनीय भी है !
बाकी - कर्मन्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन: !
सार्थक आलेख !
जितनी समझ वैसे विचार और एक भीड़
Post a Comment