Sunday, September 11, 2011

व्यंगात्मक बदबूदार टिप्पणियां .

व्यंग शैली में लेखन तो उत्कृष्ट विधा है। लेकिन यही व्यंग जब टिप्पणियों के माध्यम से किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप करके उसे नीचा दिखाने के उद्देश्य से किया जाता है तो वही व्यंग अत्यंत निकृष्ट कहलाता है।

व्यंग विषयों पर होना चाहिए और मुद्दों पर होना चाहिए लेकिन किसी पर व्यक्तिगत व्यंग करना, व्यंग करने वाले की द्वेषपूर्ण मानसिकता का परिचायक है। उसकी शैली से उसके दिमाग में सदियों से छुपी खुंदक और चिढ का भी पता चल जाता है। ईर्ष्या और द्वेष से पीड़ित होकर वह ताने मारकर ही अपनी दबी-छुपी भड़ास निकाल पाता है क्यूंकि इससे ज्यादा कुछ कर पाने का सामर्थ ही नहीं होता ऐसे लोगों में।

अपमानित करने के उद्देश्य से जब वह व्यक्ति ताना मारता है तो स्वयं ही expose हो जाता है और उसके मंतव्य स्पष्ट हो जाते हैं। टिप्पणी का लहजा सबको समझ आता है। अतः व्यंगात्मक होकर टिप्पणी के माध्यम से कटुता प्रेषित की जाए, अपितु विषय पर ही टिप्पणी की जाए तो बेहतर होगा। टिप्पणियों में सहमती और असहमतियां , दोनों ही लेख की सार्थकता बढ़ाते हैं , लेकिन विषय से इतर व्यक्तिगत आक्षेपों द्वारा व्यंग करके किसी को नीचा दिखाना उस व्यक्ति के कलुषित उद्देश्यों को उजागर करता है।

टिप्पणियों में मानवीय गुणोचित मिठास बनी रहनी चाहिए। मन की ईर्ष्या और द्वेष का निग्रहण होना चाहिए , उसे अपने आचार विचार और व्यवहार में नहीं झलकने देना चाहिए।

व्यंगात्मत शैली में कटुतापूर्ण टिप्पणी करके लेखक अथवा लेखिका का अपमान करने वाला कभी भी सम्मान का पात्र नहीं हो सकता।

Zeal

31 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

आपकी बात है खरी बात ।
अच्छा है कि लोग समझें ।।

रेखा said...

सही है .....किसी खास मुद्दे पर मतभेद हो सकता है ,मन में भेद नहीं होना चाहिए

Rajesh Kumari said...

aapne bilkul sahi kaha hai.

vandana gupta said...

sahi kaha.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

हर प्रकार की प्रतिक्रियाओं को स्वीकार करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिये

रविकर said...

सही है ||

Patali-The-Village said...

आप ने बिलकुल सही कहा है| धन्यवाद|

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

लेकिन कई बार तो यह परम आवश्यक हो जाता है, अनवर साहब मेरी बात से अवश्य सहमत होंगे.

shikha varshney said...

solah aane sach.man men dwesh rakh tippni karne wala khud hi apmanit hota hai.barhaal hamen har tarah kee pratikriya ke liye tayyar hona chahiye.

Suresh kumar said...

बिलकुल सही बात है जी .....

दिवस said...

लेख व्यंगात्मक हो सकते हैं, किन्तु टिपण्णी में व्यंग का आना, ये तो नॉनसेन्स है|
जहां तक सवाल है बदबूदार टिप्पणियाँ का, तो यह तो टिपण्णी करने वालों के मन मस्तिष्क की गंदगी है, उसकी बदबू कहीं तो आएगी ही| जाहिर है ये गंदगी टिप्पणियों में अपनी छाप छोड़ जाती है|

दिव्या दीदी, बेहतरीन, मूंह तोड़ जवाब|

दिवस said...

@भारतीय नागरिक
बंधुवर, अनवर जमाल के लिए आप पर ऐसे नियम कायदे लागू नही होते| आप निसंकोच करें| ज़रूरत पड़े तो मुझे भी बुला लीजियेगा|

मीनाक्षी said...

जानते समझते भी हम उन्हीं के वश में होकर ऐसा कर गुज़रते हैं जो सही मायने में गलत होता है...एक बार अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया जाए तो कोई मुश्किल ही न आए..

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

टिप्पणियों में व्यंग यदि सुपाच्य हो तो हज़म हो जाना चाहिये लेकिन यदि बदबूदार हो तो कैसे गले से उतरेगा? रही बात टिप्पणी की तो वह सहज प्रतिक्रिया स्वरूप रहती है यदि "बहुत अच्छा" nice आदि टिप्पणियाँ सुगंधित प्रतीत होती रहें तो दीगर बात है। आप देख सकती हैं कि अनवर जमाल जी के लिये बातें व्यक्तिगत हो ही गयीं। व्यंग सदा ही व्यक्तिगत, संस्थागत,भाषागत, परिस्थितिगत आदि अर्थों में ही संभव है जो शेष है वह हास्य से जुड़ा हो सकता है लेकिन निःसंदेह व्यंग नहीं। वक्रोक्तियाँ जिस पर करी जाए उसे कष्ट देती हैं लेकिन अन्य लोग अक्सर इसी में आनंदित होते हैं। जब हम सार्वजनिक लेखन में हों तो ये सब सहन करना ही हमारी नियति बन जाती है या फिर उलझते रहिये सबका मुंह बंद कराने में....।
भइया

ZEAL said...

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आम तौर पर मेरे किसी भी आलेख पर व्यंगात्मक-बदबूदार टिप्पणी नहीं आती है , लेकिन मेरे पिछले आलेख "मरणोपरांत" पर जिस महानुभाव ने बेहूदा टिप्पणी की है , ये आलेख उन्हीं श्रीमान की अशिष्टता का प्रतिउत्तर है।

जिनका ये कहना है की हर प्रकार की टिप्पणी के लिए तैयार रहना चाहिए, उनका कथन सत्य है । एक वर्ष में इतना तो अनुभव हो ही गया है की ब्लॉगजगत भी मठाधीशों, ईर्ष्यालुओं , भ्रष्टाचारियों , अभद्र और अश्लील लिखने वालों से खाली नहीं है।

मन तैयार तो नहीं है , लेकिन मजबूरी है अतः इस आलेख से ज्यादा कोई दंड नहीं दे सकती ऐसे अशिष्ट जनों को ।

लेकिन खेमेबाजी करने वाले उस सज्जन के लिए मन में अब कोई स्थान नहीं है।

एक टूटती हुयी उम्मीद है की वे अपनी गलती समझेंगे और दुबारा ऐसी गलती नहीं करेंगे।

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ZEAL said...

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रूपेश भैया,
आपने मन का कष्ट समझा , उसके लिए आभार। पिछले एक वर्ष में मैंने बहुत से बेहूदा वक्तव्यों का प्रतिउत्तर देना छोड़ दिया था लेकिन सज्जनों की निष्क्रियता दुर्जनों की हिम्मत बहुत बढाती जाती है। ऐसे लोगों से बचकर भी चलती हूँ , लेकिन ये लोग अपनी दुर्गन्ध के साथ उपस्थित हो जाते हैं। इन्हें अछूत समझकर इनसे जितना दूरी बनती हूँ, ये लोग छटपटाते हुए यहीं आ जाते हैं।

जिन महानुभाव ने अपनी टिप्पणी में गडा मुर्दा उखाड़कर अपमानित करने की कोशिश की है , उसे किसी के बारे में राय बनाने से पूर्व पूरा सत्य जानना चाहिए था। लेकिन नहीं , मुझसे ईर्ष्या और द्वेष रखने वाले बिना दुर्गन्धयुक्त भड़ास के हाजमा सही नहीं रख पायेंगे। अतः इनकी सेहत के लिए यही ठीक है।

द्वेश्युक्त टिप्पणी लिखने वालों का नाम लिखकर उन्हें महिमामंडित नहीं किया जाएगा। उनकी सजा यही है की वे गुमनाम रहे। अभद्र टिप्पणी लिखकर वे कुछ हासिल नहीं कर सकेंगे। उन्हें उनके AGENDA में सफल नहीं होने दिया जाएगा।

Just get lost ! is appropriate for such people.

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ZEAL said...

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डॉ अनवर जमाल के बारे के बारे में इतना लिखूंगी की ये बेहतर हैं ब्लॉगजगत के बहुत से मठाधीशों से। इन्होने मुझे 'बहन' कहा फिर मेरे खिलाफ अभद्र आलेख लिख कर अपने ब्लॉग 'एहसास की परतों' पर लगा दिया और उसका लिंक इन्होने ब्लॉगजगत के हर ब्लॉग पर बांटा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों के सामने मुझे अपमानित कर सकें । इनके ब्लॉग पर कुछ चुनिन्दा विद्वानों ने मेरे बारे में अश्लील और अभद्र बातें लिखीं।

डॉ अनवर जमाल को इस तरह 'बहन' को अपमानित करके क्या हासिल हुआ नहीं जानती हूँ। लेकिन इन्होने मेरे ब्लौग पर आना बंद नहीं किया , जबकि इनसे बेहद नाराज़ हूँ। इनके ब्लौग पर नहीं जाती हूँ।

उन सबसे नाराज़ हूँ जिसने एक स्त्री को अपमानित होते हुए देखा लेकिन दुम दबाकर निकल गए, अशिष्टता और अश्लीलता के खिलाफ एक शब्द बोलना भी जरूरी नहीं समझा , क्यूंकि तमाशा देखने में मज़ा जो आ रहा होगा।

तमाशबीन भी कम गुनाहगार नहीं होते।

जब तक डॉ अनवर जमाल माफ़ी नहीं मागेंगे , इन्हें कभी माफ़ नहीं करुँगी।

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लेकिन एक बात स्पष्ट कर दूँ की यह पोस्ट ब्लॉगजगत के किसी सूरमा की अभद्र -व्यंगात्मक-बदबूदार टिप्पणी से आहत होकर लिखी है। अतः अनवर जमाल को इस आलेख से दूर ही रखा जाए। ताकि असली गुनाहगार अपनी धृष्टता समझ सके।

आभार।

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JC said...

द्वापर में जब मानव की कार्य-क्षमता केवल ५० से २५% रह जाती है, सब से गलती संभव है (और दोष सदा जिव्हा का माना जाता है), द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का बेटा कह दिया, तो द्रौपदी का भरी सभा में चीर-हरण का प्रयास हो गया!
वो तो भला हो कृष्ण का जो उसने द्रौपदी की लाज रखली!

उपरोक्त सन्दर्भ दर्शाता है द्रौपदी के सौर-मंडल के एक प्रथ्वी से ही उत्पन्न हुए सदस्य चन्द्रमा का प्रतिरूप होना (जिसे 'हिन्दू' सर्वोच्च स्थान देते आ रहे हैं, गंगाधर शिव के मस्तक पर उसे स्थान दे) ,,,
और दुर्योधन का शुक्र ग्रह का प्रतिरूप होना (शुक्राचार्य राक्षाशों के राजा भी माने जाते हैं!),,, जिसका स्थान नीचे, गले में है!

और वर्तमान वैज्ञानिक भी इस की पुष्टि करते हैं की शुक्र ग्रह का वातावरण विषैला है, जबकि चन्द्रमा का वातावरण है ही नहीं, वो सूर्य की किरणों को (रात की रानी) सादे दर्पण समान पृथ्वी आदि ग्रहों को लौटा देती हैं, अर्थात 'सोमरस', जिसके कारण क्धान्द्रमा की कृपा से 'देवताओं' को अमृत प्राप्त हुआ... हमारे सौर-मंडल की आयु आज चार अरब से ऊपर है, और पृथ्वी और चन्द्र दोनों हमारे ब्रह्माण्ड में सबसे सुन्दर माने जाते हैं... और 'द्रौपदी चीर-हरण' की असफलता का कारण इस तथ्य से समझा जा सकता है कि पृथ्वी से 'हम' स्वार्थी अर्थात राक्षसों को चन्द्रमा का केवल एक ही चेहरा दिखाई पड़ता है,,, अर्थात सीता माता के चरण, जो त्रेता में लक्षमण ने देखे बनवास के समय यद्यपि वो धनुर्धर राजा राम की तुलना में अधिक समय सीता के निकट ही रहता था (चन्द्रमा कुछ लाख किलोमीटर की दूरी पर है पृथ्वी से, जबकि सूर्य तुलना में अत्यधिक दूर!) आदि आदि...

"सत्यम शिवम् सुन्दरम" एवं "सत्यमेव जयते" कह गए हमारे 'अंध विश्वासी' (?) पूर्वज...



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Arun sathi said...

मैं तो इस तरह की टिप्पणीयों को लिखने वालों की चरित्र का प्रमाण मानता हूं और इस समाज मे अच्छे बुरे दोनों तरह के लोग है

ashish said...

व्यंग अगर इर्ष्या से जनित हो तो बदबूदार ही होगा . नाक बंद करिए वो इर्ष्या के आग में ही जलकर खाक हो जायेगा .

रश्मि प्रभा... said...

bahut zaruri hai...

डॉ टी एस दराल said...

क्या दिव्या जी । आपकी टिप्पणी पढ़कर पिछली पोस्ट की टिप्पणियां सब दोबारा पढ़नी पड़ी । लेकिन मुझे तो एक भी ऐसी नज़र नहीं आई जो कष्टदायक हो । न ही कोई डिलीट हुई , न मोडरेशन लागु था । फिर कहाँ गई वो टिप्पणी । या फिर इन्ही में कोई ऐसी है जो आपको पसंद नही आई । अब तो आपको खुलासा करना पड़ेगा ताकि हमें भी पता चले कि बदबूदार टिप्पणी कैसी होती है ।

वैसे इस बात से सहमत हूँ कि मतभेद होने के बावजूद टिप्पणियों में व्यक्तिगत रूप से अशिष्टता नहीं आनी चाहिए ।
मान मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए ।

Vaanbhatt said...

मुद्दा एकदम सही है...

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

वर्ष के प्रारंभ में अनवर ज़माल जी ने अपने ब्लॉग पर दिव्या जी के बारे में जो कुछ बदबूदार लिखा है उसके लिए दिव्या जी यदि उन्हें माफ़ करती हैं तो यह उनकी महानता होगी. किन्तु मेरे जैसा प्रायः शांत रहने वाला व्यक्ति ज़माल को अगले कई ज़न्मों तक माफ़ नहीं कर सकेगा. उन्होंने गलती नहीं की है बल्कि महापाप का अक्षम्य अपराध बारम्बार किया है. वे क्या सोच कर इस ब्लॉग पर आते हैं ? कायदे से तो उन्हें इस ब्लॉग की ओर झांकना भी नहीं चाहिए. मैंने ज़माल जी के ब्लॉग पर जो कुछ देखा है वह अवर्णनीय है मैं व्यक्तिगत रूप से उससे बहुत आहत हुआ हूँ. ज़माल का अपराध इतना गंभीर है कि उसके लिए सारे दंड कम हैं, मनुष्य की न्याय क्षमता समर्थ नहीं है उसके लिए. केवल ईश्वर ही उसका न्याय कर सकेगा.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

अनवर ज़माल के लिए यह मेरी प्रथम और अंतिम टिप्पणी है. अब यदि इस टिप्पणी से नाराज़ होकर वे मेरा भी चीर हरण करते हैं तो भी मैं कोई उत्तर नहीं दूंगा, क्योंकि अभी तक मैंने उनका जो ब्लॉग चरित्र देखा है वह इस योग्य नहीं है कि उन्हें कोई प्रत्युत्तर दिया जाय.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अपमानित करने वाली टिप्पणियां व्यंग्य तो नहीं कही जा सकतीं॥ हम तो सेंट लगाय के व्यग्य करते हैं तो बदबू का सवाल ही नहीं पैदा होता :))

ZEAL said...

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डॉ दराल ,

जैसे इस लेख को पढ़कर कोई ये अनुमान नहीं लगा सकता की ये आलेख किसको समर्पित है , उसी तरह मेरे पिछले आलेख पर आई उस बदबूदार टिप्पणी को कोई नहीं पहचान पाया। लेकिन जैसे मैंने उन श्रीमान की बेहूदा टिप्पणी का आशय समझ लिया , वैसे ही मुझे पूरा यकीन है की वे भी अपनी शातिरपना का जवाब पाकर खुद को पहचान लेंगे और शर्मिंदा महसूस करेंगे।

जहाँ तक नाम लिखने का सवाल है, ऐसी बेहूदा टिप्पणी करने वालों का नाम लिखकर अपना ब्लॉग अपवित्र नहीं करुँगी । उनकी यही सजा होगी की वे गुमनाम रहे और घुट-घुट कर मरें।

यहाँ नाम लिखते ही उनका पूरा खेमा उत्पात मचाने आ जाएगा और प्रवचन देने वालों का भी मजमा लग जाएगा। इसलिए बेहतर यही है की इनका शिनाख्त ही न की जाए ताकि इनका AGENDA फेल हो जाए।

महोदय का AGENDA था गड़े मुर्दे उखाड़ना और मुझे अपमानित करना लेकिन शायद उन्हें नहीं मालूम की -

"A trick fails the moment it is noticed."

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भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हमारे प्रिय अनवर जी शायद कभी ही ऐसी टिप्पणी करते होंगे. मैंने तो ऊपर वाली टिप्पणी में उनसे अपना समर्थन मांगा था.
अब मुझे "मरणोपरांत" शीर्षक वाला लेख फिर से पढ़ना पड़ेगा.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मैंने अभी दुबारा वह लेख पढ़ा और मुझे लगा कि शायद मेरी टिप्पणी के संदर्भ में तो नहीं. यदि ऐसा है तो मैं निश्चित रूप से क्षमाप्रार्थी हूं. मैं न तो किसी खेमेबाजी में शामिल रहा हूं और न ही मेरा कोई अन्यथा प्रयास था. आशय यह था कि कोई भी प्रुरुस्कार यदि किसी व्यक्ति को ऐसे समय पर दिया जाये जब वह पुरुस्कार लेकर अपने लिये किसी गौरव का भी अनुभव न कर सके तो ऐसा पुरुस्कार किस काम का. एक बार पुन: यदि मेरी टिप्पणी से ठेस पहुंची है तो मैं निश्चित रूप से क्षमाप्रार्थी हूं.

ZEAL said...

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@-भारतीय नागरिक ,

नहीं , आपने कभी भी कुछ भी अभद्र नहीं लिखा न ही व्यंगात्मक। अतः क्षमा मांगकर छोटी बहन को शर्मिंदा मत कीजिये। आपका बहुत सम्मान करती हूँ। स्वयं पर शक मत कीजिये, मुझे दुःख होगा।

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ZEAL said...

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@-भारतीय नागरिक --

वह भद्दी टिप्पणी करने वाला और कोई नहीं बल्कि "स्मार्ट इंडियन" नामक ब्लॉगर है। यह खुद को स्मार्ट और अन्यों को "मूर्ख इंडियन" समझता है। इसकी बदबूदार टिप्पणी तो हमने बर्दाश्त कर ली थी लेकिन अब तो इन महाशय ने बदबूदार आलेख भी लिख दिया है और सारे अश्लील और अभद्र टिप्पणीकारों को मौका दिया है दिव्या को अपमानित करने का। इन ज़रुरत से ज्यादा चतुर (oversmart) महाशय की जितनी भर्तसना की जाए कम है। ये मरे हुए लोगों को तो सम्मान देते हैं, लेकिन जीवित लोगों का जीना दूभर कर देते हैं। इन्होने अपनी हालिया पोस्ट पर मेरा जितना अपमान किया है अपने गिरोह के लोगों के साथ मिलकर, उसका नतीजा इनके सामने बहुत शीघ्र आएगा। मेरे साथ कोई हो न हो , लेकिन मेरा ईश्वर हर जगह मेरी रक्षा करता है। मुझे अपमानित करने वालों को सजा भी वही देगा और शीघ्र ही देगा।

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