सभी ने अपने जीवन में प्यार का अनुभव तो किया ही होगा कभी न कभी या फिर हमेशा ही किसी न किसी के द्वारा। धनवान रही हूँ हमेशा से क्यूंकि "प्यार" जैसी बेशुमार दौलत को सदा ही पाया है। इतना प्यार मिलता है इसीलिए लुटाने के लिए भी मेरे पास प्रचुर मात्रा में रहता है।
किन्तु एक प्रश्न मन को उलझन में ड़ाल रहा है की प्रेम व्यक्ति को मज़बूत बनाता है या फिर कमज़ोर। मैंने लेखन छोड़ देने का जो निर्णय लिया था उसपर दृढ नहीं रह सकी क्यूंकि प्रेम करने वाले स्नेहीजनों की स्नेह्वर्षा से मैंने अपना निर्णय बदल दिया। तो क्या स्नेह ने कमज़ोर करके मुझसे मेरी दृढ़ता छीन ली। या फिर उठ खड़े होकर कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की ताकत दे दी ?
मुझे लगता है प्रेम में पिघला देने की ताकत होती है, बड़े-बड़े फौलाद को जो पिघला दे वह सिर्फ "निश्छल" प्रेम ही हो सकता है।
Zealकिन्तु एक प्रश्न मन को उलझन में ड़ाल रहा है की प्रेम व्यक्ति को मज़बूत बनाता है या फिर कमज़ोर। मैंने लेखन छोड़ देने का जो निर्णय लिया था उसपर दृढ नहीं रह सकी क्यूंकि प्रेम करने वाले स्नेहीजनों की स्नेह्वर्षा से मैंने अपना निर्णय बदल दिया। तो क्या स्नेह ने कमज़ोर करके मुझसे मेरी दृढ़ता छीन ली। या फिर उठ खड़े होकर कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की ताकत दे दी ?
मुझे लगता है प्रेम में पिघला देने की ताकत होती है, बड़े-बड़े फौलाद को जो पिघला दे वह सिर्फ "निश्छल" प्रेम ही हो सकता है।
62 comments:
प्रेम /प्यार और स्नेह में अंतर होता है दिव्या जी .
जब हम मेडिकल में थे , एक लड़के ने एक कार्यक्रम के दौरान किसी बात पर बहस करते हुए एक मैडम से कह दिया --मैडम आई लव यू . मैडम ने उसे डांटते हुए कहा --यू डोंट हैव टू लव मी , यू शुड रिस्पेक्ट मी .
आपने स्वयं सोचकर यह निर्णय लिया होता तो हमें ज्यादा ख़ुशी होती .
वैसे स्नेह तो हम भी करते हैं आपसे . लेकिन आपने हमारी बात तो नहीं मानी .
खैर , उम्मीद करता हूँ , भविष्य में ब्लोगिंग में ऐसी दुर्भावनाएं उत्पन्न नहीं होंगी .
दिव्याजी,आपके इस 'अभूतपूर्व' और 'ऐतिहासिक' निर्णय को शत-शत नमन !
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डॉ दराल,
प्रेम, प्यार , स्नेह आदि में कोई अंतर नहीं होता। लिखते समय इस्का प्रयोग अलग-अलग तरीके से होता है । उदाहरण के लिए यदि अपने से छोटे को आशीर्वाद लिख रहे हैं तो "स्नेहाशीष" लिखेंगे , प्रेमाषीश नहीं।
सम्मान में प्यार शामिल होता है। बिना प्रेम के कोई किसी का सम्मान नहीं कर सकता। दफ्तरों में और अन्य जगहों पर औपचारिक सम्मान तो दिया जा सकता है , लेकिन वो केवल courtesy (औपचारिकता) होगी जब तक उसमें प्रेम शामिल नहीं होगा।
जिस प्रकरण का आपने जिक्र किया है उसमें यदि शिक्षिका ने यह कहा होता की - " I love you too beta. May God bless you " तो उस शिक्षिका के लिए मेरे दिल में भी सम्मान जगता। अन्यथा उनका उत्तर तो arrogance की निशानी लग रही है।
मेरा जुड़ाव उन्हीं के साथ ज्यादा होता है , जो मुझसे प्रेम,प्यार, स्नेह रखते हैं।
जहाँ प्रेम होता है , वहां विश्वास और सम्मान स्वतः ही आ जाता है।
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प्रिय रविकर जी ,
आपकी Instant कविताओं ने मुझे अपना भक्त बना लिया है। Hats off to you Sir.
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प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई |
राजा प्रजा जिस रुचे, सीस देय ले जाई ||
दिव्या जी , समझ अपनी अपनी .
स्नेहाशीष .
आप वास्तव में ही बहुत भावुक और प्रेममय हैं, दिव्या जी.
तो प्यार और प्रेम से हुए आग्रह को कैसे ठुकरा सकतीं हैं.
प्रभु को पाने के लिए भी असीम प्यार की ही आवश्यकता है.
दुनिया की नज़रों में भावुकता और प्यार कमजोरी लग सकती है पर
अध्यात्म मार्ग में तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है.
प्रेम का निस्वार्थ भाव ही उसकी असली ताकत है ...उसका रूप कोई भी हो ... आभार ।
कोई, उपल घात या चंचला , नहीं झुका सकते तेरे मनोबल को
पथ खुला पड़ा है तेरा दौड़ सरपट , कर धता बता तू छलबल को
प्रेम किसी की ताकत बनता है तो किसी की कमजोरी ...यह व्यक्ति पर निर्भर है कि वो क्या चयन करता है ..सोच सकारात्मक होनी चाहिए ...निरंतर आगे बढ़ने पर ध्यान दें ...
प्यार प्रेम और स्नेह एक ही अर्थ रखते हुए प्रयोग की दृष्टि से अलग अलग परिस्थिति में अलग अलग अर्थ देते हैं .... हर जगह एक ही शब्द प्रयुक्त नहीं किया जा सकता ..पर्यायवाची शब्दों को प्रयोग करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनका सही प्रयोग हो रहा है या नहीं ..
एक उदाहरण देती हूँ ...
एक मुहावरा है -- शर्म से पानी पानी होना ...अब यहाँ पानी की जगह जल , अम्बु या कोई और शब्द नहीं लिया जा सकता ..
जैसे ..शर्म से जल जल होना ....
इसी प्रकार प्यार और स्नेह को भी अलग अलग रूप में प्रयोग किया जाता है .. यह मुख्य रूप से भावनाओं पर आधारित होता है ..
दिव्या जी ,आप इसे अपनी ताक़त समझें या कमजोरी, हम तो ब्लॉग की दुनिया में आपकी वापसी होने से सकते से बाहर आ गए .
सुस्वागतम !
प्रकृति की विविधता शब्दों से भी, जैसे स्नेह / प्यार अथवा प्रेम / आदर / श्रद्धा आदि आदि, द्वारा उपयोग में लाये जाने से प्रतिबिम्बित होती है - व्यक्ति विशेष का किसी अन्य व्यक्ति विशेष के लिए...और अज्ञानता वश, अथवा शैतानी से, जिव्हा का दोष यहाँ भी कभी कभी देखने को मिल जाता है...
पृथ्वी के मैग्नेटिक ध्रुवों समान एक लोहे से बने मैगनेट का उदाहरण लें तो, हम पाते हैं कि वो अपनी शक्तिनुसार अन्य लोहे के टुकड़ों को खींचता है... और लौह चूर्ण द्वारा स्कूल में हमने देखा था कि कैसे ध्रुवीकरण होता है...
इसी प्रकार, इसी के प्रतिबिम्ब समान, हर व्यक्ति में एक खिंचाव, आकर्षण, करिश्मा होता है... किसी में कम तो किसी में अधिक...
(मोहन दास, अन्ना, समान) 'महात्मा' / (जवाहर लाल समान) 'नेता' / (अनेक वर्तमान) 'साधू' / 'मदारी' / डॉक्टर' / 'हलवाई' / आदि भी इस कारण देखे जाते हैं भीड़ इकठ्ठा करने की विभिन्न क्षमता लिए हुए... (कहावत है कि समोसे वाले कि दूकान में जितनी लम्बी लाइन होगी समझो उसका समोसा बढ़िया होगा,,, और यह डॉक्टर पर भी लागू होता है :)...
प्यार हमारे पास भी प्रचुर है और उसे आप पर हम बरसाते भी रहते हैं ।
हमें मालूम है कि सच्चा ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़ ही नहीं सकता ।
बाहर की दुनिया में कहाँ मिलेंगे सुनने और सराहने के लिए इतने सारे लोग ?
सब न सही लेकिन कुछ तो इनमें भी सच्चे और गंभीर होते ही हैं ।
हमें पता था कि आप हमें छोड़ न पाएंगी सो इसी विश्वास के बूते आपसे कोई अपील भी न की ।
शुभकामनाएँ !
आपने लेखन बन्द करने का निर्णय कब कर लिया?
मेरे ख्याल से तो प्यार ताकत ही देता है किसी खास परिस्थिति में प्यार कमजोर कर सकता है ............
मेरे विचार से 'प्रेम'स्वयं एक बहुत बड़ी ताकत है!...ऐसी ताकत है जो सामने वाले के मन को अपने बस में कर लेती है!..ऐसे में सामने वाला कमजोर पड़ जाता है और कई बार अपनी इच्छाके विपरित कार्य करता है!...एक बच्चे का ही उदाहरण आप देखिए...एक बच्चा अपनी माँ से आइस्क्रीम मांग रहा है...माँ उसे यह सोच कर देना नहीं चाहती कि उसका गला खराब हो जाएगा...लेकिन बच्चे का तोतली जबान में आइस्क्रीम के लिए बार बार कहना, माँ को कमजोर बनाता है और वह उसे आइस्क्रीम खिला देती है!...यहाँ माँ के बच्चे के प्रति 'प्रेम' ने या 'ममता'ने अपनी ताकत के जोर पर माँ को कमजोर बना दिया है!
...बहुत ही सुन्दर आलेख है, धन्यवाद
किसी ने कहा मै अपने कुत्ते को जादा प्यार करता हूँ !
किसी ने कहा मै अपने गाडी को सबसे जादा स्नेह
करता हूँ ! दिव्या आप किस प्रेम क़ी किस स्नेह कि बात
कर रही हो ?
सगीता आंटी की बात से सहमत हूँ। इंसान की परिस्थित और हर एक इंसान के अपने स्वभाव पर भी निर्भर करता है की उस वक्ती विशेष के लिए प्रेम ताकत का काम करेगा या कमजोरी का ... अच्छे परिणामों के लिय ज़रूरी है सकारात्म्क सोच का होना।
कांटा चुभे जो पाँव में चलकर के देखिये
मुमकिन हो कोई कांटा ही कांटा निकाल दे शायर जमीर अहसन का यह शेर यहाँ बताना आवश्यक है मोहब्बत से कभी -कभी ताकत मिलती तो कभी कमजोरी इसी तरह नफरत से कभी निराशा मिलती है तो कभी चुनौती का सामना करने की ताकत आप पर निर्भर करता है कि आप समस्याओं से किस तरह लड़ते हैं |अब दुष्यन्त कुमार का एक शेर बड़ी ताकत देता है कौन कहता है आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता /एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों .....शुभकामनाएं
जिसमें प्रेम निभाने की शक्ति है उसे प्रेम शक्ति देता है.
दिव्या ,तुम्हारे लिये प्रेम ,प्यार ,स्नेह ,दुलार ,आशीष सब कुछ ....स्वस्थ रहो खुश रहो :)
pyar ek pavitr bandana hai
pyar karane vale kabhi rlatha hai kabhi hasatha hai
is khushi me ek adrak wali chai hamre taraf se
............
badhiya manbhavan.....
pranam.
सार्थक प्रश्न है ..............कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग 'खलील जिब्रान' पर 'प्रेम' नाम की पोस्ट ज़रूर पढ़े........मेरा इरादा प्रचार का नहीं है........शायद आपको आपके सवाल का जवाब 'जिब्रान' जैसे दार्शनिक के शब्दों में बेहतर मिल सके|
pyaar mein adbhut takat hoti hai
लेखन एक नशा है जो साहित्य को समृद्ध करता है!
मेरी कामना है कि यह नशा सबको लग जाए!
विचारणीय प्रश्न है ..प्रेम में शक्ति होती है ..कभी कभी प्रेम विवश भी कर देता है ..सादर !!!
mil jaaye to taakat de de
nahee mile to kamzor banaa de
इस आलेख को मेरा अंतिम आलेख समझा जाए । आप सभी के साथ मेरा सफ़र बस यहीं तक का था
- दिव्या जी
कितनी डरावनी हैं न आपकी एक टिप्पड़ी की ये पंक्तियाँ ! आज इनको पढ़कर एक बार को तो मैं सहम गया!
लेकिन जब ये वाली पोस्ट पढ़ी तो अच्छा लगा और सोचा आज कोई बहाना नहीं चलेगा और टिप्पड़ी लिखो!
सार्थक ब्लॉग्गिंग करने वालों में आप का स्थान अग्रणी है! पता नहीं क्यों आपने ये लिखा !
आप हमेशा लिखती रहें! आप जैसा सफल ब्लोगर बनना, किसी के लिए भी एक सपना हो सकता है!
(शायद कुछ को जलन भी हो सकती है)! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आप के बराबर ' ज्ञान'
वाले ब्लोगर केवल नाममात्र के हैं! इसलिए 'हिंदी ब्लॉगजगत' के हित में कभी अलविदा मत कहना या लिखना!
हमारे बड़े भाई 'अन्ना', ने क्या कहा याद है?
उन्होंने कहा कि जनता के उनके साथ होने के कारण उन्हें शक्ति मिल्ली और वो १२ दिन तक केवल जल ग्रहण कर उन्हें 'भोजन' की आवश्यकता ही नहीं पड़ी....
ऐसा तो हिन्दू मान्यतानुसार कई योगियों का केवल वातावरण में उबलब्ध हवा-पानी पर दीमक की बाम्बी रूप में परिवर्तित हो तपस्या करने से भी आभास होता है... अर्थात आत्म-बल जैसे परमात्मा को अनादि काल से अजर-अमर रखे हुए है काफी है... योगियों ने तो यह भी कहा कि भोजन ही विष है शरीर के लिए, आत्मा तो अनंत है :)
भारत में निराकार शक्ति (शिव-सती) की उपस्थिति मान, परम्परानुसार अपने पितरों को प्रति वर्ष याद किया जाता है, आश्विन माह में क्रिह्न्पक्ष में, और उसके बाद नवरात्रि मनाते हैं, साकार के आधार नवग्रहों की पूजा करते हैं, आठवें दिन दुर्गाष्टमी और दसवें दिन दशहरा / विजयादशमी मनाते हैं असत्य पर सत्य की विजय मानते हुए...
"मानो तो भगवान् / नहीं तो पत्थर", इस कारण संकेत हैं हरेक के अपने मन को साधने के लिए...
आदमी तो शेरों, हाथियों, जंगली घोड़ों आदि को साधने में सक्षम है,,,
किन्तु अपने मन को ही नहीं साध पाता...
जिसके लिए 'श्रद्धा, सबूरी और प्रेम, सभी को अनादि- अनंत ईश्वर का रूप मान आवश्यक माना गया...
प्रेम तो ताकत ही देता है हमेशा। आप को ब्लागरी में टिकने का साहस उसने दिया कि नहीं?
बिलकुल सही ! प्रेम की धागा बहुत मजबूत होती है !
प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं।
प्यार मैं बहुत ताकत होती है /प्यार की ताकत से आप दुश्मन को भी दोस्त बना सकते हैं /और प्यार भरे निवेदनों से इंसान अपने लिए हुए निर्णय को बदल भी लेता है /आपने भी बहुत अच्छा किया अपना निर्णय बदल लिया दिव्याजी /आप हमेशा ऐसे ही अच्छा लिखतीं रहे यही कामना है /
प्रेम आन्तरिक शक्ति होता है। वह किसी भी तरह से कमजोर नहीं होता। लोग-बाग सतही सोच से इसे कमजोरी समझने की भूल करते है।
जिस तरह क्षमा में वीरता होती है कायरता नहीं, उसी तरह प्रेम में अतरंगता अपनत्व का दृढ बंधन होता है। विवशता की कमजोरी नहीं।
निसंदेह प्यार एक ताकत और उर्जा प्रदान करता है ... आपका निर्णय सराहनीय है ....आभार
दोनों ही करता है, यही इसकी विशेषता है।
दिव्या दीदी
प्रेम ताकत ही देता है, कमजोरी नहीं|
संबंधों में विवशता आ जाने के कारण, यह कमजोरी सा प्रतीत हो सकता है, किन्तु इसमें दोष प्रेम का नहीं|
विवशता से मेरा अभिप्राय स्नेह में आसक्ति होने से है| यदि मैं मेरे परिवार के प्रेम में विवश होकर अपनी पढ़ाई पूरी करने व बाद में नौकरी आदि के लिए उनसे दूर न जाकर वही उनके पास ही रहता तो यहाँ कमजोरी साबित हो सकती है| किन्तु यहाँ दोष प्रेम का नही, बल्कि उस विवशता का है|
प्रेम तो ऊर्जा है, और आप तो जानती हैं कि ऊर्जा का मापन कभी -ve में नहीं होता| अत: कमजोरी का तो सवाल ही नहीं|
Love is a word that has been given a lot of undue attention and its something that is unduly exaggerated .. Especially love as in between a couple ... In my experience that does not exist in this materialistic world .. people change in a single night ..
Bikram's
zeal ji
sundar prastuti ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
**************
ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
दिव्या जी प्रेम वास्तव में ताकत देता है, और स्नेह, प्रेम प्यार, आकर्षण , खिचाव सब एक के ही तो पर्यायवाची है पर जगह जगह पर इसके अर्थ बदल जाते हैं, पर भावनाएं वही होती हिं निश्छल.जहाँ प्रेम हो वहां डर नहीं क्योंकि प्रेम आजाद होता है और हम जिसे प्रेम करते हैं उसे आशीष, सम्मान अपने आप मिल जाती है. प्रेम परक कोई इन्सान हो सकता है और पसंद परक वस्तु ,पर कभी कभी प्रेम में इन्सान कमजोर हो जाता है जब दिल से दिमाग पर प्रेम हावी हो जाये तो सोंच नकारात्मक की सिथिति में कमजोर वाली हालत प्रेम बना देता है, पर प्रेम को अपनी ताकत बना कर ही जीना अक्लमंदी है ना की उसके गिरफ्त में कमजोर हो कर तबाह हो जाना.......
प्रेम में जो बात कमजोरी दिखाई देती है असल में वही उसकी असीम ताकत होती है. शुभकामनाएं.
रामराम
दिव्या जी , आभार , निर्णय बदलने के लिए और सक्रियता का निर्णय लेने के लिए . पिछली अंधेरी रात को उजाले की किरण से भुला दें , रोशनी बिखेरता सूरज भी अँधेरे में खो कर सुबह तीव्रता के साथ प्रकट होता है और उजाला फैलाता है , सारा जहाँ रोशन करता है.
" मिलता है वही उसको,
जो बांटता है सबको "
खुश रहे, स्वस्थ रहे, और व्यस्त रहे शुभकामनाएं
मिलकर हमेशा- प्रेम से बोलो... बातों में मिठास- प्यार से घोलो... परस्पर की ग्रंथियाँ- स्नेह से खोलो.
हिमालय से निकली भागीरथी का प्रवाह आड़ी-तिरछी मज़बूत चट्टानों को चिकना बना देता है... उन्हें मंदिर में रखने योग्य पाषाणों में बदल देता है... अवशिष्ट शुष्क तत्वों से बनी चट्टानों को खंड-खंड करके चूर्ण बना देता है.
किन्तु, हृदय से निकले निश्छल प्रेम का प्रवाह आड़े-तिरछे दिमाग वालों को चिकना (बेशरम) बना देता है... उन्हें रस-सभा में गंभीर बुद्धिजीवी (मजबूरी में) से मंडित करता है... छल-कपट और मक्कारी गुणों से बने धूर्त व्यक्तियों को धूल चटा देता है.
आखिरी पंक्ति में आप ने सारा गूढ़ अर्थ कह दिया........ प्रेम की ताकत अतुलनीय है.
इसे ऐसा समझा जाना चाहिए-
प्यार में दोनों गुण हैं।
यह नकारात्मक दृढ़ता को कमजोर करता है और सकारात्मक कमजोरी को दृढ़ता प्रदान करता है।
प्यार दोनों स्थितियों में सकारात्मक परिणाम ही देता है।
दोनों एक ही सिक्के के पहलु है
प्यार किया तो डरना क्या
ekdam sahi baat,prem hi raja hai saari bhavnao ka
isi par to poori jindagi log haar jate hai,sunder vishleshan
sader,
dr.bhoopendra
मेरे व्यक्तिगत विचार से लेखन और पूजा एक ही कर्म है.दोनों कर्मों में ही साधना होती है.दोनों ही अंतर्मन से सम्बंधित हैं.प्रेम का निश्छल स्वरूप दोनों में विद्यमान है.मीरा, सूर, तुलसी आदि भक्तिकालीन कवियों की रचनायें इसका जीवंत उदाहरण हैं.न पूजा से विरक्त हुआ जा सकता है, न ही लेखन से.पूजा की तरह ही लेखन भी मन को अद्भुत और अलौकिक शांति देता है.
"प्रेम ही सत्य है!" प्रेम को पीड़ा का नाम दिया जाता है तो सत्य कड़वा होता है..यही जीवन है....!!
मेरे विचार से आपकी यह उक्ति कि- ‘फिर खड़े होकर कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की ताकत दे दी’ ज्यादा सही है
ye aapke premi par nirbhar karta hain...agar pyar karne vale do log chahe to pyar se taakt bhi le sakte hain aur chahe to kamzor bhi ho sakte hain
प्रेम या प्यार या स्नेह पर आपने अच्छा प्रकाश डाला है।बहुत अच्छा लगा।
कई बार प्यार हमें ताकत प्रदान करता है तो कई बार हमें कमजोर भी बनाता है।बिल्कुल
एक सिक्के के दो पहलू है ये।
मुझे तो यहां पर आई हुई टिप्पणियां पढ़ने में और आनन्द आता है. एक अच्छा विषय और उस पर अच्छी टिप्पणियां. यही तो असल आनन्द है ब्लाग का.धन्यवाद.
स्नेह निश्छल हो यह मेरे लिए महत्त्व रखता है.
शक्ति और दुर्बलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं -एक धनात्मक दूसरा ऋणात्मक.कौन कैसे ले इस पर निर्भर करता है .आपने पॉजिटिव साइड चुनी -बहुत अच्छा किया .
mana ki pyaar kai baar kamjor banata hai kintu pyaar me vah taakat hai jo us kamjori par bhi vijay praapt kar leta hai.pyaar ko pyaar hi rahne do koi naam na do...sahi hai.niswaarth pyaar hi sabse bada pyaar hai.
यद्यपि शून्य से आरम्भ कर गुब्बारेनुमा ब्रह्माण्ड का विस्तार प्रकृति में तीन दिशाओं में हुआ है, हम केवल एक धरातल पर, अर्थात किसी एक तल पर, अपने अनंत ब्रह्माण्ड को एक अनंत अकार के वृत्त द्वारा दर्शा सकते हैं… और, क्यूंकि, किसी भी साकार को निर्धारण हेतु ३६० डिग्री माना जाता है,,, यानि ९० डिग्री के चार खंड (ब्रह्मा के चार मुख, चार युग मान्यता समान),,, इस अनंत शून्य को गणितग्य टेनजेंट कर्व द्वारा, (-) अनंत और (+) अनंत के बीच, दर्शाया जा सकता है… किन्तु इसीके भीतर इसके मोडल पृथ्वी पर सीमित काल और शक्ति के भण्डार साकार जीव, मानव आदि को, उसी प्रकार, साइन कर्व द्वारा दर्शाया गया समझा जा सकता है (-) एक (१) और (+) एक (१) के बीच…
और (-) को मानव की प्रकृति में ईर्ष्या / द्वेष /घृणा, आदि द्वारा प्रतिम्बित होते समझा जा सकता है,,, जबकि (+), जैसा 'कृष्ण' अपने आप को केवल ऐसा, (+), वर्णित करते हैं…
(-), पतन को मानव का गंतव्य नहीं माना गया… जिस कारण काम / क्रोध / मद / लोभ / अहंकार आदि को नरक का द्वार कहा गया है हमारे ज्ञानी-ध्यानी सतयुगी विचारों वाले पूर्वजों द्वारा…
'कृष्ण' इसलिए कह गए की सब गलतियों का कारण अज्ञान है…
किसी विदेशी ने वर्तमान में अंग्रेजी में कहा (हिंदी रूपांतर), “जो जानता है, और जानता है कि वो जानता है, वो बुद्धिमान है - उसे गुरु बनाओ //
जो नहीं जानता है, और जानता है कि वो नहीं जानता, वो भोला है - उसे सिखाओ // किन्तु, जो नहीं जानता है, और नहीं जानता कि वो नहीं जानता, वो मूर्ख है - उस से घृणा करो”…
(किन्तु 'भारत' में यह सनातन धर्मानुसार मान्यता है कि सभी भगवान्, शिव, परमात्मा के प्रतिरूप आत्माएं हैं ..
यह 'सत्य' जान, सभी साकार से प्रेम करो / दया भाव रखो, क्यूंकि सभी साकार वास्तव में आत्माएं हैं, जिनमें से कुछ अपना कर्तव्य / गंतव्य भूल गए हैं - अपस्मरा पुरुष होने के कारण, अर्थात जो अपना भूत भूल गए हैं कि अनादी/ अनंत आत्माओं की यात्रा / दौड़ सतयुग से, एक ही बिंदु से ही लगभग साधे चार अरब वर्ष पूर्व आरम्भ हुई थी)…
यह जो ढाई आखर है न प्रेम का, बड़ा मुश्किल होता है इसे समझना. कोई दावा नहीं कर सकता कि मैंने तो पूरी तरह समझ लिया है इसे. थोड़ा बहुत जो समझ पाते हैं बावरे हो जाते हैं . मीरा बावरी थी, कबीर बावरे थे, हनुमान भी बावरे थे......वह माँ भी बावरी है जो यह जानते हुए भी कि बच्चे का गला खराब हो जाएगा उसकी आइसक्रीम की इच्छा पूरी करने के लिए खुद को रोक नहीं पाती. अब प्रश्न यह है कि कमजोर होकर कौन हारा और ताकत पाकर कौन जीता ? हारा तो कोई भी नहीं .....जीता ही जीता है ....प्रेम जीता है. यही तो एक ऐसा मुकाबला है जिसमें दोनों पक्ष जीतते हैं. आइसक्रीम खाने वाला बच्चा भी जीत गया और उसकी माँ की ममता भी जीत गयी. दिव्या भी जीती और दिव्या के पाठक भी जीते. प्रेम किसी को हारने नहीं देता. यही तो उसकी विलक्षणता है.
" तौलिये" कहानी पढी होगी. कथा नायिका हार कर भी जीतती है ....यही तो प्रेम है.
प्रेम तो भीतर से उठने वाली एक शाश्वत धारा है .....गंगोत्री से निकलने वाली गंगा जैसी पवित्र ! जैसे-जैसे वह भौतिक जगत में .....विभिन्न द्र्व्यस्वरूपों के अधिकाधिक संपर्क में आती जाती है उसके स्वरूप बदलते जाते हैं ...या यूं कहिये कि वह नव स्वरूप धारण करती रहती है. इन नव स्वरूपों की आत्मा तो एक ही है .......रूप और परिस्थिति वश किये गए इनके विभिन्न नामकरणों से गंगा की मूलात्मा नहीं बदलती. हम कविता से प्रेम करें या अपने किसी स्वजन से ....या गमले में लगाए गए गुलाब से .........इनसे विछोह दर्द तो देता ही है न ! भौतिक जगत में हमें जिससे भी प्रेम है उसका विछोह पीडादायी होता है ...वह कोई प्राणी हो या फिर कोई अन्य भौतिक पिंड. इस पीड़ा में छिपी है प्रेम की आत्मा....टटोल कर देखिये ....ज़रूर मिलेगी, बस पात्रता भर होनी चाहिए. पात्रता नहीं तो प्रेम समीप से होकर निकल जाएगा....बह जाएगा आगे......अभागे समझ ही नहीं पायेंगे ....और वंचितों के वर्ग में जाकर खड़े हो जायेंगे.
हम यह नहीं कहते कि दिव्या महान है ...पर वह एक पहाड़ी झरना अवश्य है जिससे प्रेम की एक धारा सदा फूटती रहती है. हमारी अंजुरी जितनी स्वच्छ होगी अंजुरी में भरा जल भी उतना ही निर्मल होगा.
सच्चा प्रेम हमेशा ताकत देने का काम करता है। कमजोरी नहीं।
आपने अपनी दृढता नहीं खोई, प्रेम और स्नेह के चलते अपने गलत फैसले को सुधारा ही है।
आपको शुभकामनाएं...
दुआ है आपकी कलम की लेखनी से ब्लाग जगत कभी वंचित न हो।
इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल...
जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल...
ये सिर्किल जितना बड़ा हो जाये बेहतर है...
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